हरि के बार बार मना करने पर भी सुषमा उसकी तरफ़ आगे बढ़ रही थी। जैसे ही वह हरि के पास पहुंच कर मस्ती करने के लिए उसे पकड़ने की बात करती है तो पीछे से एक आवाज़ आई, “किसे पकड़ने की बात कर रही हो”। यह आवाज़ थी छुटकी की ।
वैसे इस लड़की का नाम पहेली था मगर प्यार से सब उसे छुटकी कह कर बुलाते थे। छुटकी पड़ोस में ही रहती थी। उसकी उम्र तकरीबन बारह साल की थी। उसके हाथ में कटोरी को देख कर हरि समझ गया कि वह कुछ सामान लेने आई है। जैसे ही सुषमा ने छुटकी की तरफ़ देखा, वह घबरा गई। उधर से हरि ने अपनी बात को दोहराते हुए कहा, ‘’चुप क्यों हो सुषमा, जवाब दो छुटकी की बात का।''
हरि की बातों के साथ साथ चंचलता उसकी आँखों से भी झलक रही थी। अब सुषमा अपने पीछे खड़ी छुटकी से यह तो नहीं कह सकती थी कि वह अपने पति के साथ मस्ती करने की लिए उसे पकड़ रही थी। सुषमा के चेहरे से साफ़ पता चल रहा था कि उसके पास ना हरि के सवाल का कोई जवाब था और ना ही छुटकी के।
छुटकी ने एक बार फिर से सवाल करते हुए कहा कि सुषमा दीदी मैं पकड़ने में आपकी मदद कर सकती हूँ, मगर पहले आप यह तो बताओ कि आप पकड़ना क्या चाह रही थी। छुटकी की बात सुन कर हरि के चेहरे पर मुस्कान थोड़ी बड़ी हो गई थी। उसने अपनी हंसी को अपने होंठों से दबा लिया। इस बार सुषमा ने छुटकी की बात का जवाब देते हुए कहा, ‘’वह क्या है ना, बहुत दिनों से एक चूहे ने परेशान कर रखा है, बस उसे ही पकड़ने की बात कर रही थी।''
हरि : (सुषमा की बात में अपनी हां छुटकी, और वह चूहा है कि काबू में आने का नाम नहीं ले रहा।
जिस तरह से सुषमा ने शब्दों को बदलते हुए अपनी बात को कहा था उसे सुन कर हरि के चेहरे पर हंसी आ गई। वह समझ गया था कि सुषमा ने उसे ही चूहा कहा है। तभी दोनों की बातों को सुन कर छुटकी ने कहा कि दीदी मेरे पास उसे पकड़ने का बहुत अच्छा तरीका है। इससे पहले वह चूहें को पकड़ने के तरीके के बारे में कुछ बात करती, सुषमा ने तुरंत कहा, ‘’तुम उसकी चिंता ना करो, वह कब तक अपनी खैर मनाएगा। एक ना एक दिन तो मेरे हाथ आयेगा ना, फिर मैं उसे अच्छे से मज़ा चखाऊंगी। अच्छा यह बताओ, तुम्हारा कैसे आना हुआ?''
जैसे ही सुषमा ने बात को बदलते हुए छुटकी के आने की वजह पूछी, छुटकी ने सुषमा से कहा, “माँ घर में आज खीर बना रही थी, बस चीनी थोड़ी कम पड़ गई थी, वही लेने आई हूँ। पिता जी राशन से लाएंगे,तो वापस कर दूंगी।” अब सुषमा के पास हरि को छोड़ने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। वह छुटकी के पास गई और कहा, ‘’चलो, आओ मेरे साथ, मैं तुम्हें चीनी दे देती हूं।''
सुषमा ने छुटकी के हाथ से कटोरी को लेते हुए यह बात कही। सुषमा को छुटकी के साथ जाते हुए देख, हरि ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए राहत की सांस ली। सुषमा ने जाते हुए हरि को ऐसी नज़रों से देखा जैसे कहना चाह रही हो कि इस बार तो छोड़ दिया, अगली बार नहीं छोडूंगी। तभी हरि ने भी कहा, ‘’ठीक है सुषमा, मैं नहाने जा रहा हूं।''
हरि नहाने चला गया और सुषमा ने अपने कमरे में बने छोटे से किचन में जाकर छुटकी को एक कटोरी चीनी दे दी। चीनी लेने के बाद छुटकी ने कहा कि दीदी आप बिल्कुल भी चिंता ना करना, एक दिन हम दोनों उस चूहे को पकड़ कर कही दूर नदी में फेंक आयेंगे। एक बार फिर छुटकी की बात को सुन कर सुषमा के चेहरे पर हंसी आ गई थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा, ‘’ठीक है, अच्छा सुनो, अगर तुम्हें और चीनी की ज़रूरत पड़े तो आ जाना, मैं दे दूंगी।''
सुषमा की बात को सुन कर छुटकी ने मुस्कुरा कर सर को हां में हिला दिया और वहां से चली गई। सुषमा ने यह सब अपर्णा के साथ रह कर सीखा था। जिस तरह अपर्णा हमेशा अपने पड़ोसियों की मदद के लिए आगे रहती थी, उसी तरह सुषमा ने भी किसी पड़ोसी की मदद के लिए आज तक कोई संकोच नहीं किया था। अभी थोड़ी देर पहले जो उसने छुटकी को कटोरी भर के चीनी दी थी, यह उसका जीता जागता सबूत था। सुषमा को आज अफसोस सिर्फ इस बात का था कि छुटकी के आने से हरि के साथ जो मस्ती का मौका था, वह हाथ से निकल गया। वहीं दूसरी तरफ़ जिस तरह tempo वाला राजू सामान को पैक करने में उनकी मदद कर रहा था, उसे लेकर बबलू के साथ साथ रोहन और प्रिया भी खुश थे।
इन तीनों को ज़ोर का धक्का तब लगा जब राजू ने सामान को उठा कर tempo में रखने से मना कर दिया। यहां तक तो बात ठीक थी मगर जैसे ही उसने अपने tempo में सामान को अपर्णा के पते पर ले जाने से मना किया तो उन तीनों के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई। बबलू ने तुरंत सवाल करते हुए कहा कि अगर पैसे की कोई बात है तो बताओ। बबलू की बात में अपनी बात को मिलाते हुए प्रिया ने कहा, ‘’ठीक है, थोड़े पैसे ज़्यादा ले लेना मगर इस समय हमें नए घर में पहुंचा दो।''
राजू ने बबलू और प्रिया की तरफ़ देखा और कहा कि मटरू अंकल का कुछ सामान मुझे उसी के आस पास पहुंचना है, वह मुझे तुमसे दुगना पैसा दे रहे है। राजू की बात सुन कर बबलू को गुस्सा आ गया। गुस्सा तो रोहन और प्रिया को भी आया, मगर उस समय उन्होंने शांत रहना ज़्यादा बेहतर समझा। उधर बबलू के चेहरे से साफ़ पता चल रहा था कि वह राजू पर भड़कने वाला है।
बबलू ने राजू पर गुस्सा होते हुए कहा कि अगर तुझे उनका सामान ही ले जाना था तो फिर यहां क्यों आया। बबलू की बात को सुन कर राजू चुप नहीं रहा, उसने तुरंत जवाब देते हुए कहा कि मैंने सोचा कि आप लोगों का सामान पैक होगा, तुरंत उसे छोड़ कर मटरू अंकल का सामान छोड़ दूंगा, मगर मेरा सारा समय तो आपका सामान पैक करने में ही चला गया।
राजू की यह बात सुन कर बबलू के तन बदन में आग लग गई। इससे पहले वह राजू से और ज़्यादा गुस्से में बात करता, रोहन ने उसके पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर, उसे संभाला। फिर भी बबलू ने अपनी बात रखते हुए कहा कि राजू, सारा सामान तूने पैक नहीं करवाया, बस तूने हमारी थोड़ी मदद की है। इस बार प्रिया ने स्थिति को संभालने के लिए कहा, ‘’ठीक है भैया, अब तुम्हारा जो भी समय खराब हुआ, उसकी भरपाई हम कर देंगे।''
प्रिया की इस बात का मतलब राजू समझ गया था। उसे यह सुन कर कि उसे extra पैसा मिलेगा, अच्छा लगा। उसने तुरंत बात को आगे ना बढ़ा कर रोहन के घर के सामान को अपने tempo में रखना शुरू कर दिया। एक तरफ़ सभी लोग tempo में घर का सामान रखने में लग गए थे तो वहीं दूसरी तरफ़ थोड़ी देर बाद हरि नहा कर आया तो सुषमा नहाने चली गयी। जैसे ही दोनों नहा धो कर अच्छे से तैयार हुए तो हरि ने तुरंत सुषमा की तारीफ करते हुए कहा, ‘’इस गुलाबी साड़ी में तुम बहुत अच्छी लग रही हो।
उसकी बात सुन कर सुषमा थोड़ा शर्मा गयी। उसकी नज़रें जिस तरह से झुकी हुयी थी, वह हरि को बहुत अच्छी लग रही थी। उस के गीले बाल उसकी ख़ूबसूरती में और चार चाँद लगा रहे थे। वह उसके पास गया और उसके बालों की कुछ लट को अपने हाथों से उसके कान के पीछे करते हुए कहा, ‘’सच कह रहा हूँ, आज तुम कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत लग रही हो।''
सुषमा: (जवाब देते हुए) जब प्यार करने का मौका था तो बच रहे थे, अब जबकि दीदी के पास जाने को देरी हो रही है तो जनाब को मस्ती सूझ रही है।
हरि : (जैसे कुछ याद आया हो) अरे हाँ, हम तो भूल ही गए कि दीदी खाने पर हमारा इंतिज़ार कर रही होगी।
सुषमा की बात का हरि ने तुरंत जवाब दिया और दोनों अपर्णा के पास जाने के लिए अपने कमरे से निकल गए। वहीं दूसरी तरफ़ रोहन और प्रिया ने बबलू और राजू की मदद से अपने घर के सारे सामान को टेम्पो में रख दिया था। प्रिया ने एक आह भरते हुए पूरे घर को एक नज़र मारते हुए कहा, ‘’बस इस घर का और हमारा साथ यहाँ तक ही था।''
प्रिया की बात को सभी ने सुना था। बबलू और राजू तो आगे दरवाज़े की तरफ चले गए थे मगर रोहन उसके पीछे था। उस ने प्रिया के करीब जाकर उसके दोनों कंधो पर अपने हाथो को रखा। जैसे ही उसने अपने कंधो पर हाथों को महसूस किया तो पीछे मुड़ कर देखा, उस की आँखों में नमी थी। रोहन ने भी अपनी पलकों को झपका और कहा, ‘’अब हमें अपने नए घर को सजाना है, जिंदगी में आगे की तरफ़ देखना है।''
रोहन की बात पर प्रिया ने अपने सर को हाँ में हिला दिया और दरवाज़े की तरफ़ चली गयी। मटरू के घर पर किरायेदार के रूप में उन दोनों ने अच्छा खासा समय बिताया था। जिस समय रोहन घर को बाहर से ताला लगा रहा था, वह भी भावुक था। ताला लगाने के बाद बबलू ने उससे ताले की चाबी लेते हुए कहा कि लाओ, चाबी मुझे दे दो, मैं मटरू अंकल को दे दूंगा।
एक तरफ़ वे सब, घर के सामान को लेकर अपर्णा के घर की तरफ़ टेम्पो से चल दिए थे तो वहीं दूसरी तरफ़ जैसे ही सुषमा और हरि अपर्णा के सामने आये तो अपर्णा के चेहरे पर भाव बदले हुए लग रहे थे। उसके चेहरे पर थोड़ा गुस्सा दिख रहा था। थोड़ी गंभीर आवाज़ में अपर्णा ने कहा, ‘’कुछ ज़्यादा देर नहीं लगा दी, मैंने सोच लिया था कि आज तुम्हारे बिना ही खाना खा लूंगी।''
अपर्णा के शब्दों का सुषमा और हरि के पास कोई जवाब नहीं था। वह दोनों ख़ामोशी के साथ अपने सर को झुकाये हुए अपर्णा के सामने खड़े रहे। दोनों की खामोशी ही अपर्णा के दिल को नरम कर देती थी, इस बार भी ऐसा ही हुआ। अपर्णा ने बड़े ही नरम लहजे में कहा, ‘’अब क्या मेरे सामने ऐसे ही खामोश खड़े रहोगे, जाओ और जाकर खाना ले आओ।''
अपर्णा का इतना कहना था कि सुषमा और हरि दोनों किचन की तरफ दौड़ पड़े। अपर्णा हाल में पड़ी डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गई। सुषमा और हरि ने भी बहुत कम समय में खाने को परोस दिया था। इससे पहले तीनों में से कोई भी खाना शुरू करते, तुरंत दरवाज़े की बेल बजने की आवाज़ आयी। सुषमा ने बेल की आवाज़ सुन कर कहा, ‘’अब चैन से खाना भी नहीं खाने दे सकते।''
हरि : (उन्हें रोकते हुए) आप लोग खाना शुरू कीजिये, मैं जाकर देखता हूँ दरवाज़े पर कौन है।
अपनी बात को कह कर हरि अपनी चेयर से उठ कर दरवाज़े को खोलने चला गया। इधर सुषमा चाह रही थी कि हरि के आने के बाद ही खाना शुरू करे। सुषमा को देख अपर्णा के मुँह में भी निवाला कैसे जाता। वह भी हरि के आने का इंतज़ार करने लगी। जैसे ही हरि ने दरवाज़े को खोला तो चौंक गया।
आखिर दरवाज़े पर कौन था जिसे देख कर हरि चौंक गया था?
क्या रोहन और प्रिया सही सलामत अपर्णा के यहां पहुंच जाएंगे?
मटरू अपने घर को लेकर क्या नयी चाल चलने वाला था?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.