ध्रुवी आगे बढ़ी और वहीं पास ही कुर्सी पर बैठते हुए, ध्रुवी ने वह डायरी अपने सामने टेबल पर रखी। उस पर उभरे "सुनहरी यादें" पर अपना हाथ फिराते हुए, आखिर में ध्रुवी ने उस डायरी को खोला; जिसके पहले पन्ने पर ही बड़े-बड़े अक्षरों में कुछ ऐसा लिखा था, जिसने ध्रुवी की उत्सुकता को कई गुना बढ़ा दिया था।
"इट्स ऑल अबाउट माय हैप्पीनेस,
मींस माय वन एंड ओनली मिष्टी"।
ध्रुवी (डायरी को देखते हुए): ओह! तो ये डायरी वीर की लिखी हुई है; अनाया के बारे में है। (सोचते हुए) लेकिन क्या मुझे ये डायरी पढ़नी चाहिए या नहीं?
ध्रुवी ने एक गहरी साँस लेते हुए वीर की लिखी उस डायरी को देखा। फिर उसने एक सरसरी नज़र उस कमरे में चारों ओर दौड़ाई; जहाँ कई महत्वपूर्ण राज़ दफन थे, और अब ध्रुवी के सामने सच बनकर खुलने वाले थे।
ध्रुवी (एक पल रुक कर): नो ध्रुवी; इट्स रॉन्ग; इट्स अ बेड मैनर। तुम किसी की प्राइवेसी में यूँ दखल नहीं दे सकती; नो यू कांट।
ध्रुवी ने जैसे खुद को समझाया था।
ध्रुवी (अपनी उठती उत्सुकता के साथ): लेकिन इसमें बुराई भी क्या है? इसे पढ़कर मैं अनाया को शायद और बेहतर जान और समझ पाऊँगी।
ध्रुवी ने जैसे अपने ही सवाल का खुद जवाब दिया था। आखिर में वह चाहकर भी अब खुद को उस डायरी में छुपे अनकहे राज़ को पढ़ने से और नहीं रोक पा रही थी। लेकिन जैसे ही उसने डायरी का पहला पन्ना खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई। ध्रुवी ने नज़रें उठाकर देखा; तो अदब से सर झुकाए कजरी दरवाज़े पर खड़ी थी।
ध्रुवी (कजरी से): जी कजरी; कहिए क्या बात है?
कजरी (अपना सर झुका कर बड़े अदब से): महारानी सा; दाई माँ आपका इंतेज़ार कर रही हैं। उन्होंने आपको आपके कक्ष में बुलाया है।
ध्रुवी (हौले से सर हिलाते हुए): ठीक है, आप चलिए; हम आते हैं।
कजरी (हाँ में अपना सर हिलाते हुए): जी महारानी सा।
इतना कह कर कजरी वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद ध्रुवी ने उस डायरी को देखते हुए एक गहरी साँस लेकर खुद से ही बड़बड़ाया।
ध्रुवी (धीमे लहज़े से): शायद किस्मत भी नहीं चाहती कि हम आज इसे पढ़ें। खैर, आज ना सही; फिर कभी सही ।
इसके बाद ध्रुवी ने उस डायरी को वापस उस लाल कपड़े में लपेट कर,उसे वापस उसकी जगह पर रखते हुए अलमारी बंद कर दी। ध्रुवी ने कमरे पर एक सरसरी नज़र डाली और कमरे से बाहर निकल गई। उसने कमरे को लॉक किया और चाबी लेकर आगे बढ़ गई।
ध्रुवी (कुछ दूर चलने के बाद): मुझे तो ये भी नहीं पता कि मैं किस तरफ़ से यहाँ आई थी? अब मैं अनाया के कमरे तक कैसे पहुँचूँ?
क्योंकि ध्रुवी के लिए ये जगह एकदम नई थी, वह रास्ता भटक गई थी। वहाँ कोई नौकर या गार्ड्स भी नहीं थे।
ध्रुवी (उलझन भरे भाव): ओह गॉड! कहाँ फँस गई मैं? एक तो ये महल कम; और भूल-भुलैया ज़्यादा लग रहा है। चारों तरफ़ एक ही जैसा रास्ता लग रहा है।
ध्रुवी यही सब सोचते हुए आगे बढ़ी; तभी उसे वहाँ से गुज़रती एक दासी नज़र आई। उसने फ़ौरन ही उस दासी को पुकारा।
ध्रुवी (दासी को रोकते हुए): सुनिए?
दासी (अदब से सर झुकाते हुए): जी महारानी सा; क्या हुक्म है मेरे लिए?
ध्रुवी (सहजता से): वह दरअसल; हमारी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही; क्या आप हमें हमारे कक्ष तक छोड़ देंगी?
दासी (हाँ में गर्दन हिलाते हुए): जी महारानी सा ज़रूर; मैं छोड़ देती हूँ आपको।
ध्रुवी (हौले से मुस्कुरा कर): आभार।
दासी ने अदब से अपना सर झुका दिया। ध्रुवी ने मन ही मन एक चैन की साँस ली। उस दासी के सहारे ध्रुवी अनाया के कमरे में वापस आई। वहाँ दाई माँ पहले से बैठी उसका इंतज़ार कर रही थीं।
दाई माँ (ध्रुवी को वहाँ देख मुस्कुरा कर): आइए मिष्टी; हम आपका ही इंतज़ार कर रहे थे।
ध्रुवी (दाई माँ के पास बैठते हुए): आपको कुछ काम था दाई माँ; तो आप हमें बुला लेते; आप क्यों परेशान हुईं?
दाई माँ (प्यार से ध्रुवी के सर पर हाथ रखते हुए): इसमें परेशानी कैसी लाड़ो; आपके लिए तो हमारी जान भी हाज़िर है; फिर ये तो कुछ भी नहीं है।
ध्रुवी (मुस्कुरा कर): जानते हैं हम; कि बहुत प्यार करती हैं आप हमें।
दाई माँ (सहजता से): कैसे ना करें आपसे प्रेम; आखिर आप हमारी लाड़ो जो हैं।
दाई माँ ने एक पल रुक कर अपना हाथ वहाँ मौजूद दासी की ओर बढ़ाते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
दाई माँ (ध्रुवी से): अच्छा ये सब बातें छोड़िए; पहले हम जिस काम के लिए यहाँ आए हैं; उसे पूरा कर लेते हैं।
ध्रुवी (हामी भरते हुए): जी कहिए ना दाई माँ; क्या बात है? कुछ काम है तो आप हमें कह सकती हैं।
दाई माँ (दासी के हाथ से कुछ बॉक्स लेकर ध्रुवी के हाथ पर रखते हुए): ये लीजिए आपकी अमानत।
ध्रुवी (असमंजस से): हमारी अमानत?
दाई माँ (हाँ में सर हिलाते हुए): जी आपकी अमानत। (एक पल रुक कर) ये आपके वह कीमती पुश्तैनी जेवर हैं; जिन्हें आपने हमें संभालने के लिए दिया था।
ध्रुवी (कुछ झिझकते हुए): लेकिन दाई माँ;
दाई माँ (ध्रुवी की बात बीच में ही काटते हुए): लेकिन वकिन कुछ नहीं। अब हम बूढ़े हो गए हैं लाड़ो; और ये सारी ज़िम्मेदारियाँ अब हमसे नहीं संभलती। अब आप वापस आ गई हैं; तो अपनी इन सारी ज़िम्मेदारियों के साथ ही; इस महल की पूरी ज़िम्मेदारी भी आपके ही काँधों पर है।
ध्रुवी (असमंजस से): लेकिन दाई माँ; हम ये सब कैसे संभालेंगे? और (एक पल रुक कर) हमसे नहीं संभलेगा ये सब दाई माँ; हम ऐसे ही ठीक हैं।
दाई माँ ना में अपनी गर्दन हिलाते हुए हौले से मुस्कुरा उठीं।
दाई माँ (प्यार से ध्रुवी का गाल छू कर): आप जानती हैं मिष्टी; आप हमेशा से ही इतनी मासूम रही हैं; इसीलिए लोग हमेशा आपका फ़ायदा उठाने की फ़िराक में रहते हैं।
ध्रुवी (मुस्कुरा कर): तो चिंता की क्या बात है? आप लोग हैं ना हमारे साथ।
दाई माँ (गंभीरता से): हैं लाड़ो; लेकिन हम; वीर; अर्जुन या कोई भी; ताउम्र तो आपके साथ आपका साया बन कर नहीं चल सकता ना। बिटिया आपको अपने फ़ैसले अपने दम पर खुद लेने होंगे; अपने दायित्व को आगे बढ़ कर खुद निभाना होगा।
ध्रुवी (मन में): अब कैसे समझाऊँ आपको; कि जो दिख रहा है; जो चल रहा है; सब एक झूठ और छल है; यहाँ तक कि मैं भी एक छल ही हूँ।
दाई माँ (एक पल रुक कर चारों ओर देखते हुए): जानती हैं; इस महल को; इस प्रतिष्ठा को; इस मान-सम्मान; और इस पूरी धरोहर को बनाने के लिए; आपके पिता ने अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया। (एक पल रुक कर) इसे अपनी मासूमियत के चलते; बर्बाद मत होने दीजिएगा।
ध्रुवी (खोए हुए अंदाज़ में): हम्म।
दाई माँ ने ध्रुवी को अपने ही ख्यालों में खोया देखा; तो उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उससे सवाल किया।
दाई माँ (ध्रुवी की ओर देखकर): क्या हुआ? कहाँ खो गईं आप?
ध्रुवी (जल्दी से ना में गर्दन हिलाते हुए): न; नहीं तो क; कहीं भी तो नहीं।
दाई माँ (सहजता से): तो फिर हमसे वादा कीजिए; कि आप अपनी ये ज़िम्मेदारी बखूबी निभाएँगी?
ध्रुवी (दाई माँ की हथेली को थाम कर): आप बिल्कुल निश्चिंत रहिए; आपने हमें जो भी समझाया है; हम उसे हमेशा; ताउम्र याद रखेंगे।
दाई माँ (मुस्कुरा कर ध्रुवी का गाल छूते हुए): हमें आपसे यही उम्मीद भी थी।
ध्रुवी (मुस्कुरा कर): जी; और हम आपकी ये उम्मीद टूटने नहीं देंगे।
दाई माँ (सहजता से): जानते हैं हम। (एक पल रुक कर) अच्छा अब आप जल्दी से तैयार हो जाइए; अर्जुन के पिता; और आपके चाचा जी के परिवार के साथ ही; आस-पास के रजवाड़ों के यहाँ से भी; लोग आपसे मिलने आते ही होंगे।
ध्रुवी (असमंजस से): लेकिन क्यों?
दाई माँ (ध्रुवी के सर को चूमते हुए): क्योंकि हमारी लाड़ो इतने वक़्त बाद महल में जो लौटी हैं; और इसी खुशी में उन सब की आज रात की दावत हमारी ओर से है; तो अब आप जल्दी से तैयार हो जाइए।
ध्रुवी (सहजता भरे भाव से): जी जैसा आप कहें।
दाई माँ (टेबल की ओर इशारा करते हुए): यहाँ हमने आपके लिए कुछ कपड़े रखे हैं; उनके साथ आप अपने ये जेवर पहन कर आइएगा; ताकि सबको लगे; कि वह यहाँ की महारानी सा से मिल रहे हैं।
ध्रुवी (मुस्कुरा कर पलकें झपकाते हुए): जी; आपका हुक्म सर आँखों पर।
दाई माँ (मुस्कुरा कर खड़े होते हुए): ठीक है अब आप तैयार हो जाइए; हम जरा थोड़ा सा काम देख लेते हैं।
दाई माँ की बात सुनकर ध्रुवी ने सहमति में अपनी गर्दन हिला दी। इसके बाद दाई माँ वहाँ से चली गई; और जाते-जाते कजरी के साथ ही; दो और दासी को ध्रुवी को तैयार करने का फ़रमान सुना गईं। ध्रुवी को अपना काम खुद से करना पसंद था; लेकिन क्योंकि अभी वह अनाया की जगह थी; इसीलिए उसे एक महारानी के हिसाब से ही चलना पड़ रहा था।
दासी (अपना सर झुकाते हुए): अगर आपकी आज्ञा हो; तो हम आपको तैयार कर दें महारानी सा?
ध्रुवी (हामी भरते हुए): जी।
एक दासी ने ध्रुवी को उसके कपड़े और दुपट्टा सेट किया; एक ने उसका मेकअप; और कजरी ने उसका हेयर स्टाइल बना दिया।
कजरी (ध्रुवी को आईने में देखते हुए): लीजिए महारानी सा! आप बिल्कुल तैयार हैं; और हमेशा की तरह ही आप बेहद खूबसूरत भी लग रही हैं।
ध्रुवी (हौले से मुस्कुरा कर): शुक्रिया।
कजरी (जेवरों के बॉक्स की ओर बढ़ते हुए): लीजिए हम आपको जेवर और पहना देते हैं; फिर आप बिल्कुल तैयार हो जाएँगी।
ध्रुवी (कजरी को टोकते हुए): नहीं! आप रहने दीजिए; ये हम खुद कर लेंगे; आप लोग अब बाहर का काम देख लीजिए।
कजरी (अजीब सी उत्सुकता के साथ): लेकिन महारानी सा! हम कर देते हैं ना?
ध्रुवी (गंभीर भाव से): हमने कहा ना! हम कर लेंगे; आप जाएँ।
कजरी (अपना सर झुका कर): जी महारानी सा; जो आपका हुक्म।
इसके बाद कजरी और दो दासियाँ वहाँ से चली गईं।
ध्रुवी (जेवरों का बॉक्स उठा कर आईने के सामने बैठते हुए): ओह गॉड! ये रॉयल ठाठ-बाट सिर्फ़ मूवीज़ में ही अच्छा लगता है। (अपनी कलाई में मोटे-मोटे सोने और हीरे के कंगन डालते हुए) असल में तो कितनी झंझट और आफ़त है इस सब में।
ध्रुवी ने खुद को एक महारानी की तरह सजाना शुरू किया। उसने अपनी कलाइयों को मोटे हीरे और सोने के कंगनों से भर लिया; साथ ही अपने हाथों की उंगलियों में कंगनों से मिलती जड़ाऊ अंगूठियाँ पहनीं; पैरों में सोने की पायल के साथ ही; सोने के बिछिया; कमर में जड़ाऊ कमरबंद।
ध्रुवी (खुद को जेवरों से लदा देखकर): महारानी कम; और सोने की लुटेरन वाली वाइब ज़्यादा महसूस हो रही है। ओह गॉड! पता नहीं कैसे झेलते हैं ये शाही परिवार इस सब झमेले को; मेरा तो दम ही घुट रहा है इस सबको पहन कर।
ध्रुवी खुद से ही बड़बड़ाते हुए उन जेवरों को पहन रही थी। अब आखिर में इतने सारे सेट्स में से वह अपने गले के लिए सेट देखने लगी; कि एकाएक उसकी नज़र एक बेहद ही खूबसूरत; चमचमाते जड़ाऊ सेट पर पड़ी; जिसकी खूबसूरती इस कदर थी; कि देखने वाला बस उसे देखता ही रह जाए; और यही ध्रुवी के साथ भी हुआ। वह भी उस सेट को देखकर कुछ पल तक मंत्रमुग्ध सी हो गई थी।
ध्रुवी (उस सेट को हाथ में उठाते हुए): वाव! इट्स सो प्रिटी; सो ब्यूटीफुल। वैसा झमेला भले ही हो; लेकिन शाही चीज़ों के अंदाज़ का जवाब नहीं।
कुछ पल उस हार को सराहने के बाद ध्रुवी ने उसे पहनने का विचार किया। उसने एक हाथ से अपने बालों को कंधे पर एक साइड किया और हार अपने गले में डाल लिया। जैसे ही हार ने उसकी गर्दन छुई; अचानक ध्रुवी को ऐसा महसूस हुआ; कि किसी ने तेज़ी से उसकी गर्दन को सख़्ती से दबोच लिया; और वह हार अचानक ही ध्रुवी के गले में एकदम टाइटली कस गया था।
ध्रुवी (अपनी गर्दन पर अनदेखा प्रेशर महसूस करते हुए): आहहहहहहह!..... मेरी गर्दन।
अचानक कुछ ही पल में ध्रुवी के दोनों हाथ लगातार किसी अनदेखी ताकत से अपनी गर्दन को छुड़ाने की जद्दोजहद कर रही थीं। वह अनदेखी ताकत हर बढ़ते पल के साथ उस हार की पकड़ ध्रुवी के गले पर कसती जा रही थी। एक पॉइंट पर आकर ध्रुवी की आँखें घुटती मद्धम साँसों के साथ एकदम लाल पड़ गईं। अब ध्रुवी साँस लेने के लिए बुरी तरह छटपटाने लगी; और कुछ पल बाद अचानक उस अनदेखी ताकत ने ध्रुवी की साँसों को जैसे हमेशा के लिए थाम दिया।
(शशशशहहहह🤫 फिर कोई है? देखा है क्या किसी ने? तो क्या थी ये अनदेखी ताकत? कोई साया? कोई साज़िश? या महज़ वहम? जानने के लिए पढ़ते रहिए "शतरंज–बाज़ी इश्क़ की")
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