"सत्ता की इमारतों को खून की नींव चाहिए होती है...लेकिन जब वो खून अपनों का हो, तो इमारत नहीं... ताबूत खड़े होते हैं।"

कुछ ऐसा ही हाल था, इस वक्त राजघराना महल का, जहां आज सबकी आंखों में एक दूसरे के लिए नफरत ही नफरत थी। कहने को महल के हर कोनें में खड़ा शख्स आपसी खूनी रिश्तें से बंधा था, लेकिन हालात ऐसे थे कि सभी एक-दूसरे के खून के प्यासे थे।

आज का दिन गजेन्द्र के लिए किसी सूर्य ग्रहण के दाग से कम नहीं था। वहीं इस वक्त रात का तीसरा पहर चल रहा था। राजघराना के हर कोने में पसरा सन्नाटा... जैसे पूरे महल के हर गलियारों- हर कमरें में कोई साज़िशें बुन रहा था। हवाओं में अब भी उस चिट्ठी की स्याही घुली थी जो जानकी ने अपने खून से लिखी थी, और अब गजेन्द्र के हाथों में थी। लेकिन उस चिट्ठी का एक हिस्सा वो हमलावर लेकर भाग गया था। इस वक्त गजेन्द्र के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था।

आखिर वो हमलावर कौन था? उसने रिया पर गोली क्यों चलाई? और अगर निशाना मैं था, तो वो आखिर मुझसे चाहता क्या है?

ये ही सोचते-सोचते गजेन्द्र सो गया। दूसरी ओर अस्पताल में रिया का भी हाल कुछ ऐसा ही था। डॉक्टरों ने रिया को अगली सुबह तक सख़्त आराम की सलाह दी थी, पर रिया की आंखों से नींद तो मानों जैसे कोसों दूर गायब थी। अस्पताल में अपने कमरे के बिस्तर पर लेटे-लेटे रिया ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं, लेकिन मन में रह-रहकर वही परछाई दौड़ रही थी, जिसने उस पर हमला किया और चिट्ठी के नाम पर सब कुछ बदल डाला।

गजेन्द्र गहरी नींद में था, लेकिन लगातार बड़बड़ा रहा था— “गजेन्द्र अब और रुकना नहीं है। मां की मौत, पिता की जवानी का… और अपनी करियर पर लगे फिक्सिंग के लांछन सबका बदला लेना है।”

अगले दिन का सूरज निकल आया था। नींद खुलते ही मुक्तेश्वर सबसे पहले अपने बेटे गजेन्द्र को देखने उसके कमरे में पहुंचा। जहां उसने देखा गजेन्द्र नींद में भी बेचैन है। नींद में उसका बार-बार बड़बड़ाना देख मुक्तेश्वर की अंतरआत्मा ने उसे झकझोर दिया।

“लोग अपने बच्चों को उनके सपने पूरे करने का हक, धन-दौलत, उनकी रक्षा का वचन… क्या कुछ देते है। पर मैंने मेरे गजेन्द्र को क्या दिया— एक साजिशों से भरा परिवार, उसके खून के प्यासे रिश्तेदार और उसकी मां को मौत के साथ अनाथों भरा जीवन, जेल की सलाखें...।”

मुक्तेश्वर एकटक गजेन्द्र को निहारते हुए ये ही बड़बड़ा रहा था, तभी गजेन्द्र की नींद टूटी और वो उठते के साथ अपने पिता की तरफ देखते हुए बोला— “बहुत हुआ, अब और वक्त नहीं खराब करना चाहता मैं… चलिए मां की मौत के साथ इंसाफ करते हैं।”

गजेन्द्र के मुंह से बदले की बात सुन मुक्तेश्वर की परवरिश को गहरी चोट लगी, लेकिन उसका मन जानता था कि गजेन्द्र ने पिछले दो सालों में अपनी जिंदगी में जीते-जी नर्क देखा है… और उसकी ये जुबान राजघराना के लोगों के दिए उसी नर्क की देन है। ऐसे में उसने बेटे की बात का समर्थन करते किया।

“अब सिर्फ राघव भौंसले को सज़ा देना काफी नहीं गजेन्द्र। अब मुझे जानना है... कौन है जो आज भी सत्ता की इस जंग को चला रहा है? मुझे मेरी पत्नी जानकी के मरने से लेकर मेरे बेटे को मैंच फिक्सिंग के केस में फंसाने तक… हर साजिशर्ता का नाम जानना है। सच में अब बस, बहुत हो गया।”

मुक्तेश्वर इतना कहते के साथ गजेन्द्र के रेस फिक्सिंग केस के वकील विराज प्रताप राठौर को फोन लगाता है और उसे तुरंत राजघराना आने के लिए कहता है।

"हैलों विराज, जल्द से जल्द राजघराना महल आओं। आज हम जानकी की मौत और उस खूनी लाल चिट्ठी के बारे में महल के सबसे पुराने खेमराज काका से बात करेंगे। जानकी की मौत वाले दिन से लेकर आज तक उन्होंने किसी से बात नहीं की है। हर कोई ये हीं कहता है, कि उस दिन महल में आग लगी थी, जिसमें उनकी आवाज चली गई थी। लेकिन मुझे लगता है कि मामला कुछ ओर है… जरूर खेमराज काका कुछ तो जानते हैं।"

इतनी बड़ी बात सुन विराज तुरंत उठता है और बिना नहाये-नाश्ता किये सीधे महल पहुंच जाता है। जहां गजेन्द्र, विराज और मुक्तेश्वर तीनों दोबारा उसी तहखाने में जाते है, जहां जानकी की चिट्ठी मिली थी। लेकिन इस बार उनके साथ था महल का सबसे बूढ़ा नौकर- "बुज़ुर्ग खेमराज"। 

बाइस सालों की चुप्पी के बाद भी खेमराज काका ने मुंह नहीं खोला था। वहीं तहखाने में जाने के बाद जैसे ही गजन्द्र ने दुबारा संदूक खोला और उसमें रखी अपनी मां जानकी की चिट्ठी बाहर निकाली उसे देख 70 साल का बूढ़ा खेमराज चिल्ला पड़ा।
 
"मालिकों..."

खेमराज की चिल्लाहट सुन सबकी उम्मीद जाग उठी और मुक्तेश्वर ने तुरंत खेमराज का हाथ पकड़ते हुए पूछा— "हां काका…!!! बोलिए क्या हुए था उस दिन…? बोलिए काका!”

फिर खेमराज की कंपकंपाती आवाज़ में जो राज खुला, वो चौका देने वाला था— "जानकी बहूरानी ने मरने से पहले एक और ट्रंक बनवाया था... वो इस तहखाने में नहीं, बल्कि पुराने अस्तबल के नीचे गाड़ा गया था… असली राज उसी में दफन है...।"

बूढ़े खेमराज काका की इस एक लाइन ने तीनों के होश उड़ा दिये… एक साथ तीनों चौंक पड़े और एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। तभी गजेन्द्र ने झपटते हुए पूछा— "वो ट्रंक किसके पास है खेमराज काका… ?"

"किसी के पास नहीं। लेकिन..."

अपनी बात पूरी करते-करते खेमराज काका रुक गए, थोड़ी देर कुछ सोचने के बाद वो बोलें, “...वो जगह सिर्फ एक को पता है... तुम्हारे दादा की उस रखैल शारदा को...। क्योंकि तुम्हारी मां जानकी की आखरी सांसों के समय वहीं उसके साथ थी… हा मुझे अच्छें से याद है, उसे सब पता है।”

बूढे खेमराज काका ने आज 22 साल बाद जुबान खोली थी और मुंह से कुछ बोला था। ऐसे में वो लगातार अपनी बात को दोहरा रहे थे। वहीं गजेन्द्र ने एक बार फिर अपनी मां की मौत की कहानी में रेनू की मां शारदा का नाम सुना, तो विराज को तुरंत रेनू को फोन लगाने का इशारा किया। 

विराज ने भी आव देखा ना ताव सीधे फोन जेब से निकाला और रेनू को फोन लगा दिया, "हैलों रेनू, कहां हो…? क्या तुम अपनी अपनी मां शारदा देवी को लेकर अभी राजघराना महल आ सकती हो...?”

रेनू, गजराज सिंह और शारदा की नाजायज़ बेटी है, जिसने कुछ महीनों पहले ही बाइस सालों से राजघराना महल के तहखानें में बंद अपनी मां को ना सिर्फ छुड़ाया, बल्कि जेल के तहखाने से बाहर निकालने के बाद उसने अपनी मां को अपने सौतेले भाई राज राजेश्वर के हमले से भी जिंदा बचाया था। ऐसे में वो विराज की राजघराना में वापस लौटने की बात सुनते ही भड़क जाती है और चिल्लाने लगती है।

“तुम्हारा दिमाग खराब है क्या विराज… तुम चाहते हो मैं अपने हाथों से अपनी मां को मौत के मुंह में धकेल दूं।”

रेनू का ये गुस्सा जायज था और विराज ये बात अच्छे से जानता भी था, लेकिन अगर शारदा उनसे मिलने नहीं आती… तो इस वक्त उनके पास एक ही रास्ता था- खेमराज काका को शारदा के पास ले जाना। ताकि खेमराज को देख, शारदा खुद-ब-खुद उस रात का सच और उस ट्रंक का पता बता दे।
 
ऐसे में विराज अपना वकीलों वाला दिमाग चलाता है और रेनू के आगे अपना नया पासा फेंकता है, "देखों रेनू, मैं जानता हूं कि तुम अपनी पहचान और गजराज सिंह से अपना पिता होने का सम्मान.. दोनों चाहती हो। और इसके लिए तुम अब तक परछाइयों में रहकर सच्चाई और अपनी मां के वजूद की खोज कर रही थी, लेकिन मैं कहता हूं बस एक बार फिर से सामने आ जाओं… मैं और गजेन्द्र इस बार पूरा खेल पलट देंगे और तुम जो चाहती हो वो मैं तुम्हें वादा करता हूं दिलाकर रहूंगा।"

विराज की बातें रेनू के दिमाग में घर कर जाती है और वो एक बार फिर राजघराना महल लौटनें के लिए मान जाती है। "ठीक हैं, मैं अपनी मां शारदा देवी को लेकर आ रही हूं वापस…”

रेनू इतना कह फोन काट देती है और अपनी मां शारदा को लेकर सीधे राजघराना महल की ओर निकल पड़ती है। कुछ आधे घंटे में रेनू ठीक 6 महीनें बाद फिर से राजघराना लौटती है और कदम रखते के साथ कहती है।

"मुझे पता था, गजेन्द्र… एक दिन तुम ये सवाल करोगे, कि जानकी आंटी ने मेरी मां को ट्रंक के बारें में मौत से पहले आखिर क्या बताया था। 

रेनू के मुंह से ट्रंक की बात सुन सब शौक में आ गए, कि आखिर रेनू को उस ट्रंक के बारें में कैसे पता…? सबके चौकते चेहरे देख रेनू ने हंसते हुए कहा।

"ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है विराज बाबू… दरअसल उस दिन कुलधरा के जंगल में जब मां को सांप ने कांट लिया, तो उन्हें लगने लगा कि वो अब जिंदा नहीं बचेगी। ऐसे में मौत को सामने देख उस रात मां ने ही मुझे उस ट्रंक के बारे में बताया था। उस रात उन्होंने कहा था कि अगर मुझे कुछ हो जाए, तो तुम सबको ये ट्रंक दे दूं, क्योंकि वो तुम्हारी मां जानकी की आखरी निशानी है।"

ये सुनते ही गजेन्द्र ने हड़बड़ाहट भरी आवाज में कहा— "ठीक है, तो रेनू बुआ… ले चलिए हमें वहां...”

ये पहली बार था जब किसी ने रेनू के साथ रिश्ता जोड़कर बात की थी और उसे बुआ कहा था। ऐसे में उसके अंदर की ममता जाग उठी और वो तुरंत तीनों को अस्तबल के नीचे एक गुप्त तहखाने मे ले गई। जहां दीवारों में छिपा एक दरवाज़ा, जिसकी ईंटें पुरानी ज़माने के राज़ों की गवाही दे रही थीं। वहां एक लोहे का भारी संदूक रखा था, जिस पर एक मोटी धूल की परत जमा थी।

गजेन्द्र ने तुरंत अपनी शर्ट उतारी और संदूक को अच्छे से साफ करते हुए आराम से खोला। मुक्तेश्वर ने भी धीमे कदमों से उसकी तरफ बढ़ते हुए उसके अंदर झांका, तो देखा अंदर काले मखमल में लिपटा एक पुरानी रजिस्टर, दस्तावेज़, सीडीज़ और एक वीडियो कैमरा मौजूद है।

गजेन्द्र ने एक-एक कर सारा सामान निकाला और फिर कैमरे को ऑन किया। वीडियो शुरू होते ही जानकी की आवाज़ गजेन्द्र और मुक्तेश्वर के कानों में गूंज उठी और अपनी मां को पहली बार देख और उसकी आवाज सुन गजेन्द्र की आखों से आसुओं की धारा बहने लगी।

"अगर तुम ये देख रहे हो, तो मैं नहीं रही। पर मेरा यकीन है, मेरा बेटा गजेन्द्र एक दिन ये लड़ाई ज़रूर लड़ेगा। ये सबूत इस बात के हैं कि राजघराना का सिंहासन, किसी और का नहीं… मेरे बेटे की विरासत है। लेकिन एक शख़्स… जो सत्ता से भी ऊपर है… वो ये नहीं होने देगा। उसका नाम है— 'परमेश भोंसले'।"

"परमेश भोंसले अपनी प्रभा ताई के पति राघव भोंसले का बड़ा भाई है, उसके बारे में इस महल में कोई नहीं जानता। वो छिपकर इस महल के हर सदस्य पर वार करता है।"

"परमेश भोंसले?" का नाम सुनते ही विराज फुसफुसाया और ये देख मुक्तेश्वर बोला।

"हाँ, वो ही है जो राघव के पीछे बैठ पूरे खेल की बिसात बिछाता है, मैं उसका नाम कैसे भूल गया। सुनों गजेन्द्र और विराज— परमेश भोंसले... वो दिल्ली में बैठा एक ताक़तवर नेता है, जिसने हमेशा से इस राजघराने को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया है…और उसी के दम पर राघव भोंसले यहां टिका भी हुआ है, वरना तो पिताजी कब का प्रभा ताई का तलाक करवा चुके होतें।

अपने पिता की ये बात सुन गजेन्द्र ने पूछा— "मतलब राघव सिर्फ एक प्यादा था? और हम लोग अब तक गलत शख्स के पीछे थे।"

तभी रेनू ने गजेन्द्र की लाइन को पूरा करते हुए कहा, "और चिट्ठी का असली निशाना सिर्फ सत्ता को डगमगाने वालों को खत्म करना था..."

जहां एक तरफ राजघराना महल में जायज और नाजायज सारे रिश्तें एक हो दुश्मन पर तगड़ा वार करने की तैयारी कर रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर जयगढ़ जेल में बंद राघव भोंसले भी कल रात से सोया रहीं था।

राघव भोंसले की आंखें लाल थीं। उसका चेहरा, कैद में भी सत्ता की अकड़ से भरा हुआ था, लेकिन आज किसी ने उसे मिलने बुलाया था। कोई अनजान शख्स जिसने जेलर को भी रिश्वत दी थी।

जेल के मुलाकात वाले कमरे में वो शख्स अपना चेहरा ढ़क कर आया था, और आते के साथ वो पहले राघव भोसले के गले लगा और फिर उसने धीमे से कहा।

"वक्त आ गया है। अब गजेन्द्र को मिटा देना होगा, वो अब रोड पर पड़ा कंकड़ नहीं रहा… बड़ा बारी पत्थर बन गया है।"

ये सुनते ही राघव भोंसले के होंठों पर हल्की मुस्कान आई और वो बोला— "उसे मिटाने की नहीं, जलाने की ज़रूरत है… उसका पूरा इतिहास।"

जेल में भोंसले भाई इस वक्त राजघराना के एकलौते वारिस गजेन्द्र को मौत के घाट उतारने की प्लानिंग कर रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर महल पर आज रात एक नया ही खतरा मंडरा रहा था।

उसी रात, रिया के अस्पताल के कमरे के बाहर एक नर्स जैसी पोशाक में कोई महिला यहां से वहां मंडरा रही थी, लेकिन रिया को यकीन था कि वो नर्स नहीं थी। उसने उसे महल में देखा था… लेकिन वो थी कौन? ये उसे बिल्कुल याद नहीं आ रहा था। रिया आंखे बंद कर बैड पर लेट गई और सोने का नाटक करने लगीं।

रिया को सोता देख वो नर्स दबें पांव उसके कमरे में दाखिल हुई। इस वक्त उसके हाथ में एक नुकीली सिरिंज थी, लेकिन कमरे में पहुंचने के बाद जैसे ही उसने रिया पर उस नुकीली सिरिंज से हमला किया- रिया ने आंखें खोल दीं और पूरी जी-जान से चिल्लाई।

"कौन हो तुम?"

विराज जो अब तक रिया के वार्ड के बाहर रखें टेबल पर सो रहा था, वो तुंरत अंदर दौड़ा… और उस महिला को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वो विराज और गजेन्द्र दोनों के हाथों से बच निकली।

तभी उसने एक बार फिर रिया पर पीछे से हमला किया और इस बार रिया ने दुबारा उसकी आंखों को गौर से देखा और बोलीं — "ये वही परछाई है, जिसने मुझ पर हमला किया था।"

विराज और गजेन्द्र ने दरवाजे के सामने की तरफ से लपक कर उसे पकड़ा और तुरंत उसे पुलिस के हवाले किया। साथ ही विराज ने अगले दिन पुलिस स्टेशन में आने की बात भी कहीं।

पुलिस उस औरत को राजगढ़ ले गई, जहां पूछताछ में उसने अपना नाम "रंजना" बताया, लेकिन फिलहाल उसने आगे कुछ और बताने से इंकार कर दिया। अब सब समझ आ गया था।

अगले दिन डॉक्टरों ने रिया को डिस्टार्ज कर दिया, जिसके बाद रिया भी गजेन्द्र, मुक्तेश्वर और रेनू के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुई। दरअसल अब इन सबने तय कर लिया था, कि अब सबूत लेकर सीधे दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाएगी और सारे साजिशकर्ताओं… खास तौर पर पूरे भोंसले खानदान का खुलासा होगा। 

तभी कार चलाते-चलाते अचानक गजेन्द्र बोला "अब बस अदालतें नहीं… जनता फैसला करेगी"

कुछ 5 से 6 घंटे का सफर तय कर सब दिल्ली पहुंचें, जहां उन्होंने सबसे पहले एक प्रेस मीटिंग बुलाई। सबसे चौका देने वाली बात ये थी कि दिल्ली की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में आज राजस्थान के राजगढ़ में खड़ी राजघराना हवेली की बड़ी बहू के कत्ल का खुलासा 20 साल बाद होने वाला था। जो काम पुलिस नहीं कर पाई आज वो एक बेटा करने वाला था।

इसके लिए जहां मुक्तेश्वर ने सबसे पहले जानकी का आखरी वीडियो, दस्तावेज़ और गद्दी के असली वारिस की घोषणा का पत्र लाइव पूरे मीडिया में दिखाया। इसके साथ ही राघव भोंसले की चालबाजी का भी खुलासा किया। 

लेकिन... जैसे ही जानकी का वो आखरी वीडियो खत्म हुआ, वहां प्रेस मीटिंग में एक बड़ा धमाका हुआ। ये धमाका उस हॉल के पिछले हिस्से में बम फटने जैसा था।

भीड़ में अफरातफरी मच गई। गजेन्द्र, रिया को ढाल बनाकर बचा लेता है और अपनी मां की उस आखरी निशानी को निकाल वहां चुपके से दूसरी कैसेट डाल देता है। तभी वहां पुलिस की दो गाड़िया आई और पूरे एरिया को सील कर देती है।

“देखिये कोई भी किसी चीज को हाथ नहीं लगाएगा। हम सुरक्षा कारणों से आप से रिकवेस्ट करते है कि धीरे-धीरे कर के सब बाहर आ जाइये, क्योकि अभी-अभी इस प्रेस हॉल के पिछले एरिया में बम फटा है और हमें आप लोगों की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया है। तो एक-एक कर सब बाहर आ जाइये और किसी चीज को हाथ मत लगाइएगा।”

सामान को हाथ ना लगाने की बात सुन विराज चौक कर गजेन्द्र की तरफ देखता है, लेकिन वो सिर्फ इतना ही कहता है, “छोड़ दो, वीडियो पूरा देश टीवी पर लाइव देख चुका है। अब सबको पता चल गया है, कि कौन राजघराना का दुश्मन है, चलों बाहर”

यहां गजेन्द्र और विराज अपनी चाल चल चुके थे, तो वहीं जेल की सलाखों के पीछे बैठे राघव भौंसले को जैसे अपनी हार का स्वाद मिला...वो तिलमिला उठा, लेकिन तभी उसके सेल के अंदर एक कॉन्सटेबल ने एक चिट्ठी फेंकी और चुपचाप वहां से चला गया

राघव ने चुपके से वो चिट्ठी उठाई और कौने में ले जाकर उसे पढ़ने लगा। चिट्ठी को खोलते ही उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई और वो खुद से बड़बड़ाते हुए बोला।

"परमेश ने कहा है— खेल अब दिल्ली में नहीं, सीधा महल में होगा। अगला राजा तय करेगा मौत… और सिंहासन एक बार फिर खून से सनेगा। हाहाहाहा"

दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के बाद गजेन्द्र, विराज, रिया और मुक्तेश्वर जैसे ही वापस महल लौटते हैं वहां के मुख्य दरवाज़े पर लाल रंग से उनके लिए एक संदेश लिखा मिलता है।

“जब राज गद्दी पर सवाल उठते हैं, जवाब सिर्फ खून ही देता है। अब गिनती शुरू करो… कौन पहले मरेगा।”
 

आखिर क्या था दरवाजे पर लिखे इस संदेश का मतलब?

क्या सच में ये चाल राघव भोंसले और उसके भाई परमेश भोंसले ने चली थी? 

या कोई इनके नाम की आड़ में खेल रहा था और भी घिनौना-शातिर खेल? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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