मनोज की फेयरवल पार्टी लगभग खत्म हो चुकी थी। Formality करने के बाद सभी लोग जा चुके थे। गुप्ता जी उन्हें सबके लाए गिफ्ट्स दिखा रहे थे लेकिन मनोज की इन गिफ्ट्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने गुप्ता जी से कहा कि अगर पॉसिबल हो तो उन्हें गिफ्ट में कुछ और चाहिए। गुप्ता जी ने कहा उनके बस में जो भी होगा वो उससे भी ज़्यादा की कोशिश करेंगे। मनोज ने कहा वो जाते हुए एक आख़िरी बार अनाउंसमेंट करना चाहते हैं। गुप्ता जी ही सबका शेड्यूल सेट करते थे। उनके लिए ये कोई बड़ी बात नहीं थी। वो मनोज के साथ अनाउंसमेंट रूम में पहुंचे और अनाउंसमेंट कर रहे कर्मचारी से कहा कि वो पांच मिनट का ब्रेक ले ले तब तक मनोज उसका काम देख लेंगे। कर्मचारी खुशी खुशी ब्रेक पर चला गया। गुप्ता जी ने उन्हें इशारा किया और मनोज ने कुर्सी पर बैठते हुए अनाउंसमेंट माइक हाथों में थाम लिया।
मनोज (भरे हुए गले से) - यात्रीगण कृपया ध्यान दें, बेलापुर से नीलगढ़ जाने वाली गाड़ी संख्या 14067 भूतनाथ एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर आ रही है। यात्रियों से अनुरोध है, अपनी निर्धारित सीट पर पहुँच जाएँ।
इतना कहते ही उनके रुके हुए आंसू निकल गए। गुप्ता जी ये जानते थे कि ऐसा ही कुछ होने वाला है। उन्होंने दूसरे कर्मचारी को इशारा किया और उसने अपने माइक से अनाउंसमेंट जारी रखी। गुप्ता जी का हाथ मनोज के कंधे पर था। वो उन्हें हिम्मत दे रहे थे और मनोज बच्चों की तरह रोए जा रहे थे। ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी ने उन्हें रोते हुए देखा हो। कुछ देर में मनोज शांत हो गए। उन्होंने उस अनाउंसमेंट माइक को एक बार निहारा, अपने आंसू पोंछे और कुर्सी से उठ गए। कुछ एक यात्रियों ने ये नोट किया था कि अनाउंसमेंट स्पीकर से किसी के रोने की आवाज़ आई थी लेकिन किसे फ़र्क़ पड़ रहा था कि कौन रोया?
मनोज ने गुप्ता जी को फिर से शुक्रिया कहा। वो बोले वो उनका ये एहसान कभी नहीं भूलेंगे। गुप्ता जी ने कहा कि वो उनके यहाँ चाय या खाने पर आ कर उनका एहसान चुका सकते हैं। मनोज ने मुस्कुराते हुए कहा कि वो ज़रूर आयेंगे। गुप्ता जी ने चलते हुए उन्हें ऑफ़र दिया कि उन्हें महीने भर में क्वाटर ख़ाली करना होगा और वो घर देख रहे हों तो उनके घर का एक हिस्सा खाली है, वो वहां किरायेदार बन कर रह सकते हैं। गुप्ता जी बोले कि वैसे तो वो उनके यहाँ मेहमान बन कर भी जब तक चाहें रह सकते हैं लेकिन वो जानते हैं मनोज ऐसा कभी नहीं करेंगे इसलिए वो उन्हें किराए का रूम ऑफर कर रहे हैं। मनोज ने कहा अगर उन्हें ज़रूरत पड़ी तो वो ज़रूर उन्हें फ़ोन करेंगे। इस बार गुप्ता जी ने हिम्मत करते हुए मनोज को गले लगाया। जिसके बाद मनोज इस स्टेशन, अपने ऑफ़िस, अपने अनाउंसमेंट माइक और यहां के यात्रियों को हमेशा के लिए अलविदा कह कर अपने क्वाटर की ओर चल दिए।
उनके बोझिल कदम अपने आप ही वाइन शॉप की तरफ़ बढ़ने लगे। उन्होंने शराब की कुछ बोतलें लीं और उन्हें बैग में रखकर, क्वाटर चले आए। अपनी वर्दी उतारते हुए उन्हें लग रहा था जैसे कोई बूढ़ा योद्धा अपनी आख़िरी जंग लड़कर आया हो और अपना कवच उतार रहा हो। वो आख़िरी बार अपनी ड्रेस को उतार रहे थे। जिसे उतारते हुए वो फूट फूट कर रोने लगे। उन्हें लग रहा था कि स्टेशन से क्वाटर तक पहुँच रहा ट्रेनों का शोर जैसे उन्हें चिढ़ाते हुए कह रहा हो कि अब वो उन्हें और इशारों पर नहीं नचा पाएगा।
मनोज आधी रात तक शराब पीते रहे और कब सो गए उन्हें पता नहीं चला। सुबह जब उनकी आँख खुली तो घड़ी में 8 बाज चुके थे। वो हड़बड़ा कर उठे। हमेशा वो 6 बजे तक उठ जाते थे। उन्हें लगा आज वो पक्का लेट हो जाएंगे। उनकी नज़र सामने हैंगर पर गई जहां उनकी ड्रेस नहीं थी। ये अलग आफ़त थी। वो समझ नहीं पा रहे थे कि आख़िर वो ऐसी गलती कैसे कर सकते हैं? वो हर रोज़ अपनी ड्रेस प्रेस कर के टाँगते हैं लेकिन कल भला वो कैसे भूल गए? तभी उन्होंने सामने कुर्सी पर अपनी कल की ड्रेस पड़ी देखी, टेबल पर रम की ख़ाली बोतल देखी, उन्हें याद आया कि वो हड़बड़ा क्यों रहे हैं? अब उन्हें काम पर नहीं जाना। वो जब मन, सो सकते हैं जब मन, उठ सकते हैं।
उनकी हड़बड़ी अब उदासी में बदल गई। वाशरूम से आने के बाद उन्होंने धीरे धीरे चाय चढ़ायी। फिर धीरे धीरे चाय पी। आज वो हर काम धीरे धीरे ही कर रहे थे क्योंकि उन्हें पूरा दिन बिताना था। इस बीच उन्होंने अपने पौधों को पानी दिया नाश्ता बनाया और खाया। क्वाटर की सफ़ाई की लेकिन फिर भी 12 बजे तक उनका सारा काम खत्म हो गया। अब उनके लिए करने को कुछ नहीं था। उन्होंने अपने रैक पर सजी कुछ किताबों में से एक किताब उठायी और उसके पन्ने पलटने लगे। उन्हें लगता था उन्हें पढ़ने का बहुत शौक है, जब भी कभी उन्हें लंबी छुट्टी मिलेगी तो वो बहुत सी किताबें पढ़ेंगे लेकिन जब अब उनके पास वक्त ही वक्त था तब वो बस दस बारह पन्ने पलट कर ही थक गए। उन्हें लगा किताब पढ़ना दुनिया का सबसे उबाऊ काम है।
उनका मन बेचैन हो रहा था, तभी उनकी नज़र शराब की ख़ाली बोतल पर गई। शराब उन्हें ये सब बर्दाश्त करने की ताक़त देती थी। असल में वो जब नशे में होते तब इतना ज़्यादा नहीं सोच पाते थे। ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर वाली कहावत उन पर सच हो रही थी। जब उनके पास करने को कुछ नहीं था तो उन्होंने शराब की बोतल खोलना ही सही समझा। दोपहर से रात तक सिर्फ़ शराब ही चलती रही। वो कब फिर से सो गए उन्हें पता ही नहीं चला। अगले दिन उठते ही उन्होंने फिर से फ़ैसला किया कि वो शराब को अब हाथ नहीं लगायेंगे लेकिन फिर से वो कुछ घंटों में खाली पड़ गए और फिर से उन्होंने शराब की बोतल को अपना साथी मान लिया।
अगले चार दिन तक यही सब चला। वो सुबह उठते नाश्ता बनाते और सोचते कि अब शराब नहीं पियेंगे लेकिन फिर से वही सब शुरू हो जाता।
फिर एक दिन जब वो उठे तो उनका पूरा शरीर कांप रहा था। वो ठीक से चल नहीं पा रहे थे। इस हल्की ठंड में भी उनके माथे पर पसीना था। उन्हें लगा कि आज उनकी जान ही चली जाएगी लेकिन ये बस घबराहट थी। कुछ देर इंतज़ार करने के बाद भी जब उन्हें आराम नहीं आया तब उन्होंने कैब बुला ली और अपने हमेशा वाले डॉक्टर सुखवीर के क्लिनिक पहुंच गए। सुखवीर ने उन्हें देखते ही कहा कि वो कभी ये नहीं चाहते कि उन्हें लोगों को अपने क्लिनिक में देख कर ख़ुशी हो लेकिन मनोज उनसे इतने दिन बाद मिले हैं कि उन्हें कहना पड़ रहा है कि उन्हें मिल कर ख़ुशी हुई।
मनोज ने बताया कि उनकी पूरी बॉडी काँप रही है और उन्हें धुंधला दिख रहा है। डॉक्टर सुखवीर सोच भी नहीं सकते थे कि मनोज की ये हालत शराब की वजह से हुई होगी क्योंकि उन्हें पता था मनोज शराब नहीं पीते। डॉक्टर ने पूछा उन्होंने क्या खाया था? मनोज ने बताया कि वो पिछले 6 दिनों से नाश्ते में ब्रेड ऑमलेट खा रहे हैं। डॉक्टर ने पूछा और लंच डिनर में? मनोज ने सिर झुकाते हुए कहा कि बस शराब ही पिए जा रहे हैं।
सुखवीर को यकीन नहीं हो रहा था। उन्होंने ऐसा करने की वजह पूछी तो मनोज ने उन्हें पूरी कहानी बता दी।
सुखवीर ने उन्हें डाँट लगायी और कहा कि उनकी ये उम्र नहीं कि वो इतनी शराब डाइजेस्ट कर पाएं। ये शराब सिर्फ़ उन्हें मारेगी नहीं बल्कि उन्हें तड़पा देगी। सुखवीर ने कहा कि उन्हें अपना रूटीन बदलना होगा, बाहर जा कर लोगों से मिलना होगा। वो अगर कमरे में बंद रहे तो पागल और बीमार दोनों हो जाएंगे। सुखवीर ने उन्हें कहा कि उनके पास अब टाइम ही टाइम है वो इस टाइम को किसी नई चीज़ सीखने में लगा सकते हैं, उन्होंने कहा ईश्वर के क्या प्लांस हैं कोई नहीं जानता इसलिए जैसा समय आए इंसान को उसी के हिसाब से ढल जाना चाहिए। इसके बाद डॉक्टर ने उन्हें जूस पिलाया और फिर वहीं लिटा कर एक इंजेक्शन देने के बाद कुछ दवाइयाँ दीं। उन्होंने उन्हें क्लिनिक में ही कुछ देर आराम करने के लिए भी कहा और जब वो आराम कर के उठे तो उन्हें काफ़ी अच्छा लग रहा था। डॉक्टर ने मनोज से कहा कि वो कल से ही वॉक शुरू करें और हर हफ्ते उनके पास आ कर हेल्थ अपडेट दें। इसके बाद क्या करना है ये वो उन्हें अगले हफ्ते बतायेंगे लेकिन वॉक उन्हें कल से ही शुरू करनी है। भले ही वो पार्क में बैठ कर ही चले आएं लेकिन उन्हें ज़रूर जाना पड़ेगा। मनोज ने भी हामी भरते हुए कहा कि वो रोज़ पार्क में सैर के लिए जाया करेंगे।
इसके बाद वो घर लौट आए। उन्होंने बाहर से ही कुछ फ्रूट्स ले लिए थे जिन्हें खाने के बाद वह बिस्तर पर लेटे हुए गुप्ता जी और डॉक्टर की बातें सोचने लगे। उन्हें लगा कि वो दोनों सही कह रहे हैं। मनोज को अब दूसरे रास्ते की तरफ़ देखना होगा। अपना घर छोड़ना भी तो उनके लिए आसान नहीं था। बाबा के लिए ना सही लेकिन माँ के लिए तो वो हमेशा वहां रहना चाहते थे लेकिन अपने सपने के लिए अपना घर भी छोड़ा ना और भी तो कितना कुछ छोड़ना पड़ा। ऐसे ही अब उन्हें छूट चुके रास्ते की याद को पीछे छोड़ आगे बढ़ना होगा।
वो इसी जगह खड़े नहीं हो सकते। दुनिया में वो अकेले नहीं जो retire हुए हैं और वो अपना पूरा कर्तव्य निभा कर रिटायर हुए हैं इस बात के लिए उन्हें निराश नहीं बल्कि खुश होना चाहिए। क्या पता वो कौन लोग हैं जो बाहर उनका इंतज़ार कर रहे हैं और उनकी ज़िंदगी में आने के लिए बेताब हैं। जिस तरह काम के आख़िरी दिन उन्हें गुप्ता जी की दोस्ती का अहसास हुआ, हो सकता है कि उनके इसी तरह और भी दोस्त बन जाएं। उन्हें उठना होगा और ख़ुद के लिए आगे भी बढ़ना होगा। मनोज ख़ुद ही ख़ुद को समझाते रहे और हिम्मत देते रहे। आख़िरकार उन्हें समझ आ ही गया कि ज़िंदगी में सबकुछ हमेशा के लिए नहीं रहता।
उनका एक आख़िरी बार अनाउंसमेंट करने का मन हुआ। वो लेटे हुए ही बड़बड़ाए “यात्रीगण कृपया ध्यान दें, अगली ट्रेन…” इसके आगे वो कुछ नहीं बोल सके। उन्हें अहसास हुआ कि इस आवाज़ का वजूद उन्हें रोज़ाना सुनने वाले हज़ारों यात्रियों से था लेकिन अब उन्हें सुनने वाला कोई भी नहीं है। वो सड़क पर खड़े हो कर ऐसी अनाउंसमेंट नहीं कर सकते। उनका काम अब खत्म हो चुका है लेकिन ये सवाल उन्हें बार बार तंग कर रहा था कि इस आवाज़ के बिना वो कौन हैं?
अब उन्हें इसी सवाल का तो जवाब ढूँढना है और दुनिया को बताना है कि वो बस एक आवाज़ नहीं बल्कि जीते जागते इंसान हैं।
क्या मनोज देसाई ख़ुद को इस दुनिया का सामना करने के लिए तैयार कर पाएंगे? क्या वो इस सवाल का जवाब ढूँढ पायेंगे कि वो कौन हैं?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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