आकाश में बादल घिरने लगें तो चाय पकौड़ी खाने की फरमाइश बहुतों की होने लगती है। किसी मेले में जब भी कोई जाता है तो वहां से कुछ न कुछ लेने की इच्छा तो मन में आ ही जाती है। लाइफ का क्या है, लाइफ को किक चाहिए। और इतनी जोर से चाहिए कि सड़क पर बैठा हुआ आदमी सीधे एम एन सी में जा गिरे। जहां अच्छी सैलरी, बढ़िया लाइफ स्टैंडर्ड, क्लब में पार्टी, अच्छी गाड़ी वगैरह वगैरहसारी सुविधाएं मिलें.

और इच्छाएं ऐसे पनपती रहती हैं जैसे तोरी की बेल। एकबार लगा दो तो बस चढ़ती ही जाती है चढ़ती ही जाती है। आदमी की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती हैं। पहले आदमी कम कमाता है तो उससे ज्यादा की इच्छा की सपना देखता है, फिर ज्यादा कमाने लगता है तो उससे ज्यादा का सपना देखने लगते है। आखिर छोटी गाड़ी चलाने वाला कब तक वही चलाता रहे? बड़ी गाड़ी भी तो चाहिए न।इसलिए इच्छाओं पर कंट्रोल तो किसी का नहीं लेकिन हां इच्छाओं को बदला जरूर जा सकता है। जैसे जूस पीने को न मिले तो पानी में नमकचीनी घोलकर ओ.आर.एस. का घोल बनाकर तो पिया ही जा सकता है न. एडिडास का जूता न मिले पहनने को तो एबीबास का जूता तो मंगल बाजार में मिल ही जाता है ना।

और अपने चुन्नी का भी यही हाल। कुछ न सही से कुछ तो पाना है न। मकान का सपना तो देख लिया बाबू ने लेकिन हाथ में एक धेला नहीं। करें क्या। एक नौकरी मिल गई है, बढ़िया सी जहां काम तो कुछ नहीं लेकिन मालिकों का अटूट भरोसा कमा लिया है चुन्नी ने। लेकिन मालिक से कहें भी कैसे? और वैसे तो मिस चड्ढा को चुन्नी से कोई शिकायत नहीं। चाहे दारू की कितनी ही बोतलें चुन्नी गायब कर दे या फ्राइड काजू नमकीन और महंगे महंगे कूकीज/बिस्किट के पैकेट धड़ाधड़ गायब होते हों, लेकिन मिस चड्ढा इन सब बातों पर ध्यान नहीं देती थीं क्योंकि चुन्नी मोची के बताए नुस्खे को हमेशा लागू करता और मिस चड्ढा के हुस्न की तारीफ में कोई कमी नहीं छोड़ता। ऊपर से मिस बिड़ला की बुराई करने में तो उसने पीएचडी की डिग्री हासिल कर ही ली थी।और मिस बिड़ला के पल पल की सच्ची झूठी खबर मिस चड्ढा को लाकर सुनाया करता। इसलिए चुन्नी की नौकरी बराबर मजे में थी। बस समस्या थी चुन्नी का सपना। और सपना भी कोई छोटा मोटा नहीं, घर बनाने का। और घर भी कोई छोटा मोटा नहीं, बल्कि ऐसा घर जिसमें सारी सुविधाएं मौजूद हों।

चुन्नी को आज मिस चड्ढा के घर पहुँचने में काफी देर हो चुकी थी. उधर दो दिनों से मिस्टर चड्ढा भी आये हुए थे. वैसे तो मिस्टर चढ्डा को घर के कामों से कोई ख़ास मतलब होता नहीं था, हाँ पर ये है कि वो समय के बड़े ही पाबन्ध आदमी हैं. जो काम जिस समय होना है, वो उसे उसी समय करते हैं. जरा सा टाइम इधर उधर हो जाए तो पहाड़ सर पर उठा लेने में जरा भी देरी नहीं करते हैं. और आज सुबह से ही उन्हें कॉफ़ी की तलब उठ रही थी रह रह कर और इधर चुन्नी है कि जिसका कोई अता पता ही नहीं था. चुन्नी घर पहुंचा तो उसको मिस्टर चड्ढा की अदालत में पेशी देनी पड़ी:

“हाँ भाई? क्या है? कोई खबर नहीं तुम्हारी? बड़े डीएम् बन गए हो क्या? कहाँ गायब थे सुबह से?”

चुन्नी को कुछ समझ नहीं आया कि जवाब क्या दें? अब ये तो नहीं कह सकते थे न कि रात परी ज्यादा चढ़ा ली थी इसलिए सुबह नींद समय से नहीं खुली और ऊपर से दुपहर में जो काण्ड हुआ था उसकी वजह से और आने का मन नहीं हो रहा था. इसी उधेड़बुन में अपने चुन्नी बाबू खोये रहे तब तक मिस्टर चड्ढा ने अपने कुत्ते को पास बुलाया और उसकी जंजीर खोलते हुए दुबारा हडकाया :

सांप सूघ गया है क्या? आवाज़ नहीं निकल रही तो छोडूं इसे तेरे पर? वैसे भी बहुत पुरानी दुश्मनी है तेरी और उसकी. अभी एक मिनट में आवाज़ निकाल देगा तेरी. बाकी और भी बहुत कुछ निकल जायेगा इसलिए अभी इसे पकड़ा हुआ हूँ. जल्दी बता, कहाँ रह गया था?

चुन्नी के दिमाग में पता नहीं क्या चल रहा था कि अचानक उसके मुंह से निकला कि “घर जल गया”.

मिस्टर चड्ढा ने पूछा, क्या ? किसका घर जल गया? क्या बक रहा है?

अब ये बात चुन्नी को भी नहीं पता थी कि किसका घर जल गया है. और उसके मुंह से ये कहाँ से निकला लेकिन निकला तो निकला. और सही ही निकला था. सेकेण्ड भर में चुन्नी ने इस एक सेंटेंस से पूरी कहानी बना ली. और इससे पहले कि उसकी कहानी का श्रोता कुछ भी करता चुन्नी ने छाती पीट पीटकर रोना शुरू कर दिया. हुआआआआआssssss हुआआआआअssssss मालिक. मेरा घर. मालीईईईईईक मेरा घर. उन लोगों ने मेरा घर जला दिया मालीईईईक....वो इंद्रपुरी वालों ने मेरा घर जला दिया मालीईईइक...

मिस्टर चड्ढा ने सुना तो उन्हें अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया. उन्होंने तुरंत कुत्ते को दूर किया और चुन्नी को चुप कराने लगे. और पूछने लगे, रोवो मत रोवो मत. ठीक से बताओ क्या हुआ. मिस्टर चड्ढा ने पानी का गिलास उसे पकडाते हुए फिर से पुछा, अरे अब रोना बंद भी करोगे या नहीं?

तब चुन्नी ने जवाब दिया, कैसे न रोऊँ मालिक? मेरा तो सारा घर ही जला दिया उन लोगों ने. अब मेरे पास रहने का ठिकाना भी नहीं रहा मालिक. सुबह आँख खुली तो देखता हूँ कि पूरा घर और घरका सारा कीमती सामान जलकर राख हो गया है मालिक. मेरे पास कुछ भी नहीं बचा मालिक. मैं तो कंगाल हो गया मालिक. इतना बोलकर चुन्नी ने फिर से बुक्का मारकर रोना शुरू किया. और इस बार रोने में सिर्फ मिस्टर चड्ढा को ही नहीं बुलाया बल्कि मिस चड्ढा का नाम लेकर भी रोना शुरू किया.

माल्कीईईईईन, हुआआआआअ माल्कीईईईन, हुआआआआआ, मालीईईईक मैं तो बर्बाद हो गया मालिक. मैं तो बर्बाद हो गया.

इतनी तेज तेज ये सियार के रोने की आवाज़ सुनकर मिस चड्ढा जिम से भागी हुई आई. और मिस्टर चड्ढा से पूछा कि क्या हुआ डार्लिंग? वाय इज़ ही क्राइंज सो लाउडली?

मिस चड्ढा के आते ही चुन्नी तो सीधे उनके पैरों में ही जाकर गिर गया. और अपनी सारी कहानी सुनाने लगा:

क्या बताऊं मालकिन मैं तो कहीं का नहीं रहा. मेरा घर ही जला दिया इंद्रपुरी वालों ने. रात तक तो सब ठीक था मालकिन. लेकिन सुबह उठा तो घर के नाम पर कुछ भी नहीं बचा. केवल राख ही राख.

यहाँ वहां भटक भटककर, लोगों की डांट फटकार खा खाकर, मालकिन दिन रात एक करके मैंने बहुत मेहनत से ये घर बनाया था. कितने तो कीमती सामान थे मालकिन उसमें. वो होती है न कपड़े धोने वाली मशीन .....भेलपूल (वर्लपूल), तीन दरवाज़े वाला रिफिरिजिरिटीर(ट्रिपल डोर रेफ्रीजेरेटर) था मालकिन. नीला तारा(ब्लू स्टार) का एक टन वाला एसी पिछले महीने ही लगवाया था मालकिन. आप वाले एसी से भी ज्यादा ठंडी हवा फेंकता था. तीन महीने पहले ही टीवी लगवाया था वो क्या कहते हैं उसको मेरे संग तेरे संग(सैमसंग) कंपनी का.

एक बड़ी सी आलमारी भी थी और एक बड़ा सा पुराने ज़माने वाला बेड था मालकिन. सहारनपुर से मंगाया था. स्पेशल ऑर्डर पर. वो जंगल में होती है न मालकिन लकड़ी. बहुत महँगी होती है. शीशम की लकड़ी का, हाँ उसी का बनवाया था. लेकिन क्या फायदा मालकिन, सब जला दिया. इतना कहकर चुन्नी फिर बुक्का फाड़कर रोने लगा. और छाती पीटने लगा.

इतने महंगे महंगे सामानो के बारे में सुनकर तो मिस चढ्ढा और मिस्टर चढ्डा वैसे ही चौंक पड़े थे. कि है ये बन्दा हमारे घर का नौकर लेकिन सामान इसने हमारे घर के टक्कर का ही ले रखा है. ये सब बातें दोनों के दिमाग में तो चल ही रही थी लेकिन साथ में चुन्नी की हालत देखकर उन्हें उसपर दया आने लगी. चाहे कुछ हो, बेचारा मेहनत तो करता है न. वरना इतनी महंगी चीजें कहाँ से ले पाता.

चुन्नी को चुप कराते हुए मिस चड्ढा ने एक बार फिर पुछा कि लेकिन किसने जलाया और क्यों जलाया तुम्हारा घर? कोई तो कारण होगा न? और तुम कहाँ थे उस समय. तुम्हें तो एक खरोच भी nahinलगी है, हाँ बदबू बहुत आ रही है. लेकिन तुम तो एकदम सही सलामत हो, घर में ही थे न.

चुन्नी को लगा कि मामला हाथ से निकल रहा है तो उसे पकड़ने के लिए एक कहानी और जोड़ दी.

“मालकिन अब क्या बताऊं मैं? शनि की साढ़े साती चल रही है मालकिन मेरे ऊपर जो ऐसा काण्ड हुआ. बस मेरे भाग्य में अभी और दुःख भोगना लिखा है, लोगों की गालियाँ सुनना लिखा है, इसलिए मैं बच गया लेकिन मेरा घर और मेरे घर के सारे कीमती सामान जल कर राख हो गए मालकिन.

मिस्टर चड्ढा ने फिर पूछा, लेकिन तुम थे कहाँ जब तुम्हारे घर पर आग लगी?

क्या बताऊं मालिक. मेरे पड़ोस में एक बुजुर्ग रहते हैं. कल उसकी तबियत अचानक बहुत बिगड़ गयी थी तो सारी रात उसी की सेवा में लगा रहा. अपने घर भी नहीं गया था. तभी सुबह पांच बजे देखता हूँ कि मुहल्ले वाले हल्ला कर रहे हैं कि बचाओ बचाओ, प्रतापी जी का घर जल गया, प्रतापी जी का घर जल गया. इतना सुनते ही मैं भागते हुए, घर तक पहुंचा. अब क्या बताऊं मालिक. भगवान ने यही लिखा है मेरे भाग्य में. इतना कहकर चुन्नी फिर रोने लगा और मिस्टर चड्ढा ने अफ़सोस जताते हुए कहा, सो सैड. अच्छा ये बताओ कि आखिर उन लोगों ने तुम्हारा घर जलाया क्यों? कोई तो वजह रही होगी न?

तो भैया अपने चुन्नी बाबू की यही योजना थी कि किसी तरह यह सवाल उसके सामने आ जाए. और सारा कुछ उसके प्लान के मुताबित ही हुआ. मिस्टर चड्ढा का ये सवाल सुनते ही उसका कलेजा तो उछल पड़ा लेकिन उसने अपने को सम्भालते हुए उसी रोते हुए अंदाज़ में ही बोलने लगा:

क्या बताऊं मालिक. मेरे नसीब में आप जैसे देवता और मालकिन जैसी देवी की सेवा करना लिखा था. यही अपराध है मेरा. आप दोनों की सेवा करने का काम मुझे मिला और सारे इंद्रपुरी वाले लोग इससे जलने लगे. आप लोगों ने मुझे पहनने के लिए ब्रांडेड कपडे दिए. खाने के लिए बढ़िया बढ़िया खाना दिया. पगार दुगुनी तिगुनी कर दी तो इंद्रपुरी वाले मेरे रहन सहन से चिढने लगे मालिक. अगर हफ्ता हफ्ता आपके घर रुककर आप लोगों की सेवा नहीं कर रहा होतातो आज मेरा घर भी बचा रहता मालिक.

इतने दिनों से आप लोगों की जो भक्ति की है मालिक उसी का यह नतीजा है कि इंद्रपुरी वालों ने मेरा घर ही फूंक दिया.

भाइयों, वैसे तो अपने मिस्टर चड्ढा बड़े बड़े ट्रेड के चेयर पर्सन हैं. रोजाना हजारों दलीलें सुनते हैं और मजाल है कि कोई भी अधिकारी उन्हें किसी भी ऊलजलूल बात में फंसा ले. लेकिन यहाँ जाने क्या हुआ कि मिस्टर चड्ढा चुन्नी की बातों में आ गए. उन्हें चुन्नी की बातों पर दया आ गयी. मिस्टर चड्ढा एकदम फिसल गए. इतना ही नहीं, देवता शब्द सुनकर वो वाकई अपने आप को किसी जिल्लेलाही से कम नहीं समझ रहे थे. उन्होंने चुन्नी की हालत देखी और मन में तय किया कि इसका घर हमारी वजह से जलाया गया है इसलिए यह हमारी जिम्मेदारी है कि इसका घर दुबारा बने और उससे भी अच्छा बने. उन्होंने चुन्नी को चुप कराया. और गर्दन उठाकर एलान किया. सुनो लड़के, तुम्हारा घर हमारी वजह से जलाया गया है. इसलिए हम ये एलान करते हैं कि इंद्रपुरी के बीचोंबीच तुम्हारा घर बनेगा और पहले से भी भव्य घर बनाया जाएगा. उसका सारा खर्चा हम उठाएंगे. समझे? अब उठो और जाकर एककप बढ़िया काफी पिलाओ.

वाह वाह वाह, ये सुनते ही चुन्नी की हालत अन्दर से एकदम बरसात में गधे जैसी हो गयी. लेकिन उसने मौके की नजाकत को समझते हुए अवसर को ढीला नहीं पड़ने दिया :

मालिक आप ही देवता हैं. पिछले जन्म में मैंने जरूर कोई पुण्य किया होगा जो आप जैसा देवता मुझे इस जन्म में मिला. आप भगवान हैं मालिक. आपके चरण धोकर पियूँगा मालिक.

बस बस, मेरे चरण धोकर बाद में पीना, पहले मुझे कॉफ़ी पिलाओ जल्दी से

चुन्नी जैसे ही आगे बढ़ा, पीछे से मिस चड्ढा ने कहा, अच्छा सुनो! अब जब कभी सहारनपुर से फर्नीचर मंगवाना अपने लिए तो हमारे लिए भी मंगवा लेना.

हाँ मालकिन हाँ. जरूर मंग्वाऊंगा.

तो समझे भाइयों. लाइफ में सपना देखो तो उसको पूरा करने के लिए जो समझ आये वो सब कर डालना चाहिए. तभी कुछ हो पाता है. वरना क्या ही रखा है इस दुनिया में? लेकिन अब देखना यह है कि इंद्रपुरी के बीचोंबीच क्या वाकई चुन्नी का घर बनने वाला है? जानने के लिए आगे पढते रहिये और पीते रहिये चाय काफी या परी हिमानी.

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