महल में सबकुछ बिल्कुल शांत नहीं था… बल्कि, सन्नाटा कुछ ज़्यादा गहरा था। एक तरफ आधा राजघराना परिवार दीवानखाने में विराज और रेनू की सगाई की खुशियों में झूम रहा था, तो वहीं दूसरी ओर गजेन्द्र, राज राजेश्वर और वीर तीनों महल के पीछे नजर आई उस दीवार के पीछे की परछाई को तलाशने में लगे हुए थे। 

गजेन्द्र और वीर के दिमाग में उस कागज पर लिखी लाइन और महल के दरवाजे पर हुए धमाके की आवाज ने शक का बीज बो दिया था। दोनों उस चिट्ठी को पढ़ने के बाद राज राजेश्वर की तरफ घूर-घूर कर देख रहे थे।

राज राजेश्वर अभी भी CCTV स्क्रीन के सामने खड़ा था। उसकी आंखें जैसे फटी की फटी रह गई थीं, और होंठों से वही शब्द बार-बार फिसल रहे थे — "ये तो हो ही नहीं सकता...!"

प्रभा ताई ने उसका कंधा झिंझोड़ते हुए फिर पूछा — “राजराजेश्वर, बताओ कौन है ये? किससे इतना डर गए हो तुम?”

राज राजेश्वर ने गहरी सांस ली, होंठ भींचे, लेकिन कुछ कहने से पहले ही महल के अंदर हड़कंप मच गई।

वीर और गजेन्द्र उस परछाईं के पीछे गार्ड्स को भेज चुके थे, लेकिन वो अजनबी अब तक गायब था। सब हैरान-परेशान महल के हॉल एरिया में इकट्ठा हुए। महल के मेन हॉल एरिया में इस समय पूरा राजघराना परिवार मौजूद था, लेकिन रेनू अपने कमरे में थी। दूसरी ओर प्रभा ताई की आंखें बार-बार दरवाज़े की ओर देख रही थीं। मानो सच सामने आने से पहले ही उसका दिल बैठा जा रहा हो।

मुक्तेश्वर ने गुस्से में कहा — “ये धमकी किसी बाहरी की नहीं लगती... ये कोई अपनों का खेल है।”

राजराजेश्वर अब खुद को संभाल चुका था। उसने गला खँखारते हुए कहा — “मैं जानता हूँ कि ये सब किसका किया हुआ है…”

सबकी नजरें उसकी ओर मुड़ गईं। वो रुका... फिर एक-एक शब्द चबाते हुए राज राजेश्वर बोला — “ये सब विराज के अपने ही परिवार की साज़िश है।”

राज राजेश्वर की ये लाइन सुनते ही हॉल में एकाएक सन्नाटा और गहरा हो गया। तभी गजेन्द्र ने लगभग चीखते हुए पूछा— “क्या?” 

राज राजेश्वर ने शक के कारणों का खुलासा करते हुए आगे कहा— “हाँ, इस पूरे खेल के पीछे कोई और नहीं, बल्कि राठौर खानदान... यानि विराज का खुद का परिवार है। उन्होंने ही धमकी दी, और उन्होंने ही रेनू की सच्चाई का इस्तेमाल करने की कोशिश की है, ताकि ये शादी टूट जाए।”

मुक्तेश्वर के चेहरे पर जैसे ज्वालामुखी फूट पड़ा, “लेकिन...क्यों?” 

वीर ने भी तुरंत सवाल दाग दिया— “उन्हें इस शादी से क्या परेशानी है।”

राजराजेश्वर ने गंभीरता से कहा — “क्योंकि रेनू... गजराज सिंह यानी हमारे पिता की नाजायज बेटी है। और राठौर खानदान को ये रिश्ता मंजूर नहीं है।”

हर कोई सन्न रह गया। रेनू की आंखों में आंसू छलक पड़े। उसे जैसे पहले से सब पता था... पर अब जब ये बात खुलकर सबके सामने आई, तो मानो एक बार फिर कोई उसका अतीत उसकी छाती पर पटक गया, जिसका दर्द उसके दिल को चीर रहा था।

मुक्तेश्वर के चेहरे पर शर्म और ग्लानि दोनों थे।

मुक्तेश्वर ने भारी आवाज़ में कहा— “रेनू मेरी बहन नहीं, मेरी सौतेली बहन है। मेरे पिता गजराज सिंह के किये पापों का नतीजा है, जिसकी कीमत रेनू आज भी चुका रही है...। पर रेनू बहुत प्यारी बहन, बेटी, बुआ है... और अच्छी बहू भी साबित होगी। मैंने विराज को पहले ही सब बता दिया था।”

तभी दरवाजे से तेज़ कदमों की आवाज़ आई और विराज अंदर दाखिल हुआ। उसके चेहरे पर ना तो हैरानी थी, ना शर्म — सिर्फ एक अटूट संकल्प था। उसने सबकी तरफ देखा, फिर रेनू की ओर गया और उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोला — “मुझे पता था ये सब एक दिन सामने आएगा। लेकिन मैं इसके लिए तैयार था।”

मुक्तेश्वर ने कहा — “लेकिन बेटा, तुम्हारा परिवार... उन्होंने हमें धमकी दी है। उन्होंने ये शादी रोकने की कोशिश की...”

विराज ने गहरी सांस ली और गरजती आवाज़ में बोला — “तो क्या हुआ? अगर मेरा परिवार मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश करता है, तो मैं अपना सरनेम छोड़ने में एक सेकेंड नहीं लगाऊँगा।”

प्रभा ताई और वीर दोनों एक साथ चौक कर बोले— “क्या?” 

जवाब में विराज ने कहा— “हां। मैं अब से राठौर नहीं, सिर्फ विराज हूं। और मैं उस नाम को ही आगे बढ़ाऊंगा जिसमें प्रेम है, स्वाभिमान है और सत्य है — झूठे सम्मान का बोझ नहीं।”

रेनू फूट-फूटकर रो पड़ी और कांपती हुई आवाज में बोलीं— “मुझे नहीं चाहिए विराज... तुम्हें अपने नाम, अपने खानदान से दूर करने का पाप मैं नहीं कर सकती। मैं खुद को क्यों तुम्हारे लिए बोझ बनाऊं?”

विराज आगे आया, उसका चेहरा अपने हाथों में थामा और बोला — “तुम मेरे लिए बोझ नहीं, मेरी सबसे बड़ी ताकत हो। तुम्हारा अतीत तुम्हारा नहीं था, लेकिन तुम्हारा वर्तमान और भविष्य अब सिर्फ मेरा है।”

राजराजेश्वर ने भावुक होकर कहा — “तुमने वही किया जो एक सच्चा और दिलदार इंसान करता है। अपने प्यार और सच के लिए सबकुछ दांव पर लगा दिया।”

सभी की आंखें इस वक्त नम थीं। हर कोई विराज का रेनू के प्रति प्यार देखकर उसपर दिलवार बैठा था। तभी मुक्तेश्वर आगे बढ़ा और रेनू और विराज दोनों का हाथ अपने हाथों में लिया और बोला “इस रिश्ते को अब कोई ताकत नहीं तोड़ सकती। रेनू अब सिर्फ मेरी बहन नहीं, मेरी बेटी है — और तुम्हारे घर की सबसे बड़ी बहू भी।”

उस दिन के बाद से राठौर परिवार की तरफ से कोई और धमकी या चिट्ठी नहीं आई। क्योंकि विराज ने साफ ऐलान कर दिया था — “अगर इस रिश्ते को कोई ठुकराएगा, तो मैं उस रिश्ते को ही छोड़ दूंगा।”

एक हफ्ते बाद महल को रोशनियों से सजाया गया था। चारों तरफ लाइटें ही लाइटें जगमगा रही थी। दीवारें रंगोली और फूलों से सजी थीं। संगीत, हल्दी और मेहंदी की रस्में पूरे राजसी ठाठ से हो रही थीं। रानू और विराज की शादी पूरे राजगढ़ में अब तक की सबसे भव्य शादी बनीं।

प्रभा ताई ने जब रेनू को दुल्हन के जोड़े में देखा, तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन आंखों में वो अनकही पीड़ा भी, जिसे उन्होंने खुद कभी झेला था।

उन्होंने रेनू के माथे पर हाथ रखते हुए कहा — “तेरे हिस्से का प्रेम, तूने नहीं मांगा, लेकिन जो तुझे मिला है, वो अब तुझसे कोई नहीं छीन सकता।”

शादी की शहनाइयों के बीच, एक बंद कमरे में अब भी गजराज सिंह की पुरानी डायरी एक अधुरे लिखे पन्ने के साथ खुली हुई पड़ी थी... और उस पर लिखा था….

“जो रिश्ता गुनाह की परछाईं में जन्मा था, वही आज प्रेम की रोशनी में पवित्र हो गया।”

दूसरी ओर शादी के मंडप के दाई तरफ खड़े मुक्तेश्वर की बूढ़ी आंखे अपनी बहन को दुल्हन बना देख... खुश होने के बजाये सवालों के घेरे बुन रही थी।

क्या रेनू को बतौर दुल्हन अपनायेंगे विराज के पिता वीरेन्द्र प्रताप राठौर? कहीं विराज से शादी करना बन तो नहीं जायेगा रेनू की जिंदगी की सबसे बड़ी गलती?

मुक्तेश्वर के दिमाग में इस वक्त सिर्फ ये ही सवाल घूम रहे थे। तीन घंटे में शादी की सभी रस्में खत्म हो गई और फाइनली आया विदाई का समय... एक तरफ विदाई की शहनाई बज चुकी थी, तो दूसरी तरफ सबकी आंखे नम थी।

महल के आंगन में खड़ी पालकी के आगे, रेनू लाल चुनरी ओढ़े चुपचाप खड़ी थी। आंखों से बहते आंसुओं में विदाई का सुख-दुख कम और एक अनकहा डर ज़्यादा था — क्या सचमुच वो राठौर खानदान की बहू बन पाएगी?

ये ही सोचते-सोचते सबने रेनू को कार में बैठा दर्दभरी आंखों से विदा कर दिया। रेनू के जाने के बाद पीछे खड़े मुक्तेश्वर की आंखें नम थीं, लेकिन माथे पर चिंता की लकीरें और गहरी होती जा रही थीं।

दूसरी ओर आधे घंटे के सफर के बाद विराज अपनी नई नवेली दुल्हन रेनू को लेकर राठौर विला पहुंचा। कार रुक गई, लेकिन रेनू डर के मारे कार से नहीं उतर रही थी। उसका पूरा शरीर डर से कांप रहा था। तभी विराज ने रेनू का हाथ थाम लिया और उसे लेकर राठौर विला के दरवाजे के अंदर कदम रखने ही वाला था कि, तभी एक गहरी, सख्त आवाज़ हवा में तैर गई — “ये लड़की इस घर की बहू नहीं बन सकती।”

विराज ने मुड़कर देखा तो दरवाजे पर उसके पापा वीरेन्द्र प्रताप राठौर खड़े थे। उनके चेहरे पर गुस्से की नहीं, बल्कि घृणा की छाया थी।

“मैं ऐसे खून को अपने खानदान में नहीं आने दूँगा, जो हमारे नाम को कलंकित कर दे। गजराज सिंह की नाजायज औलाद? हरगिज नहीं! इससे पहले कि ये हमारे दरवाज़े पर कदम रखे, इसे बाहर निकाल दो।”

रेनू एकदम कांप गई। जैसे पूरे शरीर में अचानक किसी ने बिजली दौड़ा दी हो। उसके हाथ से चुनरी छूट गई और वो वहीं ज़मीन पर बैठ गई।

विराज ने गुस्से में पिता की ओर देखा और चिल्लाया — “पापा! इतना नीचे गिरेंगे आप? जिसे मैं अपना मान चुका हूँ, उसे आप ऐसे कैसे बेइज्जत कर सकते हैं?”

“बेटा, तूने जो किया वो जवानी का जोश है,” वीरेन्द्र इतनी शर्मिंदगी भरी बात करकर ही नहीं रूका, उसने आगे कहा — “लेकिन खानदान का नाम सिर्फ दिल से नहीं, खून से जुड़ता है।”

तमाशा देख राठौर विला के दरवाजे पर खड़ी भीड़ में एक खामोशी छा गई थी, लेकिन तभी...महल के भीतर से धीमे-धीमे चूड़ियों की खनकती आवाज़ आई।

ये आवाज थी पूजा राठौर, यानी विराज की मां की। लाल साड़ी में सजी-धजी, पूजा की थाली लेकर बाहर आईं। माथे पर सिंदूर, आंखों में भावनाओं का तूफान और होठों पर एक शांत मुस्का। उन्होंने बिना किसी को देखे सीधा रेनू के सामने जाकर थाली रखी और आरती उतारनी शुरू की।

वीरेन्द्र प्रताप अवाक खड़ा ये नजारा देख भौच्चका रह गया। पूजा की आंखों में अब आंसू छलक आए थे। उन्होंने रेनू की ठोड़ी थाम कर उसका चेहरा ऊपर उठाया और कहा — “ये मेरी बहू नहीं, मेरी रक्षक है। इसने मुझे बचाया था।”

पूजा राठौर की ये लाइन सुनते ही विराज और उसके पिता दोनों के कान सुन्न हो गए, और विला के दरवाजें पर भी सन्नाटा टूट गया और लोगों की फुसफुसाहट शुरु हो गई।

पूजा ने आंखें उठाकर सबकी तरफ देखा और बोलीं — “दो साल पहले जब मेरी कार खाई में गिरने वाली थी, तब किसी ने अपनी जान की परवाह किए बिना मुझे खींचकर बाहर निकाला था। मैं बेहोश थी, होश आया तो बस उसका चेहरा याद रहा — यही चेहरा।”

वो पल अब सबके सामने था। रेनू की आंखों से बहते आंसुओं में आश्चर्य मिला हुआ था। कहते है भगवान हर कर्म का फल देता है... इस वक्त रेनू के दिमाग में ये ही लाइन चल रही थी, जिसे सोचते हुए उसके चेहरे की मायुसी खुशी और सुकून में बदल गई।

“मैंने तब नाम नहीं पूछा था,” पूजा ने मुस्कुराते हुए कहा— “लेकिन अब पता चला... कि वो बच्ची, जिसने मुझे मौत के मुंह से निकाला, आज मेरी बहू बनकर मेरे दरवाज़े पर खड़ी है... और आप कहते हैं कि ये इस घर के काबिल नहीं?”

“नहीं, आज से रेनू सिर्फ मेरी बहू ही नहीं, इस राठौर खानदान की इज़्ज़त है।”

वीरेन्द्र प्रताप जैसे पत्थर बन चुका था, उसे खुद के कहे शब्दों पर शर्म आ रही थी। भीड़ में खड़े लोग बुदबुदाने लगे थी।

"तो ये वही लड़की है?"

“जिसने राठौर खानदान की रानी को बचाया? अरे-अरे फिर तो ये भगवान की बनाई राम-सीता की जोड़ी है। वैसे कितनी सुंदर है इनकी बहू, देखों तो जरा। चांद की रोशनी भी फीकी है इसकी चमक के आगे।...”

पूजा ने रेनू के हाथ में थाली पकड़ा दी और कहा — “चलो बहू, गृहप्रवेश करो।”

रेनू के कांपते हुए पांव अब धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर बढ़े, लेकिन तभी वीरेन्द्र प्रताप ने हाथ आगे बढ़ाकर दरवाज़ा थामा।

सभी की सांसें थम गईं और विराज और उसकी मां के चेहरे पर एक लंबा सन्नाटा पसर गया। फिर, वीरेन्द्र ने गहरी सांस ली... रेनू की आंखों में झांका और धीमे से कहा — “अगर तू मेरी पत्नी की रक्षक है... तो मैं भी तुझे दिल से अपनी बहू और बेटी दोनों मानता हूं। तेरे जैसे दिल वाले बहुत कम होते हैं।”

उन्होंने हाथ आगे बढ़ाया और कहा — “स्वागत है, बहू। इस घर में नहीं, इस दिल में।”

रेनू रोते हुए उनके चरणों में झुक गई।

पूजा ने गृहप्रवेश की रस्म शुरू कराई। थाली में रखा लाल रंग का पानी, चावल से भरी कलश, और घर की दहलीज पर पड़े हल्दी-और आलते के लाल रंग के निशान — जैसे हर कदम पर इस रिश्ते को अब आशीर्वाद मिल रहा था।

विराज ने वीडियो कॉल कर ये नजारा राजघराना में सबको दिखाया, जिसे देख राजराजेश्वर, वीर, और मुक्तेश्वर सबकी आंखें अब नम नहीं, मुस्कुराहट से भरी थीं। विराज ने चुपचाप रेनू का हाथ थाम लिया।

“अब कोई डर नहीं, कोई साज़िश नहीं। अब सिर्फ हम हैं — तुम और हमारा खूबसूरत परिवार।”

महल के ऊपर शंख बज उठा।

शादी तो पहले ही हो चुकी थी, लेकिन आज राठौर खानदान ने उसे असली स्वीकृति दी थी। दूसरी ओर राजघराना महल का नजारा एक नई कहानी की तरफ मुड़ रहा था, क्योंकि गजेन्द्र अपनी बुआ रेनू की विदाई के बाद से गायब था।

 

आखिर कहां गायब था गजेन्द्र? 

क्या महल में आने वाला था कोई नया तुफान या फिर महल के अंदर बैठा कोई शख्स खेलने वाला था कोई नया खेल? 

और गजेन्द्र के गायब होने के बाद क्या होगा रिया का?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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