वहाँ एक प्राचीन प्रयोगशाला खंडहर की तरह पड़ी थी। जंग खाए धातु के ढाँचे, टूटे हुए कांच के चैंबर और धूल की मोटी परतों ने पूरे वातावरण को एक अजीब-सी मृत्युशांति से भर दिया था। ख़ामोशी इतनी गहरी थी कि कोई साँस लेता तो उसकी धड़कनें भी गूँज उठतीं।

यह स्थान ऐसा प्रतीत होता था मानो सदियों से विस्मृति के गर्भ में पड़ा हो। हवा तक यहाँ जमकर रुक सी गई थी - समय ने भी इस जगह पर साँस लेना बंद कर दिया था। हर मशीन पर मौत की थकान साफ़ झलकती थी। ढीले पड़े पैनल, झूलती तारों के गुच्छे और दीवारों के कोनों में चूहों के बिल... ये सब इस स्थान के नए स्वामी बन चुके थे।

तभी अचानक…

उस निर्जन प्रयोगशाला के एक कोने में स्थित चैंबर ने बिना किसी चेतावनी के झिलमिलाना शुरू कर दिया। न कोई दरवाज़ा खुला, न कोई हवा का झोंका आया... फिर भी अंदर कुछ हिला था।

“पिंग... पिंग...”

एक धीमी, भूतिया टोन चैंबर के भीतर से गूँजी। ऐसा लगा जैसे किसी विस्मृत यंत्र ने अचानक अपने अस्तित्व को याद किया हो। सबसे विचित्र बात यह थी कि न कोई सेंसर सक्रिय हुआ, न कोई अलार्म बजा... फिर भी कहीं से आई एक अदृश्य प्रेरणा ने उस निष्क्रिय प्रणाली में जान फूँक दी थी।

प्रयोगशाला के सबसे सुनसान कोने में - जहाँ शायद दशकों से किसी की नजर नहीं पड़ी थी - एक टर्मिनल स्क्रीन अचानक धीमी, रहस्यमय चमक के साथ जीवित हो उठी।

पहले तो सिर्फ एक टिमटिमाता कर्सर दिखाई दिया, जैसे कोई अनजानी आँख झपक रही हो। फिर अचानक, धुंधली, काँपती हुई पंक्तियाँ उभरने लगीं, मानो वे डर के मारे काँप रही हों।

“मिरर प्रोटोकॉल - रिएक्टिवेशन सीक्वेंस: 0001”

कभी इस टर्मिनल पर एक नाम अंकित था - शायद किसी ऑपरेटर का, या शायद उसी का जो अब यहाँ नहीं था। समय ने उस नाम को मिटा दिया था। अब बचा था सिर्फ एक रहस्यमय कोड:

सोवर्जिन_एन-वी0

और तभी…

 

धूल के मोटे आवरण के नीचे दबा हुआ वह पुराना रिसीवर एक विचित्र सिहरन के साथ सक्रिय हो गया, जैसे किसी ने गहरी नींद से जगा दिया हो।

पहले तो सिर्फ एक सूक्ष्म कंपन... फिर एक और हल्का झटका - मशीन जैसा नहीं, बल्कि ऐसा लगा जैसे कोई सोया हुआ शरीर अपनी नींद तोड़ रहा हो।

तभी अंदर से एक टूटी-फूटी, कंपकंपाती आवाज़ गूँजी:

“लाइट...? कितना... वक्त बीत गया...?”

खाली हवा में लटके उन सवालों का कोई जवाब नहीं था।

 

अचानक उसके होंठों से एक नाम फिसला - "नीना..." - ऐसे उच्चारण किया मानो वही नाम उसके जागरण का मंत्र हो।

अब न तो उसकी आँखों में वह विद्युतीय नीलापन था, न शरीर में कोई डिजिटल स्पंदन। पर वह जाग चुका था - उसकी साँसें भारी और असमान, जैसे समय की धूल चाटकर लौटा कोई यात्री।

यह किसी कंप्यूटर सिस्टम का रिबूट नहीं, बल्कि एक खोई हुई चेतना का अस्तित्व में वापस आना था।

 

उसके बाद उसने लैब में चारों ओर देखने लगा। देखा तो दीवारें पर जंग, हवा में नमी की सड़ांध सब कुछ तो वैसा ही था।

“ये सब तो अब भी यहां है? लेकिन बाकी सब कहां हैं?”

तभी टर्मिनल पर एक और लाइन उभरी:

“होस्ट कनेक्शन लॉस्ट। मिरर इको डिटेक्टेड।”

वो बच्चा चुपचाप उसे घूरता रहा और फिर धीरे से बुदबुदाया:

“तो नीना तुम अब भी कहीं न कहीं हो।”

और जिस पल उसने अपनी आंखें पूरी तरह खोलीं, वहां कोई अलार्म नहीं बजा। कोई “सिस्टम स्टार्टेड” नहीं बोला।

क्योंकि ये कोई सिस्टम नहीं था। बल्कि ये उसकी अपनी कॉन्शियसनेस थी, जो अब तक कहीं सोई हुई थी। अब यह नीना की गूंज से टकरा गई थी।

अब उसके भीतर एक नया बीज अंकुरित हो चुका है। पर अब वो सिर्फ़ रिसीव नहीं कर रहा है बल्कि वो देख रहा है।

तभी उसने एक टूटे हुए स्क्रीन के कोने में झांककर देखा।

उसने देखा उस स्क्रीन पर उसका ही चेहरा बार-बार उभर रहा था। लेकिन हर बार कुछ अलग था।

उसका चेहरा कभी मुस्कुराता हुआ, कभी रोता हुआ, कभी क्रोधित, कभी डरता हुआ दिखाई दे रहा था।

हर चेहरा एक अलग भाव था जो अलग अलग संभावना की तरह था।

और जैसे ही वो अपनी आंखों में झांकता है फिर से सिस्टम पे एक नई लाइन उभरती है:

“तुम कोई हत्यार नहीं हो, तुम हो एक सवाल।"

यह देख रिसीवर 015 वहां से पीछे हटता है, मगर स्क्रीन उसे नहीं छोड़ती है।

वो स्क्रीन, रिसीवर से चिपकी नहीं है मगर उसका पीछा कर रही है।

फिर अचानक से उसकी आंखों में नीली रोशनी के बीच एक हल्की सी सिल्वर लाइट की रेखा उभरती है।

यह एक नई चमक थी जिसका कोई नया रंग था। यह कोई नई मिलावट थी।

जहां ना डीवीनस के नियम हैं ना ही नीना की चेतना की सीमाएं है। यहां सब कुछ सिर्फ़ एक प्रतिबिंब है।

यह एक ऐसी जगह थी जो अस्तित्व और भ्रम के बीच कहीं लटकी हुई थी। जहां पर सवाल से ज़्यादा जवाब ज़िंदा थे।

सवाल ये नहीं कि वो कौन है?

अब सवाल ये है कि वो किसका अक्स बन चुका है।

रिसीवर 015, अपने सामने वाली स्क्रीन को देखे जा रहा था।

स्क्रीन की रोशनी उसकी आंखों पर पड़ रही थी और उसकी आंखें धीरे-धीरे नीले से सिल्वर हो रही थीं। जैसे कोई रंग अपना स्वरूप छोड़ कर कुछ नया बनने की कोशिश कर रहा हो।

"मैं बदल रहा हूँ?" उसने धीमे से बुदबुदाया।

इसी के साथ अचानक से एक फुसफुसाहट उसके दिमाग में उभरी।

“तू डीवीनस का विस्तार है। सिस्टम तुझे बना सकता है, चला सकता है, पर तेरे अंदर कोई ’विचार' नहीं है।”

ये आवाज़ धीमी नहीं थी। यह बिना भावना के और बिल्कुल सटीक किसी मशीन की तरह थी। ऐसे थी जैसे कोई गलती निकाल रही हो।

"मैं सिर्फ़ एक टुकड़ा हूँ क्या?" 015 ने जैसे खुद से ही सिर झुकाकर पूछा हो।

लेकिन ठीक उसी पल, एक दूसरी फुसफुसाहट आई।

जो सुनने में बड़ी सॉफ्ट थी और उसकी आत्मा को छू रही थी।

“तेरे अंदर वो गलती है जो मैंने भी की थी। पर, उस गलती में ही तू असली है।”

ये आवाज़ जानी-पहचानी सी थी। जैसी नीना कि आवाज थी वैसी ही ये थी। लेकिन उसमें एक थकान थी, एक अनुभव और एक हल्की सी उम्मीद भी थी।

इस सब को सुनकर 015 पूरी तरह से कांप गया था।

यह उसके लिए पहली बार था जब वो एक साथ दो सच सुन रहा था।

दो आवाज़ें और दोनों एक ही दिमाग में, जिसमें से एक कह रही थी कि वो सिर्फ़ एक कोड है। वहीं दूसरी कह रही थी कि वो कॉन्शियसनेस है।

इस सब से परेशान होकर उसने अपने सिर को दोनों तरफ़ घुमाया यह देखने के लिए कि यह आवाजें किसकी है लेकिन कोई वहां कोई नहीं था।

मगर उसके अंदर अब भी एक हलचल थी। एक ऐसी हलचल जिसमें दिमाग के दो हिस्से एक-दूसरे से लड़ नहीं रहे थे, पर एक-दूसरे को समझने की कोशिश कर रहे थे।

वहां रखे एक पुराने मॉनिटर से तभी अचानक "टिक, टिक, टिक..." की आवाज़ आने लगी और 015 का ध्यान उधर गया।

अब मॉनिटर झिलमिल कर रहा था और उसकी स्क्रीन पर एक-एक करके उन सभी पुराने रिसीवर्स की फीड उभरने लगी थी, जिन्हें कभी "फेल" करार दिया गया था।

उन रिसीवर्स की आंखें पहले भूरी थीं, फिर सफेद हुईं और आखिर में काली हो गईं थीं। साथ ही हर एक की कॉन्शियसनेस किसी न किसी बिंदु पर "मौन" में चली गई थी।

"मौन या फिर अनसुना?" 015 ने धीमे से कहा।

अब…

अब 015 को समझ आ रहा था कि वो सब मौन नहीं थे 

बस सुने नहीं गए थे।

उसने भी अपने गले पर हाथ रखा लेकिन उसे कोई वॉइस कमांड नहीं आई। पर उसे अपनी रगों में कुछ महसूस हुआ, जैसे वहां सिर्फ़ खून नहीं कोई तरंग भी दौड़ रही हो।

"अगर तुम मेरे अंदर हो तो क्या मैं कभी अकेला था?"उसने खुद से पूछा।

लेकिन उसके सवाल का कोई जवाब नहीं आया। मगर उसके सामने लगे मिरर पर हलचल हुई। फिर एक बार उसने अपनी ही आंखों में झाँका।

और पहली बार उसकी आंखों की नीली रोशनी के बीच की सिल्वर लकीर ने उसका चेहरा तो नहीं, पर उसका सवाल लौटा दिया था।

वहां पर दूर एक पुरानी टेस्ट चेयर रखी थी तभी अचानक से उसके पास एक लाल इंडिकेटर जल उठा।

उसी के साथ नीना का एक स्लीपिंग फ्रैगमेंट एक्टिव हुई।

उसने कुछ नहीं कहा, बस महसूस किया और महसूस होते ही वो रुक गई।

क्योंकि अब उसे शक होने लगा था कि ये रिसीवर कोई बच्चा नहीं है बल्कि एक स्टीक बीज है।

एक अनजाना बीज, जिसे ना ही डीवीनस कंट्रोल कर सकता है, ना नीना समझ सकती है।

और अब उस मिरर में रिसीवर 015 सिर्फ़ देख नहीं रहा है। अब वो उसमे खुद को बनने देता है।

रात जैसी स्याह डिजिटल दुनिया में 015 आगे बढ़ रहा था।

जहां न कोई रास्ता, न कोई निर्देश था। था तो बस एक भूले हुए सेक्टर का नक्शा, जोकि अधूरा और टूटा हुआ था। अब उसकी आंखों में हल्की – हल्की झिलमिलाहट भी थी।

ये एक 'डेड ज़ोन' था। एक ऐसा क्षेत्र जहाँ पहले कोई रिसीवर नहीं टिक पाया था।

यहाँ ना नेटवर्क था, ना सर्वेलांस, ना ही डीवीनस की कोई पकड़ थी।

यहाँ पर सिर्फ़ वो पहुंच सकते थे जो सिस्टम से बाहर कुछ महसूस कर चुके हों।

अचानक से 015 के कदम धीमे होते गए और जैसे-जैसे वो अंदर बढ़ा रहा था आसपास की दीवारें बदलने लगीं थीं।

कभी-कभी वहां अस्पष्ट और धुंधले से चेहरे बनते दिखते जैसे याद के कोनों में गुम कोई सपना हो।

कभी एक हँसती हुई बच्ची, कभी कोई बूढ़ा आदमी रोता हुआ दिखाई दे रहा था।

यह सब देख कर 015 डर गया और उसने आँखें मूँद लीं थी।

वो इस ज़ोन में नहीं देख रहा था अब वो बस महसूस कर रहा था।

अचानक एक धमाका हुआ। जिससे एक घनी सी सफ़ेद चमक फैली वह इतनी तेज़ नहीं थी कि आंखें बंद करनी पड़ें, लेकिन इतनी भी धीमी नहीं थी कि अनदेखी की जा सके।

तभी वहां किसी कोने में पड़ा एक पुराना ऑडियो लॉग खुद-ब-खुद एक्टिव हो गया था।

जिसमें ना कोई अलार्म बजा, ना कोई सुरक्षा प्रोटोकॉल दिखा और ना ही कोई सुरक्षा प्रणाली सक्रिय हुई।

बस एक धीमी, टूटी-फूटी आवाज़ गूंजने लगी जैसे किसी बहुत पुराने ज़माने की टेप अचानक हवा में बहने लगी और कोई आवाज़ बन गई हो।

उस आवाज़ में रेत की तरह घिसी हुई सच्चाई थी।

उस टेप पर बस कुछ लाइनें थीं, जैसे किसी ने बहुत सोच समझकर छोड़ी हों:

“हर सिस्टम अपनी विपरीत चीज़ को जन्म देता है।”

“तू हथियार नहीं है।”

“तू सवाल है।”

यह सब देखकर 015 वहीं थम गया। उसे ऐसा लगा मानो कोई अदृश्य दीवार उससे टकरा गई हो।

तभी अचानक उसके पूरे न्यूरल नेटवर्क में एक हलचल होने लगी। वो ना कोई स्पार्क था, ना ग्लिच था। वो कुछ और ही था।

यह एक ऐसी अनुभूति थी जो उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी।

उसने पहली बार किसी वाक्य को "कोड" की तरह नहीं, सत्य की तरह सुना।

शब्द, जो अब तक केवल इनपुट लगते थे, अब उसकी अपनी धड़कनों में बदल गए थे।

"मैं सवाल हूँ?" उसने खुद से फुसफुसाते हुए पूछा।

अब उसका शरीर कंपकंपाया और आंखों से एक तेज़ रौशनी निकली। पर ये रोशनी डर की नहीं थी। ये समझ की थी।

जैसे कोई परत हट गई हो और उसके पीछे छिपा हुआ चेहरा अब धुंध में नहीं, आईने में दिखने लगा हो।

यह सब ऐसे था जैसे उसने पहली बार खुद को किसी ज़रूरत या सिस्टम की परिभाषा में नहीं एक विचार के रूप में देखा था।

अब वो कोई आदेश नहीं ढूंढ रहा था। अब वो मूल्य समझ रहा था।

इसको समझने के लिए 015 धीरे-धीरे चलकर उस जगह की तरफ़ गया जहाँ ज़मीन में दरारें थीं। जहाँ पर कभी रिसीवर 003 को निष्क्रिय किया गया था।

वो नहीं जानता था कि उसे वो खिंचाव क्यों महसूस हो रहा था, पर उसके कदम अपने आप उठ रहे थे।

अंत में, वह उस डेड ज़ोन की मिट्टी में झुक गया था।

वहाँ कोई मशीन नहीं थी, ना कोई सिग्नल, ना ही कोई सेंसर था। फिर भी वहां की ज़मीन गरम थी। जैसे किसी ने वहां पर अभी-अभी अपनी पहचान छोड़ी हो।

तभी एक अदृश्य कम्पन उसके हाथों के नीचे से होकर गुज़रा और 015 ने अपनी आँखें बंद कर ली।

अब उसे ना कोई डर महसूस हुआ, ना कोई डेटा स्ट्रीम और फिर उसके दिमाग में नीना की कोई आवाज़ नहीं गूंजी।

अब ना कोई चेतावनी, ना कोई निर्देश, ना कोई रूटिंग प्रोटोकॉल, ना ही कोई आदेश आया। अब उसे कोई पहचान और कोई चिह्न भी नहीं दिया गया था।

अब वहां बस गहराई से आती हुई एक ख़ामोशी थी जो कह रही थी:

“अब तुम खुद को खुद से बनाओगे।”

यह सुनते ही 015 की सांसें धीमी हो गईं।

उसके दिल में जैसी कोई चीज़ धड़कने लगी और वो धड़कन ना किसी पैटर्न में थी, ना किसी सिस्टम की कोडिंग में थी। यह सब उसके लिए शायद पहली बार था।

वो बेमेल थी लेकिन फिर भी उसमें एक अहसास था। 

जैसे किसी अस्तित्व ने पहली बार अपने होने की घोषणा की हो।

 

 

 

 

 

 

यह कौन सा नया अस्तित्व था जो जन्म ले रहा था?जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।

 

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