हमारे गाँव में एक बाबा थे. सुबह तड़के उठ जाते. पास में एक नदी बहती थी.(नदी के बहने की आवाज़) बेहद प्यारी नदी. तो तडके उठकर बाबा जोर जोर से जय गंगा मैया जय गंगा मैया बोलते बोलते वो नदी नहाने चले जाते और वापसी में शंकर के एक मंदिर में कुछ देर पूजा अर्चना करने के बाद लौटते समय किसी न किसी के घर का कोई हाल चाल लिए हुए गाँव में घुसते. पूरा गाँव कोई 2 किलोमीटर के सर्किल में बसा हुआ था. सब ब्राह्मणों के घर थे. मजेदार यह था कि बाबा को रोज़ कोई न कोई दिलचस्प खबर मिल जाती, या शायद वो कहानी बना लेते थे. जैसे अगर उन्हें पता चला कि गाँव के बाहर के किसी चिचा को बुखार है, तो गाँव में घुसते ही जो उन्हें मिलता, उससे कहते कि अरे फलाने की तबियत बहुत बिगड़ गयी है. जाकर मिल लो. फिर वो आगे बढ़ जाते. अब दूसरा कोई उन्हें मिलता तो कहते कि अरे उसे मलेरिला पकड़ लिया है, इस तरह गाँव के आखिर में यानी अपने घर पहुँचते पहुँचते तक वो फलाने चिचा जिन्हें केवल मामूली बुखार ही होता था, उसे मार देते. यानी आखिर में जो मिलता उससे कहते कि अरे कुछ सुना कि नहीं? दूसरा कहता कि नहीं, क्या हुआ? तब बाबा कहते अरे फलाने चल बसे. जाकर देख आना. बड़ा अच्छा आदमी था. हाहा. और आप यकीन मानिए लोग हमेशा उनकी इस तरह की सूचना में अक्सर यकीन कर बैठते और दौड़े दौड़े बेचारे बीमार के घर पहुँच जाते. और उसे ऐसे ट्रीट करते मानो अगर वो अभी तक मरा नहीं है, तो उसे मर जाना चाहिए था. क्यूंकि अभी तो पंद्रह बीस गाँव वाले और आने वाले हैं उसे देखने. तो ये सिलसिला अक्सर ऐसा ही चलता रहता. लेकिन गाँव में इसको लेकर किसी को कोई परेशानी नहीं होती थी. सब भगवान् भरोसे चलता था. लोग बीमार बहुत रहते थे और इलाज के पैसे किसी के होते नहीं थे. तो अगर कोई सूचना गलत होती भी तो उसे सही होते ज्यादा देर लगती नहीं थी.
दुनिया में अफवाहें बहुत तेजी से फैलती हैं. और अगर सूचना लिखित नहीं है तो दूसरे तक पहुँचते पहुँचते उसमें कुछ न कुछ जुड़ ही जाता. और इस तरह मुंह से निकली बात को अफवाह और अफवाह को गलत फहमी में बदलते ज्यादा देर नहीं लगती... और जनाब बातों का क्या है? आपके मुंह से निकली और पहुँच गयी घर घर...
तो इधर हुआ ये कि इंद्रपुरी के लोगों को जैसे ही पता चला कि अपने परम प्रतापी जी का घर बनने वाला है तब ये खबर एक आग की तरह फैली और ऐसे फैली कि इसकी लपेट में सब आने लगे. कुछ लोग अपनी किस्मत को कोसते कि वो भी तो इसी इंद्रपुरी में लम्बे समय से रहते आये हैं. उन्होंने तो आजतक कभी अपना घर बनाने के बारे में नहीं सोचा था. सोचना तो दूर की बात कभी ये ख्याल तक नहीं आया कि उनका अपना घर भी हो सकता है.
कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस खबर को पाकर एकदम जले भुने जा रहे थे. उन्हें ये लगने लगा था कि इंद्रपुरी में ये कल का लौंडा घर बनवा लेगा? और हम मुंह ताकते रह जायेंगे? बताने की जरूरत नहीं कि लल्लन लाला और रामकृपा पंडित इसी कैटेगरी के लोग थे. वो दिन रात यही सोचते रहते कि ये प्रतापी जो केवल एक नौकर है, बर्तन ग्लास मांजता है. वो हमारी नाक के नीचे अब एक आलीशान घर बनवाने जा रहा है. इससे पहले की सांप फन निकाले सांप को जंगल छोड़ आना चाहिए.
लेकिन कुछ लोग इंद्रपुरी में ऐसे भी थे जिन्हें इस खबर से बहुत ख़ुशी थी कि अपने प्रतापी का घर बनेगा. उनके लिए यह एक ऐसा मौक़ा था जैसा कोई बड़ा भोज. इन लोगों को प्रतापी पर गर्व था. प्रतापी उनके लिए किसी हीरो से कम नहीं था. घर बनाने का फैसला लेकर उसने एक तरीके से अपनी गरीबी ही नहीं, बल्कि इंद्रपुरी में रहने वाले सभी ग़रीबों के लिए भी सपना देखने की शुरुआत की थी. अब बाकी लोग भी सपना देखने लगे थे कि न सही आलिशान घर बल्कि एक कमरे का घर तो बनाया ही जा सकता है न. अपने प्रतापी भैया का घर बन जाए तो उनसे ही पूछा जाएगा सब तरीका. कैसे क्या करना है? कहाँ से कागज़ बनेंगे? लेकिन सबसे जरूरी है कि पहले प्रतापी भैया का घर बने. और एकदम वानर सेना की तरह ये लोग प्रतापी के घर बनने में मदद के लिए मन से तैयार हो चुके थे. प्रतापी भैया जिंदाबाद!
अपनी झुन्नी काकी तो इसी बात से खुश थीं कि ये घर तो उन्हीं का बन रहा है क्योंकि प्रतापी उन्हें अपनी माँ ही मानता है. तो घर बनेगा तो उसे यूं दर दर भटकने थोड़ी देगा अपना प्रतापी. बल्कि घर की देखरेख की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधे पर सौपेगा प्रतापी. आखिर वो घर की बड़ी बूढ़ी होगी.
बेलू चाय वाले की अपनी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. अब घर बनेगा तो मजूर जुटेंगे, और दिनभर चाय पर चाय चलेगी. बिना चाय के मजूर काम में हाथ भी नहीं लगाते. दिन के बीस चाय तो कहीं नहीं गए. कभी कभी पच्चीस चाय बनानी भी पड़ेगी. कमाई का ये अच्छा मौक़ा आने वाला है. जय हो अपने प्रतापी भैया की, कभी अपने बारे में नहीं सोचते. हमेशा दूसरों को साथ लेकर चलते हैं. (ख़ुशी का साउंड)
बाकी सब की चिंताएं, कल्पनाएँ जो भी थीं, सो थीं. लेकिन सबसे अजीब था चिंकी चुहिया और कॉकी कॉकरोच की बातें. ये दोनों बिचारे अब्दीन रात यही सोचते रहते कि अब हम कहाँ जायेंगे. नए घर में तो न चिंकी के लिए कोई बिल बन पायेगा और न कॉकी के लिए कोई सीलन वाली जगह ही होगी, जहाँ उसकी फैमिली स्टे कर पाए. दोनों दिन भर केवल यही बात सोचते रहते कि आखिर पुराने वाली खोली में क्या दिक्कत थी यार. जब भी प्रतापी आता तो उससे देर रात तक हम दोनों बातें किया करते थे. उसकी बातें सुनते, अपनी कहते. उसके सुख दुःख में हमेशा हम साथ रहते. लेकिन देखो, प्रतापी ने एक बार भी हमारे बारे में नहीं सोचा कि नया घर बनने के बाद कहाँ जायेंगे. आदमजात ऎसी ही होती है. बुरे वक्त में जो उसके साथ होता है, वक्त अच्छा होने के बाद सबसे पहले वो उसे ही छोड़कर आगे बढ़ता है.
नरेटर ही कह रहा हैएक से एक तुक्के लगाए जाने लगे. एक से एक कसीदे सोचे जाने लगे. इंद्रपुरी के लिए यह एक बड़ी घटना थी. घर बनना ही नहीं बल्कि कुछ भी बनना इंद्रपुरी में कभी कुछ होता ही नहीं था. बहुत समय बाद यह अवसर आया है जब कुछ बनेगा. कुछ होगा और इस कुछ होने में सब किसी न किसी तरह से जुड़े होंगे.
तो अब हुआ ये कि सबके हाथ में एक मसाला था. सब उस मसाले को लेकर दिन भर व्यस्त रहते. सबके पास बात करने के लिए, सोचने के लिए, चिंता करने के लिए, हंसने और खुश होने के लिए एक मसाला मिल गया था. औरतें घरों में काम करतीं तो प्रतापी के घर की बातें, खोमचे वाले बीड़ी जलाते तो प्रतापी के घर की बातें. बच्चे कंचे खेलते तो प्रतापी चचा के घर की बातें और उनके छत पर खेलने का सपना देखने लगते. रामकृपा पंडित इन सबमें सबसे तेज. उसे जाने कहाँ से ये भनक लग गयी थी कि प्रतापी के पास अंधा पैसा आ गया है. कोई खजाना हाथ लग गया है. और ऐसा भी क्या खजाना कि पूजा पाठ में जिसका कुछ हिस्सा भुनाया न जा सके. तब एक सुबह वो लल्लन लाला के पास पहुँच गया. और ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जोर जोर से पाठ करने लगा. लाला ने उसे घर में बुलाया और पूछा कहो पंडित, रात की अभी उतरी नहीं है या सुबह फिर से चढाने के लिए चले आये. पंडित नारायण नारायण बोलकर झेंपता हुआ हंसा और बोला कि सब भगवान् की कृपा है. बस कल रात नारायण ने एक सपना दिखाया तो सोचा सुबह सुबह आकर सबसे पहले आपके कान में एक बात डाल दूँ.
अब ऐसे तो लाला अव्वल दर्जे का चालाक आदमी था लेकिन था वो उतना ही अंधविश्वासी और तंत्र मंत्र में यकीन करने वाला. इसीलिए रामकृपा की बातें वो देर सबेर मान ही लेता था.
रामकृपा ने बहुत धीरे से उसके कान में कुछ बातें कहीं. जिसे सुनकर लाला का मन तो किया कि पंडित का माथा चूम ले लेकिन फिर उसने कुछ सोचकर अपने इस फैसले को जाने दिया और पंडित के हाथ में एक परी पकड़ाकर उसे वहां से रवाना किया.
शाम होते होते इंद्रपुरी में एक अफवाह फ़ैल चुकी थी. और वो अफवाह यह थी कि कहीं से अपने चुन्नी बाबू उर्फ़ परम प्रतापी को मंदिर का खजाना हाथ लग गया है. वरना इतने रुपये उसके पास कहाँ से आते. और रही बता इंद्रपुरी के लोगों का इस बात पर विश्वास करने की, तो ऐसा है कि जन्म जन्मान्तर से भूखी जनता तथ्यों की पड़ताल में अपना समय जाया नहीं करती. तुरंत मान लिया करती है. क्योंकि तथ्यों की पड़ताल करने में लगती है भूख और भूख के लिए चाहिए भोजन. जोकि कब मिलेगा, इसका कोई अता पता नहीं. इसलिए जो भी अफवाह सुनाई पड़ती, लोग उसे पहली फुर्सत में मान लिया करते. इस अफवाह को मानने का दूसरा कारण ये भी था कि आखिर इंद्रपुरी में रहने वाले सभी, लोगों की हालत दरिद्रता में डूबी हुई ही थी. और जब सब एक ही तरह से गरीब, एक ही तरह से दरिद्र हैं तो उनमें से एक के पास ऐसा क्या चमत्कार हो गया है कि उसके पास इतने रुपये आ गए. और वो अब अपना घर बनवाने की योजना बना रहा है और बाकी लोग बस हाथ मल रहे हैं. इसलिए प्रतापी को मंदिर का खजाना हाथ लगा है, यह बात मानने में किसी ने भी देरी नहीं लगाई.
अफवाहों के साथ एक दिक्कत और होती है. वो जैसी जिस रूप में उड़ाई जाती है, ठीक वैसी ही वो उडती नहीं है. बल्कि कुछ और ही भयानक रूप में उडती है. मसलन अगर एक आदमी के मरने की खबर उड़ेगी तो उड़ते उड़ते दस आदमी मर चुके होते हैं. तो मंदिर का खजाना हाथ लगा है- ये अफवाह तो उड़ाई गयी, लेकिन इसके अलावा और भी कई तरह की अफवाहें उड़ने लगी थीं जैसे, मंदिर का खजाना चुराया गया है. मंदिर में डाका डाला है प्रतापी ने. प्रतापी का सम्बन्ध कालीचरण डाकू से है. प्रतापी रात में बच्चों का खून पीता है इसलिए उसकी कुलदेवी प्रसन्न है.
ये सब अफवाह तो चल ही रहा था लेकिन इसी बीच एक अफवाह और उछाल दी गयी. किसने उछाली मुझे नहीं पता. लेकिन है दिलचस्प. तो ये वाली अफवाह उठी मुस्लिम टोली से कि हलीम मियां की मजार के जादुई जिन्न को प्रतापी ने अपना गुलाम बना लिया है और वही उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी किये जा रहा है. सबने देखा है कि कैसे फटेहाल घूमने वाला प्रतापी अचानक अच्छे अच्छे कपडे पहनने लगा. खूब अच्छी अच्छी मिठाइयां खाने लगा. बेशकीमती जूते पहनने लगा था और तो और अग्रेजी शराबों की बोतलें केवल उसी के हाथों में देखने को मिलतीं. किसी ने यह भी अफवाह उड़ा दिया कि प्रतापी कोई आम आदमी नहीं बल्कि अरब से आया कोई सूफी है जो नाम बदलकर यहाँ रह रिया है.
इधर तरह तरह की अजीबोगरीब किस्म के अफवाह उड़ते, उधर अपना चुन्नी उर्फ़ प्रतापी बेचारा इन सब बातों से एकदम अनजान एकदम बेखबर यही सोच सोचकर परेशान हुआ जाता कि मिस्टर चड्ढा से आखिर पैसे निकलवाएँ कैसे जाएँ. उस दिन तो उन्होंने जिस अंदाज़ में घर बनवाने का वादा किया था उससे तो यही लगता था कि आने वाले एक सप्ताह में ही उसका घर बन जाएगा. लेकिन मालिकों का चक्कर भैया किसे समझ आया है. इतने दिन बीत गए लेकिन न मिस्टर चड्ढा कुछ जवाब देते न मिस चड्ढा ही. चुन्नी को समझ ही नहीं आता कि क्या करे.
तो भैया ये था अफवाहों का खेल. और ये खेल यहीं नहीं रुकने वाला था. बस देखना ये है कि इन अफवाहों से अपना चुन्नी किसी बड़े चक्कर में न फंस जाए और दूसरे कि कहीं मिस्टर चड्ढा चुन्नी को गोली न दे दें. नहीं तो चुन्नी तो अपना कहीं का नहीं रहेगा.
क्या होगा आगे, जानने के लिए पढ़ते रहिए आगे कि कहानी.
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