रिया के फोन पर विराज प्रताप राठौर का मैसेज देखकर मुक्तेश्वर सिंह के माथे पर बल पड़ चुके थे। वो दूसरी तरफ नजर घुमाये एक टक शक भरी नजरों से रिया को देख रहा था।
राजघराना महल में आज भले ही एक नई सुबह का संकल्प लिया गया था, लेकिन सच्चाई की ये रोशनी कुछ परछाइयों को और लंबा बना देती है। गजेन्द्र को तो अपनी रिया पर पूरा भरोसा था, लेकिन उसके पिता मुक्तेश्वर का दिल कुछ और ही इशारा कर रहा था।
“क्या ये प्यार है… या कोई चाल? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा… क्या मुझे रिया और विराज की नजदीकियों के बारे में गजेन्द्र को बताना चाहिए?”
दूर खड़ा मुक्तेश्वर अकेले से ये ही सवाल कर रहा था। उसका मन रिया और गजेन्द्र के भविष्य को लेकर बहुत बेचैन था। कि तभी महल के मेन दरवाजे पर कुछ हंगामें की आवाज सुनाई दी। इस दौरन पहले तो ये आवाजें धीमी थी, लेकिन फिर धीरे-धीरे तेज हो गई और फिर नारेबाजी से पूरा राजघराना गूंजने लगा।
बात हंगामें तक ही नहीं रूकीं, बल्कि कुछ देर बाद तो तमाशा कर रहे उन लोगों ने राजघराना महल पर चारों तरफ से पत्थर फेंकना शुरु कर दिया। इससे ये तो साफ था कि राजगढ़ के लोगों में राजघराना के बीते कुछ दिनों के सामने आये काले कांडो को लेकर आक्रोश की भावना है।`लोग जोर-जोर से चिल्ला रहे थे।
"गजराज सिंह को गिरफ्तार करो!"
"राजघराने की संपत्ति जनता को दो!"
"भ्रष्ट विरासत नहीं चाहिए, नहीं चाहिए!"
“खत्म करो, खत्म करों… अत्याचार खत्म करों!”
राजगढ़, जो कभी सिंह परिवार की आन-बान का प्रतीक हुआ करता था, अब उसी विरासत को जलाने की मांग चिल्ला-चिल्लाकर कर रहा था। सूरज के बढ़ते ताप के साथ भीड़ भी बढ़ती गई और लोगों के अंदर का उबाल भी… हालाकिं उनकी आवाज अब सन्नाटे में बदल गई थी।
बाहर मचे हंगामे के बीच गजेन्द्र, जो रिया के साथ आंगन में था, चौंककर मेन दरवाजे की ओर भागा। तो देखा सैकड़ों लोगों की भीड़ महल को घेर चुकी थी। कैमरे, माइक, सोशल मीडिया लाइव स्ट्रीम… हर तरफ राजघराना, लोगों के लिए एक तमाशा बन गया था।
"गजराज सिंह बाहर आओ!"
“हमें जवाब चाहिए!”
महल के गार्ड्स ने गेट बंद किया, लेकिन पत्थर, बोतलें और नफरत की आग महल की दीवारों को नहीं रोक पाई… दूसरी ओर गजेन्द्र ये नजारा देख सीधे अपने पिता के कमरे में पहुंचा।
“क्या ये वही जनता है, जो कभी राजघराने को भगवान मानती थी? और दादा गजराज सिंह के सिर्फ आंख उठा देने भर से अपना सर झुका लेती थी।”
बेटे का ये सवाल सुन मुक्तेश्वर की आंखें झुक गई, उसके चेहरे पर दर्द था, लेकिन फिर भी उसने जुबान खोलीं और बोला— “ये सब हमारे अतीत के कारनामों की सजा है बेटा… और हमें लोगों के उनके सवालों के जवाब देने ही होंगे।”
लेकिन तभी एक खबर ने सब कुछ बदल दिया, जब तहखाने से भागता हुआ एक नौकर आया और बोला, “बड़े हुकुम आ रहे हैं”
ये सुनते ही सब हैरान हो गए, क्योकि गजराज सिंह ने काफी दिनों से खुद को तहखाने में बंद कर रखा था। वो महल के अंदर अपने पुराने विंग में खुद को सबकी नजरों से छुपाये बैठा था और किसी से भी बात करने को तैयार नहीं था। यहां तक कि अपने बेटे मुक्तेश्वर से भी नहीं।
गजेन्द्र, रिया और मुक्तेश्वर तीनों ने जब इतने दिनों बाद गजराज सिंह को उस तहखाने के कमरे से बाहर देखा तो दौड़कर उसके पास पहुंचे। लेकिन कमरा अभी भी अंदर से बंद था और बाहर सिर्फ एक पुराना सिपाही खड़ा था, जो बोला— “बड़े हुकुम ने कहा है वो कुछ देर अपने कमरे में रहने के बाद बाहर आयेंगे।”
नौकर की ये बात सुन मुक्तेश्वर ने कहा— “मैं उनका बेटा हूं। उन्हें बताओ… राजगढ़ की जनता अब जवाब चाहती है, आखिर कब तक वो चुप्पी साधे रहेंगे?”
मुक्तेश्वर के चिल्लाकर पूछने के बाद भी अंदर से कोई जवाब नहीं आया, तो गजेन्द्र ने दरवाजा पीटा, “दादाजी! आप सामने आइए। ये भीड़ आप से जवाब मांग रही है, हमसे नहीं। लेकिन आप ही अगर चुप रहेंगे तो हम क्या कहेंगे?”
गजराज ने अब भी कोई जवाब नहीं दिया, तभी रिया ने धीरे से कहा— “मुझे लगता है... उन्हें डर है। वो जान चुके हैं कि अब उनकी सच्चाई बच नहीं सकती।”
इतना कह रिया ने गजेन्द्र को इशारा किया और दोनों चुपके से महल के तहखाने की ओर बढ़ गए। इस दौरान दोनों वहां खड़े थे, जहां 70 साल पुरानी किताबें और दस्तावेज़ पड़े थे। साथ ही वहां एक पुराना संदूक भी रखा था, जिसे दोनों ने खोला और फिर अंदर से एक दस्तावेज निकाला… जिस पर लिखा था— "द लीग ऑफ नॉर्थ एस्टेट्स- 2008 सिंडिकेट चार्टर"
गजेन्द्र ने उसे खोलकर देखा तो उस पर राजघराना के लगभग सभी लोगों के साइन थे— गजराज सिंह, राघव भोंसले, राज राजेश्वर और… विराज राठौर।
आखरी नाम पढ़ते ही गजेन्द्र की आंखें फैल गईं।
“विराज? ये नाम यहां क्या कर रहा है?”
रिया अब तक चुप थी, फिर उसने धीरे से कहा— “इसमें विराज का नाम कई बार आया है… लेकिन मैंने कभी तुम्हें बताना जरूरी नहीं समझा…”
“क्यों?”
गजेन्द्र ने घूरते हुए रिया से पूछा, तो रिया ने डरते हुए जवाब में कहा— "क्योंकि… मैं विराज के साथ कॉलेज के समय से हूं… और मैने आज तक उसे अपना नाम सिर्फ विराज राठौर ही लिखते हुए देखा है। मुझे लगता है, ये हम तीनों की दोस्ती को तोड़ने की साजिश है।
तभी वहां मुक्तश्वर आ गया और उसने रिया और गजेन्द्र के बीच की बात सुन ली। मुक्तेश्वर हमेशा से रिया और विराज के रिश्ते को लेकर शक करता था। क्योकि उसने हमेशा रिया की आखों में विराज के लिए झुकाव महसूस किया था। हालांकि वो भी गजेन्द्र की तरह रिया और विराज के अतीत से अंजान था।
गजेन्द्र पीछे हटा और चौक कर बोला— “तुमने ये सब मुझसे क्यों छुपाया? आज से पहले तो तुमने और विराज ने कभी नहीं कहा कि तुम दोनों कॉलेज में एक साथ थे?”
गजेन्द्र का ये सवाल सुनते ही रिया की आंखों से आंसू निकल पड़े, “क्योंकि मैं तुम्हारे साथ थी, हूं और रहूंगी। विराज का नाम आना और मेरी हकीकत का खुलना... दो अलग बातें हैं। मैं नहीं जानती थी कि तुम मेरे अतीत को जानकर उसे लेकर मुझसे सवाल करोगे।”
ये सुन गजेन्द्र अब कुछ नहीं बोला। वो तहखाने से बाहर निकलते हुए सिर्फ इतना ही कह पाया— “अभी वक्त इस सच्चाई से भागने का नहीं, सामना करने का है। और सुने अब जब हम साथ है, तो तुम मुझे अपना अतीत भी कभी बता देना… लेकिन फिलहाल विराज का नाम यहां क्यों है, मेरे लिए इस सवाल का जवाब जानना ज्यादा जरूरी है।”
महल के हंगामें से अलग गजेन्द्र जहां उस सिंडिकेट चार्टर वाले मामले की असलियत खंगालने में लगा था, तो वही दूसरी ओर महल के बाहर भीड़ अब उग्र हो चुकी थी। कुछ लोगों ने महल के गेट को जला दिया था। पुलिस को कॉल किया गया, लेकिन उन्होंने कहा— “ये राजनीतिक मामला है। हम भी ऊपर से सरकारी आदेश का इंतज़ार कर रहे है।”
तभी महल के अंदर से एक नौकर भागता हुआ आया और बोला— “गजेन्द्र साहब… बड़े हुकुम गजराज सिंह अपने कमरे में नहीं है। मैंने उन्हें हर जगह तलाश लिया वो नहीं मिले… पर उनके कमरे से एक चिट्ठी मिली है!”
सब गजराज के कमरे की तरफ भागे, जहां टेबल पर रखी चिट्ठी को गजेन्द्र ने उठाया और पढ़ना शुरु किया…
"प्रिय मुक्तेश्वर,
जब से ये वीडियो बाहर आया है, मुझे समझ नहीं आ रहा कि कैसे जिंदा रहूं। मैंने हमेशा सिंह परिवार को ऊंचाइयों पर देखने का सपना देखा… लेकिन ये ऊंचाइयां मैंने अपनी सच्चाई को कुचल कर हासिल कीं।
मैंने न सिर्फ अपने बेटों को बल्कि खुद को भी झूठा इंसान बना दिया। हां, मैंने ही राजेश्वर को दबाया, भीखूं को नौकर बनवाया। हां, मैं ही था जिसने पहली बार रिश्वतखोरी का काम किया और फिर मैंने ही इन सबमें मुक्तेश्वर को फंसाया। लेकिन मुझे नहीं पता था, कि वो इस खेल में अपने भाई के साथ ही दलाली कर बैठेंगा। मुझे डर था राजेश्वर का सच दुनिया के सामने ना आ जाए और लोगों को भीखूं और उसके रिश्ते का पता ना चल जाये… इसके लिए हां, मैंने ही तुम्हें राजनीतिक मोहरा बनाया।
लेकिन अब… मेरी आत्मा थक चुकी है।मैं जा रहा हूं…एक ऐसी जगह, जहां न कोई सिंह होगा, न सिंहासन… बस मैं और मेरा अतीत।
तुम्हारा पिता– गजराज सिंह"
ये सब सुन मुक्तेश्वर की आंखें भर आईं और वो लड़खड़ा कर जमींन पर गिर गया — “वो हमें छोड़कर चले गए….लेकिन कहां गए है… हमें उन्हें ढूंढना ही होगा।”
गजराज के महल छोड़कर इस तरह भाग जाने से हर कोई हैरान-परेशान था, लेकिन साथ ही सबको सत्तर साल के गजराज की तबियत और हालत की भी चिंता थी। क्योंकि कुछ दिन पहले ही गजराज को हार्ट अटैक आया था, जिसके बाद वो लंबे समय अस्पताल में रहा था।
आधी रात हो गई, पर गजराज नहीं लौटा... महल की दीवारें खामोश थीं, जैसे अपनी गलतियों पर मातम मना रही हों। गजेन्द्र महल की बालकनी से बाहर एक टक ऐसे देख रहा था, मानों जैसे उसके दादा गजराज सिंह किसी भी वक्त लौट सकते हैं। लेकिन दूर-दूर तक सिर्फ लोगों की भीड़ ही नजर आ रही थी, जिन्होंने महल को चारों तरफ से घेर रखा था।
इसी बीच आसमान में जोरदार बिजली कड़की, और एक परछाईं… काले कपड़े में लिपटी, महल की छत से किसी को देख रही थी।
गजेन्द्र उसे देख बार-बार आवाज लगाता है, लेकिन वो परछाई कुछ नहीं बोलती। गजेन्द्र उसके करीब और करीब जाता है… और इसके बाद जैसे ही वो उसका चेहरा अपनी आंखों के सामने देखता है.. वो चीछ पड़ता है—
"त..त... विराज तुम, इस तरह आधी रात को… सबसे छिपकर आखिर क्यों?”
विराज कुछ देर तो गजेन्द्र के सामने चुप्पी साधे खड़ा रहता है, फिर अचानक से बोल पड़ता है— “देखों मैं, तुम्हे सब समझा सकता हूं, बस मुझे थोड़ा सा वक्त दो… मैं तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूंगा।”
तभी गजेन्द्र की नजर उसके हाथ पर जाती है, जिसमें एक पुराना ताबीज़ था, जिस पर सिंह परिवार का चिह्न बना था। उसे देख गजेन्द्र अब और भी हैरान हो जाता है। आखिर क्या रिश्ता है विराज और उसके दादा गजराज के बीच…?
जहां एक तरफ गजेन्द्र इस सवाल में उलझा हुआ था, तो वहीं दूसरी तरफ अब महल की छत्त पर मुक्तेश्वर सिंह भी आ गया। उसने जैसे ही गजेन्द्र के साथ आधी रात महल की छत्त पर विराज को खड़ा देखा… उसका गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुंच गया… वो चिल्लाया—
“विराज तुम इस तरह आधी रात राजघराना महल में क्या कर रहे हों… और किससे मिलने आये हो?”
विराज मुक्तेश्वर के सवाल का मतलब समझ गया था, क्योकिं वो रिया और उसका अतीत जानता था। उसे पता था कि वो दोंनों एक समय में प्यार भरे बंधन में रह चुके हैं, लेकिन दोनों की शादी नहीं हो पाई थी। दरअसल सगाई के बाद दोनों ने आपसी रजामंदी से रिश्ता तोड़ लिया था।
लेकिन बीते कुछ दिनों में जो कुछ हुआ, उसने विराज के दिल में एक बार फिर रिया के लिए झुकाव पैदा कर दिया था। हालंकि रिया के दिल में क्या था, ये कोई नहीं जानता था।
मुक्तेश्वर का गुस्सा देख विराज तुंरत पलटकर कहता है— “अंकल मैं गजेन्द्र के लिए ही लौटा हूं। हमने गजेन्द्र की रिहाई तो करा दी है, लेकिन उसे इस राजघराना सम्राज्य की गद्दी पर बैठाने के लिए उस काले बहीखाते का ब्यौरा जनता को देना होगा।”
विराज की बातें मुक्तेश्वर की सहीं तो लगती है, क्योकि वो गजेन्द्र का सच में अच्छा और सच्चा दोस्त और वकील दोनों था, लेकिन उसके अंदर का शक अभी भी उसका साथ नहीं छोड़ता और वो रिया-विराज को लेकर बार-बार सोचता है।
तभी विराज आगे बढ़ता है और मुक्तेश्वर के हाथ में उस ताबिज को रखते हुए सिर्फ एक लाइन कहता है— "अब समय है… सिंहों के खात्मे का… उनके अतीत ने राजगढ़ में बर्बादी की बहुत कहानी लिखी हैं, लेकिन अब सिंह खानदान के उन सभी अत्याचारियों के खात्में की कहानी लिखने का वक्त आ गया है"
विराज अभी इतना ही बोलता है, कि तभी रिया भी छत्त पर आ जाती है और विराज को देखते ही उसके चेहरे पर अक अजीब सी खिलखिलाहट भरी हंसी दौड़ जाती है। लेकिन तभी मुक्तेश्वर देखता है, कि विराज अपनी झुकी नजर से एक बार तो रिया को देखता है, लेकिन अगले ही पल अपनी नजर उससे चुरा लेता है।
चारों एक साथ महल के हॉल एरिया में आते है, जहां आते के साथ रिया टीवी ऑन कर देती है, जहां टीवी स्क्रीन पर एक न्यूज ब्रेकिंग फ्लैश हो रही थी।
"BREAKING: गजराज सिंह ने खुद को महल के एक गुप्त कक्ष में बंद कर लिया है।
सूत्रों के अनुसार, उन्होंने कोई ज़हर खा लिया है।
वहीं दूसरी ओर, विराज प्रताप राठौर के बारे में खबर आई है कि वो अब जयगढ़ सिंडिकेट के नए चेयरमैन बन चुके हैं।
क्या ये सब सिंह परिवार के अंत की शुरुआत है?"
विराज के सिंडिकेट का नया चैयरमैंन बनने की खबर जैसे ही सब लोग टीवी पर देखते है, सभी की आंखे फटी की फटी रह जाती है।
आखिर क्या चल रहा है विराज के दिमाग में? कौन सी चाल चल रहा है विराज?
क्या उसकी इस साजिश में रिया भी है शामिल?
क्या होगा जब गजेन्द्र को पता चलेगा विराज और रिया के अतीत का सच?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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