कभी-कभी ज़िंदगी हमें उन रास्तों पर वापस ले आती है, जहाँ हमारे दिल की सबसे गहरी भावनाएँ गूंजती हैं।

संकेत और श्रेया की जिंदगियों में वह गूंज अब भी बाक़ी थी।

वो प्यार, वह रिश्ते, वह अनकही बातें—सब कुछ अब उनके अतीत का हिस्सा बन चुका था।

हर बीतता पल उनके प्रेजेंट में उन यादों की परछाई छोड़ जाता था।

आज का सीन कुछ ऐसा है कि श्रेया और राज गाँव की ट्रिप से लौटकर भी अपने अंदर से उस गाँव को निकाल नहीं पा रहे थे। वह अब भी क्लास के कॉर्नर में गाँव में बनने वाली उस कम्यूनिटी लाइब्रेरी के बारे में ही डिस्कस कर रहे थे।

राज:

"देखो, श्रेया। ये है लाइब्रेरी का प्लान। मेरा मन कहता है कि इस कोने को बच्चों के पढ़ने के लिए डेडिकेट करें। यहाँ हम कुछ बड़े-बड़े कुशन डाल सकते हैं, ताकि वह आराम से बैठकर पढ़ सकें।"

श्रेया:

"अच्छा आइडिया है और इस सेक्शन में, हम एक स्टोरीटाइम कॉर्नर बना सकते हैं। कुछ किताबें ऐसे रखेंगे जो बच्चों को तुरंत आकर्षित करें।"

राज:

"हाँ, बिल्कुल! और अगर हम इस दीवार पर ब्राइट कोलोरस में पोस्टर्स  लगाएँ। 

श्रेया:

"सिर्फ पोस्टर्स ही क्यों? हम यहाँ बच्चों की ड्रॉइंग  भी लगा सकते हैं। इससे उन्हें अपनी क्रीऐटिवटी  दिखाने का मौका मिलेगा। वह इस जगह को सिर्फ़ लाइब्रेरी नहीं, बल्कि अपनी जगह समझेंगे।"

राज:

"वाह, ये तो कमाल का आइडिया है! और सोचो, जब बच्चे अपनी ड्रॉइंग  यहाँ देखेंगे, तो उनके चेहरे पर कैसी ख़ुशी होगी। उन्हें लगेगा कि उनकी आवाज़ सुनी जा रही है।"

श्रेया:

"बिल्कुल। जब बच्चों को उनके सपनों और आवाज़ों को सुनने का मौका मिलता है, तो वह और ज़्यादा कॉन्फिडेंट  हो जाते हैं। यही तो हमारा मकसद है, है न?"

राज:

"तुम्हें पता है, श्रेया, जब मैं बच्चा था, तो मेरे पास ऐसी कोई जगह नहीं थी। मेरे स्कूल में लाइब्रेरी तो थी, । वहाँ जाने का मन नहीं करता था। 

श्रेया:

"तुम्हारा बचपन भी आसान नहीं रहा, है न?"

राज:

"नहीं, उतना आसान तो नहीं। । वह सबकुछ मुझे आज यहाँ तक ले आया। शायद इसलिए मैं चाहता हूँ कि इन बच्चों के लिए वह सबकुछ करूँ, जो मुझे कभी नहीं मिला।"

श्रेया:

 तुमने वह कठिनाई ख़ुद महसूस की है।"

राज:

"शायद। । अब जब मेरे पास मौका है, तो मैं इसे वैस्ट  नहीं करना चाहता और तुम भी तो उतना ही कन्ट्रिब्यूट  कर रही हो, श्रेया। 

श्रेया:

"हम दोनों इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं, राज और सच कहूँ, इस काम से मुझे भी उतना ही सुकून मिलता है। इन बच्चों के चेहरे की मुस्कान... ये प्राइस्लिस  है।"

राज:

"तुम सही कह रही हो और जानते हो, जब ये लाइब्रेरी पूरी तरह से तैयार हो जाएगी, तो हम बच्चों को यहाँ का पहला दिन कभी भूलने नहीं देंगे। उनकी ज़िंदगी का सबसे यादगार दिन बनाएंगे।"

श्रेया:

"हाँ, बिल्कुल। वह दिन सिर्फ़ उनका नहीं, हमारा भी सेलब्रैशन  होगा। एक नई शुरुआत, उनके सपनों की।"

 

काम के दौरान, उनकी बातचीत केवल लोजिस्टिक्स  तक सीमित नहीं थी।

हर गुजरते दिन के साथ, उनके बीच की दीवारें धीरे-धीरे गिरने लगीं।

राज:

"तुम्हें पता है, श्रेया, जब मैं छोटा था, तो मेरा भी सपना था कि एक दिन मैं पेंटिंग में अपना करियर बनाऊँ।"

श्रेया:

"अरे वाह! तुम वैसे भी अच्छे पेंटर हो!"

राज:

" हाँ, पर वह सपना कब का पीछे छूट गया।

मेरे घर की हालत ऐसी थी कि हमें रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए भी स्ट्रगल करना पड़ता था।

पापा को लगता था कि आर्टिस्ट बनना मतलब भूखा मरना।

तो मैंने पेंटिंग छोड़ दी और प्रैक्टिकल बन गया। "

राज के शब्दों में उसकी छुपी हुई तकलीफ झलक रही थी।

वो इंसान जो दूसरों के लिए हमेशा खुशमिजाज और सहारा देने वाला लगता था, उसकी अपनी कहानी भी किसी जंग से कम नहीं थी।

श्रेया:

"तुमने अपनी ख़ुशी त्याग दी, अपने परिवार के लिए।"

 

राज:

"कभी-कभी अपने सपनों से समझौता करना पड़ता है, ताकि जिनसे हम प्यार करते हैं, उनकी ज़िंदगी आसान हो सके।"

 

श्रेया ने राज के शब्दों को अपने भीतर महसूस किया।

वो ख़ुद भी तो इसी संघर्ष से गुजर रही थी।

हर दिन अपने सपनों को अपने परिवार की ज़रूरतों के पीछे छोड़ती जा रही थी।

श्रेया:

" राज, कभी-कभी लगता है कि मैं भी वही कर रही हूँ।

परिवार के लिए जीना और अपने सपनों को किनारे रखना।

। कभी-कभी... ये बोझ बहुत भारी लगने लगता है। "

राज:

" श्रेया, तुम अकेली नहीं हो।

हम दोनों ने अपने हिस्से की कुर्बानियाँ दी हैं।

याद रखना, जो प्यार और सम्मान हमें अपने परिवार से मिलता है, वह भी एक तरह की जीत है। "

 

उनके बीच एक अनकही समझदारी पनप रही थी।

राज, श्रेया के दिल के उस हिस्से तक पहुँच गया था, जहाँ अब तक सिर्फ़ दर्द और संघर्ष ने अपनी जगह बना रखी थी।

वहीं मल्होत्रा हाउस में संकेत अपनी तनहाई से बातें कर रहा था।

संकेत के लिए, अब हर चीज़ एक खालीपन बन गई थी।

वो हंसी, वह पल, वह बातें—सब अब सिर्फ़ यादों में बची थीं।

संकेत और श्रेया के बीच भी एक ऐसा ही लम्हा था—एक याद जो आज भी संकेत के दिल में ताज़ा थी।

 

वो दिन भी ऐसा ही था। बारिश हो रही थी और पूरा कैंपस भीगे हुए मौसम की ताज़गी से महक रहा था।

संकेत और श्रेया, दोनों क्लास ख़त्म होने के बाद कैंपस के पुराने गार्डन में चले गए थे। वह गार्डन, जहाँ अक्सर गुलमोहर के पेड़ की छांव तले दोनों अपने दिल की बातें किया करते थे।

श्रेया:

"संकेत, तुमने कभी बारिश में भीगने की कोशिश की है?"

संकेत:

"क्या? भीगने की कोशिश? मतलब, बारिश में खड़े होना और ठंड से काँपना तुम्हारे लिए कोई एडवेंचर  है?"

श्रेया:

"अरे, तुम समझ नहीं रहे। बारिश में भीगने का मतलब है... उन पलों को जीना। एकदम बिंदास होकर। जैसे कोई बच्चा, जो सिर्फ़ आज के बारे में सोचता है।"

संकेत:

"तो ठीक है, मिस श्रेया। आज तुम्हारी ये ख़्वाहिश पूरी कर देते हैं।"

 

संकेत ने अपनी किताबें और बैग पास की बेंच पर रखा और श्रेया की तरफ़ हाथ बढ़ाया। श्रेया ने एक पल के लिए उसकी ओर देखा और फिर मुस्कुराते हुए उसका हाथ पकड़ लिया।

दोनों गार्डन की पगडंडी पर धीरे-धीरे चलते हुए बारिश की बूंदों को अपने चेहरे पर महसूस कर रहे थे।

श्रेया ने अपनी बाहें फैला लीं और बारिश की बूंदों को जैसे अपने अंदर समेटने लगी।

श्रेया:

"देखो, संकेत! ये बारिश कितनी सुकून देने वाली है। जैसे हर बूंद हमारी सारी चिंताओं को धोकर ले जा रही हो।"

संकेत:

"श्रेया, तुम्हें देखकर लग रहा है जैसे ये बारिश सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही आई हो।"

 

संकेत उस पल में पूरी तरह खो गया था।

श्रेया का चेहरा बारिश की बूंदों से चमक रहा था, उसकी हंसी जैसे चारों तरफ़ संगीत की तरह गूंज रही थी।

वो पल, वह मासूमियत, वह खुशी—संकेत ने उसे हमेशा के लिए अपने दिल में क़ैद कर लिया था।

फिर श्रेया ने अचानक से कुछ सोचा और भागकर उस गुलमोहर के पेड़ के नीचे खड़ी हो गई।

श्रेया:

"तो इस बारिश में दौड़ के दिखाओ।"

संकेत:

“तो तुम्हारी शर्त ये है? ठीक है, देखो फिर।”

संकेत ने बिना कुछ सोचे-समझे गार्डन के चारों ओर दौड़ना शुरू कर दिया।

श्रेया ने अपनी हंसी रोकने की पूरी कोशिश की, । नाकाम रही। वह ख़ुद भी उसके पीछे भागने लगी।

दोनों ने उस बारिश में बच्चो जैसी मस्ती की।

कभी पत्तों के नीचे छिपते, कभी पानी के छोटे से पोखर में कूदते।

श्रेया ने बारिश की एक बूंद पकड़ने की कोशिश करते हुए कहा—

श्रेया:

"संकेत, देखो! मैंने एक बूंद पकड़ी!"

संकेत:

"अरे, वह तुम्हारे हाथ से फिसल गई। तुमसे ये भी नहीं संभलता।"

श्रेया:

"तुम्हें तो सब पता है न? फिर पकड़ के दिखाओ!"

 

उनकी इस बारिश भरी मस्ती ने पूरे दिन को खुशनुमा बना दिया था।

वो छोटी-छोटी हंसी, वह मासूम पल... शायद यही वह यादें थीं जो ज़िंदगी की बड़ी-बड़ी परेशानियों के बीच भी राहत देती थीं।

बारिश धीरे-धीरे थम गई थी।

दोनों पेड़ के नीचे खड़े थे, बाल भीगे हुए और कपड़े पानी से लथपथ।

उनके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान थी।

संकेत:

"श्रेया, आज का ये पल मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा।"

श्रेया:

"कुछ पलों को यादों में संभालकर रखना चाहिए, संकेत। क्योंकि जब ज़िन्दगी थकाने लगे, तो वही पल हमें फिर से जीने का हौसला देते हैं।"

 

श्रेया ने उस दिन सच कहा था।

वो पल, वह हंसी, वह बातें—अब बस यादों में ही रह गए थे।

उन यादों की गर्माहट अब भी संकेत को ठंडी हवाओं के बीच सुकून देती थी।

संकेत ने जब भीगते हुए श्रेया की वह मुस्कान याद की, उसे लगा कि शायद वह पल कभी ख़त्म नहीं हुए।

वो अब भी उसकी धड़कनों में धड़क रहे थे और उन यादों के सहारे ही वह अपनी ज़िन्दगी की उलझनों से लड़ रहा था।

श्रेया का उसके जीवन से दूर हो जाना उसके लिए सिर्फ़ एक रिश्ते का टूटना नहीं था, बल्कि उसकी ज़िंदगी की दिशा खोने जैसा था।

संकेत:

" क्यों हर बार जब मैं अपनी ज़िंदगी को संभालने की कोशिश करता हूँ, तो तुम्हारी यादें मुझे खींच लाती हैं?

श्रेया, तुम्हें भुलाना इतना मुश्किल क्यों है? "

 

संकेत के भीतर एक तूफान चल रहा था।

वो अपने परिवार की उम्मीदों और अपने दिल की आवाज़ के बीच फंसा हुआ था।

और सबसे ज़्यादा उसे खा रहा था, वह खालीपन जो श्रेया के जाने से उसकी ज़िंदगी में आ गया था।

संकेत की मॉम:

"संकेत! तुमने आज फिर बिज़नेस मीटिंग मिस कर दी। ये सब कब तक चलेगा?"

संकेत:

"माँ, मेरे लिए मेरा कॉलेज ही काफ़ी है... मुझे इन मीटिंग्स का हिस्सा बनने का मन नहीं है।"

संकेत की मॉम:

" तुम्हारा ये 'मन नहीं है' का ऐटिटूड  अब चलने वाला नहीं है।

हम तुम्हारे लिए सान्या जैसी लड़की देख रहे हैं और तुम हर चीज़ से भागते जा रहे हो। "

संकेत:

" माँ, क्या आप कभी समझेंगी कि मेरी ज़िंदगी मेरे फैसलों से चलनी चाहिए?

श्रेया से प्यार करता हूँ मैं और उसकी कमी मुझे हर दिन मार रही है। "

कमरे में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया।

संकट की आवाज़ में जो सच्चाई थी, वह संकेत की मॉम को भी हिला गई।

संकेत की मॉम:

" संकेत, प्यार हमेशा ज़िंदगी नहीं होता।

कभी-कभी, परिवार की भलाई के लिए हमें अपने दिल को चुप कराना पड़ता है। "

 

संकट के चेहरे पर एक हार की झलक थी।

वो जानता था कि उसकी माँ की बातें उसके दर्द को नहीं समझेंगी। उसने अब तक जो महसूस किया था, वह उसे उसकी जगह से हिला चुका था।

ज़िंदगी की राहें कई बार हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती हैं, जहाँ से हम अतीत की गूंज सुन सकते हैं, । लौट नहीं सकते।

संकेत और श्रेया के लिए, ये गूंज उनके प्यार की थी—एक ऐसा प्यार, जिसने उन्हें कभी जोड़ा था, । अब उन्हें अलग-अलग रास्तों पर ले जा रहा था।

क्या वह इन यादों से उबर पाएंगे?

क्या उनके लिए कोई नई शुरुआत होगी?

 

जानने के लिए पढ़िए .. "कैसा ये इश्क़ है" का अगला एपिसोड।

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