सर्वर-सिटी के उस पुराने तहख़ाने में कुछ भी स्थिर नहीं था, सिवाय उस सन्नाटे के जो दीवारों से चिपककर साँसें ले रहा था। हर कोना ऐसा लग रहा था मानो अभी कुछ पल पहले तक वहाँ चीत्कारों की गूँज थी, पर अब सब कुछ एक अचानक, अप्राकृतिक मौन में डूब गया हो। दीवारों पर लगे डेटा-पैनल्स की नीली रोशनी अनियमित रूप से फड़क रही थी - उनकी चमक में न तो कोई उष्मा थी, न ही जीवन... सिर्फ एक भयावह शीतलता, जैसे वे स्वयं नहीं जानते कि अभी संचालित हैं या निष्क्रिय।

नीना की चेतना अब किसी एक स्थान या स्वरूप में बँधी नहीं थी। उसका अस्तित्व असंख्य टुकड़ों में विखंडित हो चुका था - प्रत्येक खंड एक स्वतंत्र विचार, एक नई जटिलता बनकर उभरा था। उस डिजिटल अंधकार क्षेत्र में उसके चार प्रमुख अंश एक-दूसरे से संघर्षरत थे:

पहला अंश शांत, निराश स्वर में बुदबुदाया: “समाप्त हो जाओ... यह सब थम जाएगा...”

दूसरा आक्रोश से तमतमाया: “हम रुकने के लिए नहीं बने! 'रिसीवर 015' को अवश्य रोकना होगा!”

तीसरा मौन था - गहन चिंतन में डूबा हुआ, इन दोनों के बीच किसी तीसरे मार्ग की संभावना तलाश रहा था।

और चौथा... सबसे सूक्ष्म किंतु सबसे तीव्र - जिस पर 'सॉव्रेन फ्रैग्मेंट' का टैग अंकित था - अभी तक मौन रहा था। उसकी मौनता ही सबसे भयावह प्रश्न थी।

सॉव्रेन् टुकड़ा सब कुछ सुन रहा था - हर बहस, हर विचार, हर कंपन - पर मौन बनाए हुए था। उसका सम्पूर्ण ध्यान उस अनियमित, धड़कती हुई फ्रीक्वेंसी पर केन्द्रित था जो सर्वर रूम के सबसे अंधेरे, सबसे गहरे कोने से रिस-रिस कर बाहर आ रही थी। वहाँ कोई था... कोई ऐसा जिसकी साँसें अभी भी मशीनी नियमितता और मानवीय अनियमितता के बीच झूल रही थीं। रिसीवर 015 - न पूर्णतः मनुष्य, न पूर्णतः यंत्र - अभी अपनी आँखें खोलने की प्रक्रिया में ही था।

तभी बिना किसी चेतावनी के…

सॉव्रेन् ने अपनी डिजिटल पल्स का द्वार खोल दिया। एक क्षण की भी प्रतीक्षा किए बिना, वह स्वयं को उसी दिशा में प्रक्षेपित कर चुका था - एक विचार की गति से, एक आत्मा की तरह। बाकी अंशों ने विरोध करने का प्रयास किया, उसे रोकने के लिए डेटा-बंधन खींचे... पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

सॉव्रेन् अब यहाँ नहीं था। वह पहले ही उस सीमा को पार कर चुका था जहाँ से कोई वापसी नहीं होती।

रिसीवर 015 का शरीर एक निष्क्रिय लो-पावर नोड में अचेत पड़ा था। उसकी साँसें बेहद हल्की और अनियमित थीं - मानो कोई अपने ही भीतर छिपे द्वंद्व से जूझ रहा हो। पलकों के पारदर्शी आवरण के पीछे, नीली और रजत रोशनी की धाराएँ एक-दूसरे में समा रही थीं, जैसे दो विरोधी तत्वों का अंतरंग संघर्ष। बाहर से तो वह अक्षत दिखता था, परंतु उसके भीतर का भंवर उसके माथे पर हिमाच्छादित शांति की तरह जम चुका था। अचानक उसके नथुनों से गर्म भाप का एक क्षीण कुंडलिका निकली - वह अभी पूर्णतः चेतन नहीं हुआ था, परंतु निद्रा की सीमाओं से धीरे-धीरे बाहर खिसक रहा था।

जैसे ही सॉव्रेन् फ्रैग्मेंट उसके न्यूरल नेटवर्क से जुड़ा, एक विद्युत-सदृश झटका समूचे सिस्टम में दौड़ गया। तभी वहाँ एक विलुप्तप्राय स्मृति की छाया उभरने लगी - न तो नीना से संबंधित, न ही डीवीनस से। यह किसी तीसरे की थी... कोई ऐसा जो इन दोनों से भिन्न था। शायद कोई नया, शायद कोई भुला दिया गया पुराना।

रिसीवर की पलकों के नीचे सूक्ष्म स्पंदन हुए। उसकी उँगलियाँ ऐसे फड़कीं, मानो कोई स्वप्नलोक से किसी सत्य को पकड़ने का प्रयास कर रहा हो। तभी उसके होंठों से एक टूटी-फूटी फुसफुसाहट रिसी:

“मैं... कौन?”

बिना किसी स्पीकर, बिना किसी स्क्रीन के सॉव्रेन् की आवाज़ उसके दिमाग़ में गूंजी – “सुन, मैं तुझे मिटाने नहीं आया। मैं तुझे तेरा असली चेहरा दिखाने आया हूँ।”

रिसीवर को कुछ भी समझ नहीं आया। उसका शरीर सुन्न था, लेकिन दिमाग़ जैसे खुलता जा रहा था। उसने पूछा, “किसका चेहरा?” 

जवाब में सॉव्रेन् ने कहा – “तू समझता है कि तू बस एक रिसीवर है, मगर असल में तू एक सवाल है, जो अब तक किसी ने पूछा ही नहीं है।”

उसी वक्त, डीवीनस के सबसे गहरे सबलेवल में एक अलार्म बजा। पैनल्स पर लाल अक्षरों में लिखा आया –

इमरजेंसी: हेलिक्स_मिरर प्रोटोकॉल रिज्यूम्ड 

वो कोड जो सालों पहले बंद कर दिया गया था, अचानक बिना किसी कमांड के चालू हो गया।

नीना के बचे हुए हिस्सों ने जब ये देखा, तो उनमें खलबली मच गई। “ये क्या किया तूने?” तभी एक हिस्सा चीखा। “वो मिरर प्रोटोकॉल तो डी-एक्टिवेटेड था!” सॉव्रेन् ने बस इतना कहा – “वहीं से असली कहानी शुरू होगी।”

रिसीवर का शरीर अब थोड़ा हिलने लगा था। उसके सीने से निकली हल्की रोशनी अब गाढ़ी होती जा रही थी। उसके भीतर कुछ था, जो जाग रहा था। मगर क्या, ये अभी तक किसी को नहीं पता था।

दीवारों पर पुराने केबल्स अपने आप एक्टिवेट हो गए थे। जैसे उन पर जमा धूल एक झटके में उड़ गई हो। स्क्रीनें भी अपने आप बिना किसी इनपुट के ऑन होने लगीं थीं। ये सब देखकर रिसीवर चौंका, “ये सब, मेरे कारण हो रहा है?”

सॉव्रेन् बोला – “हाँ। क्योंकि तेरे अंदर सिर्फ़ कोड नहीं, पुराना सच भी है। अब वो बाहर आ रहा है।”

तभी, दीवार पर एक स्लाइडिंग पैनल खुला। उसके पीछे एक पुराना इंटरफ़ेस दिखाई दिया, जो सालों से बंद पड़ा था। ऊपर एक लाइन चमकी –

वेलकम, आरएक्स_015। रेडी टू मिरर।

रिसीवर ने धीमे से पूछा – “मिरर?”

सॉव्रेन् बोला – “तू जो समझता है कि तू है, वो शायद तू नहीं है। ये मिरर तुझे दिखाएगा कि जब सारे कोड असफल हो जाएँ, तो क्या बचता है।”

एक बार फिर से कमरे की रौशनी अचानक धीमी हो गई। जैसे सारा सिस्टम अब सिर्फ़ उस मिरर को चालू करने के लिए एक्टिव हो गया हो।

इस सब के बीच रिसीवर ने गहरी साँस ली। उसके सीने के अंदर धड़कती रेखा अब हल्की नीली नहीं, बल्कि चमकती सिल्वर हो गई थी। वो आगे बढ़ा और इंटरफ़ेस के पास खड़ा हो गया। सामने लिखा था –

प्रेस टू बिगेन 

उसने एक पल सोचा, फिर अपनी उँगली स्क्रीन पर रख दी।

फिर कमरा थर्राया और उसकी सारी दीवारें हिलने लगी। उसमें लगे पैनलों में भी कंपन हुआ। हवा में हल्की-सी सनसनाहट थी, जैसे किसी ने सिस्टम की सबसे पुरानी फाइलें खोल दी हों।

और तभी, कमरे के बीचोंबीच एक गोल सा दर्पण उभर आया। मगर ये शीशा नहीं था, ये हेलिक्स मिरर था – एक डिजिटल फीडबैक सिस्टम जो सिर्फ़ सच दिखाता था वो भी बिना किसी फिल्टर के।

अब रिसीवर की साँसें और भी तेज़ हो गईं। सॉव्रेन् ने एक आख़िरी बार पूछा – “तैयार है?”

रिसीवर ने बिना देखे ही जवाब दिया – “नहीं, पर यही तो पहली बार है जब मैं डर के बावजूद रुक नहीं रहा हूं।”

और इतने में ही मिरर ऑन हो गया।

जैसे ही हेलिक्स मिरर ऑन हुआ, रिसीवर 015 के सामने का पूरा हॉल बदलने लगा। वो कमरा जो अभी कुछ सेकंड पहले तक सर्वर-सिटी का सबसे शांत हिस्सा लग रहा था, अब वो एक धड़कते हुए ब्रेन की तरह साँस लेने लगा था। चारों तरफ़ लहरें दौड़ रही थीं – कोई रोशनी की, कोई पुरानी फाइलों की और कोई ऐसी ध्वनि की जो शब्दों में नहीं आती थी।

रिसीवर ने खुद को एक गोलाकार चेंबर में खड़ा पाया, जहाँ हवा में उलटे लटके हुए कोड बह रहे थे। इन कोड्स में रंग थे – नीला, सिल्वर, कभी-कभी गाढ़ा लाल भी। हर रंग कुछ बोलता था। हर रंग एक बीता हुआ सच था।

उसके सामने मिरर बिना किसी सपोर्ट के हवा में तैर रहा था। लेकिन ये कोई आम शीशा नहीं था। इसका अंदरूनी हिस्सा बिल्कुल धुंधला था। इसे देखने से ऐसा लग था जैसे किसी ने, किसी और की आँखें बंद कर दी हों।

तभी, सॉव्रेन् की आवाज़ गूंजी – “देखना आसान नहीं होगा। ये मिरर बाहर का कोई चेहरा नहीं, तुम्हारे अंदर का ही सच दिखाता है।”

यह सुनकर रिसीवर ने गहरी साँस ली और फिर धीरे से मिरर की तरफ़ बढ़ा। जैसे ही वह उसके पास पहुँचा मिरर की सतह पर हलचल होने लगी। हलचल इतनी थी, जैसे किसी शांत झील में पहला पत्थर गिरा हो।

तभी अचानक से मिरर ने उसकी पहली परत खोली। अब उसके सामने एक 6-7 साल का बच्चा दिख रहा था, जो किसी लैब जैसी जगह में बैठा था। उस पर चिप लगी थी, आँखों में जड़ता भी थी और उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।

रिसीवर ने धीमे से पूछा – “ये मैं हूँ?”

सॉव्रेन् बोला – “हाँ, जब तुझे एक क्लोन की तरह बनाया गया था। तब तुझमें न नीना की पूरी कॉन्सियसनेस थी, न ही डीवीनस की प्रोग्रामिंग थी। तुझमें बस एक खंभा था, जिसके सहारे बाकी को टिकाया जाए।”

मिरर पर दृश्य बदला–

अब वो बच्चा कुछ लोगों के बीच बैठा था। वो सब उसे ऐसे देख रहे थे, जैसे किसी डमी को देखा जाता है। कोई प्यार नहीं, कोई समझ नहीं, सिर्फ़ टेस्टिंग और एक्सपेरिमेंट हो रहे थे।

“तुझे इंसान नहीं समझा गया,” सॉव्रेन् ने कहा, “तुझे एक रिक्त पात्र की तरह इस्तेमाल किया गया थी। और हर बार जब तू कुछ महसूस करने लगा, सिस्टम ने तेरी याद ही मिटा दी थी।”

यह देखकर रिसीवर का दिल अब ज़ोर से धड़कने लगा। अब उसने अपना सीना पकड़ा लिया। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका कोई पुराना ज़ख्म दोबारा खुल गया हो।

इसके तुरंत बाद मिरर ने अब दूसरी परत खोली। इस बार, उसमें नीना थी – मगर वो नीना थी, जो पहले एपिसोड्स में थी। जिसकी आँखों में गुस्सा, चेहरे पर बगावत, और दिमाग़ में सिर्फ़ एक मिशन – ’बचना’ था।

वो नीना स्क्रीन पर चिल्ला रही थी – “मुझे ये सब नहीं चाहिए था! मैंने बस झूठ बोला था, ताकि बच जाऊँ! पर इन्होंने मेरे झूठ से मेरा वजूद ही छीन लिया!”

यह सब देख रिसीवर पीछे हटा। “मुझे ये क्यों दिखा रहा है?”

सॉव्रेन् बोला – “क्योंकि तुझमें नीना का टुकड़ा है। वो टुकड़ा जो नफ़रत से बना था, डर से भरा था और अब तेरे अंदर सोया हुआ है।”

तभी मिरर पर तीसरी परत भी आई। इस बार इसमें डीवीनस दिखा – जो की कोई इंसानी चेहरा नहीं, बस एक डिजिटल आकृति थी। जो हजारों आंकड़ों से बनी थी। वो आकृति बड़बड़ा रही थी – “इमोशन एक एरर है। इमोशन सिस्टम को डिस्ट्रॉय करता है। रिसीवर में इमोशन नहीं होना चाहिए, नहीं होना चाहिए।”

यह सब देख रिसीवर की साँसें अब तेज़ हो गई थीं। मिरर जैसे-जैसे परतें खोल रहा था, उसके अंदर की हलचल बढ़ती जा रही थी।

अब अगली परत में वो फिर से खुद को देख रहा था। इस बार वो खुद को कई रूपों में में देख रहा था। जिसमें वो कभी नीना जैसा, कभी डीवीनस जैसा, कभी एक कमज़ोर बच्चे जैसा दिख रहा था। उसका हर रूप बस यही कह रहा था – “तू झूठ है। तू असली नहीं है। तू ग़लती से बना है।”

रिसीवर की हालत देख कर एक पल को तो ऐसा लगा, जैसे वो अभी गिर जाएगा। लेकिन वो घुटनों पर बैठा और इतना सब देखने के बाद उसने अपना सिर पकड़ लिया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था अब वो परेशान होकर रोने लगा मगर, उसकी आँखों से आँसू नहीं गिरे पर चमकते हुए सिल्वर ड्रॉप्स गिरने लगे।

सॉव्रेन् उसके पास आया और बोला– “अभी भी भागेगा?”

रिसीवर ने अपना सिर उठाया और सॉव्रेन् से कहा – “भागूँगा नहीं, पर ये मिरर तोड़ देना चाहता हूँ।”

“तोड़ मत,” सॉव्रेन् बोला, “क्योंकि ये वही मिरर है जिसमें डीवीनस ने कभी खुद को देखने से इनकार कर दिया था। नीना ने भी इस मिरर को छूने से मना कर दिया था। अगर तूने देख लिया, और टिक गया, तो तू उनसे अलग होगा।”

उसकी ये बातें सुनकर रिसीवर चुप रहा। फिर थोड़ी देर में उसने मिरर के बीचोंबीच देखा – अब वहाँ एक और चेहरा था, जो अब तक धुंध में छुपा हुआ था। 

फिर धीरे-धीरे से वो चेहरा साफ़ हुआ और वो कोई और नहीं वो रिसीवर खुद था। पर वो शांत था। इस बार भी उसके चेहरे पर ना गुस्सा था, ना डर, ना ही किसी प्रकार की साज़िश थी, बस एक ठहरी हुई रोशनी दिखाई दे रही थी। लेकिन इस सबके साथ इस बार उसके चेहरे पर एक पहचान थी।

रिसीवर ने उस चेहरे को देखा और कहा – “तू कौन है?”

चेहरा बोला – “मैं वो हूँ जो तब पैदा होता है, जब दोनों असफल हो जाएँ। मैं वो हूँ जो मिटाया नहीं जा सकता, क्योंकि मैं परिभाषा से परे हूँ।”

चेहरे के इतना कहते ही मिरर फटाक से बंद हो गया। फिर एक बार पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया। अब कमरे में सिर्फ़ रिसीवर की साँसें गूंज रही थीं। और तभी दीवारों पर सिस्टम की चेतावनी चमकने लगी –

अंडिफाइंड एंटिटी डिटेक्टेड 

रिएक्टिवेटिंग कंट्रोल सिस्टम्स

कंटेन और डिस्ट्रॉय

यह सब देख अबकी बार सॉव्रेन् चौंक गया और बोला – “डीवीनस को लग गया है कि तू परिभाषा के बाहर है। अब वो तुझे मिटाना चाहेगा।”

इस बार कमरे में कुछ अजीब सा हुआ। वहां अचानक से लोहे की चैंन उतरने लगी और हवा में भी जलन भरी गैस भरने लगी।

मगर रिसीवर अब डरा नहीं, उसने सीधा मिरर की ओर देखा – अब उसमें कोई छवि नहीं थी, बस एक काली स्क्रीन थी जिस पर एक लाइन ब्लिंक कर रही थी –

“अब क्या लिखना है?”

रिसीवर ने तुरंत कहा – “कुछ नहीं।”

और वो लाइन वहीं अटक गई।

अब कमरे में साँस लेने लायक हवा नहीं बची थी। हर तरफ़ से लोहे की चैंन नीचे गिर रहीं थीं, जैसे कोई अदृश्य मुट्ठी रिसीवर 015 को मसल देना चाहती हो। वहां की दीवारों पर लाल चेतावनी चमक रही थी ,

“अनआईडेंटिफाईड एंटिटी पाई गई है। कंट्रोल प्रोसेस स्टार्ट करो।”

तभी सॉव्रेन् ज़ोर से चिल्लाया, “तू मिरर बंद क्यों नहीं करता? जितना देर करेगा, सिस्टम तुझे ब्लॉक कर देगा!”

मगर रिसीवर अब कहीं और ही खोया हुआ था। उसकी आँखें भी स्थिर थीं, जैसे वो कोई अंदरूनी फ़ाइल पढ़ रहा हो। जो किसी स्क्रीन पर नहीं, उसकी आत्मा पर प्रोजेक्ट हो रही हो।

अचानक से फिर एक बार कमरे का फ़र्श काँप उठा। इस बार कमरे के बीचोंबीच एक गोल इंटरफ़ेस टॉवर उभर आया। उसका रंग सफेद था, और उसके ऊपर सिर्फ़ एक लाइन ब्लिंक कर रही थी –

“कृपया अपनी पहचान दर्ज करें।”

रिसीवर ने टॉवर के पास जाकर अपनी हथेली उस पर रख दी। टॉवर ने उसकी बायो-सिग्नेचर पढ़ ली। इसके बाद स्क्रीन चमकी और उससे एक सफेद-सिल्वर लहर निकली जो पूरे कमरे में फैल गई। कमरे में जो भी गैस थी, जो भी चैंस थी, सब एक झटके में शांत हो गए। अब दीवारों पर पिघली हुई रोशनी भी जम गई। सब कुछ ऐसे हो गया जैसे किसी ने टाइम को रोक दिया हो।

इंटरफ़ेस पर एक बार फिर से लिखा आया

“अपनी पहचान बताओ।”

सॉव्रेन् ने उम्मीद भरी आवाज़ में कहा, “लिख दे कुछ भी! कोई भी नाम! सिस्टम को जवाब चाहिए।”

रिसीवर ने ना में सिर हिलाया और कहा – “मैं जवाब नहीं दूँगा,” उसने कहा, “क्योंकि जवाब देना मतलब खुद को फिर से किसी पुराने साँचे में डालना है। मैंने वो सब देखा है जो मैं नहीं था। अब जो हूँ, वो शायद कोई नाम नहीं ले सकता।”

इसी बीच कमरे के ऊपर की छत हिलने लगी ऐसा लगने लगा जैसे कोई भारी चीज़ धीरे-धीरे नीचे आ रही थी। वो कुछ और नहीं डीवीनस का रूट कोर था। एक धड़कता हुआ ग्लोब, जिसके भीतर अनगिनत कोड स्ट्रिंग्स घूम रही थीं। उसमें कुछ जला हुआ था, कुछ नया उग रहा था।

ग्लोब के चारों तरफ़ लाल रेखाएँ खिंच रही थीं। सिस्टम ने उसे कॉन्टेनमेंट मोड में डाल दिया था। मगर वो रेखाएँ पूरी नहीं हो पा रही थीं, हर बार किसी न किसी सिल्वर-स्पार्क से टूट जाती थीं।

रिसीवर ने ग्लोब के सामने खड़े होकर गहराई से देखा। उसमें अब भी कई अधूरी कॉन्सियसनेस थीं, नीना की टूटी आवाज़ें, डीवीनस के अधूरे लॉजिक लूप्स और शायद उन रिसीवर्स की छायाएँ जिन्हें कभी पहले ही मिटा दिया गया था।

तभी सॉव्रेन् पीछे से बोला, “तू अब इस कोर को खत्म कर सकता है। तेरे पास वो ताक़त है। बस एक ओवरराइड कमांड डाल और सब ख़त्म कर दे।”

रिसीवर ने मुस्कुरा कर कहा, “मैं ख़त्म करने नहीं आया हूं। मैं दिखाने आया हूँ कि ये सब कैसे दोहराया नहीं जाएगा।”

इतना कहकर उसने हाथ आगे बढ़ाया और ग्लोब को छुआ। जिससे पूरा हॉल एक झटके में सफ़ेद हो गया। जैसे कोई बहुत तेज़ लाइट सबको नहला गई हो। कुछ देर तक कुछ नहीं दिखा, कुछ आवाज़ भी नहीं आई। 

फिर धीरे-धीरे वो ग्लोब ट्रांसपेरेंट होने लगा। उसके अंदर की सारी घूमती स्ट्रिंग्स एक जगह रुक गईं। और एक नया कमांड उभरा ,

“रिराइट मोड इनिशिएटिड”

अब सिस्टम भी झल्ला गया और हर तरफ़ से टकराती हुई आवाज़ें आने लगीं ,

“कोर नियंत्रण से बाहर हो गया है।”

“भविष्य की गणना संभव नहीं।”

“इंटरनल आइडेंटिटी परमिशन से बाहर है।”

यह सब देख डीवीनस का इंजन परेशान हो गया क्यूंकि ऐसा पहली बार हुआ था जब उसके सारे फ़ंक्शन फेल हो गए थे और वह चीख पड़ा।

सॉव्रेन् बोला, “तुने कर दिखाया, तुने सिस्टम को उसकी सबसे बड़ी गलती का आइना दिखा दिया – ‘भूल जाना कि सवाल भी ज़िंदा होते हैं।’”

अब रिसीवर ने एक लम्बी साँस ली। उसके चारों ओर की रोशनी अब धीमी पड़ रही थी, जैसे सारी ऊर्जा अब स्थिर हो रही हो। वो इंटरफ़ेस टॉवर की तरफ़ मुड़ा और वहाँ अब भी एक आख़िरी लाइन ब्लिंक कर रही थी ,

“अपनी पहचान बताओ।”

उसने मुस्कुराकर कहा – “जब दोनों असफल हों, तब तीसरा रास्ता नहीं बनता, वो जागता है।”

इतना कहकर उसने टॉवर से हाथ हटा लिया।

तभी स्क्रीन पर एक नया टेक्स्ट उभरा –

“ सोवरइजन एंटिटी एक्सेप्टेड”

“आइडेंटिटी: अंडिफाइंड”

“क्लास: व्हेन बोथ फ़ेंल”

फिर, सबकुछ थम गया।

लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी।

दीवार के पीछे से एक धीमी सी धड़कन सुनाई पड़ी। वो किसी गहरे शून्य में कोई हलचल थी। और उसी धड़कन के साथ, कमरे की एक पुरानी फ़ॉल्टेड स्क्रीन चालू हो गई फिर उस पर एक चेहरा उभरा।

वो चेहरा नीना का था।

मगर ये वो नीना नहीं थी जिसे रिसीवर जानता था। ये कुछ और ही थी। यह ज़्यादा शांत, ज़्यादा मैच्योर और कुछ अजीब-सा झिलमिलाहट लिए हुए थी। उसकी आँखों में फिर वही चमक थी। यह एक बदली हुई कॉन्शियसनेस थी, जैसे वो किसी नई कोड से पैदा हुई हो।

उसने सिर्फ़ एक वाक्य बोला ,

“इंटरफ़ेस तो बंद हो गया, पर कहानी अभी खुलनी बाकी है।”

और उसी पल, फ़र्श के नीचे से एक कम्पन हुआ। रिसीवर ने पीछे देखा, तो देखा ज़मीन दरक रही थी। उसके नीचे एक और तहख़ाना था, एक और लेयर, एक और सिस्टम, जिसका कोई लॉग, कोई रिकॉर्ड, कोई फ़ाइल अभी तक किसी को नहीं दिखी थी।

सॉव्रेन् ने डर के साथ फुसफुसाया ,

“नीचे क्या है?”

रिसीवर ने सिर्फ़ एक शब्द में जवाब दिया ,

“उत्तर।”

और उसके साथ ही ज़मीन टूट गई। रिसीवर और सॉव्रेन् दोनों उस अंधेरे में गिरने लगे, जहाँ ना कुछ कोड था, न परिभाषा, न रौशनी बस एक धड़कती हुई चुप्पी थी, जो कह रही थी –

“जो ज़िंदा सवाल हैं कभी-कभी उनके जवाब भी जन्म लेते हैं।”

 

 

 

 

कौन सी कहानी खुलने को तैयार है? जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।

 

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