राजगढ़ का भव्य राजघराना महल इस समय कई रंगों में रंगा हुआ था, जहां कुछ लोग खुश थे, तो कुछ अपने अतीत के राज खुल जाने के खौफ में जी रहे थे। शाम के समय महल के भीतर का माहौल कुछ अजीब-सा था। दीवारें अपने काले घिनौने अतीत को चुपचाप छुपाए बैठी थीं, लेकिन आज इन दीवारों में जो खलबली मची थी, वो कोई छुपा नहीं सकता था, खुद गजराज सिंह भी नहीं।
जेल से रिहाई के बाद गजेन्द्र काफी शांत हो गया था। मानो जैसे जेल के पिछले दो सालों की जिंदगी ने उसे सारे सबक सिखा दिए हो। गजेन्द्र महल के पुराने ड्राइंग रूम में बैठा एक टक बस आसमान को निहार रहा था, लेकिन उसका चेहरा आमतौर पर जितना शांत रहता था, आज उससे बिल्कुल अलग बेचैन सा था। उसकी आंखें बार-बार फोन की स्क्रीन की तरफ जा रही थीं, जिसमें कल मीडिया पर वायरल हुई एक रहस्यमय वीडियो क्लिप चल रही थी।
तभी उसके कमरे में उसके पिता मुक्तेश्वर सिंह धीमें-धीमें कदमों के साथ दस्तक देते है। मुक्तेश्वर के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थी। अपने पिता को सामने देखते ही गजेन्द्र खुद को सवाल करने से नहीं रोक पाया।
“पापा, ये वीडियो जो कल पूरे मीडिया में चला... क्या सच में हमने अपनी विरासत यानि राजघराना की नींव अपराध के ईंटों को जोड़-जोड़कर रखी हैं? क्या ये वही विरासत है जिसे दादा गजराज सिंह ने अपनी जान से ज्यादा प्यार किया है? और क्या इसी काले कारनामों से भरी विरासत को बचाने के लिए दादा जी ने मेरी बलि चढ़ा दी थी, और चाचा राज राजेश्वर ने मुझे रेस फिक्सिंग के केस में फंसा मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी थी?”
गजेन्द्र के एक साथ इतने सारे सवाल सुन मुक्तेश्वर ने नजरें झुका लीं, उसका मन इस वक्त भारी था। उन्होंने गहरी सांस ली और जवाब फिर गजेन्द्र को जवाब देते हुए कहा— “बेटा, मैं जानता हूँ ये सब जानना मुश्किल है... लेकिन वो वीडियो तो सिर्फ शुरुआत है। ये सच सामने आ चुका है कि वो बैठक... वह सिंडिकेट मीटिंग, जो पंद्रह साल पहले हुई थी, सिर्फ एक राजनीतिक छलावा नहीं थी। उसमे हमारे ही परिवार के कुछ सदस्य भी शामिल थे।”
इतना कहते-कहते मुक्तेश्वर सिंह ने चेहरे पर हाथ रख लिया, जैसे किसी भारी बोझ को सहने की कोशिश कर रहे हो। तभी गजेन्द्र ने फिर चौक कर पूछा— “और क्या सच है, पापा? क्या आपको मालूम है कि आपके भाई यानि मेरे चाचा राजेश्वर उस कांड में कैसे शामिल थे? उन्होंने अपने पिता और जीजा के साथ मिलकर पहले अपने भाई पर रेस फिक्सिंग का आरोप लगाया और फिर वहीं घिनौनी चाल उन्होंने मेरे साथ चली… ताकि मैं कभी इस विरासत का भागीदार ना बन सकूं।”
ये सुनते ही मुक्तेश्वर को एक बार फिर गजेन्द्र को सियासी जिंदगी के घिनौने खेल में देख शर्म महसूस हुई और वो गजेन्द्र के सर पर हाथ रखते हुए बोला— “हाँ बेटा, मैं सब जानता हूँ। पर सच बताऊं तो ये राज़ बहुत गहरा है। राज राजेश्वर ने अपने भीतर जलती ईर्ष्या को दबाने के लिए झूठ के जाल बुने। उसने पूरे परिवार को तबाह कर दिया, लेकिन वो हमेशा से ऐसा नहीं था। वो ऐसा उस दिन बना जब पिताजी ने उसे और भीखूं को एक साथ एक रात एक कमरे में रंगे हाथों पकड़ा। उस रात वो राज राजेश्वर की असली पहचान को स्वीकार नहीं कर पाये और इसके बाद उन्होंने पहले उसकी मर्जी के खिलाफ एक लड़की से जबरदस्ती उसकी शादी करा दी और फिर उसे हम लोगों की तरह आम जिंदगी जीने पर मजबूर किया.. जिसकी चुभन में वो ऐसा शख्स बनता गया।”
“क्या...मतलब चाचा राज राजेश्वर को इसलिए शादी के तुरंत बाद चाची ने छोड़ दिया था। चाची उनकी सच्चाई जान गई थी?”
जहां एक तरफ मुक्तेश्वर के लिए अपने बेटे के ऐसे सवालों का जवाब देना मुश्किल हो रहा था, तो वहीं दूसरी ओर मुक्तेश्वर की बहन प्रभा ताई खिड़की के पास खड़ी अपने ही ख्यालों में गुम थी। उसकी आंखों में आंसू और मन में भारीपन साफ झलक रहा था। प्रभा ताई को अपने एकलौते भतीजे के बेगुनाह साबित होने और जेल से रिहा होने की खुशी थी, लेकिन साथ ही राघव भोंसले के जेल जाने का गम भी था। भलें ही वो गुनाहगार था।
तभी गजेन्द्र की गर्लफ्रैंड रिया प्रभा ताई के कमरे में आई, उनकी आंखों में नजर आ रही चिंता को कम करने और उन्हें सहारा देने की कोशिश करते हुए वो कहती है— “ताई, सब लोग आपके साथ हैं। राघव भोंसले अपने गुनाहों की ही सजा काट रहा है। मैं आपको भरोसा दिलाती हूं जिस दिन उनकी सजा पूरी होगी, हम उन्हें माफ भी करेंगे और राजघराना महल में वापस भी लायेंगे… और वो भी सिर्फ और सिर्फ आपके लिए।”
रिया की बात सुन प्रभा ताई ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा— “रिया, जब इंसान की जिंदगी जेल की चारदीवारी में कैद हो जाती है, तो सिर्फ शरीर नहीं, बल्कि आत्मा भी बंदी हो जाती है। राघव के लिए ये मेरे पिता का सच और अपने सारे गलत काम सहीं थे। भले ही अब राघव जेल से अपनी सजा काटकर लौट भी आये...पर क्या ये परिवार फिर कभी एक साथ खड़ा हो पाएगा?”
रिया एक पल के लिए तो प्रभा ताई के सवाल सुन शांत पड़ जाती है, लेकिन तभी खुद को संभालते हुए कहती है— “ताई, हम सब मिलकर इस अंधकार को दूर करेंगे। ये वक्त नहीं है हार मानने का।”
प्रभा ताई ने आंसू पोंछते हुए कहा— “पर ये विरासत... ये विरासत हम सबकी ज़िंदगी से जुड़ी हुई है। इसे बचाना अब हमारी जिम्मेदारी है।”
प्रभा ताई रिया से ये वादा लेती है और उसके बाद उसे विरासत के कागज पूरे महल में ढूंढने के लिए कहती है, जिसके बाद गजेन्द्र और रिया महल के हर तहखाने की तलाशी खामोशी से पुराने कागज़ात देखते हैं।
तभी गजेन्द्र ने एक पुरानी डायरी खोली, जिसके पन्नों पर वक्त की धूल जमी थी। उसे खोलते ही वो उसे पढ़ने लगा…
"ये 20 साल पुरानी डायरी है। इसमें लिखा है कि राजेश्वर ने अपने पिता और जीजा के साथ मिलकर बड़े भाई पर रेस फिक्सिंग का आरोप लगाया था। ये आरोप पूरी तरह से झूठा था, पर जिसने भी सुना, उसने उस झूठ को सच मान लिया।"
ये सुन रिया ने कोई रियेक्शन नहीं दिया, क्योंकि वो इस डायरी को पहले ही पढ़ चुकी थी। ऐसे में उसने सिर्फ एक लाइन बोली…
“जानती हूं गजेन्द्र, ये सच है कि तुम्हारे परिवार में एक बड़ा षड़यंत्र रचा गया था, जिसने इस पूरे परिवार को कई टुकड़ों में तो़ड़ दिया। लेकिन क्या तुम ये जानते हो कि इस राजघराने के सारे काले कांडो की शुरुआत तुम्हारे दादा गजराज सिंह ने ही की है, फिर चाहें वो औरतों पर अत्याचार हो, या फिर अपनी नजायज औलादों का अनाथ आश्रम में फेंक देना या फिर अपने ही बेटे को रेस फिक्सिंग के केस में फंसाना।”
रिया की ये सारी बाते गजेन्द्र के दिल और दिमाग पर किसी तलवार की तरह घाव कर गई। ऐसे में वो रिया से नजरें छिपाने लगा, “हा रिया मैं ये सब जानता हूं, लेकिन फिलहाल हमें सब ठीक करने के लिए राजेश्वर चाचा से इस बारे में बात करनी होगी।”
रिया से बात करने के बाद गजेन्द्र अपने चाचा राज राजेश्वर से मिलने पहुंचा, जो पिछले दस दिनों से पुलिस से भाग रहे थे। दरअसल गजेन्द्र केस में राघव भोंसले के बयान के बाद उनकी गिरफ्तारी पर कोर्ट ने फरमान जारी कर उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन फिलहाल वो पुलिस को चकमा दे महल के बगीचें में ठंडी हवा का मजा ले रहे थे। इस समय उनका चेहरा सोच में डूबा और आंखें उदास थी।
दूर से उन्हें देखने के बाद गजेन्द्र ने रिया का हाथ थामा और बगीचे में राज राजेश्वर से बात करने पहुंच गए।
“चाचा, अब वक्त आ गया है कि आप वो सच बताएं, जो बीस साल पहले छुपा दिया गया था। आपने क्या किया था? क्या सच में आपने अपने परिवार को तोड़ने का फैसला लिया था? और साथ ही आप इस पूरी दुनिया को अपनी पहचान और अपनी जिंदगी जीने का ढंग भी बताइये… आखिर कब तक इस तरह जो नहीं है, वो बनकर जीते रहेंगे। और कब तक अपने प्यार भीखूं को सबके सामने अपना नौकर बना कर रखेंगे।”
अपना सच गजेन्द्र के मुंह से सुन राज राजेश्वर चौक जाता है, लेकिन फिर खुद को संभाल धीरे से कहता है— “मैंने गलत किया था। मेरी ईर्ष्या ने मुझे अंधा कर दिया था। मैंने अपने बड़े भाई को गिराने के लिए अपने पिता और जीजा को भी साथ लिया। मैंने झूठ बोला और पूरे परिवार को तोड़ा, लेकिन सच कहता हूं गजेन्द्र... मुझे ये सब करने के लिए हमारे पिता गजराज सिंह ने ही मजबूर किया। वो हर दिन मेरी पहचान मुझे बताकर जलील करते, नामर्द कहते थे।”
राज राजेश्वर की बाते सुन रिया ने तुंरत पलटकर कहा— "तो क्या आप अब इस सच के साथ जीना चाहते हैं? क्या आप अपनी गलती मानते हैं?"
राजेश्वर ने सिर झुकाकर कहा— “हाँ। और मैं चाहता हूँ कि हम सब मिलकर इस परिवार को फिर से जोड़ें… लेकिन मैं जेल नहीं जाना चाहता बेटा।”
राज राजेश्वर अभी गजेन्द्र और रिया के सामने अपने गुनाह कुबूल कर ही रहा होता है कि तभी मुक्तेश्वर के चिल्लाने की आवाज आती है। राजघराना के सभी लोग एक-एक कर हॉल में इकट्ठा हो जाते है। सबके आते ही मुक्तेश्वर अपनी गंभीरता और उम्मीदों भरी आवाज में ऐलान करता है।
“आज हम सबके सामने एक बड़ा सवाल है। क्या हम अपनी विरासत को अपराध और झूठ की छाया में छोड़ देंगे, या फिर उसे सच और सम्मान के साथ आगे बढ़ाएंगे?”
अपने पिता की ये बात सुन गजेन्द्र तुरंत जवाब देता है…."पापा, हम सबको अपने परिवार और इस राजघराना की सच्चाई स्वीकारना होगी। हमें झूठ और गलतफहमी से ऊपर उठकर इस विरासत को बचाना होगा।"
तभी प्रभा ताई भी खुद को बोलने से रोक नहीं पाई— “परिवार की इज्जत के लिए हमें एकजुट होना होगा भैया मुक्तेश्वर। ये विरासत सिर्फ नाम नहीं, हमारा मान-सम्मान है।”
ये सुन रिया भी अपने होने वाले ससुराल के मुद्दे में बोल पड़ी— "अब समय है एक नई शुरुआत करने का। हमें मिलकर पुरानी गलतफहमियों को दूर करना होगा।"
उस रात सभा में मौजूद सभी लोग ये तय करते है कि कल से राजघराना में एक नई सुबह और एक नया संकल्प का जन्म होगा। राजघराना महल की छत पर सूरज की पहली किरणें फैल रही थी। परिवार के सदस्य एक-दूसरे को देखते हैं, आशा और विश्वास से भरी आवाज में राजघराना के नए उदय का आगाज करते है।
“जो बीत गया उसे भूल जाओ। आज हम एक नए अध्याय की शुरुआत कर रहे हैं। अब हमारी विरासत का सिर्फ नाम नहीं, बल्कि सच्चाई और न्याय की पहचान होगी। जल्द ही हम इसका नया उत्तराधिकारी भी घोषित करेंगे।”
गजेन्द्र ये सुनते ही पलटकर कहता है— "मैं वादा करता हूँ कि इस परिवार की इज्जत को मैं अपनी जान से ज्यादा प्यार करूंगा। कोई भी झूठ या षड्यंत्र हमें कभी नहीं तोड़ पाएगा। और वैसे भी अब तो मेरी होने वाली जीवन संगीनी भी मेरे साथ है, तो कोई मुझे हरा नहीं सकता।"
ये सुन प्रभा ताई तुंरत कहती है, “सहीं कहा मेरे बच्चें गजेन्द्र, हम सबको मिलकर इस विरासत को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है।”
एक तरफ सभी राजघराना के नए उदय पर बात कर रहे थे, तो दूसरी ओर जैसे ही सब हॉल में इकट्ठा हुए और चाय का कप हाथ में पकड़ टीवी चलाया, तो देखा मीडिया में राजघराना आज फिर टॉप चर्चाओं में था। एक एकंर टीवी स्क्रीन पर खबर पढ़ रहा था।
"कल रात एक गुप्त वीडियो लीक हुआ था जिसमें राजगढ़ के सिंडिकेट मीटिंग की बातें सामने आईं। लेकिन आज राजगढ़ के परिवार ने सार्वजनिक तौर पर अपना पक्ष रखा है। गजेन्द्र सिंह ने कहा कि वे इस विरासत को न्याय और सच्चाई के साथ आगे बढ़ाएंगे। प्रभा ताई ने भी खुलेआम अपने पति राघव भोंसले की गलती को स्वीकारते हुए बीते अतीत के लिए माफी मांगी है।"
इस खबर को सुनते ही मुक्तेश्वर एक नजर गजेन्द्र और रिया की तरफ देखता है, “आज से ये विरासत सिर्फ नाम नहीं, बल्कि हमारा संसार होगा। हम अपनी गलती मानेंगे, पर उसे दोहराने नहीं देंगे।”
तभी गजेन्द्र रिया का हाथ पकड़ कहता है— “और हम सब मिलकर इस विरासत को उन ऊंचाइयों तक लेकर जाएंगे, जहाँ ये कभी होना चाहिए था।”
गजेन्द्र अभी इतना बोलता ही है कि तभी रिया के फोन की नीली रोशनी जल जाती है, रिया फोन की तरफ देखती उससे पहले गजेन्द्र उसके हाथ से फोन ले लेता है। लेकिन फोन की लाइट फिर भी जलती रहती है, जिस पर मुक्तेश्वर की नजर पड़ जाती है… वो देखता है कि रिया को ये मैसेज विराज प्रताप रठौर ने किया है।
गजेन्द्र की रिहाई के बाद भी रिया का विराज के संपर्क में रहना मुक्तेश्वर को बहुत खलता है। ऐसे में उसके दिमाग में एक ही सवाल चलता है।
कहीं रिया उसके बेटे गजेन्द्र को प्यार के नाम पर कोई बड़ा धोखा तो नहीं देने वाली?
क्या विराज भी रिया के साथ इस साजिश में शामिल है?
आखिर क्या रिश्ता है विराज और रिया का?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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