गोलियों की आवाज़ अभी भी अदालत के अंदर गूँज रही थी, और विराज ज़मीन पर गिरा पड़ा था, उसके कंधे से खून बह रहा था। रिया की चीख अभी भी कानों में गूंज रही थी— “विराज…!”

पुलिस की मौजूदगी में कोर्ट के अंदर चली गोलियों ने डर का माहौल बना दिया था। लोग इधर-उधर भाग रहे थे, और इन सबके बीच विराज औंधे मुंह जमीन पर गिरा पड़ा था। उसके कंधे से खून की तेज धार बह रही थी। रिया, यहां वहां चारों तरफ मदद की आस से देख रहीं थी, और तभी दो पुलिस ऑफिसर आये, जिन्होंने विराज को तुरंत उठाया और जयगढ़ सिटी अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करा दिया। 

रिया ने तुरंत विराज को गोली लगने की खबर मुक्तेश्वर को फोन कर दी, जिसके बाद मुक्तेश्वर दौड़कर अस्पताल पहुंचा। इस खतरनाक हमले के बाद, जहाँ एक तरफ विराज की हालत नाज़ुक थी, तो वहीं गजेन्द्र की जंजीरों में जकड़ी हुई कहानी नए मोड़ पर थी।

दरअसल विराज की तरह गजेन्द्र भी इस समय अस्पताल में ही भर्ती था। अंतर बस इतना था, कि विराज जयगढ़ की सीटी हॉस्पिटल में था और गजेन्द्र जयगढ़ जेल के हॉस्पिटल में… क्योंकि कल रात गजेन्द्र की कमर की चोट पर लगे टांके अचानक से टूट गए थे, जिसकी वजह से उसके शरीर से काफी खून बह रहा था। 

विराज और गजेन्द्र दोनों के लिए ये रात काफी दर्दभरी थी। वहीं अगली सुबह रिया विराज से मिलने पहुंची, जहां डॉक्टरों ने उसे बताया कि फिलहाल विराज की हालत थोड़ी स्थिर है, वो चाहे तो उससे मिल सकती है।

रिया अंदर विराज के पास गई और उसके बाई तरफ रखें टेबल पर बैठ गई। धीरे से उसने विराज का बायां हाथ अपने हाथ में लिया और उस पर अपनी उंगलियां फेरते हुए बोली— “मैं जानती हूं विराज, कि तुम गजेन्द्र के केस में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहे हों। क्योकि तुम नहीं चाहते कि मुझे प्यार में फिर से हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन मैंने तुम्हें माफ कर दिया है, हमारा अतीत हमारे बीते कल में ही खत्म हो चुका है। तुम चाहो तो गजेन्द्र का केस छोड़ सकते हो।”

रिया अकेले में बेहोश पड़े विराज का हाथ पकड़ ये सब बड़बड़ा रही थी। हालांकि उसकी इन बातों का क्या मतलब था, ये केवल रिया और विराज ही जानते थे। रिया आगे कुछ कहती उससे पहले उसके फोन पर एक मैसेज आया। उसने फोन खोल कर जैसे ही वो मैसेज देखा, वो चौक गई और बोलीं— “मुझे आज के आज राजघराना महल के इस पुराने नौकर से मिलना होगा, वहीं मुझे इस मैसेज के राज के बारे में बता सकता हैं। और बस एक बार मुझे इस राज़ का पता चल जाये, फिर मैं अकेले ही गजेन्द्र के मैच फिक्सिंग केस की गुत्थी सुलझा लूंगी।”
 
इसके बाद रिया ने बेहोश विराज के माथे पर हाथ फेरते हुए उसे जल्दी ठीक होने के लिए कहा— "जल्दी ठीक हो जाओ विराज, क्योंकि एकलौते तुम ही हो जो कोर्ट के अंदर उन मगरमच्छों से मेरे गजेन्द्र को बचा सकते हो, तब तक मैं ठोस सबूतों को इकट्ठा करती हूं।"

इतना कह रिया वहां से सीधे राजघराना चली गई, जहां हवेली के पुराने खंडहर की ओर बढ़ते हुए रिया के दिल में हजारों सवाल थे। वहां उस खंडहर में रिया की मुलाकात उस नौकर से हुई, जिसका नाम चंद्रपाल था। 65 से 70 साल का वो बूढ़ा नौकर, देखने में काफी ताकतवर लग रहा था। साथ ही उसकी आंखों में अभी भी एक गहरी चमक थी, जैसे उसने राजघराने के तमाम रहस्यों को चुपचाप देखा हो। चंद्रपाल ने खुद बताया कि वो एक दौर में गजेन्द्र के लिए काम किया करता था, जिसकी वजह से लोग उसे गजेन्द्र का दायां हाथ भी कहते थे।

आगे चंद्रपाल ने धीरे से कहा— “मेम साहिब, जो बातें मैं कहने जा रहा हूँ, उन्हें मैंने आज तक कभी किसी के साथ साझा नहीं किया है। ये कहना गलत नहीं होगा कि मैंने ये राज कभी अपने मन में भी नहीं दोहराये हैं।"

इसके बाद जो राज चंद्रपाल ने बताये, उसे सुन रिया के होश ही उड़ गए, वो बोला….

दरअसल मैंने इस राजघराना महल में वो काला दिन भी देखा है, जब गजराज सिंह ने एक काला बहीखाता बनाया था, जिसमें सिंडिकेट डीलिंग की सारी चालें और लेन-देन का पूरा ब्यौरा लिखा था। वहीं केस के हंगामें के समय उन्होंने उसे इसी महल की एक गुप्त आलमारी में छिपा दिया था। बता दू वो काली बहीखाता किताब इस पूरे राजघराने के काले कांडो की कुंजी है।”
 
चंद्रपाल की ये बात सुनते ही रिया की आंखें चमक उठीं और उसने तुरंत चंद्रपाल से सवाल किया— “क्या आप मुझे वो जगह दिखा सकते हैं?”
 
चंद्रपाल ने सिर हिलाया और बोला— “हां, पर सावधानी से.. राजघराने के कई लोग आज भी उस राज़ को दबाए रखने के ताक में बैठे हैं। इतना ही नहीं पिछले बीस सालों में जिसने भी उस काली बहीखाते की किताब तक पहुंचने की कोशिश की, वो कभी जिंदा नहीं लौटा।”

ये ही बताते हुए चंद्रपाल, रिया को राजघराने के उस गुप्त तहखाने के रास्ते अंदर और अंदर एक गहरी गुफा में ले गया, जहां एक लोहे की अलमारी बनीं थी, लेकिन इतने सालों में उसकी हालत बेहद जर्जर हो गई थी। ऐसे में उसने उस अलमारी को एक झटके में खोल दिया। उसके अंदर रखी वो काली मोटी बहीखाते की किताब बाहर निकाली और रिया के हाथों में थमा दी।

रिया ने बहीखाते की उस किताब को उठाकर ध्यान से देखा। वह थी पुरानी, लेकिन बहुत मजबूत थी और उसमें दर्ज थीं हर उस घिनौनी साजिश के दस्तावेज़ जो गजराज सिंह और उनके गठबंधन के लोग करते थे। साथ ही उसकी हर साजिश का खर्च और कमाई का ब्यौरा भी उस काली बहीखाते की किताब में लिखा था। रिया ने उसे पढ़ना शुरु किया— “यहाँ लिखा है… रेस फिक्सिंग, घूसखोरी, संपत्ति हड़पने की साजिशें, और उन लोगों के नाम जो इस राजघराने के कारण दाने-दाने को मजबूर हो गए थे।”

ये सब देख वो सर से पैर तक चौक गई और एकाएक उसने चंद्रपाल से पूछा— “क्या आपको ऐसा कोई और इंसान पता है, जिसे इस काली बहीखाते की किताब के बारे में और जानकारी हो?”
 
ये सुन चंद्रपाल रिया के करीब आया और उसके कान में धीरे से बोला— “राज राजेश्वर और राघव भौंसले...। इन दोनों के बीच सिर्फ पारिवारिक रिश्ता ही नहीं है, बल्कि काले कांडो के भी हमराही है। गजराज की बेटी प्रभा से शादी करने से पहले से ही राघव भौंसले राजघराना में अपनी धाक जमा चुका था, और गजराज ने उससे अपनी बेटी की शादी शारदा के साथ उस रात की मनमानी को छिपाने की शर्त पर की थी। वो सिर्फ गजराज के ही नहीं राज राजेश्वर के मर्दों के शौक के बारें में भी जानता था, जिसे वो बात-बात पर दुनिया के सामने खोलने की धमकी दिया करता था।”

जहां एक तरफ महल का पुराना नौकर रिया के सामने उस काली बहीखाते की किताब के साथ-साथ उनके अतीत के राज खोल रहा था, तो वहीं दूसरी ओर अपने कमरे में अकेले बैठे राज राजेश्वर को भीखू ने आकर ये खबर दी कि राजघराने का हर रिश्ता अब उसके खिलाफ खड़ा है। साथ ही उसके करीबी सहयोगी भी उन दोनों का रिश्ता सामने आने के बाद धीरे-धीरे उससे दूरी बनाने लगे थे।

भीखू ने साथ ही ये भी बताया कि— “महल के अंदर से लेकर बाहर तक सभी लोग ये कह रहे हैं कि, कहीं प्रभा ताई से अचानक एक रात राघव भौंसले की शादी भी आपके मर्दों के शौक की देन तो नहीं है। कहीं आपका राघव से भी तो कोई संबंध नहीं है… और यहीं वजह होगी कि आपने हमेशा से राघव भौंसले के घरजमाई बनने का सपोर्ट किया है।”

भीखू की ये बातें सुन राज राजेश्वर तिलमिला उठा और बोला— "भीखू बेशर्मी की हद पार मत करों, वरना…

राज राजेश्वर आगे कुछ कहता, उससे पहले ही भीखू बोल पड़ा— "ये सब मैं नहीं कह रहा छोटे सरकार, ये सब बातें राजगढ़ के घर-घर में हो रहीं है। जब से आपके और मेरे रिश्तें का सच दुनिया के सामने आया है, तब से हर किसी की जुबान पर आपके लिए ऐसे ही शक भरे सवाल है।"

धीरे-धीरे महल के अंदर और बाहर राज राजेश्वर की साख पर सवाल उठने लगे। तो वहीं दूसरी ओर रिया ने चंद्रपाल से अब सीधे वो सवाल पूछा, जिसका जवाब जानने वो असल में उसके पास आई थी— “क्या यह सच है कि राजेश्वर ने भौंसले के साथ मिलकर राजघराने की संपत्ति और सत्ता के लिए अपने ही रिश्तों के साथ घिनौने खेल खेलें? और क्या वह भीखू भी उनकी इन साजिशों का हिस्सा है?”

ये सवाल सुन चंद्रपाल ने चुप्पी साध ली, और कुछ भी कहने से साफ इंकार कर दिया, वो चुपचाप उसके हाथ में बहीखाता की किताब थमा कर चला गया और जाते-जाते उसने रिया को एक चेतावनी भी दी— “ये राज तुम्हें बताकर जहां मैंने खुद अपनी मौत को न्योता दिया है, तो वहीं तुम भी अब मौत के साये में हो… तो जरा संभल कर।”
 
रिया के उपर चंद्रपाल की चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ। रिया ने काली बहीखाता के दस्तावेज़ों की एक अलग फोटोकॉपी बना ली थी। अब उसका मकसद था—सच को अदालत में साबित करना और राजघराने की साजिशों को बेनकाब करना।

विराज के घायल होने के बाद ये काम और भी ज़रूरी हो गया है। ऐसे में उसने खुद को संभाला और खुद से बड़बड़ाते हुए बोलीं— “अब राजघराने के ये सारे काले सच बाहर आने चाहिए। चाहे जो भी हो, गजेन्द्र के लिए इंसाफ ज़रूरी है। मैं उसे इस तरह जेल में जुल्म नहीं झेलने दूंगी।”

दूसरी ओर राज राजेश्वर के सर पर अब बहुत बड़ा संकट मंडरा रहा था, जो उसकी राजनीतिक और पारिवारिक पकड़ को कमजोर कर सकता था। राज राजेश्वर, जो अपने अकेलेपन में फंसा था, अब आखिरी दांव खेलने को तैयार था। ऐसे में उसने तुरंत अपना फोन निकाला और राघव भौंसले का नंबर डायल कर बोला— “मेरे खिलाफ जो राज खोले गए हैं, उन्हें दबाना होगा। वो काली बहीखाता हवेली के पुराने दस्तावेज़ में से गायब है।”
 
बहीखाते की किताब के गायब होने की बात सुनते ही राघव भौंसले के रौंगटे खड़े हो गए, वो कुर्सी से उछल कर खड़ा हुआ और चिल्लाकर बोला, “प...प...पर उसे तो तुम्हारें पापा ने किसी खास जगह दफन किया था, फिर वो कैसे गायब हो सकती है?”
 
राघव की घबराहट देख राज राजेश्वर ने खुद को संभाला और शांति से जवाब देते हुए कहा— "क्या, क्यों, कैसे, किसने किया, फिलहाल इन सब सवालों के जवाब ढूंढने का वक्त नहीं है हमारे पास। हमें बचाव का रास्ता ढूंढना होगा।"

राज राजेश्वर ने शांत होकर बात करने पर भौंसले संभल गया और ठंडी आवाज़ में कहा— “राजेश्वर, हमारी चालें अब राजघराने में सबके सामने आ रही हैं। हमें या तो सबकुछ खत्म करना होगा, या फिर खुद को बचाना होगा। क्योंकि अगर गजेन्द्र की उस जर्नलिस्ट गर्लफ्रैंड रिया के हाथ वो बहीखाता किताब लग गई, तो वो पूरे मीडिया के हर चैनल पर उसे लाइव दिखा हमें भीख मांगने पर मजबूर कर देगी।”

ये सुन राज राजेश्वर के हाथ-पैर फूल गए, और उसने कसम खाई— “सहीं कह रहे हो राघव, ये वक्त आर-पार होने का है। जो भी हो, मैं इस खेल को अब खत्म कर दूंगा और खुद पूरी दुनिया को बता दूंगा, कि आखिर मेरी पत्नी मुझे क्यों छोड़कर गई।”

एक तरफ राज राजेश्वर आगे की लड़ाई के लिए पहले से तैयारी कर रहा था, तो वहीं दूसरी ओर अस्पताल के बेड पर बेसुध पड़े विराज ने होश में आते ही कोर्ट की कार्रवाई में जाने की जिद्द पकड़ ली। उसकी आंखों में अब और भी दृढ़ संकल्प था।

लेकिन तभी वहां रिया आ गई और विराज को शांत कराते हुए बोलीं— शांत होकर इलाज करवाओं, मैंने कोर्ट में तुम्हारी मेडिकल रिपोर्ट जमा कर एक महीने की मोहलत मांग ली है। गजेन्द्र के केस में अब अगली सुनवाई एक महीने बाद है। 

रिया की ये बात सुनते ही विराज खुश होने के बजाये भड़क उठा— "ये तुमने क्या किया रिया… मौत की नींद सुलाना चाहती हो क्या गजेन्द्र को…?”

विराज का गुस्सा और उसके बयान ने रिया के रौंगटे खड़े कर दिए और वो घबराती हुई बोलीं— "ये तुम कैसी बातें कर रहे हों, मैं अपने ही प्यार को आखिर क्यों मारना चाहूंगी? अगर उसे मारना होता तो मैं अपनी जान पर खेलकर ये बहीखाते की किताब राजघराना के उस तहखाने से ना लेकर आती, समझे।”

एकाएक विराज नें रिया के हाथ से वो बहीखाते की किताब ली और उसे पढ़ने लगा, लेकिन चार पन्नों को पढ़ने के बाद उसने रिया के गाल पर एक जोरदार चाटा जड़ दिया और बोला— तुमने ये क्या किया, रिया। अब वो लोग पक्का गजेन्द्र को जेल में मार डालेंगे, तुमने सब बर्बाद कर दिया रिया... 

 

आखिर अब कौन सी बड़ी गलती कर दी रिया ने, जिसके लिए विराज ने उसे जड़ दिया थप्पड़? 

क्या गजेन्द्र को बचाने और विराज की मदद के चक्कर में उसने मोल ले ली कोई बड़ी आफत? 

अब जेल में क्या होने वाला है गजेन्द्र के साथ?

क्या राज राजेश्वर का काला अतीत सबके सामने आयेगा?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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