रात का तीसरा पहर था। राजगढ़ की सड़कों पर चारों तरफ सन्नाटा पसरा था, पर सिटी अस्पताल के ठीक बाहर मीडिया की भीड़ जमा हो चुकी थी। रिपोर्टर चीख-चीखकर बता रहे थे—

- राजघराने के उत्तराधिकारी मुक्तेश्वर सिंह अचानक हुए लापता!

- पिता गजराज सिंह से मिलने आये और नहीं लौटे राजघराना हवेली।

- परिवार के लोग नहीं कर पा रहे किसी भी तरह कनेक्ट, फोन भी है बंद।

- राज राजेश्वर की गिरफ्तारी के बाद गिरी राजघराना पर बड़ी गाज।

इसी सन्नाटे के बीच रिपोर्टरों की आवाज चारों तरफ गूंज रही थी। वहीं अस्पताल के एक प्राइवेट वार्ड में बैठा गजराज सिंह, व्हीलचेयर पर आंखें मूंदे मुस्कुरा रहा था। बेटे की गुमशुदगी के बाद उसकी मुस्कान ये साफ जाहिर कर रहीं था, कि इस पूरे कांड का कहानीकार वहीं था। वो एक शिकारी की तरह हंस रहा था, जिसने लंबे इंतजार के बाद शिकार किया था। तभी उसके कमरे में रिया दरवाजे पर धड़-धड़ाते हुए घुसी और चिल्लाकर बोलीं…."गजराज सिंह! मुझे अभी के अभी जवाब चाहिए... मुक्तेश्वर अंकल कहां है?"

रिया का सवाल सुन गजराज ने धीरे से आंखें खोलीं, लेकिन उसकी आवाज में वही पुराना ठहराव था— "रिया बेटी… क्या तू भी मुझ पर शक कर रही है, अरे बेटा हैं वो मेरा…। सोचो तो जरा कि मेरा एक बेटा सुबह गिरफ्तार हुआ और दूसरा शाम से लापता है, तो मेरी हालत कैसी होगी?"

गजराज की ये बात सुन रिया ने आखें तरेरी और बिना किसी डर के सीधा सामने आ खड़ी हुई— "शक नहीं यकीन है… क्योंकि ये पूरा खेल सिर्फ तुम ही रच सकते हो! पहले राज राजेश्वर का ड्रामा, फिर कोर्ट में राज राजेश्वर की वो चाल, वो गवाही और अब मुक्तेश्वर अंकल का गायब होना! एक बात सुन लो अगर आज के आज मुक्ति अंकल नहीं मिले तो राजघराना के सारे राज दुनिया के सामने खोद-खोद कर लाउंगी।"

रिया की धमकी सुनते ही गजराज मुस्कुराया, "शतरंज में राजा कभी सीधा वार नहीं करता, रिया। वो मोहरों से खेलता है… और हां तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है, कि मुक्तेश्वर के गायब होने पीछे मेरा हाथ है। वो देर रात मुझसे मिलने आया और फिर चला गया।"

ये सुन रिया तमतमाते हुए चीखी— "तो क्या आपके लिए मुक्तेश्वर अंकल हमेशा से सिर्फ एक मोहरा ही थे?"

गजराज की आंखें झपकीं, लेकिन वो कुछ नहीं बोला। तभी बाहर खड़ा गजेन्द्र कमरे में आता है और चिल्लाकर अपने दादा से पूछता है— “बस बहुत हो गया… अब आप खामोश नहीं रह सकते दादा जी, आप बोलेंगे… वरना सच कहता हूं, रिया ने कुछ देर पहले आपकों जो धमकी दी है, मैं खुद उसके साथ मिलकर उसे सच करूंगा और राजघराना की बर्बादी लिखूंगा!” 

गजेन्द्र का तेवर देख गजराज की मुस्कान एकदम गायब हो गई। इस वक्त वो एक बेबस अपराधी लगने लगा, ऐसे में कुछ पल की खामोशी के बाद गजराज बोला— "तुम सबको जवाब चाहिए? ठीक है… सुनो…"

फ्लैशबैक: बीस साल पहले 

ये बीस साल पुरानी बात है, जब मेरे निजी दफ्तर में उस दिन हम तीन लोग बैठे थे- मैं, राज राजेश्वर, और मुक्तेश्वर। हमारे बीच उस दिन मेरे बाद मेरा उत्तराधिकारी कौन बनेगा, इस बात को लेकर बहस चल रही थी। 

"मुक्तेश्वर बेटा, तू ही इस गद्दी का असल हकदार है।"

मेरे इतना कहते ही राज राजेश्वर गुस्से में चिल्ला पड़ा— "और मैं? क्या मैं आपका खून नहीं?"

राज राजेश्वर का ये सवाल करना जायज था, ऐसे में मैंने उसे काफी गम्भीर लहजे में जवाब दिया— "राज, तू भी मेरा ही खून है… लेकिन राजघराने की परंपराओं को तेरा जीवन जीने का ढ़ंग कलकिंत करता है!"

मेरी ये बात सुन राज की आंखों में आंसू और आग दोनों एक साथ उतर आये, “तुम्हारी विरासत मेरी असलियत से डरती है, पिताजी… लेकिन याद रखना, मेरे अंदर भी राजघराना का ही खून दौड़ता है, तो मैं अपना हक किसी को छीनने नही दूंगा। मैं मेरी जिंदगी किस तरह जीता हूं, ये मेरा निजी मामला है… इससे राजगद्दी का कोई लेना-देना नहीं।”

इसके बाद गजराज ने बताया— इतना कह उस दिन तो वो वहां से चला गया, लेकिन उसने गद्दी पर बैठने की जिद्द ऐसी ठानी कि उसने सबसे पहले मुक्तेश्वर को इस रेस फिक्सिंग के केस में फंसा मेरी नजरों से गिरा दिया और फिर मुझे बात-बात पर अपनी सच्चाई दुनिया के सामने रखने की धमकी देने लगा।

अपने दादा गजराज सिंह की ये बात सुन गजेन्द्र भौचक्का रह गया, और उसने गुस्से भरे अंदाज में पूछा— "इसका मतलब… आपने राज राजेश्वर चाचा को गद्दी से इसलिए दूर किया, क्योंकि वो बायसेक्सुअल थे? पर ये तो गलत है दादाजी, हम प्राकृति और ईश्वर की बनावट से आखिर क्यों लड़े?"

पोते का सोच और सवाल सुन गजराज ने चुपचाप सिर झुका लिया, मानों जैसे वो राज राजेश्वर की इस पहचान पर आज भी शर्मिंदगी महसूस करता था। फिर उसने एक और राज गजेन्द्र के सामने खोला— "जिस दिन राज राजेश्वर की पत्नी को उसकी ये सच्चाई पता चली और उसने भीखूं के साथ उसे एक कमरे में रंगे हाथ पकड़ा, वो उसे छोड़ कर चली गई। उसके बाद मैं भी उसे विरासत सौंपने का साहस नहीं जुटा पाया।"

राज राजेश्वर की आप बीति गजराज की जुबानी सुन रिया भी टूट गई। उसकी आंखों में भी इस वक्त गजेन्द्र की तरह ही आंसू थे, जिन्हें पोछते हुए उसने कहा— “लेकिन आप लोगों के उन फैसलों का बोझ गजेन्द्र क्यों उठा रहा है? उसकी पूरी जिंदगी आप लोगों ने नर्क बना दी है। पहले उसकी मां जानकी को मार डाला। फिर उससे उसका सपना भी, उसे रेस फिक्सिंग केस में फंसा कर छीन लिया और अब तो हद ही हो गई, मुक्तेश्वर अंकल… उसका एकलौता सहारा उसके पापा को भी आपने गायब कर दिया। ऐसे में आप खुद को राजा कहते हैं! अरे आप तो राजा और दादा छोड़िये, इंसान कहलाने के भी लायक नहीं है।”

कमरे का माहौल इस वक्त बेहद गंभीर और शांत होता जा रहा था, गजराज एकटक अपने पोते को देख रहा था, कि तभी अचानक कमरे का दरवाजा खुलता है और अंदर घुसता है विराज प्रताप राठौर। विराज कमरे में घुसते के साथ ही, जो कहता है उसे सुन सबके कान सुन पड़ जाते हैं। 

"एक और राज़ का पर्दाफाश करने आया हूं मैं… राज राजेश्वर की पत्नी और बेटियों की तस्वीरें सामने आई है। साथ ही इस फोल्डर में उन लोगों की एक रिकॉर्डिंग भी हैं… जो सबूत हैं कि राज राजेश्वर, सिर्फ खुद के लिए नहीं, अपने परिवार के लिए लड़ रहा है!"

विराज की बात सुन गजराज, गजेन्द्र और रिया तीनों के होश उड़ जाते हैं, और तभी गजेन्द्र चिल्लाता है— "मतलब… उनकी दो बेटियां हैं?"

बेटियों की बात सुन गजराज भी हैरान था, क्योंकि राज राजेश्वर ने या उसकी पत्नी ने कभी बेटियों का खुलासा नहीं किया था। वहीं गजेन्द्र के सवाल के जवाब में विराज ने सिर हिलाया, "हाँ… और इस सच को दबाकर गजराज ने एक बार फिर अपने ही बेटे को बर्बाद करने की कोशिश की। कोर्ट में अब ये मुद्दा बनेगा,  तुम देखना… तमाशा यहीं से शुरू होगा!"

विराज का ये आरोप सुन गजराज तुंरत चिल्लाया, “पर मुझे तो खुद भी अधेंरे में रखा गया। क्योंकि मुझे तो ये बात पता ही नहीं थी कि मेरे एक पोते गजेन्द्र के अलावा दो पोतियां भी है… और वो भी राज राजेश्वर से।”

जहां एक तरफ राज राजेश्वर के निजी जीवन की लड़ाई ने सबको हिला दिया था, तो वहीं उसके बच्चों की सच्चाई से भी सबकों गहरा झटका लगा था। दूसरी ओर जेल की कोठरी में बंद राज राजेश्वर की आंखों में भी बगावत की आग थी। वो अकेला एक टक दीवार को निहार कुछ सोच रहा था, कि तभी जेलर दरवाजा खोलता है।

"किसी ने तुम्हारे लिए बेल अर्जी डाली है। तुम आज छूट रहे हो।"

राज राजेश्वर हैरान होकर सवाल पूछता है— "किसने…?"

जेलर मुस्कुराता है, "तुम्हारे भाई मुक्तेश्वर ने!"

राज के चेहरे से एक ही सांस में सारा गुस्सा उड़ गया और वो चौक कर कहता है— "मुक्तेश्वर… जिंदा है?"

राज राजेश्वर का इस तरह से चौकना जेलर को चौक्कना कर देता है। दूसरी ओर कुछ आधे घंटे बाद मुक्तेश्वर खुद-ब-खुद राज राजेश्वर को लेकर राजघराना महल लौट आता है। दोनों को एक साथ देख रिया और गजेन्द्र के चेहरे का रंग उड़ जाता है। 

वहीं विराज भी खुद से बड़बड़ाता है, "इस राज राजेश्वर को जेल पहुंचाने के लिए मैंने क्या कुछ किया था, मौत से भी लड़ गया… और ये मुक्तेश्वर अंकल इसे छुड़ाकर फिर से महल में ले आये।"

विराज खुद से ये सब सवाल कर ही रहा था, कि तभी गजेन्द्र ने गुस्से भरे लहजे में अपने पिता मुक्तेश्वर से कहा— "कहां थे आप कल रात से… आप जानते भी है, हमारा सोच-सोच कर कितना बुरा हाल हो गया था। आप ठीक तो है ना पापा?”

गजेन्द्र को परेशान देख मुक्तेश्वर ने तुंरत जवाब दिया और बोला— "मैं नहीं गया था, मुझे ले जाया गया था... और इसके पीछे मेरे पिता गजराज सिंह का हाथ नहीं था, बल्कि किसी और ने मुझे नजरबंद किया था, और अब मैं जान चुका हूं वो कौन था!"

गजेन्द्र, रिया, विराज तीनों ये सब सुनकर हैरान हो गए और एक साथ पूछा— "कौन?"

मुक्तेश्वर ने बात को घुमाया नहीं और सीधे-सीधे जवाब देते हुए कहा— "राघव भोंसले….सिंडिकेट का तीसरा नाम। गजराज सिंह के कहने पर नहीं… खुद अपने लालच के लिए उसने मुझे हटाया, ताकि गजराज को फिर से सत्ता में लाया जा सके और फिर मौका देखकर उन्हें मारकर गद्दी खाली करा सकें…"

इतना कहते के साथ मुक्तेश्वर ने गर्जते हुए ऐलान किया— "राजघराना की आपसी लड़ाई में बाहर वाले बहुत फायदा उठा रहे हैं, हमे पहले उनसे एकजुट होकर लड़ना होगा… उसके बाद गद्दी के खेल के साथ इंसाफ करेंगे!"

अगले दिन कोर्ट की तारीख थी, और सिंडीकेट चार्टर केस में सुनवाई होनी थी। ऐसे में जहां जज साहब कुर्सी पर बैठें गंभीरता भरा भाव लिए सबकों देख रहे थे... और उनके सामने खड़े तीन चेहरे— गजराज सिंह, राज राजेश्वर और राघव भोंसले।

दूसरी तरफ मुक्तेश्वर कटघरे में खड़ा था, हाथ में दस्तावेजों का फोल्डर और आवाज में आत्मसम्मान की लड़ाई की तलवार सी धार थी।

"जज साहब, मैं बताना चाहता हूं कि गजराज सिंह अब राजघराना की इस गद्दी का नहीं, जेल का हकदार है। और राघव भोंसले… इस पूरे सिंडिकेट का मास्टरमाइंड!"
 
मुक्तेश्वर ने जब अपने आरोपियों की लिस्ट में राज राजेश्वर का नाम नहीं लिया तो जज साहब नें पूछा— "और राज राजेश्वर?"

"राज राजेश्वर तो खुद इस पूरी लड़ाई में एक मोहरा और पीड़ित व्यक्ति है, जिसकी लड़ाई उसके अपने पिता गजराज सिंह की नजरों में अपनी पहचान के लिए सम्मान पाने की है। लेकिन बता दूं कि राजेश्वर कभी भी सिर्फ एक बगावत करने वाला बेटा नहीं था, वो एक पिता, एक पति, और सबसे बड़ी बात— एक सच से लड़ने वाला इंसान था।"

मुक्तेश्वर के इस तरह बार-बार बात को घुमाने पर जज ने साफ-साफ शब्दों में पूछा।

"कहना क्या चाहते हैं आप मिस्टर मुक्तेश्वर जी, क्योंकि कल तक तो आप खुद अपने भाई के खिलाफ गवाई देने कोर्ट में खड़े थे। वहीं आज तुम उस पर दया दिखा रहे हों, आखिर क्यों?”

जज साहब जैसे ही ये सवाल करते है, गजराज सिंह घूरकर अपने बगावती बेटे मुक्तेश्वर को देखता है। और जैसे ही मुक्तेश्वर बोलना शुरु करता है… पूरा कोर्ट रुम सदमें में आ जाता है।

कुछ दस घंटों तक चली इस कार्यवाही के बाद कोर्ट अपना फैसला कुछ दिन बाद सुनाने की तारीख मुकर्रर करता है। साथ ही फिलहाल के लिए गजेन्द्र की बेल जारी रहती है, लेकिन अब उसके सामने कई नई चुनौतियां और अपनों से लड़ाई का इरादा और मजबूत हो जाता हैं। 

दूसरी ओर राज राजेश्वर भी बेल पर वापस बाहर आ चुका है, लेकिन उसकी नज़रें अब किसी गद्दी पर नहीं, बल्कि अपनी इज्ज़त को वापिस पाने और अपना हक हासिल करने की लड़ाई पर अड़ जाती हैं।

अपने दो दुश्मनों जैसे बेटों के एक साथ हो जाने के बाद गजराज सिंह... अब बिल्कुल अकेला पड़ जाता है। लेकिन उसे भी ये सच नहीं पता होता कि राज राजेश्वर सिर्फ अपनी रिहाई के लिए मुक्तेश्वर को इमोशनली ब्लैकमेल कर रहा है। 

आज की कोर्ट की कार्यवाही के बाद एक-एक कर सब राजघराना लौट आते हैं और अपने-अपने कमरे में अकेले बैठ अपनी जिंदगी के बारे में सोचते है। दूसरे ओर रात के अंधेरे में, महल के छज्जे पर खड़ा गजेन्द्र रिया को फोन कर अकेला छत्त पर बुलाता है, जब वो आ जाती है, तो वो उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर कहता है।

"अब इस गद्दी से मोह नहीं रहा… बस चाहत है, जानकी मां को इंसाफ दिलाने की।"

रिया उसके हाथों को और कसकर थाम लेती है "तो चलो, शुरू करते हैं वो असली राज को खोलने का गेम… जो सिर्फ ताज से नहीं, खून से लिखा था… तब मुक्तेश्वर अकंल को समझ आयेगा कि तुम्हारे दादा गजराज ने बिना कोई चाल चले, बस खुद बुरा बनकर तुम्हारें चाचा के सारे इल्जाम अपने सर ले लिए है… ताकि...!"

रिया अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही छत्त पर किसी के लगातार दो गोलियां चलाने की आवाज आती है, गजेन्द्र के दोनों हाथ खून से लथ-पछ हो जाते है और वो जोर से चीखता है, रिया...…

 

आखिर क्या हुआ रिया को? 

आधी रात राजघराना की छत्त पर किसने किसकों मारी गोली? 

गजेन्द्र के हाथों और पूरे शरीर पर खून कहां से आया? 

गजेन्द्र ठीक तो है ना, कहीं नए फसाद में तो नहीं फंस गया गजेन्द्र?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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