ऊपर पंखा चलता है, नीचे बेबी सोती है, सोते सोते भूख लगी, खा लो बेटा मूंगफली मूंगफली में दाना नहीं, हम तुम्हारे मामा नहीं

मामा गए दिल्ली, वहां से लाये दो बिल्ली

एक बिल्ली कानी, दो बच्चों की नानी

आप सबने यह लोरी तो सुनी ही होगी. और एक बार नहीं कई बार ही सुनी होगी. और अगर नहीं सुनी है तो फिर रहने ही दीजिये. मत दिमाग लगाइए इस लोरी में. लेकिन जिन लोगों ने यह लोरी सुनी है, उन सब लोगों से मेरा एक सवाल है. और वो सवाल यह है कि ये जो बेबी का मामा है, ये किस मिजाज का आदमी है. दिल्ली जाकर भी यह बन्दा बिल्ली लेकर आ रहा है अपनी भांजी के लिए. और चलो बिल्ली ही लाता तब भी कोई बात नहीं. ये कानी बिल्ली लेकर आता है. हद है मतलब. मुझे पूरा यकीन है कि बेचारी बेबी का मामा दिल्ली नहीं बल्कि इंद्रपुरी गया होगा और वहां उसे ये बिल्लियाँ मिल गयी होंगी. और इन्हीं बिल्लियों की इस कहानी को बार बार सुनाया गया है. जानते हैं क्यों? इसलिए ताकि दुनिया के जितने भी मामा टाइप लोग हैं, वो गिफ्ट देने में एकदम लल्लू लाल हैं. बेबी को चाहिए थी आइसक्रीम, मामू ले आये कानी बिल्ली.

कुछ समझे? नहीं समझे? इस दुनिया में जो चाहिए, वो मिल ही जाए यह आसान एकदम नहीं बच्चू. लेकिन सबसे आसान काम है, आराम से चाय की, बियर की, व्हिस्की की, तेरा मन तू किसी की भी चुस्की लेने का, लेकिन आगे की कहानी सुनने का.

तो भाइयों, जैसाकि आप जानते हैं कि पिछली कहानी में मोची ने जो खेल खेला था, अपना चुन्नी उसमें फंस गया है. जैसे संकट में गधे को भी बाप बनाना पड़ता है, अपने चुन्नी ने मोची को अपना प्रमाणिक बाप मान लिया था. और उसी के गुरुमंत्र को रटने लगा था. डूबते को तिनके का सहारा तो सुना था लेकिन इस डूबे हुए को मूली ki जड़ क्या सहारा देगी. लेकिन देखते हैं, कौन जाने इस चुन्नी की कहानी में अभी क्या क्या देखना और सुनना बाकी है.

चुन्नी को मोची ने जब से ये बताया था कि सफ़ेद शर्ट पहिन कर मिस बिडला के सामने आना है, तबसे उसके सामने दो बातें चल रही थीं. ‘पहली कि कितनी सफ़ेद शर्ट? मतलब सफेदी की सीमा क्या होगी? सफेदी नापने का कोई नंबर मिलता तो उससे अंदाजा लग जाता कि कितना सफ़ेद चाहिए? सर्फ़ ka ही पता चल जाता तो उससे भी अंदाजा लगता कि फला रंग के सर्फ़ से धुली शर्ट ही पहिनकर मिस बिडला के सामने जाना है, वर्ना नहीं जाना है. अगर मोची ऊर्फ जूतेश्वर ने बता दिया होता कि इस वाली कंपनी के साबुन सर्फ़ से रगड़कर-धोकर सफ़ेद रंग का शर्ट पहिनकर जाना तो चुन्नी वही करता. लेकिन चुन्नी को मोची ने हिंट में कुछ भी नहीं बताया था. सिर्फ यही कहा था कि सफ़ेद रंग का शर्ट पहिनकर मिस बिडला के सामने पहुंचना है.

खैर, अब मोची, चुन्नी के लिए कोई आम आदमी तो है नहीं. वो जो बोलेगा, चुन्नी को करना ही है. क्यों,क्या,किसलिए इन सब सवालों का कोई मतलब है नहीं. भाई घर बनाने का सवाल है. वो भी ऐसे आदमी के लिए जिसके पास अभी कुछ भी नहीं है. कुछ भी मतलब कुछ भी नहीं. एकदम हम लोगों की तरह. घर बनाना कोई आसान काम तो है नहीं. बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि बेटी की शादी और घर बनाना दोनों ऐसे काम हैं जिसके खरचे की कोई सीमा ही नहीं. जितना भी लगाओ कम ही पड़ेगा.

तो भैया, जैसे अपनी लाइफ में जब हम फंसते हैं और कोई चारा नहीं मिलने पर जो आदमी कुछ भी बता देता है, उसी को मानने लगते हैं, उसी तरह चुन्नी का भी हाल है. मोची ने कुछ बताया था. और चुन्नी उसी काम में लग गया था.

तो वो दिन आ गया जब चुन्नी को मिस बिडला से मिलना था.

ये सन्डे का दिन था. सन्डे का दिन मतलब एक तो छुट्टी के दिन से है ही लेकिन ये भी कैसा दिन है, ससुरा कभी समझ नहीं आता. यार भाइयों, सन्डे वाले दिन को लोग छुट्टी का दिन कहते क्यों हैं? ये बात मुझे आज तक समझ नहीं आई. क्यूंकि इस दिन हम सब के पास घर के इतने काम होते हैं कि क्या किया जाए? कपडे धोवो, बर्तन मांजो, कमरा साफ़ करो, बाल कटाओ, राशन लाओ, फलाने से मिलो, ढीमकाने से मिलो, लो मन गया आपका सन्डे उर्फ़ छुट्टी का दिन. सचाई ये है मेरे यारों कि आदमी के लिए ऐसा कोई दिन होता ही नहीं है जिसे छुट्टी का दिन कहा जाए. और न होगा ही.

खैर, ये फिलासफी तो बीच बीच में चलती ही रहेगी. लेकिन कहानी भी चलती रहनी चाहिए न.

सन्डे का दिन था और अपने चुन्नी देर रात तक शराब पीते रहे , जिससे इतवार को आँख ज़रा देर से खुली. जब खुली तब सूरज चाचा एकदम गुस्से से तनतना रहे थे इसलिए धूप बहुत तेज़ थी. चुन्नी नहाधोकर और एक झक सफ़ेद शर्ट पहिनकर निकल ही रहे थे कि तभी झुन्नी काकी मिल गयी. काकी ने चुन्नी को देखते ही कहा कि अरे प्रतापी ये बेवक्त का निरमा से धुला कपड़ा पहिनकर कहाँ निकल लिए?

तब चुन्नी ने काकी को नमस्ते कहकर वहां से खिसकना ही सही समझा. कहीं काकी ने ज्यादा सवाल जवाब करना शुरू कर दिया तो चुन्नी की सारी पोल वहीँ के वहीँ खुल जाती.

आगे बेलू की चाय की दुकान पर पहुंचा तो उसकी इच्छा हुई कि एक कप चाय पीकर ही निकला जाए. तभी कुछ बात बनेगी.

चुन्नी को देखते ही बेलू ने चुन्नी को चाय पकडाते हुए पूछा क्या प्रतापी जी! ये सफ़ेद रंग की झक शर्ट पहिनकर कहाँ चल दिए? कहीं कोई हीरोइन पटाने चले हैं क्या? कसूरी बाई को लेकर भागने का इरादा बना लिए हो?

इत्तफाकन ही सामने से कसूरी बाई निकलते हुए दिखी. कसूरी ने बेलू की बात सुन ली थी. उसने एक हलकी सी मुस्कान चुन्नी को पास की और मुंह नीचे किये ही वहां से जाने लगी. बेलू ने मौके की नजाकत को समझते हुए तुरंत कसूरी बाई को चाय के ठीले परबुला लिया. अरे आओ आओ कसूरी! कभी हमारे ठीले पर भी आ जाया करो, हमसे कौन सी गुस्ताखी हो गयी है? जो आजकल रूठी रूठी रहती हो?

कसूरी ने बेलू को छेड़ते हुए कहा, अब किसके लिए आयें यहाँ? पहले हुजुर सुबह सुबह चाय पीने यहाँ चले आया करते थे, तो उनके दीदार के लिए आ जाती थी, लेकिन अब कहाँ, अब तो दुपहरी में ही हुजुर दिखते हैं. चुन्नी समझ रहा था कि ये बातें उसी के लिए कही जा रही है. उसने बेलू को कहा आज चाय कुछ ज्यादा ही कड़क बना दी है बेलू भाई, होंठ जल गए.

बेलू ने कहा, तौबा! और कसूरी से पूछा , कि तुम तो मीठा कम ही पीती हो?

तब प्रतापी ने कसूरी की तरफ छेड़ने के अंदाज़ में कहा, जो लोग बहुत मीठे होते हैं, वही मीठा कम पीना पसंद करते हैं.

इतना बोलकर चुन्नी शहर के लिए आगेबढ़ा ही था कि एक पत्थर से टकराने की वजह से सीधे ही कीचड़ में जा गिरा. और जैसे ही चुन्नी गिरा कसूरी जोर से हंसी. उधर कुछ दूर खड़े लल्लन लाला और रामकृपा पंडित भी हँसने लगे. खोमचे वाले हंसने लगे. काम पर जाती बाइयां हसंने लगीं. पास के कबाड़ में खडा बिल्लू बिलौटा भी हंसने लगा. पेड़ हसने लगे. चिड़िया हँसने लगी. जमीन हँसने लगी. आसमान हँसने लगा. चुन्नी को लगा इसी धरती में समा जाना चाहिए उसे. कसुरी बाई ने पास आकर चुन्नी को उठाने की कोशिश की लेकिन चुन्नी ने बिना उसकी मदद के ही वहां से भागना सही समझा और गुस्से से तमतमाता हुआ उसी हालत में वो शहर के लिए निकल पड़ा.

रस्ते भर चुन्नी बुदबुदाता ही रहा, समझते क्या हैं ये इंद्रपुरी वाले लोग. न खाने का ठिकाना न पीने का ठिकाना और मैं ज़रा सी गलती से कीचड़ में क्या गिर गया. सबको जैसे कोई मौका मिल गया हो. ऐसा लग रहा था कि जाने कबसे भरे बैठे हुए हैं सब. आज मौक़ा लगा तो सब मुझपर हँसने लगे. देख लेना वो दिन दूर नहीं जब भगवान जरूर एकदिन इन सबको मजा चखायेगा. ऊपरवाले की लाठी जब पड़ती है न तो उससे आवाज़ तो नहीं निकलती लेकिन हाँ दर्द बहुत होता है. हे भगवान् इन सबको मजा जरूर चखाना. मेरा बदला जरूर लेना. तभी चुन्नी को जैसे कुछ याद आया हो. थोडा रुक कर बोला कि भगवान् बस दो लोगों को छोड़कर. एक बेलू और दूसरी कसूरी को. दोनों ही बहुत अच्छे हैं. बाकी किसी को नहीं छोड़ना भगवान्.

कितनी मुश्किल से आज मैंने सफ़ेद शर्ट पहिना था कि मिस बिडला से मिलूँगा और ये देखो क्या हो गया मेरे साथ. लगता है भगवान् तू भी नहीं चाहता कि मैं मिस बिड़ला से मिलूं और मेरा घर बने. चुन्नी ने भगवान् को दुहाई देने के लिए ऊपर देखा तो पेड़ पर बैठे कबूतर ने वहीं से मल त्याग कर दिया जो कुछ तो चुन्नी की शर्ट पर आकर गिरा और कुछ चुन्नी के चहरे पर. चुन्नी को अपनी किस्मत पर वाकई रोना आ गया. वो जल्द से जल्द अपने गुरु जी उर्फ़ मोची के पास पहुँच जाना चाहता था. इसलिए वो लम्बे लम्बे पग भरते हुए मोची की दूकान पर पहुँच गया.

मोची ने अभी गांजा भरा ही था कि चुन्नी को आता देख उसने चिलम को छुपा लेना ही सही समझा. लेकिन चुन्नी ने देख लिया था कि इसके हाथ में गांजा है. उसने वहीँ से रोकते हुए ही आवाज लगाई. रुकिए गुरु जी. छुपाइये नहीं, छुपाइये नहीं. चुन्नी जैसे ही पास आया तो मोची ने पूछा क्यों बे प्रतापी! ये क्या हुलिया बना रखा है अपना. मैंने तो तुझे कहा था कि एकदम सफ़ेद शर्ट पहिनकर मिस बिडला से मिलना. ये कैसी दाग लगी शर्ट पहिनकर चला आया है बे.

मोची ने देखा कि चुन्नी की आँखें भरी हुई हैं. उसने चुन्नी को चिलम पकडाते हुए पुछा, कि क्या हुआ बे, रोता क्यूँ है? तेरे कू किसी ने कुछ कहा क्या?

चुन्नी ने एकदम किसी फ़िल्मी स्टाइल में चिलम खींचने के बाद लाल लाल आँखों से, धुएं से भरी हुई आवाज़ में कहा, बदला!

मोची ने पुछा कि बदला? कैसा बदला?किस से बदला? सब ठीक तो है? कुछ बतायेगा भी?

तब तक चुन्नी ने एक और कश खींचा और मोची को सारा मामला समझा दिया.

मोची ने भी एक दो कश खींचते हुए सारा मामला आराम से सुना और चुन्नी को दिलासा देते हुए समझाने लगा कि देखो, ऐसी छोटी छोटी बातों से घबराया नहीं जाता. तू अच्छा लड़का है. शहर में बड़े घर में नौकरी करता है, उन सबसे अच्छा खाता पीता है और अच्छा ओढ़ता पहनता है, इसलिए इंद्रपुरी वाले तेरे से जलते हैं. और देखो भैया, हाथी चले बजार, कुत्तेभोंके हजार. इसलिए किसी की बात का लोड एकदम मत लिया कर. समझा क्या?

चुन्नी को इसी दिलासे की जरुरत थी. सुबह से लगातार डी मोटिवेट होते होते उसका मन रुआंसा हो गया था. गांजे के नशे ने उसे सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था. उसका मन एकदम शांत हो गया था और अब वो सिर्फ मोची को ही देखे जा रहा था लगातार. मोची कुछ भी कहता, उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. एक दो बार मोची ने पानी पिलाने की कोशिश भी की लेकिन चुन्नी को कोई फर्क नहीं. वो लगातार मोची को ही देखे जा रहा था. और मोची के इतना कुछ करने के बाद भी चुन्नी को कोई फर्क नहीं पडा तब मोची ने खींच के एक चांटा चुन्नी को जड़ दिया. बस फिर क्या था? चमड़ा खींचने वाले हाथों का एक कड़क चांटा पाते ही चुन्नी को होश आ गया और मोची के दूकान से वो ये बोलता हुआ निकल गया कि कल फिर आऊंगा. अभी जा रहा हूँ मिस चड्ढा के घर. आज बहुत देर हो गयी है.

मोची को कुछ समझ ही न आया.

तो भैया ये अपने चुन्नी हैं अव्वल दर्जे के भावुक आदमी. मोची की बातों में आकर चुन्नी यही बात भूल गया था कि आज मिस चड्ढा ने उसे जल्दी आने के लिए कहा था. और देखिये कुदरत का खेल आज ही चुन्नी को देर हो गयी. अब देखते हैं कि मिस चड्ढा उसके साथ क्या करती हैं? कहीं वापिस इंद्रपुरी ही न लौटा दें.. जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए। 

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