ध्रुवी ने अपने डर को वहम समझकर एक गहरी साँस ली, और जैसे ही वापस जाने के लिए मुड़ी, ठीक उसके सामने एक काला साया आ खड़ा हुआ; जिसके काले बाल हवा में लहरा रहे थे, और उसका चेहरा उसके बालों की आड़ में छिपा था। चेहरा ना दिखने के बावजूद भी, सामने का नज़ारा डरावना था, और उस साये को देखते ही ध्रुवी एकाएक अपनी आँखों पर हाथ रखते हुए चीख पड़ी।
ध्रुवी (डर से चिल्लाते हुए): आआअअअअअअसअ।
अचानक ही ध्रुवी को यूँ चिल्लाता देख, अर्जुन के कदम हैरानी से रुक गए, और वह फुर्ती से उसकी ओर पलटते हुए, सीढ़ियों से नीचे उतरकर उसके पास पहुँचा। कुछ दूरी पर खड़े दरबान और नौकर भी ध्रुवी की चीख सुनकर, उसकी दिशा में दौड़ पड़े।
अर्जुन (चिंतित स्वर में ध्रुवी के पास आकर): क्या हुआ ध्रु… (अचानक ही लोगों को देख संभलते हुए)… अनाया, ठीक हैं आप। क्या हुआ है। आप ऐसे अचानक चिल्लाई क्यों।
ध्रुवी (अर्जुन की आवाज सुनकर सहमते हुए धीरे से अपनी आँखें खोलकर): यहाँ कोई था अभी अर्जुन।
अर्जुन (असमंजस से): कहाँ।
ध्रुवी (उंगली से सामने की ओर इशारा करते हुए): यहाँ… बिल्कुल मे… (अर्जुन ने ध्रुवी की हथेली को दबाया, तो वहाँ नौकरों को देख अपनी जुबान संभाली)… हमारा मतलब है कि यहाँ कोई था, ठीक हमारे सामने।
अर्जुन (उसी असमंजसता से): पर कौन था। किसे देखा आपने।
ध्रुवी (उलझन भरे भाव से): हमें नहीं पता… मतलब हमने उनका चेहरा नहीं देखा… लेकिन कुछ… कोई अजीब सा था… बहुत डरावना सा कुछ… और…
अर्जुन (ध्रुवी की बात को बीच में ही काटते हुए): कुछ नहीं था… यह महज़ सिर्फ आपका वहम है… और कुछ भी नहीं।
ध्रुवी (अर्जुन को समझाने की कोशिश करते हुए): अर्जुन हम…
अर्जुन (ध्रुवी का हाथ थामते हुए): हमने कहा ना… यह महज़ आपका वहम है… अब चलिए अंदर… सब हमारा इंतज़ार कर रहे हैं।
ध्रुवी ने अर्जुन की बात सुन, एक नज़र उसकी ओर देखा, और फिर अपने हाथ पर उसकी पकड़ को देखा। उसके स्पर्श से वह थोड़ी असहज हो रही थी, लेकिन हालातों और सिचुएशन के हिसाब से, अभी वह बस खामोश ही रही, और अभी जो हुआ, उसे वहम समझकर, वह खुद को शांत करते हुए अर्जुन के साथ आगे बढ़ गई।
अर्जुन (ऊपर चढ़ते हुए धीमे लहज़े में): जानते हैं… हमारा स्पर्श आपको अजीब और अनजाना महसूस हो रहा होगा।
ध्रुवी (हौले से): हम्मम।
अर्जुन: हाँ… यह लाज़िमी भी है… लेकिन क्योंकि आप यहाँ अनाया हैं… तो लोगों के सामने हमारा यह करना ज़रूरी है… क्योंकि हम जब भी अनाया के साथ होते थे… उनका हाथ हमेशा हमारे हाथ में ही होता था।
ध्रुवी (बिना अर्जुन की ओर देखे): इट्स ओके… आई कैन मैनेज।
अर्जुन (सहजता भरे लहज़े से): थैंक्यू।
अर्जुन की बात पर ध्रुवी ने बस हौले से अपना सर हिला दिया। कुछ ही पल में, सीढ़ियों से होते हुए, वे दोनों महल के मुख्य द्वार पर पहुँचे, जहाँ सैकड़ों नौकर और कुछ खास लोग, उनके स्वागत के लिए, उनका इंतज़ार कर रहे थे।
अर्जुन (आहिस्ता से ध्रुवी से): यहाँ से आपकी असली परीक्षा शुरू होती है… ऑल द बेस्ट।
अर्जुन की बात पर ध्रुवी ने एक बार फिर हौले से सर हिलाया। एक गहरी साँस लेकर, वह अर्जुन के साथ उन सब लोगों के सामने आ खड़ी हुई। जैसे ही अर्जुन ध्रुवी का हाथ थामे उनके सामने आया, तो एक अधेड़ उम्र की महिला ने, उनका तिलक करते हुए, उनकी आरती उतारी। जैसे ही उस महिला ने आरती पूरी की, ध्रुवी, अर्जुन के साथ, उस औरत के पैर छूने के लिए झुक गई।
बुजुर्ग महिला (दोनों को आशीर्वाद देते हुए): खुश रहें हमेशा… ईश्वर आप दोनों का साथ हमेशा बनाए रखें।
यह बुजुर्ग महिला असल में अनाया की दाई माँ थीं, जो अनाया की माँ की देखभाल करती आई थीं, और अनाया की माँ की मृत्यु के बाद, उन्होंने ही उसे भी संभाला था। उसकी ज़रूरतों, कामों को एक माँ की भाँति हमेशा पूरा किया था। दाई माँ ने उन दोनों को आशीर्वाद दिया, तो दोनों अपनी जगह से खड़े हुए।
ध्रुवी (आगे बढ़ते हुए): मीरा।
इसके बाद ध्रुवी, वहीं एक सामान्य से ज़्यादा तीखे नैन-नक्श वाली, भूरे बालों वाली एक लड़की की ओर बढ़ गई, और दोनों ने एक-दूसरे को गले लगा लिया। वह लड़की अनाया की बुआ की बेटी मीरा थी, जो अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद, ज्यादातर वक्त अनाया के महल में ही रही थी।
मीरा (ध्रुवी के गले लगकर): कैसी हैं आप।
ध्रुवी (मीरा से अलग होते हुए): हम अच्छे हैं… आप कैसी हैं।
मीरा (मुस्कुराकर): हम भी बिल्कुल अच्छे हैं।
इसके बाद ध्रुवी अपनी एक और हमउम्र लड़की से मिली, जो असल में अर्जुन की बहन स्मिता थी।
स्मिता (ध्रुवी को गले लगाकर मुस्कुराकर): वेलकम होम भाभी सा।
ध्रुवी (मुस्कुराकर): थैंक्यू।
इसके बाद ध्रुवी एक-एक करके, वहाँ जमा सारे लोगों और नौकरों से बारी-बारी मिली, और उसे अनाया के रूप में वापस यहाँ देख, सब लोग बेहद खुश थे। अर्जुन ने यहाँ आने से पहले, ध्रुवी को यहाँ के सारे लोगों और नौकरों के बारे में, उनकी फ़ोटो और वीडियो सहित पूरी जानकारी दे दी थी, जिसे ध्रुवी ने कई मर्तबा दोहरा-दोहराकर देखा था। इसीलिए ध्रुवी को यहाँ किसी को भी पहचानने में, किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई थी।
स्मिता (अर्जुन के गले लगते हुए): कैसे हैं भाई सा आप।
अर्जुन (सहजता से): हम ठीक हैं… आप कैसी हैं।
स्मिता (मुस्कुराकर): हम भी बिल्कुल ठीक हैं।
ध्रुवी ने सबको पहचान लिया था, सिवाय एक इंसान को पहचानने में। वह नौकरों के ग्रुप के साथ ही खड़ी एक लड़की थी, लेकिन यहाँ आने से पहले, उसका ज़िक्र उसने इतने लोगों में कहीं भी नहीं देखा था।
ध्रुवी (असमंजसता से मीरा की ओर देखकर, उस लड़की की ओर इशारा करते हुए): ये कौन हैं।
मीरा (उस लड़की की ओर देखकर): ओह! ये… इनसे तो हम आपको मिलवाना ही भूल गए… ये हैं कजरी।
कजरी (ध्रुवी की ओर अदब से सर झुकाकर): "घणी-घणी खम्मा"… महारानी सा।
मीरा (मुस्कुराकर): जब आप यहाँ नहीं थीं, तब कजरी महल में आईं… सच कहें तो, आपकी गैर-मौजूदगी में, इन्होंने हमारी बहुत मदद की… अव्या को संभालने के लिए।
ध्रुवी (अचानक ही मीरा की बात से अनाया की बेटी की याद आने पर): कहाँ हैं अव्या।
अर्जुन (चारों ओर देखते हुए): अरे हाँ… कहाँ हैं हमारी लाडो।
स्मिता (मुस्कुराकर): आप लोग आइए तो अंदर… आपकी लाडो वहीं आपका इंतज़ार कर रही हैं।
अर्जुन और ध्रुवी ने जवाब में बस हौले से मुस्कुरा दिया, और इसके बाद सब लोग अंदर की ओर गए, जहाँ पर अव्या, ढेरों खिलौनों के साथ, अपनी कुछ केयरटेकर के संग खेल रही थी। उसकी मासूम सी मुस्कुराहट और खुशी से हुंकारना, किसी का भी दिल लूटने के लिए काफी था। यूँ तो ध्रुवी को अव्या के साथ ममता का दिखावा करना था, लेकिन उसकी मासूम मुस्कुराहट को देख, ध्रुवी ना चाहते हुए भी, पूरी प्यूरिटी के इमोशंस के साथ उसकी ओर बढ़ गई।
ध्रुवी (अव्या को गोद में उठाते हुए): कितनी मासूम है हमारी अव्या।
उसने मखमल पर बैठी, खेलती अव्या को, ममता भरे स्पर्श से छूते हुए, अपनी गोद में उठा लिया, लेकिन इससे पहले कि ध्रुवी उसके मासूम स्पर्श को महसूस भी कर पाती, अव्या उसके आगोश में मचल उठी। शायद एक अजनबी के एहसास से अव्या मचल उठी थी, क्योंकि वह इतनी छोटी थी, कि ज़ाहिर तौर पर अनाया का चेहरा उसे याद होना मुमकिन ही नहीं था।
ध्रुवी (अव्या को चुप करने की कोशिश करते हुए): अले… अले… क्या हुआ आपको… (खिलौने दिखाते हुए)… आहा। ये देखें… यह घोड़ा कितना प्यारा है।
ध्रुवी ने अपनी बातों से अव्या को सहज और शांत करने की पूरी कोशिश की, लेकिन अव्या का मचलना अब रोने में तब्दील हो गया था, और वह अपने नन्हें हाथों को, ध्रुवी के पीछे खड़ी मीरा की ओर उठाते हुए, उसकी ओर जाने के लिए मचल उठी, और जब उसका रोना बढ़ता ही गया, तो आखिर में मीरा ने ध्रुवी की गोद से उसे अपनी गोद में ले लिया।
मीरा (रोती हुई अव्या को लेते हुए): लाइए… इन्हें हमें दीजिए।
मीरा की गोद में जाते ही अव्या एकदम शांत हो गई। उसके शांत होने के बाद, अर्जुन ने आगे बढ़, उसे मीरा की गोद से लेना चाहा, लेकिन अव्या उसके पास ना जाकर मीरा से चिमट गई।
दाई माँ (ध्रुवी को अव्या की दिशा में देखता पाकर, प्यार से उसके सर पर हाथ रखते हुए): आप फ़िक्र मत कीजिए मिष्टी… आप दोनों काफी दिनों बाद बिटिया से मिलें हो ना… इसीलिए वह आपको पहचान नहीं पा रही।
ध्रुवी (सहजता से सर हिलाते हुए): जी दाई माँ… हम समझ रहे हैं।
दाई माँ (मीरा की ओर इशारा करते हुए): आपकी गैर-मौजूदगी में, छोटी बाई सा (मीरा) ने ही अव्या की माँ होने के सारे फ़र्ज़ निभाए हैं… बहुत मेहनत की है इन्होंने… इसीलिए इनकी ममता और प्यार के चलते, लाडो इन्हें ही अपनी माँ समझने लगी हैं… लेकिन जब अब आप उनके साथ वक्त बिताएंगी, तो वह आपसे भी अपने रिश्ते को समझ जाएंगी… हम्मम।
ध्रुवी (टाइट लिप स्माइल के साथ): जी दाई माँ… (अपना रुख मीरा की ओर करते हुए)… आपका बेहद आभार मीरा… हम आपका यह एहसान कभी भी नहीं चुका पाएँगे… जिस तरह से आपने हमारी गैर-मौजूदगी में हमारी अव्या का ख्याल रखा… उसके लिए हम आपका जितना भी शुक्रिया अदा करें… वह कम है।
मीरा (एक हाथ से अव्या को संभालते हुए, दूजे हाथ से ध्रुवी का हाथ थामकर, सहज भाव से): यह क्या कह रही हैं अनाया आप… यह तो हमारा फ़र्ज़ था।
ध्रुवी (सहज भाव से): यह तो आपका बड़प्पन है मीरा।
मीरा (उसी सहजता से): नहीं अनाया… बड़प्पन कैसा… आखिर बहन हैं आप हमारी… और माँ नहीं सही… लेकिन अव्या की मासी तो हैं ना हम… तो उस नाते यह हमारा फ़र्ज़ था।
ध्रुवी (हौले से मुस्कुराकर): जी।
मीरा (एक पल रुककर): आप इतने लंबे सफ़र से आई हैं… थक गई होंगी… आप जाकर थोड़ा आराम कीजिए… हम आज आपके लिए आपकी सारी मनपसंद डिशेज बनवाते हैं… (दाई माँ की ओर देखकर)… क्यों दाई माँ।
दाई माँ (मुस्कुराकर): हाँ… हाँ क्यों नहीं… आखिर इतने दिनों बाद हमारी मिष्टी घर लौटी हैं।
मीरा (मुस्कुराकर): जी… (अगले ही पल अपना रुख कजरी की ओर करते हुए)… कजरी, आप अनाया को इनके रूम में लेकर जाएँ… और देखें कि इन्हें किसी चीज़ की कोई ज़रूरत ना हो… आज से आपकी ज़िम्मेदारी है, अनाया की पूरी देखभाल करना।
कजरी (अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए): जी बाई सा… आपको शिकायत का मौका नहीं देंगे हम… (ध्रुवी की ओर देखकर)… आइए महारानी सा।
मीरा (ध्रुवी की ओर देखकर): जाइए अनाया… आप थोड़ी देर आराम कर लीजिए… बाकी लोग भी आपसे मिलने आते ही होंगे… तब तक आप फ़्रेश हो जाइए।
अर्जुन (ध्रुवी से): जी, मीरा ठीक कह रही हैं… आप थोड़ा आराम कर लीजिए।
ध्रुवी (हाँ में अपना सर हिलाते हुए): जी।
इसके बाद ध्रुवी, कजरी के साथ, अनाया के कमरे की ओर चल पड़ी। यह महल वाकई बेहद खूबसूरत था। इसका अंदाज़ा ध्रुवी, अनाया के कमरे की ओर जाते वक्त, गुज़रते गलियारों से ही लगा पा रही थी। कुछ ही देर में, ध्रुवी के आगे चलती कजरी, एक बड़े से खूबसूरत दरवाज़े के बाहर जाकर रुकी। दरवाज़े के बाहर खड़े दरबानों ने ध्रुवी को देखकर, अदब से अपना सर हिलाया, और फ़ौरन ही अनाया के कमरे का दरवाज़ा खोल दिया।
कजरी (अदब से आगे चलते हुए): आइए महारानी सा… आपके कमरे में आपका फिर से स्वागत है।
ध्रुवी (आगे बढ़ते हुए): शुक्रिया।
कजरी ने ध्रुवी से अंदर आने की इल्तिजा की, और जैसे ही ध्रुवी ने कमरे की चौखट लाँघी, कि एकाएक तेज़ी से ध्रुवी के कानों में, खुद को पुकारने की, एक अजीब और तेज़ फुसफुसाहट सुनाई दी।
"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।
ध्रुवी ने यह अनजानी और अजीब फुसफुसाहट सुनी, तो वह फ़ौरन ही चौंककर, डर से दंग रह गई; क्योंकि यहाँ तो अभी, सिवाय अर्जुन के, ऐसा कोई भी नहीं था, जिसे उसका असली नाम पता हो, और यकीनन यह फुसफुसाहट अर्जुन की तो नहीं थी, बल्कि साफ़ तौर पर किसी लड़की की थी।
ध्रुवी (मन में सोचते हुए): यह आवाज़ किसकी थी। अर्जुन तो नहीं… आखिर फिर कौन हो सकता है।
ध्रुवी अभी यह सब सोच ही रही थी, कि अचानक फिर उसके कानों में वह फुसफुसाहट गूंज उठी, जिसे सुनकर ध्रुवी डर से चौंककर इधर-उधर देखने लगी, और फिर अचानक ही एकाएक वह फुसफुसाहट, बिना रुके लगातार कई मर्तबा एक साथ, ध्रुवी के कानों में गूंजते हुए उसे पुकारने लगी।
"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।
"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।
"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।
"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।
(आखिर किसकी आवाज़ थी यह। क्या यह ध्रुवी का वहम था। या हकीकत कुछ और ही थी। जानने के लिए पढ़ते रहिए "शतरंज-बाज़ी इश्क़ की"।
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