दिल्ली की सर्द सुबहें हमेशा से रहस्य और सन्नाटे का मेल लेकर आती हैं। हल्की-सी धुंध जब शहर को ढक लेती है, तब सड़कों पर पसरा सन्नाटा, ठंडी हवाओं का शोर और चाय की दुकानों से उठती भाप मिलकर ऐसा अहसास कराते हैं जैसे हर कोने में कोई छिपा सच बुदबुदा रहा हो। दिल्ली का एक कोना – जहां बहुमंजिला इमारतों और पॉश कॉलोनियों के बीच एक विशालकाय बिल्डिंग खड़ी है – वहां लगे बोर्ड पर लिखा है – “नवजीवन – हर बच्चे का हक़ एक नई शुरुआत।” बाहर से यह इमारत किसी इंटरनेशनल स्कूल जैसी लगती है, जहां हर दीवार पर बच्चों की रंग-बिरंगी तस्वीरें, प्रेरणादायक कोट्स और NGO वॉलिंटियर्स की मुस्कुराती तस्वीरें नजर आती हैं।
यह संस्था सालों से देशभर में चर्चित रही है। इसके संस्थापक को कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। टीवी शो में इन्हें 'चिल्ड्रन मसीहा' तक कहा गया है। लाखों लोग इसके सोशल मीडिया अकाउंट को फॉलो करते हैं। वीडियो में दिखाई जाने वाली कहानियां इतनी इमोशनल होती हैं कि लोग रो पड़ते हैं। “देखिए कैसे हमनें मोहन को एक चोर से टॉपर बना दिया।”
“कैसे पिंकी आज डॉक्टर बनने की राह पर है।” हर पोस्ट एक कहानी है – प्रेरणादायक, भावनात्मक और चमकदार।
लेकिन हर रौशनी के पीछे एक छाया होती है – और इस कहानी की छाया का नाम था – आरव।
आरव दिल्ली की झुग्गियों में पला-बढ़ा था। पिता शराबी, मां कपड़े सिलाई करके घर चलाती थी। लेकिन जब मां को कैंसर हुआ तो इलाज के लिए घर बिक गया, गहने बिक गए, और अंत में मां भी। तबसे आरव अकेला हो गया। खाना जुटाने के लिए चाय की दुकानों में बर्तन धोना, फुटपाथ पर भीख मांगना, और कभी-कभी चोरी करना – ये उसकी ज़िंदगी बन गई थी। समाज की नजर में वो “चोर बच्चा” था, लेकिन हकीकत में वो बस एक भूखा इंसान था।
एक दिन उसे बिस्कुट चुराते हुए पकड़ा गया और फिर भीड़ ने पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। पुलिस आई, उसे बाल सुधार गृह में डाल दिया। वहां की हालत किसी जेल से कम नहीं थी – गालियां, डंडे, और अमानवीय सजा। लेकिन कुछ दिनों बाद एक नई कहानी शुरू हुई – एक एनजीओ वर्कर आई – नीली साड़ी में मुस्कराती और कहती, “हम तुम्हें एक नया जीवन देंगे।”
आरव को नवजीवन संस्था ले जाया गया। वहां का माहौल एकदम अलग था। साफ़ कमरे, तीन टाइम का खाना, गर्म बिस्तर, अच्छे कपड़े, किताबें, और खेल का मैदान। आरव को पहली बार लगा कि शायद अब ज़िंदगी बदल सकती है। उसे स्कूल भेजा गया, इंग्लिश सिखाई गई, उसके पुराने कपड़े जलाकर नए दिए गए। हर दिन की दिनचर्या तय थी – सुबह योग, दोपहर पढ़ाई, शाम को एक्टिविटीज़ और रात को डिनर के बाद प्रेयर।
धीरे-धीरे आरव खुलने लगा। उसकी आंखों में उम्मीद दिखने लगी थी। लेकिन फिर कुछ अजीब चीजें घटने लगीं। कुछ ही दिनों बाद, संस्था का एक स्टाफ उसे चुपचाप एक कमरे में ले गया। वहां एक डॉक्टरनुमा आदमी था जिसने उसका ब्लड टेस्ट किया, फिर आंखें, हृदय, लीवर – सबकुछ जांचा। आरव को समझ नहीं आया ये सब क्यों हो रहा है। उस कमरे में कुछ मशीनें थीं, कंप्यूटर स्क्रीन्स पर डेटा चल रहा था और स्टाफ के लोग मेडिकल टर्म्स में कुछ बातें कर रहे थे – “बिल्कुल क्लियर प्रोफाइल है, HLA मैच हो गया है”, “शिपमेंट की बात शुरू की जा सकती है।”
इसके बाद से आरव की तबीयत बिगड़ने लगी। उसे बार-बार चक्कर आते, उल्टी होती, कमजोरी महसूस होती। स्टाफ ने कहा, “बस मौसमी बुखार है”, लेकिन कोई भी असली डॉक्टर उसे देखने नहीं आया। एक रात उसकी हालत ज्यादा बिगड़ गई और अगले दिन संस्था ने एक वीडियो पोस्ट किया – “हमारे प्यारे आरव का एक्सिडेंट हो गया... वह अस्पताल जाते समय हमें छोड़ गया।”
वीडियो में आरव की मुस्कुराती तस्वीरें थीं, बैकग्राउंड में सॉफ्ट म्यूजिक, और कैप्शन – “एक नन्हा तारा अब आसमान में चमकेगा।” लोगों ने रोते हुए RIP लिखा, पैसे डोनेट किए और संस्था को फिर से सराहा – “आप लोग फरिश्ते हो!”
उसी संस्था में एक जर्नलिज्म स्टूडेंट – सिया मल्होत्रा – डॉक्यूमेंट्री बनाने आई थी। शुरुआत में सबकुछ परफेक्ट दिखा। सिया ने बच्चों से बात की, फुटेज शूट की, और संस्था के काम से प्रभावित हो गई। लेकिन फिर एक दिन रिकॉर्डिंग रूम में गलती से एक फाइल गिर गई – “आरव कुमार – केस स्टडी 112/MH-HLA9”
सिया को शक हुआ। उसने ध्यान से देखा – उसमें ब्लड ग्रुप, DNA प्रोफाइल, HLA मैच रिपोर्ट्स, इम्यून सिस्टम एनालिसिस, और इंटरनल ऑर्गन हेल्थ स्कोर जैसे शब्द थे। वह चौंकी – ये सब तो किसी मेडिकल रिसर्च लैब के डॉक्युमेंट लग रहे थे, न कि NGO के।
उसने गुप्त रूप से बाकी बच्चों की फाइलें खंगालनी शुरू कीं। उसमें 50 से ज़्यादा बच्चों की मेडिकल रिपोर्ट्स थीं, और हर रिपोर्ट के नीचे एक कोड था – जैसे: 'PROC 9 - Success', 'SHIP.ORG-C-21', 'Deceased – Cardiac arrest on route'. ये शब्द “दुर्घटनाओं” को नहीं, ऑर्गन ट्रांसप्लांट प्रोसेस को दर्शाते थे।
अब सिया ने गुप्त कैमरे से रिकॉर्डिंग शुरू की। उसने एक मीटिंग में स्टाफ को यह कहते सुना – “अगले हफ्ते मुंबई से ऑर्डर आ रहा है, बच्चा पूरी तरह फिट है, लीवर क्लियर है, पेपर्स भी रेडी हैं।” फिर कोई बोला, “इमोशनल वीडियो की स्क्रिप्ट बना लो, फोटो खींच लो, मीडिया वाले छाप देंगे।”
सिया डर गई, लेकिन रुकी नहीं। उसने सबूत इकट्ठा किए – वीडियो, ऑडियो, डॉक्यूमेंट्स। वह ये सब अपने प्रोफेसर को देने जा रही थी। लेकिन उसी रात, उसके घर में अचानक आग लग गई। पुलिस ने इसे 'शॉर्ट सर्किट' बताया। उसकी लाश तीन दिन बाद नदी के किनारे मिली – ‘घबराहट में फिसल गई और डूब गई।’ केस बंद।
और नवजीवन? एक महीने बाद संस्था ने एक नया वीडियो पोस्ट किया – “हमारे वॉलंटियर सिया ने बच्चों के लिए जान दे दी – हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।” लोगों ने फिर रोते हुए RIP लिखा, पैसे डोनेट किए और संस्था को फिर से सराहा।
अब सवाल ये है – क्या कोई सच में जानना चाहता है कि उन बच्चों के साथ क्या हुआ? कि क्यों हर हज़ार में से एक बच्चा अचानक बीमार पड़ता है? क्यों उनके इलाज की कोई रिपोर्ट नहीं होती? क्यों हर मौत एक “दुर्घटना” होती है?
नवजीवन जैसे संस्थान दरअसल एक बहुत बड़ा 'फेस' हैं – एक मुखौटा। उनके पीछे एक ऐसा सिस्टम था जो इतना परफेक्ट है कि उसे पकड़ पाना नामुमकिन है। बच्चों के शरीर उनके लिए सिर्फ ‘मैचिंग यूनिट’ थे।
दबे स्वरों में कोई कुछ नहीं कह सकता था। जो कह सकते थे वो बच नहीं सकते थे। ये सारे माफ़ियास जुड़े हुए थे। उन सब की बस एक ही कड़ी थी। और वह क्या थी यह हम अभी नहीं जानते थे।
वहीं कहीं और मुंबई में, मेल्विन एक होनहार कार्टूनिस्ट था यह बात सभी जानते थे, जो अपने छोटे से ऑफिस में बड़े ध्यान से कार्टून बना रहा था। आज उसके दिमाग में कुछ खास चल रहा था क्योंकि मिस्टर कपूर को अपनी मैगजीन के लिए एक ऐसा कार्टून चाहिए था, जो पढ़ने वालों को हँसाए भी और सोचने पर मजबूर भी करे। मेल्विन ने कई स्केच बनाए, पर कोसी में भी वो बात नहीं बन रही थी, कोई कोशिशों के बाद फिर उन में से सबसे बेहतरीन को चुना और कलम उठाकर उसे साकार करने लगा।
ऑफिस का माहौल बहुत ही खुशहाल था। हर कोई अपने काम में व्यस्त था, लेकिन साथ ही हर ओर हँसी-मजाक और गप्पों का दौर चल रहा था। पीटर, जो ऑफिस का सबसे चुलबुला कर्मचारी था, हमेशा की तरह किसी के साथ गपशप में मशगूल था। लोग अब मिस्टर डिकोस्टा वाली कहानियाँ और मिस्टर शकील के हरकतों का मजाक बना रहे थे। पीटर हरकतें सभी को हँसाने का काम कर रही थीं। कभी-कभी तो वो इतने जोश से बात करता कि ऑफिस में हंसी की गूंज गूंज उठती। मेल्विन भी कुछ देर के लिए अपने काम से हटकर पीटर के मज़ाक में शामिल हो गया।
लेकिन मैगज़ीन के स्किल्स बढ़ाने के लिए अभी भी ओरने आइडियाज को नकारा नहीं गया था। वे सभी आइडियाज पर अमल किये जा रहे थे जो मैगजीन्स के लिए फायदेमंद हो सकते थे। उसमें से एक था कम्पटीशन आयेजित करना। काफी राउंड ऑफ डिस्कशन के बाद फैसला हुआ कि कम्पटीशन के द्वारा गरीब बच्चों के बीच के टैलेंट्स को ढूंढा जाएगा। मैगजीन्स में आयोजित पुराने कंपटिशन्स के उलट इस बार मैगजीन में एक बड़ा कॉम्पटीशन आयोजित किया जाना था। देश भर से प्रतिभाशाली और क्रिएटिव लोग इसमें हिस्सा लेने वाले थे। ऑफिस की पूरी टीम इस कॉम्पटीशन की तैयारी में जुटी हुई थी। वे पोस्टर, विज्ञापन, सोशल मीडिया कैंपेन सब कुछ बना रहे थे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस कॉम्पटीशन के बारे में जान सकें। हर किसी के चेहरे पर उम्मीद और उत्साह था कि इस आयोजन से मैगजीन की लोकप्रियता और बढ़ने वाले थे। इसके प्रचार के लिए वे सभी सेलिब्रिटीज भी आगे आ रहे थे जिन्होंने पहले मैगज़ीन्स से अपना नाम किनारा किया था।
मेल्विन भी कॉम्पटीशन के लिए कुछ नई आइडियाज़ सोच रहा था। कॉम्पटीशन के बीच उसे थोड़ा ब्रेक लेना पड़ा, तो उसने अपनी मेज की दराज खोली और अपनी पुरानी डायरी निकाली। उस डायरी के अंदर कुछ बहुत पुराने पन्ने सम्भाल कर रखे हुए थे, ये वही पन्ने जो उसने डिकोस्टा के महल से उठाए थे, जिनमें एक ऐसा पन्ना भी था जिस पर दिल्ली के एक एनजीओ का नाम लिखा था। यह वही एनजीओ था, जिसके बारे में उसने कभी सुना था कि वह गरीब और अनाथ बच्चों की मदद करता है। नाम भी उसका कितना सुंदर था, 'नवजीवन'।
मेल्विन ने उस पन्ने को ध्यान से पढ़ा। उसे लगा कि इस एनजीओ के बारे में कुछ गड़बड़ है क्योंकि आखिर एक ऐसी संस्था जो गरीब बच्चों की मदद करती हो वह NGO के पन्ने भला डिकोस्टा के महल में क्या कर रहे थे? जिज्ञासा वश मेल्विन ने इंटरनेट में कुछ पन्ने छान मारे तो उसे वहाँ कई बच्चों के मुस्कुराते चेहरे और उनकी सक्सेस स्टोरीज मिली। लेकिन उसकी नजर रुकी सिया के केस पर। हालांकि यह कोई आम केस की तरह ही लगा लेकिन उसकी टाइमिंग और उस संस्था का डिकोस्टा से कनेक्शन्स उसे थोड़ा अजीब लगा। उसकी जिज्ञासा इस बात पर तब और बढ़ी जब उसे मिस्टर कपूर के द्वारा पता चला कि डिकोस्टा उस मैगज़ीन कंपनी को खरीदने के लिए 20 गुना रकम हाथों हाथ देने तक को तैयार था। इससे उसका शक और गहरा हो गया और उसने तय किया कि वह इस बात की तह तक जाएगा। आखिर, क्या सच में ये संस्था सच में बच्चों की मदद करती है, या इसके पीछे कोई छुपा हुआ राज़ है?
ऑफिस की खुशियों के बीच, मेल्विन का दिल एक अनदेखी सच्चाई की ओर खिंचा जा रहा था। उसने तय किया कि वह इस रहस्य को उजागर करेगा, चाहे इसके लिए उसे कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े। वह तुरन्त मिस्टर कपूर के पास गया।
"अरे हां मेल्विनकहो। वो स्केच बन गया क्या? जो तुम्हें कम्पटीशन के लिए पोस्टर बनाने थे?"- मिस्टर कपूर ने कहा।
"हां।"- मेल्विन ने अपना स्केच मिस्टर कपूर को देते हुए कहा।
"अरे यह तो बहुत बढ़िया पोस्टर है। इस पोस्टर के जरिये हम बच्चों को जरूर प्रभाविय करेंगे।"- मास्टर कपूर ने कहा।
वो पोस्टर वाकई में काफी सुंदर थे क्योंकि उसमें उस NGO की तरह ही हंसते खेलते बच्चे दिख रहे थे जिनकी आंखों में आशा और उत्साह थे। कुछ ने पेन पकड़े हुए थे तो किसी ने कागज़। इससे लोगों के बीच उम्मीद का प्रवाह होता।
"वैसे बॉस। क्या मैं आपको उस कम्पटीशन से जुड़ा कुछ सजेस्ट कर सकता हूँ?"- मेल्विन ने कहा।
"हाँ, हाँ बिल्कुल कर सकते हो। कहो क्या सुझाव है तुम्हारा।"- मिस्टर कपूर ने उत्सुकतापूर्वक कहा।
"मुझे लगता है हमें इस कंपटिशन्स को कराने के लिए NGOs की मदद लेनी चाहिए।"- मेल्विन ने कहा।
"NGOs की मदद? लेकिन आखिर तुम्हारा ऐसा क्यों मानना है? हम तो अपने आप में कंपलीट पैकेज हैं।"- मिस्टर कपूर ने कहा।
"आपकी बात भी बिल्कुल सही है बॉस। लेकिन मुझे लगता है हम अकेले उतने लगोनो तक नहीं पहुँच पाएंगे जितने लोगों तक पहुँचने की हम सोच रहे हैं। वहीँ NGO से मदद लेना न सिर्फ हमे गरीब बच्चों तक बेहतर पहुँच देगा बल्कि हमारी या यूँ कहूँ मेरी छवि भी सुधारेगा खास तौर पर तब जब हम ऐसे NGO के साथ काम करे जिसकी सोशल मीडिया पहुँच बहुत अच्छी हो। ऐसा करने से कंपनी और मुझको लेकर बनी रोबिनहूड वाली छवि और ज्यादा बेहतर हो जाएगी।"- मेल्विन ने जोर देते हुए कहा।
"हम्म। आइडिया कुछ बुरा नहीं है। इसमें दम तो है। वैसे तुम बताओ, क्या कोई ऐसा NGO है तुम्हारी नजर में?"- मिस्टर कपूर ने पूछा।
"हां, है न!"- मेल्विन ने जवाब दिया - "दिल्ली की एक संस्था है जो अब देश भर में फेमस हो चुकी है। 'नवजीवन संस्था'।"
"ठीक है। अगर तुम्हारा ऐसा ही मानना है तो एक बार मैं उनसे बात करके देखता हूँ।"- मिस्टर कपूर ने कहा।
"आपका शुक्रिया।"- मेल्विन ने जवाब दिया।
क्या नवजीवन संस्था मिस्टर कपूर के रिकेस्ट को मानेगी? क्या मेलविन इस गुत्थी को सुलझा पाएगा? आगे जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग।
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