तो भाई लोगों, अब ये कहानी आपके सामने ऐसे ऐसे किस्से लेकर आने वाली है जिसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. लेकिन घबराएं नहीं, भगवान का ध्यान करें और कहानी सुनें

मंदिर का घंटा बजता है.

और मंदिर के सामने खड़े हैं सब ओर से हारे अपने चुन्नी भाई.बेचारे क्या सोचकर गाँव से भागे थे और क्या किस्मत थी कि यहाँ इस इंद्रपुरी में आकर अटक गए. ऐसे अटके ऐसे अटके जैसे कभी कभी मकड़ी खुद ब  खुद अपने जाल में फंस जाती है. और मकड़ी भी सोचती ही होगी कि भगवान ने क्या सोचकर उसे जाला बुनने का काम सौंपा था. फंसाना मक्खी को था, फंस खुद ही गई.

हालाँकि अपने चुन्नी उर्फ़ परम प्रतापी भाई कोई मकड़ी नहीं थे, लेकिन यह भी सही है कि मख्खी भी नहीं थे. थे तो मकड़ी ही. और अपने जाल—नहीं नहीं जंजाल से उबरने के लिए आज वो भगवान के दरवाज़े चले आये हैं. अब भगवान तो भगवान, वो भी इंद्रपुरी के भगवान! यहाँ कोई शिव विष्णु तो था नहीं, जो चाहो मांगों और भगवान खुश होकर वरदान दे दें. न न एकदम नहीं. यह तो इंद्रपुरी के भगवान का मंदिर था. अब आपको लगेगा कि यह क्या नया तमाशा मैंने शुरू कर दिया तो मेरे भाई एक बात कान खोलकर सुन लें, इस दुनिया में बिना तमाशे के और है ही क्या? हर ओर तमाशा ही तमाशा. कहीं मौत का तमाशा कहीं जिन्दगी का तमाशा. कहीं रोने का तमाशा तो कहीं हंसने का तमाशा. कहीं कोई खेल का तमाशा कर रहा है तो कहीं कोई सही में तमाशा कर रहा है. तमाशा तो भैया ऐसी चीज़ है कि हर कोई करता है. है कि नहीं. और एक बात बताऊं? आप भी तमाशा ही कर रहे हैं जिंदगी में. अच्छा अच्छा, आप करें तो रासलीला और मैं करूं तो कैरेक्टर ढीला? अबे जा न रंग रंगीला

तो हुजुर! इससे पहले कि चुन्नी बाबू अपना संकट इंद्रपुरी के भगवान से कहना शुरू करें. पहले आप यहाँ के भगवान को तो जान लें. इंद्रपुरी के भगवान की महिमा का बयान इतना आसान नहीं. इसके लिए आपको सच्चे मन से चोरों का ध्यान रखना होगा. हैं? चौंकिए मत. बताता हूँ बताता हूँ कि ऐसा क्यों कह रहा हूँ. दरअसल इंद्रपुरी के जो भगवान थे वो भगवान नहीं बल्कि एक बहुत पुराने गंजेड़ी बाबा थे. और थे ये मूलतः चोर. इनकी पहचान ही यही थी कि यह जिस भी भक्त पर प्रसन्न होते उसकी चप्पल चुरा लेते. और जिस भक्त से नाराज़ होते, उसके घर चोरी करवा देते. तो इंद्रपुरी की दरिद्रता का राज कुछ इधर भी छुपा हुआ है. खुद इंद्र, जिनके नामपर इस जगह का नाम पडा है. जब वो इस जगह में छुपकर रह रहे थे, तब उनकी चप्पल भी इन्हीं साधू बाबा ने चुराई थी. जिसकी वजह से इंद्र कई दिनों तक स्वर्ग तो क्या दिसा मैदान भी नहीं जा पाते थे. फिर एक दिन इंद्र की हालत पर दया खाकर, साधू बाबा ने उनकी चप्पल लौटा दी थी, लौटाते हुए उन्होंने इंद्र को एक कहानी सुनाई थी. तो जब उन्होंने यह चप्पल इंद्र तो लौटाई तब इंद्र ने पूछा साधू से-- क्यों रे? ये सोने और हीरे मोती से जड़ा हुआ मेरा बेशकीमती स्वर्ग का चप्पल तूने चुराया था? बता तेरी ये हिम्मत कैसे हुई ?

बताइए भला? चोर से भी कोई उसके चोरी करने की हिम्मत के बारे में पूछता है? बेशकीमती था तभी तो चुराया गया था न. अब किसी भिखमंगे की चप्प्पल होती टूटी फूटी तो उसे चुराकर अपने ही को चार चप्पल बजाने का तुक नहीं बैठता? इंद्र के इस सवाल से साधू को समझ में आ गया कि जिस जगह के राजा की बुद्धि ही ऐसी है, उसके भविष्य के बारे में क्या ही सोचा जाए.

साधू ने सोचा इससे अच्छा मौक़ा इंद्र पर अपना प्रभाव जमाने का फिर नहीं आएगा. उसने तुरंत हाथ की हाथ एक कहानी गढ़ दी. और जितनी ऊची आवाज़ में इंद्र ने उसपर चोरी का इल्जाम लगाया था, साधू ने उसकी दुगनी लगभग गरजती हुई आवाज़ में बोलना शुरू किया—

खबरदार! तू है किस खेत की मूली बे? अपना नाम पता बता तो. तुझे मालूम है कि तू किस पराक्रमी सिद्ध योगी के सामने खड़ा है? अभी अभी मैं एकमामूली से राक्षस का दिमाग ठिकाने लगाकर आ रहा हूँ जिसके दस सिर थे, पंद्रह पैर, जो मुंह खोलता था तो ज्वाला मुखी फटती थी. ऐसे तो उसकी भुजाएं किसी पर्वत से कम नहीं थीं, लेकिन बेवकूफों की तरह मेरे सामने से हो हल्ला मचाते हुए जा रहा था, तो मैंने उसकी खबर ले ली. उसी के हाथ में यह चप्पल देखी तो मेरा माथा ठनका. जो राक्षस नंगे पैर अग्नि पर हंसता हुआ उत्पात मचाता हुआ चलता हो वो हाथ में यह चमकता हुआ चप्पल लेकर क्या कर रहा था? मुझे कुछ खटका सा हुआ. तभी मैं समझ गया कि यह किसी करप्ट सरकारी आदमी की चप्पल है जिसने सरकारी खाते से रुपये उड़ा उड़ाकर ऐसी चप्पल बनाई है.

इंद्र के काटो तो खून नहीं! उन्हें तो कुछ पल्ले ही न पड़े कि माजरा क्या है? उन्हें लगा कहीं साक्षात नारायण परीक्षा लेने तो नहीं आ गए. नहीं नहीं. नारायण नहीं हैं. नारायण जल्दी से इस लोक में नहीं आते. वो आते हैं तो अवतार लेकर ही आते हैं. यह जरूर कोई सिद्ध पुरुष हैं. उन्होंने साधू से माफ़ी मांगी और उनसे पूछा कि राक्षस ये चप्पल लेकर क्या कर रहा था.

साधू ने यह सुनकर अपना माथा ठोंक लिया. किस घामड़ के चक्कर पड़ गया हूँ आज. बोले- जोर जोरसे किसी इंद्र का नाम पुकार पुकार कर कह रहा था कि जहां भी छुपे बैठा है बाहर निकल, आज मैं सारी राक्षस जाति का बदला चुकाने आया हूँ. अब देखो भाई, उसे जो करना था सो करता लेकिन उसके इस हो हल्ले से मेरी आँख खुल गयी. तो भागा हुआ उसके पास गया. उसका टेटुआ पकड़कर दो चार जड़ दिया. लगे हाथ उसके हाथ से यह चप्पल भी छीन ली. और साफ़ साफ़ कह दिया कि दुबारा इस इलाके में दिखे तो तेरी सारी राक्षसी ठिकाने लगा दूंगा.

इतना सुनकर तो इंद्र ने माथे से पसीना पोछा और मन में सोचा बाल बाल बचे. अब वो इस सवाल में नहीं उलझना चाहते थे कि यह प्रतापी साधू आखिर हैं कौन. इनके बारे में तो वो स्वर्ग में जाकर अपने गुरु ब्रहस्पति से पूछ लेंगे. फिलहाल यहाँ से खिसकना ही उचित समझा. कहीं साधू का दिमाग फिरा तो कहीं मुझे भी न दौड़ा दें.

उन्होंने तुरंत अपना परिचय दिया. और साधू को यहाँ का भगवान बनाकर स्वर्ग की ओर अपनी जानबचाकर भागे.

तो कुछ यह कहानी थी, इंद्रपुरी के भगवान की जिसे मैंने एकदम नहीं सुनाई. हाँ बोल मेरे थे लेकिन पूरे इंद्रपुरी में इस कहानी को गढ़ने वाले महान कहानीकार थे रामकृपा पंडित. उन्होंने ही यह कहानी इंद्रपुरी के सभी लोगों को सुनाई थी. सो कहानी आगे बढती, लगे हाथ मैंने यह भी सुना दी!

बोल राम कृपा—अरे नहीं नहीं नारायण भगवान की जय

तो मंदिर के बाहर चप्पल उतारकर, अपने चुन्नी बाबू मंदिर में वीराजमान इंद्रपुरी के भगवान के सामने हाज़िर होते हैं.

और अपना सारा क्लेश सुना मारते हैं. मूर्ति को देखकर उन्हें लगता है जैसे यह मूर्ति अभी बोल पड़ेगी. क्या बढ़िया प्रतिमा है. एकदम सजीव. आँखें ऐसी कि करुणा की धारा बहती हो, चरण ऐसे जैसे कमल के पत्ते. बाकी सब ठीक है. लेकिन यह क्या, प्रतिमा के दायें बाएं नीचे देशी शराब की बोतलें रखी हुई हैं और लोग मज़े से आते, भक्तिभाव में आधी से ज्यादा बोतल पी जाते और और थोड़ी बची कुची वहीं देवता के पैरों में छोड़ जाते. चुन्नी को समझने में देर नहीं लगी कि यह यहाँ की प्रसादी है. पर वह तो कुछ भी नहीं लाया था. तो उसने उन्हीं बोतलों में से एक बोतल उठाई, और गटागट एक सांस में पी गया. बची कुची वहीं देवता के पैरों में रख दिया.

अब चुन्नी तो आ गए नशे में. ठीक वैसे ही जैसे एक शराबी को खुद को छोड़कर बाकी पूरी दुनिया नशे में लगती है. कुछ वैसी ही हालत थी अपने चुन्नी बाबू की. उन्हें सब कुछ नशे में लग रहा था. पूरी दुनिया नशे में लग रही थी. यह प्रतिमा नशे में, यह मंदिर नशे में, यह आते जाते लोग नशे में, सब और नशा ही नशा- और चुन्नी को आई हिचकी(हिचकी की आवाज़)

अब चुन्नी का तनाव हल्का होने लगा था. मन शांत था. उसे दुनिया अजीब पागल लगने लगी थी. उसे हंसी आने लगी. वह जोर जोर से हंसने लगा. जिसे भी देखता, उसे देखकर हंसने लगता. कालू, सोंधी, जखीरा जो सामने आये, चुन्नी उनका चहरा देखता और हंसने लगता. कैसे काले पीले आड़े तिरछे चहरे वाले लोग हैं. और सब यहाँ आते हैं इस देवता से अपनी परेशानी बताने और शराब पीकर मस्त हो जाते हैं. फिर परेशानियां कहाँ गायब हो जाती हैं, किसे पता? थोड़ी देर के लिए सही लेकिन सब अपने में मस्त. कोई नाचता है, कोई गाता है, कोई रोता है, कोई हंसता है. लेकिन परेशान नहीं कोई. मंदिर में हिंसा वर्जित थी. लेकिन गाली आप चाहे जितनी अतरंगी दे दें. एक शराबी ने दूसरे शराबी को गाली बकी—जा जा! मंदिर में है, वरना इतना मारता इतना मारता कि रोने भी नहीं देता. दूसरे शराबी ने पहले शराबी को गाली बकी—मारने के लिए हाथ की नहीं हिम्मत चाहिए. और उस मामले में तू बचपन से ही फत्तू है.

यह सब चल ही रहा था कि उसमें हमारे चुन्नी बाबू की नज़र प्रतिमा के हाथ पर पड़ी. यह क्या? हाथ में चप्पल! और इतनी चमचमाती चप्पल? उसने किसी से पूछना चाहा तबी पीछे से कहीं से आवाज़ आई, इसी चप्पल से पीट पीटकर तुझे सुधारुंगा.

हैं? मुझे? क्यूँ क्या हुआ? मैंने क्या किया?

अबे खड़ा क्यों है? इस मंदिर में कोई बेवजह खड़ा नहीं होता. या तो -प्रसाद पीता रह या यहाँ से पहली फुर्सत में निकल ले. इतना सुनकर चुन्नी बाबू का नशा कुछ ठंडा पड़ना शुरू हुआ. उन्हें समझ आ गया कि यह कोई मंदिर नहीं बल्कि खांटी ठेका है. वहां से तुरंत निकलकर चुन्नी बाबू बाहर आये तो और माथा खराब हो गया. चप्पल कहाँ गयी?

खूब खोजा, खूब खोजा, लेकिन चप्पल का कहीं अता पता ही नहीं था. घूमकर उन्होंने मंदिर के गेट पर लगे बोर्ड को पढ़ा जिसपर लिखा था –

कृपया चप्पल न उतारें, मंदिर में चप्पल पहिनकर ही जाएँ

वरना आपकी चप्पल से आपका ही कष्ट उतार दिया जाएगा

-द्वारा, अखिल भारतीय इंद्रपुरी प्रसादी संघ

तो भैया अपने चुन्नी बाबू ने अपना माथा पीट लिया (पीछे से आवाज़ हम आकर मदद करें) और वहां से खिसक लेना ही उचित समझा.

इंद्रपुरी में आकर, यह उनका पहला सबक था कि गुरु चाहे जो हो जाए आज के बाद इस ओर मुड़कर देखना भी नहीं है. नहीं तो अभी तो केवल चप्पल ही गया है, नहीं तो बाद में कमीज, पजामा, हाथ पैर और तो और जांघिया भी जायेगा.

भागो यहाँ से भागो....वह दौड़ने लगते हैं तभी देखते हैं कि एक भयानक दाढ़ी बाल वाला दूर से उनका नाम पुकारे हाथ में चप्पल लिया उनकी और से तेजी से दौड़ा आ रहा है. चुन्नी को लगा आज उसकी मौत होकर रहेगी. अपनी जान बचाकर चुन्नी भी भागने लगे.

अब आगे आगे नंगेपाँव चुन्नी और पीछे पीछे हाथ में चप्पल लिए साक्षात उसकी मौत

तो चुन्नी बचे या पिटे? जानने के लिए सुनिए अगली कहानी…

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