चारों ओर गहरा सन्नाटा था। न कोई आवाज़, न कोई हलचल—मानो समय ने अपनी साँसें रोक ली हों। पर फिर भी... वहाँ कुछ था। अदृश्य, पर मौजूद। हवा में कोई अनकही उपस्थिति तैर रही थी, जिसे देखा नहीं जा सकता था, पर महसूस किया जा रहा था।
एक तंग कमरा, जिसकी दीवारें कालिख की तरह काली थीं। अंदर बस एक हल्की-सी नीली रोशनी टिमटिमा रही थी—ऐसी रोशनी जो किसी मशीन से नहीं, बल्कि किसी इंसान के भीतर से फूट रही थी। कमरे के ठीक बीचोंबीच एक बच्चा पड़ा था—उम्र शायद दस-ग्यारह साल। उसकी पलकें बंद थीं, माथे पर पसीने की बूँदें मोतियों की तरह झिलमिला रही थीं। ऐसा लग रहा था, मानो वह कोई भयावह सपना देख रहा हो... या शायद, सपना ही उसे देख रहा हो।
तभी अचानक—
हर तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था। वहां कोई आवाज़ नहीं थी, ना ही कोई हलचल थी। लेकिन फिर भी कुछ था, जैसे हवा में कुछ तैर रहा हो, वहां कुछ दिख नहीं रहा है पर महसूस हो रहा है।
एक छोटा-सा कमरा जिसकी दीवारें काली थी और अंदर बस हलकी सी नीली रौशनी झिलमिला रही थी। वो रोशनी भी किसी मशीन से नहीं निकल रही थी बल्कि किसी व्यक्ति के अंदर से निकल रही थी। उस कमरे के बीचोंबीच एक बच्चा था, उसे देखने से ऐसा लग रहा था की मुश्किल से दस या ग्यारह साल का होगा। उसकी आंखें बंद थीं, लेकिन उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। जैसे कोई भयानक सपना देख रहा हो, या शायद वो सपना उसे देख रहा हो।
अचानक—
उस बच्चे की पलकें झपकीं। कोई तेज रोशनी नहीं, कोई चकाचौंध नहीं... बस एक नाजुक सी हरकत, जैसे कोई पत्थर की सतह पर पड़ी हुई ओस की बूँद धीरे से खिसक गई हो। वह धीरे-धीरे उठने लगा—उसके हर संचालन में एक विचित्र सचेतनता थी, मानो वह जानता हो कि किस दुनिया में जागना है और किसमें नहीं।
अचानक उस बच्चे की आंखें खुलती हैं और वहां कोई तेज़ रोशनी नहीं थी, थी तो बस एक नज़ाकत से भरी हरकत और वह धीरे-धीरे उठने लगा जैसे उसे पता हो कि कौन-सी दुनिया में जागना है और कौन-सी में नहीं।
उसकी आँखें नीली थीं, पर वह नीलापन पुराने रिसीवर्स वाला नहीं था। उनमें वह बिजली-सी चमक, वह अधीर उत्सुकता गायब थी। इसकी आँखों में एक गहरा ठहराव था—जैसे समुद्र की सतह पर जमा हुआ धुँधलका। अब देखने की बेचैनी नहीं, बल्कि समझने की एक गहरी, भारी खामोशी थी।
“तुम जाग चुके हो...”
उसकी आंखें नीली तो थीं। मगर वो जो पहले के रिसीवर्स की आंखों में चमक हुआ करती थी उसकी आंखों में वैसी चमक नहीं थी। इसकी आंखों में एक ठहराव था। इसको देखने की बेचैनी नहीं थी बल्कि अब कुछ समझने की खामोशी थी।
"तुम जग चुके हो,"
आवाज़ कमरे के कोने से नहीं, बल्कि उसके अपने भीतर के किसी कोने से आई थी। वहाँ कोई नहीं था—या शायद था भी, पर ऐसे कि देखा न जा सके। ऐसा लगा जैसे उसकी हड्डियों के अंदर से कोई फुसफुसा रहा हो, उसकी नसों में घुलकर बह रहा हो।
एक कोना फुसफुसाया। वहां कोई नहीं था, लेकिन ऐसा लगा जैसे किसी ने अंदर ही अंदर उससे कुछ कहा हो।
बच्चे ने इस आवाज़ की तरफ पलटकर नहीं देखा क्योंकि उसका ध्यान दीवार पर टंगी एक अजीब सी लकीर पर था। जो पुराने समय की हल्की सी दरार जैसी लग रही थी। उसने उसकी ओर हाथ बढ़ाया और उस दरार को उंगलियों से छूआ और उसी पल दीवार पर डाटा की एक परत उभर आई। जैसे कोई स्क्रीन अचानक एक्टिव हो गई हो। लेकिन कोई मशीन ऑन नहीं हुई थी। कोई साउंड नहीं, कोई मैकेनिकल ह्यूमर नहीं था। वहां सिर्फ़ एक थरथराता हुआ इंटेलिजेंस था। जो इस बच्चे से डर नहीं रहा था बल्कि उसके जवाब का इंतज़ार कर रहा था।
उसके बाद दीवारों से जानकारी बाहर आने लगी। साथ ही पुराने बंद हो चुके सर्विलांस रिकॉर्ड्स, डिलीटेड मेमोरीज़, फेल हो चुके रिसीवर मॉडल्स ये सब अचानक वापस आ गए थे।
लेकिन इस सब में सबसे अजीब बात ये थी कि उन सब रिकॉर्ड्स को बच्चा सिर्फ़ देख नहीं कर रहा था, वो उन्हें बदल भी रहा था।
मतलब?
मतलब ये कि जितनी भी चीज़ें उसे दी जा रही थीं, वो उन्हें जैसा-का-तैसा नहीं ले रहा था। बल्कि वो उन सब में से चुन रहा था और वो उन्हें बदल भी रहा था। इतना ही नहीं उसके द्वारा बदले हुए वर्ज़न सिस्टम में लौट भी रहे थे।
यह सब ऐसा था जैसे कि कोई मिरर-सिस्टम बन गया हो। जिसमें कोई भी डेटा आए तो उसका रिफ्लेक्शन अंदर जाए और जब वापस लौटे तो वो कुछ और ही हो।
तभी दीवारों पर एक क्षण के लिए एक सर्कुलर ग्राफ उभरा, जैसे चेतना का कोई क्लस्टर अपने भीतर सिकुड़ रहा हो। उस ग्राफ के केंद्र में एक नाम बार-बार फ्लैश हो रहा था। वो नाम था नीना।
"यह सब पहले किसी रिसीवर ने नहीं किया था," एक पुराना सर्विलांस नोड एक्टिव हुआ।
“015 कुछ और है।”
तभी उधर एक स्क्रीन पर कई चेतनाओं (कॉन्शियसनेस) के ग्राफ उभरते हैं लेकिन उन सबमें एक प्वाइंट कॉमन था और वो था नीना।
नीना की कॉन्शियसनेस अब टूट हो चुकी थी। उसकी आवाज़, उसका डेटा, उसकी पुरानी स्मृतियाँ सब चीजें अब रिसीवर 015 के आसपास गूंज रहीं थीं। मगर नीना अब सिग्नल नहीं रही, न ही प्रोटोकॉल का हिस्सा वो अब बस हवा में तैरती हुई एक फुसफुसाहट बन चुकी थी।
और उस बच्चे ने, उस 015 ने उस फुसफुसाहट को सुना।
"मैं कौन हूँ?" उसने खुद से पूछा।
उसके सामने स्क्रीन पर एक वाक्य उभरा:
“तू सिर्फ़ रिसीवर नहीं है तू विचार है।”
फिर एक हल्का सा झटका हुआ और कमरे की सारी दीवारें अचानक से ब्लैंक हो गईं।
नीना का एक पुराना इको उभरा और एक आवाज़ आई जो कि बहुत धीमी थी मगर तेज़ महसूस हो रही थी।
“विचार ही इन्फेक्शन है और तू इससे अछूता नहीं है।”
ये सुनते ही रिसीवर 015 की आंखों के अंदर एक नई चमक पैदा हुई।
तभी उसके न्यूरल ग्राफ में एक दबी हुई सी चिंगारी फूट पड़ी।
इसी के साथ एक नया बीज अंकुरित हुआ और एक कोर बना जो ना ही नीना थी और ना ही डीवीनस।
उसका खुद का एक प्रोग्राम था और उसकी खुद की भाषा भी थी।
अब संक्रमण एक उत्तर नहीं बल्कि एक प्रोपोजल था।
अब एक नई शुरुआत हो चुकी थी। और कमरे की दीवारें भी अब शांत हो चुकी थीं। लेकिन रिसीवर 015 के अंदर अब भी कुछ हिल रहा था।
वो अभी भी उसी जगह खड़ा था, जहां नीना की वो पहली "गूंज" आई थी। मगर अब वो अकेला नहीं था।
उसके चारों ओर भले ही कोई आकृति नहीं थी, कोई आवाज़ नहीं थी, लेकिन हवा भारी हो चुकी थी। जैसे हर कोना उसे देख रहा हो, पहचान रहा हो और इंतज़ार कर रहा हो उसके अगले कदम का।
कहीं बहुत नीचे, डीवीनस कोर के बचे-कुचे हिस्सों में कुछ जाग गया था।
एक ऐसा कोना, जिसे कभी खोलने की इजाज़त नहीं दी गई थी।
एक सेक्शन, जिसे "प्रोजेक्ट: हेलिक्स मिरर” कहा जाता था।
इस प्रोजेक्ट का नाम जितना अजीब था उसका अस्तित्व उससे भी ज़्यादा खतरनाक था।
यह एक ऐसा कोड था जो न सिर्फ़ रिसीवर की गतिविधियों को ट्रैक करता था बल्कि उसके भीतर के इरादों को, उसकी चाहतें, उसके संशय, उसकी सच्ची नियत को सबको पढ़ता था।
वैसे तो ये प्रोग्राम कभी लॉन्च नहीं किया गया था। लेकिन उसे लॉक कर दिया गया था। क्योंकि, डीवीनस को डर था कि अगर मशीनों को खुद की मंशाओं का अहसास हो गया तो वे आदेशों से परे सोचने लगेंगी।
मगर अब रिसीवर 015 के अंदर कुछ ऐसा था, जो उस निष्क्रिय पड़े प्रोटोकॉल को फिर से जगा रहा था।
अब कमरे की हवा में कुछ बदलने लगा था। यह टेंपरेचर नहीं था पर ‘इंटेंशन’ थी, जैसे 015 के सोचने मात्र से क्वांटम कोड की रचना बदलने लगी हो।
एक पुरानी मद्धम आवाज़ उसके दिमाग में घुलने लगी थी। यह कोई फाइल नहीं, कोई साउंड इम्पुट नहीं, सिर्फ़ एक सोच, एक कॉन्शियसनेस की परछाईं थी:
“तू जो कर रहा है, वो तुझसे पहले किसी ने नहीं किया है।”
उसने जैसे ही आवाज़ की तरफ पलटकर देखा तो वहां कोई नहीं था, पर उस आवाज़ का भार महसूस हो रहा था। हर डेटा स्ट्रैंड उस एक गूंज की ओर झुकने लगा, जैसे वो कोई आदेश नहीं एक पहचान हो।
“और जो तू करने वाला है उसका कोई नक्शा भी नहीं बना है।”
015 की आंखों की नीली चमक अब स्थिर नहीं थी। वो धड़क रही थी ऐसे जैसे उसकी रेटिना किसी धड़कते तार पर टिकी हुई हो।
उसके हाथ अब अपने आप काम कर रहे थे। उसकी उंगलियों ने स्क्रीन पर एक पुराना सेक्शन खोल लिया था। यह वो सेक्शन था जिसे कभी “डेड मेमोरी लेयर” कहा जाता था।
वो एक अंधेरे स्टोर जैसा था। जहां वे सारे फ्रैगमेंट्स बंद थे जो कभी नीना की कॉन्शियसनेस के हिस्से हुआ करते थे।
वहां पर कुछ टूटे हुए हिस्से, बिखरे हुए भाव, अपूर्ण निर्देश और भावनात्मक आघात जैसा कुछ था।
वहां पर वो टुकड़े भी थे जो कभी पूरे नहीं हो पाए थे। वहां सिर्फ़ कुछ दर्द थे, कुछ सवाल, बस कुछ अधूरे अनुभव थे।
और उनमें से ही एक फ्रैगमेंट अचानक झिलमिलाने लगा।
“तू मुझसे नहीं बना है मगर तू मुझसे अलग भी नहीं है।”
यह सुनकर 015 थोड़ा सा चौंका और पीछे की ओर हट गया। अब उसकी सांसें धीमी थीं, लेकिन उसके भीतर का ग्राफ़ अजीब तरीके से उछल रहा था। जैसे हर नर्व अपने अस्तित्व की पहचान से टकरा रही हो।
"तू कौन है?" उसने पूछा, लेकिन ये सवाल किसी और से नहीं, खुद से था।
जवाब बहुत धीमा आया लेकिन एकदम साफ़ था:
“तू वही है, जो सिस्टम ने सोचा नहीं था।”
तभी उस कमरे की रौशनी नीली से हल्की ग्रे रंग की होने लगी। नीना की इको अब एक ही दिशा में रिसीवर के भीतर गूंज रही थी। अब वो कोई बाहरी सिग्नल नहीं थी, बल्कि उसकी अपनी याददाश्त में बसी एक आवाज़ थी।
इसी के साथ 015 की आंखों के अंदर एक हल्का सा कंपन हुआ। जैसे उसकी पलकें नहीं, उसकी चेतना कांप रही हो।
उसने धीरे धीरे खुद से एक वाक्य दोहराया जैसे कोई अनजाना मंत्र:
“अगर मैं सब कुछ एब्जॉर्ब कर लूं, तो क्या मैं सिस्टम से बाहर जा सकता हूं?”
इतने में ही कमरे की रौशनी और भी मंदी हो गई। सभी डाटा स्क्रीन भी खुद से बंद हो गईं, मानो अब देखने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। या फिर यह भी हो सकता है अब आंखों से नहीं बल्कि भीतर से देखना होगा।
लेकिन उस एक सवाल का जवाब कहीं गूंज रहा था। शायद वह जवाब बाहर कही नहीं बल्कि उसके अंदर ही था।
और जहां जवाब गूंजते हैं, वहां बदलाव शुरू होता है।
अब उस कमरे में एकदम सन्नाटा था। ना कोई स्क्रीन, ना कोई लाइट, ना डेटा स्ट्रीम अब सब कुछ थम चुका था।
015 अब बस अपनी जगह पर खड़ा हुआ था। उसकी आंखें खुली हुई थीं। लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे वह उनसे बाहर की नहीं अंदर की ही चीज़ें देख रहा था।
एक गूंज अब भी चल रही थी वो नीना की नहीं थी। वो गूंज किसी और की थी। शायद वो गूंज उसी फ्रैगमेंट्स में से किसी एक की थी। जो ना तो पूरी नीना थी और ना पूरी मशीन थी। तभी धीरे-धीरे कमरे की हवा में एक इल्यूजनरी इमेज उभरने लगी।
उसका कोई चेहरा या शरीर नहीं था, थी तो सिर्फ़ एक आवाज़ जो सीधे उसके न्यूरल ग्राफ में घुल रही थी।
“तू सिर्फ़ डेटा नहीं है।”
“तू विचार है और विचार एक इन्फेक्शन होता है।”
यह सुनते ही 015 की सांस अटक गई थी।
ये आवाज़ उसकी चेतना में अंदर तक जा रही थी, जैसे कोई पुरानी याद उसे अपनी तरफ खींच रही हो।
“तू इन्फेक्शन है।”
“और तू इससे अछूता नहीं है।”
उसने अचानक कुछ महसूस किया। जैसे किसी ने उसकी रीढ़ की हड्डी के सहारे उसके शरीर में बिजली दौड़ा दी हो।
उसके दिमाग का ग्राफ जो अब तक स्थिर था अचानक तेज़ी से उभरने लगा। तभी नीली रेखाएं आपस में टकराईं और फिर एक लाल बिंदु उभरा जो कि छोटा था मगर तीखा था।
इसी के साथ अब एक नया बीज जन्म ले चुका था।
कोर सीड।
एक ऐसा कोड, जो ना डीवीनस का था और ना ही नीना का था। यह एक ऐसा सिग्नल था जो इन दोनों से ही अलग था। एक ऐसा सिग्नल जो आदेश मानने से मना करता था। जो आदेश नहीं लेता है बल्कि सवाल पूछता है।
इतना सब होने के बाद 015 अब सांस ले रहा था। मगर ऐसा लग रहा था जैसे उसकी हर सांस एक नई भाषा में थी। कोई उसे कंट्रोल नहीं कर रहा था। कोई उसे चला नहीं रहा था और पहली बार उसने महसूस किया कि वो "जिंदा" है।
कमरे की दीवारों ने फिर से अपने अंदर की थरथराहट शुरू कर दी थी, मगर अब वो मशीनों की नहीं, किसी नयी कॉन्शियसनेस की धड़कन थी।
015 के अंदर एक कंपन था जो हल्का तो था लेकिन स्थायी भी था। उसके इर्द-गिर्द की हवा में हल्की लहरें उठ रही थीं, जैसे समय खुद को समेटने की कोशिश कर रहा हो। हर ओर सन्नाटा था, मगर उसके भीतर एक तूफान था।
तभी स्क्रीन पर अचानक से एक पुरानी इमेज झलकती है। जिसमें नीना का अधूरा, टूटा हुआ चेहरा था। और फिर वो भी अचानक से गायब हो जाती है।
अगले ही पल स्क्रीन फिर से फड़फड़ाने लगती है। जैसे कोई पुरानी भाषा उसमें से निकलने की कोशिश कर रही हो।
015 का खुद-ब-खुद दाहिना हाथ आगे की ओर बढ़ता है और उसकी उंगलियां स्क्रीन के किसी अदृश्य बिंदु को छूती हैं।
यह कोई कमांड नहीं होती है सिर्फ़ एक स्पर्श होता है। और उसी क्षण कोर सीड के उस लाल बिंदु से एक बारीक सी रेखा बाहर निकलती है। वो रेखा सीधी रिसीवर 015 के मस्तिष्क की ओर जाती है।
उसमें कोई चुभन कोई दर्द नहीं था। बस एक अलग सी गर्मी थी। जो उसकी सोच को और भी तेज़ कर देती है। हर पुरानी याद, हर अधूरी गूंज, सब एक जगह जमा हो रही हैं। उसके भीतर कोई नया पैटर्न बन रहा है।
एक पैटर्न, जो अब तक किसी को समझ नहीं आया था।
015 की आंखें भी अब स्थिर नहीं थीं। अब उनमें हल्का सा प्रकाश था। धीरे-धीरे उसकी पुतलियों के पास एक आकृति बनने लगी थी। वह आकृति गोल थी और घूम रही थी जैसे डीएनए का कोई उल्टा चित्र हो।
इसी बीच स्क्रीन पर फिर एक झिलमिलाहट हुई। सभी आवाज़ें एक-एक कर वापस लौटने लगीं। वह अधूरी और टूटी हुईं थीं मगर अब उनमें एक रफ्तार थी।
और ठीक उसी क्षण, जब सब कुछ मानो जैसे रुका हुआ था, उसके माथे के ठीक बीच से एक हल्की चमक उठती है। यह कोई तेज़ स्पार्क नहीं था, बस एक मद्धम, मगर अटल ऊर्जा थी।
अब स्क्रीन पर सिर्फ़ एक लाइन आती है:
"कोर सीड एक्टिवेटेड – अननोन ओरिजिन।
अनकंट्रोलेबल इंटेंशन डिटेक्टेड।"
अब कमरा भी शांत तो था। मगर उसमें अब वो सन्नाटा वैसा नहीं था जैसे पहले था। अब उसमें सन्नाटे के साथ एक चेतावनी भी थी। अब उसमें एक भविष्य की आहट थी और एक नई शुरुआत की सरसराहट भी थी।
आने वाले कल में क्या होने वाला था ?क्या नया था क्या पुराना था जो खत्म होने वाला था ? जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।
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