तुमने ये क्या किया, रिया। अब वो लोग पक्का गजेन्द्र को जेल में मार डालेंगे। तुमने सब बर्बाद कर दिया रिया...

उस थप्पड़ की गूंज, रिया के चेहरे से कहीं ज्यादा उसकी आत्मा को घायल कर गई थी, वो सन्न खड़ी थी। उसे तो ये तक पता नहीं था कि आखिर उसकी गलती क्या है?

ऐसे में रिया बेसुध खड़ी बस विराज के ताने सुन रही थी। उस थप्पड़ की वजह से न तो उसके आंसू निकल रहे थे, न शब्द। दूसरी ओर सामने गुस्सें से भौखलाए विराज की आंखों में डर, गुस्सा और पछतावा एक साथ तैर रहा था। अस्पताल के उस कमरे में सन्नाटा था, लेकिन दिलों के भीतर तूफान। विराज एक रट बस गजेन्द्र का नाम लिए जा रहा था।
 
तभी कुछ ही पल बाद, रिया ने कंपकपाती आवाज़ में पूछा— “क्या तुम… मुझ पर भरोसा नहीं करते अब विराज? तुम तो हमेशा से कहते थे कि मैं एक समझदार लड़की हूं, जिसके हर फैसले के पीछे कोई ना कोई वजह होती है, फिर आज इस गुस्से… इस थप्पड़ का कारण..?”
 
विराज ने कुछ नहीं कहा। वह चुपचाप खड़ा रहा, लेकिन उसकी आंखों की बेचैनी और उसके कमरे में यहां-वहां लड़खड़ाते पैर… साफ कह रहे थे— “अब बहुत देर हो चुकी है…”

अगले ही दिन सुबह-सुबह जयगढ़ बार काउंसिल के दफ्तर से एक नोटिस अस्पताल पहुंचाया गया। नोटिस था— "अस्थायी रूप से विराज प्रताप राठौर का वकालत से निलंबन"।

विराज ने जैसे ही उसे पढ़ा, रिया चौक गई और बोलीं— इसकी वजह क्या है, कल तक तो सब ठीक था… फिर आज अचानक?
 
विराज ने रिया की इस बात का जवाब देते हुए कहा, कि इस नोटिस लेटर में लिखा है— “हितों का टकराव और भावनात्मक जुड़ाव” यानी, गजेन्द्र सिंह के केस में मेरी निष्पक्षता पर संदेह जताया जा रहा है"।

इसके बाद विराज को गजेन्द्र के केस से बाहर करने का जो कारण, उस नोटिस लेटर में लिखा था… उसे पढ़कर तो विराज और रिया दोनों के होश ही उड़ गए।

विराज ने आगे उस लेटर को पढ़ते हुए बताया कि…

"इसमें लिखा है, किसी गुमनाम व्यक्ति ने सबूतों को पेश करते हुए मेरी शिकायत कोर्ट के जज को लिखित तौर पर भेजी है, जिसमें न केवल मेरे और तुम्हारे पुराने संबंधों का जिक्र भी किया गया है, बल्कि यह भी कहा गया है कि रिया जो खुद केस से भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई है, वो गजेन्द्र की ‘जर्नलिस्ट गर्लफ्रेंड’ होने के साथ-साथ एक समय में विराज प्रताप राठौर यानि मेरी मंगेतर भी रह चुकी है।"

विराज ने आगे बताया— इस शिकायत के साथ उस आदमी में हमारी सगाई की एक तस्वीर भी अटैच की है।

रिया ने तुरंत विराज के हाथ से उस नोटिस लेटर को ले लिया। और देखा तो उसमें सच में विराज और रिया की एक मंदिर में एक-दूसरे को अंगूठी पहनाते तस्वीर मौजूद थी।

नोटिस पढ़ते और उस तस्वीर को देखते ही रिया के होश उड़ गए। वो फटी आंखों से विराज की ओर देखने लगी— “क्या तुमने कभी मुझे बताया, कि तुम हमारी मंगनी की तस्वीरें अब भी छिपाकर रखते हो, मुझे तो लगा था हमारा रिश्ता टूटने के बाद सब खत्म कर दिया था, फिर ये कहां से आई और कैसे…?”

विराज ने झल्लाकर जवाब दिया— “मैंने वो तस्वीर नहीं भेजी, रिया! किसी को कैसे मिली ये मुझे नहीं पता। हमारी सगाई टूटने के बाद मैंने वो पुराना फ्लैट भी छोड़ दिया था, जहां हम साथ रहते थे, लेकिन हां हमारी वो यादें उसी कमरे के एक बंद लिफाफे में मेरे पुराने फ्लैट की आलमारी में मुझसे छूट गई थी…!”

रिया ने धीरे से पूछा— “रिश्ता तोड़ते वक्त मैंने हजार बार तुमसे वो तस्वीरें मांगी थी, और तब तुमने कहा था कि तुमने उन्हें जला दिया…अब क्या तुम्हें अब भी लगता है कि हमारे अतीत को कोई नहीं जानता…? और अगर ये सब गजेन्द्र को इस तरह पता चला, तो वो टूट जायेगा… विराज मैं उसे इस तरह खो नहीं सकती, मैं उससे बहुत प्यार करती हूं

ये बोलते-बोलते रिया फूट-फूट कर रोने लगी। उसका डर जायज़ था, और ये भी सच था कि गजेन्द्र से उन्होंने अपना अतीत छुपा कर उसे सच में धोखा दिया था। हालांकि फिलहाल विराज ने रिया को चुप करा, इस मामले को जल्द से जल्द निपटाने का भरोसा दिया, लेकिन वो खुद अच्छे से जानता था कि उसका ये भरोसा खोखला है।

दूसरी ओर अदालत और कानूनी गलियारों में ये मुद्दा और सगाई की तस्वीरें चर्चा का विषय बन गई थी—"विराज प्रताप राठौर, जो जयगढ़ के सबसे रईस और ईमानदार वकील घराने से ताल्लुक रखता था, उसकी इज्जत को सरेआम एक झूठे और फरेबी वकील के टाइटल के साथ उछाला जा रहा था।"

वहीं काउंसिल की अनुशासनात्मक समिति ने भी 6 हफ्तों के लिए विराज पर केस से दूर रहने का आदेश पारित कर दिया था। यह वही अदालत थी जहां विराज ने वर्षों मेहनत से अपनी पहचान बनाई थी, और अब उसी अदालत ने उसके पेशे पर सवाल उठा दिए थे। हालांकि इस दौरान उसे ये सुकून था, कि रिया ने गजेन्द्र के केस में एक महीने की मोहलत कोर्ट से ले ली थी।

अब उसे रिया को थप्पड़ मारने के अपने फैसले पर भी पछतावा हो रहा था। रिया और विराज बेबसी भरी नजरों से आखों ही आंखों में अभी एक-दूसरे से सवाल कर ही रहे थे, कि तभी विराज के वॉर्ड रुम में एक नर्स आई और उसने आते के साथ टीवी चला दिया।

टीवी पर रिया और विराज की सगाई की तस्वीरे ब्रेकिंग न्यूज के साथ छाई हुई थी। जयगढ़ न्यूज़ नेटवर्क की एंकर ने खबर ब्रेक की

— गजेन्द्र रेस फिक्सिंग केस में बड़ा खुलासा

— गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर और गर्लफ्रैंड निकले एक्स प्रेमी

— आखिर क्यों छिपाई दुनिया से सच्चाई और क्या गजेन्द्र जानता है अपनी धोखेबाजी प्रेमिका की ये कहानी?

“अब देखना ये है कि रिया शर्मा, जो खुद इस केस से भावनात्मक रूप से जुड़ी हैं, वो विराज प्रताप राठौर के निलंबन के बाद केस की रणनीति कैसे बदलेंगी? और क्या ये मामला अब पूरी तरह से बदले का होगा?”
 
जहां एक तरफ इस खबर को देख रिया और विराज के पैरों तले जमींन खिसक गई, तो वहीं दूसरी ओर, राघव भौंसले और राज राजेश्वर इस खबर पर जश्न मना रहे थे। राघव खबर देखते ही एक ग्लास वाइन हाथ में लेते हुए बोला— “अब देखो, जो गढ़ उन्होंने खुद बनाया, उसी में अब दरार आ रही है। पहले विराज का अस्पताल जाना, अब ये निलंबन—गजेन्द्र का केस तो अब गया काम से।”

इसके जवाब में राज राजेश्वर दहाड़े मारकर हंसते हुए सिगार जला धीमी आवाज में कहता है— “कभी-कभी सच्चाई उजागर करने की जिद, आदमी को खुद के ही अतीत के अंधेरे में धकेल देती है। और रिया… वो अब बिल्कुल अकेली है, अब उसका वो पुराना यार विराज भी उसे नहीं बचा पायेगा।”

उधर, रिया ने अपने अतीत के पन्ने इस तरह सरेआम खुलने के बाद भी हार नहीं मानी थी। विराज के निलंबन की खबर के बाद, उसने तय किया कि अब वह खुद केस की जड़ तक जाएगा।

उसने सबसे पहले जयगढ़ कोर्ट की लॉ लाइब्रेरी में जाकर पुराने केस रिकॉर्ड खंगालने शुरू किए। इस दौरान जांच-पड़ताल में उसके हाथ एक चौंकाने वाला दस्तावेज़ लगा। ये दस्तावेज राज राजेश्वर से जुड़ा था।

दरअसल ये राज राजेश्वर के प्रॉपर्टी ट्रांसफर के पेपर थे, जिसमें गजेन्द्र सिंह का नाम कहीं था ही नहीं। ये वही प्रॉपर्टी के पेपर थे, जिस पर गजेन्द्र ने जेल में साइन करने से मना कर दिया था। 

इसके साथ ही, एक और कागज़ भी था, राघव भोंसले और राजेश्वर के बीच प्राइवेट मीटिंग के रिकॉर्ड का, जिसे 'कॉन्फ्रेंस ऑन सिंडिकेट' के नाम से फाइल किया गया था। उस पर तारीख थी—गजेन्द्र की गिरफ्तारी से एक दिन पहले की। रिया को एक-एक कर सारा माजरा समझ आने लगा था और गजेन्द्र के केस की गुत्थी भी अब सुलझने लगी थी।

रिया के होंठों पर एक लंबी सी मुस्कान दौड़ गई— "अब खेल में मेरे पास भी चाल है, चलों राज राजेश्वर… मैं जानती हूं मेरे अतीत के पन्ने तुमने ही उधेड़े है, क्योंकि तुम्हें पता चल गया है कि वो काली बहीखाते की किताब मेरे पास है।"

इधर, विराज अस्पताल में अकेले बैठा था, और टीवी पर खुद की बर्बादी की खबरें देख रहा था। तभी मुक्तेश्वर अचानक से अस्पताल के उसके वार्ड के कमरे के अंदर आया और बोला— “तुमने तो कहा था, कि रिया से तुम्हारा कोई नाता नहीं है, उस रात जब मुझे तुम दोनों पर पहली बार शक हुआ था। फिर कैसे हो गया ये सब और ये तस्वीर…?”

विराज ने पहली बार टूटे हुए लहजे में बोला— “देखिये रिया मेरा वो अतीत है, जिससे मैं नफरत करता था… शायद अब भी करता हूं… लेकिन जब वो गजेन्द्र के लिए लड़ती है, तो लगता है जैसे… जैसे मैं फिर से उसे प्यार करने लगा हूं। बस इसलिए आपको हमारे बीच कोई कनेक्शन फील हुआ होगा, पर मैं सच कहता हूं… मैं रिया और गजेन्द्र को एक साथ देखना चाहती हूं।”

मुक्तेश्वर चुप होकर विराज की सारी बाते सुनता रहा, और फिर धीरे से बोला— “प्यार को छोड़ो विराज… अब लड़ाई सिर्फ कानून की नहीं रही। अब ये लड़ाई इज्जत की है और जान की भी। देखों अब इस लड़ाई में मेरा बेटा भी मुझे चाहिए और उसके प्यार रिया पर लगा ये कलंक भी धुल जाना चाहिए। क्योकि मैं नहीं चाहता कि मेरी बहू के नाम पर किसी भी तरह का कोई दाग लगा हो।”

रिया और विराज के अतीत के खुलासे की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी, कि राजघराना के आंगन में वो तुफान आ गया जिसने राज राजेश्वर की दुनिया हिला कर रख दी। 

कुछ देर पहले जो राज राजेश्वर रिया और विराज के अतीत पर जाम पे जाम बना जश्न मना रहा था। वहीं अब काले बहीखाते की खबर मीडिया में लीक होने के खौफ से सदमें में आ गया था। ऐसे में राजेश्वर ने तुरंत राघव को फोन किया और कहा— “रिया को रोको, किसी भी कीमत पर, वरना हम दोनों बर्बाद हो जाएंगे। अगर उसने कोर्ट में वो काली बहीखाता किताब जमा कर दी, तो सब खत्म हो जाएगा।”

राघव ये सब सुनकर घबराया नहीं उसने राज राजेश्वर को शांत कराते हुए कहा— “एक ही रास्ता है रिया के अदालत तक पहुंचने से पहले उसे रास्ते में ही खत्म कर दो।”

ये सुन राज राजेश्वर के चेहरे पर सुकून आ गया। उसकी आंखों में अब न डर था, न पछतावा। था तो केवल सत्ता का भूखा, एक अकेला आदमी… जिसने अपनी असली पहचान और सत्ता की कुर्सी के लालच में अपने सारे रिश्तों को नकार दिया था। 

रोज की तरह आज फिर रिया अस्पताल में विराज से मिलने पहुंची। वो कमरे में दाखिल हुई तो विराज की आंखें बंद थीं, लेकिन उसने रिया की आहट पहचान ली और तुरंत आंखे खोल उससे पूछा— “तुम ठीक तो हो ना रिया, मैं सच कहता हूं… मैं कभी हमारे अतीत को तुम्हारें और गजेन्द्र के बीच नहीं आने दूंगा।”

रिया ने धीरे से पलट कर जवाब देते हुए विराज से कुछ ऐसा कहा, जिसकी उसे रिया से बिल्कुल उम्मीद नहीं थी— “देखो विराज, मेरे और गजेन्द्र के इस प्यार भरें रिश्तें को आगे वक्त कौन से मोड़ पर ले जाता है, फिलहाल मैंने ये सब सोचना छोड़ दिया है। मैं बस पहले गजेन्द्र को जेल से छुड़ाना, उसे झूठे केस में फंसा कर जेल में डलवाने वाले उसके अपनों को सजा दिलाना और उसे उसके हक की कुर्सी पर बैठाना चाहती हूं। हमारे प्यार के बारे में अब मैं बाद में सोचूंगी।”

ये सब सुन विराज चौक गया, उसे आज एक बार फिर ये एहसास हुआ कि रिया बहुत शांत और समझदार लड़की है। 

“तो तुम मुझसे क्या चाहती हो रिया और क्या तुम मुझसे गुस्सा नहीं हो?

“मैं तुमसे मदद चाहती हूं, बताओ… करोगे?, अगर मैं गजेन्द्र को बचाने के लिए कोर्ट में इस काली बहीखाता को पेश करूं, तो क्या इसमें तुम मेरी मदद करोगे?”

विराज ने आंखें खोलीं, और धीरे से मुस्कराया— “मैं तुम्हारे साथ रहूंगा, लेकिन इस बार… एक वकील नहीं, एक इंसान बनकर।”

ये सुन रिया गुस्से में विराज की तरफ पलटी और बोलीं— नहीं तुम वकील की तरह ही मेरा साथ देना, मैं तुम्हें गजेन्द्र के केस की अगली सुनवाई से पहले ही तुम्हारा काला कोर्ट पूरी इज्जत के साथ लौटा कर रहूंगी। उन लोगों ने जो चाल चली है, मैं उसका जवाब उन्ही की भाषा में दूंगी। तुम बस कोर्ट की कार्रवाई में विरोधी टीम से लड़ने और बहस करने की अपनी दलीले तैयार कर लो। 

 

आखिर क्या करने वाली है रिया? कैसे वो विराज को चार हफ्तों में वापस लौटायेगी उसका काला कोर्ट? 

क्या रिया कोर्ट में उस बहीखाते की किताब को पेश कर पायेगी? क्या विराज फिर से गजेन्द्र का केस लड़ पायेगा?

 कैसा बर्ताव करेगा गजेन्द्र जब उसे पता चलेगा कि उसकी गर्लफ्रैंड रिया कभी रह चुकी है विराज प्रताप राठौर की मंगेतर?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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