दोनों बहनों की विदाई के बाद घर सूना-सूना लग रहा था। संस्कृति के मन में एक नई शुरुआत करने का उत्साह भर गया था। उसने अपने नए दिन की शुरुआत इस तरह की, जैसे कोई उत्सव की तैयारी करता हो। यह उत्साह न तो बहनों की शादी के समय महसूस हो पाया था और न ही किसी दूसरे त्योहार में।

उसकी तबियत पूरी तरह से ठीक भी नहीं हुई थी, लेकिन चेहरे पर एक चमक दिखाई दे रही थी। कई रातों तक ठीक से न सो पाने के कारण उसकी आँखें काली पड़ गई थीं।

सुबह-सुबह उठकर उसने पानी भर लिया था और घर के कामों में लग गई थी। दशरथ अपनी बेटी के नए बदलाव को देखकर ख़ुश हो रहा था। दोनों छोटी बेटियों के जाने के बाद उसे यह चिंता थी कि संस्कृति फिर से अकेली पड़ जाएगी। संस्कृति की आँखों में चमक देखकर दशरथ ख़ुश था।

 

दशरथ (मन ही मन) - बहुत सी परेशानियों से मैंने अपनी बेटी को टूटते देखा है। आज उसके चेहरे पर जो विश्वास और उम्मीद की नई किरण है। काश! यह हमेशा बनी रहे, मेरी संस्कृति फिर कभी न बिखरे।

 

दशरथ ने संस्कृति को हल्की मुस्कान के साथ देखा, मानों अपने भीतर के डर को छुपाने की कोशिश कर रहा हो।

 

संस्कृति (अपने आप से) - मैं ख़ुद को ऐसे ख़त्म नहीं होने दूंगी, मैंने जो भी सपना देखा है उसे पूरा करुँगी। मुझे अपने लिए, पापा के लिए, इस घर के लिए कुछ करना है।

उसने बर्तन धोते हुए एक गहरी साँस ली और मुस्कुराते हुए अपने पिता को देखा।

दशरथ (संभालते हुए) - संस्कृति, आज कुछ है क्या? तुम कहीं जाने वाली हो?

संस्कृति (ख़ुशी से) - अरे! हाँ, पापा! मैं आपको बताने ही वाली थी। कल मैंने अख़बार में एक जॉब की वैकेंसी देखी थी, अपने रेलवे स्टेशन के पास ही है। उस तरफ़ ऑटो सीधे जाता है। आज दोपहर में ही जॉब इंटरव्यू के लिए जाना है।

दशरथ (ख़ुश होते हुए) - ये तो अच्छी ख़बर सुनाई तुमने, वैसे किस तरह का काम है?

संस्कृति (उत्साहित होकर) - पापा, उन्होंने लिखा था कि 12वीं पास कोई भी सक्षम उम्मीदवार हो, तो उसे मौका दिया जाएगा। वहाँ जाकर देखती हूँ, क्या होता है? अगर यह नौकरी नहीं भी मिली तो क्या! कोई और नौकरी देखेंगे। मुझे यक़ीन है कि मैं कहीं न कहीं नौकरी ले ही लूंगी।

 

दशरथ (संतोष के साथ) - मैं भी यही चाहता हूँ। तुमने जो ठाना है, उसे पूरा करो और ख़ुश रहो, मुझे भरोसा है कि तुम बहुत अच्छा करोगी।

 

दशरथ ने मन ही मन बहुत सारे आशीर्वाद दिए, प्रार्थनाएं की और ख़ुशी-ख़ुशी काम के लिए कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन की ओर चल दिया। संस्कृति ने जल्दी-जल्दी घर के बाकी काम निपटा लिए और जॉब इंटरव्यू के लिए ख़ुद को तैयार करने लगी। उसने अपना वही नया नीला सूट निकाला, जिसे उसके पिता ने बहनों की शादी के समय दिलाया था। वही सूट जिसे पहनकर उसने कुछ रोज़ पहले आत्महत्या करने की कोशिश की थी। आज इसी सूट में वह जिंदगी को नए ढंग से जीने के लिए तैयार हो रही थी। उसने तैयार होते समय कईं दिनों बाद अपने चेहरे को ध्यान से देखा।

 

संस्कृति (हैरान होते हुए) - पता ही नहीं चला कि आँखें के नीचे ये काले घेरे कब आ गए। ऐसा लगता है जैसे किसी ने काजल लगा दिया हो।

 

उसके पास ख़ुद को सँवारने के लिए कोई लाली पाउडर या लिपस्टिक नहीं थी। शादी के समय कुछ रिश्तेदारों ने सस्ते क्रीम-पाउडर और मेकअप किट गिफ्ट किए थे। दिव्या उन्हीं में से एक किट छोड़ गई थी। उसी किट से संस्कृति ने एक क्रीम निकाली और आँखों के ठीक नीचे बने काले घेरे कम करने की कोशिश करने लगी।

 

संस्कृति (परेशान होते हुए) - ये सब भी फर्जी मेकअप है, कुछ असर ही नहीं हो रहा। कम से कम ये काले घेरे तो कम हो जाते।

 

वह कुछ देर तक क्रीम और पाउडर से अपनी काली आँखों को छुपाने की कोशिश करती रही..

संस्कृति (मन ही मन) - कोई बात नहीं जो जैसा है वैसा ही ठीक है। ज़्यादा से ज़्यादा कोई इसके बारे में पूछेगा तो सब सच-सच बता दूंगी।

संस्कृति ने अगले ही पल अपने टेंथ और ट्वेल्थ के मार्कशीट्स पास रख लिए और साथ-साथ एक बायोडेटा भी। ग्रेजुएशन पूरा हुआ नहीं था इसलिए रिज्यूम में अपडेट करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। उसने बाकी सर्टिफिकेट को एक पॉलीथिन में रख लिए।

घर से निकलने से पहले उसने अपनी माँ की तस्वीर को प्रणाम किया और एक आत्मविश्वास के साथ घर से बाहर निकल गई। मोहल्ले से बाहर निकलते ही उसने सड़क पर एक ऑटो लिया। रास्ते में उसके मन में उत्साह तो था लेकिन साथ ही एक डर भी था। वह चाहती थी कि पहले ही इंटरव्यू में उसे यह नौकरी मिल जाए। कहीं न कहीं नौकरी न मिलने की बात को सहने के लिए उसने ख़ुद को तैयार कर लिया था। जिसने अपने घर की बुरी से बुरी हालत देखी हो, जिसने आत्महत्या करने की कोशिश की हो जिसने अपने पिता को टूटते हुए देखा हो, जिसने खाने के लिए इंतज़ार किया हो, भूख को सहा हो उसके लिए दूसरे नौकरी का इंतज़ार करना ज़्यादा मुश्किल काम नहीं था।

 

संस्कृति ने अपनी बहनों के दिए गए पैसे में से ऑटो वाले को भाड़ा दिया। जैसे ही वह वैकेंसी वाली जगह पर पहुँची उसने देखा कि उससे पहले ही लगभग 10-15 लोग पहुँचे हुए हैं। उन्हें देखकर थोड़ी-सी घबराहट तो हुई लेकिन उसने मन ही मन अपने आप को उत्साहित बनाए रखा।

जिस जिस जगह लोग खड़े थे उससे थोड़ी दूर पर एक कमरा था। अभी इंटरव्यू शुरू नहीं हुआ था। संस्कृति अपने इंटरव्यू की बारी आने के बारे में पूछ कर एक जगह बैठ गई। उसके आसपास बैठे लोगों ने मुस्कुरा कर उसके बारे में पूछना चाहा। अगले ही पल वह सभी अपने ख़ुद के इंटरव्यू को लेकर परेशान से दिखाई पड़ने लगे।

संस्कृति अपनी जगह बैठी ही थी उसने देखा, उसके सामने एक खेल का मैदान है, जिसमें कुछ बच्चे खेल रहे हैं। खेलते-खेलते एक छोटा बच्चा गिर पड़ा, संस्कृति उस बच्चे को गिरते देखा वह अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और उस बच्चे की तरफ़ भागी।

 

संस्कृति (हड़बड़ाते हुए) - तुम्हें कहीं चोट तो नहीं लगी। बेटा तुम ठीक हो ना।

 

यह कहते हुए संस्कृति ने उस बच्चे को उठाया। उसने ध्यान से देखा उस बच्चे के घुटने से खून निकल रहा था। संस्कृति को आता देख साथ खेल रहे बच्चे थोड़ा-सा डर गयें। जिस बच्चे ने उसे धक्का दिया था वह कहने लगा- मैंने कुछ नहीं किया, मैंने कुछ नहीं किया।

 

संस्कृति ने उस बच्चे को भी प्यार से चुप कराया। जिस बच्चे के घुटने से खून निकल रहा था उसने रोना शुरू कर दिया था।

 

संस्कृति (परेशान होते हुए) - तुम्हें तो चोट लग गई है। चलो जल्दी से इसकी पट्टी कर देते हैं।

 

संस्कृति को कुछ समझ में नहीं आया कि वह उस बच्चे की मरहम पट्टी करने के लिए किससे मदद माँगे। उसने बच्चे को गोद में उठाया और उसे लेकर ऑफिस की तरफ़ गई। कुछ और लोगों ने भी उस बच्चे को गिरते देखा था लेकिन कोई और अपनी जगह से उठकर नहीं गया था। सभी ने संस्कृति को बच्चे की तरफ़ दौड़ते देख निश्चिंत होकर अपने- अपने सर्टिफिकेट को निहारने लगे थे।

 

जैसे-ही संस्कृति बच्चे को लेकर उस ऑफिस के पास पहुँची तब तक वहाँ काम करने वाला एक स्टाफ़  उसके पास आया और उसे अपने साथ आने को कहा। संस्कृति उस बच्चे को लेकर उसके पीछे-पीछे चलते हुए दूसरे कमरे पहुँची, जहाँ ज़्यादातर इलाज़ के किट रखे थे। उस स्टाफ़ ने डिटॉल और पट्टियां निकालकर उस बच्चे की पट्टी शुरु कर दी।  

 

वह बच्चा बहुत रो रहा था और संस्कृति उसे चुप करा रही थी, जब तक बच्चे की पट्टी पूरी हुई वह बच्चा संस्कृति की गोद में ही सो चूका था।

 

पट्टी करने वाले स्टाफ़ ने संस्कृति से उसके बारे में पूछा, तब उसे ध्यान आया कि वह इंटरव्यू के लिए आई थी।

संस्कृति (हड़बड़ाते हुए) - मुझे माफ़ कीजिए, मैं तो भूल ही गई थी, मैं यहाँ जॉब इंटरव्यू के लिए आई हूँ। आप इस बच्चे को अपने पास रख सकते हैं क्या, मुझे अभी जाना होगा।

अगले ही पल उसने स्टाफ़ को बच्चा सौंपा और तेज़ी से वहाँ से अपनी डाक्यूमेंट्स की तरफ़ भागी।  

वह जब तक लौट कर आई, सिर्फ़ चार लोग ही इंटरव्यू के लिए बाक़ी थे। उस बच्चे को मरहम पट्टी करने में संस्कृति का कितना वक़्त गुज़र गया था, यह उसे भी मालूम नहीं चला।

संस्कृति का इंटरव्यू खत्म हो गया। जितने भी लोग इंटरव्यू के लिए आए थे, उन्हें 2 घंटे रुकने के लिए कहा गया। इंटरव्यू देने के बाद संस्कृति फिर से उस स्टाफ़ को ढूंढने लगी जिसे उसने उस बच्चे को थमाया था। वह उसे कहीं दिखाई नहीं पड़ा। रिजल्ट निकलने के कुछ देर पहले ही संस्कृति को जैसे ही वह स्टाफ़  दिखा, वह तुरंत उसके पास जाकर बच्चे के बारे में पूछने लगी। स्टाफ़ ने संस्कृति से मुस्कुराते हुए कहा कि वह बच्चा अब बिल्कुल ठीक है और सो रहा है। यह सुनकर उसे थोड़ी शांति मिली। अब उसका पूरा ध्यान इंटरव्यू के रिजल्ट पर था। इंटरव्यू के रिजल्ट का इंतज़ार सभी को था, लेकिन सब में संस्कृति ख़ुश नज़र आ रही थी। यह देखकर बाकी लोग परेशान हो रहे थे कि आख़िर क्या बात है जो संस्कृति को इंटरव्यू के रिजल्ट के लिए ज़रा भी घबराहट नहीं है?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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