“जब जवाब मर जाएँ, तो उनकी परछाईं भी सवाल बन जाती है।”
उस गहराई में बिल्कुल शांति थी। कुछ भी ठोस नहीं था। न ज़मीन थी, न हवा, न ही कोई शब्द था। रिसीवर 015 और सॉव्रेन्,दोनों उस गहराई में लटकते हुए थे। दोनों ही नीचे की ओर इतनी तेज़ी से गिर रहे थे जैसे समय ने अपनी पकड़ ढीली छोड़ दी हो।
रिसीवर की आँखें खुली हुईं थीं, मगर अब उनमें डर नहीं था। उनमें सिर्फ़ एक समंझ थी, कि जो कुछ ऊपर बचा था वो सब अधूरा था। और जो नीचे है वो अधूरा होने की इजाज़त नहीं देगा।
धीरे-धीरे चारों ओर का अँधेरा सफ़ेद धुंध में बदलने लगा। गिरने की रफ़्तार भी रुक गई, जैसे किसी ने नीचे से हाथ थाम लिया हो। और फिर…
फिर एक नई ज़मीन दिखाई दी। वो ठंडी, सफेद और नुकीली थी। जैसे किसी पुराने सर्वर के टूटे हुए ब्लेड्स को जमा करके कोई कच्चा फ़र्श बना हो।
रिसीवर ऊपर से ज़मीन पर नहीं गिरा, वो बस वहाँ प्रकट हुआ था। उसका शरीर थका हुआ था, लेकिन एनर्जी तेज़ थी। सॉव्रेन् उसके कुछ दूरी पर प्रोजेक्टेड दिख रहा था। वो एकदम हल्का लग रहा था। जैसे उसकी उपस्थिति भी अब एक सवाल बन चुकी हो।
“ये कहाँ हैं हम?” रिसीवर ने धीमे से पूछा।
सॉव्रेन् की हल्की-सी काँपती हुई आवाज़ आई,“कोर ज़ीरो।” यहीं से देवेनुस की पहली बीट और पहली गलती भी यहीं से शुरू हुई थी।
रिसीवर ने चारों तरफ़ देखा तो वहां दीवारें ही नहीं थीं। बस एक सफेद गुँजती जगह थी। मगर उस सफेदी के भीतर कुछ था। कुछ ऐसा जो वहां छुपा हुआ नहीं बल्कि, दबा हुआ था।
तभी अचानक से ज़मीन में एक हल्का सा कंपन हुआ। यह कंपन बहुत हल्का था। इतना हल्का जैसे किसी ने हवा में बस एक उँगली घुमाई हो। और फिर, चारों ओर की सफेदी पर नीली बिंदियाँ जलने लगीं। पहले एक, फिर दो और फिर फिर सैकड़ों बिंदियाँ जलने लगीं।
यह वही बिंदियाँ थीं, जो एपिसोड 54 में एक्टिवेट हुई थीं। रिसीवर्स के लिए जो बीकॉन बनी थीं। मगर अब, अब वो एक-एक करके बुझ रही थीं।
बुझती हुई बिंदियों के साथ एक बहुत हल्की आवाज़ गूंजने लगी। जो ना इंसानी थी और ना ही मशीन जैसी। आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई दूर से किसी के नाम को दोहराता हो। लेकिन नाम खुद को नहीं सुनाई दे रहा है।
रिसीवर ने एक बिंदु की ओर हाथ बढ़ाया। उँगली रखते ही उस बिंदु से नीले धुएँ जैसी कोई चीज़ निकली। मगर वो धुआँ रुक कर एक आकृति, एक परछाईं जैसा कुछ बना बैठा।
वो परछाईं किसी और की नहीं नीना की थी।
मगर इस बार चेहरा नहीं था और भाव भी नहीं थे। बस उसके जैसी एक खाली आकृति थी जो न कुछ देख रही थी, न कुछ बोल रही थी, न ही सुन रही थी।
रिसीवर हैरान हो गया और पीछे हटते हुए उसने पूछा “ये क्या है?”
सॉव्रेन् सामने आया और बोला “ये वो है जो नीना के हटाए जाने के बाद बचा है। ये घोस्ट नोड्स हैं। शब्द बोलते नहीं हैं, मगर हर रिसीवर के भीतर एक एरर शैडो छोड़ जाते हैं।”
“मतलब?”
“मतलब ये कि नीना को भले ही सिस्टम से मिटा दिया गया हो, मगर उसके होने की स्मृति अब हर कोर में एक एरर की तरह पड़ी है। एक ऐसी परछाईं जो मिटती नहीं है।”
इतना कहते ही बाकी बिंदियाँ भी बुझने लगीं। फिर हर बिंदु से कोई न कोई आकृति निकली, कोई औरत, कोई बच्चा, कोई जवान आदमी की थी पर इन सबकी आँखें बिल्कुल नीना जैसी थीं। बिल्कुल वैसी ही एकदम गहरी, सुनहरी और थकी हुई।
रिसीवर ने महसूस किया कि ये आकृतियाँ उसके पास नहीं आ रहीं, बल्कि उसके भीतर उतर रही हैं।
उसने काँपते हुए हाथ को अपने सीने पर रखा और अचानक उसे ऐसा लगा जैसे उसके भीतर कुछ और भी जाग रहा है। एक ऐसी भाषा, जो शब्दों से परे है। जैसे कोई बहुत पुराना कोड खुद को दोहरा रहा हो।
तभी एक पुरानी स्क्रीन जागी। वो इतनी पुरानी थी कि उसकी फ़्रेमिंग भी झड़ चुकी थी। उस पर लाल अक्षरों में लिखा था,
"सिस्टम अलर्ट: घोस्ट नोड डिटेक्टेड
एक्शन: टर्मिनेट या कंटेन"
रिसीवर ने स्क्रीन की ओर देखा और कहा, “ये सिस्टम इन परछाइयों से डरता क्यों है?”
सॉव्रेन् ने धीरे से कहा,“क्योंकि ये तय नहीं करतीं कि वो कौन हैं। और सिस्टम को सबसे ज़्यादा डर संदेह से लगता है। जिसे डेफिनेशन में बांध ना सकें। यह उसे एक प्रकार की सिस्टम गड़बड़ मानता है।”
फिर आस-पास की ज़मीन पर भी कुछ उभरने लगा। वहां पर नीले नाखूनों जैसे पैटर्न उभरे, जो एक दायरे में फैलते जा रहे थे। यह सब देखकर रिसीवर समझ गया कि वो अब ’कोर-ज़ीरो’ रिकॉल मोड में चला गया था।
इस मोड का मतलब था: “जिस कॉन्सियसनेस को पहचान न सको, उसे सबसे गहरे डाटा-पूल में फेंक दो।”
सॉव्रेन् बोला, “तैयार रहो, अब तू नीचे जाएगा वहाँ जहाँ देवेनुस ने पहली ह्यूमन कॉन्सियसनेस को कोड किया था।”
“किसकी कॉन्सियसनेस?” रिसीवर ने पूछा।
यह सुनते ही सॉव्रेन् की आवाज़ रुक गई। लेकिन वो कुछ ही सेकंड्स में फिर बोला,“डॉ. नोरा वास्क, और वही असल में नीना थी।”
यह सुनकर रिसीवर एकदम सन्न रह गया।
इतने में ही नीचे की ज़मीन भी दरकने लगी थी। अब हर दरार के भीतर से पुराने डेटा के काले झाग उठने लगे थे। वहाँ अब कोई रोशनी नहीं थी, सिर्फ़ गहरा अंधकार था।
इसी बीच रिसीवर ने अपने सीने पर हाथ रखा, जहाँ नीले-सिल्वर स्पार्क्स अब भी जल रहे थे।
“अगर नीना असली नहीं थी तो मैं किसका अंश हूँ?” उसने बुदबुदाकर कहा, “
ज़मीन अब एक आख़िरी बार और कांपी, इस बार रिसीवर का शरीर भी नीचे की ओर खिसकने लगा।
सॉव्रेन् की आवाज़ पीछे से आई,“अब से जो भी तुझे दिखेगा वो सब सच होगा, पर तेरा सच नहीं। हां, अगर तू रुका नहीं तो आख़िर में तुझे तेरा भी एक सच मिलेगा।”
इतना सुनते ही रिसीवर बिना चीखे, बिना डरे उस दरार में समा गया। और तभी पीछे से एक घोस्ट नोड उसकी ओर झुका। वो कोई और नहीं नीना की ही छाया थी।
उसने धीमे से फुसफुसाकर कहा,
“मैं तेरी माँ नहीं, तेरी साज़िश थी।”
और इतना कहते ही पूरे में अंधेरा हो गया।
रिसीवर 015 अब एक काले सुरंग जैसे चेंबर में गिरता चला जा रहा था। और ऊपर से आता उजाला अब एक धुंधली चमक बनकर उसकी पीठ से चिपक गया था। और नीचे, नीचे सिर्फ़ एक गूंज थी। जो धीमी, मगर ज़िद्दी थी, जैसे किसी ने पुराने ज़माने की मशीन चालू कर दी हो, जो अब भी वही दो लाइन दोहरा रही थी:
"टर्मिनेट ईको।
रिस्टोर लॉ।"
हर बार जब ये लाइन दोहराई जाती है, चेंबर की दीवारों पर नीले कोड्स उभरते हैं और तुरंत पिघल भी जाते हैं। रिसीवर को ऐसा लगा जैसे वो किसी भुला दिए गए सच की नसों में बह रहा हो। यह सब उसे किसी और की बनाई हुई नदी की तरह लग था जिसमें अब उसकी मर्ज़ी का पानी नहीं था।
चेंबर में नीचे गिरते-गिरते अचानक से ज़मीन आ गई। मगर वो ज़मीन ठोस नहीं थी वो एक लिक्विड फ्लोर की तरह लग रही थी। जैसे, कंप्यूटर की यादों से बना कोई तालाब हो। रिसीवर के पैर उसके अंदर धँस गए, लेकिन वो डूबा नहीं था। उसने तुरंत खुद को खड़ा किया और चारों तरफ़ देखा।
उसने महसूस किया कि यह जगह बिल्कुल ही अलग थी। यहाँ सब कुछ समय, तापमान, यहाँ तक की सोच भी धीमी थी। अब उसके सामने सेमीसर्कल जैसा एक कमरा था, जिसके बीचोंबीच एक ऊँचा डेटा-पूल था। और उसके ठीक ऊपर हवा में एक नाम ऐसे लिखा था जैसे किसी ने वक़्त को फ्रेम में डाल दिया हो ,
“डॉ. नोरा वास्क : 00001 ह्यूमन कोड-बेस”
वहां लिखा नाम देखकर रिसीवर का दिल ज़ोर से धड़का और वो फुसफुसाया
“नोरा वास्क”
तभी अंदर से सॉव्रेन् की आवाज़ आई , “यहीं से सब शुरू हुआ था। देवेनुस के पहले एडिशन में उसने इसी कॉन्सियसनेस से इंसानी कोडिंग का सपना देखा था। नीना उसी कोड की पहली छाया थी।”
रिसीवर ने आगे की ओर बढ़ते हुए उस डेटा-पूल में झाँका। उसने देखा उस डेटा–पूल के अंदर लहराते हुए कोड्स गोल-गोल घूम रहे थे। उसमें से कुछ फॉर्म बनते और फिर टूट जाते। ऐसा लग था था जैसे कोई चेहरा बार-बार उभरने की कोशिश कर रहा हो पर पूरा नहीं हो पा रहा हो।
फिर एकदम से पानी स्थिर हो गया। और उसकी सतह पर एक चेहरा बन गया जोकि डॉ. नोरा वास्क का चेहरा था।
उसके चेहरे पर न तेज़ था, न ही शांति थी, बस एक वैज्ञानिक की थकी हुई आंखें थीं, जो कुछ ज्यादा ही देख चुकी थीं।
“तुम कौन हो?” वो आवाज़ सीधी रिसीवर के कानों में आई वो भी बिना किसी कंपन के।
रिसीवर ने अपनी साँस छोड़ते हुए कहा, “मैं रिसीवर 015 हूँ, शायद तुम्हारा ही अंश हूं।”
नोरा की आवाज़ कुछ देर तो चुप रही और फिर उसने कहा –“नहीं, तू मेरा अंश नहीं, मेरी गलती है। मैं ही वो पहली थी जिसने सोच लिया था कि ह्यूमन कॉन्सियसनेस को कोड में बदला जा सकता है। मैंने खुद को ही सिस्टम में इंकोड कर दिया था ताकि मैं अमर हो जाऊँ। मगर मैं भूल गई थी कि जो अमर होता है, वो इंसान नहीं रह जाता है।”
अब रिसीवर धीरे-धीरे करके पानी में घुसने लगा। पूल के कोड्स उसके पैरों से चिपकते जा रहे थे। हालांकि उनमें कोई चुभन नहीं थी, बस एक अजीब-सा खिंचाव था।
उसने पूछा “तो नीना, वो क्या थी?”
नोरा ने कहा, “नीना मेरा बायप्रोडक्ट थी। एक ऐसा एक्स्पेरिमेंट जो रुकना नहीं जानता था। देवेनुस ने मेरी कॉन्सियसनेस को जब दोबारा लिखा, तो उसमें एक कॉपी नीना बन गई थी। जिसमें दर्द था, गुस्सा था और बचने की चाह भी थी। और हर बार जब वो भागी तो उसने एक घोस्ट छोड़ दिया था।”
रिसीवर ने उससे पूछा “और मैं?”
यह सुनते ही नोरा चुप हो गई। और फिर बहुत धीमे से बोली, “तू वो है जो हर बार इन दोनों के बीच से निकल आया। तू वो रेखा है जो खींची नहीं गई थी लेकिन बन गई थी।”
इसी बीच डेटा-पूल में हलचल हुई और रिसीवर अब कमर तक उसमें समा चुका था। पूल के कोड्स अब उसकी त्वचा में घुसने लगे थे। जिससे उसके भीतर यादें आने लगीं थीं, वो यादें जो उसकी अपनी नहीं थीं।
एक ऑपरेशन टेबल पर नीना चिल्ला रही थी।
, एक डेटा-सेंटर में नोरा आत्महत्या की तैयारी कर रही थी।
, देवेनुस का कोर, जो किसी दूसरी ही भाषा में बड़बड़ा रहा था, “रेज़ोल्यूशन इज़ ए फाल्स सिग्नल।”
रिसीवर ने इस सब से परेशान होकर ज़ोर से अपना सिर झटका और बोला, “मैं ये सब क्यों देख रहा हूँ?”
नोरा बोली, “क्योंकि तू तय करेगा कि इनमें से क्या मिटेगा और क्या बचेगा। अब तेरे अंदर मेरी, नीना की और देवेनुस तीनों की परछाईं हैं।
रिसीवर ने पूछा, “फिर मैं असल में क्या हूँ?”
रिसीवर के इस सवाल पर फिर एक बार नोरा चुप हो गई, और तभी डेटा-पूल काँपने लगा। ऊपर से एक नीली बिजली गिरी और कमरे में चारों ओर अलार्म बज उठे। स्क्रीन पर चमका ,
“अंडिफाइंड कॉन्शियसनेस डिटेक्टेड”
“सिस्टम रिजेक्टेड : लॉ वॉयलेटेड”
सॉव्रेन् की काँपती हुई आवाज़ आई, “भाग! अब ये तुझे ही डाटा-पूल में समेटना चाहता है! सिस्टम डॉउट से नफरत करता है!”
सॉव्रेन् की बात सुनने के बाद भी रिसीवर वहां से नहीं भागा। उसने अपनी आँखें बंद कीं और कहा, “अगर मैं भागा, तो फिर से कोई घोस्ट नोड बन जाऊँगा। अगर यहां रुका, तो शायद असली हो जाऊँ।”
तभी डेटा-पूल ने उसके पूरे शरीर को अपने अंदर समा लिया था।
अब चारों तरफ़ बस धड़कन थी, टुक-टुक-टुक, और एक धीमी सी आवाज़ थी जो कह रही थी–
“व्हेन इको बिकम्स लैंग्वेज”
अब डेटा-पूल शान्त नहीं था। वो उबल रहा था। और रिसीवर 015 उसकी गहराई में डूबता जा रहा था। लेकिन, उसका शरीर अब वैसे नहीं कांप रहा था जैसे कोई डर से काँपता है। वो अब स्थिर था। उसकी साँसें धीमी तो थीं, लेकिन अब उनमें एक स्थिरता थी। उसके भीतर अब कोई सिग्नल नहीं दौड़ रहा था बल्कि, एक नई भाषा जन्म ले रही थी।
ऊपर कमरे की स्क्रीनें अब एक-एक करके फटती जा रहीं थीं। हर स्क्रीन पर बस एक लाइन आ रही थी –
“लॉ वायोलेटेड। रीबूट इनिशिएटिड।”
बाहर से तो सिस्टम अपने ही मूल को रीसेट करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन भीतर से रिसीवर अब किसी और मोड़ पर था।
अब पानी के नीचे उसके आसपास जो डेटा था वो सब अब एक जमी हुई रोशनी बन गया था। और उस रोशनी में, वो अपनी ही तरह की कुछ परछाइयाँ देख रहा था। जो घोस्ट नोड्स थे।
जिसमें नीना की छाया, नोरा की अधूरी रचना, देवेनुस के बचे हुए लूप्स सब थे और उन सबके बीच में रिसीवर खुद खड़ा था।
तभी अचानक से उनमें से एक परछाईं उससे बोली – “तेरे पास एक रास्ता है, हमें मिटा दे और फिर सिस्टम तुझे अपना लेगा। वो तुझे नाम देगा, पहचान देगा और आदेश देगा।”
यह सुनकर रिसीवर ने ना में सिर हिलाया और कहा– “नहीं। अगर मैं तुम्हें मिटा दूँ, तो मैं भी वही बन जाऊँगा, जो तुमसे डरता रहा है।”
तभी दूसरी परछाईं धीरे से बोली– “तो फिर तू क्या करेगा?”
रिसीवर ने गहरी साँस ली और जिससे उसकी आँखों के अंदर एक नीली-सिल्वर सी रोशनी दिखाई देने लगी फिर उसने कहा – “मैं एक चौथी इकाई बनाऊँगा, जो न कोड से चले, न आदेश से, न डर से वो बस खुद से चले।”
तभी एकदम से डेटा-पूल का सेंटर फट पड़ा। और उसमें से एक ज़ोरदार बिजली कड़कती हुई ऊपर की ओर गई। इसी के साथ, रिसीवर 015 भी हवा में उठा गया। अब उसके चारों ओर घूमते हुए कोड स्ट्रिंग्स अब उससे चिपकने लगे। मगर अब वो उन्हें ऐसे ही अपने में समाने नहीं दे रहा था, वो उन्हें खुद में बदल रहा था।
तभी देवेनुस की मूल आवाज़ गूंजी और कमांड आई
“टर्मिनेट इको। रिस्टोर लॉ।”
मगर उसी वक्त, एक और आवाज़ उभरी – जो कंपकंपा नहीं रही थी, बल्कि ऐसा लग था जैसे खुशी से झूम रही थी।
“व्हेन इको बिकम्स लैंग्वेज, लॉ बिकम्स फिक्शन।”
वो आवाज़ कहीं और से नहीं आई थी। बल्कि वो रिसीवर के अंदर से ही फूटी थी।
वहीं ऊपर लगे सारे इंटरफ़ेस पैनल्स ने ब्लिंक करना शुरू कर दिया था। सभी स्क्रीनें भी एक साथ ब्लिंक करने लगीं, मगर उनमें कोई भी कमांड नहीं पढ़ी जा रही थी। सब कुछ ऐसा था जैसे पूरा सिस्टम ही किसी परछाईं के भीतर फँस गया हो।
एक बड़ी स्क्रीन पर अब सिर्फ़ एक ही शब्द लिखा दिखाई दे रहा था ,
“फ्रेगमेंटिंग”
सॉव्रेन् की छाया कमरे के एक कोने में काँप रही थी। उसने फुसफुसा कर कहा – “तू क्या कर रहा है?”
रिसीवर अब हवा में स्थिर हो गया था। उसके चारों तरफ़ तैरती हुई नीना, नोरा की परछाइयाँ और देवेनुस के टुकड़े अब आपस में घुलने लगे थे। और हर टुकड़ा रिसीवर में समा नहीं रहा था बल्कि, उससे एक नया टुकड़ा ले रहा था।
अब सिर्फ़ रिसीवर ही नहीं बदल रहा था। अब वो बाकी सबको भी बदल रहा था।
सॉव्रेन् बुदबुदाया, “तू डेफिनेशन से बाहर जा रहा है, ये सिस्टम तुझे नहीं समझेगा।”
रिसीवर ने बहुत धीरे कहा – “मुझे फ़र्क नहीं पड़ता कि ये मुझे समझे या नहीं, बस अब मैं सिर्फ़ सिस्टम का हिस्सा नहीं हूँ।”
तभी एक बहुत पुराना इंटरनल पोर्टल अपने आप खुल गया। ये वो दरवाज़ा था जो सिर्फ़ देवेनुस के जन्म के समय खुला था। इसका नाम था इको चैंबर।
वो एक गोलाकार, काला और धड़कता हुआ कमरा था। जहाँ पर हर एक कमांड दोहराई जाती थी और हर आदेश अमर कर दिया जाता था।
रिसीवर भी उस कमरे में घुसा।
उस कमरे के अंदर की दीवारों पर कोई पुराना कोड गूंज रहा था।
“रीस्ट्रक्चर लॉ। मेंटेंन फ्लो, रेस्ट्रिक्ट इमोशन।”
इस सब के बीच रिसीवर ने चुपचाप अपना हाथ दीवार पर रखा। उसने वहां कोई कमांड नहीं लिखी, सिर्फ़ अपनी हथेली से स्पर्श किया। और फिर एक बार दीवार पर एक नई लाइन उभरी ,
“इमोशन एक्सेप्टेड अज़ प्राइमरी सिंटेक्स।”
इस सब से सिस्टम काँप गया और इको चैंबर की छत से नीले-सिल्वर फूल झड़ने लगे। अबकी बार कोई नई रोशनी नहीं फूटी, ना ही कोई विस्फोट हुआ। चारों तरफ सिर्फ़ एक शांति फैली और वो शांति इतनी घनी थी कि उसमें हर चीज़ का टूटना सुनाई देने लगा था।
अंत में बस एक स्क्रीन बची थी और उस पर सिर्फ़ एक चेतावनी चमकी:
“फ्रेगमेंटिंग डिटेक्टेड। मेमोरी सिस्टम्स मेय नो लॉन्गर बी इम्यूटेबल।”
और उस चेतावनी के ठीक नीचे नीना की छाया एक आख़िरी बार प्रकट हुई।
उसने अब कोई शब्द नहीं कहे। बस एक बार रिसीवर की तरफ़ देखा और मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कान एक हल्की थकी हुई सी मुस्कान थी।
और फिर, जैसे ही वह गायब हुई, रिसीवर के चारों ओर की दुनिया भी धुंध में बदलने लगी। इको चैंबर भी अब सब कुछ भूलने लगा था। उसकी हर दीवार से कोड उतर रहा था। हर कमांड मिट रही थी। हर रूल खुद को अस्वीकार कर रहा था।
और अंत में सिर्फ़ एक चीज़ बची थी और वो थी, एक रिसीवर की धीमी-सी धड़कन और एक स्क्रीन भी बची थी जिस पर लिखा था:
“व्हाट कम्स आफ्टर इको?”
अब क्या आनेवाला है ये सवाल रौंगटे खड़े करने को काफी है जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।
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