आधी रात जयगढ़ के सीटी हॉस्पिटल में हुए हमले की खबर ने जहां एक तरफ मीडिया में हाहकार मचा दिया। तो वहीं दूसरी ओर रिया और विराज लगातार गजेन्द्र को प्रोटेक्ट कर रहे थे, क्योंकि वो जानते थे ये हमला गजेन्द्र को मौत की नींद सुलाने के इरादे से किया गया है।
हमले के हंगामे की आवाज आते ही विराज जहां दुश्मनों को गजेन्द्र के कमरे के बाहर ही निपटाने के इरादे से बाहर जाता है, तो वहीं अंदर से रिया के जोर से चिल्लाने की आवाज आती है, “गजेन्द्र…!”
रिया की चीख ने जैसे पूरे अस्पताल को झकझोर दिया। उसी पल ऑपरेशन वार्ड के बाहर गोलियों की आवाज़ फिर से गूंज उठी। विराज दौड़ता हुआ आया और उसने तुरंत रिया को पीछे खींचा और दरवाज़े की ओर उड़ते हुए पंक्षी के तरह दौड़ पड़ा, लेकिन जैसे ही वो दरवाज़ा खोलने ही वाला था, अंदर से डॉक्टर की तेज़ चीखने की आवाज आई— “कोई भी अंदर नहीं आएगा! मरीज की हालत फिर से बिगड़ रही है!”
विराज, रिया का हाथ थामें वहीं खड़ा हो गया और तब तक अस्पताल के गार्डस की टीम ने भी मोर्चा संभाल लिया था। रिया अब भी गजेन्द्र के बेहोश शरीर के पास फर्श पर बैठी थी, उसका हाथ थामे हुए, और धीरे-धीरे बुदबुदा रही थी— “तुम्हें वापस आना होगा गजेन्द्र, हमें अभी बहुत कुछ साबित करना है…और साथ जीना भी तो है, तुमने मुझसे वादा किया था।”
अस्पताल के बाहर पुलिस पहुंच चुकी थी, और सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी। लेकिन जो खतरे की आहट थी, वो अब सिर चढ़कर बोल रही थी। ऐसे में विराज कोई लापरवाही नहीं चाहता था, तो उसने अपने आदमियों को गजेन्द्र के कमरे के बाहर निगरानी में लगा दिया।
दूसरी ओर, महल में राजसभा के भीतर अब तक सन्नाटा पसरा हुआ था। जादूगर बाबा और मुक्तेश्वर की ओर हर आंख टिक चुकी थी। गजराज सिंह की डायरी ने जैसे एक साथ कई आत्माओं को भीतर से झकझोर दिया था, लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी हवा में लटका था।
क्या ये सब कानूनी तौर पर किसी फैसले तक पहुंचेगा? और क्या राज राजेश्वर की सबके सामने पेश की हुई नकली विरासत की कॉपी का खुलासा हो पायेगा? और बीस साल पहले जो-जो कांड गजराज और उसके छोटे बेटे राज राजेश्वर ने किये उसका खुलासा होगा?
उसी वक्त, राजसभा से बाहर निकलते हुए, विराज का मैसेज मुक्तेश्वर के फोन पर दुबारा आया। मुक्तेशवर ने तुरंत खोलकर उसे पढ़ना शुरु कर दिया— “अंकल, हमे अब भावनाओं से नहीं, सबूतो के साथ लड़ना होगा। गजेन्द्र के केस की बहुत बारिकी और खामोशी से जांच करनी होगी। मैं रेसिंग बोर्ड के खिलाफ एक नई याचिका तैयार कर रहा हूं, क्योंकि अब अगर ये केस हमने नहीं सुलझाया तो गजेन्द्र के दुश्मन उसे मार डालेंगे।”
मुक्तेश्वर ने फोन देखा, मैसेज पढ़ा तो एक पल के लिये घबरा गया, लेकिन दूसरे ही पल वो खुद से बाते करने लगा, कि जिसके पास विराज जैसा दोस्त और रिया जैसा प्यार है उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। इतना कह वो हल्की मुस्कान के साथ बोला— “अब लड़ाई अदालत की चौखट पर होगी… और मुझे अपने बेटे और उसके दोस्तों पर भरोसा है।”
वहीं अगले दिन की सुबह की दस्तक के साथ ही विराज, जयगढ़ के सर्वोच्च न्यायपालिका में पहुंच चुका था। उसके हाथों में कई पुरानी फाइलें और इस केस से जुड़े दस्तावेज थे, जिसमें रेसिंग क्लब की लापरवाही, CCTV फुटेज में छेड़छाड़ के सबूत, और गजेन्द्र के विरोध में दिए गए झूठे गवाहों के बयानों में अंतर के साथ-साथ उस पर अस्पताल में हुए हमले का वीडियो भी मौजूद था। उन सबको कोर्ट में जज के सामने रखते हुए विराज ने अपनी याचिका दायर की।
"The Royal Frame-up: Petition for Reinvestigation under Article 226"
विराज के सारे सबूत देख जज की आंखे भी फटी की फटी रह गई। साथ ही वहां मौजूद बाकी लोग भी दंग रह गए। तभी विराज दुबारा बोला—
“माई लॉर्ड्स, गजेन्द्र मुक्तेश्वर सिंह को हॉर्स रेस फिक्सिंग का मास्टरमाइंड बताकर गिरफ्तार किया गया, जबकि असल साजिश उस रेस के चार दिन पहले ही रची जा चुकी थी। इस केस की पुन: जांच न केवल इस व्यक्ति के सम्मान का सवाल है, बल्कि पूरे रेसिंग सिस्टम की पारदर्शिता का भी सवाल है। उस पर कानून भी कहता है, भले के 100 गुनहगार छूट जाये पर किसी 1 बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए।”
इसके बाद जो दलीले कोर्ट के सामने विराज ने पेश की, उसे सुन जज ने तुरंत अपना फैसला सुना दिया और केस को "अर्जेंट हियरिंग" में डाल दिया और अगले सात दिनों के अंदर रेसिंग बोर्ड से सबूतों के साथ छेड़छाड़ के मामले में जवाब भी मांगा।
कोर्ट के इस फरमान ने ना सिर्फ विराज को सुकून दिया, बल्कि साथ ही गजेन्द्र को इंसाफ दिलाने की उस आस को और भी मजबूत कर दिया, जो वो पिछले एक साल से देख रहा था। अदालत से बाहर निकलते वक्त विराज की आंखों में वही आग थी, जो अब गजेन्द्र के लिए इंसाफ की लौ बनकर साबित होने वाली थी।
दूसरी ओर जयगढ़ सिटी हॉस्पिटल के ऑपरेशन वार्ड में लेटे गजेन्द्र ने फाइनली आंखे खोलीं। लेकिन लंबे समय तक आंखे बंद होने की वजह से वह कमरे की दीवारों पर पड़ी हल्की रोशनी से चौंक गया। तभी उसने अपने बाई तरफ के टेबल पर रखी एक नोटबुक देखी, जो देखने में जयगढ़ जेल की ही लग रही थी, क्योंकि उसपर जेल के साथ-साथ कैदी नंबर-40 लिखा था, ये नंबर किसी और का नहीं, ब्लकि उसका खुद का था। गजेन्द्र ने कांपते हाथों से उसे उठाया, और पहले पन्ने पर लिखा—
Day 1
यहां वक़्त ठहर गया है, लेकिन मेरा नाम अब भी चल रहा है… बतौर गुनहगार। जब तक ये भ्रम टूटेगा, मैं रोज़ इन पन्नों पर अपने भीतर की सच्चाई उतारता रहूंगा। और भले ही ये दुनिया मुझे देशद्रोही और रेस फिक्सिंग किंग कहे, पर मैं मेरा सच जानता हूं… मैं बेगुनाह हूं और एक दिन जरूर साबित होगा मेरा सच।”
ऐसे ही वक्त बीतता गया और तीन दिन में गजेन्द्र पूरी तरह ठीक होकर वापस जयगढ़ जेल भेज दिया गया। जहां जेल के डॉक्टर उसका ख्याल रखते और विराज की दायर याचिका के बाद अब जेल में पुलिस भी गजेन्द्र की खास निगरानी रखती थी। क्योंकि अगर इस बार गजेन्द्र को जेल परिसर के अंदर एक खरोच भी आती, तो उसमें तैनात सारे पुलिस वालों की नौकरी चली जाती।
हर रात, जब जेल की लाइटें बंद हो जातीं, तो गजेन्द्र अपनी जेल डायरी में वो सब लिखता, जो उससे छीना गया। जैसे- उसकी आज़ादी, उसकी इज्ज़त, और वो प्रेम जिसकी खातिर उसने दुनिया से टकराना चाहा था, लेकिन इन सबके बीच उसे एक सुकून था कि उसे विराज जैसा दोस्त और रिया जैसा सच्चा प्यार मिल गया था। उस पर अब उसके पापा मुक्तेश्वर जो पिछले बीस सालों से अपने परिवार की साजिशों को खामोशी से झेल रहे थे, वो अब अपने लिए लड़ना और इंसाफ मांगना सीख गए थे।
Day 4
आज गजेन्द्र ने अपनी डायरी में खुद से ही कई सवाल किए…
किसी ने पूछा, क्या तुमने वाकई फिक्सिंग की थी?
मैंने जवाब दिया— नहीं।
पर क्या फर्क पड़ता है, जब दुनिया ने फैसला कर लिया है, कि मैं दोषी हूं।”
उस डायरी के शब्द अब दस्तावेज़ बनते जा रहे थे, कोर्ट के लिए नहीं बल्कि इंसानों की उस अदालत में जहां शायद इसे लोग गजेन्द्र की आजादी और उसकी बेगुनाही के बाद पढ़ेंगे।
महल में दूसरी ओर राज राजेश्वर का गुस्सा अब उबाल पर था, और वो जादूगर बाबा की लाई उस लाल डायरी के बारें में सोच खुद से ही बाते कर रहा था— “अगर वो डायरी अदालत पहुंच गई, तो न मैं राजा रहूंगा, न इस राजघराना का वारिस…उस पर मेरे और भीखू के रिश्ते का सच भी सामने आ जायेगा। और जमींन में गाड़ी उस औरत के सच को भी पुलिस खोद-खोद कर बाहर निकालेगी।”
राज राजेश्वर अब भीखू को अपने सबसे बड़े हथियार की तरह इस्तेमाल करने की साजिश रच रहा था, पर उसे ये नहीं पता था कि भीखू ने अब दोहरा खेल शुरू कर दिया है। उस रात राजघराना महल के पीछे बने जंगल की जमींन में गाड़ी गई उस औरत की लाश यूं ही गायब नहीं हुई थी, बल्कि उसके पीछे बहुत बड़ी साजिश थी।
वहीं आज रात जो खेल भीखू ने खेला, वो राज राजेश्वर ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। दरअसल भीखू ने आधी रात रिया को चुपके से फोन किया और कहा— “शायद तुम्हें वो लड़की मिल जाए जिसे शारदा ने जन्म दिया था… अनाथालय में… साल 1985।”
"मैं जानती हूं उस लड़की को वो रेनू है।"
भीखू ने तुरंत पलटकर कहा— "लेकिन अगर रेनू को सबूतों के साथ इस राजघराना की बेटी साबित करना चाहती हो, तो तुम्हें उस अनाथआलय जाना ही होगा। और वहां तुम्हें सिर्फ रेनू के बाप का नाम ही नहीं, बल्कि और भी कुछ ऐसा मिलेगा… जो तुम्हारे लिए बहुत ज्यादा जरूरी है। बाकी तुम्हारी मर्जी...”
भीखू की बातों ने रिया के जहन में हजार सवाल खड़े कर दिये। ऐसे में अगली सुबह का सूरज उगते ही रिया कार में सवार हो तुरंत उस अनाथालय के लिए निकल पड़ी। हिमाचल के पहाड़ों के जंगलों में बने उस अनाथालय का पता लगाना रिया के लिए किसी जंग से कम नहीं था, लेकिन आखिरकार वो वहां पहुंच गई। जहां बहुत खोजबीन के बाद रिया के हाथ एक पुराना रिकॉर्ड लगा, जिस पर बस इतना लिखा था—
“रेनू” – जन्म तिथि: 12 जून 1985
माता का नाम- अज्ञात।
पिता का नाम- अज्ञात।
जन्म स्थान- राजघराना।
रिया की आंखें भर आईं और वो खुद से बड़बड़ाते हुए बोलीं— “तो रेनू… गजेन्द्र की सौतेली बुआ नहीं, सौतेली बुआ की आड़ में असली वारिस कहलाने की हकदार भी है… यानि अब तक वो जो कुछ कह रही थी, सब सच था।”
ये सब देख रिया दंग रह गई, लेकिन असल झटका तो उसे तब लगा जब उसे रेनू के जन्म के कपड़ों के साथ एक चिट्ठी मिली। अनाथालय की मालकिन ने बताया कि रेनू जब वहां उस अनाथालय में आई तो उसके साथ ये चिट्ठी भी थी।
दूसरी ओर वापस जेल में गजेन्द्र की हालत एक बार फिर बिगड़ने लगी थी, क्योंकि उसके कमर के पीछे का टाका अचानक से टूट गया था। ऐसे में उसके शरीर से एकाएक तेज खून की धार बहने लगी, जिसकी वजह से वो अचानक से बेहोश हो गया। वहां मौजूद पुलिस वालों ने तुंरत जेल के डाक्टरों को फोन कर बुलाया, और गजेन्द्र की हालत की जानकारी दी।
डॉक्टर तुरंत उसे जेल के ही अस्पताल में जांच के लिए ले गए। लेकिन जांच के बाद जो राज डॉक्टरों ने खोला उसने पूरे पुलिस महकमें को हिला कर रख दिया। गजेन्द्र को शायद खाने के जरिये धीमा ज़हर दिया जा रहा था, जिसके वजह से उसके ना जख्म ठीक हुए और ना ही उसके ऑपरेशन के टांके पूरी तरह सूखें।
वहीं जब ये खबर जैसे ही विराज को मिली, उसने जेल प्रशासन के खिलाफ भी एक और याचिका दाखिल कर दी। और रिया तो इस खबर को सुनते ही टूट गई, लेकिन अगले ही पल उसने जयगढ़ पुलिस के खिलाफ मीडिया में खबरे चलवा दी।
विराज और रिया अब एक टीम की तरह काम कर रहे थे। एक तरफ कोर्ट की लड़ाई, दूसरी तरफ सच की पड़ताल… उस पर आज जो गजेन्द्र के साथ हुआ उसके बाद तो रिया जैसे भौखला गई और उसने जयगढ़ पुलिस वालों की सच्चाई दुनिया के सामने लाने की कसम खा ली। इसके लिए वो वापस मीडिया चैनल में काम करने के लिए भी लौट गई।
दूसरी ओर महल में अपने ही अतीत से लड़ रहा राज राजेश्वर अब खुद को चारों ओर से घिरा महसूस कर रहा था। गजराज सिंह की हालत अभी भी गंभीर थी, ऐसे में वो अपने पिता को भी दुनिया के सामने अपनी ढ़ाल बनाकर नहीं खड़ा कर सकता था।
लेकिन ना जाने क्यों आज की रात करीब दो बजे गजराज ने अपने एक नौकर को भेज मुक्तेश्वर को बुलवाया और कांपती आवाज़ में कहा— “तू जीत गया मुक्ति… पर एक बात जान ले… गद्दी पर बैठने वाला अक्सर अपने खून के खिलाफ फैसला करता है… ये सज़ा है… और यही इस राजघराने की विरासत है।”
पिता की कांपती आवाज सुन मुक्तेश्वर की आंखें छलछला आईं, लेकिन उसने जवाब में सिर्फ इतना कहा— “अब विरासत इंसाफ होगी… सज़ा नहीं… आपने और राज राजेश्वर ने जो किया, अब भगवान उसका इंसाफ करेगा पिता जी।”
वहीं अगली सुबह कोर्ट की तारीख थी, पूरा राजघराना, मीडिया, जनता—सब कोर्ट में जमा थे।
जहां विराज आज हाथ में गजेन्द्र की डायरी लिए कोर्ट पहुंचा था, और साथ ही वो दस्तावेज़ भी जो साबित करते थे कि CCTV में छेड़छाड़ हुई थी। एक-एक कर विराज ने सारे सबूत कोर्ट के सामने दुबारा पेश किये और साथ ही गजेन्द्र की डायरी भी दी, जो उसने हाल ही में लिखी थी।
जज ने जब गजेन्द्र की डायरी पढ़ी, तो कोर्ट में सन्नाटा छा गया। उन पन्नों पर एक निर्दोष व्यक्ति की कराह, एक सच्चे इंसान का साहस और एक पिता के नाम लिखा एक वाक्य, जो पढ़ने वाले के दिल को चीर कर रख दे— “पापा, अगर मैं आज नहीं बच पाया, तो आप मेरी डायरी को हथियार बनाना, और मुझसे वादा करों की आप मुझे बेगुनाह साबित कर के रहेंगे।”
ये सब पढ़ने के बाद जज ने अपने फैसला लिया और कहा….
“The case of Gajendra Singh is reopened. The arrest is now under judicial review. Court directs CBI to initiate fresh investigation under court supervision.”
यह सुनते ही अदालत में मौजूद भीखू की आंखें नम हो गईं। पर तभी कोर्ट के बाहर भीड़ में से एक नकाबपोश ने गोलियां चला दीं। उसकी इस गोली का लक्ष्य विराज था…
गोलियों की आवाज़ से जहां कोर्ट में अफरा-तफरी मच गई, तो वहीं विराज के बगल में खड़ी रिया चीख पड़ी— “विराज…!”
एक गोली विराज के कंधे में लगी, और वो सीधा नीचे गिर पड़ा। जिसके बाद हमलावर ने दूसरी गोली भा दाग दी। लोग दौड़े, गार्ड्स हमलावर को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे… लेकिन हमलावर ने भागते हुए सिर्फ एक कागज़ पीछे छोड़ा, जिस पर लिखा था…
“अब अगला वारिस भी बचेगा नहीं। विरासत की सज़ा सबको मिलेगी। – R”
क्या विराज बच पाएगा?
क्या गजेन्द्र की बेगुनाही अदालत में साबित हो पायेगी?
ये "R" कौन है, जो हर बार अपने जुर्म के पीछे सबूत छोड़ जाता है?
क्या भीखू का खेल वाकई पलट चुका है?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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