आज की सुबह मौसम बड़ा अजीब था, दिन के उजाले में भी रात सा अंधेरा था। सूरज की रोशनी दूर-दूर तक कहीं नहीं दिख रही थी, आसमान में बादल भी काली घटा बनकर छाये हुए थे। अस्पताल की खिड़की से झांकती हल्की सी रोशनी ICU के फर्श पर उतर आई थी। मशीनों की बीप… कभी धीमी, कभी तेज़... कमरे में दवाइयों की बदबू और मरते हुए आत्मविश्वास की खामोशी गजराज के दिल को चीर रही थी।
बिस्तर पर लेटे गजराज सिंह की आंखें खुली थीं। शरीर निढाल-बेजान था, लेकिन चेहरा जिंदा था और ठीक सामने कुर्सी पर बैठा था मुक्तेश्वर — खामोश, लेकिन अंदर सवालों का तुफान उमड़ रहा था, जो उसे अपने पिता गजराज से पूछने थे। कि आखिर उसने उसकी मां के साथ ऐसा क्या किया था, कि वो उससे इतनी नफरत करती थी और नहीं चाहती थी, कि उनका बेटा अपने बाप की तरह बने या राज करें।
गजराज ने आंखें आधी खोलते हुए कांपती आवाज़ में कहा - “मुक्तेश्वर… अभी भी नाराज़ है मुझसे?”
मुक्तेश्वर ने एक नजर अपने पिता गजराज की तरफ देखा, लेकिन इस वक्त भी उसका चेहरा सख्त था और फिर बोला— “अब नाराज़गी की उम्र नहीं रही, पिताजी। अब तो बस सच्चाई का वक्त है।”
गजराज की आंखें झपकीं, जैसे किसी काले रहस्य का दरवाज़ा खुलने वाला हो— “तेरी मां… रानी होते हुए भी, कभी मेरे साथ नहीं खड़ी थी, वो मेरे हर फैसले से नफरत करती थी। लेकिन तेरी पत्नी गरीब घर की थी… ना दौलत का शौक, ना शौहरत और गहनों का…बस वो हमेशा तेरे आगे ढ़ाल की तरह खड़ी रहती...और ये मेरी जिंदगी की हार थी। क्योंकि उसने ही सबसे पहले तेरे जहन में राजघराना के सच को बाहर लाने का फितूर भरा था...और फिर मेरा खून खौल उठा।”
ये सुनते ही मुक्तेश्वर की आंखों में एक नफरत की लकीर दौड़ गई। जानकी का नाम उसके भीतर बिजली की तरह दौड़ा...और उसे वो आखरी पल याद आया जब उसने जानकी के मृत शरीर को मुखाग्नि दी थी। उसी पल को सोचते हुए मुक्तेश्वर बोला— “कहिए पिताजी… आज सब कह दीजिए। मैं सुन रहा हूं।”
गजराज हंसा, लेकिन उसकी इस हंसी में वो गूंज नहीं थी, जो सिंहासन पर बैठते हुए उसके चेहरे पर आती थी। ये हंसी कफन ओढ़े हुई थी। मानों जैसे उसे भी अपने और अपने बेटे के रिश्ते की चिता जलती हुई दिखाई दे रही थी, वो धीरे से टूटती हुआ आवज में बोला….
“हां ये सच है कि मैंने…मैंने तेरी मां को मरवाने का हुक्म दिया था और तेरी बीवी की मौत के पीछे भी मेरा ही हाथ है। पर तेरी मां को मैंने विरासत बचाने के लिए मारा था और तेरी उस दो कौड़ी की गरीब बीवी को राज राजेश्वर का सच छुपाने के लिए मारा। उसे नहीं मारता तो वो दुनिया को बता देती कि उसका उस भीखूं के साथ चक्कर है।”
ये सुन मुक्तेश्वर भौचक्का हो गया और लगभग चीखते हुए बोला— “क्या? तो इसका मतलब आपने मेरी बीवी को सिर्फ इसलिए मार दिया ताकि आपकी झूठी विरासत का सच सामने ना आ जाये! इसके लिए आपने मेरे एक महीने के बेटे को अनाथ और मुझे बेजान कर दिया। छी… घिन्न आ रही है मुझे आपसे...”
बेटे के ऐसे नफरत भरे शब्द सुन गजराज अस्पताल के बैड पर लेटे हुए भी गरज पड़ा, "हाँ, इसलिए मारा…तूने मेरे खून की शान मिटा दी थी। एक गरीब लड़की से शादी कर, तूने मेरे खिलाफ बगावत की, तो मैंने उसी दिन जानकी को खत्म करने का फैसला कर लिया था, उसके हमारे घर में आने के बाद मेरी नफरत उससे हर दिन-रात बढ़ती गई और एक दिन मैंने उसे खत्म करने की प्लानिंग कर डाली।
इतना कह गजराज थोड़ा रुकता है, कांपता है… और फिर आगे कहता है— “…लेकिन मैं देर से पछता गया...। उसकी मौत के बाद जब मैंने तुझे टूटते देखा मैं टूट गया और बस उस एक पल की आस की भगवान से भीख मांगने लगा कि काश मैं वो हुक्म वापस ले पाता… मगर अब बहुत देर हो चुकी थी।”
मुक्तेश्वर ये सब सुन बुरी तरह से टूट गया और फटी आंखों से हजार सवालों की धार लिए अपने पिता पर वार करने को तैयार था।
“आपने… मेरी पत्नी… मेरे बेटे की मां को…ऐसी दर्दनाक मौत क्यों दी..? और फिर राज राजेश्वर ने मुझसे क्यों कहा कि वो मेरे बच्चे को जन्म देते समय मरी थी? आखिर क्यों?”
बाईस साल बाद एक बार फिर मुक्तेश्वर को इस तरह टूटते और बिखरते देख गजराज की आंखों से आंसू गिरने लगते हैं, वो हाथ जोड़ता है और कहता है।
“माफ कर दे बेटा…मैंने तेरे आंसुओं की कीमत पर पिछले बाइस सालों से राजघराना की इमारत और उसकी शान को खड़ा रखा है। मैंने तुझसे तेरा सब कुछ छीन लिया… ताकि दुनिया मुझे ताकतवर समझे।”
मुक्तेश्वर कुछ देर तक बस देखता रहा, बिस्तर पर लेटे उस आदमी को जो उसका बाप था, राजा था… और अब एक अपराधी बनकर उसके सामने पड़ा, माफी की भीख मांग रहा था।
मुक्तेश्वर धीरे से खुद को संभालते हुए खड़ा हुआ और बोला, “आपने सिर्फ मेरी पत्नी जानकी को नहीं मारा था, पिताजी। उस दिन आपने मेरा हर रिश्ता, मेरा हर यकीन, मेरा हर भविष्य मार डाला। आज मुझे मेरी मां की हर बात का मतलब समझ आ रहा है, कि वो क्यों कहती थी कि मैं आपसे दूर रहूं”
ये सुनते ही गजराज उस अस्पताल के बैड से उठता है और मुक्तेश्वर के पैरों में गिरकर कहता है, “अब तुझ पर है मुक्ति... मुझे माफ करे या… सज़ा दे।”
मुक्तेश्वर धीरे से झुकता है और अपने पिता के कानों के पास जाकर कहता है— "अब बेटा नहीं… एक गवाह बोलेगा, और गवाही का नाम होगा— इंसाफ। मेरी मां के हिस्से का इंसाफ, मेरी पत्नी जानकी की दर्दनाक मौत का इसांफ। याद रखिये… जहां सिंहासन लहू से सींचा गया हो, वहां इंसाफ खून की गवाही मांगता है..."
जहां एक तरफ अपने बेटे मुक्तेश्वर की अदालत में गजराज को माफी नहीं मिलती, वहीं दूसरी ओर आज गजेन्द्र के केस की भी सुनवाई शुरु होने वाली थी।
अदालत की बड़ी सी गैलरी में बेताबी से लोग इकट्ठा हो चुके थे। सामने जज की कुर्सी खाली थी, लेकिन सब जानते थे, आज का फैसला इतिहास लिखेगा। कैमरे, पत्रकार, दर्शक, सबकी निगाहें सिर्फ एक दिशा में थीं — गजेन्द्र सिंह, जो अब महज़ एक रेसर नहीं, बल्कि एक ऐसा वारिस बन चुका था जो अपनो की साजिश में फंसा था।
रिया शर्मा, गजेनद्र के साथ ही कोर्ट आई थी। रिया के पैर में चोट लगीं था, लेकिन इसके बावजूद उसकी आँखों में वही आग थी। वहीं विराज राठौर अपनी केस फाइल्स लेकर तैयार खड़ा था। कोर्ट में सबकी निगाहें दरवाज़े की ओर दौड़ गईं जब मुक्तेश्वर सिंह अपनी राजसी चाल के साथ कोर्ट में दाखिल हुआ। इस वक्त उसके हाथ में एक फोल्डर… और चेहरे पर एक नई तरह की नर्मी और सख्ती का संगम साफ नजर आ रहा था, मानों जैसे उसे कोर्ट का फैसला पता हो।
तभी जज साहब की भी फाइनली कोर्ट में एंट्री हो गई, जिसके बाद कार्यवाही शुरू होती है। जज साहब काफी गंभीर आवाज में कहते है— "कोर्ट की कार्रवाई शुरू की जाए। केस नंबर 2764/RAJ — गजेन्द्र सिंह बनाम राजस्थान रेसिंग बोर्ड। अभियुक्त पर पाँच करोड़ की रेस फिक्सिंग, धोखाधड़ी और साजिश के आरोप हैं।"
विराज धीरे से अपनी कुर्सी से खड़ा होता है और अपना पक्ष रखना शुरु करता है।
“माइ लॉर्ड, मैं इस केस में बचाव पक्ष यानि गजेन्द्र सिंह का वकील हूं। और कोर्ट की आज की फाइनल कार्रवाई में मैं साबित करूंगा कि ये केस केवल एक निर्दोष युवक के चरित्र की हत्या है। असली साजिश पर्दे के पीछे उसके अपनो की रची हुई है। दरअसल असल में ये कहानी जायदाद, राजघराना की सत्ता की कुर्सी और लालच की है, जिसका आज फाइनली खुलासा होगा और असली देषी का चेहरा सामने आयेगा।”
विराज की ये बात सुनते ही अदालत में सनसनी फैल जाती है। इसके बाद जब विराज एक फोल्डर जज को सौंपता है, तो सबकी निगाहें जज के चेहरे और शब्दों पर टिक जाती है। वहीं जज साहब जब उस फोल्डर को खोलते है तो उसमें रखीं सिंडिकेट चार्टर की कॉपी जिसमें दो साजिशकर्ताओं के नाम साफ हैं और तीसरा नाम धुंधला है, ये देख तुंरत सवाल करते है।
“यह दस्तावेज क्या साबित करते हैं?”
जवाब में विराज प्रताप राठौर कहता है— “माइ लॉर्ड, यह चार्टर एक रेसिंग सिंडिकेट का है, जो अवैध सट्टेबाज़ी और ब्लैकमेलिंग में लिप्त है। इस फाइल में किये गए दस्तखत में राज राजेश्वर सिंह, राघव भोंसले का नाम तो क्लीयर है… लेकिन तीसरा नाम जानबूझकर ब्लैक मार्कर से मिटाया गया है। लेकिन आज हम साबित करेंगे कि वह नाम कोई और नहीं, गजराज सिंह का है।”
ये सुनते ही पूरे कोर्ट में हड़कंप मच जाता है। अस्पताल के कमरे में बैड पर लेटे टीवी पर लाइव कोर्ट की कार्यवाही देख रहे गजराज का चेहरा भी सफेद पड़ जाता है। दूसरी ओर रिया ने इसे लाइव कर सोशल मीडिया को भी अपने साथ जोड़ लिया। रिया सब कुछ लाइव ट्वीट कर रही थी।
तभी विराज बतौर गनाह मुक्तेश्वर को कटघरे में बुलाता है। मुक्तेश्वर सिंह धीमी चाल के साथ खुद मे ही खोया हुआ आता है और कटघरे में खड़ा हो जाता है, जिसके बाद विराज उससे अपना पहला सवाल करता है।
"मुक्तेश्वर जी, कृपया कोर्ट को बताएं कि क्या आप जानते हैं कि इस पूरे षड्यंत्र की शुरुआत कब और कैसे हुई?"
मुक्तेश्वर विराज की तरफ देखते हुए काफी गंभीर लहजे में जवाब देता है— “जज साहब… ये कहानी आज से नहीं… चालीस साल पहले शुरू हुई थी, जब एक राजा अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए अपने ही बेटे के भविष्य से खेलने लगा और मैं उस राजा का वो बदनसीब बेटा हूं… जिसने अपने बाप की सत्ता और कुर्सी के लालच में पहले अपनी मां को खोया और फिर बीवी को… और इसके बाद मैंने अपनी पहचान भी खो दी। जज साहब आज, मैं उसी खून की गवाही देने आया हूं, जिसे मेरे बाप ने बहाया।”
मुक्तेश्वर के इस बयान के बाद कोर्ट में फुसफुसाहटें गूंजने लगती हैं। पास में खड़ा विराज अपना अगला सवाल करता है— “क्या आप साफ़-साफ़ बता सकते हैं कि आप किसकी बात कर रहे हैं?”
मुक्तेश्वर बिलकुल सीधे और बिना हिचके कहता है— "गजराज सिंह, मेरे पिता। उन्होंने मेरी मां जानकी की हत्या का आदेश दिया था। ये बात उन्होंने खुद मेरे सामने स्वीकार की है… मेरी आंखों में देखकर, ICU में, कि उन्होंने मेरी मां और पत्नी को खत्म करने का आदेश दिया था।"
ये सुन जज सर से पैर तक हिल जाता है और हैरान लहजे में पूछता है— "क्या आपके पास अपनी बात को जायज ठहराने का कोई सबूत है?"
मुक्तेश्वर तुरंत अपने फोल्डर में से पेन ड्राइव निकालते हुए उसे विराज को दे देता है, जिसे विराज जज तक पहुंचा देता है और फिर मुक्तेश्वर कहता है— “जी, यह पेन ड्राइव अस्पताल के CCTV फुटेज से लिया गया है, जिसमें ICU में हुई मेरी और मेरे पिता गजराज सिंह की बातचीत रिकॉर्ड हुई है।”
ये देख गजेन्द्र और रिया की आंखों में आंसू थे, क्योंकि ये सबूत अब कहीं ना कहीं गजेन्द्र के केस को और मजबूत बना देते हैं।
विराज इस सबूत को पेश करने के बाद अपना अगला पक्ष रखने ही वाला होता है, कि तभी वहां कुछ ऐसा होता है कि कोर्ट की कार्यवाही में अचानक से सबसे चौंका देने वाला मोड़ आ जाता है, और ये मोड़ गजेन्द्र की पूरी दुनिया ही पलट देता है।
दरअसल कोर्ट में अचानक से राज राजेश्वर की एंट्री होती है, पुलिस भागकर उसे गिरफ्तार करने की वाली होती है, कि तभी वो कहता है….
"क्या विराज प्रताप राठौर, तुम्हें लगता है कि तुम ये ड्रामा कर के गजेन्द्र को बचा लोगे? नहीं… क्योकि मैं आज और अभी यहां साबित कर सकता हूं कि वो पैसा उसी के अकाउंट में गए थे!"
घुटनों तक सफेद धोती में, गले में सोने की चेन और आंखों में वही पुराना बदला और जुबान पर जहर लिए राज राजेश्वर कोर्ट में दाखिल होता है और कहता है— "मैं सरेंडर करने आया हूं, लेकिन साथ ही आज मैं यहां अपना भी पक्ष रखूंगा।"
राज राजेश्वर अपनी बात पूरी करता उससे पहले जहां एक तरफ पुलिस उसे हथकड़िया पहना देती है, तो वहीं दूसरी ओर रिया अचानक खड़ी होकर बोलती है— "और मैं साबित कर सकती हूं कि उस अकाउंट को फर्जीवाड़े से ऐड किया गया था। ये देखिए, बैंक से मिले ट्रांज़ैक्शन रिकॉर्ड, जिन पर डिजिटल सिग्नेचर तक क्लोन किए गए है।"
रिया की बात को जोड़ते हुए विराज अपना पक्ष कोर्ट के सामने रखता है, “राज राजेश्वर, क्या आप इस कोर्ट को बता सकते हैं कि आप सिंडिकेट का हिस्सा क्यों बने? अब जब आप कोर्ट आ ही गए है, तो आइये कटघरे में...जज साहब इनकी गिरफ्तारी से पहले मैं इनसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूं।”
"इजाज़त है…” जज साहब की इजाज़त के बाद विराज अपना सवाल राज राजेश्वर के आगे फिर से दोहराता है— "थैक्यूं माइ लॉड, तो बताइये मिस्टर राज राजेश्वर जी, आप सिंडिकेट का हिस्सा क्यों बने?
जवाब में राज राजेश्वर चिल्लाते हुए बोला— “क्योंकि मुझे भी राज करना था! क्योंकि मैं भी गजराज का खून हूं… लेकिन राजघराना का राज सिर्फ मुक्तेश्वर के हिस्से लिखा था!”
राज राजेश्वर की आवाज सुन जज ने गंभीर लहजे में कहा— "Enough! इस कोर्ट में चीखने से कोई सच नहीं बदलता। अदालत फैसला सुनाएगी सबूतों के आधार पर। तो आप सवालों के जवाब अपने शब्दों और आवाज को संभाल कर दे।"
कई घंटों की बहस, गवाही और सबूतों के बाद… गजेन्द्र का केस जिस पर आज फाइनल सुनवाई होनी थी, वो और भी ज्यादा उलझ जाता है। ऐसे में जज इस मामले पर आज की कार्यवाही का फैसला सुनाते हैं।
"कोर्ट इस नतीजे पर पहुंची है कि गजेन्द्र सिंह का केस एक बार फिर से शुरुआत से जांच-पड़ताल के लिए भेजा जाता है। भले ही एक नजर से गजेन्द्र पर लगे सभी आरोप झूठे नजर आ रहे हों, लेकिन इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता है कि गजेन्द्र को पैसों का लालच था और वो उसके लिए कुछ भी कर सकते थे। तो ये कोर्ट इस मामले की दुबारा जांच का ऑर्डर देती है, हालांकि इस दौरान गजेन्द्र की बेल मंजूर रहेगी उन्हें जेल में नहीं रखा जायेगा।"
जज साबह ने आगे कहा— “साथ ही, राज राजेश्वर और राघव भोंसले पर सिंडिकेट चार्टर और ब्लैकमेलिंग के तहत केस दर्ज करने का आदेश भी कोर्ट की ओर से दिया जाता हैं।”
कोर्ट के इस फैसले ने सबकों सर से पैर तक हिला दिया। कहा आज रिया और मुक्तेश्वर गजेन्द्र की बेगुनाही साबित होने का सपना लिए आये थे और कहा, राज राजेश्वर ने अपने एक झूठे बयान से पूरे केस को ही उलझा दिया। कोर्ट के फैसले के बाद गजेन्द्र, विराज और रिया की आंखों में आग की ज्वाला फट पड़ती है, लेकिन फिलहाल उनके पास खामोश रहने के अलावा और कोई ऑपशन नहीं था।
कोर्ट की कार्यवाही के बाद जब पुलिस राज राजेश्वर को गिरफ्तार कर के ले जा रही होती है, तो वो रिया और गजेन्द्र की आखों में देखते हुए कहता है, अभी तो असली खेल शुरु हुआ है… और अभी तो मैंने अपना पहला पत्ता फेंका है, तुम आगे आगे देखों मैं क्या करता हूं।
एक तरफ कोर्ट और राज राजेश्वर के आज के तमाशे ने विराज के सारे सबूतों पर पानी फेर दिया था। तो वहीं दूसरी ओर गजराज सिंह व्हीलचेयर में आंखें बंद किए बैठा ये सारा तमाशा लाइव टीवी पर देख रहा था। गजेन्द्र केस का इस तरह पलट जाना उसके लिए किसी सुकून भरे सपने से कम नहीं था।
तभी मुक्तेश्वर धीरे से उसके पास आया और बोला— "आज मैंने इंसाफ के लिए तुम्हारे खिलाफ गवाही दी… लेकिन फिर भी इंसाफ नही हुआ। मेरा बेगुनाह बेटा आजाद नहीं हुआ। क्या अब तुम खुद बताओंगे कि राज राजेश्वर की इस हरकत से तुमने क्या खोया और क्या पा लिया। कल तक तो तुम मेरे… यानि अपने ही बेटे के पैरों में गिरकर भीख मांग रहें थे, तो फिर राज राजेश्वर को इस तरह कोर्ट में भेजने का मतलब जान सकता हूं।"
मुक्तेश्वर के दिल में अपने लिए नफरत के अंबार को देख गजराज की आखों से आंसू निकल पड़ते है, और वो जवाब देने के लिए खड़ा होता है, लेकिन मुक्तेश्वर जवाब सुने बिना ही वहां से चला जाता है।
दूसरी ओर राजघराना महल पहुंचते ही गजेन्द्र रिया से कहता है— "रिया, क्या तुम मुझसे डरती हो?"
रिया मुस्कुरा कर कहती है— “नहीं। लेकिन अब मैं खुद से डरने लगी हूं… कि कहीं फिर से तुम्हें खो ना दूं। देखों मैं एक बात आज क्लीयर कर देती हूं… विराज मेरा अतीत था, और तुम मेरा आज और आने वाला कल।”
ये सुन गजेन्द्र धीरे से रिया का हाथ पकड़ता है और उसके करीब जा उसे गले से लगा लेता है, “मुझे माफ कर दो, मैं ये गलती दुबारा कभी नहीं करूंगा। बस तुम इतना याद रखना मुझे झूठ से सख्त नफरत है। तुम देख रही हो ना, मैं अपनों के बोले झूठ के ही जख्म झेल रहा हूं।”
गजेन्द्र की ये बात सुन रिया तुरंत उसे गले से लगा लेती है और शांत करने की कोशिश करती है। वहीं महल के दरवाजे पर खड़ा विराज रिया और गजेन्द्र के बीच की ये नजदीकियां देख मुस्कुरा देता है। तभी रिया की नजर भी उस पर पड़ती है और वो अपनी गर्दन झुकाकर विराज को जाने के लिए कहती है।
गजेन्द्र और रिया महल लौटने के बाद मुक्तेश्वर को हर जगह ढूंढते हैं, लेकिन वो नहीं मिलता। रिया बार-बार उसके नंबर पर फोन करती है, लेकिन फोन लगातार बंद जाता है। रिया दौड़कर सिटी अस्पताल जाती है और वहां एक कमरे में घुसते के साथ चिल्लाकर कहती है।
“लो आ गई मैं… लेकिन तुम पहले ये बताओं गजेन्द्र के पापा मुक्तेश्वर अंकल कहां है, याद रखना उन्हें एक खरोच भी आई… तो मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगी।”
आखिर आधी रात किससे मिलने सिटी अस्पताल पहुंची है रिया?
और आखिर कहां गायब हो गया है मुक्तेश्वर सिंह?
अब क्या बुरा होने वाला है बेचारे गजेन्द्र के साथ?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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