रितिका के सामने सौरभ की सच्चाई का एक हिस्सा आता है, जिससे उसका प्यार सूखे चिनार  के पत्तों सा बिखर जाता है। रितिका अपने आपको संभालने की कोशिश करती है, मगर नाकामयाब रहती है। लत, चाहे सामान की हो या इंसान की, दोनों ही मायनों में हमें खोखला कर देती है। सौरभ की लत ने भी रितिका को कमजोर करना शुरू कर दिया था। रितिका पहली बार सौरभ की बात बिना सुने ही घर लौट आई। रितिका के जाने के बाद, सौरभ एक घंटे तक सी लिंक पर खड़ा लगातार सिगरेट पीता रहा। उसी वक्त, सौरभ के बगल से एक 35 साल का आदमी, एक 26 साल की लड़की की कमर में हाथ रखे, फोन पर बातें करते हुए खुशी से कहता है, “मैं भी...  तुम्हें और हमारी किंशुक को बहुत मिस कर रहा हूँ। तुम लोगों के बिना इस शहर में मेरा मन नहीं लगता है, पर काम का प्रेशर इतना ज्यादा है कि मैं तुम्हारे पास हर हफ्ते शिरडी आ भी नहीं सकता।”

सौरभ को इस अंजान आदमी की बातें सुनकर हैरानी हुई। कुछ देर तक तो सौरभ को समझ ही नहीं आया कि उसकी आँखों ने आखिर क्या देखा। उस शख्स की हरकतों को देखकर सौरभ को यकीन हो गया कि वो जो कर रहा है, वही पूरी दुनिया कर रही है। बस सबके लूटने का तरीका अलग है।

सौरभ को एक तरफ इस बात से हैरानी हो रही थी कि आखिर रितिका सच तक कैसे पहुँची? सौरभ ‘एकनिष्ठा बार’ में तरह-तरह के खयाल सोचने पर मजबूर हो गया। कभी उसे लगता कि कहीं रितिका ने उसके पीछे किसी जासूस को तो नहीं लगाया? तो कभी उसे लगता कि रितिका ने कहीं उसका फोन तो हैक नहीं किया? जब सौरभ उससे 2 लाख रुपये लेकर निकला, तब तो सब ठीक था। सौरभ के सिर की नसें इन सवालों की वजह से दुखने लगीं। जब सौरभ से उसकी उलझनें नहीं संभलीं, तब उसने इन बीती बातों पर गौर करने के बजाय अपने आज पर फोकस किया और सौरभ के आज में, रितिका उससे बहुत नाराज़ थी। इतनी नाराज़ कि वह सौरभ की तरफ देखना नहीं चाहती थी, बात करना तो दूर की बात है।

सौरभ को जब कुछ समझ नहीं आया, तो उसने गाड़ी सीधी रितिका के फ्लैट की तरफ बढ़ाई। उसने पूरे रास्ते लगातार रितिका को कॉल किया, पर रितिका ने किसी एक कॉल का भी जवाब नहीं दिया। आखिर में सौरभ की हरकतों से तंग आकर उसने अपना फोन स्विच ऑफ कर दिया। सौरभ की टेंशन बढ़ती गई। उसके दिमाग़ में ख़याल आया कि वह रितिका के घर चला जाए, लेकिन रितिका का गुस्सा देखने के बाद, उसे लगा कि रितिका से मिलना ज़्यादा ज़रूरी है।

सौरभ जैसे ही रितिका के फ्लैट के नीचे पहुँचा, फ्लैट का मेन गेट बंद हो चुका था। सौरभ ने सिक्योरिटी गार्ड को आसपास ढूँढ़ा, मगर वह नहीं दिखा। इसके बाद सौरभ अपनी दूसरी चाल बुनने लगा। इस बार वह रितिका को यह दिखाना चाहता है कि उसने जो किया, वह सही किया।

सौरभ अपने दिमाग़ में बहुत क्लियर था। उसने इस बार का टारगेट 7 लाख रुपयों का रखा था, जिसमें से अब तक उसे सिर्फ़ 2 लाख रुपये ही मिले थे। सौरभ अपने काम में कंसिस्टेंट था। उसका अपना क्लियर फ़ंडा था कि जब तक वह अपना टारगेट अचीव नहीं करता, तब तक वह अपने शिकार को कहीं जाने नहीं देता था।

सौरभ रितिका की दुखती नस जान चुका था इसलिए इस बार उसने सीधे उस नस को ज़ोर से दबाया। अपनी चालाकी दिखाते हुए, सौरभ ने सापूतारा के रिसॉर्ट मैनेजर को झूठी कहानी बताकर रितिका का नंबर दिया और उसे कॉल करने को कहा। सौरभ ने मैनेजर को इस बात पर ज़्यादा फोकस करने को कहा कि ये कॉल रितिका के सरप्राइज बर्थडे की बुकिंग के बारे में है।

जैसा सौरभ ने कहा था, रिसॉर्ट मैनेजर ने वैसा ही कॉल किया, जिसके तुरंत बाद ही सौरभ के पास रितिका का कॉल आ गया।

 

रितिका (सवालिया लहज़ा): सापूतारा रिसॉर्ट में तुमने मेरा बर्थडे प्लान किया है?

सौरभ (चौंककर): तुम्हें किसने बताया?

रितिका (ख़ुशी से): वो सब छोड़ो, तुमने पहले क्यों नहीं बताया?

सौरभ (मासूमियत से): सरप्राइज़ कोई बताता है क्या? तुम कल मेरा कॉल ही नहीं उठा रही थी, मजबूरन मुझे रिसॉर्ट मैनेजर की हेल्प लेनी पड़ी। उसने मेरे कहने पर कल तुम्हें कॉल किया, लेकिन तुम्हारा फोन स्विच ऑफ़ था।

रितिका (पछतावे से): मुझे माफ़ कर दो, मुझे तुम पर शक नहीं करना चाहिए था।

सौरभ (गंभीरता से): मैं समझ सकता हूँ, तुम्हारे पास्ट एक्सपीरियंस ने तुम्हें ये सब सोचने पर मजबूर कर दिया है। मैं तुम्हें कब से अपनी ज़िंदगी का सच बताना चाहता था। मुझे लगा, इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। पर... अब जो तुम मेरी ज़िंदगी का हिस्सा हो... you should know this.

रितिका (विनम्रता से): हाँ बताओ, मैं सुन रही हूँ।

सौरभ: नहीं, अभी नहीं। शाम को 5 बजे पवई लेक पहुँचो।

 

सौरभ की बातों में एक बार फिर मछली की तरह फंसते हुए, रितिका मान जाती है। उससे बात करने के बाद रितिका का मन एक बार फिर शांत होने लगता है। जिससे उसे सौरभ की गलतियाँ समझ नहीं आतीं।

रितिका सोचने लगती है कि उसे सौरभ को लेकर इतनी जल्दी किसी भी नतीजे पर नहीं आना चाहिए था। वह अपने डेस्क पर बैठकर कंपनी के अकाउंट्स बारीकी से देख रही थी, जहाँ उसे कैश फ्लो स्टेटमेंट में एक छोटी सी गड़बड़ी दिखी। इस पर उसने पूरे अकाउंट्स डिपार्टमेंट की क्लास लगा दी।

उसी वक्त, उसके एक कलीग ने उसे कॉम्प्लिमेंट देते हुए कहा, "तुम्हारी नज़र एकदम गिद्ध जैसी है, जिसे मालूम है उसका निशाना कहाँ लगाना है।"

रितिका इस कॉम्प्लिमेंट को accept करते हुए "थैंक यू" कहती है और वापस अपने काम में लग जाती है। रितिका कंपनी की इकलौती ऐसी एम्प्लोयी थी जिसे काफ़ी जल्दी फाइनेंशियल एक्सपर्ट की उपाधि मिल गई थी। अपनी नौकरी के पाँच सालों में ही उसने बेहतर इन्वेस्टमेंट करके खुद के लिए अच्छे पैसे जोड़ लिए थे।

इसके बावजूद भी, सौरभ के सामने रितिका की सारी समझ पर  पानी फिर जाता था। अक्सर देखा गया है कि लड़कियाँ जब प्यार में पड़ती हैं, तब एक साधारण से कुएँ को समंदर समझने की गलती कर बैठती हैं। रितिका भी वही गलती दोहरा रही थी। खैर, जब जागो तब सवेरा। अब पता नहीं, ये सवेरा रितिका की ज़िंदगी में कब आने वाला था।

 

आज रितिका ऑफिस से हाफ डे लेकर ही सौरभ से मिलने निकल जाती है। उसकी कैब जैसे ही सिग्नल पर रुकती है, उसकी नज़र गुलाब के फूल बेच रहे लड़के पर पड़ती है, जिससे उसने फूलों का गुच्छा खरीदा। जैसे ही रितिका पवई लेक पर पहुंची, उसे सौरभ याने के श्रवण पेड़ से टिककर खड़ा दिखा। वह तुरंत उसके पास गई और अपने घुटनों पर बैठकर उसको गुलाब देते हुए सॉरी कहा।

हालाँकि, रितिका का यह जेस्चर सौरभ के लिए वाकई नया था, क्योंकि इससे पहले जिन लड़कियों के साथ वह था, उनमें से किसी ने भी उसके मन के भीतर झांकने की कोशिश नहीं की। वह रितिका ही थी, जिसकी कोशिशें सौरभ के खोखलेपन को कुरेद रही थीं, मगर सौरभ पर उसका बीता हुआ कल इतना हावी था कि उसने अपने अंदर की इंसानियत का ही गला घोंट दिया।

सौरभ अपनी दिखावटी हंसी हंसते हुए रितिका को गले से लगाता है, जिसके बाद दोनों लेक के किनारे बैठते हैं।

कुछ देर ख़ामोश बैठने के बाद, सौरभ ने अपना सिर रितिका के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘’मैं जानता हूँ, तुम हर्ट हुई हो, मगर मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था।''

 

रितिका (फ़िक्र से): पर बताओ तो सही, क्या हुआ है?

सौरभ (गंभीरता से): दरअसल, बैंक जाने वाले दिन से ठीक एक रात पहले मुझे मेरी कज़िन सिस्टर का फोन आया। वह बहुत परेशान थी। पहले तो वह खूब रोती रही, फिर जब मैंने उसे कंसोल किया, तब उसने बताया कि उसके बॉयफ्रेंड ने उनके प्राइवेट मोमेंट्स की वीडियो बना ली है। वह धमकी दे रहा है कि अगर उसे दो लाख रुपये नहीं मिले, तो वह वीडियो एडल्ट साइट पर अपलोड कर देगा।

 

रितिका (सवालिया लहज़ा): तुमने फिर क्या एक्शन लिया?

सौरभ (गंभीरता से): मैंने जब तुम्हें फोन किया, तब इतना डरा हुआ था कि उस वक्त मुझे जो सूझा, मैंने बोल दिया। मेरा पूरा ध्यान मेरी कज़िन की प्रोटेक्शन में था। उस दिन बैंक में जब तुम लोन की बात कर रही थी, मेरा ध्यान सिर्फ इस बात पर था कि कितनी जल्दी मेरे पास पैसे आ जाएं। मैंने जो पैसे इन्वेस्ट किए हैं, वह अब तक मुझे मिले नहीं। बैंक आने से पहले मैंने इन्वेस्टर को कॉल किया था, पर वह भी अपनी बातों में मुझे घुमाने लगा। उसी वक्त मेरी कज़िन का भी कॉल आ गया। जल्दबाज़ी में मुझे तुमसे पैसे लेने पड़े।

 

सौरभ की बातें सुनने के बाद रितिका को अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया। वह मन ही मन खुद को कोसने लगी, यह सोचकर कि उसने सिक्के का दूसरा पहलू जानने की कोशिश क्यों नहीं की। उसी वक्त वह सौरभ को कसकर गले लगाते हुए कहती है, ‘’तुम यह सब अकेले झेलते रहे और मुझे बताना तक ज़रूरी नहीं समझा।''

 

सौरभ (भारी आवाज़ में): बताना चाहता था, पर कोई मौका नहीं मिला। तुमने जो पैसे दिए, मैंने उसे उसके अकाउंट में ट्रांसफर किया और फिर तुम्हारे बर्थडे की प्लानिंग के लिए सापूतारा निकल गया। तुमने एक बार में मुझे अपनी मेहनत की कमाई दे दी। मुझे नहीं पता मैं तुम्हारा यह एहसान कैसे चुका पाऊंगा?

 

रितिका (प्यार से): तुम्हें ज़्यादा कुछ नहीं करना है, सिर्फ मेरे साथ रहना है।

सौरभ (प्यार से): अच्छा, मुझे एक हफ्ते बाद कोलकाता जाना है।

रितिका (सवालिया लहज़ा): अचानक कैसे? सब ठीक है?

सौरभ (लड़खड़ाती ज़ुबान): हाँ, वो... घर के रेनोवेशन का काम देखना है। मैं चाह रहा था कि दुर्गा पूजा तक काम पूरा हो जाए...  तो फिर तुम्हें इस दुर्गा पूजा अपने घर ले चलूँ। तुम भी देखो और यक़ीन करो कि मैं कहीं नहीं जाऊँगा, यहीं रहूँगा, ठीक तुम्हारे पास।

रितिका (ख़ुशी से): सच कह रहे हो श्रवण?  मुझे यक़ीन नहीं हो रहा है कि कोई लड़का मेरे लिए अपने घर पर बात करने वाला है।

सौरभ (हंसकर): मैं ऐसा करूँ भी क्यों ना? आखिर तुम इस दुनिया की हर ख़ुशी डिज़र्व करती हो।

एक बार फिर सौरभ का बुना जाल कामयाब होता दिखता है। एक बार फिर उसे अपनी किस्मत पर गुरूर होता है। जो बाज़ी सौरभ को हाथ से निकलती हुई नज़र आ रही थी, अब वह वापस उसके हाथ में आ चुकी थी।

रितिका उस पर फिर से भरोसा करने लगी थी, जिससे सौरभ का आगे का रास्ता आसान हो गया। रितिका भी जब सौरभ से मिलकर घर लौटी, तब खुश दिखाई दे रही थी। उसकी खुशी इस बात की भी थी कि सौरभ उसे इस दुर्गा पूजा अपने घर ले जाने वाला है।

रितिका के मन में आया कि वह यह बात अपनी माँ से शेयर करे, पर फिर यह सोचकर उसने खुद को रोक लिया कि अभी दुर्गा पूजा में वक्त है। रितिका अपने और सौरभ के मोमेंट्स को याद ही कर रही थी कि उसी वक्त अपूर्व का कॉल आया। उसने सौरभ के केस का अपडेट लिया। जैसे ही रितिका ने उसे केस का ब्योरा देना शुरू किया, अपूर्व समझ गया कि सौरभ के साथ कुछ तो गड़बड़ है, पर उसने रितिका से तब कुछ नहीं कहा।

दोनों ने कुछ देर बातें कीं, फिर अपूर्व ने फोन रख दिया और रितिका भी अपने फाइनेंस प्रोजेक्ट पर लग गई।

अपूर्व समझ चुका था कि रितिका के साथ कुछ बहुत अजीब होने वाला है। मगर यह बात वह रितिका को कैसे समझाए, इसका कोई रास्ता नहीं निकाल पा रहा था...  

क्या अपूर्व उसे सौरभ के झूठ से बचा पाएगा?

कितना दर्दनाक होगा वह मंजर, जब रितिका के सामने सौरभ की सच्चाई आएगी। 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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