अर्जुन(धीरे से अपने लहज़े को शांत रखते हुए): आप चाहें जो समझें… लेकिन आप जो भी फैसला लेंगी… हम सिर झुकाकर मान लेंगे… बस इतना समझ लें कि जो कुछ भी हुआ—उसके पीछे सिर्फ एक इंसान की नासमझी थी। हमारा लालच नहीं…!

            अर्जुन ने एक कदम पीछे हटते हुए कहना जारी रखा… जैसे उसे आज़ाद कर रहा हो!

“अब आप हमें जो भी सज़ा देंगी, वही हमारी मुक्ति होगी।”

               अर्जुन का झूठा "सच" और आर्यन का फरेबी "इकरार" — दोनों उसके सामने थे।

और वो खुद...?

“मैं क्या थी?”

“मैं अब क्या हूँ?”

                    उसके सवाल अब आर्यन से नहीं..... अर्जुन से नहीं — खुद से थे। अर्जुन की बात सुनकर..... ध्रुवी ने कुछ नहीं कहा..... तो वो एक गहरी सांस लेकर कमरे से बाहर निकल गया..... ध्रुवी धीरे से उठी। उसकी आँखें अब भी नम थीं लेकिन चेहरा…... एकदम शांत और कोरा..... इतना शांत कि अर्जुन को देख लेती तो शायद उसे भी उसमें खुद की कोई परछाईं नज़र आ जाती।

              दरवाज़ा खुला था। सामने लंबा गलियारा..... जहाँ न अनाया की परछाई थी, न ध्रुवी की पहचान..... वो दो क़दम बढ़ी। हर कदम जैसे एक रिश्ते की लाश पर पड़ा हो।

“मैं जा सकती हूँ…”..... उसने खुद से कहा।

“कुछ नहीं बचा यहाँ। न आर्यन, न भरोसा, न मेरी अपनी कोई तस्वीर।”

                वो दरवाज़े की चौखट तक पहुँची, और दरवाज़ा खोलने के लिए हाथ बढ़ाया…... लेकिन तभी, पीछे से धीमी-सी आहट आई — काँच के गिरने की आवाज़।

                    वो पलटी..... कमरे की टेबल से एक पुरानी फोटो-फ्रेम ज़मीन पर गिरी थी..... पुरानी, लेकिन अब भी सही-सलामत। उसमें अनाया थी — उसके ठीक पीछे अर्जुन..... दोनों की मुस्कान में वो सच्चाई थी जो अब सिर्फ टूटे टुकड़ों में मिलती थी।

          ध्रुवी ने काँपते हाथों से फोटो उठाई..... शायद ये तस्वीर तब की थी जब सब कुछ ठीक था — या कम से कम ऐसा लग तो रहा था।

“तुम क्या चाहती हो, अनाया?”..... उसने कोरे भाव से तस्वीर से पूछा।

“मैं यहाँ रहूँ, या सब छोड़ दूँ?”

          तस्वीर में मुस्कराती अनाया, जवाब नहीं दे सकी — दे ही नहीं सकती थी..... लेकिन अचानक ही ध्रुवी की नज़रों के सामने अव्या का चेहरा घूम गया...... मन जाने क्यों चुप हो गया..... और तभी अर्जुन फिर से कमरे में लौटा।

“हम नहीं जा पा रहे…”..... उसकी आँखों में एक अजीब किस्म की बेबसी थी।

“बाहर गए थे, लेकिन हर कदम उलझ गया।”

ध्रुवी ने चौंककर उसे देखा।

“क्यों?”..... उसकी आवाज़ अब भी कांप रही थी।

“क्योंकि हम डरते हैं कि शायद आप सच में चली जाएंगी"!..... अर्जुन ने साफ़गोई से कहा.....।

वो धीरे-धीरे उसके पास आया।

“हमें माफ़ी नहीं चाहिए, ध्रुवी। बस इतना जान लीजिए कि हम आपको हर उस चीज़ से बचाना चाहता हैं जिससे हमने आपको तोड़ा था।”

ध्रुवी ने नज़रे उठाकर..... उसकी ओर देखा..... वो चेहरा जो कभी उसके लिए एक साज़िश की पहचान था — अब उसी चेहरे में अफ़सोस झलक रहा था।

“और अगर मैं अब कभी भी तुम पर भरोसा ना कर सकूँ तो?”

“तब भी हम आपके साथ यूहीं रहेंगे...… जैसे छाया। न दिखें..... न छू सकें..... लेकिन हर वक़्त आपके साथ।”

ध्रुवी की आँखें भर आईं..... उसने वो फोटो-फ्रेम अर्जुन को थमाई।

“ये संभाल लो,”..... उसने कहा,

“क्योंकि अब जो भी टूटेगा, मैं नहीं चाहती उसे फिर कोई झूठ समेटे।”

          अर्जुन ने तस्वीर थामी…... अपराधबोध से धीरे से सिर झुका लिया..... ध्रुवी वापस पलटी — लेकिन इस बार दरवाज़े की ओर नहीं..... उसने कमरे के कोने में पड़ी उस खाली कुर्सी पर जाकर बैठने का फैसला किया..... जहाँ कभी अनाया घंटों अपनी किताबें पढ़ा करती थी..... अब शायद… ध्रुवी वहाँ अपने जवाब पढ़ेगी..... जिसमें सबसे पहला ख्याल उसे अव्या का आया था.....।

                      कुछ पल तक अर्जुन चुप रहा। फिर उसके पास बैठते हुए बोला, “सिंदूर, जो आज आपकी मांग में भरा गया..... वो सिर्फ़ एक रस्म नहीं थी, ध्रुवी। हमने वो इसलिए नहीं किया कि ये सबको दिखाना था। हमने वो इसलिए भी किया क्योंकि हम..... आपको और आपकी सच्चाई को एक पहचान देना चाहता थे".....!

                       ध्रुवी ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखें लाल थीं, थकी हुई, टूटी हुई।

“क्या सच्चाई, अर्जुन?” उसकी आवाज़ बर्फ-सी ठंडी थी। “वो जो तुमने मुझे बताई... या वो, जो तुमने मुझसे छिपाई?”

              अर्जुन ने गहरी सांस ली, फिर उसकी ओर एक कागज़ बढ़ाया।

“ये क्या है?”

“आर्यन का प्रोफाइल। पूरा बायोडेटा, पिछली पहचान जिसमें कहा गया था कि वो एक अनाथ है... लेकिन सच्चाई ये है, ध्रुवी, कि उन्हें हमने भेजा था।”

                    कमरे में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। ध्रुवी की सिसकियाँ अब धीमी हो गई थीं, लेकिन आँसू अब भी बह रहे थे — शांत, पर बेसाख्ता। अर्जुन का स्वर बेहद शांत था, लेकिन उसकी आँखों में वो आंधी थी जो उसने छिपा रखी थी। 

“हमें आपको महल में लाने के लिए एक रास्ता चाहिए था — एक भरोसा, एक सहारा। और आर्यन वो सहारा था..... जिसे आपके करीब भेजा गया..... एक मोहरा।”

                  ध्रुवी को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके दिल को मुट्ठी में ले लिया हो..... ज़मीन उसके पैरों के नीचे से खिसक गई हो।

"काश! ये सब झूठ होता"!....... वह बड़बड़ाई।

“काश ये सब झूठ होता,” अर्जुन ने कहा..... “काश आर्यन वाकई आपसे प्यार करते। मगर उन्होंने वही किया, जो हमने उनसे करवाया। आपके दिल में जगह बनाना, आपको यकीन दिलाना कि कोई तो है जो आपके साथ है... ताकि आप धीरे-धीरे इस महल की और हंसी ज़िन्दगी की हिस्सा बन सकें।”

"तुमने मुझे इस्तेमाल किया," ध्रुवी के होंठ कांप उठे। “तुमने मेरे दिल से खेला, मेरी भावनाओं से... तुम्हें ज़रा भी अफ़सोस नहीं हुआ?”

अर्जुन ने उसकी आँखों में देखा। “हर पल अफ़सोस होता है। और शायद इसलिए आज हमने ये सच आपको बताया.... आप हमें जितना चाहे उतना कोस सकती हैं... लेकिन अब आपके सामने एक पूरा सच है — भले ही वो हमें गिरा दे, मगर कम से कम हमें ये तसल्ली रहेगी..... हमें आपको और धोखे में नहीं रखा".....!

            ध्रुवी फूट-फूट कर रो पड़ी। वो आर्यन की यादों में जी रही थी — वो हर पल जो अब उसे झूठा लग रहा था। उसके कहे हर शब्द अब एक साज़िश मालूम हो रहे थे। और सबसे बड़ा झटका यह था कि जो इंसान उसे सच्चा लगा था, वही सबसे बड़ा छल निकला।

               अर्जुन कुछ नहीं बोला। बस धीरे से उसके पास बैठ गया।

“मुझे मत छुओ,” उसने सिसकते हुए कहा। “मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा ये झूठा स्नेह।”

                अर्जुन ने सिर झुकाया। फिर बहुत ही धीमी आवाज़ में कहा, “झूठा नहीं है... ये जो अब है, वो सब सच है। हमने जो किया, वो साज़िश थी, लेकिन जो अब आपके लिए महसूस कर रहे हैं..... वो शायद हमारी सबसे बड़ी सज़ा है।”

ध्रुवी चुप रही। अर्जुन उठकर जाने लगा।

“एक बात बताओ अर्जुन,” उसने पीछे से पुकारा। “अगर मैं कल तुम्हारे जैसी साज़िश रचूं...... तुम्हारे किसी अपने को छीन लूं... तुम्हारे विश्वास को तोड़ दूं...... क्या तुम मुझे माफ़ कर पाओगे?”

अर्जुन ने मुड़कर उसकी ओर देखा। “शायद नहीं। लेकिन फिर भी...... हम आपके साथ रहेंगे..... आपके हर झूठ में..... आपके हर छल में..... हम आपको पहचानने की कोशिश करता रहेंगे".....!

          इतना कहकर अर्जुन वहां से चला गया। ध्रुवी वहीं बैठी रही — आँसुओं की नमी में, और एक पुराने झूठ के खुलासे के बोझ में। वो चला गया। कमरे में सिर्फ सन्नाटा बचा, और एक टूटी हुई ध्रुवी।

               लेकिन वो सिर्फ टूटी नहीं थी — उसके भीतर अब एक आग थी। आर्यन के लिए, अपने लिए... और उस सिंदूर के लिए जिसने उसे फिर से एक चाल का हिस्सा बना दिया था।

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                 ध्रुवी अब रो भी नहीं पा रही थी। उसके आँसू सूख चुके थे। वो बस फर्श पर बैठी रही, बेजान सी। कमरे की दीवारों पर टंगी महलों की पुरानी तस्वीरे जैसे गवाह बन गई थीं उस दर्द की, जो अभी-अभी उसकी आत्मा में उतरा था। चांदनी खिड़की से छनकर भीतर आ रही थी, लेकिन वह रोशनी भी अब उसे जलन दे रही थी। 

              उसका गहनों से लदा बदन अब बोझ सा लग रहा था। उसने अपनी चूड़ियाँ उतार दीं, जो आवाज़ करते हुए फर्श पर बिखर गईं। हर चूड़ी जैसे उसके सपनों का टुकड़ा थी — और अब वह भी बिखर चुका था।

                 अर्जुन वहीं खड़ा था, दरवाज़े के पास। उसने सब देखा, सुना — लेकिन कुछ भी कहे बिना वापस जाने को मुड़ा।

"रुकिए..." ध्रुवी की आवाज़ टूटी हुई थी, लेकिन उसमें अब नमी नहीं थी।

अर्जुन रुका..... "आपने कहा था... आर्यन एक मोहरा था?".....  उसका लहज़ा अब कंपकंपा नहीं रहा था। वह एक अजीब शांति में बोल रही थी — जैसे दर्द अब शस्त्र बन चुका हो।

"जी"..... अर्जुन ने कहा, और इस बार उसकी आवाज़ में कोई घबराहट नहीं थी..... "आपसे सच्चाई छिपाकर भी हम आपका भला ही चाहते थे".....।

"मेरा भला?" ध्रुवी हँसी — एक धीमी, बेसाख़्ता हँसी जो कमरे में गूंजती चली गई। “मुझे धोखा देकर? मेरे दिल को खिलौना बनाकर? किस हक़ से?”

"क्योंकि हम जानते थे..... समझते हैं..... कि आपको आर्यन से प्यार नहीं था। वो बस एक पल था — एक भ्रम, जो हमने रचा था, ताकि आप इस महल में रह सको। ताकि आप इस ताज को संभाल सकें".....।

              

              ध्रुवी एक पल को सन्न रही, फिर उसने अर्जुन की आँखों में झाँका — गहराई से, जैसे वहाँ सच को तलाश रही हो। पर अब वह जान चुकी थी — ये सच नहीं था, बल्कि एक और झूठ था जिसे सच जैसा दिखाया जा रहा था।

"आप जीत गए अर्जुन," उसने कहा, "मैं हार गई".... ध्रुवी ने काँपते हुए खुद की मांग को छुआ, जिसमें सिंदूर अब भी ताज़ा था। “ये सिर्फ सिंदूर नहीं है अर्जुन — ये एक इल्ज़ाम है... मेरी मासूमियत पर, मेरी मोहब्बत पर।”

           अर्जुन ने कुछ नहीं कहा। ध्रुवी आगे बढ़ी, उसकी आँखों में अब आँसू नहीं थे — बस एक सन्नाटा था जो सब कुछ कह रहा था।

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         रात गहरी थी। अर्जुन वापस कमरे में आया..... तो ध्रुवी अब तक उसी जगह बैठी थी जहाँ अर्जुन उसे छोड़ गया था। चांद की रोशनी अब हल्की हो चुकी थी। खिड़की से आती ठंडी हवा उसके बालों को छूकर गुजर रही थी। ध्रुवी ने दीवार की ओर देखते हुए कहा....।

“तुम नहीं समझ सकते, अर्जुन...... जिसे मैं सब कुछ समझ बैठी, वो मेरी सबसे बड़ी ग़लती था।”

"और अब..." वह मुड़ी, उसकी आवाज़ टूटी हुई थी, “अब ये दिल... किसी पर भरोसा करने से डरता है।”

                    अर्जुन ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ना चाहा, पर ध्रुवी ने झटके से उसे पीछे कर दिया।

“नहीं अर्जुन!”

“मेरे पास मत आओ...”

“मुझमें अब कोई हिम्मत नहीं बची है किसी की आँखों में झूठ पढ़ने की।”

“तुमने मेरी आँखों से वो सपना छीना है जो मैंने पहली बार किसी के लिए देखा था।”

"आर्यन..." उसका नाम उसके होठों से नहीं, उसकी रूह से निकला था।

“तुमने सिर्फ मुझे नहीं, मेरे वजूद को भी मुझसे छीन लिया...”

अर्जुन ने धीमी आवाज़ में कहा..... “कभी सोचा है कि जो आप देख रही थी वो महज़ एक परछाईं थी?..... क्या आपने वाकई उसकी आँखों में झाँका था, या सिर्फ मेरी बनाई कहानी को जीती रही?”

ध्रुवी चुप हो गई। ध्रुवी का चेहरा अब साफ़ था — दर्द से भरा, पर सोच में डूबा।

"मैं नहीं जानती...पर जो मैंने महसूस किया, वो सच्चा था...... अगर वो सब भी झूठ था तो अर्जुन, मैं जी नहीं पाऊँगी...".....।

          ध्रुवी एक बार फिर तड़प उठी थी..... अर्जुन ने अब एक कदम और बढ़ाया — और इस बार ध्रुवी पीछे नहीं हटी। उसके हाथ कांप रहे थे, और वह अर्जुन के सीने पर गिर पड़ी — जैसे किसी तिनके ने उसे समेट लिया हो।

"क्यों किया तुमने ऐसा?..... "क्यों?" उसकी आवाज़ जैसे खामोशी को चीर रही थी।

अर्जुन ने उसकी पीठ पर हाथ रखा..... ""ताकि आप हमसे इस महल से जुड़ सके...... तब का तो जो था वो था..... लेकिन अब इसीलिए सच से रूबरू करवाया क्योंकि हम आपको खोना नहीं चाहते..... क्यों हम ख़ुद नहीं जानते".....।

 

                 ध्रुवी काँप रही थी। पहली बार वह अर्जुन की बाँहों में थी — लेकिन दिल कहीं और ही दूसरी दुनिया में गुम था..... और तभी अचानक..…

 

 

(जब ध्रुवी की सबसे बड़ी खुशी..... उसकी मोहब्बत ने ही उसे छला है.... तो उसकी ज़िंदगी अब क्या नया मोड लेगी?.... क्या वो आर्यन और अर्जुन को माफ़ कर पाएगी?..... उनके दिए धोखे को भूल पाएगी?..... या लौट जायेगी उनकी दुनिया से हमेशा–हमेशा के लिए?..... शतरंज की बिसात पर बिछी आगे की इस कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिए (शतरंज–बाज़ी इश्क़ की!))

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