मनोज के लिए आज एक नई सुबह है। एक नई ज़िंदगी, एक नया रास्ता और उस रास्ते पर उनका पहला कदम। उनका सुबह का अलार्म बाज चुका था। आज वो उस दुनिया का हिस्सा बनने जा रहे हैं जो उनकी दुनिया से बिल्कुल अलग थी। एक बार के लिए उनका मन हुआ कि न जाएँ लेकिन उन्होंने हिम्मत की और ख़ुद से ही ज़ोर देकर ख़ुद को उठाया। नए ट्रैक सूट के साथ उन्होंने अपने स्पोर्ट्स शूज़ निकाले और तैयार हो कर पार्क की तरफ़ निकल पड़े। पहले उन्हें लगता था कि दुनिया बहुत आलसी है, देर रात तक जागती है और सुबह देर तक सोती है लेकिन उन्होंने देखा कि असल में दुनिया उनसे भी तेज़ है। अभी उजाला भी सही से नहीं हुआ था लेकिन पार्क पहले से जगमगा रहा था। वो पार्क के बाहर खड़े थे लेकिन उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो अंदर जाएं। उनके बाद आने वाले लोग पार्क के दो राउंड भी लगा चुके थे लेकिन मनोज अभी तक अंदर जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाए। उन्हें लोगों को देख कर अजीब लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे एक ग्रह का प्राणी किसी दूसरे ग्रह पर चला गया हो। वो कुछ देर और सोचते इससे पहले ही पीछे से किसी की आवाज़ आई।

राजू - ऐसे ही देखते रहने से अगर फ़ायदा होता तो हम अपना ये बाहर आया पेट कब का कम कर लिए होते। Healthy रहने के लिए दो चीज लगेगा बाबू जी। राजू का अदरक वाला स्पेशल चाय और पार्क के अंदर जा कर टहलना। फिर देखिए सारा दिन कैसे फुर्ती से उछलते कूदते रहेंगे आप।

इस अनजान आवाज़ ने मनोज को पीछे देखने पर मजबूर कर दिया। पीछे एक 22-23 साल का लड़का एक मेज़ पर अपनी छोटी सी चाय की दुकान लगाए, अपने काम में बिज़ी था। उसने अपना काम करते करते ही मनोज को नेक सलाह दी थी हालांकि मनोज इस तरह किसी से सलाह लेने के आदी नहीं थे। सामान्य से दिखने वाले इस लड़के की बातों में अलग attraction था, तभी तो खड़ूस से लगने वाले मनोज जी भी उसकी ओर खींचे चले गए। मनोज ने कहा कि अगर इतना ही जादू है इन दोनों चीज़ों में तो वो ख़ुद चाय पी कर एक राउंड क्यों नहीं मार आता? उस चाय वाले ने जिसका नाम राजू था जवाब दिया, साहब क्या करें? इस पापी पेट का सवाल है। अब अंदर जाएंगे तो हमारा ये दुकान कौन देखेगा और दुकान नहीं देखेंगे तो कमाई कहाँ से होगा और कमाई नहीं होगा तो हमारा, हमारी अम्मा का हमारी बहन का ये सब का पेट कौन भरेगा? अब पेट ही नहीं रहेगा तो कम क्या करेंगे?

मनोज (नार्मल) - बस बस, मैं समझ गया। अब अपना रेडियो बंद करो और एक चाय पिला दो।

राजू ने अपना एक नया ग्राहक बना लिया था। ऐसे ही तो बेचारे की दुकान चलती थी। उसे यहाँ जो भी नया दिखता वो उससे बहाने से बातें करने लगता और बातें करते हुए चाय पीना किसे पसंद नहीं है? बस इसी तरह उसकी छोटी सी दुकान चल रही थी। कुछ देर बातें करने के बाद राजू ने मनोज से पूछा कि अगर वो बुरा ना मानें तो क्या वो उनसे कुछ पूछ सकता है? मनोज ने एक बार उसे देखा और बोले कि उनके बुरा मानने से क्या फ़र्क़ पड़ता है, उसका जो मन सो पूछ सकता है। राजू ने कहा ऐसा नहीं है, उन्हें उनके बुरा मानने से फ़र्क़ पड़ता है। उसने कहा कि उसकी अम्मा कहती हैं किसी बड़े बुजुर्ग का अनजाने से भी दिल नहीं दुखाना चाहिए, इससे बड़ा पाप लगता है। इसलिए जब तक मनोज दिल से पूछने के लिए नहीं कहेंगे तब तक वो अपनी बात नहीं पूछेगा। मनोज को उसकी बातें सुन हँसी आने लगी लेकिन उन्होंने हल्का सा मुस्कुरा कर ही काम चलाया। उन्होंने कहा कि वो कैसे जान सकते हैं कि उसका सवाल बुरा मानने वाला होगा या नहीं? इसलिए वो पहले सवाल पूछे और अगर उन्हें पसंद नहीं आया तो वो जवाब नहीं देंगे।

राजू को ये रास्ता सही लगा। उसने पूछा कि क्या पहले उन्हें किसी ने इस बात के लिए टोका है कि उनकी आवाज़ रेलवे स्टेशन पर सुनाई देने वाली आवाज़ जैसी लगती है? उनका बोलने का लहज़ा बिल्कुल वैसा ही है। राजू के ये पूछते ही मनोज को फिर से एक झटका सा लगा। उसे एहसास होने लगा कि बाहरी दुनिया भी उसे बस उसके आवाज़ के लिए जानती है। मनोज ने चाय के पैसे दिए और बिना कुछ बोले ही वहां से चले गए। राजू ने नीचे से दूध का पैकेट निकाल कर जैसे ही ऊपर देखा तो मनोज जा चुके थे। सामने चाय के पैसे रखे हुए थे। उसने मन ही मन ख़ुद को ये कहते हुए कोसा कि उसका अपनी ज़ुबान पर कोई कंट्रोल नहीं।

उसे लगा कि उसने एक बुजुर्ग का दिल दुख दिया, उसे इसका पाप लगेगा। वो काफ़ी देर तक पार्क के आसपास ये सोच कर नज़रें घुमाता रहा कि अगर उसे मनोज दिख जाये तो वो उनसे माफी माँग ले लेकिन वो नहीं दिखे।

मनोज राजू की दुकान से उठे और कुछ सोचते सोचते पार्क में दाखिल हो गए। उन्होंने देखा वहां हर चेहरा खुश है। बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ आए हैं, कोई एक दूसरे से बात करता हुआ वॉक कर रहा है तो कोई ऐसे ही बेंच पर बैठा सुबह की ताज़ी हवा का आनंद ले रहा है। मनोज को छोड़कर वहां मौजूद हर इंसान खुश होने की कोशिश में लगा हुआ था। मनोज आए तो वॉक करने थे लेकिन उनका मन नहीं हुआ और वो जा कर एक बेंच पर बैठ गए। इस हँसती खेलती दुनिया को देख कर मनोज को लगा कि वो इस दुनिया का हिस्सा नहीं है। यहाँ कितनी शांति है लेकिन उन्हें इस शांति की आदत नहीं है। वो तो दिन रात शोर में रहने वाले शख्स हैं। उन्हें तो बस शोर सुनना और शोर मचाना आता है। वो भला इस दुनिया के लोगों के बीच कैसे फिट बैठ सकते हैं?

मनोज सोचने लगे कि क्या उन्होंने बाहर आ कर लोगों में घुलने मिलने का फैसला कर ग़लत किया क्या?

उनके चेहरे को देखते ही पता चल रहा था कि वो बहुत उलझे हुए हैं। ख़ुद को वो दुनिया से कटा हुआ महसूस कर रहे थे। उनका मन कर रहा था कि वो ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर कहें कि उन्हें उनका वो काम वापस दे दो, उनसे ये बाहर की दुनिया नहीं झेली जाती।

नौकरी के शुरुआती सालों में मनोज ऐसे नहीं थे। वो भी दुनिया की तरह जीना चाहते थे। अपने काम को उन्होंने भले ही हमेशा सबसे ऊपर रखा लेकिन उसके बाद भी उनके पास बहुत कुछ करने को था। वो घर बसाना चाहते थे, अपने माँ बाबूजी को शहर ला कर उन्हें एक अलग दुनिया में एक अच्छी ज़िंदगी देना चाहते थे, दोस्त बनाना चाहते थे लेकिन फिर ज़िंदगी ने उनसे उनके सपने छीनने शुरू कर दिए।

वो सीनियर्स जो उम्र में उनसे काफ़ी बड़े थे लेकिन उनके लिए guardian और दोस्त का कॉम्बो पैक बन कर रहे, वो उनसे बिछड़ गए, उनके माँ बाप नहीं रहे, जिस लड़की से घर बसाना चाहा वो उनसे छिन गई। फिर वो वक्त आया जब मनोज को अहसास हुआ कि उनका काम ही उनके लिए एक मात्र जीने का सहारा है। ये काम है तो फिर उन्हें किसी की ज़रूरत नहीं। पच्चीसवें साल में मनोज ने ख़ुद को पूरी तरह से अपनी नौकरी के हवाले कर दिया। घर का ज़रूरी सामान लेने बाज़ार जाने तक ही उनका बाहरी दुनिया से कनेक्शन था। इसके अलावा रेलवे स्टेशन और वहां का स्टाफ यही उनकी दुनिया थी।  

बाहर क्या हुआ क्या नहीं इस बात से उन्हें कभी कोई मतलब नहीं रहा। एक मॉर्डर्न युग में भी उन्होंने 80’s की ज़िंदगी जी थी। आज की जनरेशन को देखना, उनका पहनावा, उनके चलने बोलने का ढंग ये सब ऐसे था जैसे वो अचानक से टाइम मशीन में बैठ कर 40 साल आगे चले आए हों। उनके लिए दुनिया अभी भी वैसी ही black and white थी जैसी उन्होंने अपनी जवानी के दिनों में देखी थी। मनोज जी ने 35 साल से सिनेमा हॉल का मुँह नहीं देखा था। गाने सुनने का शौक था जिसके लिए उन्होंने एक रेडियो रखा था। स्मार्ट फ़ोन के दौर में भी उनके हाथ में 8 साल पुराना बटन वाला फ़ोन था। ऐसे इंसान से भला ऐसी उम्मीद कैसे लगायी जा सकती थी कि वो आज के ज़माने के लोगों के बीच घुल मिल जाये। ऐसा तो बस किसी चमत्कार से ही मुमकिन था।

मनोज पहले से ही बहुत परेशान थे ऐसे में कुछ लोगों की हँसी ने उन्हें और परेशान कर दिया। उन्हें लग रहा था जैसे वो हँसी उन पर ही हँसी जा रही थी। वो उधर देखना नहीं चाहते थे लेकिन फिर भी उनकी गर्दन उधर घूम गई। उन्होंने देखा कुछ लोगों का ग्रुप जिनका चेहरा उनकी ही तरफ़ है हाथ उठा उठा कर बहुत ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे। मनोज को पूरा यकीन था कि वो उन्ही पर हंस रहे हैं। उन्होंने ऐसा क्या किया जो ये लोग ऐसे हंस रहे हैं? उन्होंने इससे पहले लाफ्टर योगा के बारे में नहीं सुना था। वो बेहद अजीब शक्ल बना कर उन लोगों को देख रहे थे।

तभी उनकी नज़रें दो और नज़रों से टकराईं जिनका निशाना अभी वही थे। ये नज़रें क़रीब 55 साल की एक लेडी की थीं, जो योगा सूट पहने उन बेमतलब हंस रहे लोगों के आगे पीछे घूम उन्हें और हँसने के लिए फोर्स कर रही थी। शायद ये लेडी कोई योगा इंस्ट्रक्टर थी। मनोज को देख उस लेडी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। मनोज का अजीब बन चुका चेहरा देख शायद वो समझ गई थी कि उनके मन में कुछ उलझन चल रही है। उस लेडी ने मुस्कुराते हुए मनोज जी की तरफ़ हाथ हिलाया लेकिन ये देख वो और भी ज़्यादा चिढ़ गए। उन्होंने अपना चेहरा दूरी तरफ़ घुमा लिया। इसके बावजूद उस लेडी के चेहरे की मुस्कान बनी रही। लाफ्टर योगा के बाद उसने अपने ग्रुप को कुछ और योगा आसन सिखाए और फिर क्लास ओवर कर दी।

मनोज जी अपनी ही धुन में खोए हुए और चिड़चिड़े हुए जा रहे थे। तभी किसी ने पीछे से उन्हें hi बोला। उन्होंने पीछे देखा तो वही लेडी थी जो कुछ देर पहले सबको योगा सिखा रही थी। उसने मनोज को देख कर उनकी तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए बताया कि उसका नाम पिंकी रस्तोगी है। मनोज ने अपना हाथ आगे नहीं किया। इसके बाद भी वो लेडी जिसने अपना नाम पिंकी बताया था, मुस्कुराती रही। उसने अपना हाथ पीछे कर लिया और उनके बगल में बैठ गई। उसने कहा कि आज की सुबह बहुत सुहानी है। मनोज कुछ बोलना नहीं चाहते थे लेकिन फिर भी उनके मुँह से निकल गया कि ये सुबह हर रोज़ जैसी ही है, इसमें कुछ भी अलग नहीं। पिंकी ने कहा हम जिस नज़रिये से दुनिया को देखते हैं दुनिया वैसी ही नज़र आ रही है। मनोज इतनी गहरी बात समझ नहीं पाये और पिंकी को घूरते रहे।

 

क्या पिंकी ही वो पहली दोस्त होगी जो मनोज की ज़िंदगी में आएगी? या फिर मनोज का रूखापन पिंकी को नाराज़ कर देगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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