ट्रेन की पटरियां इतनी लंबी थीं, इतनी लंबी थी कि उसका अंत दिखाई नहीं पड़ता था। लगता था जैसे इसी का कोना पकड़ कर भागते भागते वापिस गांव पहुंचा जा सकता है लेकिन कौन सा कोना पकड़ा जाए? इस ओर भागें या उस और भागें? किस ओर भागें? और भागते भागते कैसे तय करें कि किस ओर भागें? इसलिए अब नहीं भागना चाहिए। और पीछा करती मौत तो न जाने कहां भाग गई थी। या शायद छुप गई थी लेकिन संकट टल गया था।
भागते भागते बुरी तरह थक गए अपने चुन्नी बाबू। पैरों को देखा तो उनके हाल भी बुरे थे। पैर में जूता चप्पल तो था नहीं बस नंगे पैर थे जो जगह जगह से जख्मी हो गए थे। थकान और प्यास से चुन्नी की हालत बुरी हो गयी थी. नशा तो जैसे जाने कब गायब हो गया था.
तभी उन्हें एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ दिखाई दिया. चुन्नी ने सोचा यहीं चला जाये. पास गए तो उन्हें एक मटकी भी दिखाई पड़ी जिसके ऊपर एक कौवा बैठा हा. जो बहुत देर से उसमें पत्थर डाल डालकर मटकी का पानी ऊपर लाने में लगा हुआ था. चुन्नी ने देखा तो मन में सोचा साला ये कौवा न जाने कौन से युग से मटके में पत्थर डाले जा रहा है और पानी है कि ऊपर ही नहीं आता. आज इस कहानी का अंत कर ही देना चाहिए. चुन्नी कौवे को हांकते हुए मटकी के पास पहुँचते हैं. बहुत देर से प्यासा कौवा उड़ना नहीं चाहता था लेकिन ये आदमजात किसी काम को सफल होने नहीं देते.
कौवे ने जब देखा कि चुन्नी मान नहीं रहा है, तो जोर से बोला, क्या है बे? क्यों परेशान कर रहा है मुझ प्यासे को?
चुन्नी चौंका! ये कौन बोला? आसपास नज़र दौडाकर देखा, यहाँ तो कोई नहीं है.
इधर उधर ऊद बिलाव की तरह क्या देख रहा है, इधर देख मेरी तरफ . मैं हूँ बाली कौवा.
अरे तू बोलता है? कब से? क्यों? क्या इंसानों की भाषा भी सीख गया?
ज्यास्ती दिमाग नहीं खाने का. समझा क्या? मैं इधर प्यासा इतनी देर से मटके से पानी निकालने की मगजमारी कर रिया था और तू है कि पोपट की तरह आकर मेरी मेहनत को बेकार करने में लगा है.
चुन्नी तो हैरत में आ गया, ये साला माजरा क्या है इस इंद्रपुरी का. यहाँ कौवे बोल रहे हैं. हट यार. देख भाई, मुझे भी बहुत प्यास लगी है. और इतना थका हुआ हूँ कि यहां से कहीं जाने की हिम्मत भी नहीं है. तेरे पास तो पंख हैं तू तो उड़ सकता है, मैं कहाँ जाऊं?
कहाँ जाऊं माने? पैर हैं न तेरे? मैं उड़ सकता हूँ तो तू चल सकता है, दौड़ सकता है? जहां जाना है जा. यहाँ मेरा मत्था मत ठनका. मेरा दिमाग फिरा न तो तुझे यहीं बराबर कर दूंगा. समझा क्या? हलके में न लेना.
चुन्नी को लगा बताओ, हथेली भर का कौवा मुझको डरा रहा है. हांकते हुए बोला, ससुरे पंख हैं तो तेरे पास, जा उड़ क्यों नहीं जाता, उड़ कर चला जा पानी के पास. और एक बात बता, तुम साला कौवा लोगों को कोई काम धाम है कि नहीं. जहाँ तुम्हें कोई मटकी मटका दिखा वहीँ उसमें पत्थर डालने लग जाते हो. क्या चक्कर है? और सुन देख भाई! मुझपर रहम कर दे. उड़ जा यहाँ से. नहीं तो गर्दन तोड़ दूंगा तो पानी कैसे पिएगा?
कौवे को लगा मामला सीरियस है. वो मटकी से उड़ गया और पेड़ की डाली पर जाकर बैठ गया. चुन्नी ने मटकी के अन्दर झाँक कर देखा. उसे पानी दिखाई दिया. पानी इतना था कि पीकर प्यास बुझाई जा सके. चुन्नी ने देरी नहीं की. वो मटकी उठाकर गटागट पानी पीने लगा. आह हा. प्यास बुझी. तभी एक ठंडी हवा का झोंका चुन्नी ने महसूस किया. वह अलसाया हुआ पेड़ के नीचे लेट गया. और लेटते ही चुन्नी की आँखें लग गयीं. और चुन्नी एक ऐसी दुनिया में पहुँच गया जहां सब कुछ संभव है. सब कुछ मतलब सब कुछ.
यह ऐसी दुनिया थी, जहाँ सब कुछ जादू जैसा होता. यहाँ चुटकी बजाओ और हर सामान हाज़िर. शबाब, कबाब, शराब जो चाहिए एक चुटकी में हाजिर. यहाँ इंद्रपुरी की तरह बदबू नहीं थी. बल्कि फूलों से महकते बाग़ बगीचे थे. यहाँ इंद्रपुरी की तरह नाले-नालियां नहीं थी, यहाँ साफ़ और मीठे पानी की नदियाँ थीं. पानी इतना साफ़ कि उसके नीचे का तल दिखाई पड़ता. रंग बिरंगी मछलियां दिखलाई पडतीं. यहाँ इंद्रपुरी की तरह भुखमरी भी नहीं थी. यहाँ तो इतने पकवान थे, इतने तरह के व्यंजन थे जिनकी गिनती ही नहीं की जा सकती थी. यहाँ कोई मजदूरी नहीं कर रहा था. सब आराम कर रहे थे. यहाँ तक कि झुन्नी काकी की कमर सीधी हो गयी थी. वह सोने चांदी से सजी थी. कसूरी बाई का तो कहना ही क्या? आह एक दम परी. कसूरी बाई के पंख भी लगे थे. वह जिस भी लड़के को चाहती उसकी ऊँगली पकड कर आसमान में उड़ा ले जाती.
यहाँ दूर दूर तक लल्लन लाला और रामकृपा पंडित जैसे लोग दिखलाई नहीं पड़ते थे. अच्छा ही है, ससुरे यहाँ से दूर रहें तो ही अच्छा. वरना इसे भी इंद्रपुरी जैसी जगह बना डालते.
तभी एक खुबसूरत लाल रंग की लम्बी सी गाड़ी चुन्नी के आगे आकर खड़ी होती है. उसमें से एक आदमी काला शर्ट, काला पेंट, काला चश्मा लगाये उतरता है. चुन्नी उर्फ़ परम प्रतापी को सलाम ठोंककर उसे गाडी में बैठने के लिए कहता है. चुन्नी को कुछ समझ नहीं. उसने सोचा कि ऐसे फटेहाल में इस गाड़ी में कैसे बैठ सकता है. तभी उसका ध्यान अपने कपड़ों पर जाता है. अरे वाह! उसके तो कपडे भी बदल गए हैं. वाह, देने वाले का भी क्या कहना, देने पर आए तो इतना दे दे कि सर चकरा जाए। चुन्नी बाबू नहीं नहीं परम प्रतापी जी, अब इतना अच्छा सूट बूट पहने हुए आदमी को चुन्नी कहना अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए अब से परम प्रतापी ही कहेंगे उन्हें। तो प्रतापी जी ने अपने नए सूट बूट को हाथ से छूकर देखा। वाह एकदम मलमल का कपड़ा। शरीर की बदबू भी खत्म हो गई थी। और एक ऊंचे किस्म की खुशबू आ रही थी। प्रतापी जी ने सूट के जेब में हाथ डाला तो उसमें उन्हें एक सिगार मिला। उन्होंने फ़िल्मी अंदाज में जेब से सिगार निकाला और और होंठों पर लगाया. गाडी से उतरे गार्ड ने जेब से कीमती लाइटर निकाला और प्रतापी जी का सिगार सुलगा दिया. सिगार सुलगते ही प्रतापी जी के मुंह से यकायक अंग्रेजी फूटी: गुड बॉय,नाउ वेयर वी हैव टू गो ?
बॉस वेटिंग' फॉर यू सर
कम…
प्रतापी जी गाड़ी में बैठ गए और गाडी सरपट भागने लगी.
गाड़ी से प्रतापी जी उतरे तो सामने एक आलीशान महल था. प्रतापी जी को लेने के लिए एक उड़ने वाला हाथी खडा था. लेकिन प्रतापी जी उसपर चढ़ें कैसे? उन्होंने गार्ड को आदेश दिया, इसको बोलो कि यह इतना छोटा हो जाए कि मैं चढ़ सकूँ
गार्ड ने हाथी से कहा, सुना कि नहीं. जल्दी से छोटा हो जाओ. ताकि प्रतापी जी बैठ सकें. हाथी छोटा हो गया. प्रतापी जी उसपर बैठे और हाथी उन्हें लेकर उड़ चला महल के अन्दर.
महल में घुसते ही, उनका स्वागत सुन्दर सुन्दर अप्सराओं ने किया. कोई उनके बांहों में अपनी बांह डाल देती और कोई उनकी उँगलियों से खेलने लगती. कोई उनके बालों में अपनी उंगलियाँ फिराती तो कोई उनके लिए पान का बीड़ा तैयार करती. अप्सराओं ने उन्हें वो सारे सुख दिए जो उन्होंने कभी जिंदगी में भी नहीं सोचा था. भर पेट बढ़िया बढ़िया शराब पी, तरह तरह के कबाब खाए, शोरबे और कोरमें का तो कहना ही क्या? मिठाइयां ऐसी ऐसी चखी, जिन्हें कभी देखा तक नहीं था. वाह इसे कहते हैं सुख. कहाँ वो ससुरी इंद्रपुरी और कहाँ से आलिशान जगह. जरूर इसे ही स्वर्ग कहते हैं.
इस सुख से थककर जब वह चूर हो गए तो उन्हें नींद आ गयी. लेकिन तभी उन्हें लगा जैसे कोई चिपचिपी चीज बार बार उनके मुंह पर गिरती. और धीरे धीरे उन्हें महसूस हुआ कि पीठ के नीचे का गद्दा भी अचानक कठोर हो गया है. इस तंग स्थिति से वह खीझ से भर गए और नींद में उन्होंने सोचा आज इस महल में काम करने वाले नौकरों की खबर ली जायेगी. बताओ साले एक बिस्तर भी अच्छा नहीं बिछा सकते. अचानक उनकी नींद टूट गयी...
हैं? यह क्या? पूरे मुंह पर कौवे ने बीट कर दिया था, जो डालपर बैठा था. अरे अरे अरे, यह क्या, तो वो सपना था क्या? अरे नहीं, नहीं नहीं, बेचारे चुन्नी बाबू जोर जोर से रोने लगे.
कहाँ वो आलिशान दुनिया थी और कहाँ ये फिर से सड़ी गली इंद्रपुरी. वो हसीनाएं कहाँ गयी? वो मिठाइयाँ और कवाब? यह सोचसोचकर वह और जोर से रोने लगे. बेचारे चुन्नी को रोते हुआ देखकर कौवे को भी दया आ गयी. उसने सोचा पास गया तो ये वाकई मेरी गर्दन मरोड़ देगा. उसे लगा कि उसने जो पानी का बदला चुन्नी से लिया है, उस वजह से चुन्नी रो रहा है? उसे क्या पता था कि चुन्नी ने जो सपना देखा था वह उसके टूटने के कारण चुन्नी बाबू रोये जा रहे थे.
वहीं डाल पर बैठे बैठे कौवे ने चुन्नी को चुप कराने की. मत रो वो भाई? रोते क्यों हो? मैं अपनी गलती की माफ़ी मांगता हूँ. मुझे माफ़ करना भाई. तुम ही तो मेरी मेहनत का सारा पानी पी गए. मैं तो छोटा सा पक्षी हूँ. और पक्षियों में भी ऐसा पक्षी जिसे कोई भी अपनी मुंडेर पर देखना नहीं चाहता. सब मुझे मनहूस ही मानते हैं. कोई भी कौवों को प्यार नहीं करता. इसलिए हम अपनी प्यास खुद ही बुझाते हैं. रोवो मत भाई. मत रोवो.
कौवे की बात सुनकर चुन्नी बाबू को सहारा मिला. उन्होंने कौवे को कहा कि ठीक कहता है यार तू. नहीं रोऊंगा. मैंने तेरे साथ गलत किया था. उसी की सजा मुझे मिली, जो इतना अच्छा और झूठा सपना मुझे देखने को मिला. मेरी किस्मत में तो यह इंद्रपुरी ही है लेकिन तू क्यों पडा हुआ है यहाँ, तू तो उड़ सकता है, तू क्यों नहीं चला जाता है मेरे भाई!
कौवा वहा से उड़ता उड़ता कहता है, सब जगह इंद्रपुरी ही है भाई...कांव कांव
सपना टूट गया था. असलियत सामने आ गयी थी. अब क्या किया जाए? कहाँ चला जाए कुछ समझ नहीं आ रहा था. हाय! बार बार वही सपना याद आता. क्या बढ़िया सूट था, क्या बढ़िया सिगार था. कितनी अच्छी गाड़ी थी, कितनी खुशबूदार जगह थी, क्या पकवान थे. क्या महल था और महल की वो हसीनाएं, उनका क्या ही कहना. काश काश काश ये सपना खत्म ही नहीं होता. बाकी सब तो ठीक था, लेकिन मेरे मुंह से अंग्रेजी भी फूटी थी? हाँ, क्यों नहीं. Where we have to go? यही तो कहा था मैंने? जिसका जवाब मुझे अभी तक नहीं मिला है. चुन्नी ने जोर से चिल्ला कर पूछा, कहाँ जाएँ?
तभी बहुत खडूसिया आवाज़ में गूँजते हुए किसी ने कहा, अबे चुन्नी! तेरे कू कहीं भी जाना है तू जा लेकिन यहाँ मेरी नींद क्यों तोड़ रिया है. कितना सुन्दर सपना देख रिया था मैं, रो रोकर उठा दिया तूने? ज्यास्ती ड्रामा नहीं करने का इधर. समझा ना? पहली फुर्सत में निकल जाने का? वरना एक डाली फेंककर मारेंगा न तो दौड़ता नज़र आयेंगा. समझा क्या?
चुन्नी फिर हैरत में
अब ये कौन बोला बे
तो ऊपर से आवाज आई. और किधर से आएँगी आवाज़. ऊपर कू देख. मैं गुरुराज बरगद.
चुन्नी ने माथा पकड लिया. ये कैसी जगह है यार. यहाँ कौवे और पेड़ पौधे बोल रहे हैं
जाता हूँ जाता हूँ. तू देख भाई सपना देख.
तो भाइयों ये था चुन्नी का सपना. और हर सपना पूरा हो ही जाए यह कोई जरूरी नहीं. लेकिन कुछ सपने तो आदमी पूरे कर ही लेता है. तो कुछ सपने तो चुन्नी को भी पूरे करने हैं. अब देखते हैं कि वो कौन से सपने हैं.
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