श्रेया और संकेत आज उस मोड़ पर खड़े थे, जहाँ उन्हें सपनों और अपनों के बीच एक मुश्किल चुनाव करना था।

वो दोनों अपने-अपने रास्ते पर चलने को तैयार थे, लेकिन उनके दिल में एक सवाल गूंज रहा था—क्या ये रास्ते उन्हें और दूर ले जाएंगे, या फिर किसी मोड़ पर फिर से मिलाएंगे?

श्रेया के घर के घर के छोटे से हॉल में श्रेया की मॉम बिस्तर पर लेटी थीं। पास में श्रेया बैठी थी और कमरे में हल्की रोशनी थी।

श्रेया की मॉम:

" श्रेया, हर माँ अपने बच्चे के लिए सबसे बड़ा सपना यही देखती है कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो।

हमने अपने हिस्से की लड़ाई लड़ी है, अब बारी तुम्हारी है। पढ़ाई छोड़ने की बात दुबारा मत करना। "

श्रेया:

"माँ, ये इतना आसान नहीं है। अगर मैं बाहर चली गई, तो यहाँ सबकुछ कैसे चलेगा? पापा की दवाइयाँ, घर के खर्चे... और आपका क्या? मैं आप दोनों को ऐसे अकेला छोड़कर कैसे जा सकती हूँ?"

श्रेया की मॉम:

" बेटा, कभी-कभी अपने सपनों के लिए दूर जाना ही सही होता है।

हमने अपनी ज़िंदगी तुम्हारे सपनों के लिए रास्ता बनाने में लगाई है। अब ये मौका मिला है, तो इसे जाने मत देना। तुम्हारे पापा और मैं कोई बोझ नहीं बनना चाहते। "

श्रेया:

"लेकिन माँ, मैं आपकी और पापा की हर ज़रूरत में यहाँ मौजूद रहना चाहती हूँ। जब मैं दूर जाऊंगी, तो कैसे मन को समझाऊंगी कि आप लोग मेरी ज़रूरत में अकेले हैं?"

श्रेया की मॉम:

" हमारी ज़रूरतें अलग हो सकती हैं, लेकिन हमारी ख़ुशी बस एक है—तुम्हारी तरक्की।

हम चाहते हैं कि जब तुम आगे बढ़ो, तो सिर उठाकर अपनी मेहनत और अपनी कामयाबी पर गर्व कर सको। यही तुम्हारी और हमारी सच्ची जीत होगी। "

 

शब्दों में भले ही एक सादगी थी, लेकिन उनकी गहराई ने श्रेया के भीतर कुछ बदल दिया।

माँ की आँखों में जो विश्वास और प्यार था, उसने श्रेया के सारे डर और संकोच को एक पल के लिए पीछे छोड़ दिया।

श्रेया:

"माँ, अगर ये आप दोनों की ख़ुशी है, तो मैं इसे ज़रूर पूरा करूंगी। मैं फेलोशिप के लिए अप्लाई करूंगी और वादा करती हूँ, आपकी उम्मीदों पर कभी पानी नहीं फिरने दूंगी।"

श्रेया की मॉम:

"ये हुई न मेरी श्रेया।"

 

श्रेया के मन में अब भी डर था।

लेकिन उसकी माँ के शब्दों ने उसे यह एहसास दिलाया कि हर लड़ाई में पीछे छोड़ना और आगे बढ़ना, दोनों का अपना महत्त्व है।

अपनों से दूर जाने का दर्द और अपने सपनों के करीब जाने की खुशी—श्रेया अब इन दोनों के बीच संतुलन बनाना सीख रही थी।

दूसरी तरफ़ मल्होत्रा हाउस का बड़ा ड्रॉइंग रूम। संकेत के डैड और संकेत आमने-सामने बैठे थे। संकेत के डैड के चेहरे पर गंभीरता और संकेत की आँखों में दृढ़ निश्चय।

संकेत के डैड:

"तो, तुमने सान्या से शादी करने से मना कर दिया।"

संकेत:

"हाँ, पापा। मैंने ये फ़ैसला सोच-समझकर लिया है। मैं अपनी ज़िंदगी के इतने अहम फैसले किसी और की उम्मीदों के हिसाब से नहीं ले सकता। ये शादी मेरे लिए सही नहीं है।"

संकेत के डैड:

"तुम्हारी उम्र में समझ से ज़्यादा जोश होता है। ये शादी सिर्फ़ तुम्हारी ख़ुशी का सवाल नहीं है। ये हमारे परिवार की साख और बिज़नेस की मजबूती का भी सवाल है।"

संकेत:

"पापा, मैं समझता हूँ कि फैमिली की इज़्ज़त और बिज़नेस आपके लिए कितने ज़रूरी हैं। लेकिन क्या मैं इस परिवार का हिस्सा नहीं हूँ? क्या मेरी खुशियों का, मेरे सपनों का कोई मोल नहीं है?"

संकेत के डैड:

"सपने? सपनों से घर नहीं चलते, संकेत। ये बिज़नेस जो तुम आज इन्जॉय  कर रहे हो, वह हमारे त्याग और फैसलों का नतीजा है। तुम उस लेगसी  को खतरे में डालने की बात कर रहे हो।"

संकेत:

"मैं उस लेगसी  को खतरे में नहीं डाल रहा, पापा। मैं उसे एक नई डिरेक्शिन  देना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि हमारा बिज़नेस वक़्त के साथ बढ़े, बदले और नई ऊंचाइयों तक पहुँचे।"

 

संकेत के चेहरे पर एक अजीब-सी दृढ़ता थी।

यह वही लड़का था, जिसने हमेशा अपने पिता की इच्छाओं के सामने झुकना सीखा था।

लेकिन आज, वह पहली बार अपनी पहचान को बचाने के लिए खड़ा हो रहा था।

संकेत:

"पापा, मैंने एक नई वेंचर का प्लान बनाया है। ये हमारे फैमिली बिज़नेस को एक नई दिशा दे सकता है। मैं इसे पूरी तरह रिसर्च कर चुका हूँ। मैं सिर्फ़ आपकी पर्मिशन  और सपोर्ट  चाहता हूँ।"

संकेत के डैड:

"नई प्लैनिंग ? और अगर तुम असफल  हुए तो? क्या तुम जानते हो कि इससे कितनी जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर आएगी?"

संकेत:

"जी हाँ, पापा। मैं जानता हूँ। लेकिन क्या हमने कभी ये सोचा है कि अगर हमने कुछ नया करने की हिम्मत नहीं की, तो हम हमेशा वहीं रहेंगे, जहाँ आज हैं? मैं फैल्यर  से डरता नहीं हूँ। मैं सिर्फ़ ये चाहता हूँ कि मुझे मौका मिले अपने बिज़नेस को एक नई पहचान देने का।"

 

संकेत की आवाज़ में वह आत्मविश्वास था, जो केवल अपने संघर्षों से गुजरने के बाद आता है।

उसकी आँखों में एक अटूट विश्वास था—अपने आप पर और अपने फैसलों पर।

संकेत के डैड:

"तुम्हारे लिए ये सब इतना आसान लगता है, क्योंकि तुमने अभी तक हार का असली बोझ नहीं उठाया है। लेकिन ठीक है... ठीक है, संकेत। मैं तुम्हें ये मौका दूँगा। लेकिन याद रखना, अगर तुम असफल हुए, तो तुम्हें परिवार की इस विरासत के साथ वापस लौटना होगा। ये तुम्हारी ज़िम्मेदारी होगी।"

संकेत:

"मुझे आपकी बस यही पर्मिशन  चाहिए थी, पापा। मैं इस भरोसे को टूटने नहीं दूँगा।"

 

संकेत ने वह कह दिया, जो कई सालों से उसके दिल में था।

उसने पहली बार अपने पिता के सामने अपनी बात रखी थी—बिना डरे, बिना झुके।

संकेत के डैड:

"ठीक है। लेकिन याद रखना, इस गलती से इतना बाद नुक़सान नहीं होना चाहिए... कि उसकी भरपाई मैं भी न कर पाऊँ। हर क़दम सोच-समझकर उठाना।"

संकेत:

"मैंने ये लड़ाई अपने सपनों के लिए चुनी है, पापा और इसे जीतने की पूरी कोशिश करूंगा।"

 

मल्होत्रा हाउस की दीवारों के बीच ये बातचीत केवल एक तकरार नहीं थी।

यह एक बदलाव का पहला क़दम था।

संकेत ने आज अपनी राह ख़ुद चुनी थी।

लेकिन इस राह पर चलने का मतलब था पुरानी जंजीरों को तोड़ना और अपनी पहचान को नए सिरे से बनाना।

उसकी लड़ाई सिर्फ़ अपने सपनों के लिए नहीं थी, बल्कि अपने अस्तित्व के लिए भी थी।

उधर श्रेया के दिल में उत्साह और डर का अजीब-सा मिश्रण था।

फेलोशिप का ये मौका उसके सपनों की ओर पहला क़दम था।

लेकिन ये भी सच था कि ये क़दम उसे संकेत और राज दोनों से दूर ले जा सकता था।

श्रेया:

"क्या मैं सच में इस राह पर चलने के लिए तैयार हूँ?"

 

श्रेया को एहसास हुआ कि हर बड़े फैसले के साथ कुछ खोने का डर जुड़ा होता है।

राज उसकी ज़िंदगी में एक मज़बूत सहारा बन चुका था और संकेत की यादें अब भी उसके दिल में बसी थीं।

दूसरी तरफ, संकेत अपने कमरे में बैठा था। उसके हाथ में श्रेया के साथ एक पुरानी तस्वीर थी और आँखों में गहरी बेचैनी।

संकेत:

"श्रेया... अगर ये हमारी आखिरी याद है, तो मैं इसे हमेशा अपने साथ रखूँगा।"

 

कहते हैं, हर प्यार एक मंज़िल की तलाश में होता है।

लेकिन कभी-कभी, दो दिलों के बीच का रास्ता इतनी उलझनों और मजबूरियों से भरा होता है कि वह मंज़िल दूर होते-होते धुंधला जाती है।

और तब, प्यार एक अहसास बनकर रह जाता है—हवा में तैरता हुआ, बिना किसी ठिकाने के।

 

श्रेया और संकेत... दो ऐसे प्रेमी, जिनके दिल अब भी एक-दूसरे के लिए धड़कते हैं।

उनके बीच का वह रिश्ता अब भी हर याद, हर धड़कन में गूँजता है।

लेकिन प्यार कभी-कभी राहों को नहीं जोड़ता, बल्कि उन्हें और जटिल बना देता है।

 

उनके दिलों में जो चाहत थी, वह कभी कमज़ोर नहीं पड़ी।

पर ज़िंदगी की सच्चाइयाँ अक्सर दिल के अरमानों से कहीं ज़्यादा भारी होती हैं।

श्रेया ने अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों को चुना, अपने सपनों को पकड़े हुए भी।

उसका प्यार संकेत के लिए कभी कम नहीं हुआ, लेकिन उसे पता था कि उसके हर क़दम का असर उन लोगों पर पड़ेगा, जिन पर उसकी दुनिया टिकी थी।

और संकेत... उसने अपने दिल की सच्चाई को कभी नहीं छोड़ा।

उसने हमेशा श्रेया के बिना अपनी ज़िंदगी को अधूरा ही महसूस किया।

लेकिन आज, वह अपने सपनों के लिए खड़ा हुआ है, अपने तरीके से अपनी पहचान बनाने के लिए।

उसके दिल में श्रेया के लिए अब भी वही गहरा प्यार है, लेकिन उसने जान लिया है कि प्यार हमेशा साथ चलने का नाम नहीं होता।

 

प्यार, जो कभी उनका सबसे बड़ा सहारा था, आज उनके अलग-अलग रास्तों की वज़ह बन गया है।

एक-दूसरे के लिए उनके दिलों में जो जगह थी, वह कभी कोई और नहीं ले सकता।

पर उनके क़दम अब दो अलग दिशाओं में बढ़ रहे हैं।

श्रेया ने अपने भविष्य की तलाश में अपने भीतर की ताकत को पाया।

और संकेत ने अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए ख़ुद को नए सिरे से जाना।

उनके रास्ते भले ही अलग हो गए हों, लेकिन उनके दिलों में वह प्यार अब भी वैसा ही है—सच्चा, गहरा और अटल।

 

कभी-कभी प्यार दो दिलों को जोड़ता है, तो कभी दो राहों को।

और कभी... प्यार का मतलब ये होता है कि आप उस इंसान को जाने दें, ताकि वह अपने सपनों को पूरा कर सके।

शायद यही उनकी क़िस्मत थी—एक-दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करने के बावजूद, अपनी राहें ख़ुद चुनना।

दो प्रेमी, जो अब भी एक-दूसरे के लिए सब कुछ हैं,

लेकिन उनकी जिंदगियाँ अब उन रास्तों पर बढ़ रही हैं, जहाँ प्यार का नाम तो है,

पर साथ चलने का मौका शायद नहीं।

क्या ये रास्ते उन्हें किसी नई मंज़िल पर फिर से मिलाएंगे?

या उनका प्यार अब सिर्फ़ यादों और दिल के किसी कोने में दबी ख़्वाहिश बनकर रह जाएगा?

ज़िंदगी के इन सवालों के जवाब वक़्त के हाथों में हैं।

 

क्योंकि कभी-कभी, प्यार का सबसे बड़ा इम्तिहान यही होता है—

दो दिलों का अलग-अलग रास्तों पर चलकर भी, एक-दूसरे की धड़कनों में हमेशा के लिए ज़िंदा रहना।

आगे की कहानी के लिए पढ़ते  रहिए, "कैसा ये इश्क़ है..."

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