अगली सुबह राजघराना महल मानों जैसे खुद में ही झूम रहा था। हर कोने से हंसने-खिलखिलाने की आवाज आ रही थी। महल के हर कोने में अजीब सी खुशी और खामोशी दोनों ही थी। क्योंकि कुछ चेहरों को वीर के आने का कारण पता चल चुका था।
वीर की वापसी के बाद महल आज एक नई ऊर्जा से जगमगा रहा था। हर कमरे में हँसी गूँज रही थी। दीवानखाना में होने वाली चाय पर मुस्कुराहट के साथ-साथ खूबसूरत कल की उम्मीद भी चहचहाती आवाजों में चहक रही थी।
एक तरफ वीर के फिर जाने के इरादें ने गजेन्द्र को बेचैन कर दिया था, तो वहीं दूसरी ओर प्रभा ताई का मन आज रह-रहकर बेचैन हो रहा था। उन्हें ऐसा लग रहा था कि आज राजघराना पर कोई नया तुफान दस्तक देने वाला है। ऐसे में उन्होंने पहले ही महल के हर दरवाजे-खिड़कियां सब बंद करवा दिये थे। साथ ही मेन दरवाजें पर गार्डस की संख्या भी बढ़ा दी थी, लेकिन फिर भी प्रभा ताई के मन में उठ रही बेचैनी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी।
... और उनकी ये बेचैनी गलत भी नहीं थी। आज सच में अतीत के पन्नों से एक ऐसा चेहरा राजघराना महल की दहलीज पर लौट रहा था, जिसने महल और महल में रहने वाले लोगों की जिंदगी में तबाही का मंजर फैलाया था।
ये नाम था राज राजेश्वर का...। हां ये वहीं राज राजेश्वर है, जिसकी मौत का दावा उसकी पत्नी ने खुद राजघराना महल में आकर किया था। तब उसने खुद बताया था, कि उसने अपनी आंखों के सामने राज राजेश्वर को आग में जलकर मरते देखा था। लेकिन सच उसकी सोच से बिल्कुल अलग था।
राजराजेश्वर, जिसे दो साल पहले ही राजघराना महल में सब लोगों ने मरा हुआ समझ लिया था, वो अब लौट आया था। एक नए चेहरे के साथ...। राजगढ़ की सड़कों पर उसके बढ़ते कदमों की आहट प्रभा ताई के सीने पर पहले ही दस्तक दे चुकी थी। एक तरफ प्रभा ताई के अंदर उठती बेचैनी हर सेकेंड बढ़ रही थी, तो वहीं दूसरी ओर राज राजेश्वर के बढ़ते कदमों की आहट के साथ उसकी आंखों में जल रही आग की चमक भी बढ़ती जा रही थी।
रास्ते पर चलते हुए वो एक ही बात दोहरा रहा था “मैं लौट रहा हूं...। मैं लौट रहा हूं।”
दरअसल उस हादसे के बाद राज राजेश्वर गायब हो गया था। वहीं उसकी पत्नी ने एक अधजले आदमी की लाश को राज राजेश्वर समझ कर उसके शरीर को दफन कर अंतिम संस्कार की सारी क्रिया कर दी थी।
दूसरी ओर राज राजेश्वर उस रात बुरी हालत में जला हुआ एक आदमी को सड़क पर मिला, जो उसे अपने साथ ले गया। पिछले दो सालों से वहीं आदमी राज राजेश्वर की देखभाल कर रहा था।
एक दिन, जब राजराजेश्वर उसके घर के पास बनी एक नदी किनारे चुपचाप बैठे एकटक पानी देखें जा रहा था, तब एक छोटा लड़का भागता हुआ उसके पास दौड़ता हुआ आया और बोला- “अंकल, आप कौन हैं? गाँव में सब लोग आपको शहरवासी कहकर क्यों बुलाते है? क्या आपका कोई अच्छा सा नाम नहीं है?”
राजराजेश्वर ने कई पल तक चुप्पी साधे रखी और कुछ नहीं बोला, फिर धीरे-धीरे उसने बड़बड़ाते हुए बोलना शुरु किया और कहा— “मैं पहले राजा था… लेकिन एक राजघराने की कहानी ने मुझे मेरे अंदर जीना ही भुला दिया। वहां मेरे कुछ अपनो ने ऐसा किया, जिसके बाद मैं इंसान बनना ही भूल गया था। मैंने लोगों के साथ बहुत बुरा किया है, जिसकी सजा की वजह से मैं आज ऐसी जिंदगी काट रहा हूं। अपनों से दूर...।”
उस लड़के की आंखों में सवाल थे, लेकिन आवाज़ जैसे होठों पर आकर अटक गई थी। राजराजेश्वर आगे बढ़ते हुए वहीं रूके, और चादर धीरे से फेंकी— “मैं राजा था…हूं, नहीं तो जो पूछना है पूछ सकते हों। दो साल पहले ही मैं अपने अतीत से भाग आया हूं। मगर अब मुझे लगता है— कहीं से फिर इंसान बनने की ख्वाहिश उठ रही है। फिर अपनों के बीच लौटने का दिल कर रहा है।”
दरअसल राज राजेश्वर अब पूरी तरह से ठीक हो गया। ठीक होने के बाद ही उसने उस आदमी को अपनी पूरी पहचान और सच्चाई बताई। इसके साथ ही राज राजेश्वर ने उससे राजगढ़ वापस लौटने की बात भी कहीं, जिसे वो मान गया।
इसके बाद राज राजेश्वर अपना सामान लेकर यूपी के उस छोटे से गांव से अपने राजघराना महल, राजगढ़ लौट आया।
राज राजेश्वर आज जैसे ही महल के दरवाजे पर पहुंचा, हंगामा मच गया। उसके लौटने से महल में धमाकेदार हलचल हुई, सब चौक गए। प्रभा ताई ने ही खुद भागकर दरवाजा खोला और बोलीं— मेरा दिल कह रहा था, आज राजघराना में कोई नया तुफान आने वाला है और देखों तुम लौट आये।
ये सुन राज राजेश्वर कहता है— मैं भटक गया था ताई, अब अपने परिवार में लौटना चाहता हूं। बस अपनों के बीच… मेरी पिछली गलतियों... मेरे गुनाहों की मैं माफी मांगता हूं, ताई।”
वीर और गजेन्द्र मिलकर महल की सूखी कड़वाहट को रंगों में बदल रहे थे। इस बीत आज अचानक से राज राजेश्वर का लौट आना... हर किसी के दिल में डर की दस्तक दे रहा था। किसी अपने के मर जाने के बाद आज जिंदा लौट आने की खुशी, एक चेहरे पर भी नहीं थी। यहां तक मुक्तेश्वर की खुद की जुड़वा बेटियों सुधा और मधु के चेहरे पर भी नहीं।
राज राजेश्वर को सामने खड़ा देख... हर किसी का चेहरा डर से जम गया था। मुकतेश्वर, जो अब अपने दोनों बेटों के लौट आने से खुश था, उसे भी डर था कि कहीं राज राजेश्वर फिर उसके बेटों के साथ कुछ बुरा ना करें।
लेकिन तभी राज राजेश्वर ने कुछ ऐसा किया कि ना चाहकर भी सब उसके अतीत के पापों को भूल उसे माफ करने पर मजबूर हो गए।
“एक बड़ा भाई पिता समान होता है मुक्तेश्वर भैया... मैंने अतीत में जो किया क्या सब भूलकर आप मुझे दुबारा अपना नहीं सकते। मैंने मौत को आंखों के सामने देखा तो समझ आया कि दौलत नहीं जीवन के अंत में रिश्तों का साथ और प्यार काम आता है।”
ये सब सुन मुक्तेश्वर ने राज राजेश्वर को माफ कर दिया। प्रभा ताई ने भी राज राजेश्वर को अपना लिया। सबके मन में हालांकि अभी भी शक भरे कई सवाल घूम रहे थे। एक हफ्ता बीत गया, धीरे-धीरे सबने राज राजेश्वर को अपना लिया।
दूसरी तरफ रेनू और विराज की प्रेम कहानी का शादी के मंजर तक पहुंचना अभी भी बाकी था। दरअसल जिस दिन विराज ने मुक्तेश्वर से उसकी बहन रेनू का हाथ मांगने का प्लान बनाया था, उसी दिन राज राजेश्वर मौत के दो साल बाद अचानक जिंदा लौट आया। तो विराज चाहकर भी मुक्तेश्वर से ये बात नहीं कर पाया।
राजघराना में बीते एक हफ्ते में बहुत कुछ बदल चुका था। एक ओर राज राजेश्वर की वापसी ने पुराने घावों को कुरेदा, तो दूसरी ओर उसी वापसी ने सबको अपने रिश्तों के मायने फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया।
लेकिन इन सबके बीच अगर किसी का दिल सबसे ज्यादा इंतजार में था, तो वो था विराज का।
उसने रेनू से अपने दिल की बात तो कब की कह दी थी, लेकिन उसे अभी तक शादी की मंज़ूरी दिलवाना बाकी था। खामोशी विराज के अंदर उबाल बनकर फूट रही थी।
उस सुबह जब सारा महल चाय की चुस्कियों में डूबा था, विराज अकेले ही बगीचे में बैठा था। रेनू वहीं पास खड़ी थी, लेकिन दोनों की नज़रें ज़मीन पर टिकी थीं— जैसे शब्दों को चुप्पी में तलाश कर रहे हों।
विराज ने आखिरकार हिम्मत की और बोला— “रेनू… मुझे लगता है अब समय आ गया है। मैं आज ही बात करूंगा।”
रेनू की पलकें उठीं, उसने सिर्फ एक शब्द कहा— “पक्का?”
विराज ने उसकी आंखों में झांकते हुए जवाब दिया— “इससे ज़्यादा पक्का शायद मैं कभी नहीं रहा।”
इतना कह विराज मुक्तेश्वर से बात करने उसके कमरे में गया, जहां उसे गजेन्द्र की बीवी रिया मिली और उसने बताया “पापा लाइब्रेरी रूम में है, उनसे मिलना है तो वहीं चले जाओं।”
मुक्तेश्वर इस समय लाइब्रेरी रूम में था और अपने पिता गजराज सिंह की लिखी डायरी पढ़ रहा था, जिसमें राजघराने के अतीत के कई गहरे जख्म लिखे थे। दूसरी ओर विराज बिना रुके सीधा लाइब्रेरी के अंदर आ गया और मुक्तेश्वर के सामने जाकर खड़ा हो गया।
मुक्तेश्वर ने नज़र उठाई— “अरे विराज, आओ... बैठो। कुछ खास बात है क्या?”
विराज की आवाज़ में गूंज थी, लेकिन आंखों में घबराहट भी— “जी हां, एक बात है... और शायद ज़िंदगी की सबसे बड़ी बात है, पर समझ नहीं आ रहा कहां से शुरुआत करूं।”
मुक्तेश्वर ने डायरी बंद कर दी और उसकी ओर ध्यान से देखने लगा— “जो कहना है साफ-साफ कहों, बात को घुमातों मत।”
ये सुनते ही विराज ने आंख बंद की और झट से बिना सांस लिए बोला— “मैं रेनू से शादी करना चाहता हूँ।”
कमरा जैसे एक पल के लिए सुन्न हो गया। घड़ी की सुइयों की आवाज़ और बाहर गूँजती कोयल की कुहूक— दोनों ही इस ख़ामोशी को और भारी बना रही थीं।
मुक्तेश्वर ने बहुत देर तक कुछ नहीं कहा। फिर खड़ा हुआ और पूछा “तुम समझते हो, इस रिश्ते का नतीजा क्या होगा? तुम शहर के सबसे रईस परिवार से हो, और रेनू की सच्चाई….अगर तुम्हारे मां-पिता ने उसे नहीं अपनाया तो मेरी बहन का भविष्य तो नर्क में झुलस जायेगा। और तुम जानते हो कि हम किस पारिवारिक तूफान से गुज़र चुके हैं। अब कुछ नया नहीं झेल सकते हम, विराज।”
विराज ने बिना हिचके कहा— “मैं जानता हूँ कि आपकी बहन सिर्फ आपकी जिम्मेदारी नहीं, इस पूरे राजघराने की मर्यादा है। लेकिन मैं आपको वादा करता हूँ…. मेरा इरादा, मेरी नीयत और मेरा प्रेम— तीनों पर कभी शक करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।”
राजराजेश्वर भी तभी वहां आ पहुंचा। लाइब्रेरी का दरवाज़ा खुला और राजराजेश्वर अंदर आया। विराज एक पल को चौंका, उसे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि राज राजेश्वर इस बातचीत का हिस्सा हो सकता है।
राजराजेश्वर ने मुस्कुराते हुए कहा— “मुक्तेश्वर भैया... क्या ये वही विराज है, जिसने गजेन्द्र को बचाया, राघव भोसले को सजा दिलाई और अपनी जान पर खेल कर रेनू को उन कुलधरा के जंगलों से जिंदा वापस लेकर आया था?”
विराज थोड़ा असहज हो गया और तभी मुक्तेश्वर ने कहा— हां ये वहीं है, विराज मेरे लिए मेरे बेटों वीर और गजेन्द्र के जैसा ही है, लेकिन रेनू का अतीत मुझे उसकी खुशियों के आड़े आता दिख रहा है।
मुक्तेश्वर कुछ और आगे कहने ही वाला था कि राजराजेश्वर आगे आया और बोला— “मैंनें अपने अतीत में विराज को कई बार गलत समझा था। लेकिन जिस तरह उसने वीर और गजेन्द्र के साथ मिलकर राजघराने को दोबारा एक सूत्र में पिरोया... वो कोई मामूली काम नहीं। विराज एक अच्छा इंसान है, वो रेनू के अतीत को मुद्दा कभी नहीं बनने देगा।”
उन्होंने विराज की ओर देखा और कहा— “मैं इस रिश्ते के हक़ में हूँ।”
विराज की आंखों में एक हल्की सी नमी आ गई। उसने सिर झुकाया और कहा— “धन्यवाद, राजराजेश्वर जी। मैं रेनू का बहुत ख्याल रखूंगा... मेरा आप दोनों से वादा है।”
शाम की चाय के समय मुक्तेश्वर ने सबके सामने रेनू और विराज की शादी का ऐलान और सहमति दोनों को जाहिर किया, जिसके बाद सभी झूम उठें। फिर क्या सबने शादी की तैयारियों से लेकर कपड़ों तक के बारे में प्लानिंग करना शुरु कर दिया।
वहीं रेनू को जैसे ही ये बात पता चली, उसकी आंखों में खुशी की नमी तैर गई। प्रभा ताई ने जब उसे गले लगाया, तो उन्होंने कान में धीरे से कहा— “कभी-कभी जो प्रेम हम अपने हिस्से में नहीं पा सके, उसे दूसरों से पाकर ही संतोष मिलता है।”
सुधा और मधु ने रेनू की चुटकी लेते हुए कहा— “अब तो संगीत की प्लानिंग शुरू कर दो, बुआ जी!”
उस रात महल का माहौल बहुत खुशनुमा था, हर कोई नांच-गा रहा था और शादी को लेकर बात कर रहा था। दीवानखाने में विराज और रेनू के रिश्ते की घोषणा पहले ही का जा चुकी थी। लेकिन ठीक उसी वक़्त, महल की छत पर खड़ा एक पहरेदार घबरा कर नीचे भागा।
वो सीधा वीर के पास पहुंचा और हाँफते हुए बोला— “सर... महल के पीछे की दीवार के पास कोई खड़ा था... हमने रोकने की कोशिश की... लेकिन वो भाग गया।”
वीर ने तुरंत गार्ड्स को उसे ढूंढने का ऑर्डर दिया। गजेन्द्र ने CCTV की फीड चेक करवाई। स्क्रीन पर एक धुंधला सा चेहरा दिखाई दे रहा था। चेहरा छुपा हुआ था... लेकिन उसकी चाल, उसकी निगाह... और उसकी छाया— कुछ जानी पहचानी सी लगी।
राजराजेश्वर भी गजेन्द्र के पीछे वहीं सीसीटीवी कैमरे वाले कमरे में खड़ा था। उसने स्क्रीन की ओर देखा और उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
वो खुद से ही बुदबुदाया— “ये... ये तो हो ही नहीं सकता…”
प्रभा ताई तुरंत उनकी ओर मुड़ीं और बोलीं— “कौन था वो, राजराजेश्वर?”
राजराजेश्वर कुछ कहने ही वाला था, लेकिन तभी एक धमाके की आवाज़ हुई। महल के पश्चिमी गेट पर बम जैसी कोई हल्की गूंज... सभी की आंखें फैल गईं। वीर तुरंत उस ओर दौड़ा। विराज ने रेनू को पीछे खींचा और तभी महल के आहते में एक पेड़ की छांव से किसी ने एक कागज़ फेंका, उस पर सिर्फ एक वाक्य लिखा था।
"राज राजेश्वर, तेरा सच अभी पूरा नहीं खोला गया है। ये शादी रुकनी चाहिए! अगर ये नहीं रूकी तो तेरा सच बाहर आना तय है।"
आखिर कौन था ये शख्स, जो तोड़ना चाहता है विराज और रेनू की शादी?
अब कौन सा सच बाहर आना बाकी है राज राजेश्वर का?
क्या मौत से वापसी के बाद भी नहीं सुधरा है राज राजेश्वर?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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