हर इंसान की ज़िंदगी में एक ऐसा मोड़ आता है, जहाँ उसे अपनी लड़ाई ख़ुद चुननी पड़ती है।

कुछ लड़ाइयाँ हमारे भीतर चलती हैं, तो कुछ हमारे अपनों के साथ।

श्रेया और संकेत आज उस मोड़ पर खड़े थे।

ज़िंदगी ने उन्हें दो ऐसे रास्ते दिखाए थे, जहाँ से लौटना नामुमकिन था।

श्रेय के घर का कमरा हल्के पीले बल्ब की रोशनी से रोशन था। श्रेया की मॉम बिस्तर पर लेटी हुई थीं, उनका चेहरा थका हुआ है। पास में दवाइयों की शीशियाँ रखी थीं। श्रेया पास बैठी उनकी देखभाल कर रही थी।

श्रेया की मॉम:

"बेटा, तुझे ये फेलोशिप छोड़नी नहीं चाहिए। पढ़ाई में जो मुकाम तुझे मिल सकता है, वह हमारी सारी मुश्किलें हल कर सकता है।"

श्रेया:

"माँ, अगर मैं फेलोशिप छोड़ दूँ और कोई नौकरी कर लूँ, तो कम से कम घर के खर्चे तो चलेंगे। पापा की दवाइयाँ और बाक़ी चीज़ें... सब संभाल पाऊंगी।"

 

शब्द कहने में आसान लगते थे, लेकिन श्रेया के दिल पर वह हर बात एक बोझ की तरह गिर रही थी।

उसके मन में एक गहरी दुविधा थी—क्या अपनी पढ़ाई को छोड़कर पूरी तरह से परिवार का सहारा बन जाना सही होगा?

श्रेया उठकर खिड़की के पास गई। वहाँ से बाहर देखते हुए उसकी आँखों में एक अजीब-सी बेचैनी महसूस हुई। तभी फ़ोन बजा, स्क्रीन पर "राज" का नाम था।

राज:

"हाय श्रेया! तुम कैसी हो? आज पूरे दिन लाइब्रेरी में तुम्हारा इंतज़ार किया, पर तुम आई नहीं। सब ठीक है?"

श्रेया:

"हाँ, राज। सब ठीक है। बस, घर के कुछ कामों में उलझी हुई थी।"

राज:

"तुम्हारी आवाज़ से तो ऐसा नहीं लग रहा कि सब ठीक है। बताओ क्या बात है!"

श्रेया:

"राज... मैं सोच रही हूँ कि फेलोशिप छोड़ दूँ। पापा की तबीयत और घर की हालत... अब पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि मैं कोई नौकरी करूँ।"

 

फोन के दूसरी तरफ़ एक पल के लिए चुप्पी छा गई और फिर राज की इक्साइटिड  आवाज़ एक गंभीर लहजे में बदल गई।

राज:

"श्रेया, ये फ़ैसला तुम इतनी आसानी से कैसे ले सकती हो? फेलोशिप छोड़ने का मतलब सिर्फ़ पढ़ाई छोड़ना नहीं होगा। ये तुम्हारे उस सपने को भी छोड़ना होगा, जो तुम्हारे लिए और तुम्हारे परिवार के लिए एक बेहतर भविष्य बना सकता है।"

श्रेया:

"पर राज, तुम समझ नहीं रहे। घर की ज़रूरतें हर दिन बढ़ रही हैं। माँ और पापा को हर वक़्त मेरी ज़रूरत होती है। पापा की दवाइयों का खर्च, घर के बाक़ी खर्चे... मैं कब तक यूँ ही देखती रहूँ? मुझे कुछ करना पड़ेगा।"

राज:

"मैं समझ रहा हूँ, श्रेया। पर तुम ये भी समझो कि नौकरी करके तुम शायद आज की ज़रूरतें पूरी कर पाओगी, लेकिन वह जो तुम्हारा सपना है, जो तुम्हारी पढ़ाई है, वह तुम्हारे परिवार के लिए लंबे वक़्त का सहारा बन सकता है।"

श्रेया:

"कब तक, राज? मेरे पापा हर दिन कमजोर हो रहे हैं। माँ अकेले सबकुछ संभालते हुए टूट रही हैं। क्या मुझे उनके लिए अभी कुछ नहीं करना चाहिए?"

राज:

"तुम बिल्कुल सही हो कि तुम्हें उनके लिए खड़ा होना चाहिए। लेकिन उनके लिए खड़े होने का मतलब ये नहीं कि तुम अपने सपनों से हार मान लो। अगर तुमने अपनी पढ़ाई छोड़ी, तो क्या तुम कभी ख़ुद को माफ़ कर पाओगी? क्या ये वह रास्ता है, जो तुम्हारे पापा और माँ तुम्हारे लिए चाहते हैं?"

 

श्रेया चुप हो जाती है, राज के शब्दों ने उसके भीतर फिर वही लड़ाई छेड़ दी थी।

राज:

"सुनो, हम मिलकर कोई रास्ता निकालते हैं। स्कॉलरशिप्स ढूँढ सकते हैं। या फिर मैं तुम्हारी फेलोशिप के लिए कुछ फंडिंग अरेंज करने में मदद कर सकता हूँ। तुम अकेली नहीं हो, श्रेया। मुझे तुम्हारी मदद करने में ख़ुशी होगी।"

श्रेया:

"राज, मैं जानती हूँ कि तुम मेरी मदद करना चाहते हो। लेकिन मैं हमेशा दूसरों पर निर्भर नहीं रह सकती।"

राज:

"ये निर्भरता नहीं है, श्रेया। ये सपोर्ट है। जैसे तुम अपने परिवार के लिए सबकुछ करने को तैयार हो, वैसे ही मैं तुम्हारे लिए ये करना चाहता हूँ। दोस्त सिर्फ़ खुशियों में नहीं, मुश्किलों में भी साथ होते हैं।"

श्रेया:

"पर अगर ये सब भी काम नहीं किया तो? क्या होगा अगर मेरी पढ़ाई पूरी होने से पहले ही मेरे घर की हालत और बिगड़ गई?"

राज:

"तब भी हम लड़ेंगे। हर दिन एक नई चुनौती लेकर आता है और हम हर दिन का सामना करेंगे। लेकिन तुमने अभी तक इतनी मेहनत की है, इतनी कुर्बानियाँ दी हैं। अगर तुम अब अपने सपनों को छोड़ दोगी, तो ये सिर्फ़ तुम्हारा नहीं, तुम्हारे परिवार का भी नुक़सान होगा।"

 

राज के शब्दों ने श्रेया के मन में हलचल मचा दी।

उसका दिल उस बोझ से भरा हुआ था, जो उसे हर दिन जिम्मेदारियों की ओर खींचता था।

लेकिन राज के शब्दों में जो सच्चाई और मजबूती थी, उसने उसे एक पल के लिए अपनी मुश्किलों से परे देखने पर मजबूर कर दिया।

श्रेया:

"राज, तुम सही कह रहे हो। शायद मैं जल्दबाजी में फ़ैसला ले रही हूँ।"

राज:

"तो बस, एक दिन का वादा करो। तुम जल्दबाजी में कोई क़दम नहीं उठाओगी। पहले हम मिलकर हर पॉसिबल रास्ता तलाशेंगे।"

श्रेया:

"ठीक है। मैं वादा करती हूँ।"

 

श्रेया ने गहरी सांस ली। उसे पहली बार ऐसा महसूस हुआ कि उसकी ज़िंदगी के इस संघर्ष में वह अकेली नहीं है।

ज़िंदगी के कुछ फैसले हमारी सोच से बड़े होते हैं।

श्रेया अब अपनी लड़ाई अकेले नहीं लड़ रही थी। राज का साथ, उसकी समझदारी और उसका भरोसा... ये सब श्रेया के लिए एक नई उम्मीद की किरण बन गए थे।

राज के शब्दों में जो सच्चाई और सहारा था, उसने श्रेया के दिल को छू लिया।

राज उसकी हर परेशानी को हल करने के लिए तैयार था।

श्रेया की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उसने ख़ुद को संभाल लिया।

श्रेया:

"राज... मैं नहीं जानती कि मैं तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूँ।"

राज:

"शुक्रिया करने की ज़रूरत नहीं है। बस ये याद रखना कि तुम इस लड़ाई में अकेली नहीं हो।"

 

श्रेया फ़ोन रखते हुए सोच में पड़ गई। राज की बातों ने उसे एक नई दिशा दी थी, लेकिन उसके मन का संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ था।

वहीं मल्होत्रा हाउस का बड़ा ड्रॉइंग रूम में संकेत के डैड सोफे पर अख़बार लेकर बैठे हुए थे, तभी संकेत कमरे में आया... उसका चेहरा गंभीर था।

संकेत के डैड:

"संकेत, आज तो तुमने हद कर दी। क्लाइंट मीटिंग से बीच में ही गायब हो गए। तुम्हारा ये ऐटिटूड  अब बर्दाश्त से बाहर है।"

संकेत:

"पापा, मैंने आपसे पहले भी कहा है, बिज़नेस में मेरी दिलचस्पी नहीं है। मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहता हूँ।"

संकेत के डैड:

"पढ़ाई? और वह भी किसलिए? तुम्हें आखिरकार तो इसी बिज़नेस को संभालना है। तुम्हारी ये लापरवाही पूरे परिवार के लिए प्रॉब्लेम्स खड़ी कर सकती है।"

संकेत:

"पापा, क्या आप कभी मेरी बातें सुनते हैं? मेरे अपने सपने हैं, अपने असपीरटीऑनस  हैं और सबसे बड़ी बात, मेरी ज़िंदगी में श्रेया थी, जिसे मैंने कभी भुलाया नहीं।"

 

कमरे में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। संकेत के डैड अख़बार नीचे रखकर पहली बार पूरी तरह से संकेत की ओर देखने लगे।

संकेत के डैड:

"श्रेया? वह मिडल-क्लास लड़की? तुम्हें अब भी लगता है कि वह तुम्हारी ज़िंदगी में कोई जगह रखती है?"

संकेत:

"हाँ, रखती है। मैं उससे प्यार करता हूँ और वह मेरे लिए हमेशा मायने रखती थी। लेकिन आपने और माँ ने मेरी भावनाओं को कभी समझा ही नहीं। आपके लिए हमेशा बिज़नेस और समाज की इज़्ज़त ही सबकुछ रही।"

संकेत के डैड:

"संकेत, ये तुम्हारी ज़िंदगी का सिर्फ़ एक फैज़  है। प्यार से पेट नहीं भरता। हमारी फैमिली की रेप्यटैशन  और स्टबिलिटी  सबसे ऊपर है।"

संकेत:

"पापा, मैं अब और नहीं झुक सकता। मैंने हमेशा आपकी एक्स्पेक्टैशन  के लिए अपनी ज़िंदगी को किनारे रखा है। लेकिन अब नहीं। मैं अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ूंगा। चाहे इसका अंजाम कुछ भी हो।"

 

संकेत की आवाज़ में वह सच्चाई थी, जो उसके दिल के सबसे गहरे कोने से निकली थी।

आज पहली बार उसने अपने पिता के सामने अपनी भावनाओं और अपने सपनों को खुलकर रखा था।

संकेत के डैड:

"अगर तुम इस परिवार के रास्ते पर नहीं चल सकते, तो शायद तुम्हें अपने फैसले ख़ुद लेने होंगे।"

संकेत:

"शायद यही सही होगा, पापा।"

 

श्रेया और संकेत कि लड़ाई एक होकर भी अलग थी।

श्रेया अपने प्रेजेंट से लड़ रही थी और संकेत अपने फ्यूचर के लिए।

श्रेया उस घर की चारदीवारी में क़ैद थी, जहाँ हर दिन उसकी आज कि जिम्मेदारियाँ उससे उसका एक हिस्सा छीन लेती थीं।

उसकी लड़ाई अब और कल के बीच की थी।

उसकी कोशिश यही थी कि अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करते-करते वह अपने सपनों की वह छोटी-सी लौ बुझने न दे।

पर हर गुज़रते दिन के साथ, उसे लगने लगा था कि शायद उसे अपने सपनों का बलिदान ही अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी निभाने का तरीक़ा होगा।

वहीं दूसरी तरफ, संकेत की लड़ाई उसके भविष्य के लिए थी।

वो उस प्यार और आज़ादी को पाने के लिए संघर्ष कर रहा था, जिसे वह अपने परिवार की परंपराओं और उम्मीदों के बोझ तले दबता देखता आया था।

संकेत को अपने दिल की आवाज़ सुनाई देती थी, लेकिन हर बार उस आवाज़ को उसके पिता की कठोर निगाहें और उसकी माँ की सामाजिक अपेक्षाएँ दबा देती थीं।

उसका भविष्य एक बंद गली-सा महसूस होता था, जहाँ हर क़दम पर उसे किसी और के फैसलों का सामना करना पड़ता।

दोनों की लड़ाई में एक अजीब समानता थी—एक ऐसी खाई, जिसे वह भर नहीं पा रहे थे।

श्रेया की लड़ाई बाहरी थी, परिवार के लिए बलिदान देने की और संकेत की लड़ाई अंदरूनी थी, अपने ही घर में अपने लिए जगह बनाने की।

श्रेया अपने परिवार के बिना अपनी पहचान नहीं देख पाती थी और संकेत अपने परिवार के दबाव में ख़ुद की पहचान खोता जा रहा था।

उन दोनों की राहें अलग थीं, लेकिन दर्द और अकेलापन वही था।

दोनों के दिलों में एक ही सवाल गूंज रहा था—क्या वह कभी अपने सपनों और अपने अपनों के बीच बैलन्स बना पाएंगे?

क्या उनके रास्ते कभी इस लड़ाई से ऊपर उठकर एक-दूसरे से फिर जुड़ पाएंगे?

श्रेया और संकेत के लिए, यही वह पल था।

एक ऐसा मोड़, जहाँ दोनों को अपनी-अपनी लड़ाई लड़ते हुए, ख़ुद को और अपने रिश्ते को फिर से परिभाषित करना था।

क्या उनकी ये लड़ाई उन्हें और दूर ले जाएगी?

या फिर वह इस संघर्ष के बीच एक नई राह ढूँढ पाएंगे?

जानने के लिए पढ़िए ... "कैसा ये इश्क़ है" का अगला एपिसोड।

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