जज के कठोर लहजे और चेतावनी के बाद रिया कोर्टरूम में सन्न खड़ी थी। उसकी आंखों में डर की एक पतली सी लकीर थी, लेकिन साथ ही एक ऐसा आत्मविश्वास भी, जो किसी तूफान की दिशा बदल सकता था। वही आत्मविश्वास, जिसके बारें में सोच कर विराज भी फोन के उस पार मुस्कुरा रहा था। वो जानता था, कि रिया ने अगर गजेन्द्र की बेगुनाही और राजघराना की काली सच्चाई सामने लाने की ठान ली है, तो वो उसे बाहर लाकर रहेगी। क्योकि रिया की जिद्द ने ही उसे देश की सबसे खतरनाक जर्नलिस्ट का टैग दिलवाया है।
 
वहीं, कोर्टरुम में जज ने आखिरी बार रिया को चेताते हुए कहा— “एक महीना… बस एक महीना और है तुम्हारे पास। या तो सच साबित करो, या खुद को उस झूठ का हिस्सा मानो और सजा कांटने के लिये तैयार हो जाओ।”

फाइनली आज रिया ने कोर्ट में अपना पक्ष, सबूत और थोड़ा और समय तीनों मांगों को रख दिया था, जिसे जायज ठहराते हुए जज साहब ने उसे मौहलत भी दे दी। आखिर में अदालत के उस सन्नाटे के बाद जैसे ही रिया बाहर निकली, उसके फोन की घंटी फिर बजी….नंबर अनजान नहीं था। उसने कॉल उठाया— "रिया शर्मा, तुम नहीं सुधरोगी...?"

रिया ने पूरे आत्मविश्वास और गुस्से में पलटकर जवाब दिया— "तो तुम ही सुधर जाओ, और पहले अपना नाम तो बताओं… आखिर हो कौन?"

“नाम में कुछ नहीं रखा… और हां याद रखना, हमारी बात अभी खत्म नहीं हुई है। अगली बार अगर बहीखाते की बात सामने आई… तो सिर्फ सबूत नहीं, किसी की सांस भी रुक सकती है… शायद तुम्हारे किसी अपने की...।”

फोन कट गया। वहीं घबराई रिया के हाथ से फोन छूटते-छूटते बचा और उसके कदम डगमागा गए। उसने खुद को किसी तरह संभाला और बुदबुदाई— “अब डर कर नहीं, डर को मिटा कर जियेंगे… ये वादा है… कर लो तुम्हें जो करना है, रिया शर्मा नाम है मेरा।”

दूसरी ओर राजघराना महल के अपने कमरे में बैठा राज राजेश्वर उस खबर के मिलने के बाद से ही बेचैन था। उसके चेहरे पर डर और गुस्सा दोनों थे। लेकिन तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई।

“भौंसले साहब आए हैं…” इतना कह भीखू वहां से चला गया, जिसके बाद राघव भौंसले अपनी हैरान-परेशान शक्ल के साथ राज राजेश्वर के सामने आकर खड़ा हो गया— “क्या हाल है नए महाराज जी?”

राघव भौंसले की ये लाइन राज राजेश्वर के दिल पर किसी तीर की तरह जाकर चुभी। ऐसे में उसने आंखें उठाई और धीमी आवाज में बोला— “अब वक्त आ गया है… सब कुछ खत्म करने का। रिया बहुत दूर निकल गई है। उसे रोकना होगा… वरना सब बर्बाद हो जायेगा।”
 
इतना कहते-कहते राज राजेश्वर ने अपने और राघव दोनों के लिए वाइन ग्लास भर दिया और उसे भौंसले की तरफ बठाया। भौंसले ने उस वाइन ग्लास को घुमाते हुए कहा— “मैंने पहले ही कहा था… ये लड़की आग है, इसे ठिकाने लगा दो… पर तुमने एक ना सुनी। अब देखो, तुम्हारी हवेली और तुम्हारे सपने दोनों को ही जला रही है।”
 
ये सुन राज राजेश्वर भड़क गया और गुस्से में बोला— “हां-हां हो गई गलती, लेकिन अब और खेल नहीं… हर कच्चा धागा काटना होगा, जो हमें उस काले बहीखाते की किताब से जोड़ता है।”

ये सुनते ही राघव भौंसले की आंखे लाल हो गई, मानों जैसे उसे राज राजेश्वर ने कोई गाली दे दी हो। ऐसे में उसने ग्लास नीचे रखा और राज राजेश्वर के कानों के पास जा धीरे से बोला— “सावधान हो जाओ राजेश्वर… अगर मुझे मिटाने की कोशिश की, तो मैं तुम्हारे इस राजघराना महल की नींव तक उखाड़ दूंगा। याद रखो… अगर मैं गिरा, तो तुम्हारी गद्दी, जमीन-जायदाद और तुम्हारे नकली आदर्शों का सारा कच्चा-चिट्ठा खोल दूंगा।”
 
भौंसले की बातों में बगावत के सुर बुलंद थे। ऐसे में राज राजेश्वर ने अपनी आंखों को सिकुड़ते हुए पूछा — "धमकी दे रहे हो क्या ?"

जवाब में राघव भौंसले ने कहा— "नहीं, मैं तो तुम्हारा साझेदार हूं… और फिलहाल सिर्फ याद दिला रहा हूं, कि हम दोनों एक ही कच्चे धागे से बंधे हैं… अगर एक टूटा, दूसरा खुद ही खुल जाएगा।"

दोनों की आंखों में अब डर नहीं, खामोश खून बहता दिख रहा था। ऐसे में राज राजेश्वर ने भीखू को वापस अपने कमरे में बुलाया और कहा— रिया का खेल खत्म करने की तैयारी करो।

एक तरफ रिया अपने प्यार गजेन्द्र के लिए जंग के मैदान में उतरने की तैयारी कर रही थी, तो वहीं दूसरी ओर राज राजेश्वर उसे उसी मैदान में दफनाने की तैयारी कर रहा थी। इस बीच अस्पताल में विराज अपने कमरे में बैठा, लगातार रिया के बारें में ही सोच रहा था। 

कि तभी रिया उससे मुलाकात करने उसके कमरे में आ गई और उसे देखते ही विराज के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट दौड़ गई। लेकिन उसकी ये मुस्कुराहट उस वक्त घबराहट में बदल गई, जब रिया ने वहां अपने आने का कारण बताया— “विराज…”
 
“हां, बोलो रिया… क्या हुआ तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ है..?”
 
ये सुनते ही रिया बिना सास लिए अपने मन की सारी बातें बोल गई— “विराज, अब ये केस, सिर्फ कोर्ट और वकील का नहीं रहा। ये मेरी आत्मा की लड़ाई बन गया है। तुम इसमें मेरा साथ पक्का दोगे ना, कहीं किसी मोड़ पर लड़खड़ाओगे तो नहीं…?”

रिया की घबराहट सुन विराज ने उसकी आंखों में झांका और बोला— “रिया… अगर तुम लड़ रही हो, तो मैं अब वकील बनकर नहीं, तुम्हारा सिपाही बनकर लड़ूंगा क्योंकि गजेन्द्र सिर्फ तुम्हारा प्यार नहीं, मेरा जिगरी यार भी है।”

ये सुनते ही रिया मुस्कराई और बोलीं— “नहीं विराज… मुझे तुम्हारा प्यार नहीं चाहिए, तुम्हारा वादा चाहिए। ये केस जीत कर ही दम लोगे ना?”

विराज ने उसका हाथ पकड़ा और कसम खाकर कहा— “जब तक विराज प्रताप राठौर जिंदा है… तुम्हारा सिर झुकने नहीं देगा।”

विराज की ये बाते रिया को सुकून देती है और साथ ही उसका मनोबल भी बढ़ाती है। इसके बाद रिया अब अपने अगले मिशन "वीडियो रिकॉर्डिंग सबूत" का जाल बिछाने में जुट जाती है। 

दरअसल रिया को शक था कि उन लोगों के बीच ही कोई अंदरूनी आदमी है, जो जानकारी बाहर पहुंचा रहा है… और तभी उनकी हर चाल के बारें में दुश्मन को पहले से ही सारी खबर मिल रही है। ऐसे में उसने राजघराना के हर कोने में कैमरे सेट कर दिये, जिन्हें वो हर रात चैक करती थी। दो दिन बीत गए, लेकिन उसके हाथ एक भी सुराग नहीं लगा। वो बुरी तरह मायूस हो गई, लेकिन उसी वक्त उसका फोन बजा। रिया ने खोलकर देखा तो एक अनजान नंबर से किसी ने एक ऑडियो भेजी थी, जिसमें आ रही आवाजे बड़ी जानी-पहचानी थी, "रिया के पास बहीखाता है? ये कैसे हुआ साले! अब अगर वो कोर्ट गई, तो तू और मैं दोनों गए काम से!"

इस रिकॉर्डिंग को सुन रिया के मन में सुकून भी था और सवाल भी… क्योंकि उसे ये समझ नहीं आ रहा था कि ये आवाजें किसकी है— “अब मेरी गवाही सिर्फ बयान नहीं होगी, सबूत बनकर अदालत में गूंजेगी, लेकिन इसके लिए मुझे पहले ये पता करना होगा कि ये आवाज किसकी है?”

अगले दिन रिया उस रिकॉर्डिंग को लेकर विराज के पास पहुंची और उसके हाथ में अपना फोन देते हुए उसे सारी बात बताई। अब विराज के हाथ में वह मोबाइल था, जिसमें ऑडियो रिकॉर्डिंग चल रही थी। विराज ने उसे ध्यान से सुना और फिर अचानक खड़ा हो गया— “रिया… ये आवाजें… ये राघव भौंसले की हैं!”

रिया चौंक गई— “क्या? तुम यकीन से कह सकते हो? क्योकि मेरी अब तक राघव भौंसले से कोई ऐसी खास मुलाकात नहीं हुई है, लेकिन एक दो बार मैंने उसकी आवाज सुनी जरूर है।”

विराज की आंखें एकटक मोबाइल स्क्रीन पर जम गई। उसने उस रिकॉर्डिंग को दो से चार बार प्ले किया और फिर कंर्फंम करते हुए बोला— “हां… लेकिन इससे भी खतरनाक बात ये है कि ये दूसरी आवाज… शायद राज राजेश्वर की नहीं है।”
 
“मतलब?”
 
ये सवाल करते हुए रिया का माथा सिकुड़ गया। मानो जैसे उसे कोई जोरदार झटका लगा हो, कि अगर ये दूसरा शख्स राज राजेश्वर नहीं है, तो राघव भौंसले के साथ आखिर फिर कौन मिला हुआ है।

दूसरी ओर रिया के उस सवाल का जवाब देने के लिए विराज आगे बढ़ा और अपने कमरे के बाई तरफ रखी अलमारी के पीछे छिपाई हुई फाइलस के बॉक्स से एक चिप निकाली और उसे रिया के हाथ में देते हुए बोला— “मेरे पास पांच साल पहले की एक कॉल रिकॉर्डिंग है, जो मैंने कभी एक केस के दौरान गुप्त रूप से कैप्चर की थी। और उस वक्त मुझे पता नहीं था कि उसका इस केस से कोई लेना-देना होगा।”
 
विराज ने चिप कंप्यूटर में लगाई, और जैसे ही दूसरी रिकॉर्डिंग चली… उसकी आवाज सुन रिया की रूह कांप गई। क्योंकि उस ऑडियो में जो तीसरी आवाज थी… वो किसी ओर की नहीं गजेन्द्र के पिता मुक्तेश्वर सिंह की लग रही थी।
 
रिया की आंखें भर आईं और वो कांपती हुई आवाज में बोलीं— “ये... ये कैसे हो सकता है विराज, मुझे लगता है हमे कोई गलतफहमी हो रही है?”

ये बात सुन विराज भी खुद को संभाल नहीं पाता और कहता है— “रिया…मैं भी चाहूंगा कि ये हमारी गलतफहमी हो, लेकिन अगर ये सच निकला… तो गजेन्द्र के केस में सिर्फ बाहरी लोग ही साजिश नहीं कर रहे थे…बल्कि उसके अपने पिता ने उसके खिलाफ गहरा जाल बिछाकर अंदर ही अंदर चकव्यू रचा है।”
 
ये सुनते ही रिया के हाथ से मोबाइल गिर पड़ा और उसने कांपते हुए कहा— “मतलब… हम जिस इंसान पर सबसे ज़्यादा भरोसा कर रहे हैं… वही असली चालबाज़ हो सकता है?”

विराज फिलहाल कुछ भी कहने से इंकार कर देता है, जिसके बाद रिया और विराज के बीच अगले पल, एक ब्लैक स्क्रीन की तरह सन्नाटा छा जाता है। दोनों को समझ नहीं आता कि आखिर वो किसके खिलाफ और किसके साथ लड़ रहे हैं। 

तभी धीरे से रिया की आवाज विराज के कानों में पड़ती है और वो पलट कर रिया की तरफ देखता है। उस एक पल में रिया और विराज दोनों की आंखें एक-दूसरे से टकराती है और दोनों के दिलों में एक ही सवाल गूंजता है—  “क्या हम जिस सच के लिए लड़ रहे हैं, वो ही हमें तोड़ देगा?”

तभी विराज के कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से खुलाता है, रिया चौक कर पलटती है… तो देखती है कि भीखू हांफता हुआ आया है। रिया उससे कोई सवाल करती उससे पहली है भीखू हांफती हुई आवाज में कहता है— "रिया मैडम… हवेली में आग लग गई है! जल्दी चलिए… मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करूं"

रिया और विराज दोनों आग लगने की खबर सुनते ही चौंक जाते है। दोनों के दिमाग में फिलहाल कोई सवाल नहीं आता और दोनों घबराकर भीखू के साथ महल जाने को तैयार हो जाते हैं। तभी रिया पूछती है— “ये आग अचानक कैसे लगीं और कहां?”
 
भीखू तुरंत जवाब देता है— "राज राजेश्वर साहब के स्टडी रूम में… जहां बहीखाते की असली कॉपी रखी थी… सब जल चुका है!"

ये सुनते ही रिया के पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है। तभी उसे याद आया कि उसके फोन में उसकी एक कॉपी अभी भी सेव है, तो उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है। ऐसे में रिया अपने पर्स में तुरंत अपना फोन चैक करती है, जो उसे नहीं मिलता। अब रिया की सांसे उसके हल्क में अटक जाती है। वो यहां-वहां चारों तरफ कार में अपना फोन ढूंढती है, लेकिन उसे फोन कहीं नहीं मिलता। वो तुरंत इस बारे में विराज को बताती है, जिसके बाद विराज उसे आंखों से इशारा करते हुए कहता है— “ये सब… उसी ने किया है जो नहीं चाहता कि सच कभी बाहर आए…”

रिया के चेहरे पर गुस्से और डर के भाव एक साथ घूमने लगते है— “ये सब क्या है विराज, हमारा दुश्मन हर बार हम से एक कदम आगे कैसे होता है? क्या हम कभी गजेन्द्र को इंसाफ नहीं दिला पाएंगे? और क्या राजघराना हवेली में ऐसे ही औरतों के साथ अत्याचार होता रहेगा। उस हवेली में रहने वाले हैवान ऐसे ही औरतों को अपनी रातों का खिलौना समझ खेलते और जमींन में दफनाते रहेंगे। आखिर क्यों… हम हर बार आखरी मोड पर आते-आते हार जाते है?
 
रिया के इन सवालों के जवाब में विराज उसे संभालते हुए कहता है… "देखों रिया, अब ये लड़ाई सिर्फ गजेन्द्र को बचाने की नहीं… सच को बचाने की भी है। और जो भी इसके बीच आएगा… वो बचेगा नहीं। और रही बात सबूतों के जलने की तो राज राजेश्वर ने जान बूझ कर भीखू को तुम्हारें पीछे भेजा, क्योंकि वो जानना चाहता था कि आखिर तुम्हारा साथी कौन है?”
 
विराज आगे कुछ कहता उससे पहले ही रिया के मोबाइल पर एक MMS आया, जिसका वीडियो ऑटो-प्ले मोड पर था, वो मैसेज खोलते ही अपने आप वीडियो चलने लगा।

काली स्क्रीन पर एक नकाबपोश चेहरा दिखाई दे रहा था, जिसमें भारी, कंप्यूटर-डिस्टॉर्टेड आवाज़ गूंजी— "तुमने आग से खेलना चुना है रिया शर्मा… अब जो बचेगा, वो सिर्फ राख होगी। अगला वार सीधे दिल पर होगा…तो तैयार रहना।"

उसी काली स्क्रीन के साथ वीडियो खत्म हो गया। उसे देख रिया एक पल के लिए घबरा गई और अगले ही पल उसने अपनी आंखों को पोंछा… इस वक्त उसकी आंखों में सिर्फ आग थी। एकाएक उसने विराज को खुद से दूर किया और सीधी खड़ी हुई, और खुद से बड़बड़ाते हुए उसने एक कसम खाई— “अब नहीं रुकूंगी। अब ना राजघराना बचेगा, ना उसका झूठ। अब सिर्फ इंसाफ होकर रहेगा… और उसकी आवाज़ मैं बनूंगी।”
 

 

आगे क्या करने वाली है रिया? 

क्या वो ढूंढ पायेगी अपने प्यार गजेन्द्र के असली गुनहगार को? 

क्या मुक्तेश्वर पर उनका शक सही है या फिर इसके पीछे है कोई और गहरी चाल?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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