हमारे चुन्नी उर्फ़ परम प्रतापी की जिन्दगी में ऐसी ऐसी घटनाएं हुईं कि सुनने वाले भी हाथ मलते रह जाते. पिछली कहानी में आपने सुना कि कैसी अफवाहें उसके नाम पर उड़ने लगी थीं. अब किसी की नज़र में वह डाकू था, किसी की नजर में लूटेरा, किसी की नज़र में वह चोर था तो किसी की नज़र में वो एक पहुंचा हुआ कोई सूफी भगत. और ये सब बस इसलिए था कि उसने घर बनाने का सपना देखा था. गरीब आदमी एक सपना भी देखे तो उसका तमाशा बनना शुरू हो जाता है. और यही हुआ अपने चुन्नी के साथ. नाम तो प्रतापी था लेकिन ऐसा भी क्या प्रताप कि पूरा समाज पीछे hi पड़ जाए.
अब चुन्नी जहाँ से भी गुजरता लोग उसे शक की निगाह से देखते. और ऐसे देखते मानो वो चुन्नी या प्रतापी न होकर कुछ और ही हो. अपना चुन्नी जो दिखने में एकदम मरियल था. भुखमरी का शिकार था वो अब लोगों को कोई खूंखार डाकू लगता. कैसी अजीव विडम्बना थी. एक कुत्ता अगर तबियत से चुन्नी पर भोंक दे तो चुन्नी की हालत पतली हो जाती और यहाँ उसपर मंदिर का खजाना लूटने का इल्जाम लग चुका था. लेकिन ये बातें सब आपस में ही करते, कोई चुन्नी से सीधे बात तक नहीं करता था. क्यूंकि एक डर सबके अन्दर बैठ गया था. कि अगर वाकई प्रतापी कोई डाकू या लूटेरा है तब तो उससे दूर ही रहना चाहिए. हालाँकि झुन्नी काकी और बेलू को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वो जानते थे कि अपने प्रतापी में लाख बुराइयां थीं लेकिन वो अन्दर से था एकदम हीरा. वो और कुछ नहीं बस अपना प्रतापी था.
पर करें क्या? लोग जिसे चाहें उठा दें जिसे चाहे पल भर में गिरा दें. इस दुनिया में आप चाहे कितने ही बड़े महात्मा हों, कितने ही बड़े परोपकारी हों, आपने चाहे कितने ही लोगों की मदद की हो, कितने भूखों की भूख मिटाई को, किसी की मुसीबत में साथ रहे हों, एक न एक दिन ऐसा आता ही है जब आपको पता चलता है कि सब बेकार था. आप किसी की मदद करते हैं कि उसका बुरा समय कट जाएगा लेकिन पता चलता है कि वही आपकी मुसीबत का कारण एक दिन बनता है. लेकिन खैर, हमारा चुन्नी कोई इतना बड़ा परोपकारी तो था नहीं, कुछ भी नहीं था. वो तो जैसे तैसे अपनी लाइफ काट रहा था. उससे भूल इतनी ही हुई कि उसने अपनी आँखों में एक सपना पाल लिया था घर बनवाने का. और अब उसे भी नहीं पता था कि क्या क्या संकट उसके सामने आने वाले हैं.
खैर! अब इंद्रपुरी वाले लोगों को यही लगने लगा था कि चाहे जो हो चुन्नी के पास रुपयों की कमी नहीं है. और जितना चाहो उससे रुपये मांगे जा सकते हैं. उसे क्या फ़िक्र उसके पास तो जिन्न है. जितना चाहे वो रुपये जिन्न से मंगा सकता है. लेकिन असलियत तो कुछ और ही थी. चुन्नी के पास ऐसे तो खाने के रुपये भी नहीं होते, अगर वो काम पर न जाए तो, और जो थोड़े 1000 दो हज़ार उसने बचा रखे थे, वह कभी चाहता नहीं था कि किसी भी वजह से उसे खर्च करना पड़े. तो वो कभी करता भी नहीं था.
एक रोज़ वो सुबह काम पर जाने के लिए निकला ही था कि तभी उसे रामकृपा पंडित मिल गए.(बैक ग्राउंड में इंद्रपुरी के चहल पहल का साउंड)
रामकृपा पंडित - ओम नमोभगवते वासुदेवाय नमः, ये बोलकर रामकृपा ने उसे तुरंत एक टीका लगा दिया और बोला
रामकृपा पंडित- मुझे पता है प्रतापी जी, आजकल आप बहुत परेशान रहने लगे हैं. आपको चिंता होने लगी है अपने घर की. आपका मालिक भी आपसे मुंह चुराने लगा है और इंद्रपुरी वाले भी आपसे कटे कटे से रहने लगे हैं. है न?
चुन्नी ने रामकृपा की बात सुनी तो उसे लगा कि बात तो ये सही कह रहा है लेकिन कारण क्या है ये तो उसे भी समझ नहीं आ रहा. उसने हाथ जोड़ते हुए पूछा
हाँ महाराज! आपने क्या खूब कही, आजकल इंद्रपुरी में कोई मुझसे बात ही नहीं करता. बल्कि जिसके पास जाओ सब मुझसे डरे डरे से रहते हैं. समझ ही नहीं आता कि चक्कर क्या है.
‘राहू परेशान कर रहा है’ रामकृपा ने कहा. उसने कहना जारी रखा, अब तुम्हें मेरी बातें बुरी लगेंगी, लेकिन मेरी बातें एकदम ध्यान से सुनो. तुम्हारी कुंडली में राहू का दोष है. राहू तुम्हें नचा रहा है. वो तुम्हारे सारे दोस्तों को तुमसे दूर कर देगा. तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य से इतना भटका देगा कि तुम फिर कभी इस जन्म में घर बनाने का सपना नहीं देख पाओगे? तब चुन्नी ने कहा कि
प्रतापी- लेकिन ये राहू है कौन? मैंने क्या बिगाड़ा है इसका? कहाँ रहता है ये? कहीं वो रेलवे की पटरी के दूसरी तरफ वाला तांत्रिक तो नहीं?
तभी वहां कोने में चाय पीते चिंकी चुहिया ने कहा
चिंकी चुहिया - राहू मतलब रामकृपा पंडित. और कौन?
रामकृपा ने चिंकी की बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा
रामकृपा पंडित- अभी सिद्ध किया हुआ पानी फेंक दूंगा तो केंचुआ बनकर कीचड़ में लगेगी तैरने. जब देखो तब बड़ों की बातचीत में टांग जरूर घुसएगी. भाग यहाँ से.
रामकृपा की बात सुनकर चिंकी और कॉकी दोनों ताली बजाकर वहां से भाग गए.
इसबार फिर से चुन्नी ने रामकृपा से पूछा कि ठीक से बताइए न पंडित जी कि ये राहू कौन है आखिर? तब रामकृपा ने बताया कि अरे प्रतापी जी ये एक ग्रह है भयानक ग्रह. जिसके पीछे लग जाए उसकी जिन्दगी खराब करके ही छोड़ता है. रुपये पैसे के पीछे पड़ जाता है. कंगाल करके ही छोड़ता है. अब अपने बारे में क्या ही बताऊं. लेकिन मौका पड़ा है तो एक किस्सा राहू से जुड़ा हुआ तुम्हें बता ही दूँ. बहुत पुरानी बात है, एक बार अपने लल्लन लाला की हालत अचानक गिरने लगी. उसका सारा धंधा चौपट होने लगा था. किरायेदार महीनों रहकर और राशन खा खाकर रातों रात भागना शरू कर दिए. लाला कुछ भी योजना बनाता लेकिन कोई कारगर साबित नहीं होता. बिजनस में लगातार घाटा होता जा रहा था. तीन मकान पांच पांच सौ के खड़े खड़े बिक गए थे. चार ट्रकें रातों रात चोरी हो गए. वो तो जब मुझे पता चला तब मैं उनके पास गया और उनकी कुंडली मंगाई. अब अपनी तारीफ़ क्या ही करूं भाई प्रतापी जी! मैंने तो देखते ही समझ लिया था कि ये राहू का ही काम है. ऊपर से लाला को भयानक पीलिया भी पकड़ लिया था. मैंने तुरंत उन्हें एक ग्लास में मंत्र फूंककर पानी पीने को दिया और जानते हैं क्या हुआ? एक सेकेण्ड में लाला के अन्दर फुर्ती आ गयी. तुरंत चार पहलवानों को बुलाकर कुश्ती करने लगे. और उन चारों को चारों खाने चित करके एक बाल्टी बादाम वाला दूध पीकर सीधे मेरे पैरों में गिर पड़े. और वो दिन था और आज का दिन कि लाला सबके सामने चाहे मुझसे कैसे भी बात करता हो लेकिन अकेले में वो आज भी मुझे ही अपना गुरु मानता है.
तब चुन्नी ने पूछा कि लेकिन उस राहू का क्या हुआ? आपने लाला के ऊपर से राहू का काल कैसे हटाया?
बताते हैं बताते हैं, रामकृपा ने आगे कहा कि तो ये तो मुझे समझ आ ही गया था कि लाला के ऊपर राहू का दोष था. लेकिन मैंने उसे साफ़ साफ़ बता दिया था कि देखो लाला अपनी खैरियत चाहते हो तो जितनी जल्दी हो महा मृत्युंजय का महा यज्ञ करवा लो. कुछ मामूली खर्चा आएगा लेकिन तुम्हारी जिंदगी की तरफ दुबारा मुडकर वो राहू कभी नहीं देखेगा. और हुआ भी यही , भगवान् झूठ न बुलवाएँ, वो दिन था और आज का दिन लाला को कभी आजतक राहू ने परेशान नहीं किया. धन्य धान्य और सौभाग्य तो मानो लाला के घर पानी भरते हैं. और वो राहू जो सबको परेशान करता रहता है, मेरी सिद्धि और तपस्या से आजकल लाला के घर की देखभाल करता है. समझे प्रतापी जी! वो तो हम अपना गुणगान जल्दी करते नहीं. अपना तो नेचर ही ऐसा है, वरना इस दुनिया में लूटने वालो की कोई कमी नहीं है. तुम कहोगे तो तुम्हारे सिर से भी यह कलेश मिटा दिया जाएगा. लेकिन कुछ हाथ खाली करना पड़ेगा. समझे न?
[अब यहाँ दो बातें हुईं. चुन्नी मन में केवल जूतेश्वर बाबा को ही पूजता था इसलिए रामकृपा की बात पर एकदम यकीन कर लेना उसके बस की बात नहीं थी. दूसरे वो यह भी देखना चाहता था कि क्या जूतेश्वर बाबा भी इस राहू के बारे में जानते हैं कुछ. उसने सोचा कि राहू के बारे में पहले जूतेश्वर बाबा से भी कुछ राय सलाह लेकर ही कुछ करना चाहिए . आखिर जूतेश्वर बाबा भी कुछ कम पहुंचे हुए व्यक्ति नहीं हैं.]
तो यही सब गुणाभाग दिमाग में सोचकर उसने रामकृपा पंडित की बात को गंभीरता से लेते हुए अभी के लिए पंडित से रुखसत मांगी, ये बोलकर कि अभी ज़रा जल्दी में हूँ लेकिन आपसे इस बारे में जरूर राय लूँगा. अब रामकृपा के लिए तो यही एक बड़ी बात थी कि प्रतापी उसके चाल में आधा फंस चुका था. उसे क्या पता कि शहर में कोई जूतेश्वर बाबा भी है जो प्रतापी का गुरु है. वो तो यही सोचकर प्रसन्न हो चुका था कि हो न हो एक बड़ी रकम प्रतापी से ऐंठने का मौका आ गया है.
उधर रामकृपा पंडित की बात सुनकर चुन्नी सीधे मोची के पास पहुँच गया. और जाते ही मोची के पैरों पर गिर गया. मोची को कुछ समझ नहीं आया. उसने मन में सोचा ये साला गंवार जब भी आता है कुछ न कुछ नया ड्रामा लेकर ही प्रकट होता है. अब देखते हैं कि आज ये क्या नया लेकर चले आये.
‘क्या हुआ बेटा प्रतापी’ ‘उठो बेटा प्रतापी’ क्या हुआ मुझे बताओ? मोची ने प्रतापी को उठाने की कोशिश की. लेकिन प्रतापी उठा ही नहीं.
तब मोची ने हाथ की चिलम से एक तिनगी निकालकर चुन्नी के हाथ में गिरा दिया. चुन्नी सी सी ओ माँ ओ माँ करता हुआ उठ गया. और लगातार कहने लगा, मुझे बचा लीजिये जूतेश्वर बाबा मुझे बचा लीजिये जूतेश्वर बाबा. ये राहू, मेरे पीछे राहू पड़ गया है. सूना है कि वो बहुत भयानक है. राजा को भिखारी बना देंने की ताकत रखता है. अच्छे अच्छे लालाओं को सुखाकर चूजा बनाने की हिम्मत रखता है. सूना है कि पीलिया भी पकड़ा देता है. मुझे बचा लो बाबा, मुझे बचा लो.
चुन्नी की बात सुनकर मोची को समझ में आया कि इस समय उसे मोची नहीं बल्कि जूतेश्वर बाबा का रोल निभाना है. उसने धड़ाधड़ दो कश खींचकर एकदम चिल्लाते हुए चुन्नी को एक लात जमाते हुए कहा दूर हट राहू के बच्चे. तेरी हिम्मत कैसे हुई प्रतापी के शरीर पर चढ़कर मेरे पास आने की. अभी एक जूता लगा दिया तो इस संसार से तेरी सारी माया ही ख़तम हो जायेगी. शराबी कहीं के, तुझे मेरा शिष्य बेचारा प्रतापी ही मिला था.
प्रतापी को समझ आ गया कि जूतेश्वर बाबा आ गए हैं. उसने अपनी पीठ सहलाते हुए जूतेश्वर को नमस्ते किया और बोला, नहीं नहीं महाराज, ये राहू नहीं, ये तो मैं ही हूँ. राहू का तो प्रभाव है मुझपर.
जूतेश्वर ने एक जूता और खींचकर मारा. नालायक मुझे सिखाता है कि तू राहू नहीं प्रतापी hai. अरे बड़ी तपस्या की है मैंने. छोड़दे मेरे प्रतापी को वर्ना गिनकर चार जूते जो लगा दिए तो दनदनाते हुए भागता नज़र आएगा. सूअर कहीं का.
चुन्नी को लगा कि मामला ऐसे शांत नहीं होगा. उसने तुरंत मोची का दिया हुआ जूते का फीता उसे दिखाते हुए बोला कि देखिये बाबा ये फीता अभी मेरे पास ही है. आप ही ने कहा था न कि जब तक ये मेरे पास होगा मेरा कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता. मैं तो आपसे ये बता रहा था कि रामकृपा पंडित ने मुझे आज सुबह ही बताया है कि मेरे सिर पर राहू है. मैं तो बस ये जानना चाहता हूँ कि क्या वो सच कह रहा था? और इसे हटाया कैसे जाए?
जूतेश्वर ने चुन्नी के बाल पकड़ कर उसे नचाते हुए कहा कि मुझसे अंग्रेजी बतियाता है ससुरे. तुझे मैं अच्छे से जानता हूँ. छोड़ दे प्रतापी को. और अगर तू नहीं जाएगा तो आज मैं तेरा खेल ख़तम ही किये देता हूँ. उसने अपने हाथ में हथौड़ी उठाकर चुन्नी के सिर पर मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि चुन्नी वहां से भाग ही निकला. कौन जाने इस राहू के चक्कर में कहीं सही में बाबा नाप ही न दें.
तो भईया रे! येहै राहू का चक्कर. जलते तवे पर रामकृपा पंडित की फेंकी हुई रोटी. अब देखना ये है कि आगे चलकर यह रोटी कितनी फूलती है.
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