फिर, पहली बार, दीवान-ए-ख़ास में एक और आवाज़ गूँजी—एक टूटी हुई चीख।
“नोह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह”
ध्रुवी ने अपनी दोनों हथेलियों से सिर थाम लिया और ज़मीन पर गिर पड़ी। वह ज़मीन पर बैठ गई—बिल्कुल वैसे जैसे कोई काँच का टुकड़ा फर्श पर गिरता है। उसका चेहरा ढँका नहीं था, पर उसमें अब कोई रौशनी नहीं थी। आर्यन की आँखों से अब आँसू टपकने लगे। उसने बेबसी से अर्जुन की ओर देखा। अर्जुन झुककर पास आया, लेकिन ध्रुवी ने उसका हाथ झटक दिया।
“मत छूना मुझे!” वह चीखी, “मैं शतरंज की रानी नहीं हूँ, जिसे तुम जैसे राजा सिर्फ अपनी चालों में चलना जानते हो!”
कमरा गूँज उठा—और इस बार मोमबत्तियाँ बुझने लगीं। एक-एक कर।
“मुझे मत छुओ,” उसने सिसकते हुए कहा, “मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा ये झूठा स्नेह।”
अर्जुन ने सिर झुकाया। फिर बहुत ही धीमी आवाज़ में कहा, “झूठा नहीं है... ये जो अब है, वो सब सच है। मैंने जो किया, वो साज़िश थी, लेकिन जो अब तुम्हारे लिए महसूस करता हूँ... वो शायद मेरी सबसे बड़ी सज़ा है।”
“मैंने पिछली बातों के लिए तुम्हें माफ़ कर दिया था, शायद,” वह बोली, “लेकिन अब… जो मैंने खोया है, वो सिर्फ एक रिश्ता नहीं, वो मेरी आखिरी उम्मीद थी, जिस तमन्ना इतनी बेदर्दी से तोड़ डाला… शायद ही अब मैं फिर से किसी पर यकीन कर सकूँगी।”
कोई जवाब नहीं आया। अर्जुन अब भी खड़ा था, जैसे एक सज्जन आत्मा जिसे सज़ा चाहिए।
"तुमने मुझे इस्तेमाल किया," ध्रुवी के होंठ कांप उठे। “तुमने मेरे दिल से खेला, मेरी भावनाओं से... तुम्हें ज़रा भी अफ़सोस नहीं हुआ?”
अर्जुन ने उसकी आँखों में देखा। “हर पल अफ़सोस होता है। और शायद इसलिए आज मैं ये सच तुम्हें बता भी रहा हूँ। तुम मुझे जितना चाहे उतना कोस सकती हो... लेकिन अब तुम्हारे सामने एक सच है—भले ही वो मुझे गिरा दे, मगर कम से कम तुम्हें धोखे में नहीं रखेगा।”
ध्रुवी फूट-फूट कर रो पड़ी। अर्जुन आगे कुछ नहीं बोला। बस धीरे से उसके पास बैठ गया।
"तुम दोनों अब इससे ज़्यादा मेरे साथ कुछ बुरा नहीं कर सकते।” ध्रुवी की आवाज़ अब ठंडी थी। “क्योंकि शायद अब मैं ही नहीं बची हूँ।”
अर्जुन ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी साँसें भीग गई थीं।
ध्रुवी (टूटे हुए लहज़े के साथ): तुमने मुझे मुझसे ही छीन लिया… “तुम दोनों ने आज मेरा… मेरे जज़्बातों का कत्ल कर दिया… मार दिया ध्रुवी को तुमने… मार दिया।”
अर्जुन ने आगे बढ़कर कुछ कहना चाहा।
“रुको…” ध्रुवी ने उसे हाथ से रोक दिया। “अब कुछ मत बोलो। और मत बनो वो ईमानदार इंसान जिसकी आड़ लेकर तुमने मेरी पूरी ज़िंदगी एक नाटक बना दी।”
अर्जुन अब धीरे-धीरे पास आया।
“हमने जो किया, सिर्फ इसलिए किया ताकि…
“ताकि मैं तुम्हारे कहे हुए रास्ते पर चलूँ?” ध्रुवी ने उसकी बात काट दी, “ताकि तुम मेरे टूटने को देखो और अपनी जीत समझो?”
अब अर्जुन की आँखों में पछतावे और बेबसी से आँसू उमड़ आए थे। उसने खुद को संभाला और फिर अपनी चुप्पी तोड़ी।
“नहीं ताकि हम अपनी अनाया से किए वचन को निभा सकें… हम चाहते थे कि आप यहां रहें… इस महल में, अनाया की जगह।”
ध्रुवी ने उसकी ओर देखा—बिल्कुल खाली आँखों से।
“तुम्हें क्या लगता है अर्जुन… कि ये कबूलनामा तुम्हें तुम्हारे जुर्म से बरी कर देगा?” उसने धीमे स्वर में कहा। “या ये कि अब मैं टूटकर तुम्हारी बाहों में गिर पड़ूँगी?”
एक पल को अर्जुन चुप रहा।
“तुमने जो किया… वो किसी को भी तोड़ सकता था,” वह बोली, “लेकिन मैं टूटकर भी तुम्हारे जाल में नहीं गिरूँगी… हरगिज़ नहीं।”
ध्रुवी ने धीरे से सिर उठाया, उनकी ओर देखा—और सिर्फ एक शब्द कहा…।
“खेल खत्म नहीं हुआ है।”
और फिर वह उठी—टूटी, मगर शांत। जैसे कोई तूफान अब भीतर समा गया हो। वह मुड़ी और चल पड़ी—तेज़ क़दमों से, वह बाहर की ओर बढ़ी। मगर आँखों से गिरते आँसुओं के साथ। कि अचानक आर्यन के बराबर में जाकर रुकी… उसने बिना उसकी ओर देखे अपनी चुप्पी तोड़ी।
ध्रुवी (टूटे हुए लहज़े के साथ): दुआ करूंगी जो दर्द तुमने मुझे दिया है वो दर्द तुम्हारे हिस्से भी आए… (आँसुओं से डबडबाती आँखों के साथ)… और साथ ही ये भी की अब ज़िंदगी के किसी भी मोड़ पर मैं तुम्हारी शक्ल भी दुबारा कभी ना देखूँ…।
उसने धीरे-धीरे कमरा छोड़ा—उसकी पीठ सीधी थी, आँसू बहे नहीं—लेकिन उसकी आँखों में तूफान मचल रहा था… पीछे रह गए दो आदमी—एक जो साज़िश का मास्टरमाइंड था, और दूसरा जो मोहरा बनते-बनते अपना आपा भी खो चुका था।
“अब वो सब जानती है,” अर्जुन ने पछतावे और राहत के मिले-जुले भाव के साथ धीमे लहज़े से कहा।
आर्यन ने गिल्ट भरे भाव से कहा, “लेकिन उसने हमें माफ़ नहीं किया।”
“उसे माफ़ करना भी नहीं चाहिए,” अर्जुन फुसफुसाया…।
ध्रुवी कमरे से जा चुकी थी… पीछे बस दो चेहरे थे—जो अब विजेता नहीं, सिर्फ पछताते हुए गुनहगार थे। अर्जुन ने एक गहरी साँस ली। उसकी आँखें दरवाज़े पर टिक गईं, जहाँ से ध्रुवी गई थी।
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कमरे की खिड़कियाँ बंद थीं। परदे गहरे रंग के थे और दीवारें… सर्द। हवाओं की आवाज़ भी अब अंदर नहीं आती थी। सब कुछ थम गया था जैसे। ध्रुवी पलंग के किनारे बैठी थी, उसकी साँसें अनियमित थीं। आँखें फटी हुईं, लेकिन उनमें कोई चेतना नहीं थी। उसके हाथ अब भी काँप रहे थे—जैसे सच की चुभन अब भी नसों में सुइयाँ चुभो रही हो।
आर्यन… उसका आर्यन…
या शायद सिर्फ अर्जुन का मोहरा?
"मैंने तुम पर यकीन किया… तुम पर नहीं, आर्यन।" उसने खुद से कहा, फिर फौरन अपनी आवाज़ से घबरा गई। कमरे की दीवारों ने जैसे वो शब्द वापस उसी की तरफ उछाल दिए।
वह उठ खड़ी हुई, और आईने के सामने जा खड़ी हुई।
"कौन हूँ मैं?
“ध्रुवी?”
“या सिर्फ किसी की परछाईं?”
"एक मोहरा—जिसे चलाया गया, ठगा गया, इस्तेमाल किया गया…?
ध्रुवी का चेहरा सफेद पड़ चुका था। उसकी आँखों में आँसू थे, पर वो रो भी नहीं पा रही थी। जैसे किसी ने उसके भीतर की हवा खींच ली हो। आर्यन की हर बात, हर स्पर्श, हर मुस्कान… सब एक छलावा था… आईने में उसका चेहरा अब भी राजकुमारी अनाया जैसा ही था, पर आत्मा? वो चुप थी। वो टूटी हुई थी।
"मैं एक मोहरा थी… बस एक मोहरा," वह बुदबुदाई।
अचानक खटाक की आवाज़ आई। दरवाज़ा खुला।
अर्जुन अंदर आया। उसके हाथ में एक ट्रे थी—जिसमें गर्म दूध का प्याला और एक शॉल रखा था।
"ध्रुवी…" उसकी आवाज़ नर्म थी। इतनी कि जैसे शब्द भी कांप रहे हों।
ध्रुवी ने बिना देखे कहा, “यहाँ से चले जाओ।”
अर्जुन चुप रहा। ट्रे को मेज़ पर रखकर वह धीरे-धीरे उसके पास आया। शॉल उसके काँपते कंधों पर डालते हुए कहा,
“ठंड है, और आप बहुत थकी हुई लग रही हो…”
"तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है?" “या शायद… यही तो चाहिए था तुम्हें, मुझे इस हाल में देखना।”
अर्जुन ने हल्के से उसकी ओर देखा। उसका चेहरा अब भी मासूम, शांत और संयमित था। अर्जुन ने उसकी ओर बढ़ते हुए उसका कंधा पकड़ना चाहा, पर ध्रुवी ने खुद को पीछे खींच लिया।
"मत छूओ मुझे…" उसकी आवाज़ काँप रही थी… “तुम्हें क्या लगता है अर्जुन, एक कबूलनामे से सब ठीक हो जाएगा?”
अर्जुन की आँखों में ग्लानि थी, पर चेहरे पर सच्चाई के भाव।
“हमने आपको दुख दिया, ध्रुवी… पर जो किया, अनाया के लिए किया। उनके विश्वास के लिए।”
ध्रुवी ज़ोर से सिसकने लगी थी। अर्जुन का अपराधबोध उसके सीने पर हथौड़े की तरह चोट कर रहा था। आर्यन से प्यार, उसकी हर बात पर यकीन… और अब यह झटका।
“मैंने… उससे मोहब्बत की… एक ऐसे आदमी से जो तुम्हारा मोहरा था… क्या मैं इतनी बेवकूफ थी?”
अर्जुन ने उसे रोने दिया। शायद वो यही चाहता था—कि वो पूरी तरह अपना दर्द बाहर निकाले… कुछ पल बाद अर्जुन ने अपनी चुप्पी तोड़ी…।
“हमने जो किया, वो सिर्फ…”
"मत कहना फिर से कि अनाया के लिए किया," ध्रुवी चीख पड़ी… कितनी बार ये शब्द दोहराओगे, अर्जुन? कोई और बहाना नहीं मिला तुम्हें?"
उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे—तेज़, बेकाबू। पर अर्जुन ज्यों का त्यों वहीं खड़ा था, शांत।
“मैंने आर्यन को चाहा… उससे मोहब्बत की… और तुमने… तुमने बस कह दिया कि वो सिर्फ तुम्हारा भेजा हुआ मोहरा था… फिर मैं क्या थी, अर्जुन?… महज़, एक खेल का हिस्सा?”
अर्जुन उसकी आँखों में देखने लगा—वहाँ टूटन थी, गुस्सा था… और आग भी।
वह धीरे से बोला, “अगर हम चाहते, तो आपको कभी उस सच्चाई का पता ही न चलता… पर मैंने बताया… क्योंकि मैं तुम्हारे सामने सच्चा बनकर खड़ा होना चाहता था।”
ध्रुवी ने उस पर एक तिरस्कार भरी नज़र डाली।
“सच्चा? या सिर्फ मसीहा बनने का ढोंग?”
दीवारों की सीलन में अब दर्द की महक घुल गई थी। ध्रुवी ज़मीन पर बैठी थी—फर्श पर घुटनों से लगकर सिसकती हुई। उसकी उंगलियाँ ज़मीन को कसकर पकड़े थीं, जैसे ज़मीन भी अब छोड़ देगी उसे। उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं, बाल बिखरे हुए और शरीर थरथरा रहा था।
ध्रुवी (टूटे हुए शब्दों में, गले में काँटा सा अटका): “तुम लोग… मुझे खिलौना समझते रहे… कभी एक मोहरा… कभी एक किरदार… कभी एक झूठ… मुझे तो खुद नहीं पता मैं कौन हूँ अब…”
उसकी आवाज़ किसी मंदिर की घंटी की आखिरी थरथराहट सी थी—धीमी, टूटती, लेकिन गूँजती हुई। अर्जुन एक पल को कुछ नहीं बोल सका। उसके चेहरे पर गंभीरता थी—वो दो क़दम आगे बढ़ा, घुटनों के बल नीचे बैठ गया। और एक लंबी, बोझिल साँस लेकर ध्रुवी के करीब धीरे से अपना हाथ रखा।
अर्जुन (धीरे, भावुक स्वर में): “ध्रुवी… हम जानते हैं आपके साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है। और उस धोखे का हिस्सा… हम खुद रहे हैं।”
वो एक पल रुका, फिर उसने अपनी नज़रें नीची कर लीं जैसे अपराधबोध में डूबा हो। ध्रुवी की साँसें तेज़ चल रही थीं। उसकी आँखों से आँसू नहीं, आग बह रही थी। वो वहीं ठिठकी बैठी रही—जैसे किसी ने उसकी रूह को उसके जिस्म से अलग कर दिया हो।
“क्यों?” उसकी आवाज़ में अब कम्पन नहीं था, बस एक ठंडा, मारक सन्नाटा था। “तुमने उससे ही ये सब कबूल क्यों करवाया…?”
अर्जुन ने चुपचाप उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में कोई घमंड नहीं था, कोई जीत का भाव नहीं—सिर्फ एक रहस्यमयी थकावट थी।
“कभी-कभी सच्चाई सुनने के लिए इंसान को झूठ की गहराई में उतरना पड़ता है,” अर्जुन ने कहा। “हम चाहते थे कि आप आर्यन की आँखों से सच्चाई देखो… और जो कि आपने देख भी ली।”
ध्रुवी ने कुछ नहीं कहा। वो अब उसकी तरफ़ पीठ करके खड़ी हो गई थी—उस चिलचिलाती दीवार की तरफ़ जो शायद वर्षों से किसी सच्चाई की स्याही को समेटे खड़ी थी।
“मैं अब किसी चीज़ से कुछ नहीं चाहती,” ध्रुवी ने कहा। “न माफ़ी, न प्रेम, न सच्चाई। बस… तुम्हारा ये खेल कब खत्म होगा, ये जानना चाहती हूँ।?”
अर्जुन ने एक क़दम उसकी ओर बढ़ाया, लेकिन फिर वहीं रुक गया।
“खेल… तो बहुत पहले खत्म हो गया था, ध्रुवी… अब जो बचा है… वो सिर्फ सज़ा है। हमारे लिए, आपके लिए… और शायद आर्यन के लिए भी।”
ध्रुवी मुड़ी। उसका चेहरा अब आँसुओं से नहीं भीगा था। वह शांत थी। बहुत ज़्यादा शांत।
“अगर ये सज़ा है… तो मैं उसे पूरा भुगतूँगी,” उसने कहा। “लेकिन याद रखना अर्जुन, एक दिन इस सज़ा का हिसाब भी होगा। और उस दिन… तुम्हारे पास कोई मोहरा नहीं बचेगा।”
इतना कहकर ध्रुवी पलटी और चल दी। अर्जुन वहीं खड़ा रहा उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। ध्रुवी ने बहुत गहराई से कुछ कह दिया था। जिसने अर्जुन के ज़हन और दिल को झकझोर दिया था… कि अर्जुन ने एक बार फिर अपनी चुप्पी तोड़ी। ध्रुवी के कदम रुक गए।
अर्जुन (जैसे खुद से घृणा करते हुए): “हमने ही आर्यन को कहा था कि आपको यकीन दिलाए, आपका भरोसा जीते… क्योंकि हमें लगा था आप कभी हमारी बात नहीं सुनेंगी… कभी इस महल में नहीं आएंगी… और ये सब महल, विरासत… सब कुछ बिखर जाएगा। बस उस वक्त हमें एक यही रास्ता दिखा…”
ध्रुवी (गुस्से और आँसुओं के बीच पलटते हुए): "तो अब क्या चाहते हो?… मैं शुक्रगुज़ार रहूँ तुम्हारी इस 'साजिश' के लिए?… (भावुकता भरे गुस्से से)… आर्यन को मोहरा बनाकर तुमने मेरी रूह छलनी कर दी, अर्जुन! मुझे ये तक नहीं पता मैं अब किसी इंसान से प्यार कर रही थी या सिर्फ किसी प्लान से!
वो हाँफ उठी… एक पल रुक कर फिर हौले से बुदबदाई…।
“तुम्हारा सच ज़हर बनकर उतरा है मेरे सीने में…”
अर्जुन (धीरे से, नज़रे मिलाए बगैर): “हमें माफ़ी माँगने का हक़ तो नहीं है, लेकिन फिर भी माँग रहे हैं… हमने जो भी किया, उसकी कीमत आपके आँसू और दर्द नहीं होने चाहिए। हम ये नहीं कह रहे कि आप हमें माफ़ कर दें… बस इतना वादा करते हैं कि अब हम आपसे कुछ भी छुपाएंगे नहीं।”
इतना कहकर अर्जुन ने उठकर एक कागज़ ध्रुवी के सामने रख दिया।
अर्जुन (अनकहे भाव से): ये सबूत हैं—हर बातचीत, हर निर्देश जो आर्यन को दिए गए थे। आपको इसीलिए दे रहे हैं ताकि आप जान सकें कि ये प्लान कहाँ से शुरू हुआ और क्यों। अब सब आपके सामने है।
अर्जुन ने एक लंबी साँस ली मानो जैसे इस वक्त वो बहुत कमज़ोर पड़ रहा था!
अर्जुन (मद्धम लहज़े से): अब आप जो चाहें हमें सज़ा दे सकती हैं… या सबकुछ छोड़कर जा सकती हैं। हम अब आपको रोकने की हिम्मत नहीं रखते।
ध्रुवी (धीरे, थकी हुई आवाज़ में): और ये क्या है अर्जुन?… (एक पल रुक कर)… एक और एक्ट?… (तंज़ भरे भाव से)… या अब तुम 'अच्छे' इंसान की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हो?… हुं??
अर्जुन (धीरे से, अपने लहज़े को शांत रखते हुए): आप चाहें जो समझें… लेकिन आप जो भी फैसला लेंगी… हम सिर झुकाकर मान लेंगे… बस इतना समझ लें कि जो कुछ भी हुआ—उसके पीछे सिर्फ एक इंसान की नासमझी थी। हमारा लालच नहीं…!
उसने एक कदम पीछे हटते हुए कहना जारी रखा… जैसे उसे आज़ाद कर रहा हो!
“अब आप हमें जो भी सज़ा देंगी, वही हमारी मुक्ति होगी।”
(क्या होगा अब ध्रुवी का फैसला?… क्या वो अर्जुन का साथ छोड़ देगी? या सब कुछ भूल कर एक नई शुरुआत करेगी? या यहां जन्म लेगा एक नया बदला एक नई कहानी?… जानने के लिए पढ़ते रहिए (शतरंज–बाज़ी इश्क़ की!))
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