आपने एक कहानी सुनी होगी. अल्ला दे और बन्दा ले. मतलब ये कि जब अल्ला देने पर आता है तो इतना दे डालता है कि लेने वाले से संभाला ही नहीं जाता. और जब लेने पर आता है, तब पाई पाई को आदमी तरस जाता है. भगवान् की महिमा अपरम्पार है. अब देखिये अपने चुन्नी बाबू उर्फ़ परम प्रतापी का ही मामला. कैसे उन्होंने अपनी सूझबूझ और होशियारी से मिस्टर चड्ढा से अपना घर बनवाने का वादा ले लिया था. ये दुनिया ऐसी ही है.

किसी के पास खाने को एक रोटी नहीं और कोई इसी पर मरे जा रहा है कि काजू के आटे की रोटी बने या अखरोट के आटे की. सब भगवान का खेल. आदमी तो वैसे भी खिलौना है. भगवान् चाभी भरता है हम्मे और अक्खा जिन्दगी अपन लोग एक बन्दर की तरह नाचते रहते हैं. जहाँ नाचने की रफ़्तार धीमी पड़ी कि वहीँ भगवान् फिर से चाभी भर देता है

मतलब ये कि भगवान् चाभी भरने में माहिर है लेकिन हम लोग नाचने में माहिर नहीं हैं. हमें समय समय पर भगवान् की चाभी की जरुरत पड़ती रहती है. और इसी चाभी के भरोसे हम हमेशा बैठे रहते हैं कि भगवान चाभी कब भरेगा रे!

घर के बूढ़े बुजुर्ग अपने से छोटे को हमेशा यही समझाते रहते हैं कि सबका टाइम आता है तुम्हारा भी आएगा. लेकिन वो टाइम कब आएगा ये किसी को नहीं पता होता. खैर ये सब पता हो न हो लेकिन आपके भाई को एक बात पता चल चुकी है और वो ये है कि जिसे हम अपना टाइम आना कहते हैं वो दरअसल भगवान् की चाभी भरने का टाइम ही होता है. भगवान् ने टाइम भरा और हम तेजी से नाचना शुरू कर देते हैं. ये वाली फिलासिफी उन लोगों के लिए जो भगवान् को मानते हैं. लेकिन जो इक्का दुक्का मेरी तरह हैं, जो नहीं मानते. वो बस मौज काटते हैं. बोले तो लाइफ झिंगालाला.

लेकिन लाइफ को झिंगालाला बनाने में न कई बारहमारा ही झींगालाला हुर्र झिंगालाला हुर्र, हुर्र हुर्र हो जाता है. इसलिए मेरा मानना है कि जो भी करिए सोच समझ कर करिए...आप भी न बस मुझे बातों में लगा देते हो. खैर बातें बहुत हुईं, चलिए बढ़ते हैं अगली कहानी की ओर...

तो इंद्रपुरी में ये बात बच्चे बच्चे की जुबान पर चढ़ गयी थी कि चुन्नी का घर बनेगा. और जल्द ही बनेगा. सिर्फ बच्चे ही नहीं, बड़े बूढ़े औरतें सब के सब इसी चर्चा में लगे रहते हमेशा. यहाँ तक कि इंद्रपुरी के जन्तु जानवर सबके पास एक मसाला मिल गया था टाइम काटने का.

 

चिड़ियों का एक झुण्ड जो पीपल के पेड़ पर बैठा रहता उनमें इस बात को लेकर काफी बहस छिड़ गयी कि आखिर चुन्नी का घर बनेगा कैसे? मीचू चिड़िया का ये कहना था कि चुन्नी को घर बनाने के लिए कम से कम 500 कंकडों की जरुरत पड़ेगी. इसपर कीचू चिड़िया को बड़ा एतराज हुआ.

कीचू चिड़िया– उसने मुंह का पान थूकते हुए कहा, भैया मुल्ले की दौड़ मस्जिद तक, और इतना बोलकर वो हंस दिया.

मीचू को लगा जैसे किसी ने उसके जनरल नोलेज पर सवाल उठा दिया है.

मीचू चिड़िया–  उसने तपाक से बोला, जी हाँ मुल्ला, मुल्ला है इसलिए मस्जिद तक ही दौड़ेगा. जिसका कुछ अता पता ही नहीं वो तो बावले सा इधर उधर ही दौड़ेगा न. तब कीचू ने मामले कको संभालते हुए कहा कि अरे बुद्धू मियाँ, जब तुम कुछ जानते ही नहीं तब क्यों हवा में अंदाज़े उठाते हो? तू अपनी अक्खा लाइफ में कभी इस पेड़ से दूसरे पेड़ पर गया ही नहीं, तूने शहर के घर देखे ही नहीं, तब तुझे कैसे पता चलेगा कि चुन्नी के घर में 500 कंकड़ लगेंगे या 600 पत्थर? और एक बात बता बे, चुन्नी क्या हमारी तरह कोई चिड़िया है जो कंकड़ का घर बनाएगा. मतलब जब भी मुंह खोलेगा कुछ अंड बंड ही निकालेगा. देखिये भाइयों अपना तो एक ही उसूल है, जिस मसले पर हम कुछ जानते ही नहीं, उस पर फिर हम कोई राय रखते ही नहीं. दूसरे ये आदमजात के चक्कर में तो मैं एकदम नहीं आता. इन लोगों का क्या भरोसा कि घर किस से बनायेंगे. क्या बताऊं तेरे सब कू. अपना ये घोसला घास फूस कंकड़ इन्हीं तीन चार चीजों से मिलकर तैयार हो जाता है. लेकिन ये आदमियों के बड़े टंटे हैं भाई. चूना, मिटटी सीमेंट रोगन सरिया ईंट और न जाने क्या क्या आफत कू. अपना ही सही है. एकदम सही.

मीचू को लगा कि कीचू बात तो सही कह रिया है, इसलिए उसने कुछ ज्यादा माथा भिड़ाने के बारे में नहीं सोचा. बहुत हलकी आवाज़ में कहा कि चलो तेरी न मेरी साढ़े 500 कंकड़ तो लग ही जायेंगे.

तब कीचू ने कहा कि तुम्हारे अब्बा ने भी आज तक कंकड़ के घर बनाये हैं? जो तुम्हें कंकड़ की गिनती याद है? खुद कभी जिन्दगी में एक घोसला नहीं बनाया होगा. और लगे हैं दूसरों के घर के कंकड़ गिनने.

कीचू की बात सुनकर पेड़ पर बैठीबाकी सारी चिड़िया भी हंसने लगी (पक्षियों की आवाज़ में हंसना, या बहुत बहुत पतली आवाज़ में औरतों का हंसना)और बात आई गयी हो गयी.

उधर रामकृपा पंडित के मंदिर के बाहर कुछ गायों का झुण्ड बैठा हुआ था छाँव में. सब की सब किसी दार्शनिक की तरह दूर कहीं देख देख कर आपस में बात कर रही थीं. गुत्तुल गाय ने कहा कि इस सर्दी तक आते आते प्रतापी अपना घर बनवा ही लेगा. पास बैठी दूसरी गाय ने इसपर कुछ नहीं कहा बस वो अपना मुंह चलाती रही. गुत्तुल ने फिर उसी अंदाज़ में कहा कि जब आदमी कुछ ठान लेता है तब वो अपनी मंजिल पा ही लेता है. है न? पास बैठी दूसरी गाय ने फिर से कुछ नहीं कहा. अपना मुंह चलाती रही. गुत्तुल ने फिर उसी अंदाज़ में कहा, अब देखो, पहले इस सारे इलाके में अपना ही राज था. जहाँ मर्जी वहां चरो, जहाँ मर्जी वहां बैठो, जहाँ मर्जी वहां ...लेकिन अब कितनी कम जगहें बची हैं हम लोगों के पास? इस छोटी सी जगह को छोड़कर हम कहीं टहलने भी नहीं निकल सकते. तुझे याद है? ये रामकृपा का मंदिर बन्ने से पहले इस जमीं पर हम कितना चरा करते थे.कोई रोक टोक थी ही नहीं. अपनी जमीन थी. जैसे चाहो वैसे रहो. तुम तो जानती ही हो कि उस समय मेरा छोटे वाला लड़का तब हुआ नहीं था. और ये रामकृपा पंडित घूम घूमकर लोगों से इस जमीन पर मंदिर बनाने के लिए जुगाड़ लगाता फिरता था. बोलता था कि गउ माता की सेवा करेंगे, अच्छे से नहलायेंगे धुलायेंगे. घास फूस चरने की जरुरत नहीं पड़ेगी. महंगे महंगे अनाज का दर्रा खाने को मिलेगा. हमें क्या पता था कि सब ठगी की बातें थीं. उलटे हुआ ये कि खुद के रहने के लिए तो उसने अच्छी खासी जमीन का जुगाड़ कर लिया और हमारे रहने के लिए ये कबाड़ सी जगह छोड़ दी. ऐसा लगता है जैसे हम पर एहसान कर दिया हो. बड़ा ही खेला खाया है ये रामकृपा. गौ माँ गौ माँ बोलकर कहीं का नहीं छोड़ा.

अब पास बैठी दूसरी गाय से रहा नहीं गया. उसने अपनी पूँछ को जोर से हिलाकर कहा, हंह, मैं तो पहले ही कहती थी कि इसकी बात में नहीं आना चाहिए. पर तब तो तुम लोगों के कान में मानो किसी ने मोमबत्ती पिघला कर डाल दिया था. मेरी कोई बात सुननी ही नहीं थी. अब रहने दो मुंह न खुलवाओ. तुम कम नहीं हो. उस बांडा सांड के चक्कर में नहीं आती तो आज ये नौबत नहीं आती.

ये दोनों गायें आपस में बात कर ही रही थीं कि तभी वहां लल्लन लाला की जीप दनदनाती हुई आ पहुंची. जीप के आते ही सब खड़े हो गए. बस इन दो गायों को छोड़कर. कुत्तों का एक झुण्ड जोर जोर से भौंकने लगा. पक्षी सारे उड़ गए(पंख फड़फडाने की आवाज़). क्या पता लल्लन सबको चुगली करते देखे तो गोली ही न चलवा दे अपने बाशिंदों से.

लल्लन की जीप की आवाज़ सुनते ही रामकृपा पंडित जो अभी तक जांघिया पहने अन्दर के कमरे में कढाई चिकन बनाने की योजना में बड़े बड़े प्याज काटने में बीजी थे (कढाई में तेल छन्ने की आवाज़), तुरंत सब कुछ छोड़ छाड़कर अपना गेटप बदलने के लिए दूसरे कमरे में गए और धोती कुर्ता और राम नामी कंधे पर डालकर बाहर की ओर दौड़े. मंदिर की घंटी बजने की आवाज़

बाहर लल्लन लाला जीप पर पैर रखे एकदम जॉकी स्टाइल में खड़े थे. रामकृपा उन्हें देखते ही एकदम दंडवत होने की मुद्रा में आ गए. तभी उन्हें अचानक कुछ याद आया और वापिस अन्दर की तरफ भागे और टीके की थाली लेकर वापिस प्रकट हुए. अन्दर से आते ही उन्होंने लाल रंग का टीका लल्लन लाला को लगाने की कोशिश की कि तभी लल्लन लाला ने टीका लगाने से मना कर दिया. 

और पंडित से कहा कि हटा ये सब नौटकीं. ये बता कि कौन है जो इंद्रपुरी में घर बनवाना चाहता है. वो भी ऐसा घर जिसमें सारी सुविधाएं भी होने वाली हैं.

पंडित की तो घिग्घी ही बंध गयी. उसे लगा कि इसे तो पता ही है फिर ये इस अवतार में आकर क्यों पूछ रहा है. क्या चक्कर है उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तो अभी उसने यही सोचा कि जरा तेल मालिश करके ही बात पकड में आ सकती है. पंडित ने जवाब में हँसते हुए कहा कि हे हे हे लाला जी! कैसी बात कर दी आपने? कौन है इस इंद्रपुरी में जो सारी सुविधाओं के साथ घर बनवा लेगा अपना? कोई मज़ाक है क्या? आपके इशारे के बिना इस इंद्रपुरी में कोई अपना घर बनवा लेगा क्या?

लल्लन लाला ने पंडित से अपनी तारीफ़ सुनी तो अपना गुस्सा थोड़ा शांत किया. और हल्का सा मुस्कुरा कर कहा कि वही तो पंडित. मैं यही सोचूं कि कौन ऐसा रईश जादा आ गया तो बिना मुझसे जमीं खरीदे अपना घर बनवाने जा रहा है और भी बिना मुझसे राय सलाह लिए. आखिर इस इंद्रपुरी में अपना भी एक रूतबा है.

लल्लन लाला ने जैसे ही यह बात कही, बांस के पेड़ पर बैठे एक मुर्गे ने जोर से कहा कि हुजुर आपमें और किसी चालाक लोमड़ी में कोई फर्क है क्या? 

लल्लन को लगा जैसे पंडित ने अभी अभी कुछ कहा. उसने दूबारा पूछा कि कौन है आखिर जो बिना मुझसे राय मशविरा लिए घर बनवाने के बारे में पूछ रहा है? घर ऐसे बन जाएगा क्या? रुपये पैसे लगते हैं, तब जाकर घर बनता है. समझे कुछ पंडित? और यहाँ इस इंद्रपुरी में किसके पास इतना अंधा पैसा आ गया है कि घर तक बनवाने के बारे में सोचने लगे हैं लोग. लगता है कि पुराना उधार खाता सबका बंद करना पड़ेगा. अब इंद्रपुरी में बड़े रुपये पैसे वाले लोग आने लगे हैं.

लल्लन ने जैसे ही उधारी वालों का जिक्र किया, तुरंत पंडित लल्लन लाला के हाथ में प्रसाद देते हुए कहा कि आपके होते हुए भला कोई इस इंद्रपुरी में घर कि बनाने की हिमत कर सकता है?

लल्लन पंडित की हर तरकीबें बहुत अच्छे से समझता था. इसलिए बिना देरी करते हुए उसने एक अपने परम प्रतापी जी का नाम लिया और प्रतापी का नाम सुनते ही रामकृपा को थोड़ी राहत मिली. वह तुरंत अपने प्रतापी की बुराई में लग गया : लाला जी ये सब बातें आपसे कह कौन रहा है? पहले तो उसी को चार जूती लगाइए और ये बताइए! भला नौकरों के भी घर बना करते हैं? वो प्रतापी तो वैसे ही एक जगह नौकर का काम करता है, भला वो मकान बना लेगा? ऐसा घोर कलियुग तो अभी नहीं आया है.

पंडित की बात सुनकर लाला ने कहा कि अगर ऐसा है तब ठीक है, वरना प्रतापी की खाल भी नहीं मिलेगी. इस इंद्रपुरि में सब कुछ हारे इशारे पर चलता है, इसलिए जिसको घर बनवाना है, पहले हमसे आकर मिले?

तो समझे भाइयों? आग लग चुकी है. और अब देखना है कि कितनी आग लगी है? क्या इंद्रपुरी में घर बनाने में इतनी समस्याएं आने वाली हैं अपने प्रतापी के पास? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

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