राजघराना महल की छत पर बिजली की चमक और विराज की गूंजती आवाज के बाद, पूरे महल में एक अजीब-सी खामोशी पसर गई थी। अंदर सबकी धड़कनें तेज थीं। कोई गजराज सिंह की चिट्ठी से परेशान था, तो कोई विराज के नए चेहरे से। इस सारे तमाशे से सबसे ज्यादा परेशान था मुक्तेश्वर, जिसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी होनें वाली बहू रिया अपने अतीत को भूला चुकी है या आज भी उसके दिल में विराज के लिए प्यार है। और अगर ऐसा है, तो उसे रिया और अपने बेटे गजेन्द्र के बीच बढ़ती नजदीकियां रोकनी होंगी।
इस समय राजघराना महल मे खड़े हर शख्स के दिल में सवालों का तूफान चल रहा था, लेकिन असली भूचाल तब आया, जब जयपुर हाईकोर्ट से एक आधिकारिक पत्र विराज को सौंपा गया। इस पत्र में कुछ ऐसा लिखा था, जिसने सभी को हैरान कर दिया।
"श्रीमान विराज प्रताप राठौर,
आपको न्यायपालिका में आपकी सशक्त भूमिका को देखते हुए, जयपुर हाईकोर्ट में एडिशनल जज के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। शर्त बस इतनी है कि आप 'राजघराना बनाम राज्य' मामले से खुद को अलग कर लें।"
धन्यवाद
न्यायपालिका अधिकारी, जयगढ़
इस पत्र को पढ़ते ही विराज की आंखें ठहर गईं और उसके चेहरे का रंग सफेद पड़ गया। जज बनना उसका सपना था। न्याय की कुर्सी पर बैठकर फैसला देना, वो हर रोज इसी की तैयारी करता रहा था, लेकिन उसनें कभी नहीं सोचा था कि वो अपने करियर की जिंदगी में कभी ऐसे सियासी सौदे का शिकार होगा। ऐसे में ये पत्र ना सिर्फ उसे भीतर तक हिला देता है, बल्कि साथ ही वो ये भाप जाता है कि शायद इसके पीछे उसके अपने पिता और गजराज की पहुंच का हाथ है।
वो गुस्सें में अपनी मुट्ठी में ताबीज़ को कसता है। ये वही सिंह राजघराने का प्रतीक वाला ताबीज़ है, जो शायद अब उसके अतीत और भविष्य दोनों का बोझ बन चुका है। वो चाहकर भी फिलहाल इस ताबीज़ के बारें में किसी को कुछ नहीं बता सकता।
दूसरी तरफ, गजराज सिंह ने जो चिट्ठी छोड़ी थी, उसने पूरे राजघराना महल में अफरा-तफरी मचा दी थी। लेकिन इन सबके बीच एक नौकर शांत था, क्योंकि वो जानता था कि गजराज सिंह कहा है। वो चुपके से उसका लिए खाना बनाता है और फिर महल के उस गुप्त कक्ष में ले जाता है जिसे दशकों से बंद माना जाता था। वहां की दीवारें इतिहास की स्याही से भरी थीं।
लेकिन तभी वो नौकर नीचे से भागता हुआ आया और बोला — “छोटे हुकुम… छोटे हुकुम... बड़े हुकुम सा गजराज सिंह ने ज़हर खा लिया है! जल्दी चलों”
ये सुनते ही मुक्तेशर के हाथ-पैर फूल गए। उसने तुरंत राजघराना के डॉक्टर को फोन कॉल किया और सारे मामले की जानकारी दी। दस मिनट में ही डॉक्टर एंबुलेंस लेकर आ गया। लेकिन जैसे ही गजेन्द्र ने लात मारकर इस कक्ष का दरवाजा खोला, तो देखा वहां उसके दादा गजराज सिंग बेसुध पड़े थे। ज़हर के असर से उनका चेहरा काला पड़ चुका था। पर उनकी सांसें अभी चल रही थीं। तभी गजराज सिंह ने गजेन्द्र का हाथ थामा और धीरे-धीरे बोले…
“मुझे मरने मत देना मेरे पोते... मुझे अभी तुम सबकों एक और सच बताना है...”
गजराज आगे कुछ बोलता उससे पहले डॉक्टर ने उन्हें चैक कर कहा— जहर अभी ज्यादा नहीं फैला है, लेकिन अब यहां इनका इलाज संभव नहीं है। इन्हें तुरंत स्ट्रेचर पर लेटाओं ओर एंबुलेंस में ले चलों। डॉक्टर की बात सुन जहां मुक्तेश्वर को अभी भी गजराज के बचने की उम्मीद दिखाई दी, तो वहीं गजेन्द्र फूट-फूट कर रोने लगा और अपने पिता के गले लग गया।
"पापा, दादा जी बच तो जायेंगे ना… बताइये ना?”
मुक्तेश्वर ने अपने बेटे के इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, बस हां में सिर हिलाया और अपने पिता को लेकर तुरंत अस्पताल पहुंच गया।
डॉक्टरों के चैकअप से लेकर गजराज के ऑपरेशन होने के बाद एक डॉक्टर गजराज के ऑपरेशन रूम से बाहर आया और बोला…
“फिलहाल गजराज जी, खतरे से बाहर है… लेकिन पूरी रिपोर्ट 48 घंटे उन्हें निगरानी में रखने के बाद ही दी जा सकती है। गजराज के ठीक होने की खबर सुन जहां मुक्तेश्वर और गजेन्द्र के चेहरे पर सुकून की लकीरें नजर आई, तो वहीं राजघराना के बाहर खड़ी भीड़ एक बार फिर आक्रोशित हो गई… कि आखिर उस जैसे इंसान को डॉक्टरों ने बचाया क्यों?”
तभी मुक्तेश्वर ने गजेन्द्र से कहा— “तुम और रिया आज रात अस्पताल में पिताजी के पास रुक जाओं, मैं कल सुबह आता हूं।“
गजेन्द्र ने अपने पापा की बात के जवाब में हां में सर हिलाया और रिया के साथ वहां रुक गया, वहीं मुक्तेश्वर लौटकर राजघराना वापिस आ गया।
आधी रात का वक्त हो गया था। गजेन्द्र जब ICU के बाहर बैठा था, तभी रिया उसके पास आई। गजेन्द्र ने बिना देखे कहा— “तुम जानती थी न, विराज कौन है... और फिर भी तुमने सब छुपाया। तुम देख रहीं हो ना एक-एक सच हम अपनों से छिपा कर किस तरह फंसते जाते हैं। मेरे दादा जी की ये हालात उनके झूठ और बुरों कर्मों की ही देन है।”
गजेन्द्र की ये बातें सुन रिया की आंखों में आंसू थे, लेकिन फिर वो अपनी आवाज को साफ करते हुए बोलीं।
“गजेन्द्र, मैं और विराज कॉलेज में एक-दूसरे को पसंद करते थे, लेकिन शादी जैसा कोई प्लान नहीं था। मेरे पापा ने मुझे अकेले पाला था तो जब उन्हें मेरे और विराज के बारें में पता चला, तो एक रात... उन्होंने अपनी तबियत खराब होने का हवाला देते हुए जबरदस्ती मेरी सगाई विराज से कर दी थी। उस रात तो विराज कुछ नहीं बोला, लेकिन अगले ही दिन उसने मुझे छोड़ दिया। वो मुझसे एक भी शब्द कहे बिना अचानक से मेरी जिंदगी और शहर दोनों से गायब हो गया। उस दिन मैं टूट गई थी। और जब तुम और विराज मेरी जिंदगी में एक साथ तुम्हारे केस में आए तो मेरे अंदर तुम्हें सच बाते की हिम्मत नहीं हुई। मैं डर रही थी कि कहीं तुम मुझे छोड़ ना दो…”
रिया इतना कह फूट-फूट कर रोने लगीं, तभी गजेन्द्र ने उसे थामा और अपने सीने से लगा लिया। रिया संभली और फिर बोली— “लेकिन मैं आज तुम्हारे साथ हूं, क्योंकि तुमने मुझे अपनाया, तब जब मैं खुद को नहीं अपना पा रही थी।”
गजेन्द्र कुछ नहीं बोला, पर उसकी आंखें कह रही थीं, कि वो टूटा हुआ है। मगर अभी वो रिया से कुछ कह नहीं पा रहा था और बस उसकी कहीं हर बात पर भरोसा करना चाहता था।
दूसरी ओर राजघराना में विराज जयपुर लौटने की तैयारी कर रहा था। जज की कुर्सी इस वक्त उससे सिर्फ एक फोन कॉल दूर थी, लेकिन वो अंदर ही अंदर खुद से ही लड़ रहा था। वो राजघराना क्यों लौटा था, वो बार-बार उसी बारें में सोच रहा था। रिया भले ही उसका अतीत थी, लेकिन अब वो गजेन्द्र के साथ थी और वो गजेन्द्र को इस तरह उसके मैंच रेस फिक्सिंग केस के आखरी मोड़ पर छोड़ नहीं सकता था, क्योंकि उसने मुक्तेश्वर से एक बेटा बनकर उनके बेटे को बचाने का वादा किया था।
“क्या मैं वो इंसान बनूं, जो सत्ता के लिए सच से मुंह मोड़ ले? या वो, जो सिंहों के तमाशे का पर्दाफाश करेगा, चाहे खुद की जिंदगी ही दांव पर क्यों ना लगानी पड़े?”
विराज अपने ही सवालों के घेरे में फंसा हुआ था, कि तभी उसके फोन की घंटी बजी। उसने फोन की स्क्रीन पर देखा तो वो नंबर और नाम देख चौक गया, दरअसल ये फोन मुक्तेश्वर सिंह का था। विराज ने तुरंत फोन उठाया और मुक्तेश्वर बोल पड़ा —
“अगर तुमने ये केस छोड़ा विराज, तो समझना तुम भी उन लोगों जैसे हो जाओगे, जिनसे तुमने लड़ाई शुरू की थी।”
विराज को इस एक लाइन से अपने सारे सवालों का जवाब मिल गया। दूसरी ओर उसी रात महल में एक नया तमाशा हुआ।
दरअसल गजराज ने जहर की बेहोशी से पहले गजेन्द्र को अपना सबसे बड़ा राज बताया था। जिसके बारे में जानने के लिए अस्पताल में सबके सोने के बाद वो रिया को लेकर चुपचाप महल में लौटा। उसने अपने महल आने की खबर अपने पिता मुक्तेश्वर को भी नहीं दी थी।
गजेन्द्र, रिया और विराज के साथ एक बार फिर उस तहखाने में गया, लेकिन इस बार उसे वहां ऐसा कुछ मिला, जिसने सबको सन्न कर दिया। एक पुराना बक्सा जिसमें एक जन्म प्रमाणपत्र रखा था। गजेन्द्र ने उसे खोला और पढ़ने लगा…
नाम: विराज सिंह
पिता: गजराज सिंह
माता: अज्ञात
जन्म स्थान: राजगढ़ महल, 1990
ये पढ़ते ही गजेन्द्र विराज से पीछे हट गया— “क्या… ये ताबीज़, ये नाम… ये सब इसलिए? तुम… तुम मेरे… सौतेले भाई हो?”
विराज अब शांत नहीं रहा और चिल्लाकर बोला— “बकवास, एकदम बकवास… तुम क्या ये पूरा राजगढ़ जानता है कि मैं रुकमाजी प्रताप राठौर का एकलौता बेटा हूं। वकीलों के खानदान में जन्मा हूं। मेरे पिता और मेरा दादा कोई मामूलू शख्स नहीं है… समझे। और दूसरी बात ये जन्म प्रमाण पत्र का खेल जिसने भी खेला है, पक्का उस सिंडिकेट चार्टर वालों कागजों को पढ़कर खेला है, जिसमें विराज सिंह राठौर… का नाम लिखा है।”
ये सुनते ही गजेन्द्र ने अपना अगला सवाल विराज से पूछ डाला, "तो तुम ही बता दो कि उस सिंडिकेट चार्टर वाली फाइल में मेरे दादा, चाचा और फूफा सा के नाम के साथ तुम्हारा नाम क्यों लिखा हुआ था…? क्या कोई जवाब है तुम्हारे पास इसका?”
गजेन्द्र के शक भरे सवाल सुन विराज टूट गया, लेकिन वो गजेन्द्र जैसे अच्छे दोस्त को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहता था, ऐसे में उसने तुरंत जवाब दिया, “मैं विराज प्रताप राठौर हूं… मुझे नहीं पता वो विराज कौन है। मैं तो बस इस नाम के एक जैसा होने का फायदा उठाकर राज राजेश्वर अंकल को डराना चाहता था। ताकि वो खुद-ब-खुद कोर्ट में अपना जुर्म कुबुल कर ले। अगर उस फाइल में मैं उनके गुनाहों का हिस्सा बनकर उनके सामने आता, तो वो फंस जाते और मैं अपने प्लान में कामयाब हो जाता।”
सिंडिकेट चार्टर के इस तमाशे ने काफी कुछ तहस-नहस कर दिया था, लेकिन विराज इसकी कीमत में अपना दोस्त नहीं खोना चाहता था। ऐसे में उसने अगली सुबह होते-होते, मीडिया की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला ली। सारा मीडिया जुटा…रिया, गजेन्द्र और मुक्तेश्वर भी वहां पहुंचे। सबकों विराज क्या कहने वाला है, इस बात का इंतजार था।
विराज ने सिंडिकेट चार्टर की कॉपी, जन्म प्रमाणपत्र, और गजराज सिंह की चिट्ठी मीडिया के सामने सार्वजनिक कर दी।
"आज मैं सिर्फ एक नाम नहीं, एक सच्चाई सामने लाया हूं। लोग इस राजघराना के कारनामों का ब्यौरा मांग रहे थे ना… तो आज मैं मीडिया के सामने राजगढ़ की जनता के हर सवाल का जवाब दूंगा। ये राजघराना अब केवल खून से नहीं, कर्म से चलेगा।
विराज ने आगे कहा— मैं गद्दी नहीं चाहता, लेकिन अगर मेरे जैसे लोगों को कुचलने की कोशिश हुई…तो मैं न्याय के सबसे ऊंचे दरबार में, जज की कुर्सी पर नहीं, बल्कि इंसाफ की तलवार लेकर खड़ा रहूंगा। ये देखिये किसी ने कल मुझे ये एक चिट्ठी भेजी और कहा कि मैं राजघराना का केस छोड़ दूं तो वो मुझे वकील के ओहदे से सीधे जयपुर हाईकोर्ट के जज के पद पर पहुंचा देंगे। "
ये सुनते ही कॉन्फ्रेंस में सबके पीछे बैठे पत्रकार ने चिल्ला कर पूछा— "तो क्या आप जयपुर हाईकोर्ट की जजशिप ठुकरा रहे हैं?"
विराज पलटा, मुस्कुराया और बोला…."मैं राज नहीं करूंगा, लेकिन राज करने वालों की कहानी में उनके सच के साथ खड़ा रहूंगा और उसकी कहानी लिखूंगा। ऐसे में ये राजघराना का अंत नहीं… अब एक नई शुरूआत है!”
विराज के इस बयान ने लोगों के दिलों में एक बार फिर राजघराना के लिए नजरिया बदल दिया। जो गजेन्द्र कल तक सिंहासन से दूर था, अब सबसे करीब हो गया था, क्योंकि लोगों ने गजेन्द्र को राजघराना के नए भविष्य के तौर पर अपना लिया था।
दूसरी ओर रिया, जिसने बीते दो दिनों में विराज और गजेन्द्र दोनों को खोने का खतरा उठाया, अब खुद अपने प्यार को साबित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। क्योंकि उसने गजेन्द्र से सच छुपा कर उसका दिल तोड़ा था।
साथ ही मुक्तेश्वर, जो सियासत और परिवार के बीच उलझा था, अब अपने बेटे और रिया के भविष्य को लेकर काफी परेशान था, उसे रिया के गजेन्द्र के प्रति लगाव पर तो यकीन था, लेकिन उसके प्यार को लेकर ना जाने क्यों उसका मन डगमगा रहा था और उसके जहन में बार-बार यही सवाल उठ रहा था, कि कहीं रिया मेरे बेटे को धोखा तो नहीं दे देगी।
मुक्तेश्वर अभी ये सब सोच ही रहा था, कि तभी इसका फोन बजा। उसने फोन उठाया तो दूसरी ओर से डॉक्टर की आवाज आई।
"गजराज साहब को होश आ गया है, वो अभी के अभी पूरे परिवार से मिलना चाहते है।"
क्यो एक साथ पूरे परिवार से मिलना चाहता है गजराज सिंह?
क्या रिया का अतीत गजेन्द्र के साथ उसके रिश्ते को तोड़ देगा?
क्या विराज की वजह से अलग हो जायेंगे रिया-गजेन्द्र?
क्या जयगढ़ सिंडिकेट विराज के खिलाफ साजिश रचेगा?
और क्या गजेन्द्र, वाकई इस विरासत का अगला राजा बन पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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