अपर्णा, सुषमा और हरि के साथ खाना खाने टेबल पर बैठी ही थीँ कि दरवाजे की घंटी बज गई। हरि ने जाकर दरवाजा खोला तो चौंक गया… उस के कुछ कहने से पहले दो आदमी एक बड़े से बॉक्स को लेकर अंदर आने लगे। यह दोनों आदमी कोई और नहीं बल्कि रोहन और राजू ही थे। हरि ने दोनों को पहली बार देखा था। इस तरह जबरदस्ती घर में घुसने पर उसे गुस्सा आने लगा। उसने तुरंत कहा, ‘’इस तरह अंदर कहाँ घुसे आ रहे हो। यह सामान किसका है?''
दोनों का सारा ध्यान सामान को उठाने पर था। राजू ने कहा, “पहले सामान को अंदर रखने दो, उसके बाद बात करते है”। तभी रोहन ने भी कहा, ‘’हां भाई, सब बताते है, पहले इस बॉक्स को अंदर रखने दो, इसमें कांच का सामान है। टूटने का डर है। राजू भाई, इसे आराम से रखना।''
हरि की बात को नज़र अंदाज़ करके जब उन्होंने उसे अपने सामने से हटने को कहा तो उसे गुस्सा आ गया। उसका मन हो रहा था कि दोनों को सामान के साथ घर से बाहर फेंक दे, मगर यह उसका स्वभाव नहीं था। उसने गुस्से में कहा, ‘’एक तो बिना पूछे मेरे घर में घुसे चले आ रहे हो और ऊपर से इस तरह के तेवर।''
हरि का इतना कहना था कि दोनों अपनी जगह रुक गए, दोनों को ऐसा लगा जैसे वह किसी गलत घर में आ गए हो। उनके हाथ में जो बॉक्स था, दोनों ने उसे दरवाज़े के एक कदम आगे ही संभाल कर नीचे रख दिया। रोहन ने कहा, ‘’तो क्या यह अपर्णा जी का घर नहीं है?''
इससे पहले हरि इस बात का जवाब देता, बबलू ने अंदर आते हुए कहा, “तुम लोग यहां क्यों रुक गए, अंदर चलो”। जवाब में दोनों कुछ कहते, तब तक हरि ने बबलू की तरफ देखते हुए कहा, ‘’तुम… अच्छा तो, यह लोग तुम्हारे साथ है।''
अब हरि की समझ में सब आ गया था। बबलू के कहने पर वह दोनों हरि के पीछे पीछे सामान लेकर चल दिए। अंदर हॉल में पहुंच कर हरि ने अपर्णा से कहा, ‘’दीदी, किरायेदार अपना सामान लेकर आ गए।''
अपर्णा डाइनिंग टेबल से उठी और उनकी तरफ गई, उनके पीछे सुषमा भी पहुंच गई। बबलू ने उन के पास आकर उनके पैर छुए तो प्रिया ने भी पैरों को छू कर आशीर्वाद लिया। उस के पैर छूने पर उन को अपनेपन का एहसास हुआ। थोड़ी दूर खड़े होकर रोहन ने भी हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। अपर्णा ने प्रिया के गालों को छूते हुए कहा, ‘’बड़े अच्छे संस्कार है। क्या नाम है तुम्हारा, बेटा?''
प्रिया के कुछ बोलने से पहले बबलू ने दोनों का परिचय देते हुए कहा, “यह प्रिया है, मेरे दोस्त रोहन की पत्नी और यह राजू। राजू टेम्पो चलाता है, उसी में हम सारा सामान लेकर आए है”। इस पर सुषमा की हंसी छूट गई। उसने हंसते हुए कहा, ‘’घर का इतना सारा सामान हाथ में लेकर तो नहीं आ सकते ना, बबलू भैया। उसके लिए तो टेम्पो ही चाहिए।
बबलू ने तुरंत जवाब दिया, “तुमने बात तो बिल्कुल सही कही है, बड़ी समझदार हो”। अपनी तारीफ सुन कर सुषमा खुश हो गई। बबलू ने डाइनिंग टेबल की तरफ देखते हुए कहा, “खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है और बहुत ज़ोरों की भूख भी लगी है”। सभी लोग बबलू की बेतकल्लुफी के बारे में बखूबी जानते है। तभी अपर्णा ने कहा, ‘’हम लोग खाना शुरू करने ही वाले थे। चलो, आप लोग भी हमारे साथ खाना खा लो। सामान को उसके बाद रख देना।''
उस समय भूख तो सभी को लगी थी मगर बबलू को छोड़ कर सब संकोच कर रहे थे। उस ने तुरंत कहा, “इस मज़ेदार खुशबू ने मेरी भूख को और बढ़ा दिया है, मुझ से तो रहा नहीं जायेगा”। रोहन और प्रिया के चेहरे पर मुस्कान थी, मगर राजू ने सड़ा सा मुंह बना लिया था।
उसे देखकर बबलू ने उस से कहा, “एक बार आंटी के हाथ का खाना खाओगे, तो बार बार खाने की इच्छा करोगे, बहुत नसीब वाले हो तुम ”। तभी सुषमा ने भी कहा, ‘’बबलू भैया बिल्कुल सही कह रहे है।''
भूख तो रोहन और प्रिया को भी लग रही थी मगर आज पहले दिन ऐसे अचानक से खाना खाना, उन्हें कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा था। इससे पहले राजू कुछ कहता, बबलू ने कहा, “अरे राजू, कभी कभार, पैसे से उठ कर भी सोचा करो, और वैसे भी तुम्हारा कोई नुकसान नहीं होने वाला, जाओ… जाकर टेम्पो को साइड में खड़ा कर दो”।
इस बात पर राजू चला गया। दरवाज़े के पास जाकर, उसने अपनी जेब से फोन निकाला और एक नंबर डायल किया। इधर वह कॉल के रिसीव करने का इंतजार कर रहा था तो उधर घर के अंदर अपर्णा के कहने पर सभी लोग डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गए थे। सुषमा ने किचन की तरफ जाते हुए कहा, ‘’आप लोग खाना शुरू करो, मैं गरम गरम रोटियां लाकर देती हूं।''
सुषमा जानती थी कि इतने लोगों में दाल के साथ चावल कम पड़ जायेंगे। आटा पहले से ही गूँधा हुआ था। उसने फटाफट कई सारे पेड़े बना लिये और उन्हें बेल कर रोटियों को सेंकना शुरू कर दिया। रोटियों को डायनिंग टेबल तक पहुंचाने का काम हरि ने किया। दाल सबको बहुत ही पसंद आ रही थी, उँगलियाँ चाट- चाट कर खा रहे थे।
उधर दरवाज़े के बाहर राजू ने कॉल के रिसीव होने पर कई बार “हाँ” शब्द का इस्तेमाल किया। जब काफी देर तक वह अंदर नहीं आया तो बबलू ने कहा, “क्या राजू खाना खत्म होने के बाद आएगा”। उसकी बात का जवाब देते हुए अपर्णा ने कहा, ‘’खाने के खत्म होने की चिंता ना करो, बस तुम लोग अच्छे से, पेट भर कर खाओ।''
प्रिया को अपर्णा ने अपने हाथों से दाल निकाल कर दी। यह अपनापन देख कर उस के साथ साथ रोहन को भी अच्छा लगा। उधर, फोन पर बात करके राजू जैसे ही अंदर आया तो बबलू ने पूछा, “टेम्पो को साइड लगाने में इतना समय लगता है”?
टेम्पो तो पहले से ही एक तरफ खड़ा हुआ था, राजू को उसे और साइड में करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। वह तो फ़ोन पर किसी से बात कर रहा था। हरि ने उसे एक चेयर लाकर दी। राजू जैसे ही चेयर पर बैठा तो अपर्णा ने उसे एक प्लेट में दाल निकाल कर दी। तभी हरि ने उसे रोटी देते हुए कहा, ‘’भाई, यह लो गरम गरम रोटी। इतनी गरम रोटियां तो तुम्हें अपने घर में भी नहीं मिलेगी।''
जैसे ही राजू ने रोटी के निवाले से दाल को खाया तो उसे दाल का स्वाद बहुत अच्छा लगा। इससे पहले उसने इतनी मज़ेदार दाल कभी नहीं खाई थी। सभी लोगों का पेट तो भर गया था मगर उनकी आत्मा... वह अभी तक नहीं भरी थी। खाने की तारीफ करते हुए रोहन ने कहा, ‘’सच में बहुत लाजवाब खाना था, खा कर मज़ा आ गया। आंटी आपके हाथों में जादू है, वैसे मैं आपको आंटी बुला सकता हूं ना।''
यह बात सुनकर अपर्णा के चेहरे पर मुस्कान आ गई। तभी बबलू ने कहा, “अब मैं आपके पास खाने के लिए आता रहूंगा”। अपर्णा ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, ‘’बेटा बबलू, यह तुम्हारा अपना घर है, कभी भी आ सकते हो।''
यह सुनकर बबलू खुश हो गया। सभी के खाना खाने के बाद सुषमा और हरि ने भी खाना खाया। जिस प्यार के साथ अपर्णा ने खान बनाया था, उसी चाव से सभी ने खाया भी, तो उन्हें बहुत अच्छा लगा। खाना खाने के बाद अपर्णा ने कहा, ‘’चलो, मैं तुम्हें कमरा दिखा देती हूं।''
यह कहकर वह प्रिया को ऊपर कमरे की तरफ ले गई। बाकी के लोग टेम्पो से सामान लेने चले गए। सुषमा दीदी के साथ ऊपर चली गई तो हरि सामान उठाने के लिए उनके पीछे पीछे गया।
उधर मटरू अपनी दुकान के अंदर एक कुर्सी पर बैठा था। उसके सामने दो हट्टे कट्टे आदमी खड़े थे। मटरू बहुत गुस्से में दिख रहा था। उसने गुस्से ने अपने सामने रखी मेज़ पर एक ज़ोरदार मुक्का मारते हुए कहा, “इस बबलू के बच्चे का कुछ करना होगा, उसने मेरा बहुत नुकसान किया है”।
तभी उन दो आदमियों में से एक ने कहा, “मटरू भाई, तुम कहो तो उसके हाथ पैर तोड़ दे”। वह दोनों आदमी मटरू के “हां” कहने का इंतजार कर रहे थे। मटरू ने तुरंत कहा, “अभी समय नहीं आया, मुझे सही समय पर वार करना है, इसे तो मैं मज़ा ज़रूर चखाऊंग। देखता हूँ, यह लोग अपर्णा निवास में कितने दिन रहते है”।
एक तरफ मटरू बबलू के लिए अपने दिल में नफरत लिए बैठा था तो वहीं दूसरी तरफ प्रिया कमरे को देख कर खुश हो गई थी। कमरा उसकी कल्पना से काफी बड़ा था और साफ सुथरा था। इसका सारा क्रेडिट सुषमा और हरि जाता था। अपर्णा ने कहा, ‘’तुम लोग अपना सामान रखो, अगर किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो सुषमा से बता देना। वह कमरे को सेट करने में तुम्हारी मदद भी कर देगी।''
यह कहकर अपर्णा वहां से चली गई। जितने आदमी थे, उन्होंने एक एक करके सारे सामान को कमरे में रखना शुरू कर दिया। सुषमा ने एक बड़ी बहन की तरह कमरे में सामान को सेट करने में प्रिया की पूरी मदद की।
प्रिया ने अपने वादे के मुताबिक राजू को उसकी मजदूरी से ज़्यादा पैसे दिए। तभी बबलू ने कहा, “अब तो खुश है ना, हम किसी का हक नहीं मारते, थोड़ा रिश्ते भी बनाना सीखो भाई, सब कुछ पैसा ही नहीं होता”। राजू जाने से पहले उसे एक कोने में ले गया और कान में आहिस्ता से कुछ कहा। उसकी बात सुनकर बबलू के चेहरे के भाव बदल गए।
आखिर राजू ने ऐसा क्या कहा जिसे बबलू के माथे पर शिकन आ गई?
उधर मटरू बबलू से बदला लेने के लिए क्या करने वाला था?
सुषमा का प्रिया के साथ कैसा तालमेल रहेगा?
क्या रोहन और प्रिया अच्छे किरायेदार बन पाएंगे?
राजू ने फ़ोन पर किससे बात की थी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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