बाहर तेज़ आंधी थी, महल की खिड़कियां हवा के झटके से बार-बार बंद और खुलकर खड़क रही थीं। हवा के हर झोंके के साथ लगता मानो इतिहास की कोई नई परत खुलने वाली है। उस फोन कॉल के बाद मुक्तेश्वर के मन में बार-बार इसी तरह के सवाल उठ रहे थे। मानों जैसे वो अपने पिता से मिलने नहीं किसी नए असली तूफ़ान का सामना करने जा रहा हो।
इस समय गजेन्द्र, रिया, प्रभा ताई और राज राजेश्वर भी उसके साथ कार में सवार थे। मौत को मात देकर लौटे गजराज की इस बैठक ने सभी के दिलों में सवालों के अंबार लगा दिए थे। कुछ दस मिनट के सफर के बाद सभी लोग अस्पताल पहुंचे। कार में सवार हर शख्स के लिए वो दस मिनट दस जन्मों की तरह थे।
दूसरी ओर गजराज सिंह को ICU से डिस्चार्ज करके डॉकटरों ने प्राइवेट रुम में ट्रांस्फर कर दिया था, जिसके बाद गजराज अपने पूरे परिवार के एक साथ उससे मिलने आने का इंतजार कर रहा था। दरअसल उसने कल ही सख्त लहजे में ये मैसेज फोन पर मुक्तेश्वर को भिजवा दिया था कि – “पूरा परिवार मेरे सामने एक साथ आयेगा... बिना किसी मनमुटाव के… मैं सबसे एक साथ बात करना चाहता हूं।”
शाम के सात बजे सब गजराज के प्राइवेट वार्ड में जमा हो गए। मुक्तेश्वर, गजेन्द्र, रिया, विराज, यहां तक कि चुपचाप खड़ा राज राजेश्वर भी सभी साथ एक टक गजराज के होठों को निहार रहे थे, कि आज आखिर वो ऐसा क्या बोलने वाले है, जो पूरे परिवार को एक साथ बुलाया।
तभी गजराज उठा और सबसे पहले उसने गहरी सांस लेते हुए अपना गला साफ़ किया, उनकी आवाज़ धीमी थी पर सभी के कानों में गूंज उठी।
“मैंने उम्रभर अपनी ताकत से लोगों को झुकाया और शहर पर राज किया, लेकिन प्यार को पीछे छोड़ दिया। और इसी प्यार की कमी आज मेरे पूरे परिवार में मुझे नजर आ रही है। यही वजह है कि मेरे अपने बेटे-बेटी सत्ता की कुर्सी के पीछे इतने पागल हो गए, कि एक दूसरे की जिंदगी तक बर्बाद करने से पीछे नहीं हटे। जितनी नफरत मैंने गरीब और कमजोर लोगों से की और उन्हें अपने पैरों में झुकाया… आज उतनी ही नफरत मेरे बच्चे आपस में एक-दूसरे से करते है। उनकी ये नफरत… एक-दूसरे के लिए ज़हर बन गई। वो अब दुनिया के सामने अपने ही खून में खोट निकालने लगे है।”
ये सब सुन सबने एक-एक कर नजरे झुका ली, सब सन्न थे… लेकिन गजेन्द्र अभी भी सर उठाए खड़ा था। तभी गजराज ने आगे कहा—
“मुक्तेश्वर, तू मेरा वारिस है… और गजेन्द्र, तू इस विरासत का उत्तराधिकारी, क्योंकि तूने सच्चाई से कभी मुँह नहीं मोड़ा। लेकिन ध्यान रहे — ये गद्दी अब खून नहीं, कर्म से चलेगी।”
ये सुनते ही गजेन्द्र की आंखें भीग गईं तो रिया ने जल्दी से उसका हाथ थाम लिया, जिस पर गजेन्द्र ने अपनी पकड़ जल्दी से तेज कर ली और अपने आंसुओं को छिपा लिया।
इस बैठक से ये साफ था कि गजराज सिंह भी अपने बुरे कर्मों पर खड़ी राजघराना की विरासत में अब बदलाव चाहता था। इसलिए उसने अपने पोते गजेन्द्र को अपनी कुर्सी सौपी और ये बात राज राजेश्वर को अंदर तक चीर गई। राज राजेश्वर बुरी तरह तिलमिला उठा।
बैठक खत्म होते ही राज राजेश्वर चुपचाप उस कमरे से बाहर चला गया और अकेले ही राजघराना लौट गया। जहां वो महल के एक शांत तहखाने में जाकर शराब की बोतल खोल एक के बाद एक… ग्लास खाली करने लगा। बोतल खाली होते ही उसने उसे सामने वाली दीवार पर दे मारा और जोर से चिल्लाया।
“गजराज सिंह… आखिरकार तुमने मेरी पूरी जिंदगी की मेहनत को बर्बाद कर दिया। एक तरफ पुलिस मेरे गिरफ्तारी में जगह-जगह छापेमारी कर रही है, और दूसरी तरफ तुमने मुझसे मेरा सबकुछ छीन कर मेरे भिखारी मुक्तेश्वर भाईसा के बेटे को दे दिया। अरे वो तो बीस सालों से दो-दो वक्त की रोटी के मोहताज वाली जिंदगी जीकर आये है… तो राजघराने के ताज का बोझ कैसे उठाएंगे। लगता है मुझे कुछ बड़ा धमाक करना ही होगा… बीस साल बाद इतिहास पक्का खुद को दोहराने वाला है...हाहाहाहा।”
नशे में चूर राज राजेश्वर अपने ही षड्यंत्रों की दुनिया में खोया हुआ था, कि तभी पीछे से उसकी पत्नी वंदना राजपूत आ गई।
उसकी आंखों से गुस्सा और जुबान पर नफरत का अंगार साफ दिखाई और सुनाई दे रहा था, जब आते ही वो राज राजेशर पर चिल्लाई— “अब और नहीं राज राजेश्वर… मैंने सब कुछ सहा, पर आज जब तुम्हारा अपना बाप तुम्हें नजरअंदाज कर गया, तुम्हारे भाई को वारिस बना गया… मैं अब और नहीं रुक सकती, तुम आज के आज मुझे तलाक दो। छोड़ तो मैंने तुम्हें 18 साल पहले ही दिया था… पर अब मुझे तुम्हारे नाम से भी आजाद होना है… घिन्न आती है मुझे तुमसे।”
अपनी पत्नी वंदना राजपूत के ऐसे कड़वे दिल को छल्ली कर देने वाले शब्द सुन राज राजेश्वर ने चीखकर कहा— "तू जाएगी कहां?"
वंदना ने दरवाजे की ओर इशारा किया और दिखाया कि उसकी ये बदजुबानी उसके दोनों जवान बच्चे भी सुन रहे है, जो आज कई साल बाद अपने पिता को देख रहे है और वो भी नशे की हालत में— बच्चों को देख राज राजेश्वर एकदम से खामोश और सीधा खड़ा हो गया।
“इस राजघराना की विरासत में हमेशा से जहर था सिर्फ जहर… जहां एक बाप ने अपने बेटे की सच्चाई को छिपाने के लिए जबरदस्ती उसकी शादी एक लड़की से कर दी थी, लेकिन भगवान ने जिसे जैसा बनाया होता है वो वैसा ही रहता है राजेश्वर। तुम्हें औरतों में जरा दिलचस्पी नहीं थी। तुम तो मर्दों पर जान छिड़कते थे और इस गंदी सियासत की कुर्सी पर… जो अब तुमसे फाइनली छिन गई। अब मैं अपने बच्चों को इस विरासत के ज़हर से दूर ले जा रही हूँ। तो आजाद करों हमें राज राजेश्वर...।”
इतना कह जहां राज राजेश्वर की पत्नी ने उसके मुंह पर तलाक के पेपर फेंके और वहां से चली गई। तो दूसरी ओर राज राजेश्वर ने कुर्सी उलट दी और ज़हर के दो और जाम लगा, अपने भाई और पापा के साथ उस कमरे में रखी अपनी तस्वीर को टुकड़ों-टुकड़ों में फाड़ दिया ।
आधी रात हो गई थी, महल में हर कोई गहरी नींद में था, लेकिन तहखानें में छिपकर शराब के नशे में चूर राजेश्वर को अभी भी नींद नहीं आई थी। आधी रात वो राजमहल के स्टडी रूम में गया और उसने फोन कर प्रभा ताई को वहां बुलाया।
“अब बहुत हो गया जीजी, अब ये सत्ता मैं किसी गजेन्द्र या मुक्तेश्वर भाई सा के हाथ नहीं जाने दूंगा। अब वक्त है कि ये 'सिंडिकेट चार्टर कांड' असली रूप में सामने आए।”
ये सुनते ही प्रभा ताई भौच्चका रह गई। उन्हें कुछ समझ नहीं आया कि सिंडिकेट कांड से मुक्तेश्वर या गजेन्द्र का क्या रिशता… वो दोनों तो पिछले बीस सालों से राजघराना से दूर थे और ये घोटाला तो 15 साल पुराना है। ये ही सोचते हुए प्रभा ताई ने कहा….
"हमने मुक्तेश्वर को गिराया, गजेन्द्र को बदनाम किया, रिया के ज़रिए विराज को तोड़ना चाहा… अब अगली चाल में सिर्फ महाभारत करना ही बाकी रह गया है। देखों मैं कहती हूं भूल जाओं ये सब… और मान लो कि गजेन्द्र सच में लायक है राजघराना की कुर्सी पर बैठने के।"
प्रभा ताई की ये बात सुन पहले तो राज राजेश्वर तिलमिला उठा, लेकिन फिर उसने गहरी मुस्कान के साथ कहा— "ताई… अब दांव एक नहीं, पूरा सिंहासन का होगा।"
राज राजेश्वर अब अगला कौन सा हंगामा करने वाला था, ये बात प्रभा ताई के मन को बेचैन कर रही थी। वहीं दूसरी ओर महल में एक और शख्स इस वक्त बहुत बेचैन था।
रिया महल के बगीचे में अकेली बैठी थी। वह लगातार गजेन्द्र और अपने बारे में सोच रही थी, खुद से सवाल कर रही थी- क्या वह पत्रकार है, प्रेमिका है या राजघराने की होने वाली बहू? तभी वो बड़बड़ाई….
“कहीं गजेन्द्र और विराज के बीच मैं खुद से प्यार करना तो नहीं भूल बैठी। क्योंकि जबसे मैं गजेन्द्र से मिली हूं उसकी ही लड़ाई लड़ रहीं हूं। मैंने तो अपने करियर को भी दांव पर लगा दिया है।”
रिया के दिमाग में एक-एक कर ये सारे सवाल चल रहे थे, कि तभी उसके फोन की घंटी बजी। उसने फोन उठाया तो देखा किसी अंजान नंबर से कॉल आ रहा था।
रिया ने फोन उठाकर हैलों बोला, दूसरी ओर से आवाज आई— "रिया शर्मा, तुम चाहो तो अगले छह महीनों में देश के नंबर वन चैनल स्टार खबर से आज ही जुड़ सकती हो। हमारे यहा डेस्क पर एंकर की जगह खाली है। लेकिन एक शर्त है।
रिया ने तुरंत पूछा— "शर्त… कैसी शर्त…?”
रिया का ये सवाल सुन फोन करने वाले ने तुंरत अपनी शर्त उसके सामने रख दी और बोला— “बस एक एक्सक्लूसिव ख़बर देनी होगी — गजेन्द्र सिंह के खिलाफ।”
ये सुनते ही रिया ने फोन काट दिया, पर इसके बाद उसके अंदर सवाल उठ खड़ा हुआ— "क्या वो हमेशा सिर्फ गजेन्द्र की छाया में रह पाएगी? या फिर जिंदगी भर उसे अपने छाया में रखते हुए सबके आरोपों से छिपा पायेगी?”
ये ही सब सोच उसने खुद से कहा — “मैं जो भी बनूं, किसी सौदे से नहीं बनूंगी… और जल्द ही ये पूरी दुनिया जान जायेगी, कि गजेन्द्र पर लगे सभी आरोप झूठे है। वो अपने ही परिवार की सियासी लड़ाई का शिकार हुआ है। इसके बाद वो वापस अपने घोड़ों के साथ मैदान में जब दौड़ेगा, तो लोग उसकी जीत के साथ सब भूल जायेंगे।”
दूसरी ओर रिया की तरह ही विराज के पास जज बनने का ऑफर फिर से आया। इस बार डायरेक्ट कॉल के साथ सामने वाले ने फिर से उसके सामने वहीं शर्त रखीं— “जयगढ़ रेस फिक्सिंग केस से हट जाओ, तुम्हें जज पक्का बना देंगे। वरना तुम्हारे विरुद्ध भी चार्जशीट तैयार है। बाकी तुम समझदार हो। हमें चंद सेकेंड लगेंगे… तुम जैसे लोगों को बर्बाद करने में।”
विराज अब की बार चुप नहीं रहा। इस बार उसने रिया का सहारा लिया और मीडिया के जरियें बार-बार गजेन्द्र के केस को लेकर आ रही धमकी का सरेआम लाइव टीवी पर खुलासा कर दिया, जिसने ना सिर्फ गजेन्द्र के केस को और मजबूत कर दिया बल्कि साथ ही लोगों की नजरों में गजेन्द्र के लिए सिंपथी की भावना भी उमड़ने लगी।
इस दौरान विराज ने एक बार फिर अपने शब्दों को दोहराया और बोला— “आज मेरे सामने दो रास्ते हैं — एक, जहाँ मैं जज बनूं और चुप रहूं। और दूसरा, जहाँ मैं सच को सामने लाऊं और गजेन्द्र जैसे सच्चे इंसान की लड़ाई में उतरूं और उसे जीत दिलाऊ। तो मैं आप लोगों के सहारे उस डायरेक्टर को भी अपना जवाब लाइव टीवी पर ही देना चाहता हूं, कि मैंने जज की कुर्सी को ठुकरा दिया है। मैं गद्दी नहीं चाहता, मैं सच की धार को तेज करना चाहता हूँ — ताकि भविष्य का सिंहासन सिर्फ नाम से नहीं, ईमान से तय हो।”
विराज के इस लाइव टीवी शो को गजेन्द्र और रिया दोनों ने एक साथ देखा और दोनों का विश्वास विराज पर लौट आया।
उस रात रिया और गजेन्द्र फिर आमने-सामने आए, तो रिया बोली— “मैंने कभी विराज को नहीं चाहा जैसे तुम्हें चाहा… लेकिन तुमसे सच छुपा कर मैंने अपना प्यार खोया। क्या मुझे माफ़ी का हक़ है?”
ये सुन गजेन्द्र ने धीरे से कहा— “मैंने सत्ता को नहीं चाहा था, सिर्फ सच को और तुम मेरी सच्चाई हो।”
इतना कहते-कहते दोनों फिर से पास आ गए और दोनों के बीच की बढ़ती नजदिकियां देख पीछे खड़ा विराज मुस्कुराया, और चुपचाप वहां से चला गया।
दूसरे ओर, मुक्तेश्वर को अपने पिता के कमरे से उस रात एक पुरानी अलमारी की चाबी मिली। ये वही चाबी थी जो उसकी मां ने मरने से पहले उसे छुपके से दी थी, लेकिन उसके पिता ने उससे ले ली थी।
मुक्तेश्वर ने चाबी उठाई और अपनी मां के पचास सालों से बंद पड़े कमरे में गया। जहां उसने अपनी मां का वो लाल रंग का गुप्त संदूक खोला… जिसमें थे "राज सिंहासन के उत्तराधिकार के नियम" — और उसमें लिखा था….
“जिसे जनता स्वीकार करे, वही उत्तराधिकारी होता है बेटा… जिंदगी में कभी अपने पिता जैसा मत बनना, जिसने औरतों को सिर्फ अपनी जागीर समझा और गरीबों को अपने पैर की जूती।”
इसके साथ ही उसमें मुक्तेश्वर की मां ने उनके पिता गजराज की जिंदगी के कई बड़े खुलासे किये थे, जिसे पढ़ मुक्तेश्वर सर से पैर तक हिल गया। पढने के बाद वो तुरंत उस दस्तावेज़ को लेकर गजेन्द्र के पास पहुंचा और उसे दिखाए।
आखिर क्या है लाल संदूक से मिले उस दस्तावेज में, जिसे पढ़ कांप गई मुक्तेश्वर की रूह?
उसे पढ़ने के बाद क्या करेगा गजेन्द्र?
अगली कौन सी नई चाल चलने वाला है राज राजेश्वर?
क्या सच में खत्म हो गया है विराज और रिया के अतीत को लेकर गजेन्द्र का शक या खेल अभी बाकी है?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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