सौरभ की किस्मत हमेशा की तरह उसका साथ दे रही थी। एक बार फिर रितिका के सामने सौरभ की सच्चाई बाहर आते-आते रह जाती है।
सौरभ अपने आँसुओं का झांसा देकर रितिका से पैसे निकलवा ही लेता है।
सिर्फ इतना ही नहीं, वह पैसे लेकर अपने मज़े के लिए सापूतारा चला जाता है। वहीं, रितिका इस बात से खुश होती है कि उसने सौरभ के लिए अपने प्यार को साबित कर दिया।
रितिका को जब मानसी का कॉल आया, तो उसने पैसों के लेन-देन के बारे में कुछ भी बोलना ज़रूरी नहीं समझा।
चाहे रितिका का मन उससे कह रहा हो कि उसने सही कदम उठाया है, मगर उसका अंतर्मन जानता था कि वह ग़लती कर रही है।
हम सबने हमेशा अपने मन की सुनी है, लेकिन हमें ज़रूरत थी अपने अंतर्मन की सुनने की।
हमारा subconscious mind हमसे कभी झूठ नहीं बोलता।
सौरभ के लिए रितिका का प्यार उस पर हावी हो रहा था।
रितिका खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि सौरभ बाकियों जैसा नहीं है।
जैसे ही रितिका मानसी से अपनी बातें खत्म करके अपने काम पर बैठी, उसे याद आया कि सौरभ के साथ जो साइबर फ्रॉड हुआ था, उसकी शिकायत पुलिस में करानी होगी।
रितिका इस बारे में सोचती है और फिर उसे लगता है कि जब सौरभ मुंबई लौटेगा, तब वह उसके साथ जाएगी.. मगर फिर उसे तुरंत एक्शन लेना सही लगता है।
रितिका कोलाबा के पुलिस स्टेशन जाती है, जहाँ उसे आवेदन लिखने को कहा जाता है।
रितिका आवेदन लिखकर एसएचओ को देती है।
तभी उसे अपूर्व का ख्याल आता है।
अपूर्व, रितिका और मानसी का अच्छा दोस्त है, जो इन दिनों साइबर सेल का हेड है।
रितिका पुलिस स्टेशन से निकलकर सीधे उसके पास जाती है।
रितिका ने अपूर्व को देखते ही मुस्कुराते हुए छेड़ा, "अभी भी हैक करने में लगे हुए हो, अपूर्व?" अपूर्व ने चौंकते हुए पलटकर देखा और कहा, "रितिका! तुम...? यहाँ कैसे? शादी का इनविटेशन देने आई हो, है ना?" रितिका की मुस्कान थोड़ी फीकी पड़ गई। उसने धीरे से कहा, "नहीं, एक हेल्प चाहिए।" अपूर्व की उत्सुकता बढ़ गई। उसने चिंतित स्वर में पूछा, "क्या हुआ? सब ठीक है?" रितिका ने एक हल्की साँस भरते हुए जवाब दिया, "Not really.. काश, सब जल्द ही ठीक हो जाए।" अपूर्व ने उसकी गंभीरता को भाँपते हुए, थोड़ा गंभीर होकर कहा, “अब बताओ भी, बात क्या है?”
रितिका अपूर्व को अपने और सौरभ के रिश्ते के बारे में बताना शुरू करती है।
अपूर्व, रितिका के बताए हर पहलू को ध्यान से सुनता और समझता है।
जो शक मानसी को सौरभ पर हुआ था, वही शक अपूर्व को भी सौरभ पर होता है।
मगर वह रितिका को देखकर चुप रहता है। पूरी कहानी सुनने के बाद, रितिका ने अपूर्व को सौरभ के साथ हुए स्कैम के बारे में बताया। इसे सुनते ही अपूर्व कहता है—
ये फेक है, रितिका। तुम कह रही हो कि कल सौरभ की ID रिएक्टिवेट हुई और उसी दिन उसके साथ स्कैम हो गया? उसका अकाउंट शेयर करो।
अपूर्व के कहने पर, रितिका उसे सौरभ की प्रोफाइल शेयर करती है। इसे देखकर अपूर्व रितिका को कन्फर्म कर देता है कि सौरभ की ID कभी डिऐक्टवेट ही नहीं हुआ। उसने रितिका से झूठ बोला है।
अपूर्व की बात सुनकर रितिका शॉक्ड हो जाती है। उसे समझ नहीं आता कि वह इस वक्त रोए या सौरभ पर अपना गुस्सा निकाले। रितिका, अपूर्व से इसका solution पूछती है।
इस पर अपूर्व कहता है कि उसे सौरभ की ID हैक करनी पड़ेगी। रितिका उसे प्रोसिजर शुरू करने को कहती है। अपूर्व रितिका को बताता है कि इस काम के लिए हायर अथॉरिटीस से परमिशन लेनी पड़ेगी। वह जानता था कि परमिशन मिलने में काफी वक्त लगेगा इसलिए अपनी जॉब को रिस्क में डालकर, उसने रितिका के सामने ही सौरभ की ID हैक कर ली।
जैसे ही रितिका सौरभ की ID में जाती है, वह उसके मैसेजेस ओपन करती है। इन्हें देखकर वह आगबबूला हो जाती है। रितिका के मन में आता है कि तुरंत सौरभ को कॉल करे और उसे खूब सुनाए। मगर वह ऐसा नहीं करती।
रितिका सौरभ के मुंबई आने का इंतजार करती है। जैसे ही रितिका अपने घर के लिए निकल रही होती है, तभी अपूर्व उसे आवाज देकर रोकता है। वह एक पेपर में सौरभ का सोशल मीडिया अकाउंट पासवर्ड देते हुए कहता है कि वह जब चाहे इसके इस्तेमाल से सच्चाई की तह तक पहुँच सकती है।
रितिका जैसे ही अपने घर आई, वह फूट-फूटकर रोने लगी। रोने के बाद वह इतनी ज़्यादा थक गई कि उसकी आँख लग गई। तभी उसके फोन में नोटिफिकेशन पॉप -अप हुआ।
रितिका ने नींद में इसे इग्नोर कर दिया मगर नोटिफिकेशन लगातार पॉप -अप हो रहे थे। इससे रितिका की नींद डिस्टर्ब हो रही थी, तभी उसे याद आया कि उसके फोन में सौरभ की भी ID लॉगिन है।
उसने तुरंत ही नोटिफिकेशन चेक किया और देखा कि सौरभ किसी लड़की से बातें कर रहा था।
उसका लास्ट मैसेज था: "आई हेड अ ग्रेट फन एट सापूतारा."
रितिका ने सौरभ का एक और झूठ पकड़ लिया—दिल्ली ना जाने का झूठ। अब उसे बस सुबह होने का इंतजार था, ताकि वह सौरभ से अपने सारे सवालों का जवाब मांग सके।
बीती रात जो सच रितिका के सामने आया, उसे देखने-सुनने के बाद रितिका ने खुद को ऐसे संभाल रखा था, जैसे तेज़ हवा चलने पर एक छोटा-सा पत्थर बड़ी सी पन्नी को संभालता है।
सुबह होते ही रितिका ने casual leave के लिए mail डाला,
ताकि वह अपने दिमाग को शांत कर सके और सौरभ से कैसे बात करनी है, क्या बात करनी है, इस नतीजे पर पहुँच सके।
सुबह से ही रितिका का मन भारी हो रहा था। वह एक बार फिर अपने साथ हुए धोखे का बोझ बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसे सौरभ से अपने हर सवाल का जवाब चाहिए था।
रितिका अपने काउच पर बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी। तभी उसे अपने और सौरभ के प्यार भरे लम्हे याद आने लगे। सौरभ का पहली बार उसे कॉम्प्लिमेंट देना, उसका हाथ पकड़ना, उसकी बिखरी ज़ुल्फें संवारना, उसके थक जाने पर पैर की मालिश करना, और जुहू बीच पर अपने प्यार का इज़हार करना।
ये सारे लम्हे किसी फिल्म की तरह रितिका की आँखों के सामने चल रहे थे। इन लम्हों को याद करते-करते, जितनी बार रितिका ने अपनी पलकें झपकाईं, उतनी बार उसने आँखों का खारापन चखा।
रितिका गुमसुम होकर काउच पर बैठी थी कि तभी उसे सौरभ का कॉल आया।
सौरभ (प्यार से): कहाँ हो, ऋतु?
रितिका: घर पर।
सौरभ (प्यार से): आज ऑफिस नहीं गई?
रितिका: मन नहीं किया।
सौरभ (प्यार से): समझ गया। शाम को सी लिंक... तुम 6 बजे रेडी रहना। मैं पिक करने आऊँगा।
रितिका: नहीं, मुझे काम है। मैं तुमसे सीधे सी लिंक में ही मिलती हूँ।
कॉल कट होने पर, रितिका इस बात से ज़्यादा सप्राइज्ड थी कि सौरभ, इतना बड़ा धोखा देने के बावजूद भी, कैसे सच्चा प्यार दिखा सकता है, मगर झूठे लोगों की यही तो पहचान होती है। वे डंके की चोट पर सच्चे होने का दिखावा करते हैं और दावा भी!
रितिका खुद को संभालती है और सारे सबूतों को लेकर सौरभ से मिलने सी लिंक जाती है। यह पहली बार था, जब रितिका, सौरभ से पहले पहुँच गई थी। सड़क किनारे खड़े होकर वह पानी को देखती है और इतनी खो जाती है कि उसे आसपास से गुज़र रही गाड़ियों का शोर भी सुनाई नहीं देता।
रितिका अपने ही ख्यालों में इतनी खोई हुई रहती है कि उसे पता भी नहीं चलता, कि पिछले 20 मिनट से सौरभ उसके पास ही खड़ा है।
सौरभ: क्या हुआ? कहाँ गुम हो?
रितिका: बस तुम्हारा ही वेट कर रही थी। तुम जिस काम के लिए गए थे, वो हुआ?
सौरभ: हाँ, बहुत अच्छे से। अगले हफ्ते से प्रमोशंस भी स्टार्ट करने का सोच रहा हूँ।
सौरभ को सफेद झूठ बोलते देख, रितिका का दिल और भारी हो गया।
मगर उसने कुछ नहीं कहा, बस सौरभ को बोलने दिया।
जब हमें सच मालूम हो और कोई हमारे सामने ही झूठ बोले, खासकर वह शख्स, जिसे हमने अपनी पूरी दुनिया मान लिया हो, तो ऐसा लगता है कि हमें मौत ही गले लगा ले, तो बेहतर है।
रितिका बस सौरभ की आँखों में देखे जा रही थी।
तभी सौरभ ने नोटिस किया कि रितिका ने उसकी किसी बात पर अब तक कोई रिएक्शन नहीं दिया।
सौरभ: क्या हुआ? तुम ऐसे क्यों देख रही हो?
रितिका: सोच रही हूँ, मेरे प्यार और भरोसे में ऐसी क्या कमी रह जाती है, जो लोग इसका फायदा उठा लेते हैं?
सौरभ: ऐसा क्यों कह रही हो?
रितिका: तुम्हारे साथ कोई स्कैम नहीं हुआ है, ना, सौरभ?
सौरभ: कैसी बातें कर रही हो, रितिका? मैं इसके चलते ही तो दिल्ली गया था और तुम्हें ये सब किसने कहा?
रितिका: तुम्हारे सोशल मीडिया अकाउंट ने, जो कभी डिऐक्टवेट हुआ ही नहीं था। मुझसे इतना बड़ा झूठ, पर क्यों?
सौरभ: तुम गलत समझ रही हो... मैं दिल्ली...
रितिका (बात काटते हुए + रोई हुई आवाज़ + गुस्से में):
तुम दिल्ली में नहीं, बल्कि सापूतारा में थे। वो भी किसी लड़की के साथ।
क्यों, श्रवण? आखिर क्यों?
रितिका के मुँह से अपना सच सुनकर, सौरभ सोच में पड़ जाता है कि
आखिर उसे पता कैसे चला?
इतने में ही रितिका ने उसे बताया कि उसने फ्रॉड की शिकायत की थी। जब सौरभ ने पुलिस की इनवॉलवमेंट सुनी, उसके हाथ-पाँव ठंडे हो गए।
तभी रितिका ने बताया कि उसने इस जानकारी को महज़ एक अफवाह बताकर केस को बंद करवाया, जिसके चलते उसे 50,000 रुपये का जुर्माना भी भरना पड़ा।
इस बात को सुनने के बाद, सौरभ की जान में जान आई।
अब क्या करेगा सौरभ?
अब वह कौन-सा छल अपनाएगा, जिससे रितिका को उस पर भरोसा हो?
या फिर सौरभ का पासा उसी पर उल्टा पड़ जाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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