ध्रुवी डर से चौंककर इधर-उधर देखने लगी, और फिर अचानक ही एकाएक वह फुसफुसाहट, बिना रुके, लगातार कई मर्तबा एक साथ, ध्रुवी के कानों में गूंजते हुए उसे पुकारने लगी।

 

"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।

"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।

"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।

"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।

 

ध्रुवी डर से चौंक कर इधर-उधर देखने लगी। और फिर अचानक ही एकाएक वह फुसफुसाहट, लगातार कई मर्तबा एक साथ, ध्रुवी के कानों में गूंजने लगी।

"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।

"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।

"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।

"ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…"।

 

ध्रुवी ने सहम कर इधर-उधर देखा, मगर वहाँ कोई भी नहीं था। कजरी भी पानी लेने के लिए वहाँ से बाहर चली गई थी। वहाँ किसी के ना होने पर भी, ध्रुवी अपने नाम की फुसफुसाहट सुनकर जो डर इस लम्हा महसूस कर रही थी, वह उसके चेहरे पर साफ़ तौर पर नज़र आ रहा था।

 

ध्रुवी (डर से बड़बड़ाते हुए): य…ये सब क्या हो रहा है आखिर?

 

ध्रुवी पहले से ही घबराई हुई थी कि किसी के अचानक अपने कंधे पर हाथ रखने के साथ ही, वह बुरी तरह डर से हड़बड़ा उठी। ध्रुवी ने हड़बड़ाहट से पीछे मुड़कर देखा, तो सामने अर्जुन को पाकर उसे कुछ राहत महसूस हुई। वहीं अर्जुन उसे इस तरह से घबराया देख कुछ हैरत से देखने लगा।

 

अर्जुन (ध्रुवी को असमंजस से देखते हुए): क्या हुआ है? आप इतनी घबराई हुई क्यों हैं?

ध्रुवी (अपने खुश्क गले को तर करते हुए): अ…अभी य…यहाँ मु…मुझे किसी ने पुकारा और…

अर्जुन (दरवाज़े पर खड़े दरबानों से): आप लोग जाइए।

दरबान (अपना सर झुकाते हुए): जी, हुकुम सा।

 

इतना कह वे दरबान फ़ौरन ही वहाँ से चले गए। उनके जाने के साथ ही अर्जुन ने अपना रुख वापस ध्रुवी की ओर किया।

 

अर्जुन (ध्रुवी की ओर अपना रुख करते हुए): अब बताइए क्या हुआ है?

ध्रुवी (चिंतित मगर घबराए लहज़े से): अर्जुन, अभी कुछ देर पहले कोई लगातार मेरा नाम पुकार रहा था।

अर्जुन (सहज भाव से): हो सकता है कोई नौकर हो।

ध्रुवी (चिंतित लहज़े से): नहीं अर्जुन, आप समझ नहीं रहे हैं। मैं अपने असली नाम की बात कर रही हूँ। मुझे किसी ने ध्रुवी कहकर पुकारा, जो आपके सिवा कोई नहीं जानता यहाँ।

अर्जुन (उसी सहजता भरे भाव से): आप थक गई हैं। हमें लगता है आपको आराम की सख्त ज़रूरत है।

ध्रुवी: लेकिन अर्जुन…

अर्जुन (ध्रुवी की बात को बीच में ही काटते हुए): हमने कहा ना आप आराम कीजिए। वैसे भी शाम को हमारे बाबा और अनाया के कुछ रिश्तेदार आपसे मिलने आने वाले हैं, तो अभी थोड़ा आराम कीजिए।

ध्रुवी (उलझन भरे भाव से): हम्मम।

अर्जुन (ध्रुवी के चेहरे पर परेशानी के भाव देखकर): आप बेवजह ज़्यादा सोच रही हैं। इतना मत सोचिए, यह सब आपका वहम है।

ध्रुवी (सोचते हुए): हम्मम… (एक पल रुककर)… आर्यन…

अर्जुन (ध्रुवी की बात समझते हुए बीच में ही): आपके आर्यन बिल्कुल महफ़ूज़ और अच्छे हैं। जब तक आप यहाँ अच्छे से हैं, वह भी वहाँ बिल्कुल सुरक्षित रहेंगे।

 

तभी कजरी पानी का जग लिए वहाँ आई। अर्जुन ने उसे अंदर आने की इजाज़त दी, तो वह पानी रखकर फ़ौरन ही वहाँ से चली गई।

 

अर्जुन (ध्रुवी की ओर देखकर): कोई भी किसी भी तरह की ज़रूरत हो, तो आप नौकरों से कह दीजिएगा या हमें बता दीजिएगा।

ध्रुवी (हाँ में अपनी गर्दन हिलाते हुए): ठीक है।

अर्जुन (सहजता से): अब आप आराम कीजिए। हम आपसे बाद में मिलते हैं।

ध्रुवी (जाते हुए अर्जुन को टोकते हुए): अर्जुन?

अर्जुन (ध्रुवी की ओर पलटते हुए): जी? कुछ चाहिए आपको?

ध्रुवी (ना में अपनी गर्दन हिलाते हुए): नहीं…बस मैं यह कहना चाह रही थी कि मैं थकी नहीं हूँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।

अर्जुन (कुछ असमंजसता से): आपकी इस बात के पीछे क्या मतलब है? हम कुछ समझे नहीं?

ध्रुवी (सहजता से): मेरा मतलब यह है कि अगर तुम्हारी इजाज़त हो, तो क्या मैं यह महल घूम सकती हूँ? (एक पल रुककर) वह क्या है ना, मैं पहली मर्तबा ऐसी किसी जगह आई हूँ, तो थोड़ी क्यूरोसिटी हो रही है यह सब देखने की, बस इसीलिए।

अर्जुन (हाँ में अपनी गर्दन हिलाते हुए): हम्मम…श्योर…आप ज़रूर घूम सकती हैं। (एक पल रुककर) हम अभी किसी को भेजते हैं जो आपको महल घुमा देंगे।

ध्रुवी (सहज भाव से): थैंक्यू।

अर्जुन (उसी प्रकार सहजता से): हम्मम।

 

इसके बाद अर्जुन कमरे से बाहर चला गया और ध्रुवी भी उसके पीछे कमरे से बाहर ही आ गई। शायद अकेले में उसे उस कमरे में डर महसूस हो रहा था। कुछ ही देर में कजरी भी वहाँ आ गई।

 

कजरी (ध्रुवी से): हुकुम सा ने कहा है कि आप बहुत दिनों बाद वापस आई हैं, तो हम आपको महल का मुआयना करवा दें।

ध्रुवी (हामी भरते हुए): जी…चलिए।

 

इसके बाद ध्रुवी कजरी के साथ महल घूमने निकल पड़ी। यह महल काफ़ी बड़ा था। यहाँ सैकड़ों कमरों के साथ ही लाइब्रेरी, प्ले ग्राउंड, हॉर्स राइडिंग जैसी कई ख़ास चीज़ों के लिए भी एक ख़ास जगह बनाई गई थी। तो ज़ाहिर तौर पर यह तो हरगिज़ पॉसिबल नहीं था कि ध्रुवी एक साथ सारा महल घूम ले। इसीलिए कजरी उसे सबसे पहले महल के मुख्य हिस्से में ले गई, जहाँ सभी घरवालों और ख़ास लोगों के रहने और उनके कमरे थे।

 

ध्रुवी (महल की ख़ूबसूरती को सराहते हुए): यह सच में बेहद ख़ूबसूरत है ना।

कजरी (हाँ में अपनी गर्दन हिलाते हुए): जी महारानी सा…यह वाकई अद्भुत है…बिल्कुल सपनों के महल की तरह।

ध्रुवी (हामी भरते हुए): बिल्कुल ठीक कहा आपने…यह सचमुच अद्भुत है।

कजरी (मुस्कुराकर): जी महारानी सा।

 

कजरी के साथ घूमते हुए ध्रुवी वहाँ की हर एक चीज़ को बड़ी बारीकी से नोटिस कर रही थी। यहाँ की नक्काशी, यहाँ लगी पेंटिंग्स, यहाँ की सजावट और हर एक चीज़ बेहद नायाब और ख़ूबसूरत थी, जिसे देखो तो बस देखते ही रहने का जी चाहे। यहाँ का हर एक कमरा उस व्यक्ति विशेष की पसंदगी को जाहिर कर रहा था जिसमें वह रहता था।

कजरी (अपनी चुप्पी तोड़ते हुए): वैसे महारानी सा, आप तो यहाँ बचपन से रही हैं, तो आपकी तो ढेर सारी यादें जुड़ी होंगी ना इस महल से?

ध्रुवी (हौले से मुस्कुराकर): ज़ाहिर है, अपने घर से सबकी अनमोल यादें जुड़ी होती हैं, फिर चाहे वह महल हो या कोई मामूली झोपड़ी-पट्टी, सबके लिए वह यादें अहम ही होती हैं।

कजरी (ध्रुवी की बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हुए): जी महारानी सा…यह बात तो आपने सोलह आना सच कही…घर छोटे-बड़े से फ़र्क़ नहीं पड़ता…वहाँ की यादें उसे अनमोल और ख़ास बनाती हैं।

 

आगे बढ़ते हुए ध्रुवी ने कजरी की बात पर सहमति जताई। उसने नोटिस किया था कि सबके कमरे बेहद ख़ूबसूरत होने के साथ ही उनकी पसंद के मुताबिक ही ढाले गए थे, जिसमें अनाया के माँ-बाप से लेकर उसके कुछ रिश्तेदार, अर्जुन के पिता, मीरा के कमरे शामिल थे। ध्रुवी बारी-बारी सबके कमरों में घूमी और फिर शादी से पहले जिस कमरे में अनाया रहती थी, ध्रुवी वहाँ भी गई। वहाँ अनाया की कई मासूम तस्वीरें थीं, उसकी बचपन से लेकर यौवन तक की कई यादें और चीज़ें यहाँ सजी थीं।

कजरी (अनाया की तस्वीरें देखते हुए): आप जानती हैं महारानी सा, आप में बचपन से लेकर अब तक क्या चीज़ नहीं बदली?

ध्रुवी (सवालिया नज़रों से): क्या?

कजरी (मुस्कुराकर): यही कि आप बचपन से लेकर अब तक भी बिल्कुल वैसे ही मासूम और ख़ूबसूरत हैं।

कजरी की बात के जवाब में ध्रुवी बस मुस्कुरा दी। आखिर में आगे बढ़ते हुए उस हिस्से में एक कमरा और आया, जो अनाया के कमरे के ठीक सामने था, लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि दूसरे कमरों से अलग उस अकेले एक कमरे में ताला लगा था।

 

ध्रुवी (कजरी से): इस कमरे में ताला क्यों लगा है कजरी?

कजरी (सहज भाव से): अरे! महारानी सा…यह तो वीर सा का कमरा है ना…और उन्हें नहीं पसंद कि उनके कमरे में कोई क़दम भी रखे।

ध्रुवी (अपनी अनजानी उत्सुकता को छुपाते हुए): तो क्या यह कमरा कभी भी नहीं खुलता कजरी?

कजरी (सहज लहज़े से): खुलता है ना महारानी सा…हफ़्ते में एक बार…वह भी सिर्फ़ दाई माँ की नज़रों के सामने…जब उनके कमरे की सफ़ाई की जाती है…इसके अलावा बाकी किसी को भी वीर सा के कमरे में जाने की इजाज़त नहीं है।

ध्रुवी (सहजता से): पर ऐसा क्यों?

कजरी (सोचते हुए): क्योंकि हमें तो यही बताया गया था कि वीर सा के कमरे में सिर्फ़ दाई माँ और आपके सिवा कोई भी जाए…यह वीर सा को हरगिज़ पसंद नहीं है…वह बेहद गुस्सा हो जाते हैं…इसीलिए हम भूलकर भी वहाँ ना जाएँ।

ध्रुवी (उस बंद कमरे को देखते हुए): अच्छा।

कजरी (सोचते हुए): लेकिन आपको तो यह बात पहले से ही पता होगी ना महारानी सा?

ध्रुवी (बात को संभालते हुए): जी, हमें पता है। (एक पल रुककर) अच्छा कजरी, आप हमें वीर के कमरे की चाबी लाकर दे दीजिए। इतने दिनों बाद लौटे हैं, तो हम देखना चाहते हैं उनका कमरा।

कजरी (हामी भरते हुए): जी महारानी सा…हम अभी लेकर आए।

ध्रुवी के कहने के साथ ही कजरी वीर के कमरे की चाबी लेने वहाँ से चली गई।

 

ध्रुवी (सोचते हुए): आखिर ऐसा भी क्या है इस कमरे में जो इसे ताला लगाकर रखा गया है?

 

ध्रुवी यही सब सोच रही थी कि कजरी कुछ पल बाद वीर के कमरे की चाबी लेकर वहाँ लौट आई।

 

कजरी (ध्रुवी की ओर चाबी बढ़ाते हुए): यह लीजिए महारानी सा…यह रही वीर सा के कमरे की चाबी।

ध्रुवी (चाबी लेते हुए): धन्यवाद। अब आप जा सकती हैं कजरी। हम थोड़ी देर वीर के कमरे में अकेले ठहरना चाहते हैं।

कजरी (अदब से सर झुकाते हुए): जी महारानी सा…जैसा आप कहें।

ध्रुवी के हुक्म देने के साथ ही कजरी फ़ौरन वहाँ से चली गई, जबकि ध्रुवी वीर के कमरे की ओर बढ़ गई। ध्रुवी ने वीर के कमरे का ताला खोला और दरवाज़ा खोलकर अंदर क़दम रखा और एक सरसरी नज़र उस कमरे में चारों ओर दौड़ाई, जहाँ कई महत्वपूर्ण राज़ दफ़न थे और अब ध्रुवी के सामने सच बनकर खुलने वाले थे।

 

ध्रुवी (खुद से): वीर? अनाया के बचपन के साथी।

ध्रुवी कमरे की दीवार की ओर बढ़ी, जहाँ ढेर सारी तस्वीरें लगी थीं और उन सारी तस्वीरों में वीर और राजकुमारी अनाया ही शामिल थे और उनकी बचपन से लेकर यौवन तक की तस्वीरें यहाँ मौजूद थीं और उनकी तस्वीरें देखकर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वे दोनों एक-दूसरे के कितने करीबी थे। उनकी दोस्ती की ख़ूबसूरती का बयान यहाँ मौजूद हर तस्वीर कर रही थी।

 

ध्रुवी (तस्वीरें देखते हुए): दोनों की दोस्ती कितनी खुशगवार थी, इसका अंदाज़ा उनकी इन हँसती-मुस्कुराती तस्वीरों से ही लगाया जा सकता है, जहाँ कोई भी किसी भी तरह का दिखावा नहीं नज़र आ रहा।

 

ध्रुवी बड़े ही गौर से उन तस्वीरों को देखते हुए आगे बढ़ रही थी, जिनमें ख़ूबसूरत यादें और पाकीज़ा एहसास साफ़ झलक रहे थे। तस्वीरें देखने के बाद ध्रुवी ने दुबारा से अपनी नज़रें कमरे में दौड़ाई, तो उसकी नज़र कमरे में ही मौजूद एक छोटे से अलमारी पर पड़ी।

 

ध्रुवी (अलमारी की ओर बढ़ते हुए): यहाँ क्या है?

अनायास ही ध्रुवी के क़दम उस अलमारी की ओर बढ़ गए। कुछ पल सोचने के बाद आखिर में ध्रुवी ने उस अलमारी को खोला। उसमें रखे सामान को देखकर ध्रुवी फ़ौरन ही समझ गई कि यहाँ क्या था।

ध्रुवी (सामान देखते हुए): ओह! अनाया और वीर की बचपन की यादों की धरोहर।

ध्रुवी ने ठीक कहा था। इसमें छोटे-छोटे खिलौने, टेडी, गुड़िया-गुड्डे, मिट्टी के कुछ टूटे बर्तन, कुछ ख़राब और टूटे खिलौनों के साथ ही लड़कियों की एक पुरानी छोटी सी ड्रेस भी रखी थी। कुल मिलाकर यहाँ मौजूद सामान पुराना और टूटा ही था। ध्रुवी ने कुछ सामान को छूकर देखा और फिर कुछ देर बाद उसने उस अलमारी को वापस से बंद करने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए ही थे कि एकाएक उसकी नज़र एक लाल कपड़े में लिपटी किसी चीज़ पर पड़ी।

 

ध्रुवी (उत्सुकता से): यह क्या है?

अपनी उत्सुकता को ना रोकते हुए ध्रुवी ने वह कपड़ा उठाया और उसे खोला, तो उसमें से एक नीले खाके वाली डायरी निकली, जिस पर गोल्डन वर्ड्स में "सुनहरी यादें" उभरा हुआ था। कुछ पल की झिझक और सोचने के बाद आखिर में ध्रुवी यहाँ भी अपनी उत्सुकता को शांत नहीं कर पाई और उसने अलमारी बंद करते हुए वह डायरी अपने हाथ में ले ली।

ध्रुवी (डायरी देखते हुए): "सुनहरी यादें"…हम्म…इंट्रेस्टिंग।

 

ध्रुवी आगे बढ़ी और वहीं पास ही कुर्सी पर बैठते हुए ध्रुवी ने वह डायरी अपने सामने रखी टेबल पर रखी और उस पर उभरे "सुनहरी यादें" पर अपना हाथ फिराते हुए आखिर में ध्रुवी ने उस डायरी को खोला, जिसके पहले पन्ने पर ही बड़े-बड़े अक्षरों में कुछ ऐसा लिखा था, जिसने ध्रुवी की उत्सुकता को कई गुना बढ़ा दिया था और वह चाहकर भी अब खुद को उस डायरी में छुपे अनकहे राज़ को पढ़ने से और नहीं रोक पाई।

 

(आखिर ऐसा क्या लिखा था उस डायरी में? क्या कुछ अनकहे राज़ अभी भी ऐसे थे जिनसे ध्रुवी अनजान थी? आखिर अब कौन से ऐसे राज़, कौन सी अधूरी कहानी से पर्दा उठने वाला था? जानने के लिए रोज़ पढ़ते रहिए "शतरंज-बाज़ी इश्क़ की"…।)

 

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