मनोज देसाई को रिटायरमेंट की चिट्ठी मिल चुकी थी। इस चिट्ठी का सीधा सीधा मतलब था कि उन्होंने अपनी सेवाएं बहुत अच्छे से दीं लेकिन अब रेलवे को उनकी सेवा की कोई ज़रूरत नहीं। उनकी उम्र हो गई है और अब वो रिटायरमेंट में मिले पैसों से अपनी बाक़ी की ज़िंदगी घर परिवार के साथ आराम से बिताएं। टाइप करने वाले ने लेटर के नीचे शुभकामनाएँ भी दी थीं। उस बेचारे ने तो अपनी तरफ़ से सही ही लिखा था मगर उसे क्या पता जिसके हाथ में ये लेटर पड़ने वाला है, उसके लिए ये स्टेशन ही उसका घर है और ये काम ही उसके परिवार के प्रति ज़िम्मेदारी। उसे शुभकामनाओं की नहीं बल्कि दिलासे की ज़रूरत है। 

सबने मनोज के सामने अच्छा बनते हुए उन्हें बधाई दी और बताया कि स्टाफ ने उनके फेयरवेल के लिए पार्टी का इंतज़ाम किया है मगर किसी को क्या पता कि मनोज जी को पार्टी और ये बधाई नहीं चाहिए। घर जाने के बाद मनोज का वैसा ही हाल था जैसे कोई बेटा आज अपने पिता की चिता को आग देकर लौटा हो, जिसके सिर से आज माँ बाप का साया उठ चुका हो। सच में मनोज उस दिन भी इतना ज़्यादा दुखी नहीं थे जब उन्हें पता चला था कि उनके माँ बाप बाढ़ की चपेट में आ गए। इंसानी रिश्तों की मजबूती लगाव से तय होती है। जिससे जितना लगाव उससे उतना गहरा नाता। कभी इंसान एक जानवर को अपना परिवार मान लेता है तो कभी अपनों के मरने से भी दो बूंद आँसू के अलावा और कोई दुख महसूस नहीं होता।

बड़े दिनों बाद आज मनोज के कमरे में किशोर दा और रफ़ी साहब मद्धम आवाज़ में गुनगुना रहे थे। टेबल पर एक रम की पूरी बोतल, जिसमें से आधी खत्म हो चुकी थी, कुछ अंडे और पानी की बोतल पड़ी हुई थी। मनोज जी के हाथ में सिगरेट थी जिसके धुएँ ने पूरे कमरे में बादल बना रखे थे। हाँ मगर बरसात उनकी आँखों से हो रही थी। निश्चित ही मनोज की हालत देखने सुनने वाले को ये बेकार का ड्रामा लग सकता है लेकिन जो इंसान अपने सामने भी रोने से डरा हो उसके आँखों के आँसू मायने रखते हैं फिर चाहे वजह कुछ भी हो। 

आज बहुत सालों बाद घर में सिगरेट शराब आई थी। मनोज जब नए नए इस शहर में आए थे तब उन्होंने कुछ सीनियर्स के सामने कहा था कि उन्हें सही से नींद नहीं आती और फिर दिन भर काम करने में दिक्कत होती है। तब उन सीनियर्स ने अपने experience से बताया था कि शराब थकान मिटा देती है जिससे अच्छी नींद भी आती है। फिर अगले दिन बंदा फ्रेश हो कर उठता है जिससे सारा दिन काम करने में फुर्ती मिलती है। बचपन में मनोज के आसपास कभी शराब का माहौल नहीं रहा और अगर आपने ऐसा माहौल ही नहीं देखा फिर उस चीज़ का फायदा नुक़सान कैसे जान पाएंगे? मनोज को तो अभी हाल ही में इस शराब के फ़ायदे पता चले थे। उसने उसी दिन शराब की पूरी बोतल ही ख़रीद ली। बताने वाले ने शराब के फायदे तो बताये लेकिन ये नहीं बताया कि उसे कितनी मात्रा में लेना है। 

मनोज ने पहला पेग बड़ी मुश्किल से गले से नीचे उतारा लेकिन उसके बाद जैसे उसका गाला चिकना हो गया हो और शराब सरकते हुए अंदर जा रही हो। पूरी बोतल उन्होंने कब खत्म कर दी पता ही नहीं चला, उसके बाद उन्हें पता नहीं चला कि लगभग अगले 2 दिन आसपास क्या हुआ। वो सोते ही रह गए। जब वो उठे तब भी सिर भारी था। बिना बताये छुट्टी लेने के लिए खूब डाँट भी पड़ी और अगले पूरा दिन भी वो कई तरह की परेशानियों से जूझते रहे। उस दिन उन्होंने जो शराब छोड़ी उसके बाद कभी पीने का नाम नहीं लिया। जब अपने सीनियर्स को बताया कि पूरी बोतल गटक ली थी तब पता चला कि शराब ऐसे नहीं पी जाती। ऐसे पियोगे तो ना काम हो पायेगा और जल्दी मरोगे सो अलग। 

आज उन्हें अपने सीनियर्स की बात याद आ गई कि इतनी शराब पियोगे तो ना काम हो पायेगा और मरोगे सो अलग। अब ना उन्हें काम करना था और ना उनमें और जीने की इच्छा बची थी। इसलिए आज इतने सालों बाद वो शराब और सिगरेट के साथ अपनी रात बिता रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है! वो बस रोए जा रहे थे। पूरी रात रफ़ी साहब और किशोर दा अपने नग़में गुनगुनाते रहे, शराब चलती रही, सिगरेट जलती रही और मनोज जी रोते रहे। सुबह वो आराम से उठे, तैयार हुए और स्टेशन के लिए निकल पड़े। 

बाकियों के लिए ये नार्मल दिनों जैसा ही एक दिन था। यात्रियों को रोज़ की तरह ही स्टेशन से ट्रेन पकड़नी थी, काम करने वाले रोज़ की तरह ही अपने काम में लगे हुए थे लेकिन मनोज के लिए ये दिन बहुत अलग था, इतना अलग दिन उन्होंने अपनी ज़िंदगी में पहले कभी नहीं देखा था। लंच ब्रेक में भी वो अपने ऑफ़िस में ही बैठे रहे। वो यहां बचा एक मिनट भी गंवाना नहीं चाहते थे। गुप्ता जी ने उन्हें लंच पर चलने के लिए भी कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया हालांकि वो समय को नहीं बांध सकते थे। 

शाम हो गई, औरों के लिए ऑफ़िस टाइम ओवर हुआ था लेकिन मनोज का तो पूरा जीवन ही ओवर हो गया था। मनोज ने अपना बैग उठा कर कंधे पर टांगा और भारी कदमों के साथ बाहर जाने लगे। तभी उनके साथियों ने पीछे से आवाज़ दी, “कहाँ चल दिए मनोज बाबू? आज आपका फेयरवेल है।” दूसरे ने हंसते हुए कहा शायद मनोज बाबू भूल गए कि आज उनका यहाँ लास्ट डे है। 

अपने दुख को दबाते हुए मनोज मुस्कुराए और सबके पीछे कैन्टीन की तरफ़ चल दिए। मनोज ने वहां पहुंच चारों तरफ़ अपनी नज़रें घुमाई। कुछ एक गुब्बारों से कैन्टीन को सजाया गया था। गिनती की 15 कुर्सियां थीं जिसमें एक टूटी हुई थी। एक छोटा माइक था जिसमें शायद लोग मनोज के बारे में कुछ बातें बोलने वाले थे और एक केक था जिस पर लिखा था मनोज जी को शुभकामनाएं और थोड़ा बहुत खाने पीने का सामान। देखते ही लग रहा था कि सारा इंतज़ाम बड़ी हड़बड़ी में किया गया है। 

एक एक कर के सारा स्टाफ़ मनोज के बारे में अपनी बातें कहने लगा। सबकी स्पीच ज़्यादा से ज़्यादा 1 मिनट की थी और लगभग एक जैसी थी। सबका कहना था मनोज जी एक हंसमुख और मिलनसार इंसान हैं। जो कि सरासर झूठ था। किसी ने कहा कि मनोज जी पूरे स्टाफ को अपना परिवार मानते थे। जबकि वो स्टेशन को घर ज़रूर मानते थे लेकिन स्टाफ के लिए परिवार वाली फ़ील उन्हें कभी नहीं आई। किसी ने कहा मनोज उनके बहुत अच्छे दोस्त हैं, जबकि मनोज की कभी किसी से दोस्ती नहीं रही। एक बात जो सबने सच कही थी वो ये कि मनोज की आवाज़ इस स्टेशन की पहचान है। 

मनोज को लग रहा था कि यहां लोग उनके बारे में और वो इन लोगों के बारे में कितना कम जानते हैं। उन्हें अच्छा लगता अगर कोई ये कहता कि मनोज एक खड़ूस इंसान हैं, जिनकी कभी किसी से दोस्ती नहीं हुई, जिन्हें हमेशा अकेले रहना ही पसंद था। शायद ऐसा सच कोई बोलता तो मनोज जा कर उसे गले लगाते हुए कहते कि उसने ही उन्हें सबसे अच्छी तरह पहचाना है। उन्हें अहसास हो रहा था कि वो इन सबके लिए स्टेशन की एक अनाउंसमेंट वाली आवाज़ से ज़्यादा और कुछ नहीं हैं।   

फिर मनोज जी के सबसे क़रीब बैठने वाले गुप्ता जी को उनके लिए कुछ शब्द बोलने का मौक़ा दिया गया। गुप्ता जी ने एक बार मनोज की तरफ़ देखा और कान पकड़ते हुए कहा कि वो जो भी कहेंगे सब सच होगा इसलिए मनोज जी उनसे नाराज ना हों। गुप्ता जी की इस बात पर मनोज मुस्कुराए और कुछ लोग हंस पड़े। गुप्ता जी ने कहा, “मनोज और वो एक दूसरे को लंबे समय से एक सहकर्मी के रूप में जानते हैं। उन्होंने हमेशा मनोज से दोस्ती करनी चाही लेकिन मनोज ने साधारण लोगों की तरह दोस्त बनाने में कभी दिलचस्पी नहीं दिखायी।” 

गुप्ता जी ने कहा उन्हें इस बात का कभी बुरा नहीं लगा क्योंकि कुछ लोग होते हैं जिनकी दुनिया बहुत बड़ी नहीं होती। मनोज भी वैसे ही शख्स हैं। उनका दोस्त बनने के लिए उन्हें समझने की ज़रूरत है और हम सब में उतना पेशेंस नहीं कि हम किसी को समझ सकें। सिर्फ़ ये कहना कि उनकी आवाज़ ही उनकी पहचान रही ये ग़लत होगा। मनोज जी के होने से हमेशा ये लगा कि ऑफ़िस में कोई सीनियर बैठा है जिनके रहते हुए उन्हें कोई गलती नहीं करनी। गुप्ता जी और भी बहुत कुछ कहते लेकिन तभी उन्हें किसी ने इशारा करते हुए शायद ये बताना चाहा कि वो अपनी स्पीच जल्दी खत्म करें। 

छुट्टी हो गयी थी, सबको अपने घर जाने की जल्दी थी। गुप्ता जी या किसी और की बातें सिर्फ़ मनोज ने ही तो सुनी थीं, बाक़ी सब बार बार मोबाइल निकाल कर टाइम देखने में ही बिज़ी थे। उनकी भी क्या गलती? सबका परिवार है, सबके दोस्त हैं, सबके प्लान्स होते हैं। एक बूढ़े अनाउंसर के रिटायरमेंट के लिए भला कोई क्यों दिल से वहां रुकेगा? मनोज अच्छे से जानते थे कि ये सब मात्र formality है। उनको इस शाम की सबसे अच्छी बात गुप्ता जी की स्पीच ही लगी। वो और भी अच्छा बोलते लेकिन उससे पहले उन्हें रोक दिया गया। 

गुप्ता जी ने मनोज को केक काटने के लिए बुलाया, जिससे वहां मौजूद आधे से ज़्यादा लोगों के चेहरे पर ख़ुशी छा गई। ये ख़ुशी बस इसलिए थी क्योंकि केक काटने के बाद वो घर जा सकते थे। मनोज को दो तीन शब्द कहने के लिए कहा गया तो उन्होंने दो तीन ही शब्द कहे.. “आप सबका धन्यवाद।”

किसी को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। केक काटते हुए मनोज का दिल बैठा जा रहा था। फिर भी उन्होंने केक काटा, सबने उन्हें केक खिलाया और जल्दी जल्दी वहां से निकल गए। अंत में वहां गुप्ता जी और मनोज को छोड़ कर दो तीन लोग ही बचे। वो लोग भी इस लिए रुके थे कि पार्टी में आया थोड़ा बहुत नाश्ता करके अपने एक टाइम के खाने का बिल बचा सकें। अब वो हुआ जिसकी गुप्ता जी ने उम्मीद नहीं की थी। मनोज ने उन्हें कहा कि उन्हें पता है सबने उनके बारे में बस झूठ बोला है और इससे ही लगता है कि उन्हें कोई नहीं समझता लेकिन गुप्ता जी ने जितना भी कहा सब सच ही है। जिसके लिए वो उन्हें शुक्रिया कहना चाहते हैं। उन्होंने गुप्ता जी को गले लगाते हुए कहा “शुक्रिया दोस्त।”

ये सुनने के लिए गुप्ता जी के कान तरस गए थे। उनकी आँखों में आँसू आ गए। उन्हें बस यही अफ़सोस था कि ये दोस्ती हुई भी तो तब जब मनोज वहां से हमेशा के लिए जा रहे हैं। इसके बाद गुप्ता जी ने उन्हें दिखाया कि लोग उनके लिए क्या गिफ्ट्स लाए हैं। गुलदस्ते, कार्ड्स, गिफ्ट्स के तौर में ज़्यादातर यही सब था। गुप्ता जी ने उन्हें एक घड़ी गिफ्ट की थी। मनोज ने उनसे कहा कि वो इन गिफ्ट्स का क्या ही करेंगे, अगर दे सकते हैं तो उन्हें एक अलग सा गिफ्ट चाहिए। 

आख़िर मनोज गुप्ता जी से क्या गिफ्ट माँगेंगे? अभी अभी मनोज के दोस्त बने गुप्ता जी क्या उनके गिफ्ट की डिमांड पूरी कर पाएंगे? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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