“नहीं तुम वकील की तरह ही मेरा साथ देना,” इतना कहने के साथ रिया ने जो वादा विराज से किया उसे सुन विराज दंग रह गया। यहां सबसे ज्यादा चौका देने वाली बात ये थी, कि इतनी सारी मुश्किलों के बावजूद इस वक्त रिया की आवाज़ में वो दृढ़ता थी जो तूफ़ानों से जूझने वालों में होती है।
ऐसे में विराज कुछ पल के लिए उसे वैसे ही देखता रहा… जैसे वो पहली बार रिया से हिमाचल की उन सुनसान पहाड़ियों पर मिला था। उस दिन भी रिया में ऐसी ही जिद्द थी, बेहद सच्ची, बेहद सीधी, और भीतर से टूटी हुई।
5 साल पहले - फ्लैशबैक…
उस दिन हिमाचल में आए तेज तूफान ने चारों तरफ तबाही मचा दी थी। पहाड़ों के टूट कर गिर जाने से हजारों की संख्या में लोग घायल थे। इन सबके पीछ एक 18 से 20 साल की लड़की… यहां-वहां भागकर लोगों की मदद कर रही थी।
ऐसा नहीं था कि उस तेज तूफान में उसे कोई चोट नहीं आई थी, लेकिन फिलहाल वो अपनी चोट भूल बस लोगों की मदद करना चाहती थी। और उसी पल में विराज को रिया से पहली नजर में प्यार हो गया। फिर धीरे-धीरे दोनों के बीच की मुलाकातें बढ़ी और प्यार परवान चढ़ने लगा, लेकिन कहते हैं ना बढ़ते उम्र और कुछ साबित कर देने का जूनून अक्सर कुछ रिश्तों के टूटने की वजह बन जाता है। बीतते वक्त के साथ रिया और विराज दोनों अपने-अपने कामों में इतना बिजी हो गए कि एक-दूसरे के लिए वक्त कम हो गया। ऐसे में बढ़ती दूरियों और गलतफहमियां का नतीजा ये हुआ कि रिया और विराज का रिश्ता टूट गया।
वहीं बतौर जर्नलिस्ट एक लाइव हॉर्स रेस मेच को कवर करने के दौरान रिया की पहली मुलाकात गजेन्द्र से हुई, जहां वो उसकी रेस फिक्सिंग केस में रिश्वत लेने की खबर का खुलासा करने आई थी, और इसी के साथ दोनों के बीच शुरु हुआ नफरत का दौर जो धीरे-धीरे प्यार में बदल गया। आज हालात ऐसी है कि रिया गजेन्द्र को उसी मेच फिक्सिंग के आरोप से निकालने के लिए खुद को भी भूल बैठी है।
वहीं, आज का दिन-
अपने अतीत के पन्नों में गुम विराज एक टक बस रिया को देख धीमे-धीमें मुस्कुराये जा रहा था, तभी रिया ने उसकी आखों के सामने चुटकी बजाई, तो उसकी आवाज से वो अपनी पुरानी यादों से बाहर आया और रिया के सवाल का जवाब देते हुए बोला— “तो ठीक है, मैं फिर से अपने काले कोट में लौटूंगा... लेकिन इस बार तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि उस इंसाफ के लिए, जो गजेन्द्र का हक है।”
विराज के इन शब्दों ने साफ कर दिया था, कि अब उनके बीच न मोहब्बत थी, न शिकायतें... बस था तो एक अधूरा ‘बेनाम रिश्ता’, जिसे फिलहाल शब्दों की नहीं, केवल सच्चाई की जरूरत थी।
कुछ देर विराज से बात करने के बाद रिया कल वापस आने का वादा कर उसे अस्पताल में छोड़ राजघराना लौट गई। वहीं अगले दिन की सुबह रिया की जिंदगी में नया तमाशा लेकर आई। दरअसल रिया अपने और विराज के रिश्तें के टूट जाने के बाद से लेकर आज तक… कल पहली बार गहरी नींद में सुकून से सोई थी। लेकिन जब उठी, तो सामने विराज नहीं, बल्कि मुक्तेश्वर खड़ा था।
रिया चौंकी, उठकर बैठ गई और बोली— “आप... इतनी सुबह, इस तरह मेरे कमरे में… क्यों?”
मुक्तेश्वर ने गहरे लहजे में जवाब दिया— “रिया बेटा, मैं तुमसे हाथ जोड़कर भीख मांगने आया हूं। मैं चाहता हूं कि तुम इस लड़ाई से पीछे ना हटो, चाहे दुनिया कुछ भी कहे… और हां, मुझे तुमसे या विराज से… तुम दोनों की सामने आई उन तस्वीरों पर कोई सफाई नहीं चाहिए। क्योंकि वो तुम दोनों का अतीत था और गजेन्द्र तुम्हारे आज और आने वाले कल का हिस्सा है। तो मैं चाहता हूं कि तुम अब सिर्फ और सिर्फ उस पर ध्यान दो।”
मुक्तेश्वर की ये बातें सुन रिया कुछ पल चुप रही और फिर पूछा— “आपने मुझसे कभी नहीं पूछा कि मेरा और विराज का अतीत क्या था? क्या आप गजेन्द्र से मेरी शादी के बाद भी ये कभी नहीं पूछेंगे?”
मुक्तेश्वर मुस्कुराया और बोला— “मैं वकील नहीं, बाप हूं। मुझे ये जानने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि पहले क्या था, मैं सिर्फ ये जानना चाहता हूं कि आगे तुम क्या करने वाली हो? तुम आज और आने वाले कल में मेरे बेटे से प्यार करती रहोगी ना? मेरे लिए बस उतना ही काफी है।”
फिर उसने रिया की आंखों में झांकते हुए कहा— “और अगर तुम गजेन्द्र से प्यार करती हो, तो याद रखना…प्यार सिर्फ साथ चलने से नहीं होता, कभी-कभी उसके लिए लड़ना भी पड़ता है, उसके अतीत, उसके नाम, और उसकी बेगुनाही के लिए।”
मुक्तेश्वर की बातों ने रिया की हिम्मत बढ़ा दी, वो सर हिला उसके गले जा लगी और पहली बार उसे पिता बुलाते हुए कहां— "आप बहुत अच्छें है पापा, थैंक्यू… इस मुश्किल वक्त में मेरे साथ खड़े होने के लिए।"
रिया के मुंह से पहली बार पापा सुन मुक्तेश्वर मुस्कुराया और उसने जाते-जाते एक रजिस्टर रिया की ओर बढ़ाया और कहा— “ये मेरी केस डायरी है। इसमें वो सब कुछ है जो मेरे पास गजेन्द्र के केस के बारे में है। शायद ये तुम्हें उस बहीखाते को कानूनी तौर पर दुनिया के सामने पेश करने में मदद करें, वरना हमारी एक गलती गजेन्द्र की जिंदगी पर भारी पड़ सकती है।”
दूसरी ओर… विराज बार काउंसिल के फैसले के खिलाफ अपील तैयार कर रहा था। वो जानता था कि उसके पास सिर्फ चार हफ्ते हैं। हर दस्तावेज़, हर बहस की रणनीति... वो सब लिख रहा था, मानो जैसे अपना नाम फिर से ज़िंदा कर रहा हो। उसके अंदाज में आज एक बार फिर वहीं जोश था, जो पहली बार उस काले कोर्ट को पहनने पर आया था।
हां, लेकिन ये भी सच है कि उसके अंदर कहीं कोई और लड़ाई भी चल रही थी। रिया के साथ अपनी मंगनी टूटने की, उसका किसी और से प्यार कर बैठने की, और खुद से भी उस प्यार को फिर से महसूस करने की। वो ना चाहते हुए भी रिया से फिर से पहली नजर वाला प्यार कर बैठा था।
अस्पताल के कमरे में बैठे विराज के जहन में अभी ये सब सवाल चल ही रहे थें, कि तभी रिया अचानक से उसके कमरे में आ गई। उसे देखते ही विराज ने रजिस्टर बंद कर दिया और हल्की सी मुस्कान देते हुए बोला— “लगता है, इस बार तुम लड़ाई जीतने के लिए किसी जंग की तैयारी कर रही हो।”
रिया ने भी हंसकर जवाब दिया और बोलीं— "बिल्कुल, मुझे हर हाल में मेरा गजेन्द्र मेरी आंखों के सामने मेरी बाहों मे चाहिए। तो ये जंग तो मुझे जीतनी ही है।"
रिया का जवाब सुन विराज के चेहरे की वो मुस्कुराहट जरा फींकी सी पड़ गई। खास बात ये थी कि रिया ने ये नोटिस भी कर लिया, ऐसे में विराज आगे कुछ कहता उससे पहले रिया ने उसे टोकते हुए कहा, “विराज… क्या हम कुछ पल के लिए ‘वकील’ और ‘पत्रकार’ नहीं बन सकते? क्या आज हम सिर्फ ‘रिया’ और ‘विराज’ हो सकते हैं? क्योंकि शायद हमारे बीच वो बात करनी बाकी रह गई है, जो सालों पहले अधूरी छूट गई थी।”
विराज की आंखें एकाएक छल्क पड़ी और उसने मुंह फेरते हुए अपनी नम आंखों को चुपके से पोछा और हां में सिर हिला दिया। तभी रिया उसके बेड के बाई तरफ रखी कुर्सी को खींचकर ले आई और ठीक उसके सामने बैठते हुए बोलीं— “हम दोनों ने उस रात एक-दूसरे को बहुत गलत समझा था। मैंने सोचा, तुमने मेरा इस्तेमाल किया... और तुमने सोचा कि मैं तुम्हारी ज़िंदगी को अपने हिसाब से चलाना चाहती थी।”
तभी विराज ने उसे बीच में रोक दिया और बोला— “मैंने कभी तुमसे मोहब्बत करना बंद नहीं किया, रिया… और ना ही कभी तुमसे किसी मतलब के लिए प्यार किया। उस रात मैंने एक मैसेज में रिश्ता खत्म कर गलत फैसला लिया था, जिसका पछतावा मुझे आज भी है। लेकिन, ये भी सच है कि तुम्हारी ज़िंदगी में आज जो है... वो मेरी वजह से अधूरा नहीं होना चाहिए।”
रिया ने विराज की तरफ देखा— “शायद हम एक-दूसरे के लिए सही वक्त पर नहीं मिले थे... लेकिन आज मैं तुमसे कुछ नहीं छुपाना चाहती। मैं गजेन्द्र से प्यार करती हूं, लेकिन तुम्हारा होना मेरे भीतर एक कोना हमेशा गर्म रखता है... एक याद बनकर, जो कभी खत्म नहीं होगी। लेकिन ये भी सच है विराज कि मैं अतीत में नहीं लौटना चाहती।”
रिया के इस बयान के साथ उस कमरे में कुछ पल की खामोशी छा गई... और फिर विराज ने रिया का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा— “तो चलो, इस ‘बेनाम रिश्ते’ को हम वहीं रहने देते हैं, जहां इसका हक़ बनता है... दिल के किसी कोने में—जिसे कोई कानूनी धारा कभी छू न सके।”
इतना कह विराज वहां से बाहर चला गया। विराज के जाते ही रिया फूट-फूट कर रोई। वहीं विराज भी कमरे से निकल सीधे वॉशरुम गया और रोने लगा। दोनों ने उस दिन की मुलाकात के उस पल को वहीं रोक दिया और एक-दूसरे का चेहरा नहीं देखा।
इसके बाद उसी शाम… रिया ने कोर्ट में बहीखाता की एक फोटोकॉपी और मुक्तेश्वर की केस डायरी से मिली रजिस्ट्री पेपर्स एक बंद लिफाफे में रख दिए। उसने तय कर लिया था कि सुनवाई से पहले वह इसे कोर्ट रजिस्ट्रार के पास जमा कर देगी, लेकिन तभी उसे एक फोन आया— हैलों… कौन?
“रिया शर्मा?” आवाज़ भारी और भयानक थी।
“हां, बोल रही हूं…”
“अगर तुम्हें गजेन्द्र की ज़िंदगी चाहिए, तो उस बहीखाते की किताब को कोर्ट तक मत पहुंचाना। वरना याद रखना कि अगला निशाना सिर्फ दस्तावेज़ नहीं होगा...”
इतना कह उस शख्स ने फोन का दिया। वहीं रिया का चेहरा सफेद हो गया और उसके मन में बेचैनी बढ़ने लगी। एकाएक वो उठी, और सीधे मुक्तेश्वर को फोन मिलाया— “अब ये केस सिर्फ न्याय का नहीं रहा पापा… अब ये जंग है उस सड़े हुए सिस्टम के खिलाफ, जिसने गजेन्द्र जैसे लोगों को तोड़ने की कसम खा रखी है। मैं ये केस अब अपनी आखिरी सांस तक लड़ूंगी। वो लोग मुझे तोड़ना चाहते है ना, आप देखना मैं उन लोगों को सच की ताकत दिखा कर रहूंगी।”
मुक्तेश्वर को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर रिया ने इस तरह अचानक फोन कर ये सब क्या ऐलान किया, लेकिन वो बस इतना जानता था, कि रिया उसके बेटे गजेन्द्र की बेगुनाही साबित करने के लिए धरती-पाताल एक कर देगी।
वहीं दूसरी तरफ, राज राजेश्वर और राघव भौंसले ने एक और चाल चल दी थी। दरअसल विराज के बाद अब उन दोनों ने अदालत में रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए एक नई याचिका दायर की गई थी, जिसमें उसे "पक्षपाती और भावनात्मक रूप से अस्थिर गवाह" करार देते हुए, रिया को अपने झूठे प्रेमी का झूठा गवाह कहा था।
लेकिन रिया ने खुद को पहले ही इस तरह के हालातों के लिए तैयार कर लिया था। दरअसल उसने फैसला कर लिया था कि वो अदालत में उस लड़की के रूप में नहीं जायेगी, जिसे झूठा प्रेमी कहकर बदनाम किया गया… ब्लकि वो अब उस योद्धा की तरह जाएगी, जो सच की कसम खाकर किसी भी राजघराने की जड़ें हिला सकती है। सच और बेगुनाह लोगों को इंसाफ दिलाना उसकी जिंदगी का मकसद बन गया है।
अगले दिन…जयगढ़ के मुख्य न्यायालय में भीड़ जमा थी। आज गजेन्द्र के केस की कोई सुनवाई नहीं था, ब्लकि रिया धीरे-धीरे कर अपने जंग के मैदान में अपने हथियारों को धार दे रही थी। रिया ने जज से आज गजेन्द्र के केस में एक मुलाकात की मांग की थी और इस दौरान उसने जज के सामने एक बंद लिफाफा रखा था, जिसमें बहीखाते की फोटोकॉपी और सिंडिकेट लेन-देन का विवरण था।
जज ने एक नज़र लिफाफे पर डाली और फिर पूछा— “क्या आप, मिस रिया शर्मा, इस केस में सरकारी गवाह के रूप में खुद को प्रस्तुत करना चाहती हैं?”
रिया ने बिना झिझक के जवाब दिया— “हां, मैं राजघराने के काले इतिहास की गवाह बनना चाहती हूं। मैं हर उस झूठ को उजागर करना चाहती हूं, जिसने गजेन्द्र सिंह जैसे एक निर्दोष इंसान को जेल भेजा। मैं उस गठजोड़ को सामने लाना चाहती हूं जिसमें सत्ता, पैसा और रिश्ते मिलकर न्याय का गला घोंटते हैं।”
रिया के इन आरोपों से कोर्टरूम में सन्नाटा पसर गया। इसके बाद जज ने रिया को टोकते हुए कहा, कोर्ट और कानून बातों पर नहीं सबूतों पर यकींन करते है। याद रखना तुम्हारे पास तुम्हारे हर बयान का ठोस सबूत हो, वरना मानहानि के केस में पूरी जिंदगी जेल में गुजारनी पड़ सकती है।
वहीं फोन पर रिया की हिम्मत के लिए मौजूद विराज जज की ये बात सुन मुस्कुराया, क्योंकि उसे पता था आज रिया एक लड़की नहीं, एक आंदोलन बन चुकी है… जिसने सच को बाहर लाने और अपने प्यार को वापस पाने की कसम खा ली है।
तभी जज ने रिया से दुबारा सवाल किया, और गुस्से भरे लहजे में कहा— याद रखना रिया अगर तुम्हारे पास एक महीने बाद अपने इन आरोपों को साबित करने के लिए सबूत और गवाह नहीं हुए तो, जिंदगी भर चक्की चलाना पड़ेगी जेल में…जज के गुस्सें से रिया के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया।
क्या रिया कोर्ट में सच साबित कर पाएगी?
क्या विराज को मिलेगा फिर से उसका काला कोर्ट और खोई हुई इज्जत?
क्या राज राजेश्वर और राघव भौंसले की साजिशें होंगी उजागर?
और सबसे बड़ा सवाल—क्या गजेन्द्र जान पाएगा कि रिया कभी विराज की मंगेतर रह चुकी है?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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