“मेल्विन! कहां खो गए तुम?” रेबेका ने मेल्विन की आंखों के सामने चुटकी बजाते हुए कहा। वो ट्रेन में बैठे–बैठे कहीं ख्यालों में गुम हो चुका था, “कल दो–दो शादियों में शामिल होने के बाद रात को सो नहीं सके क्या?”
मेल्विन ने एक गहरी साँस ली। उसकी पेंसिल उसकी नोटबुक पर मँडरा रही थी। उसकी नोक थोड़ी हिल रही थी। उसने अनगिनत घंटे सही स्केच बनाने में बिताए थे। अपने दिमाग में उनका अभ्यास किया था, और अब वो तैयार था। उसने रेबेका की ओर देखा, उसके बाल उसके चेहरे के चारों ओर नाच रहे थे और उनके ऊपर पंखा घूम रहा था, “हां, ऐसा ही है, कल का दिन बहुत थकाने वाला था।”
“किन ख्यालों में खोए थे?”
“मत पूछो, बहुत डरावना सपना था!” मेल्विन ने फिर रघु को याद करते हुए कहा तो उसका शरीर कांप उठा, "रेबेका!" मेल्विन ने शुरू किया, उसकी आवाज़ पीटर के हाथ में अख़बार की सरसराहट से भी नरम थी। उसने उसे देखा, रेबेका की आँखें जिज्ञासा से चमक रही थीं, "मैं तुम्हें लंबे समय से जानता हूँ, और हर दिन, मुझे तुम्हारे बारे में प्यार करने के लिए कुछ नया मिलता है। बच्चों को पढ़ाने के प्रति तुम्हारा जुनून, जिस तरह से तुम अपने छात्रों के बारे में बात करते समय खुश हो जाती हो, और इस ट्रेन में जो गर्मजोशी लाती हो।"
रेबेका के गाल गुलाबी रंग की एक कोमल छाया में लाल हो गए। उसने अपनी आँखें नीची कर लीं। उसके होठों पर एक मुस्कान की झलक थी। पीटर ने ध्यान न देने का नाटक किया, उसका ध्यान अभी भी उसके फोन पर था, जबकि डिब्बे में अन्य लोग अपने कामों में लगे हुए थे। उनके सामने घटित हो रहे इस महत्वपूर्ण क्षण से बेखबर।
मेल्विन ने आगे कहा, "मुझे पता है कि मैंने अपना समय लिया है, लेकिन मैं तुम्हें ये बताने से पहले क्लियर होना चाहता था। मैं तुमसे प्यार करता हूँ, रेबेका! मुझे उम्मीद नहीं है कि तुम भी ऐसा ही महसूस करोगी, लेकिन मुझे तुम्हें बताना ज़रूरी था।"
ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी, और एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे दुनिया रुक गई हो। रेबेका की आँखें मेल्विन की आँखों में कुछ तलाश रही थीं। किसी भी संदेह या मज़ाक के संकेत की तलाश में। कोई भी संकेत न पाकर, उसने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया, उसके स्पर्श की गर्माहट ने उसके शरीर में एक झटका दिया।
"मेल्विन!" उसने अपनी कोमल आवाज़ में उत्तर दिया, "मैंने देखा है कि तुम अपने कार्टूनों में मुझे किस तरह देखते हो। मैंने तुम्हारी पेंसिल के हर स्ट्रोक में प्यार महसूस किया है। कहीं न कहीं मैं भी तुम्हारे ये कहने का इंतज़ार कर रही थी।"
मेल्विन का दिल उम्मीद से भर गया।
"क्या इसका मतलब है कि तुम...?"
रेबेका करीब झुकी। उसकी चमेली के इत्र की खुशबू ट्रेन की उमस के साथ मिल गई। "हाँ, मेल्विन!" उसने फुसफुसाते हुए कहा, "मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ।"
ट्रेन के दरवाज़े खुले, और मुंबई का कोलाहल अंदर भर गया, लेकिन मेल्विन ने केवल अपने दिल की धड़कन की मधुर सिम्फनी सुनी जो उसके साथ तालमेल में धड़क रही थी। उसने पीटर से एक धक्का महसूस किया। उसने मेल्विन को आँख मारी। उसे एहसास हुआ कि उसका सबसे अच्छा साथी उसकी भावनाओं के बारे में सबसे पहले जान गया था।
“सचमुच!” मेल्विन इस विडंबना पर मुस्कुराये बिना नहीं रह सका।
रेबेका की नज़र उसकी नज़र से मिली, उसकी आँखों में एक कोमलता थी जिसने उसके दिल को दुखाया।
"मुझे भी ऐसा ही लगता है, मेल्विन!" उसने कबूल किया "मैंने हमेशा तुम्हारे साथ एक जुड़ाव महसूस किया है, लेकिन मुझे नहीं पता था कि ये प्यार था।"
ट्रेन, एक ऐसी जगह जो कभी उसके जीवन का प्रतिबिंब थी, अब उसकी प्रेम कहानी के सबसे महत्वपूर्ण क्षण का मंच बन गई थी। वोह रेबेका के करीब झुका और फुसफुसाते हुए बोला, "मुझे अपना हिस्सा बनाने के लिए शुक्रिया।"
“मैं भी तुमसे बहुत कुछ कहना चाहती हूं लेकिन वक्त नहीं है मेल्विन! मेरा स्टेशन आने वाला है।”
ट्रेन के रुकते ही रेबेका होंठों पर मुस्कुराहट लिए नीचे उतर गई।
“कम से कम ये बात स्टेशन देखकर छेड़नी चाहिए थी तुम्हें मेल्विन!” पीटर ने गुस्सा होते हुए कहा।
ट्रेन स्टेशन से आगे बढ़ गई। अपने साथ मेल्विन के अतीत का भार और उनके साझा भविष्य का वादा लेकर।
"तुम्हें पता है!" पीटर ने कहा, उसकी आँखें अभी भी उसके फ़ोन पर चिपकी हुई थीं, "मैं तुम दोनों के इस प्यार को समझने की कोशिश कर रहा था। मुझे लगा कि मुझे तुम्हारे लिए कोई प्रेम पत्र या कुछ और लिखना होगा।"
डायना खिलखिला उठी। मेल्विन के हाथ पर पीटर की पकड़ और मज़बूत होती गई। "तुम्हें पता था?" डायना ने मुस्कराते हुए पूछा।
"क्या तुम मज़ाक कर रही हो?" पीटर भी मुस्कुराया, "रेबेका पिछले 6 महीने से मेल्विन द्वारा बनाए गए हर कार्टून की प्रेरणा है!"
इस खुलासे पर डॉक्टर ओझा और रामस्वरूप जी ने हां में हां मिलाया। वे चुपचाप इस आदान-प्रदान को देख रहे थे। लक्ष्मण, जो अब पूरी तरह से जाग चुका था, उसने मेल्विन की पीठ थपथपाई।
"अब समय आ गया है, मेल्विन!" उसने कहा, उसकी आँखें गर्मजोशी से भर गईं, “तुम भी शादी कर लो।”
"मुझे हमेशा से पता था कि तुम दोनों एक आदर्श जोड़ी बनोगे।" उसने कहा, "और पीटर, क्या अब तुम कामदेव बनना बंद कर सकते हो क्योंकि तुम्हारा काम यहाँ पूरा हो चुका है।"
"ओह, मेरा काम अभी खत्म नहीं हुआ है।” पीटर ने चुटकी ली, "मुझे अभी भी ये देखना है कि कहीं मेल्विन बनती बात बिगाड़ न दे।"
ट्रेन आगे बढ़ती रही, उनके आस-पास की बातचीत फिर से अपनी सामान्य गति पर लौट आई।
उनके डिब्बे के छोटे से दायरे में, ऐसा लग रहा था कि उनके और प्यार के अलावा और कुछ भी मायने नहीं रखता था। आखिरकार इस प्यार को अब आवाज मिल गई थी।
“मैंने रेबेका से अपने दिल की बात कह दी। बस मुझे इससे ज्यादा की उम्मीद नहीं है।” मेल्विन ने अपने सीने में एक हल्कापन महसूस करते हुए कहा, जो लंबे समय से गायब था। जैसे उसने अपने दिल के चारों ओर पहना हुआ अदृश्य कवच उतार फेंका हो। उसकी आवाज़ शोरगुल वाले डिब्बे में फुसफुसाहट की तरह थी।
डॉक्टर ओझा और रामस्वरूप जी ने मेल्विन को देखा। उनके चेहरे पर आश्चर्य और प्रसन्नता का मिश्रण था।
"बधाई हो, मेल्विन!" रामस्वरूप जी ने कहा। उनकी आँखें खुशी से चमक रही थीं।
लक्ष्मण, जो झपकी लेने का नाटक कर रहा था, झटके से उठ बैठा। "मैंने क्या मिस किया?" उसने पूछा, उसकी आँखें उन दोनों के बीच घूम रही थीं।
"मेल्विन ने आखिरकार रेबेका को बता दिया कि वो उसे लेकर क्या महसूस करता है।" पीटर ने घोषणा की। उसकी आवाज़ में गर्व साफ़ झलक रहा था।
लक्ष्मण ने मेल्विन की पीठ थपथपाई। "आखिरकार।" उसने कहा, "अब तुम ज्यादा वक्त तक अकेले मत रहना।"
ट्रेन स्टेशन से दूर चली गई। मुंबई का दृश्य उनके सामने से गुज़र रहा था।
उसी शाम मेल्विन ने अपनी माँ को फ़ोन किया। उसने उसे रेबेका के बारे में बताया, स्थानीय ट्रेन की सांसारिक दिनचर्या के लिए उनके साझा प्यार के बारे में, और जिस तरह से उसने उसे महसूस कराया उसके बारे में। उसने भविष्य के लिए अपनी योजनाओं और उसके द्वारा उसके जीवन में लाई गई खुशी के बारे में बात की। बोलने से पहले उसकी माँ एक लंबे पल के लिए चुप रही।
"मेल्विन!" मेल्विन की मां ने कहा। उनकी आवाज़ पहले से कहीं ज़्यादा नरम थी, "मैं बस यही चाहती हूँ कि तुम खुश रहो। अगर वो वही है जो तुम्हें इस तरह मुस्कुराने पर मजबूर करती है, तो मैं तुम्हारा साथ दूँगी।"
मेल्विन को लगा कि उसके सीने से एक बोझ उतर गया है।
"धन्यवाद, माँ!" उसने कहा, उसकी आवाज़ भावनाओं से भर गई थी, "मैं उसे जल्द ही तुमसे मिलवाने ले आऊँगा।"
"मुझे अच्छा लगेगा अगर तुम उसे लेकर आओ।” उन्होंने कहा, "बस याद रखो, प्यार एक यात्रा है, मंज़िल नहीं।"
मेल्विन ने सिर हिलाया, हालाँकि वो उसे देख नहीं पा रही थी। उसे पता था कि वो सही थी। उनके प्यार की ट्रेन अभी-अभी स्टेशन से निकली थी, और उनके सामने एक लंबा, खूबसूरत ट्रैक था।
मेल्विन ने अपनी माँ के शब्दों का वजन महसूस किया था, लेकिन रेबेका के हाथ की गर्माहट एक ऐसा आश्वासन था जो उसने पहले कभी महसूस नहीं किया था। वह जानता था कि उसे उसके लिए, उनके लिए मजबूत होना होगा। उसने एक गहरी साँस ली और उसका सामना करने के लिए मुड़ा, जो शब्द उसने इतने लंबे समय से अपने दिल में दबाए रखे थे, वे आखिरकार बाहर निकलने के लिए तैयार थे।
मेल्विन ने गहरी साँस ली।
उसने अपने आपसे कहा, "मुझे पता है कि मेरी माँ को चिंताएँ हैं। उसके अपने कारण हैं। लेकिन मैं उन्हें दिखाना चाहता हूँ कि हमारे बीच जो कुछ है वो सच है। मुझे कोई ऐसा व्यक्ति मिल गया है जो मुझे समझता है, जो मुझे एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करता है।"
तब मेल्विन की मां ने अपनी खुशी जाहिर तो की थी लेकिन उनका चेहरा कुछ और ही बयां कर रहा था।
एक दिन मेल्विन रेबेका को अपनी माँ से मिलवाने ले गया। जहां वो रहती थीं वो जगह शहर की हलचल से दूर एक छोटा, शांत अपार्टमेंट था, जो अपने अतीत की यादों से घिरा हुआ था।
जब वे लिविंग रूम में बैठे, मेल्विन की मां चाय लेकर आईं। मेल्विन हवा में तनाव महसूस कर सकता था।
"माँ!" उसने शुरू किया, उसकी आवाज़ थोड़ी लड़खड़ा रही थी, "रेबेका वही है जिसके बारे में मैं तुम्हें बता रहा था।"
उसकी माँ ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखें तीखी और आंकलन करने वाली थीं। "नमस्ते, आंटी!" उसने कहा। उसका स्वर शांत था।
रेबेका ने उन्हें मिठाई का डिब्बा दिया जो वो लाई थी।
"नमस्ते, बेटा!" उसने कहा। उसकी आवाज़ कोमल थी, "यहां आने के लिए शुक्रिया!"
इसके बाद कुछ देर तक शांति छाई रही। जब तक कि आखिरकार, मेल्विन की माँ ने बात नहीं की।
"तो, मुझे अपने बारे में बताओ!” उन्होंने कहा। उनकी आवाज़ थोड़ी गर्म हो गई, "तुम क्या करती हो, तुम्हारे सपने क्या हैं?"
रेबेका ने स्कूल में अपने काम, किताबों के प्रति अपने प्यार और एक दिन थिएटर में ड्रामा डायरेक्ट करने के अपने सपनों के बारे में बात की। मेल्विन ने देखा कि उसकी माँ का रुख नरम हो चुका था। उसकी जिज्ञासा बढ़ रही थी।
"और तुम्हारा क्या, मेल्विन?" उन्होंने पूछा। उसकी निगाहें रेबेका की ओर थीं, "भविष्य के लिए तुम्हारी क्या योजनाएँ हैं?"
मेल्विन ने अपनी माँ की नज़र का भार महसूस करते हुए एक गहरी साँस ली।
"माँ!" उसने कहा, "मुझे पता है कि तुम चिंतित हो। तुमने अपने जीवन में बहुत कुछ देखा है, और मैं उसका सम्मान करता हूँ। लेकिन रेबेका अलग है। ये दयालु है, ये होशियार है। मुझे रेबेका का साथ पसंद है।"
"लेकिन इसके अतीत के बारे में क्या?" उसकी माँ ने पूछा, उसकी आवाज़ चिंता से भरी हुई थी, "क्या होगा अगर रेबेका का कोई पिछला सच हो?"
"हम सभी का एक अतीत होता है, माँ!" मेल्विन ने जवाब दिया। उसकी आवाज़ शांत और संतुलित थी, "जो मायने रखता है वो ये है कि हम आगे बढ़ने का चुनाव कैसे करते हैं। और रेबेका के साथ, मुझे पता है कि मैं किसी भी चीज़ का सामना कर सकता हूँ।"
रेबेका की आँखें उसकी आँखों से मिलीं। उसने उत्साह से अपना सिर हिलाया।
"तुम्हारा दिल लग गया है।" उसकी माँ ने अंत में कहा, "लेकिन सावधान रहना, मेल्विन। मैं नहीं चाहती कि तुम्हारा दिल टूटे। क्या तुम वैवाहिक जीवन की सभी जरूरतें पूरी कर सकोगे मेल्विन?"
मेल्विन ने रेबेका का हाथ अपने हाथ में लिया, "मैं करूँगा, माँ। मैं वादा करता हूँ। मैं शादी के बाद हमारी सारी जरूरतें पूरी करूंगा मां। मैं आपका वही मेल्विन बनकर रहूंगा जो मैं आज हूं। रेबेका के आने से हमारे रिश्ते पर कोई असर नहीं पड़ेगा मां।"
“मेरा डर ये नहीं है बेटे!” मेल्विन की मां ने कहा। जबकि वे खुद जानती थी कि यही डर उन्हें सताए जा रहा है, “मैं तुम्हारी खुशियों से डरती हूं। वो तुमसे ज्यादातर रूठी ही रहती हैं।
जब उन्होंने अपनी चाय खत्म की, तो बातचीत हवा में अब भी ताजी थी। ये साफ था कि मेल्विन की माँ अभी भी कन्फ्यूज्ड थी। लेकिन वो रेबेका को एक मौका देने के लिए सहमत हो गई थी।
उस शाम मेल्विन रेबेका को लेकर वापस लौट गया। मेल्विन की मां, पीछे परेशान और घबराहट में खड़ी रह गई थीं।
“मैं इसे कबूल नहीं कर सकती।” मेल्विन की मां ने अपने आप से कहा, “ये लड़की मेरे मेल्विन के काबिल नहीं है। ये मेल्विन की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएगी। शादी के बाद ये एक–दूसरे का साथ नहीं दे पाएंगे। मेरा बेटा मुझसे दूर जाएगा या फिर ये लड़की उसे दूर कर देगी।”
आखिर मेल्विन की मां को रेबेका क्यों पसंद नहीं आई थी? क्या सचमुच रेबेका को लेकर जो ख्याल मेल्विन की मां के दिमाग में आ रहा था, वो सच था? क्या रेबेका सचमुच शादी निभाने वाली लड़कियों में से नहीं थी? जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग।
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