मनोज देसाई रिटायर हो चुके हैं। अब उनके पास करने के लिए कोई खास काम नहीं है। दिन भर के काम निपटाने के बाद भी उनके पास पूरे दिन का समय खाली बच जाता है। उन्होंने इस ख़ाली समय को शराब के नशे से भरने की भी कोशिश की लेकिन इस शराब ने उन्हें सीधा हॉस्पिटल पहुंचा दिया। जहाँ डॉक्टर ने उन्हें सबसे पहली सलाह दी कि वो बाहरी दुनिया में घुलें मिलें। लोगों के बारे में जानें और जैसे दुनिया जीती है वैसे जीने की आदत डालें। मनोज को डॉक्टर की बातें सही लगीं और उन्होंने मॉर्निंग वॉक पर जाने का फैसला किया।
यहीं उनकी मुलाक़ात पिंकी रस्तोगी से हुई। पिंकी योगा टीचर हैं और वो अपनी क्लास ले रही थीं जहाँ लाफ्टर सेशन चल रहा था। मनोज को लगा कि उनकी क्लास लेने वाले सभी लोग उन्हें देख कर हंस रहे हैं। जिससे वो चिढ़ गए। पिंकी ने उनके चेहरे की उदासी और खीज को पढ़ लिया था। वो उनके पास गईं, दोस्ती का हाथ बढ़ाया मगर मनोज ने इस दोस्ती के ऑफ़र को मंज़ूर नहीं किया। शायद उन्हें पता ही नहीं कि दोस्ती की कैसे जाती है। उन्हें 55 साल की पिंकी के कपड़ों से भी दिक्कत है। पिंकी उनसे बातें कर रही थीं लेकिन उन्होंने अपना मुँह दूसरी तरफ़ घुमा लिया। ये पिंकी के नेचर में है, वो उदास लोगों को किसी ना किसी बहाने थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन ख़ुशी देना चाहती है।
उसे लगता है कि उदास लोगों के साथ अगर वो थोड़ा वक़्त बिताएगी तो उन्हें अच्छा फ़ील होगा। उसकी ये सोच पहले हमेशा काम आई है। इस तरह उसको कई नए दोस्त भी मिले और अपनी योगा क्लास के लिए कई नए स्टूडेंट्स भी हालांकि स्टूडेंट्स मिलना उनका बोनस है क्योंकि वो इसके लिए लोगों से नहीं मिलती। उन्हें तो बस उन उदास लोगों को ख़ुशी देनी होती है मगर आज उनकी सोच एक ऐसे इंसान के आगे ग़लत साबित हो रही थी जिसे बाहरी दुनिया के बारे में ज़्यादा कुछ पता ही नहीं था। इसी शहर और आम लोगों के बीच में रह कर भी मनोज ऐसे थे जैसे उनका जीवन मोगली की तरह इंसानी सभ्यता से कोसों दूर बीता हो।
पिंकी ने मनोज को अच्छी बात ही कहीं थी लेकिन उसे समझ नहीं आया कि जब तक उसने गर्दन घुमायी तब तक मनोज कहाँ ग़ायब हो गए। चारों तरफ़ नज़रें दौड़ाने के बाद उन्होंने देखा कि मनोज पार्क के गेट से बाहर की तरफ़ जा रहे थे। उसे समझ नहीं आया कि आख़िर उसने ऐसा क्या कह दिया जिससे नाराज हो कर ये अजनबी ऐसे अचानक चला गया? उन्हें लगने लगा कि शायद ऐसे ही किसी अनजान के पास बैठ कर उनका बातें करना बहुत से लोगों को पसंद ना आता हो। पिंकी के साथ ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई इंसान उनसे बात किए बिना भाग गया हो हालांकि पिंकी ज़िंदादिल लेडी थीं उन्हें अभी भी अपने लिए उतना बुरा नहीं लग रहा था।
राजू चायवाला इस पार्क का सीसीटीवी कैमरा था। उस पर ज़्यादा लोगों की नज़र नहीं थी मगर उसकी नज़र सब पर बनी रहती थी। उसे पता था कि कौन सा लड़का सुबह सुबह अपनी नींद ख़राब कर किस लड़की के लिए पार्क में आता था। उसे पता था कि कौन से अंकल और आँटी कौन सी सोसाइटी से आते हैं, और तो और उसे लोगों का रूटीन भी पता था। वो ख़ुद से ही शर्त लगाता रहता था कि ये बंदा इतने राउंड दौड़ेगा, ये अब थक कर कहाँ बैठेगा। अपने काम के साथ साथ दूसरों पर नज़र रखना उसकी खूबी भी थी और शौक भी। जो कोई भी उसके पास चाय पीने आता, उससे वो कहता “क्या बात है सर आज दो राउंड कम दौड़े?” लोग भी ये सुन कर हैरान रह जाते थे।
आज उसकी नज़रें स्पेशली मनोज पर जमी हुई थीं। उसने सब देखा था। जब वो चिढ़ कर पार्क से बाहर निकले तब उसने उन्हें आवाज़ भी दी लेकिन उन्होंने सुनी नहीं और अपने घर की तरफ़ निकल गए। घर पहुँच कर मनोज बेमन सारे काम खत्म करने लगे लेकिन हर रोज़ की तरह वो कुछ घंटों बाद फिर से फ्री हो गए। उनके दिमाग़ में आज पार्क ही घूम रहा था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उन्होंने उस लेडी के साथ ऐसे बेरुख़ी से बिहेव कर के सही किया या नहीं? वो ये मानने लगे थे कि बाहरी दुनिया उनके लिए नहीं बनी। उनका मन हुआ कि वो फिर से शराब की बोतल खोल लें लेकिन उन्होंने ख़ुद को रोका।
बहुत सोचने के बाद उनके दिमाग़ में आया कि स्टेशन से भले उनकी विदायी हो चुकी है लेकिन वो अपने मन से तो वहां टाइम बिताने जा ही सकते हैं अगर उन्हें बाहरी दुनिया में घुलना मिलना ही है तो क्यों ना वो अपने रेलवे के colleagues के साथ ये शुरुआत करें? जो लोग उन्हें अपना दोस्त बताते थे उनके साथ जा कर एक एक कप चाय पिए और उनसे बातें करें। वैसे भी तो सब उनकी कितनी रिस्पेक्ट करते थे। उन्हें ये आइडिया पसंद आया। वो जल्दी से तैयार हुए और स्टेशन के लिए निकल गए। आज स्टेशन जाते हुए उन्हें पहले जैसी फीलिंग नहीं आ रही थी फिर भी वो बाक़ी दिनों से बेहतर महसूस कर रहे थे।
स्टेशन पहुंचते ही वहां की भीड़, इंजन की आवाज़, लोगों का शोर ये सब ऐसे सुकून दे रहा था जैसे चाय के शौक़ीन को दिनभर के बाद एक अदरक वाली चाय मिल गई हो और उसके पूरे दिन की थकान छू मंतर हो गई हो। मनोज का भी मेंटल स्ट्रेस कुछ देर के लिए ऐसे ही ग़ायब हो गया। पूरे स्टेशन को निहारने के बाद वो उस तरफ़ बढ़े जहाँ उनका ऑफ़िस था। उन्होंने सोच लिया था कि आज उन्हें जो भी मिलेगा वो उसे गले लगाकर मिलेंगे और चाय पर चलने के लिए बोलेंगे। अंदर जाते ही उन्हें वहां का माहौल बहुत अलग दिखने लगा। उनकी कुर्सी पर कोई नया लड़का बैठा था। किसी ने उनको नोटिस तक नहीं किया, जिनसे उनकी नज़रें मिलीं उन सबने हल्का मुस्कुरा कर formality सी की और फिर से अपने काम में लग गया। गुप्ता जी की कुर्सी ख़ाली थी इसका मतलब आज वो छुट्टी पर थे और बाक़ी किसी ने उन्हें भाव तक नहीं दिया। ये सब देख उन्हें धक्का लगा। उन्होंने एक दो लोगों के पास जाकर बैठने की कोशिश भी की लेकिन सबने हाय हेलो के आगे कोई बात ही नहीं की।
अंत में हार कर वो ऑफ़िस से बाहर चले आए। अब उनके कानों में वो आवाज़ पड़ी जिस पर सिर्फ़ उनका हक हुआ करता था। ‘यात्री गण कृपया ध्यान दें…’ ये आवाज़ सुन कर उनका मुँह ऐसे बन गया जैसे रफ़ी साहब ने अपनी जगह किसी बेसुरे को गाते सुन लिया हो। उस आवाज़ में लय ही नहीं थी जो यात्रियों को बाँध सके। उनका मन हुआ कि वो जाएं और इस अनाउंसमेंट करने वाले को खूब सुनायें और समझायें कि अनाउंसमेंट ऐसे नहीं की जाती। ये भी संगीत की तरह ही है जिसके अपने सुर और ताल हैं। ऐसे बोला जाता है कि सुनने वाला कान खड़े कर ले कि आख़िर अनाउंसमेंट हो किस ट्रेन की रही है लेकिन वो समझ गए कि उनका ऐसा करना सही नहीं है। उनका अब इस स्टेशन, इस अनाउंसमेंट रूम या यहाँ के लोगों से अब कोई लेना देना नहीं है।
यही सोच कर वो वापस अपने क्वाटर लौट गए। जाते हुए वो जितने जोश में थे आते हुए उतने ही मायूस। घर आ कर वही अकेलापन, वही खीज और वही अफ़सोस, इन्हीं सब ने उन्हें फिर से घेर लिया। उन्हें अब समझ आ रहा था कि ये उनकी लाइफ़ का यू टर्न है। उन्हें अब अपना रास्ता ख़ुद चुनना होगा। वो अगर अपनी पुरानी ज़िंदगी से ही जुड़े रहने की कोशिश करते रहे तो उनके हाथ कुछ नहीं आयेगा सिवाये मायूसी के। घूम कर उनका ध्यान फिर से शराब की तरफ़ ही गया। उनके अंदर शराब पीने और ना पीने को लेकर एक जंग छिड़ने लगी और आख़िरकार शराब जीत गई। उन्होंने बालकॉनी में अपनी कुर्सी और टेबल लगाए। बैग में पड़ी आख़िरी बोतल शराब की निकाली और अकेले ही महफ़िल सजा कर बैठ गए। हाँ, इस बार अलग ये था कि उन्होंने ख़ुद को कंपनी देने के लिए एक imaginary दोस्त बना लिया था, जिसका ना कोई नाम था ना कोई किरदार। उन्होंने उसके लिए भी एक पेग बनाया और सामने ख़ाली कुर्सी को देखते हुए मन ही मन उससे बातें करने लगे। उन्होंने पहले अपना पेग उठाया और फिर अपने imaginary दोस्त का पेग।
वो बालकनी से पूरी सोसाइटी को देख रहे थे। कोई अपने बच्चों के साथ टहलने निकला था तो कोई अपनी फैमिली के साथ कहीं बाहर जा रहा था। मनोज को लगने लगा कि परिवार ना बसाना उनकी सबसे बड़ी गलती थी। भले ही उनको उनके काम से बहुत प्यार था लेकिन आज अगर कोई होता तो कम से कम उनकी बातें तो सुन पाता। उन्हें समझ आता है कि उनका अकेलापन इस लेवल तक पहुँच चुका था कि उन्हें imaginary दोस्त बनाना पड़ रहा है। कुछ देर के बाद जब नशा चढ़ा तो मनोज अपने उस ख्याली दोस्त से ही बातें करने लगे।
मनोज (नशे में)- वो मिश्रा, मेरे आगे पीछे दौड़ता था। मैं एक बार उसको टोक देता, तो वो ख़ुद को धन्य मानने लगता था। आज उसने मुझसे एक बार बात.. बात तक नहीं की। वो लड़के जो मुझे सर सर कहते नहीं थकते थे आज मुझे उन्होंने नमस्ते तक नहीं कहा और तुमने उस अनाउंसमेंट वाले की आवाज़ सुनी ना? ऐसा लग रहा था जैसे कोई सब्जी बेचने वाले को बिठा दिया हो। तुम सच सच बताओ क्या मेरी आवाज़ की बराबरी कोई कर सकता है? याद है ना जब मैं बोलता था तो लोग कैसे खड़े होकर सुनते थे। यार, मेरी आवाज़ में वो फ़ील होती थी जो किसी को भी बांध ले। मैंने उसे कभी काम नहीं बल्कि साधना माना था। ये आज कल के लड़के तो बस उसे काम की तरह ही कर रहे हैं। रेलवे वालों को भी जल्दी अहसास होगा कि उन्होंने किस नगीने को खोया है। बताओं मैं ग़लत कह रहा हूँ? बोलो? जवाब दो, तुम मेरे दोस्त हो ना, मुझे सही ग़लत बताओ। क्या मैं ग़लत हूँ? बोलो…
ये सब बोलते हुए मनोज कब वहीं बालकनी में कुर्सी पर ही सो गए उन्हें ख़ुद पता नहीं चला। शराब के नशे में वो नींद में भी बड़बड़ाते ही रहे। वो बार बार अपने ख़याली दोस्त से पूछ रहे थे कि क्या उन्होंने कुछ ग़लत कहा? क्या वो इस काबिल नहीं थे कि उन्हें कुछ साल और अनाउंसमेंट के लिए रखा जाता, उन्हें निकालने की क्या जल्दी मची थी? उन्हें लग रहा था कि उनको निकल कर रेलवे वाले पछतायेंगे लेकिन उन्हें क्या पता कि ना किसी को उनकी परवाह है और ना उनकी आवाज़ की। उनकी आवाज़ भी उनकी पहचान तभी तक थी जबतक वो वहां काम कर रहे थे। काम खत्म होते ही उनकी आवाज़ भी लोगों के ज़हन से उतर गई। अब वो बस एक बूढ़े और रिटायर शख्स हैं जिनका इस दुनिया में अकेलेपन के सिवा कोई दूसरा नहीं।
आख़िर मनोज अपने इस अकेलेपन से कैसे बचेंगे? क्या उनके भी दोस्त बन पाएंगे या फिर ये शराब उन्हें ले डूबेगी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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