सौरभ एक बार फिर अपने झूठ को सच बनाकर, रितिका के सामने पेश करने में कामयाब हो गया था। इसे सच मानकर रितिका भी उस पर दोबारा भरोसा करने लगती है। रितिका का दोस्त अपूर्व उसे चेतावनी देने की कोशिश करता है, मगर बिना किसी सबूत के उसे रितिका को कुछ भी बोलना सही नहीं लगता।
रीतिका, सौरभ से मिलकर लौटने के बाद से ही वो बहुत खुश थी। अपनी ख़ुशी बांटने के लिए रीतिका अपना फ़ोन उठाती है। वह वक़्त देखती है तो रात के तीन बज रहे होते हैं। रीतिका सुबह होने का इंतज़ार करती है।
अगली सुबह, रितिका, मानसी को फ़ोन कर बताती है कि इस दुर्गा पूजा, सौरभ उसे अपने घर ले जाने वाला है। रितिका की बात सुनकर मानसी उससे कहती है कि उसे कोई भी कदम उठाने से पहले थोड़ा सोचने-समझने की ज़रूरत है।
दरअसल, मानसी ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि अपूर्व ने मानसी को सौरभ के पैसों के हेर-फेर वाले मामले के बारे में बता दिया था। मानसी ने इस बात की भनक रितिका को नहीं लगने दी और उससे सारी बातें जारी रखी। मानसी जानती थी कि अगर इस बार रितिका टूटी, तो बात उसकी जान पर बन आएगी।
एक तरफ़ रितिका मानसी को बड़ी उत्सुकता से अपनी लव लाइफ़ के बारे में बताती जा रही थी, और दूसरी तरफ़ मानसी की आँखों में रितिका की बिगड़ती तबीयत का मंजर झूल रहा था। मानसी यह बात अच्छी तरह जानती थी कि रितिका जब भी कोई झूठ सुनती है, एंक्शियस हो जाती है, फिर उसे संभालना किसी के भी बस की बात नहीं होती।
रितिका ने राज के जाने के तीन साल बाद अपनी ज़िंदगी में किसी को दोबारा शामिल किया है। ऐसे में, मानसी का सौरभ उर्फ़ श्रवण को लेकर कुछ भी कहना, रितिका के मन में गहरी उदासी का बीज बो सकता था।
लगभग एक घंटे बात करने के बाद, रितिका दोबारा अपने काम पर लग जाती है। हर सुबह की तरह, इस सुबह भी वह स्टॉक मार्केट एनालिसिस पर बैठी स्टॉक्स पर डील कर रही थी।
उसी वक़्त उसे सौरभ का फ़ोन आया।
सौरभ (प्यार से): हे माय लेडी लक, गुड मॉर्निंग।
रितिका (ख़ुशी से): गुड मॉर्निंग, आज इतनी जल्दी उठ गए?
सौरभ (प्यार से): हाँ, तुम्हारी आवाज़ सुनने का बहुत मन कर रहा था।
रितिका (सवालिया लहज़ा): आज का क्या प्लान है?
सौरभ (बेफ़िक्री से): वही लोगों की दिमागी हालत पढ़ो, दवा लिखो, उनसे बातें करो, फिर घर आ जाओ। घर आकर अकेलेपन से बातें करो। यही प्लान है आज का... और क्या?
रितिका (सवालिया लहज़ा): वैसे हमें बात करते काफ़ी वक़्त हो गया है। अभी तक तुमने मुझे अपने घर का पता नहीं बताया।
सौरभ (प्यार से): ठीक है, फिर आज शाम डिनर मेरे घर पर करते हैं। क्या खाना पसंद करोगी—कॉन्टिनेंटल, चाइनीज़, इटैलियन या इंडियन?
रितिका (छेड़ते हुए): तुम जो चाहो बनाओ। मैं तुम्हारे हाथ से ही खाऊँगी।
सौरभ (हँसते हुए): ओह, माय गर्ल वांट्स प्रिंसेस ट्रीटमेंट!
रितिका (ख़ुशी से): इज़ देयर एनी डाउट?
सौरभ (प्यार से): इन दैट केस, मैं ज़रा इस शाम को औ भी यादगार बनाए का प्लान करता हूँ!
रितिका, सौरभ की बात सुनकर खुश हो जाती है। आज ऑफिस में भी उसका मूड काफ़ी अच्छा रहता है। रितिका अपनी फ़ाइनेंस प्रेज़ेंटेशन बनाना शुरू करती है।
उसको काम में डूबा देख, उसके ऑफिस के कलीग्स कहते, "टेक सम रेस्ट, रितिका। एक ही दिन में इस कंपनी को वर्ल्ड की लीडिंग कंपनी नहीं बना सकती।"
रितिका उनके ऐसा कहने पर ज़्यादा कुछ नहीं कहती। उसकी आदत थी अपने काम से हर सवाल का जवाब देने की।
रितिका अपने कीबोर्ड पर उंगलियाँ फिरा रही होती है। उसी वक़्त उसे याद आता है कि अब तक उसने सौरभ के लिए कुछ नहीं लिया है। वह तय करती है कि सौरभ के लिए इत्र की शीशियाँ लेकर जाएगी।
इसलिए ऑफिस से निकलकर, वह सीधे इत्र की दुकान पर जाती है और अपनी पसंद की इत्र लेकर आती है। घर आते ही, अपनी डिनर डेट के लिए तैयार होना शुरू करती है। रीतिका अपनी पहली डिनर डेट के लिए ब्लड रेड कलर की ड्रेस के साथ सिल्वर ईयररिंग्स, ब्रेसलेट और हील्स पहनती है। ठीक 8 बजे, रीतिका सौरभ के फ्लैट के सामने होती है।
रीतिका, डोर बेल बजाने से पहले दो मिनट तक आँखें बंद करके खड़ी रहती है। हमेशा आत्मविश्वास से भरपूर रहने वाली रीतिका, आज सौरभ के साथ अपनी पहली डिनर डेट के लिए उत्साहित थी। जैसे ही रीतिका अपनी ऊँगली डोर बेल के पास ले गई, उसे बजाने से पहले ही सौरभ ने दरवाज़ा खोल दिया और उसे गले लगाकर कहा, ‘’मुझे लखनवी चंदन इत्र की ख़ुशबू बहुत पसंद है।''
रीतिका (ख़ुशी से): तुम्हें शीशी का नाम तक याद है?
सौरभ (प्यार से): सिर्फ़ तुमसे कहने के लिए ही प्यार नहीं किया है, तुम्हारी ख़ुशबू तक से प्यार है मुझे।
रीतिका (प्यार से): ओह, यू मीन, ट्रूली मैडली एंड डीपली इन लव विथ मी?
सौरभ (प्यार से): सारी बातें यहीं करोगी? प्लीज़ कम इन।
रीतिका अंदर आते ही सरप्राइज़ हो जाती है। सौरभ के बड़े से फ्लैट में चारों तरफ सिर्फ़ रेड रोज़ेज़ सजे हुए थे। इस सरप्राइज़ को देखकर रीतिका ने सौरभ को गले लगा लिया। इसके बाद सौरभ ने उसे अपनी गोद में उठाया और बालकनी में ले गया, जहाँ दोनों के लिए कैंडल लाइट डिनर का सेटअप था।
रीतिका को यह सब किसी सपने से कम नहीं लग रहा था। दोनों कुछ देर खामोश बालकनी में खड़े रहे, समुद्र की उठती लहरों को सुनते रहे।
रीतिका और सौरभ, दोनों के ही चेहरे पर सुकून था। पूरी दुनिया से अलग होकर अपनी दुनिया में कुछ पल साथ बिताने का सुकून, जहाँ सच और झूठ से परे, दो दिल तेज़ी से धड़क रहे थे।
थोड़ी देर बालकनी में समय बिताने के बाद, सौरभ ने रीतिका को डिनर टेबल पर बुलाया। इसके बाद दोनों ने साथ मिलकर डिनर किया।
सौरभ ने रीतिका की पसंद का फिश टिक्का बनाया था। इसे देखकर रीतिका खुद को रोक नहीं पाई और तुरंत टेबल पर बैठ गई। रीतिका इतनी उत्साहित थी कि उसने सौरभ का इंतज़ार करना भी ज़रूरी नहीं समझा।
डिनर के बाद, दोनों ने साथ मिलकर किचन साफ़ किया फिर काउच पर कडल करते हुए बंगाली गाने सुन रहे थे।
सौरभ और रीतिका दोनों की आँखें बंद थीं। उसी वक़्त, रीतिका ने कहा कि उसे देर हो रही है।
सौरभ ने उसे रोकने की कोशिश की, मगर अगले दिन रीतिका के ऑफिस में रीजनल फाइनेंस मीटिंग थी, जिसके लिए उसे अपनी प्रेज़ेंटेशन में कुछ ज़रूरी बदलाव करने थे।
ना जाने सौरभ के मन में क्या चल रहा था, लेकिन उसने रीतिका को नहीं रोका।
देखते ही देखते, एक हफ़्ता बीत गया। इस हफ़्ते में सौरभ और रीतिका के बीच नज़दीकियाँ बढ़ गईं। तोहफ़े देना, साथ समय बिताना, और एक-दूसरे के प्यार में डूबे रहना।
रीतिका और सौरभ का रिश्ता अब एक पायदान और ऊपर चढ़ चुका था।
अच्छा समय बिताने के बाद, आख़िरकार वह दिन आ ही गया, जब सौरभ कोलकाता जाने वाला था। हालाँकि, उसे कोई ख़ास ख़ुशी नहीं थी, क्योंकि दस सालों बाद वह अपने बीते कल से मिलने जा रहा था।
कोलकाता एयरपोर्ट के बाहर उतरने के बाद, सौरभ बिना किसी उत्साह के टैक्सी लेकर अपने घर की तरफ़ चला गया।
टैक्सी ड्राइवर ने उसे कालीबाड़ी की गली के बाहर छोड़ा। गली संकरी होने की वजह से वहाँ कार का जाना मुश्किल था, इसलिए सौरभ पैदल ही चलने लगा।
गली में चलते वक़्त, सौरभ का बचपन उसकी आँखों के सामने आ गया। उसे वह दिन याद आया जब वह और श्रुति मोहल्ले के दोस्तों के साथ पिट्टुल खेलते थे।
क्या सौरभ अपनी बहन श्रुति के सवालों के जवाब दे पाएगा? या फिर उसके झूठ का सामना करने से कतराएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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