तेज़ हवाएं महल की छतों से टकरा रही थीं। रात के सन्नाटे में जैसे कोई भयंकर तूफान आने को था… और इस तूफान का केंद्र सिर्फ एक था — सच...। ये वो सच था, जो पिछले 50 सालों से एक काले अंधेरे कमरे की अलमारी में बंद था। मुक्तेश्वर अपनी मां की आखरी इच्छा पढ़ सर से पैर तक हिल गया था। साथ ही इस चिट्ठी ने उसे ये भी बता दिया था, कि उसकी राजघराना महल की महरानी होने के बावजूद उसकी मां अपने ही महल की एक नौकरानी से अपनी जिंदगी का सब कुछ हार गई थी।

दूसरी और रिया शर्मा अपने लैपटॉप पर गजेन्द्र के केस से जुड़ी मीडिया कॉन्फ्रेंस को लेकर काम कर रही थी। तभी अचानक उसके फोन पर एक अज्ञात नंबर से कॉल आया। उसने फोन उठाया— "हैलों कौन?”

दूसरी ओर से भारी-भरकम, धमकी भरी आवाज आई— “अगर नहीं चाहती कि कल की सुबह के अखबार में तुम्हारी फोटो शोक-सभा के लिए छपे, तो कल की रिपोर्ट अपने चैनल पर मत चलाना और गजेन्द्र के केस से दूर रहो, वरना मिट्टी में मिला देंगे…।”

सामने वाले की धमकी सुन रिया कुछ सेकेंड तक चुप रही, लेकिन फिर धीरे से बोली — “डर उन्हें लगता है, जिनका ज़मीर मरा होता है। मैं रिपोर्टर हूं, गूंगी गवाह नहीं। और अगर इतना ही दम है ना तेरी बातों में तो फोन रख और सामने आ।”

रिया गरज कर बोलीं और फोन काट दिया। लेकिन फोन के कटते ही उसकी सांसें कांप गईं। उसने बालकनी से बाहर देखा, तो सामने की दीवार पर लाल रंग में किसी ने लिखा था।

“राजघराना की डूबती नांव... अगली बारी तुम्हारी है।” 

दीवार पर लाल रंग से लिखी इस एक लाइन ने रिया को पूरी रात नहीं सोने दिया। अगली सुबह जयगढ़ प्रेस क्लब में राजघराना के मुद्दे को लेकर जबरदस्त हलचल मची हुई थी। राजघराना के लोग आज पहली बार रिया शर्मा की रिपोर्टिंग पर आधिकारिक प्रतिक्रिया देने जा रहा था। इस दौरान रिया खुद लोगों के सवाल राजघराना के लोगों के आगे लाइव टेलिकास्ट पर रखने वाली थी। 

ऐसे में सुबह लाइव, कैमरा एक्शन मोड में सबकुछ शुरु हुआ। एक टक सबकी नज़र उस मंच पर और एक लंबे ब्रैक के बाद टीवी पर लौटी रिया के ऊपर थी। 

मंच पर रिया के साथ फिलहाल मुक्तेश्वर सिंह खड़ा था। उसका चेहरा शांत, संयमी लेकिन खुद के सवालों में काफी उलझा हुआ लग रहा था। तभी रिया ने माइक उठाया और सीधे कैमरे की ओर देखा और देखते हुए बोलीं…

“राजगढ़ का राजघराना… जिसे असल में जनता ने खड़ा किया, वो कभी जनता का हितैशी नहीं हुआ। आज तक राजघराना महल में हमने सत्ता देखी है, षड्यंत्र देखे हैं... पर जब पहली बार एक औरत ने इस सत्ता को चुनौती दी — वो भी अपने सवालों से, तो कुछ लोग डर गए।”
 
रिया ने इस अंदाज में अपने लाइव की शुरूआत करते हुए एक ऐसा खुलासा किया, जिसे सुन गजेन्द्र के भी पैरों तले जमींन खिस गई। वो भागता हुआ मंच पर चढ़ा, रिया को यहां वहां चारों तरफ से देख उसका माथा चुमने लगा। तभी रिया ने उसको खुद से दूर करते हुए कहा…

“हमारे आज के इस लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस को बंद करने के लिए इन लोगों ने मुझे यानि आपकी रिया शर्मा को जान से मारने की धमकी दी। इनका इरादा और मांग सिर्फ इतनी थी मैं ये लाइव सच आप लोगों को कभी ना दिखा पाऊं। लेकिन मैं इन लोगों को बताना चाहती हूं, कि अगर सच की आवाज़ है, तो वो आज या कल बाहर आकर रहेगी।”

“If truth has a voice… let her speak.”

रिया की इस एक लाइन के बाद पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, लेकिन इस तालियों की गूंज ने कई पुराने ज़ख्म खोल दिए, ख़ासकर राज राजेश्वर के…क्योंकि रिया की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबसे ज्यादा सवाल राजेश्वर और गजराज को लेकर ही पूछे गए।

रिया के इस लाइव तमाशे को देख राज राजेश्वर का खून खौल उठा और उसने अपनी अगली चाल चलने की ठान ली। इस वक्त राज राजेश्वर सारी दुनिया से छिपा महल की लाइब्रेरी मे बैठा था। जहां वो कुर्सी पर बैठा एक फाइल पढ़ रहा था, तभी उसका फोन बचा। दूसरी ओर से जिस शख्स की आवाज आई उसे सुन राज राजेश्वर चौक कर कुर्सी से खड़ा हो गया।

“राघव भोंसले – त...तुम, तुम कहां से फोन कर रहे हों? तुम तो इस वक्त जेल में हो ना!”

राज राजेश्वर ने अपनी कांपती हुआ आवाज में कहा, तो भोंसले ने तुरंत पलटकर कहा— “दुनिया में कहीं कोई जेल इतनी बड़ी नहीं है, जो मुझे ज्यादा दिन तक अंदर रख सकें। हाहाहाहा।”

दरअसल भोंसले को हाल ही में उसकी तबियत खराब होने के चलते कुछ दिनों की मेडिकल बेल मिली थी, जिसके तहत दो पुलिसकर्मी 24 घंटे उसके घर और उस पर निगरानी रखते थे। राघव भोंसले ने जैसे ही ये बात राज राजेश्वर को बताई वो खुशी से झूम उठा।

“भोंसले… वक़्त आ गया है वापसी का। सबको फिर से घुटनों पर लाना है… और इस बार कोई चाल नहीं चलेंगे, सीधे खून बहेगा।”

जहां एक तरफ राजघराना और अपने पिता के ठुकरा देने के बाद राज राजेश्वर बगावत पर उतर आया था, तो वहीं दूसरी ओर महल के बाहर रिया अपनी रिपोर्टिंग जारी रखती है और इस दौरान वो उस काली बहीखाता किताब से लेकर असली वसीयत और सिंडीकेड चार्टर घोटाले… सबका खुलासा कर देती है। 

ये सब देख राज राजेश्वर के साथ-साथ अब गजराज को भी उससे नफरत हो जाती है। कुछ 4 से 4.30 घंटों में रिया की प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म होती है, जिसमें वो मुक्तेश्वर के अलग-अलग तरह से सवाल कर राजघराना के सारे राज पूरे राजस्थान के सामने खुलवा देती है। रिया के इस लाइव शो के बाद सिर्फ राजस्थान ही नहीं पूरा देश गजराज की अय्याशी से लेकर राज राजेश्वर के मर्दों के शौक… सबके बारें में जान जाता है।

रिया बिना कुछ किये पूरे राजघराना को ना सिर्फ सबकी नजरों में गिरा देती है, बल्कि साथ ही गजेन्द्र को राजा बनाने की कुर्सी और मजबूत भी कर देती है। रिया के साथ बैठा मुक्तेश्वर जहां इस लाइव कॉन्फ्रेस से संतुष्ट होता है, तो वहीं गजेन्द्र भड़क जाता है और कहता है—

"ये तुमने क्या किया रिया? तुमने तो कहा था, कि तुम सिर्फ तुम्हें धमकी देने वालों को डराना चाहती हो! फिर ये सब क्या है, तुमने मेरे पूरे खानदान का नाम इस तरह हर घर में उछालकर हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। आखिर क्यों?”

रिया गजेन्द्र का सवाल सुन उसे समझाने के लिए आगे बढ़ती है, लेकिन वो उसका हाथ झटक उसे धक्का देकर वहां से चला जाता है। गजेन्द्र की इस हरकत से जहां रिया को चोट लगती है, तो वहीं उसे जख्मी देख विराज के दिल में दर्द होने लगता है और वो खुद से कहता है— "रिया की इस हालत का जिम्मेदार कहीं ना कहीं तू ही है विराज… ना तूने वो सगाई तोड़ी होती और ना रिया इस गजेन्द्र के प्यार में पड़ती। खैर ये मैं क्या सोच रहा हूं… गजेन्द्र कोई बुरा इंसान नहीं है।"

गजेन्द्र के गुस्सा होने के बाद मुक्तेश्वर अपने बेटे को समझाने चला गया, जिसका बाद वहां सिर्फ रिया और विराज ही रह गए। रिया के पैर में चोट लगी थी, वो चल भी नहीं पा रही थी, ऐसे में विराज ने उसे गोद में उठाया और कमरे तक ले जाने लगा। 

लेकिन जैसे ही वो रिया को लेकर उसके कमरे में पहुंचा तो देखा गजेन्द्र अपने दादा गजराज के साथ वहां पहले से मौजूद था। रिया को विराज की गोद में देख गजेन्द्र के तन-बदन में आग लग गई, क्योंकि अब वो विराज और रिया का अतीत जानता है।

ये रात रिया और गजेन्द्र के रिश्तें पर किसी काली अमावस जैसी साबित हुई। हद तो तब हो गई जब उसी रात रिया को फिर से धमकी मिली। इस बार उसके कमरें की खिड़की पर किसी ने पत्थर फेंका और मौके से भाग गया। रिया ने दौड़कर पत्थर उठाया, तो देखा उसके साथ में एक नोट भी था।

“रिपोर्ट रोको, वरना अगली मौत की खबर तेरे आशिक की होगी… वैसे हां, तेरे लिए एक खुशखबरी है- तेरे किस आशिक को मारना है, ये तू चुन सकती है। बता दे हम उसे ही मार देंगे, हाहाहाहा।”

ये चिट्ठी पढ़ रिया के हाथ-पैर फूल गए, क्योंकि गजेन्द्र और उसकी प्रेम कहानी का तो सबको पता था, लेकिन विराज के साथ उसके अतीत की कहानी गिनती के चार लोग जानते थे। मुक्तेश्वर, गजेन्द्र, विराज और वो खुद… तो इस धमकी देने वाले को इस बारें में कैसे पता। 

ये सोच-सोच कर रिया का सर फटने लगा और एक बार फिर उसके शक की सुई मुक्तेश्वर की तरफ घूम गई, कि कहीं वो सत्ता की कुर्सी के लिए अपने ही बेटे को बर्बाद करने की प्लानिंग तो नहीं कर रहा। 

रिया के मन में इस समय हजार सवाल थे, लेकिन फिर भी वो डरी नहीं और उसने आधी रात अपना LIVE कैमरा ऑन किया। इस वक्त देश की सबसे बड़ी और खतरनाक जर्नलिस्ट रिया शर्मा सोशल मीडिया पर लाइव थी, लेकिन वो जो कहने आधी रात लाइव आई थी… उसने पूरी दुनिया को फिर से हैरान कर दिया— “मैं डरूंगी नहीं। अगर मारकर या जिंदा मिट्टी में गाड़ दी जाऊं ना, तो भी मैं चुप नहीं रहूंगी।”

रिया ने अपने उस लाइव के साथ एक हैशटैग #JusticeForGajendra भी टैग किया, जो कुछ ही देर में पूरे देश में इस कदर ट्रेंड करने लगा, कि रिया किसी हीरों की तरह चर्चाओ में छा गई।
 
रिया पर हुए हमले से लेकर उसके लाइव तक की बाते गजेन्द्र तक पहुंची, जिसे सुन वो काफी परेशान हो गया और इस बारें में बात करने देर रात विराज के घर पहुंचा और पूछा— “क्या तुम इस केस से हटना चाहते हो?” 

विराज ने गजेन्द्र के इस सवाल के जवाब में अपना अगला सवाल दाग दिया और बोला— “क्या तुम चाहते हो मैं हट जाऊं?”
 
गजेन्द्र ने हल्की सी नजरें झुकाई और बोला— “नहीं। लेकिन अगर तुम चाहते हो, ते मैं मना भी नहीं करूंगा… क्योकि इस वक्त हम तीनों के बीच हालात ही कुछ ऐसे हो गए है। लेकिन मैं ये कभी नहीं भूल सकता कि तुम मेरी ढाल हो विराज… भाई नहीं, साया हो। मैं हमारे रिश्तें में ऐसी दरार नहीं चाहता।”

दोनों कुछ देर तक एक-दूसरे की आंखों में देखते रहे। दो दुश्मन जैसे दोस्त, या दो दोस्त जैसे दुश्मन...फिलहाल उन दोनों की नजरों को देख कुछ भी अंदाजा लगाना जरा मुश्किल था। 

दूसरी तरफ अपने लाइव सेशन के बाद कमरे में अकेली बैठी रिया के दरवाजें पर अचानक दस्तक होती है। आवाज सुन रिया चौक जाती है— "इतनी रात को कौन हो सकता है?”

ये ही बड़बड़ाती हुई रिया दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ती है, लेकिन तब तक कोई दरवाजे के नीचे से एक चिट्ठी उसके कमरे में फेंक कर भाग जाता है। रिया ये देखती है और दौड़कर दरवाजा खोलती है।

"कौन है… कौन है… मैंने पूछा कौन है— जवाब क्यों नहीं देते कायर इंसान?”

इतना कह रिया उस बंद लिफाफे को लेकर अंदर चली गई। रिया उसे खोलती है, तो देखती है कि उसमें वो डिटेल है, जो “सिंडिकेट चार्टर की असली कॉपी के साथ पूरा ब्यौरा दिया गया है।”

रिया उसके हर एक पेज को बारिकी से पढ़ती है, और देखती है कि उसमें दस्तखत हैं — राज राजेश्वर, राघव भोंसले, और अज्ञात तीसरा नाम… जो गायब है… या यू कहें कि उसके नाम को गायब करने के लिए उन पेपर पर वहां जानबूझ कर काली स्याही लगाई गई थी। 

रिया ये सब पढ़कर सिर्फ चौक ही नहीं जाती, बल्कि उसे गजेन्द्र की बेगुनाही में अब सबसे ठोस सबूत मिल जाता है, जो बताता है कि इस मामले के तहत राजघराना के लोगों ने बहुत से बेगुनाहों को रेस फिक्सिंग का शिकार बनाया है। 

रिया उस लिफाफे में देखती है, तो उसके साथ एक चिट्ठी भी थी, जिसमें लिखा था— “गजेन्द्र सिंह को हटाओ, वरना ये राज… तुम्हारी मौत के साथ दफन हो जायेगा और तुम चाहकर भी अपने दूसरे आशिक को नहीं बचा पाओगी।”

रिया को ये तो समझ नहीं आता कि उसकी लाइफ के लव-ट्रेंगल के बार में उस धमकी देने वाले को कैसे पता? लेकिन वो ये जरूर समझ जाती है, कि उसकी जान को खतरा गजेन्द्र की वजह से नहीं, गजेन्द्र के सच की वजह से है, लेकिन वो फिर भी हार नहीं मानती।

आज पूरे देश में हुई राजघराना की छीछालेदर के बाद गजराज सिंह की तबीयत लगातार बिगड़ने लगती है। आधी रात को गजराज को एक बार फिर राजगढ़ के सीटी अस्पताल ले जाना पड़ता है, जहां गजराज की हालत लगातार बिगड़ रही थी, ऐसे में ICU में जाते-जाते उसने एक बात कही…

“मिट्टी में दबे सच को मत उखाड़ो… वरना राजघराना अगली पीढ़ी तक पहुंचने से पहले ही मिट्टी में दबा दिया जाएगा। ऐसा मत करों, प्लीज…बेटा। सुधार आज से भी किया जा सकता है, अतीत खोदने से सिर्फ दर्द मिलेगा।”

जहां एक तरफ ये सुनते ही मुक्तेश्वर और गजेन्द्र के चेहरे का रंग उड़ जाता है, तो वहीं दूसरी ओर गजराज रिया से मुलाकात करने की बात कह… सबकों और भी हैरान कर देता है। 

दिन का सूरज निकलने और रात ढ़लने को थी, ऐसे में फिलहाल रिया का अस्पताल आना मुमकिन नहीं था। दूसरी ओर अगली सुबह गजेन्द्र के केस में कोर्ट की अगली सुनवाई का दिन था। विराज, गजेन्द्र और रिया तीनों साथ कोर्ट पहुंचते हैं, जहां मीडिया के कौमरों से लेकर माइक तक सब उन तीनों को घेरा लेते है।

तभी सबसे आगे खड़ा एक पत्रकार चिल्लाकर पूछता है— "रिया जी, आप इस केस से पीछे क्यों नहीं हटतीं?"

रिया मुस्कुराती है और कहती है— "क्योंकि मिट्टी में दबी सच्चाई को अगर मैं नहीं खोदूंगी… तो अगली पीढ़ी अंधेरे में रहेगी और एक पत्रकार होने के नाते ये मेरा कर्तव्य भी है।"

पीछे से मुक्तेश्वर आता है, उसके कंधे पर हाथ रखता है और कहता है— “और मैं कहता हूं — Let her speak… Let Truth Speak...”

 

आखिर किस सच की बात कर रहा है मुक्तेश्वर? 

क्या अब रिया की रिपोर्टिंग ही उसकी जान की सबसे बड़ी कीमत बन जाएगी? 

क्या राघव भोंसले की वापसी से सिंडिकेट की जड़ें और गहरी होंगी? 

और उस तीसरे दस्तखत का रहस्य क्या है, जो सिंडिकेट चार्टर में गायब है??

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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