उस हार की पकड़ ध्रुवी के गले पर कसती ही जा रही थी; एक पल आकर ध्रुवी की आँखें, घुटती मद्धम साँसों के साथ, एकदम लाल पड़ गईं, और वह साँस लेने के लिए बुरी तरह छटपटाने लगी। ध्रुवी की आँखें अचानक ही एकदम लाल पड़ गई थीं, और उसके लाल पड़े चेहरे की उभरी नसें यह साफ़ ज़ाहिर कर रही थीं कि वह साँस लेने के लिए किस कदर जद्दोजहद कर रही थी।
ध्रुवी (छटपटाते हुए): आहहहहहहहहहहहह।
कुछ पल बाद, अचानक उस अनदेखी ताकत ने ध्रुवी की साँसों को जैसे हमेशा के लिए थाम दिया; कि तभी एकाएक अर्जुन ने कमरे में कदम रखे, और जैसे ही उसकी नज़र आईने में ध्रुवी के छटपटाते अक्स पर पड़ी, तो वह फुर्ती से उसकी ओर बढ़ गया।
अर्जुन (फुर्ती से आगे बढ़ते हुए): ध्रुवी? क्या हुआ आपको?
अर्जुन ने सवाल किया; उसने ध्रुवी के दोनों हाथों को अपनी गर्दन के पिछले हिस्से पर बेहिसाब मशक्कत महसूस करते देख, अपने हाथों को ध्रुवी की गर्दन की ओर ले गया, और उसने हल्की-फुल्की मशक्कत के साथ ही बड़ी आसानी से ध्रुवी के पहने हार का लॉक खोल दिया। लॉक खुलते ही ध्रुवी ने काँपते हाथों से उस हार को जल्दी से अपने गले से अलग करते हुए, वहीं ड्रेसिंग पर फेंक दिया।
अर्जुन (अजीब नज़रों से ध्रुवी को देखते हुए): आप ठीक हैं?
ध्रुवी लंबी-लंबी साँसें भरते हुए बुरी तरह खांसने लगी; अर्जुन भी, माथे पर चिंता की लकीरें लिए, उसे सामान्य करने के लिए लगातार उसकी पीठ सहलाते हुए थपथपाने लगा। कुछ पल बाद ध्रुवी की साँसें हल्की सी सामान्य हुईं, तो अर्जुन ने बेड के पास रखे पानी के ग्लास को लाते हुए, ध्रुवी के आगे बढ़ा दिया।
अर्जुन (ध्रुवी से): ये लीजिए, पहले थोड़ा सा पानी पी लीजिए; आप बेहतर फील करेंगी।
ध्रुवी ने बिना देरी किए पानी का ग्लास अर्जुन के हाथ से लेते हुए, एक ही साँस में ग्लास का सारा पानी गटक लिया; अर्जुन ने ध्रुवी के हाथ से खाली ग्लास लेते हुए, उसे वहीं टेबल पर रख दिया।
अर्जुन (ध्रुवी को कुर्सी पर बैठाते हुए): अब ठीक हैं आप?
ध्रुवी (हाँ में अपनी गर्दन हिलाते हुए): हम्मम… ठीक हूँ मैं।
अर्जुन (सहज भाव से): अगर कोई भी परेशानी है, तो आप हमें बताएँ; हम डॉक्टर को बुलाते हैं।
ध्रुवी (एक लंबी गहरी साँस भरते हुए): न… नहीं… डों… डोंट वरी, ठीक हूँ मैं।
अर्जुन (अपनी भौहें सिकोड़ कर): आर यू श्योर?
ध्रुवी (हामी भरते हुए): हम्ममम…
अर्जुन ध्रुवी से आगे कुछ कहता, कि अचानक उसकी नज़र ध्रुवी की गर्दन पर पड़ी, जहाँ कुछ अजीब से ताज़ा ज़ख्म के निशान थे।
अर्जुन (ध्रुवी की गर्दन की ओर इशारा करते हुए): ये आपकी गर्दन पर क्या हुआ है?
ध्रुवी (असमंजस से खड़े होकर आईने में देखते हुए): क… कहाँ?
जैसे ही ध्रुवी की नज़र आईने में अपनी गर्दन पर पड़ी, तो वह स्तब्ध रह गई; उसकी गर्दन पर दो-तीन जगह गहरे लाल निशान पड़ गए थे, जिनमें से हल्का खून भी रिस रहा था।
अर्जुन (ध्रुवी के पीछे खड़े होते हुए आईने में देखकर): इतनी चोट कैसे लगी आपको?
ध्रुवी (सोचते हुए): अगर मैं सच कहूँगी, तो आप मेरा यकीन नहीं करेंगे।
अर्जुन (असमंजस से): हम क्यों नहीं करेंगे आपका यकीन, आप बताएँ तो सही, कि बात क्या है आखिर?
ध्रुवी (कुछ पल सोचकर अपना थूक गटकते हुए): अर्जुन, यहाँ कुछ तो अजीब है।
अर्जुन (उसी असमंजसता के साथ): अजीब मतलब?
ध्रुवी (उलझन भरे भाव से): अजीब मतलब, कि जब से मैं यहाँ आई हूँ, सब कुछ बहुत अजीब सा हो रहा है, और…
ध्रुवी अपनी बात पूरी भी नहीं कह पाई थी, कि तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी।
अर्जुन (दरवाज़े की ओर देखकर): आइए अंदर।
कजरी (अंदर आते हुए): हुकुम सा, नीचे बड़े ठाकुर सा आ चुके हैं, दाई माँ ने आपको और महारानी सा की जल्द ही नीचे आने के लिए कहा है।
अर्जुन (कजरी की ओर देखकर): ठीक है, आप पिता जी के खान-पान का देखिए, हम लोग जल्द ही नीचे आते हैं।
कजरी (अपना सर हिला कर): जी हुकुम सा।
इतना कह कर कजरी ने एक अजीब सी गहरी नज़र ध्रुवी के गले के निशानों पर डाली, और फिर जल्दबाजी में वह बाहर की ओर बढ़ गई।
अर्जुन (ड्रेसिंग से वह हार उठाते हुए): जानती हैं आप, ये हार अनाया का सबसे फेवरेट था, वह हमेशा इसे पहना करती थी, क्योंकि ये उसकी माँ की निशानी है।
ध्रुवी (खुद में ही बड़बड़ाते हुए): ओह, तभी।
अर्जुन (एक गहरी साँस लेकर हार को वापस ड्रेसिंग पर रखते हुए): खैर छोड़िए ये सब, (ड्रेसिंग की दराज में से दवा निकाल कर), आइए हम आपके ज़ख्मों पर दवा लगा देते हैं।
ध्रुवी (अपने ज़ख्म में जलन महसूस करते हुए): नहीं, मैं कर लूँगी।
अर्जुन (ध्रुवी का हाथ पकड़ कर उसे सोफ़े पर बैठाते हुए): आप से नहीं होगा, आप बैठे, हम कर देते हैं।
ध्रुवी (उलझन भरे भाव से): लेकिन…
अर्जुन (ध्रुवी को टोकते हुए): कुछ लेकिन-वेकिन नहीं, इट्स नॉट अ बिग डील, आपकी इतनी छोटी सी हेल्प तो कम से कम कर ही सकते हैं हम।
इसके बाद ध्रुवी ने आगे कुछ नहीं कहा; अर्जुन ने बड़ी सहजता के साथ ध्रुवी की गर्दन पर दवाई लगाई; हालाँकि अर्जुन की उंगलियों की छुअन से ध्रुवी के अंदर एक अजीब सी सिहरन दौड़ रही थी, जिसे वह महसूस तो कर पा रही थी, लेकिन बयाँ करना मुश्किल था; अर्जुन ने ध्रुवी के ज़ख्म पर दवाई लगाई और उठकर फ़्रेश होने के लिए जाने लगा, कि ध्रुवी ने उसे टोका।
ध्रुवी (उलझन भरे भाव से): अर्जुन, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।
अर्जुन (सहज भाव से): अभी हम दोनों को नीचे चलना होगा, सब हमारा इंतज़ार कर रहे हैं, वापस आकर बात करते हैं।
ध्रुवी (हाँ में अपनी गर्दन हिलाते हुए): हम्मम… ठीक है।
अर्जुन (ज़ेवरात के बॉक्सेस की ओर देखकर): और जिसमें भी आप सहज हो, वह पहन लीजिए, आप जब तक भी यहाँ हैं, आप किसी भी चीज़ से बाध्य नहीं हैं।
ध्रुवी (खोए हुए अंदाज़ में): हम्मम…
इसके बाद अर्जुन फ़्रेश होने के लिए चला गया, और कुछ देर बाद वह वापस आया, तो ध्रुवी और वह दोनों महल के दूसरे हिस्से की ओर बढ़ गए, जहाँ पर ख़ास तौर पर मेहमानों के बैठाने की व्यवस्था थी; ध्रुवी और अर्जुन नीचे मेहमानखाने में पहुँचे, तो दाई माँ के साथ ही कुछ लोग और भी मौजूद थे।
अर्जुन (ध्रुवी से): आइए ध्रुवी।
अर्जुन ध्रुवी को साथ लिए सबसे पहले अपने पिता मंजीत जी की ओर बढ़ा; अर्जुन और ध्रुवी ने उनके पास जाकर एक साथ ही उनके पैर छुए, तो उन्होंने दोनों को ढेरों आशीर्वाद देते हुए उन्हें खड़ा किया।
मंजीत जी (उन दोनों को आशीर्वाद दे खड़ा करते हुए): जीते रहिए, सदा खुश और आबाद रहिए, फलिये-फूलिए, और बस हमेशा साथ में ही हँसते-मुस्कुराते रहिए।
अर्जुन (मुस्कुरा कर): धन्यवाद पिता जी।
ध्रुवी (एक पल रुक कर): आभार, आप कैसे हैं पिता जी?
मंजीत जी (मुस्कुरा कर ध्रुवी और अर्जुन का गाल छू कर): अरे हमने अपने बेटे और बहू को देख लिया, मतलब हम एकदम अच्छे हैं, (एक पल रुक कर), वैसे हमारी लाडली पौती कहाँ हैं?
मीरा (पीछे से आते हुए मंजीत की बात का जवाब देकर): ये रहीं आपकी लाडली।
मंजीत जी ने अव्या को देखा, तो उनके चेहरे की मुस्कान गहरी हो गई, और उन्होंने मीरा की गोद से उसे फ़ौरन ही अपनी गोद में ले लिया और उससे खेलने लगे।
मंजीत जी (अव्या से खेलते हुए): अरे! हमारी प्यारी लाडली पोती, बहुत याद किया हमने आपको।
मंजीत जी अव्या के साथ बिज़ी हो गए; जबकि अर्जुन और ध्रुवी अनाया के काका और काकी की ओर बढ़े; दोनों ने झुक कर उनका आशीर्वाद लिया, तो काकी ने अनाया को अपने सीने से लगा लिया और लगी घड़ियाल आँसू बहाने।
काकी सा (घड़ियाल आँसू बहाते हुए): हाए! क्या बताएँ हम आपको अनाया, हमारी तो आँखें तरस गई थीं आपको देखने के लिए, हमारी तो दिन-रात ईश्वर से यही प्रार्थना थी कि आप बस जहाँ भी हों, सुरक्षित हो।
ध्रुवी (हौले से मुस्कुरा कर): तो देखिए आपकी प्रार्थनाओं का ही असर है, कि हम सही-सलामत आपके सामने खड़े हैं।
काकी सा (झूठी फ़िक्र जताते हुए): अरे! आपने तो हमारे मुँह की बात छीन ली बिटिया, (एक पल रुक कर) हम ही जानते हैं, (झूठी दिखावटी बातें बनाते हुए), कि आपकी गैरमौजूदगी में हमने कैसे ये वक़्त गुज़ारा है।
पास खड़ी बुआ जी (अपने नंबर बढ़ाने के लिए तपाक से): अरे बस कीजिए भाभी सा, आपसे ज़्यादा तो हम तड़पे हैं अपनी बच्ची के लिए, (ध्रुवी के चेहरे को थामते हुए), आखिर हमारा खून है ये, आप तो फिर भी ठहरी बाहर वाली।
काकी सा (लगभग सुलगते हुए): अय हय! ऐसे कैसे, भले ही हमारा खून ना सही, लेकिन अपनी सगी औलाद से बढ़कर चाहा है हमने अपनी अनाया को।
दाई माँ (बड़बड़ा कर): सगी औलाद, हुंह, सब पैसे का मोह है, वरना इनके जान तो आज अनाया मरे, इन्हें कोई फ़र्क नहीं, (एक पल रुक कर), घड़ियाल आँसू, और दिखावटी प्यार तो कोई इन दोनों नौटंकियों से सीखे।
बुआ सा (उसी अंदाज़ में जवाबदेही करते हुए): अरे चाहा होगा, लेकिन हमसे ज़्यादा फिर भी नहीं, (ध्रुवी की ओर देखकर झूठी चिंता जताते हुए), ईश्वर साक्षी हैं अनाया, कि आपकी जुदाई में, हमने खाना-पीना भी त्याग दिया था, तभी हम इतने दुबले हो गए।
काकी सा (अपना रोना रोते हुए): हाँ अनाया, जब अर्जुन सिर्फ़ अव्या को लेकर लौटे, तो किसी अनहोनी के डर से ही, हमारा दिल थर-थर काँप उठा था।
ध्रुवी मजबूरी में उन दोनों की बातों में उलझते हुए, बस हौले से सर हिलाते हुए, सहमति जता रही थी।
काकी सा (अपनी नौटंकी जारी रखते हुए): और पूछिए अर्जुन से ही, आप कहाँ हैं, इस बारे में जानने की उत्सुकता सबसे पहले हमने ही जताई थी, (अपनी गोल-मटोल कलाइयों को आगे करते हुए), देखें कितने कमज़ोर हो गए हैं हम।
मीरा (तंज भरी मुस्कुराहट के साथ): माँ सा, मामी सा, अगर आप दोनों के भारी- भरकम शरीर को दुबला कहा जाएगा, तो बाय गॉड हम तो फिर साक्षात डबल कुपोषण का शिकार कहलायेंगे।
मीरा की बात सुन कर, अर्जुन और ध्रुवी के साथ ही, दाई माँ और बाकी लोग भी दबी हँसी हँस पड़े, और बुआ सा और काकी सा बस मुँह बना के रह गईं।
दाई माँ (ध्रुवी की जान बचाते हुए): आइए मिष्टी, हम आपको बाकी लोगों से मिलवाते हैं।
ध्रुवी (हामी भरते हुए): जी दाई माँ।
इसके बाद ध्रुवी और अर्जुन बाकी लोगों से मिले; सबसे मिलने के बाद, और इधर-उधर की कुछ बातों के बाद, आखिर में सबने एक साथ खाना खाया, और फिर काफ़ी रात गए सब लोग अपने-अपने कमरों में सोने के लिए चले गए; ध्रुवी कमरे में आई, तो एक-एक कर अपनी जूलरी उतारते हुए, वह उन सब लोगों के बारे में सोचते हुए मुस्कुरा उठी; तभी अर्जुन वहाँ आया।
अर्जुन (ध्रुवी को मुस्कुराता देख टोकते हुए): क्या हुआ, क्या सोच कर मुस्कुरा रही हैं आप?
ध्रुवी (मुस्कुरा कर): बस यही, कि पैसे के लिए इंसान असल जिंदगी में भी रोल प्ले करने लगते हैं।
अर्जुन (वही कुर्सी पर बैठते हुए): काकी माँ और बुआ सा की बात कर रही हैं?
ध्रुवी: हम्मम।
अर्जुन (अपनी स्लीव्स फ़ोल्ड करते हुए): शायद कुछ लोगों को लगता है कि पैसे के आगे, उसके सिवा कोई जिंदगी ही नहीं।
ध्रुवी (अर्जुन की बात पर सहमति जताते हुए): बिल्कुल ठीक कहा आपने, पैसों और शोहरत के लिए लोग अंधे हो चुके हैं।
अर्जुन (हाँ में सर हिलाते हुए): हम्मम, शायद वह लोग इसे ही अपनी ज़िंदगी का मकसद समझ बैठे हैं।
ध्रुवी (एक गहरी साँस लेकर): हम्मम, खैर, (अर्जुन की ओर देखकर), आपको कुछ चाहिए था, आप इस वक़्त यहाँ?
अर्जुन (थोड़ा असहज होकर): आ, दरअसल, यहाँ मौजूद सबकी नज़रों में हम पति-पत्नी हैं, तो उस हिसाब से हमारा और आपका कमरा एक ही है।
ध्रुवी (अचानक ही शॉक्ड से खड़े होकर): व्हाट, आपका दिमाग तो ठिकाने पर है, आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं?
अर्जुन (सहजता से): देखें ध्रुवी, हम आपकी बात समझ रहे हैं, लेकिन आप भी हालात समझने की कोशिश करें।
ध्रुवी (नाराजगी भरे लहज़े से): व्हाट हालात अर्जुन, आई मीन, मैं एक गैर मर्द के साथ, बिना किसी रिश्ते के, अकेले, एक कमरे में रहूँगी, (ना में अपनी गर्दन हिलाते हुए), नेवर।
अर्जुन (ध्रुवी को एक्सप्लेन करने की कोशिश करते हुए): ध्रुवी, आप समझने की कोशिश कीजिए, अलग कमरों में रहने पर हम सब को क्या जवाब देंगे आखिर, सब लोग सवाल उठाएँगे।
ध्रुवी (सपाट लहज़े से): वह आपकी टेंशन है, आपकी हेडेक है, आप कैसे मैनेज करेंगे यह आप सोचें, मगर मैं एक कमरे में हरगिज़ आपके साथ नहीं रह सकती, यह तय है।
अर्जुन (उसी सपाट लहज़े के साथ): तो फिर आर्यन की सेफ़्टी भी आपकी हेडेक है, हमारी नहीं।
ध्रुवी ने जैसे ही अर्जुन के मुँह से आर्यन का नाम सुना, तो उसकी आँखें फ़ौरन ही आँसुओं से डबडबा गईं, और अपनी नम आँखों के साथ ही वह इस कमरे में मौजूद बालकनी की ओर बढ़ गई; रात के अंधेरे में महल की ख़ूबसूरती देखते ही बन रही थी।
अर्जुन (फ़्रस्ट्रेशन भरी साँस लेते हुए): गुस्से में हम ज़्यादा ही रिएक्ट कर गए शायद।
इस वक़्त जिस कमरे और बालकनी के हिस्से में ध्रुवी थी, वह इस महल का सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत हिस्सा था, जो अनाया के पिता ने अनाया की शादी के बाद ख़ास तौर पर उसके लिए बनवाया था; लेकिन इस वक़्त ध्रुवी का दिमाग इन सब चीज़ों से हटकर, बस अपनी ज़िंदगी की परेशानियों और उलझन से ही घिरा था।
ध्रुवी (आसमान की ओर देखते हुए): मैं ही क्यों, क्या कुसूर है मेरा, कि मैंने मोहब्बत की, सच्ची मोहब्बत?
ध्रुवी अपनी उलझन में उलझी थी, कि कुछ पल बाद ही ध्रुवी को अपने पीछे अर्जुन के आने की आहट हुई; लेकिन ना तो उसने वहाँ से जाने की कोशिश की, ना ही कुछ कहा; वह बस नम आँखों से शून्य को निहार रही थी; अर्जुन भी उसके साइड में खड़े होते हुए, रेलिंग पर हाथ जमाए, वही आ गया, और आखिर में उसने अपनी चुप्पी तोड़ी।
अर्जुन (रेलिंग पर अपने हाथ जमाए सामने देखकर): एम सॉरी, हम वाकई आपको हर्ट नहीं करना चाहते थे, लेकिन जाने-अनजाने हमने आपको हर्ट कर दिया।
अर्जुन की बात सुनकर भी ध्रुवी ने अभी भी कोई रिएक्शन नहीं दिया, तो आखिर में एक गहरी साँस लेते हुए, अर्जुन ने सहजता से उसे अपनी बात समझाने की कोशिश की।
अर्जुन (सहज भाव से): जानते हैं आप हर्ट हुई हैं हमारी बात से, पर हम क्या करें, हम खुद मजबूर हैं, आज आप मिली ना सबसे, देखा आपने, कि सबकी नज़रें हैं हम पर, बस हम शक के दायरे में नहीं आना चाहते थे, देट्स इट।
ध्रुवी (मद्धम लहज़े से): तो आप ये चाहते हैं कि किसी के शक के दायरे के चलते मैं अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट, अपनी स्मिता, अपनी गरिमा से कम्प्रोमाइज़ कर लूँ?
अर्जुन (एक गहरी साँस लेकर): छोड़िए आप ये सब, हमने जो कहा, उसके लिए एम रियली सॉरी, (एक पल रुककर), और आप टेंशन मत लीजिए, हम देख लेंगे, क्या करना है, कैसे सिचुएशन को संभालना है, (एक पल रुक कर), हम हरगिज़ नहीं रुकेंगे आपके साथ एक कमरे में, पर प्लीज़ आप रोना बंद कर दीजिए।
ध्रुवी (शून्य को निहारते हुए ही नम आँखों से): आज नहीं तो कल, आपका काम, आपका मकसद पूरा हो ही जाएगा, लेकिन उसके बाद क्या होगा, आपने सोचा है कभी?
अर्जुन (असंजसता से): हम समझें नहीं, आप कहना क्या चाहती हैं?
ध्रुवी (मिले-जुले भाव से): यही कि जब कल को मैं वापस जाऊँगी, और आर्यन मुझसे सवाल करेगा, कि बिना किसी रिश्ते के भी मैं आपके साथ एक कमरे में किस हक़ से रही, तो मैं क्या जवाब दूँगी उसे, और कैसे साबित करूँगी कि मैं बेगुनाह हूं और..…
अर्जुन (ध्रुवी की बात को बीच में ही काटते हुए): एम सॉरी टू से, पर अगर आपको खुद को, खुद की मोहब्बत, खुद की वफ़ा को साबित करना पड़े, तो वह कैसी मोहब्बत है?... (ना में अपनी गर्दन हिलाते हुए)..... नहीं वो मोहब्बत नहीं होती, वो बस मोहब्बत होने का भ्रम होती है।
ध्रुवी ने जैसे ही अर्जुन की कही बात सुनी, तो फ़ौरन ही उसने अपनी नज़रे और रुख अर्जुन की तरफ़ घुमाया।
अर्जुन (पूरी गम्भीरता के साथ): क्योंकि मोहब्बत का दूसरा नाम ही भरोसा है, और जहाँ इस भरोसे को ही साबित करना पड़े, फिर वहाँ मोहब्बत जैसे अनमोल जज़्बात का कोई मोल ही नहीं होता, (एक पल रुक कर), और जहाँ मोहब्बत का मोल ही नहीं, वहाँ सब जज़्बात बेमाने हैं, झूठे हैं।
ध्रुवी ने जब अर्जुन की कही इतनी गहरी बात सुनी, तो ना चाहते हुए भी, अनजाने भाव के साथ, उसकी नज़रें अर्जुन के चेहरे पर ही एकटक टिक कर रह गई थीं।
(क्या फ़ैसला होगा ध्रुवी का? क्या होगा अगर भविष्य में उसका डर सही साबित हो गया? क्या होगा अगर आर्यन ने वाकई उसकी मोहब्बत की कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया? और आखिर किसका है वह अनदेखा अनजाना साया जो ध्रुवी की जान लेने पर तुला है? क्या हैं इस महल में छुपे वह गहरे राज़?..... क्या ध्रुवी उन राज़ो से पर्दा उठा पाएगी?..... जानने के लिए पढ़ते रहिए… "शतरंज-बाज़ी इश्क़ की।)
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