सुषमा और हरि, ऊपर कमरे की सफाई कर के आए थे, इसीलिए खुद भी धूल से भर गए थे। अपर्णा ने उन्हें खुद को साफ करने भेजा और तब तक अपनी बनाई दाल मखनी को check करने लगी, कुकर खोला तो चौंक गई।
अपर्णा: (चौंकते हुए) ठंडी होने की वजह से दाल थोड़ी गाढ़ी हो गई है, लगता है दाल को हल्की आंच में एक बार फिर गरम करना पड़ेगा।
इतना कहकर अपर्णा ने दाल में इतना पानी डाला, जिससे उसके स्वाद में कोई फ़र्क नहीं पड़े और गैस को धीमी आंच पर जला कर कुकर चढ़ा दिया। यह करके वह , सुषमा और हरि के आने का इंतज़ार करने लगी। उधर, रोहन और प्रिया के लिए घर छोड़ने का फैसला लेना मुश्किल हो रहा था।
बबलू ने कहा, “भले ही आज तक तुम्हारा मटरू से कोई पाला ना पड़ा हो मगर पूरा मोहल्ला उसकी फितरत से वाक़िफ़ है, सब जानते हैं कि वह कितना खुदगर्ज़ इंसान है, सांप का काटा एक बार पानी मांग सकता है मगर मटरू, उससे चोट खाए हुए इंसान को पानी तक नसीब नहीं होता”। तभी प्रिया ने कहा, ‘’तो ठीक है, हमने फैसला ले लिया। हम इस घर को छोड़ देंगे।''
रोहन : हां, प्रिया बिल्कुल सही कह रही है। हमें आगे की तरफ़ देखना है ना कि पीछे की तरफ़।
प्रिया ने जिस आत्मविश्वास के साथ फैसला लिया था, उसे देखकर बबलू को कोई आश्चर्य नहीं हुआ मगर रोहन, जो थोड़ी देर पहले मटरू की बातों में बस आ ही गया था, वह प्रिया का इस तरह साथ देगा, उसे विश्वास नहीं हो रहा था। खैर दोनों के मुंह से जो निकला था, अच्छा ही था… दोनों के फैसले को सुनकर बबलू ने राहत की सांस ली। उसने अपने चेहरे को आसमान की तरफ़ करके भगवान का शुक्र अदा किया।
ऐसा नहीं था कि इसमें उसका कोई लालच या गरज थी। वह तो बस एक अच्छा दोस्त होने के नाते रोहन की चिंता कर रहा था। उसी नाते उसने अपने पिता के दोस्त के यहां रोहन की जॉब लगवाई थी। वह नहीं चाहता था कि रोहन मटरू के चक्कर में फंसे और आगे चलके मुसीबत झेले, इसीलिए उसने अपर्णा से भी बात कर ली थी। रोहन ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘’प्रिया आधे सामान को तो हम पहले ही पैक कर चुके है, बाकी बचे हुए सामान को भी जल्दी से पैक कर लेते है।''
प्रिया ने रोहन की बात को सुनकर अपने सर को हाँ में हिलाया तो तुरंत बबलू ने कहा, “मैं भी सामान पैक करने में तुम्हारी मदद करता हूं, तीन लोग रहेंगे तो काम जल्दी हो जाएगा”। उस समय स्थिति ऐसी थी कि बबलू की बात को मना नहीं किया जा सकता था। तीनों लोग मिलकर सामान को पैक कर ही रहे थे कि दरवाज़े की बेल बजने की आवाज़ आयी।
तीनों ने दरवाज़े की तरफ देखा, उनके कान खड़े हो गए थे। बेल जैसे ही दुबारा बजी तो सभी ने एक दूसरे से नज़रों को मिलाया, साथ साथ तीनों के चेहरे के भाव भी बदल गए थे। तीनों के मन में एक ही अंदाजा था, उस अंदाज़े को प्रिया ने शब्दों का जमा पहनाते हुए कहा, ‘’दरवाज़े पर पक्का मटरू अंकल ही होंगे, कहीं वह हमें चेक करने तो नहीं आए।''
बबलू ने हिम्मत देते हुए कहा, “हां तो होने दो, तुम लोगों ने कोई चोरी थोड़ी ही की है, तुम्हारा मन नहीं है अब और इस घर में रहने का, सीधी सी बात है”। प्रिया ने तुरंत अपने सर को “हां” में हिला दिया।
तभी बबलू ने कहा, “वह तुम्हें समझाने की कितनी भी कोशिश करे, उसकी एक ना सुनना, अगर तुम्हें यहां फ्री में भी रहने की बात कहे तो भी उसकी बातों में मत आना, शायद तुम नहीं जानते, वह अपनी बात को मनवाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है”। रोहन ने कहा, ‘’हम बच्चे थोड़े ही है, जो उसकी बातों में आ जायेंगे। हमने जो फैसला कर लिया, उस पर हम अटल है! क्यों प्रिया सही कहा ना?,''
तीनों ने अपनी अपनी बात को एक दूसरे के सामने रख दिया था मगर दरवाज़ा खोलने अभी तक कोई नहीं गया था। दरवाज़े की बेल बजने की आवाज़ फिर से आई।
इससे पहले बेल की आवाज़ सुन कर प्रिया या रोहन जाते, बबलू ने तुरंत कहा, “तुम लोग रुको, मैं जाकर दरवाज़ा खोलता हूं”। जैसे ही उसने दरवाज़े को खोला तो चौंक गया। आखिर दरवाज़े पर कौन था जिसे देख कर बबलू चौंक गया था। वहीं दूसरी तरफ़ सुषमा और हरि जैसे ही अपने कमरे में नहाने के लिए दाखिल हुए तो सुषमा को अपने पति के साथ मस्ती करने की सूझी, उसने खुश होते हुए कहा, ‘’चलो, आज हम एक साथ मिल कर नहाते है, तुम अपने हाथों से मेरे चेहरे पर लगी धूल को हटाना और मैं तुम्हारे चेहरे पर लगी धूल को अपने हाथों से हटाऊंगी।''
यह कहने के साथ ही उसने जैसे ही अपने पति हरि के शरीर को छुआ तो हरि को गुदगुदी होने लगी। गुदगुदी होने के साथ साथ, वह थोड़ा असहज भी हो गया और थोड़ा पीछे हुआ। वह उसकी ओर आगे की तरफ बढ़ी, उसके शरीर को दुबारा छूने लगी। तभी हरि ने उसके हाथों को पकड़ कर कहा, ‘’यह क्या कर रही हो, अपनी और मेरी उम्र तो देखो।''
सुषमा : (चंचलता से) यह पति और पत्नी के बीच में उम्र कहां से आ गई, वैसे भी मैं आपको पहली बार तो छू नहीं रही हूं।
यह सुन कर हरि को गुस्सा नहीं, बल्कि हंसी आ रही थी। सुषमा अपने पति को परेशान नहीं, बल्कि उसके साथ थोड़ी मस्ती करना चाहती थी। वह जानती थी कि हरि को गुदगुदी बहुत होती है। तभी अचानक से कमरे में बर्तनों के गिरने की आवाज़ आई। बर्तनों की आवाज़ सुन कर हरि और घबरा गया, उसने तुरंत सुषमा के हाथों को छोड़ दिया।
उधर रोहन और प्रिया के घर के दरवाज़े पर बबलू के सामने मटरू नहीं, बल्कि राजू tempo वाला था। जब बबलू की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो रोहन ने घर के अंदर से आवाज़ लगाते हुए कहा, ‘’बबलू, मेरे भाई, दरवाज़े पर कौन है?''
रोहन की आवाज़ को सुनकर बबलू ने वहीं दरवाज़े के पास से कहा, “राजू tempo लेकर आया है”। बबलू राजू को अपने साथ अंदर ले आया। जैसे ही मटरू की जगह प्रिया और रोहन ने राजू को देखा तो राहत की सांस ली।
तीनों ने मिलकर लगभग सारे सामान की पैकिंग कर ली थी। अब राजू को मिलाकर तीन की जगह चार लोग हो गए थे। राजू बबलू को पहले से अच्छी तरह जानता था, तो उसने बबलू के कहने पर प्रिया और रोहन की मदद करनी शुरू कर दी। जल्दी ही चारों ने मिलकर बचा हुआ सामान भी पैक कर दिया। प्रिया ने कहा, ‘’आप लोगों के आने से सारा सामान पैक हो गया। अब सामान को tempo में रखना बाकी है।''
जब सामान को tempo में रखने की बात आई तो राजू ने उनका साथ देने से साफ़ मना कर दिया। यहां तक कि उसने अपने टेंपो में सामान को रखने से भी इनकार कर दिया। राजू में इस तरह अचानक आए बदलाव को देखकर तीनों चौंक गए थे। सभी के चेहरे पर परेशानी के भाव साफ नज़र आ रहे थे। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि राजू को कैसे तैयार करे। बिना राजू की मदद से सामान को नए घर तक पहुँचाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन वाली बात थी।
उधर अपर्णा निवास में सुषमा से बचने के लिए हरि पीछे हट रहा था। पीछे हटते हटते उसे मालूम ही नहीं चला कि उसके पीछे बर्तन रखे हुए थे जो कि गिर गए और अचानक शोर हुआ। दोनों को बस यही डर लगा, बर्तनों की आवाज़ सुन कर दीदी उनके पास ना आ जाए। इस डर को अपनी ज़बान पर लाते हुए हरि ने कहा, ‘’अब अगर अपर्णा दीदी आ गई तो क्या जवाब दोगी? क्या यही कहोगी कि अपने पति के साथ मस्ती कर रही थी।''
यह बात सुनकर सुषमा ख़ामोश रही। उसने हरि की बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकाल दिया। वह जानती थी कि अगर अपर्णा ने बर्तनों की आवाज़ सुन भी ली होगी तो वह यहां, इस समय उसके कमरे में नहीं आएगी। वह अपनी मस्ती वाले मूड के साथ हरि की तरफ़ आगे बढ़ी और कहा, ‘’अब कोई भी आ जाए, मैं आज आपको नहीं छोडूंगी।''
यह कहकर जिस मस्ती के साथ धीरे धीरे कदमों से सुषमा अपने पति की तरफ़ आगे बढ़ रही थी, उसी धीमी रफ्तार से हरि सुषमा से बचने के लिए पीछे हट रहा था। इस बार हरि चौकन्ना था, उसने नीचे गिरे हुए बर्तनों से अपने पैरों को बड़ी होशियारी से बचाया। तभी सुषमा ने कहा, ‘’कब तक मुझसे बच कर भागोगे।''
तभी सुषमा की आवाज़ के बाद एक आवाज़ और आई, “किसे पकड़ने की बात कर रही हो”। इस आवाज़ ने मानो सुषमा के पैरों को जमा दिया, वह जहां खड़ी हुई थी वहीं खड़ी रही। उधर हरि के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई। इससे पहले उस आवाज़ के जवाब में सुषमा कुछ कहती, हरि ने तुरंत उस आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ को मिलाते हुए कहा, ‘’बोलो, जवाब दो, तुम किसे पकड़ने की बात कर रही थी।''
उस समय सुषमा की ज़बान तो जैसे सिल ही गई थी। उसकी सिर्फ आँखे चल रही थी। वह उसको आंखों से चुप रहने का इशारा कर रही थी मगर हरि के चेहरे पर शैतानी मुस्कान अभी भी बरकरार थी।
आखिर किसके आने से सुषमा असहज गई थी?
वह कौन था जिसकी आवाज़ से हरि के अंदर हिम्मत भर गई थी?
राजू ने उनके मदद करने से इंकार क्यूँ कर दिया?
आखिर बबलू, रोहन, और प्रिया, तीनों मिल कर कैसे राजू को अपनी मदद के लिए तैयार करेंगे?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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