रितिका, सौरभ के फरेब पर ध्यान देना शुरू करती है, पर वो उसे एक बार फिर बेनेफिट ऑफ डाउट देती है। सोशल मीडिया हैन्डल वाली बात को वो अभी डिसकस करना ठीक नहीं समझती और अपने घर लौट जाती है। उसके मन में दिन भर की बातों का एनालिसिस चल रहा होता है जैसे पैसों का हिसाब पूछने पर, सौरभ की ज़ुबान लड़खड़ाना।
रितिका, हर मायने में समझदारी से काम लेने वाली लड़की है, पर प्यार के सामने हमेशा हारती है। ये शायद हर लड़की के साथ ही होता है, जहां दिल लग जाता है वहाँ वो दिमाग नहीं लगती।
सौरभ को जैसे ही रितिका के शक की भनक लगती है, वह उसे जुहू बीच चलने को कहता है, और पिछली बार की तरह, इस बार भी उसे अपने झूठे वादों के शिकंजे में फँसाता है।
रितिका को सौरभ की बातें अच्छी तो लगती हैं, पर अब वह उन पर पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पाती।
उसका यकीन शक में तब बदलने लगता है, जब वह सौरभ को उसका सोशल मीडिया स्क्रॉल करते देखती है।
रितिका, सौरभ से तमाम सवाल पूछना चाहती है, पर समय की नज़ाकत को देखते हुए चुप रहती है। वह घर पहुँचते ही सारे पहलुओं पर ध्यान देने लगती है। वह अपनी और सौरभ की मुलाकात से शुरुआत करती है, जहाँ उसे सब कुछ नॉर्मल लगता है।
जैसे-जैसे वह अपनी मुलाकातों के बारे में सोचती है, उसे प्रथम फ़ूड हॉल में हुई बातें याद आती हैं।
यहीं पर सौरभ ने उसे अपने प्रोग्राम के बारे में बताया था।
तभी रितिका ने गौर किया कि जब उसने सौरभ से उसका प्रेज़ेंटेशन दिखाने को कहा, तो उसने बातें बना दीं, पर प्रेज़ेंटेशन नहीं दिखाया।
यानी कोई प्रेज़ेंटेशन बना ही नहीं है?
रितिका ने यह भी सोचा कि अगर किसी वजह से प्रेज़ेंटेशन आधा भी बना हो, तो उसे देखने का हक वह रखती है।
रितिका का शक तब और बढ़ गया जब उसने देखा कि 19 लाख होने के बावजूद भी, सौरभ अपने प्रोग्राम के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा।
इसी बीच, उसे ख्याल आया कि सौरभ ने अब तक उसे उसके घर का पता भी नहीं बताया और आखिर में सोशल मीडिया वाली बात।
इससे पहले कि रितिका, सौरभ को कॉल करती, सौरभ ने ही उसे वॉइस नोट भेजा और उससे कहा कि वह अपने सोशल मीडिया अकाउंट का नोटिफ़िकेशन चेक करे।
रितिका को पहले तो कुछ समझ नहीं आया।
फिर जब उसने नोटिफ़िकेशन देखा तो उस पर लिखा था, "श्रवण घोष स्टारटेड फ़ॉलोइंग यू"
यह देखकर रितिका, सौरभ को कॉल करने ही वाली थी कि तभी सौरभ का कॉल आ गया।
सौरभ: अब खुश हो?
रितिका: हाँ!
सौरभ: कार के पास तक आ गई और बिना कुछ बोले चली गई। जो सवाल थे, उन्हें पूछा क्यों नहीं?
रितिका: तुमने देख लिया था?
सौरभ: तुम्हारी हर चीज़ पर मेरी नज़र रहती है, ऋतु। वैसे, यह आईडी तुम्हारे कहने पर ही रिऐक्टिव की है।
रितिका: तो तुम कार में बैठकर यह सब कर रहे थे और मुझे लगा...
सौरभ: तुम्हें लगा कि मैं तुम्हें चीट कर रहा हूँ। ऋतु, आई नो तुम्हारा पास्ट टॉक्सिक रहा है। पर यह तुम्हीं तय कर सकती हो कि तुम्हें बीते हुए कल का छींटा अपने आज पर पड़ने देना है या नहीं।
सौरभ के इस एक्शन से रितिका का ट्रस्ट सौरभ पर फिर से बढ़ने लगा।
सोशल मीडिया वाली बात के बाद, रितिका ने सोचा कि सौरभ को, जो उसके लिए श्रवण है, थोड़ा वक़्त देना चाहिए।
कुछ बात होगी तो वह खुद ही बता देगा।
रितिका, सौरभ से कुछ देर बातें करने के बाद सो गई।
रितिका (नींद में): श्रवण, इस वक़्त... सब ठीक है?
सौरभ (परेशान होकर): कुछ भी ठीक नहीं है, रितिका।
रितिका: पर हुआ क्या है?
सौरभ (परेशान होकर): सब खत्म हो गया। मेरी सालों की मेहनत, सब बेकार हो गई।
रितिका: रिलैक्स, मैं यहाँ हूँ। अब बताओ क्या हुआ है?
सौरभ: साइबर फ्रॉड! मैंने जैसे ही अपनी आईडी रिऐक्टिव की, अचानक से मुझे मेल आया, जिसमें लिखा था, "योर आईडी हैस बिन हेक्ड" और साथ में आईडी रिकवर करने के लिए लिंक भी थी।
रितिका: और तुमने उस पर क्लिक कर दिया?
सौरभ: हाँ। कल मेरे प्रोग्राम के रजिस्ट्रेशन की लास्ट डेट है। अब मैं कहाँ से 2 लाख रुपयों का इंतज़ाम करूँ?
रितिका: तुम चिंता मत करो। कल 12 बजे मुझे बांद्रा में जो प्राइवेट बैंक है, वहाँ मिलो।
सौरभ जैसे ही रितिका से बैंक का नाम सुनता है, उसकी उम्मीद दोगुनी तेजी से बढ़ने लगती है।
सौरभ अपने बिछाए हुए जाल में कामयाब हो रहा था।
वहीं, सौरभ की बातें सुनकर रितिका की नींद उड़ जाती है।
वह इस बात की दोषी खुद को मानने लगती है।
रितिका के अंदर अपने आप गिल्ट आ जाता है, जिसे वह चाहकर भी कम नहीं कर पा रही होती। रितिका की आँखों में इस बात से आँसू आ जाते हैं कि सौरभ की मेहनत की कमाई एक झटके में उससे दूर हो जाती है। रितिका को अब बस यही लगता है कि कैसे जल्दी सुबह हो और वह सौरभ के पास पहुँचे।
जैसे ही सुबह होती है, रितिका सौरभ को फोन करती है और उसे सीधे बैंक पहुँचने को कहती है।
सौरभ भी वैसा ही करता है। ठीक 12 बजे, दोनों बैंक के सामने होते हैं।
रितिका के साथ सौरभ बैंक में प्रवेश करता है, और रितिका सीधे डेस्क पर जाकर गवर्नमेंट लोन की बात करती है।
सौरभ यह सुनकर हैरान हो जाता है! उसे लगता है कि रितिका उसे पैसे देने बुला रही है मगर यहाँ तो उसका फेंका पासा ही उल्टा पड़ने लगता है।
रितिका बिना कुछ कहे लोन के बारे में पूछती है। सौरभ उसे खड़ा देखता रहता है। जैसे ही रितिका की बातें खत्म होती हैं, वह सौरभ की तरफ देखती है।
सौरभ के माथे पर पसीना आने लगता है। इसे देख, रितिका फिक्र में उससे पूछती है—
रितिका: तुम्हें अचानक से पसीना कैसे आ रहा है? तबीयत ठीक है तुम्हारी?
सौरभ: हाँ, शायद बीपी फ्लक्चूएट कर रहा है।
सौरभ अच्छी तरह से जानता था कि उसका बीपी नहीं, बल्कि पूरा का पूरा प्लान ही फ्लक्चूएट हो चुका है।
सौरभ यह भी जानता था कि अगर बैंक से लोन लिया गया, तो उसकी हिस्ट्री भी निकाली जाएगी, जिससे उसका पर्दाफाश हो सकता है।
सौरभ को कुछ समझ नहीं आता। वह रितिका का हाथ पकड़कर उसे बैंक से बाहर ले जाता है और कहता है, हम यह लोन नहीं ले सकते।
रितिका: पर क्यों? क्या प्रॉब्लम है?
सौरभ: नहीं, मैं नहीं ले सकता।
रितिका: पर क्यों? वजह तो बताओ।
सौरभ: क्योंकि मुझे आज ही 2 लाख रुपये चाहिए और लोन, चाहे जितने भी अमाउंट का हो, उसे प्रोसेस करने में टाइम लगेगा।
रितिका: पर यहाँ के ब्रांच मैनेजर मेरा दोस्त है। वह हमारा काम जल्द ही करवा देगा।
सौरभ: मगर मैं फिर भी नहीं ले सकता। तुम्हारे पास कोई और ऑप्शन है?
सौरभ की बात सुनकर एक बार फिर रितिका को उस पर शक होने लगता है।
वह उसे सवालिया आँखों से देखने लगती है।
रितिका के मन में हज़ारों सवाल पनपने लगते हैं।
उसके अंदर की जिज्ञासा सौरभ से सवाल करना चाहती है, पर वह जैसे ही सौरभ की आँखों में आँसू देखती है, सब कुछ भूल जाती है।
तुरंत फैसला करती है कि वह उसे अपनी सेविंग्स के 2 लाख रुपये दे देगी।
रितिका और सौरभ बैंक से सीधे उसके घर पहुँचते हैं।
वहाँ रितिका उसे अपनी सेविंग्स के 2 लाख रुपये थमाते हुए कहती है, ‘’ये लो और जाओ अपने सपनों की तरफ। पहला कदम बढ़ाओ।''
सौरभ: ये तुम्हारी मेहनत के पैसे हैं, ऋतु। मैं इन्हें नहीं ले सकता। कहीं और से जुगाड़ हो ही जाएगा।
रितिका: जो भी है, अब हमारा है और अगर तुम्हें लग रहा है कि तुम्हें मेरे पैसे नहीं चाहिए, तो वक्त आने पर मुझे लौटा देना।
सौरभ: तुम्हारा यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूँगा। यू आर सो हेल्पफ़ुल एण्ड काइन्ड।
रितिका: चलो, अब जाओ भी, वरना देर हो जाएगी।
सौरभ आखिरकार अपने प्लान में कामयाब हो गया।
उसने अपने आँसुओं का झांसा देकर रितिका से पैसे निकलवा लिए।
सौरभ के लिए रितिका से पैसे निकलवाना मुश्किल हो रहा था, मगर उसे यह बात देर से समझ आई कि रितिका वह लड़की है, जो प्यार के लिए कुछ भी कर सकती है।
सौरभ उसकी मासूमियत का फायदा उठाकर अपने कुछ अय्याश दोस्तों के साथ सापुतारा के लिए निकल जाता है।
वो रितिका से कहता है कि अवेयरनेस प्रोग्राम के काम से 2 दिन के लिए दिल्ली जा रहा है।
रितिका बिना कोई सवाल किए सौरभ की बातों पर यकीन भी कर लेती है। करती भी क्यों नहीं - “प्यार में आंधी जो थी”!
वो सोच रही थी कि अब वो दोनों एक ही है वहीं सौरभ सोच रहा था कि अय्याशी में इस बार पैसे कैसे जाए? प्लान तो अभी अवेर्नेस प्रोग्राम का था ही नहीं, खुद की खुशियों का था।
इसी बीच, रितिका को मानसी का कॉल आता है।
थोड़ी देर गर्ली गॉसिप करने के बाद, मानसी ने रितिका से सौरभ का हालचाल पूछा।
रितिका के मन में एक बार यह खयाल आता है कि वह मानसी को बता दे कि उसने सौरभ की मदद करने के लिए उसे 2 लाख रुपये दिए हैं,
पर फिर खुद ही चुप हो जाती है और दोनों अपने स्कूल के दिनों की बातें करने लग जाती हैं।
क्या रितिका सौरभ को रंगे हाथों पकड़ पाएगी?
क्या मानसी से बातें छुपाना इस बात का संकेत था कि रितिका जो कर रही है, वह अपने साथ गलत कर रही है?
आगे क्या होगा, इसका फैसला अभी बाकी है।
फिलहाल यह बात तय है कि सौरभ, रितिका को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाला।
आगे के फरेब और धोखे को जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.