इंसान जितना तेज़ भागता है उसकी यादें भी उसका उतनी ही तेज़ी से पीछा करती हैं। भले ही दौड़भाग में ये एहसास ना हो लेकिन जब वो किसी पड़ाव पर रुकता है तो वो यादें उसे ऐसे घेरती हैं कि उससे निकलना मुश्किल हो जाता है। मनोज को लगातार वही सपना आ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो सपना नहीं बल्कि मनोज की हकीकत हो। ऐसे ही तो 19 साल के मनोज ने अपने बाबा के ख़िलाफ़ जा कर इस नौकरी को चुना था। उसके बाबा तो चाहते थे कि वो उनकी ज़मीनों पर खेती करे, ऐसा किसान बने जिसकी मिसाल आसपास के सभी गांवों में दी जाये मगर मनोज ऐसा नहीं चाहता था। 

बचपन में माँ की उँगली पकड़े अपने बाबा के पीछे पीछे भागता मनोज उस समय हैरान रह गया जिस समय उसने देखा कि एक जादुई आवाज़ पता नहीं कहाँ से आ रही है और वो जिधर कहती है लोग उधर ही जाते हैं। उस आवाज़ का सम्मोहन सा हो गया था उस पर। उसने बाबा से लेकर अपने मास्टर तक से ये सवाल किया कि उस आवाज़ के पीछे कौन है? किसी को उसके बारे में नहीं पता था। तभी से मनोज के मन में वो आवाज़ घर कर गई थी। एक तरफ़ पिता की इच्छा थी कि वो किसान बने और दूसरी तरफ़ मनोज का सपना था कि वो वही आवाज़ बने जो किसी भी स्टेशन की जान होती है। जिसे सुनते ही लोग अपने अपने रास्त बदल लेते हैं। 

मनोज ने अपने सपने को पूरा करने के लिए बहुत मेहनत की। कहाँ कहाँ नहीं गया ये जानने के लिए कि उसकी आवाज़ स्टेशन पर कैसे आ सकती है। परीक्षा दी, पास हुआ, selection हुआ। एक तरफ़ पिता थे तो दूसरी तरफ़ सपनों की नौकरी। ऐसी नौकरी का सपना भला कौन देखता है? कोई कलेक्टर, सिपाही बनता तो लोग नाम भी जानते मगर ऐसी नौकरी का सपना जिसमें इंसान का नाम तक कोई नहीं जानता। फिर सपनों का क्या है? कैसे भी और किसी की भी आँख में समा जाते हैं और कर देते हैं इंसान को अपने पीछे दौड़ने पर मजबूर और उस सपने के लिए कुछ भी क़ुर्बान करना पड़े, इंसान कर ही देता है। 

19 साल के मनोज ने भी अपने इस सपने के लिए अपने सारे रिश्ते क़ुर्बान कर दिए। घर छोड़ कर ड्यूटी ज्वाइन कर ली। जब घर लौटा, तब तक कुछ नहीं बचा था। बाढ़ सब कुछ निगल गई थी। घर, खेत, माँ बाबा सबको अपने साथ समेट ले गई थी। उस दिन उसे समझ नहीं आया कि वो इस बात के लिए खुश हो कि अगर यहाँ रहता तो वो भी बाढ़ की चपेट में आ जाता या फिर इसके लिए वह दुखी हो कि अब वो अनाथ हो गया है?

उस दिन जो मनोज अपने गांव से लौटा वो कोई और ही था। उसने इस काम को ही अपना सबकुछ मान लिया जिसकी वजह से उसने अपना सब कुछ गंवाया था। ज़िदगी के अलग अलग पड़ाव पर उसे बदलने के कई मौके मिले लेकिन वो बस अपने काम को देखता रहा, उसी की पूजा करता रहा। उसे फ़र्क़ नहीं पड़ता था उसे दिन की शिफ्ट मिले रात की मिले या उसे छुट्टी वाले दिन भी बुला लिया जाये। 

आज वही सब घूम के उनके सामने एक सपने का रूप लेकर आता है। ये सपना कुछ साल पहले तब आना शुरू हुआ था जब gallbladder के ऑपरेशन के वक्त उन्हें काम से दूर रहना पड़ा था लेकिन काम पर लौटते ही वो सपना दिखना बंद हो गया। अब ये सपना फिर से तब लौटा है जब उनके रिटायरमेंट की बात सामने आई है। रिटायरमेंट में अब बस एक हफ्ता बाक़ी है लेकिन मनोज ने दिन गिनना छोड़ दिया है। अंदाज़ा उन्हें भी है कि अब उनके पास यहाँ ज़्यादा टाइम नहीं बचा लेकिन वो ध्यान नहीं देना चाहते। हर रोज़ पसीने से लतपथ उठते हैं। ड्रेस पहन कर तैयार होते हैं। नाश्ता करते हैं और ऑफ़ीस आ कर अपने काम में लग जाते हैं। 

उनके जाने के बाद काम में होने वाले बदलाव शुरू हो चुके थे। गुप्ता जी ने बताया था पिछले साल का joinee राकेश, मनोज के बाद कुर्सी पर बैठेगा। वो उससे कुछ बातें पूछना चाहता था लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही मनोज से बात करने की इसलिए उसने गुप्ता जी से सिफारिश लगवायी थी। मनोज ने कहा अभी वो इस बारे में कोई बात नहीं कर सकते लेकिन जाने से पहले वो उसे ख़ुद बुला कर सब सिखा देंगे। 

गुप्ता जी ने हमेशा मनोज की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाये रखा था लेकिन मनोज ही थे जिन्होंने उन्हें सिर्फ़ अपना सहकर्मी ही समझा। गुप्ता जी को सब पता होता था कि कब मनोज परेशान है और कब खुश है। दूसरों के लिए उनकी फ़िलिंग्स जान पाना बहुत मुश्किल था क्योंकि उनके अंदर जो भी चल रहा हो उनका चेहरा हमेशा एक जैसा ही रहता था हालांकि उन्होंने आज तक किसी से चिढ़ कर या गुस्से में बात नहीं की। फिर भी सबको लगता था कि उनसे बात करना सही नहीं क्योंकि वो हर वक्त चिढ़े रहते हैं जबकि वो तो बस अपने काम में लगे रहते थे। 

गुप्ता जी अब भी समझ रहे थे कि उनके अंदर क्या चल रहा है इसलिए उन्होंने मनोज से कहा कि अब तो वो जाने वाले हैं। जाने से पहले उसकी सालों की एक तमन्ना पूरी कर दें। मनोज ने पूछा कि ऐसा क्या है जिसके लिए उन्हें इतना लंबा इंतज़ार करना पड़ा? गुप्ता जी ने कहा वो उनके साथ एक कप चाय पीना चाहते हैं लेकिन सहकर्मी बन कर नहीं बल्कि उनके दोस्त बन कर। मनोज का बिल्कुल जाने का मन नहीं था लेकिन वो यहाँ से जाते जाते किसी का दिल नहीं दुखाना चाहते थे इसलिए वो गुप्ता जी के साथ चाय पीने कैंटीन की और चल दिए। मनोज कुर्सी पर बैठे थे, गुप्ता जी ने दो स्पेशल चाय ला कर टेबल पर रख दी। 

कुछ मिनट गुज़र गए लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। इस चुप्पी को तोड़ते हुए गुप्ता जी ने कहा कि उसे दोस्त की तरह चाय पीनी थी और दोस्त चुप चाप नहीं बैठते। मनोज ने गुप्ता जी से कहा कि जिन्हें दोस्ती का experience होगा वही जानेंगे कि दोस्त क्या करते हैं! वो तो उम्र भर अकेले ही रहे फिर उन्हें भला कैसे पता हो? गुप्ता जी ने कहा बस यही अकेलापन ही है जो उनका मोह इस नौकरी से नहीं टूटने देना चाहता। गुप्ता जी ने आगे कहा कि जितने साल उन्होंने काम किया उतने साल तक काम के लिए इतनी शिद्दत कोई नहीं बनाए रख सकता। जब काम का वक्त था तब उन्होंने काम में मन लगाया, वो उसमें डूब गए लेकिन अब वक्त की माँग है कि वो ये जॉब छोड़ दें। वक्त के आगे भला किसकी चली है? ये फरमान कोई और नहीं बल्कि वक्त ही भेजता है। जब वो अपने काम के लिए थैंकफुल हैं तो अब उन्हें जो मिल रहा है उसके लिए भी उन्हें थैंकफुल होना चाहिए। 

मनोज आमतौर पर इन सबके बारे में किसी से बात नहीं करते लेकिन आज गुप्ता जी की बातें उन्हें बुरी नहीं लग रही थीं और वो भी कुछ कहना चाहते थे। उन्होंने कहा कि यही तो दिक्कत है कि उन्हें पता ही नहीं वो इसके अलावा और करेंगे भी क्या? गुप्ता जी ने पूछा कि क्या बचपन में उन्हें पता था कि वो क्या करेंगे? ये भी हो सकता था कि वो किसान बन जाते या कोई और काम करते लेकिन जब नियति को लगा कि उन्हें ये काम देना चाहिए तो उसने दिया। यहाँ से निकलने के बाद भी नियति ज़रूर तय करेगी कि उन्हें आगे क्या करना है? गुप्ता जी ने कहा कि सोचिए ज़मीन पर रहने वाले अगर ज़मीन तक ही सीमित रह जाते तो क्या इंसान चांद या समंदर को खोज पाता? जब तक हम एक जगह छोड़ेंगे नहीं तब तक दूसरी जगह पहुँचेंगे कैसे? गुप्ता जी ने अपनी बात ये कहते हुए खत्म की कि वो जानते हैं उनके बीच कोई दोस्ती नहीं है इसलिए उनकी बातों का उन पर शायद कोई असर ना हो लेकिन जब भी उन्हें खाली समय मिले वो इस बारे में ज़रूर सोचें और आँख बंद कर के आगे बढ़ें, उनके लिए नया रास्ता इंतज़ार में है। 

दोनों ने अपनी अपनी चाय खत्म कर ली थी। मनोज रिटायरमेंट के बारे में नहीं सोच रहे थे लेकिन उनके आसपास का माहौल उन्हें सोचने पर मजबूर कर रहा था। हर कोई उनके रिटायरमेंट के बारे में बात कर रहा था। वो अभी भी अपने काम में लगे हुए हैं। अनाउंसमेंट के संगीत में ख़ुद को डुबा रहे हैं। बाकियों के लिए उनके रिटायरमेंट में बस दो दिन बाक़ी हैं लेकिन उनके लिए पूरे 48 घंटे बचे हुए हैं जिस में वो ज़्यादा से ज़्यादा काम करना चाहते हैं। वो जब जब अनाउंसमेंट कर रहे हैं उन्हें लग रहा है उन्हें नई ऊर्जा मिल गई है। सच उनके जितना क़रीब आ रहा है वो सच से उतना ही दूर भागने की कोशिश कर रहे हैं। 

मनोज बहुत अच्छे से सुन पा रहे हैं कि उनके सहकर्मी उनके सम्मान में फेयरवेल की planning कर रहे हैं लेकिन उन्हें उससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वो हर एक बात नज़रअंदाज़ करते रहे। तभी गुप्ता जी को station मास्टर के ऑफ़िस में बुलाया गया और उन्हें एक ज़िम्मेदारी सौंपी। वो सालों से मनोज के पास बैठते आए हैं इसलिए ये जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई थी। उनके हाथ में एक letter था। गुप्ता जी ने भारी मन से मनोज को कुछ बताना चाहा लेकिन उन्होंने ये कह कर टाल दिया कि उन्हें फ़िलहाल announcement करनी हैं। उसके बाद वो उनकी बात सुन लेंगे। गुप्ता जी इससे आगे कुछ कह नहीं पाये। वो बस मनोज की announcement सुनते रहे। उनकी आवाज़ में आज भी रत्ती भर फ़र्क़ नहीं आया था। आवाज़ में अब भी वही बुलंदी है जो शुरुआती दिनों में हुआ करती थी। 

दो घंटे बाद मनोज वापस लौटे। गुप्ता जी अभी भी वहीं खड़े थे। अपने सच से भाग रहे मनोज ने गुप्ता जी से पूछ लिए कि उन्हें उनसे क्या काम है जिसके बाद गुप्ता जी ने उस सच को मनोज के हाथों में थमा दिया जिससे वो इतने दिनों से भाग रहे थे। 

ये उनका रिटायरमेंट letter था। 

उसे पढ़ते हुए उनके हाथ कांप रहे थे और आँखों से आंसुओं के बहने की लगातार कोशिश हो रही थी। उनका बस चलता तो वो अभी के अभी रो देते लेकिन मनोज ने ख़ुद पर कंट्रोल बनाए रखा। उनके हाथ में रिटायरमेंट letter देखते ही उन्हें बधाई देने वालों की भीड़ जमा हो गई। 

उन्हें सबने मिल कर बताया कि उनके लिए फेयरवेल पार्टी रखी गई है। मनोज का मन हुआ कि वो अभी सब पर चिल्ला दें और कहें कि उनका घर छूट रहा है और उन्हें पार्टी की पड़ी है? वो चाहते थे कि वो चीखें और कहें कि उन्हें कोई भी फेयरवेल नहीं चाहिए लेकिन वो ऐसा नहीं कर सकते। वो अपने आँसुओं को छुपा कर सबकी बधाई का थैंक यू में जवाब देने लगे। एक गुप्ता जी ही थे जो इस समय मनोज के दिल का हाल समझ रहे थे लेकिन वो इस मामले में कुछ नहीं कर सकते थे। 

क्या मनोज अपनी नई ज़िंदगी के लिए तैयार हैं? क्या वो अपनी फेयरवेल पार्टी में शामिल होंगे? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।   

 

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.